अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
सौ. सुजाता काळे
© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्रा।
9975577684
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
सौ. सुजाता काळे
© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्रा।
9975577684
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
कविराज विजय यशवंत सातपुते
(समाज , संस्कृति, साहित्य में ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले कविराज विजय यशवंत सातपुते जी की सोशल मीडिया की टेगलाइन “माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आधारित आपकी एक भावप्रवण कविता थांबव हा बाजार. . . . ! )
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – थांबव हा बाजार. . . . ! ☆
माता महती थोर तरीही
दर्जा दुय्यम का नारीला ?
समानतेचा पोकळ डंका
झळा आगीच्या स्री जातीला. . . . !
नाना क्षेत्री दिसते नारी
कुटुंब जपते जपते नाती
तरी अजूनी फुटे बांगडी
पणती साठी जळती वाती. . . . . !
साहित्य,कला,नी उद्यम जगती
नारीशक्ती सलाम तुजला
तरी अजूनी आहे बुरखा
नारी जातीला म्हणती अबला. . . . !
आई, बाई, ताई, माई हाका केवळ
अजून वेशीवरती दिसते वेडी शालन
जातीपातीच्या अजून बेड्या पायी तुझीया
स्त्री मुक्तीचा स्वार्थी जागर की रामायण.
न्यायदेवता रूप नारीचे दृष्टिहीन का
भारतमाता प्रतिक शक्तीचे आभासी का
घरची लक्ष्मी अजून लंकेची पार्वती बनते
अजून पुरूषा बाई केवळ शोभा वाटे का?
रोज रकाने भरून वाहती होई अत्याचार
मुक्तीचा या स्वैर चालतो घरीदारी बाजार
जाग माणसा माणूस होऊन नारी शक्ती नरा
स्त्री मुक्तीचा गाजावाजा थांबव हा बाजार.
© विजय यशवंत सातपुते
यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी, सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.
मोबाईल 9371319798.
श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है मात्र विद्यार्थियों के लिए ही नहीं अपितु उनके पालकों के लिए भी आपकी एक अतिसुन्दर कविता “वाचन संस्कृती”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 38 ☆
☆ वाचन संस्कृती ☆
वाचन संस्कृती । बाणा नित्य नेमे । आचरावी प्रेमे । जीवनात ।1।
संपन्न जीवना । ज्ञान एक धन । सुसंस्कृत मन । वाचनाने ।2।
शब्दांचे भांडार । समृद्धी अपार । चढतसे धार । बुद्धीलागी ।3।
मधुमक्षी परी । वेचा ज्ञान बिंदू । जीवनाचा सिंधू । होई पार ।4।
अज्ञान अंधारी । लावा ज्ञान ज्योती । वाचन संस्कृती । तरणोपाय ।5।
ज्ञानाची संपत्ती । लूटू वारेमाप । चातुर्य अमाप । गवसेल ।6।
वाचा आणि वाचा । ध्यानी ठेवा मंत्र । व्यासंगाचे तंत्र । फलदायी ।7।
जपा जिवापाड । वाचन संस्कृती । नुरेल विकृती । जीवनात ।8।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनकी एक अतिसुन्दर कविता “वो बचपन”। आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37 ☆
☆ कविता – वो बचपन ☆
खबरदार खबरदार प्यारे बचपन
ये जहर उगलते मीडिया ये बचपन
ऊंगलियों में कैद हो गया है बचपन
हताशा निराशा में लिपटा है बचपन
गिल्ली न डण्डा न कन्चे का बचपन
फेसबुक की आंधी में डूबा है बचपन
वाटसअप ने उल्लू बनाया रे बचपन
चीन के मंजे से घायल है ये बचपन
खांसी और सरदी का हो गया जीवन
कबड्डी खोखो को भूल गया बचपन
सुनो तो कहीं से बुला दो ‘वो’ बचपन
मिले तो आनलाइन भेज दो ‘वो’ बचपन
© जय प्रकाश पाण्डेय
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
श्री प्रयास जोशी
(श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भोपाल से सेवानिवृत्त हैं। आपको वरिष्ठ साहित्यकार के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी विशेष कविता – “मन “.)
*
महिला दिवस पर
जब एक पुरुष ने
एक महिला को
शुभकामना
देना चाही
तो महिला ने
एकटक शून्य में
देखते हुये कहा-
अभी अपनी
शुभकामना
अपने पास रखो
इस के लिये अभी
मन नही है मेरा
जब मन होगा
तब मैं,खुद ही
शुभकामना
ले लूंगी
और अगर तुम
नहीं भी दोगे
तब भी मैं/खुद
अपनी शुभकामना
छीन लूंगी
© श्री प्रयास जोशी
भोपाल, मध्य प्रदेश
सुश्री अनुभा श्रीवास्तव
(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता”। यह इस लेखमाला की अंतिम कड़ी है । इस साप्ताहिक स्तम्भ श्रृंखला के लिए हम सुश्री अनुभा जी के हार्दिक आभारी हैं। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने # 41 ☆
☆ मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता ☆
खदान से प्राप्त होने वाला हीरा तभी उपयोगी और मूल्यवान बनता है जब कुशल कारीगर उसे उचित आकार में तराश कर आकर्षक बना देते हैं। तभी ऐसा हीरा राजमुकुट, राजसिंहासन या अलंकार की शोभा बढ़ाने के लिये स्वीकार किया जाता है। यही नियम हर क्षेत्र में लागू होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व को भी शिक्षा के द्वारा निखारा जाता है और उसे समाज के लिये उपयोगी गुण प्रदान किये जाते है। शिक्षा का यही महत्व है। इसी लिये हर देश में शासन ने शिक्षा व्यवस्था की है।क्रमशः प्राथमिक, माध्यमिक एवं महाविद्यालयीन संस्थाये नागरिको को देश की आवश्यकतानुसार विभिन्न प्रकार की विद्यायें सिखाने का कार्य कर रही हैं। हमारे देश में भी इसी दृष्टि से ‘‘सर्व शिक्षा अभियान” चलाया गया है जिसमें 6 से 14 वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बच्चे को सुशिक्षित करने की व्यवस्था की गई है। शिक्षा का अर्थ सिखाने से है और विद्या का अर्थ विषय या तकनीक का ज्ञान देने से है। इस तरह शिक्षा के दो प्रकार कहे जा सकते है। एक प्रारंभिक शिक्षा जिसमें अक्षर ज्ञान- पढना लिखना तथा प्रारंभिक गणित का ज्ञान होना होता है और दूसरा किसी विशेष विषय की शिक्षा जिसके द्वारा उच्च तकनीकी ज्ञान की किसी एक शाखा मे विशेषज्ञ तैयार किये जाते हैं। ज्ञान की अनेको शाखाये है, सभी के जानकार व्यक्तियो की समाज को आवश्यकता होती है जिससे देश की आवश्यकताओ को पूरी करने वाले नागरिक तैयार हो सकें और उनकी सहायता व सेवाओ से देश प्रगति कर सके। ये सुशिक्षित लोग अपनी गुणवत्ता के साथ ही ऐसे भी होने चाहिये, जिनका आचरण अच्छा हो जिनमें अनुशासनप्रियता हो, कर्मठता हो, समाज सेवा की भावना हो, नियमितता हो ,सहयोग की भावना हो, सहिष्णुता हो तथा सब के प्रति आदर का भाव हो। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसीलिये हमने देश के राजचिन्ह मे ‘‘सत्यमेव जयते” का आदर्श वाक्य अपनाया है। 1789 में अठारहवी सदी की फ्रांस की राज्य तथा वैचारिक क्रांति ने विश्व को एक नयी शासन व्यवस्था दी जिसे अंग्रेजी में डेमोक्रेसी अर्थात प्रजातंत्र के नाम से जाना जाता है। हमने भी देश की आजादी के बाद इसी जनतंत्र को अपने भारत के समुचित और सही विकास के लिये अपनाया है। जनसंख्या की दृष्टि से हम विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। हमारी आबादी लगभग 125 करोड है और हमारे जनतांत्रिक आदर्शो को विश्व के विभिन्न देश आदर्श के रूप में देखते हैं।
जनतंत्र के प्रमुख सिद्धांत हैं (1) स्वतंत्रता (2) समानता (3) बंधुता तथा (4) न्याय। इन्हीं चार स्तंभो पर जनंतत्र की इमारत खडी है। प्रत्येक सिद्धांत के बडे गहरे अर्थ हैं और उसके बडे दूरगामी प्रभाव होते हैं। हमारे राष्ट्रीय संविधान में इनकी विस्तार से चर्चा और निर्देश हैं। आजादी से अब तक देश में निरंतर इसी शासन व्यवस्था को , जिसमें प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान के द्वारा अपना जनप्रतिनिधि चुनकर शासन में भेजने का महत्वपूर्ण मूल्यवान अधिकार है , का पालन किया जाता है। विश्व के अन्य देश बडे आश्चर्य व उत्सुकता से हमारे देश में इस व्यवस्था का पालन किया जाना देख रहे हैं। इस जनतांत्रिक व्यवस्था में हमारी सफलता के उपरांत भी हम देखते हैं कि कुछ कमियां है। इन कमियों के कारण देशवासियों के पारस्परिक व्यवहार तथा बर्ताव में शुचिता की कमी देखी व सुनी जाती है जो सरकार के सामने कई कठिनाईयां खडी करती है।
जनतंत्र में प्रमुख पहला सिद्धांत स्वतंत्रता का है। प्रत्येक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है , व्यवहार की स्वतंत्रता है परंतु यह स्वतंत्रता स्वच्छंदता नहीं हो सकती जिससे अन्य नागरिको को जरा भी हानि हो।प्रत्येक नागरिक को वही समान अधिकार प्राप्त हैं अतः टकराव नहीं होना चाहिये इसका पूरा ख्याल हर नागरिक के मन में निरंतर बना रहना चाहिये। यही बात समानता , बंधुता और न्याय के सिंद्धांतो के लिये भी समझदारी , ईमानदारी और पूरी निष्ठा से व्यवहार के हर क्षेत्र में आवश्यक है। परंतु क्या ऐसा हो रहा है? सिद्धांत तो बडे अच्छे हैं परंतु उन्हें व्यवहार में अपनाये जाने में कमी दिखती है। नारा तो है “सत्यमेव जयते” परंतु व्यवहार में देखा जाता है और कहा जाता है “चाहे जो मजबूरी हो मांग हमारी पूरी हो”। ऐसे में देश का विकास और प्रगति कैसे संभव है? हर क्षेत्र में रूकावटें हैं। आये दिन स्वार्थ पूर्ति के लिये नये नये संगठन बनकर सामने आते है। प्रदर्शन, बंद, धरने और शक्ति प्रदर्शन के लिये जुलूस निकाले जाते हैं। क्रोध और विरोध दिखाकर देश की लाखो की संपत्ति जो वास्तव में जनता के धन से ही उपलब्ध कराई गई होती है, नष्ट कर दी जाती है।आंदोलन व प्रजातांत्रिक अधिकार के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति में आग लगा दी जाती है। अनेकों के सिर फूटते हैं और अनेको वर्षो में धन और श्रम से किये गये निर्माणो को देखते देखते नष्ट कर बहुतों को शारीरिक और मानसिक संकट में डाल दिया जाता है। कुछ ऐसी ही अराजकता चुनावो के समय अनेक मतदान केन्द्रो में भी देखी जाती है। कभी तो निर्दोष व्यक्तियों की जान तक ले ली जाती है। यदि यह सब जनतंत्र में हो रहा है तो यह विचार करना जरूरी है कि क्यों ? सिद्धांतो को कितना अपनाया गया है और यह राजनीति कैसी है।
हमारा देश तो प्राचीन धर्मप्राण देश है। अनेको धर्मो का उद्गम स्थान है। विश्वगुरू कहा जाने वाला देश है फिर हमारा आचरण इतना धर्मविरूद्ध क्यों हो गया ? जब इस तथ्य पर चिंतन करते है तो नीचे लिखे कुछ विचार समने आते है:-
यह स्थिति केवल हमारे देश में ही नहीं समूचे विश्व में ही हुई है। आंतकवाद सब जगह फैल गया है। मानवता त्रस्त है। इन सबका कारण नासमझी है। धर्म की गलत व्याख्या है। स्वार्थ, लालच, क्रोध, असहिष्णुता ने अदूरदर्शिता का प्रसार किया है तथा अनाचार व आतंक को जन्म दिया है। आचार विचार और सुसंस्कारो को समाप्त किया है। सारे परिवेश को दूषित किया है। जनता में पढाई लिखाई का तो प्रसार हुआ है परंतु लोगों के मन का वास्तविक संस्कार नहीं हो पाया है। मन ही मनुष्य के सारे क्रियाकलापो का संचालक है। जैसा मन होता है वैसे ही कर्म होते है अतः सही वातावरण के निर्माण हेतु मन का सुसंस्कार कर शुभ विचार की उत्पत्ति किया जाना आवश्यक है। शिक्षा से व्यक्ति को सुखी समृद्ध और समाज के लिये मूल्यवान बनाया जा सकता है। अतः प्रारंभ सद्शिक्षा से ही करना होगा। शिक्षा से मनुष्य का शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास करने के लिये समुचित पाठ्यक्रम अपनाया जाना चाहिये। मन के सुधार के लिये नीति प्रीति की रीति सीखने समझने के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये। बचपन के संस्कार जो बच्चा घर ,परिवार ,परिवेश, धार्मिक संस्थानो में देख सुन व व्यवहार का अनुकरण कर सीखता है , जीवन भर साथ रहते हैं। माता, पिता, शिक्षकों तथा समाज में बडों के आचरण का अनुकरण कर छात्र जल्दी सीखते है। अतः शालाओ और सामाजिक परिवेश में नैतिक मूल्यों का वातावरण विकसित किया जाना चाहिये। अर्थकेन्द्रित आज के संसार में सदाचार केन्द्रित शिक्षा के द्वारा ही परिवर्तन की आशा की जा सकती है . भविष्य को बेहतर बनाने के लिये मूल्यपरक शिक्षा के द्वारा समाज को सदाचार की ओर उन्मुख किया जाये। संपूर्ण शिक्षा पाठयक्रम और संस्थानो के कार्यक्रमो में नैतिक शिक्षा की गहन आवश्यकता है। क्योंकि शिक्षा का रंग ही व्यक्ति के जीवन को सच्चे गहरे रंग से रंग देता है। पहले संयुक्त परिवारो में दादी नानी व बड़े बूढ़े कहानियों व चर्चाओ से बालमन को जो नैतिक संस्कार देते थे आज के युग में एकल परिवारो के चलते केवल शिक्षण संस्थाओ को ही यह जिम्मेदारी पूरी करनी है।
अतः वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में मूल्यपरक शिक्षा अतिआवश्यक है, जिससे हर शिक्षा पाने वाले विद्यार्थी को विभिन्न विषयों के ज्ञान के साथ साथ अपनी सामाजिक जिम्मेदारियो का सही सही बोध हो सके। एक नागरिक के रूप में उसके अधिकार ही नहीं कर्तव्यों का भी दायित्व वह समझ सके । बुद्धि के साथ साथ छात्र का हृदय भी विकसित हो, उसे खुद के साथ अपने पडोसियों के प्रति भी संवेदना हो। समाज में सद्भाव,सहयोग, समन्वय और सहिष्णुता विकसित हो सके।
© अनुभा श्रीवास्तव
आचार्य सत्य नारायण गोयनका
(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में सहायता की है। आप आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)
आलेख का लिंक ->>>>>> ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी
Shri Jagat Singh Bisht
(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)
☆ कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #13 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆
(हम प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )
साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट
A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.
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Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer
श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
( विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना )
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर ।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ।। 3।।
कहा आपने निज विषय जो कुछ भी भगवान
इच्छा है देखूं वही , रूप अतीव महान ।। 3।।
भावार्थ : हे परमेश्वर! आप अपने को जैसा कहते हैं, यह ठीक ऐसा ही है, परन्तु हे पुरुषोत्तम! आपके ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेज से युक्त ऐश्वर्य-रूप को मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ।। 3।।
(Now), O Supreme Lord, as Thou hast thus described Thyself, O Supreme Person, I wish to see Thy Divine Form!।। 3।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर डॉ मुक्ता जी की एक विशेष कविता “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस”। )
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ☆
आठ मार्च को
अंतर्राष्ट्रीय
महिला दिवस पर
विश्व भर में
नारी सशक्तीकरण
के नारे लगाए जाते
किया जाता मंच से
महिलाओं की
उपलब्धियों का बखान
और महिमा का गुणगान
परन्तु वर्ष के 365 दिन
उसे जूझना पड़ता
पति की प्रताड़ना
व तथाकथित दुर्व्यवहार से
और सहन करने पड़ते
परिवारजनों के कटाक्ष
व व्यंग्य-बाण
वह मासूम हर दिन
ज़ुल्मों का शिकार होती
दण्डित की जाती
उन अपराधों के लिये
जो उसने किये ही नहीं
और वे ज़ख्म
नासूर बन रिसते
सालते हरदम
वह अहंनिष्ठ इंसान
मात्र एक दिन के लिये भी
नहीं रख सकता
आत्म-नियंत्रण
और न ही लगा पाता
अपने भावों,अहसासों
व जज़्बातों पर अंकुश
वह नहीं रहना चाहता
अपने अधिकारों के
दुरुपयोग से वंचित
सर्वश्रेष्ठता के भाव से मुक्त
वह सोचती
क्या कभी
बदलाव आएगा
उसकी सोच में
उसके आचार-व्यवहार में
जो सम्भव नहीं
शायद कभी नहीं…
काश!वह उस निष्ठुर को
घरेलू हिंसा का अर्थ समझा
उसकी परिभाषा से
अवगत करा
अहसास दिला देती
उसकी औक़ात का
और वह उसके वजूद से
रू-ब-रू हो जाता
शायद!वह अहंवादी
स्वयं को सर्वोत्तम व सर्वश्रेष्ठ
समझने वाला इंसान
संबंधों की दलदल
रिश्तों के झाड़-झंखाड़
और चक्रव्यूह से मुक्त हो पाता
वह केवल
महिला दिवस के
दिन ही नहीं
हर दिन अपनी पत्नी की
अहमियत को स्वीकारता
और उसे अनुभव हो जाता
संकट की घड़ी में
वे संबंधी
बरसाती मेंढकों की भांति
आसपास मंडराते
कभी काम नहीं आते
क्योंकि आजकल सभी संंबंध
स्वार्थ पर टिके होते
परन्तु इज़्ज़त व प्रतिष्ठा
न किसी हाट पर बिकती
न ही भीख में मिलती
दुनिया में सदा
’गिव एंड टेक’
व’जैसे को तैसा’का
व्यवहार चलता
परन्तु
रिश्तों की दलदल
व जंजाल में
फंसा इंसान
अपनी पत्नी पर
अकारण निशाना साध
क़ायदे-कानून
को दरक़िनार कर
मर्यादा व सीमाओं का
अतिक्रमण कर
इतराता-इठलाता
खुद को शहंशाह ही नहीं
ख़ुदा समझता
जैसे फ़तेह कर लिया हो
उसने कोई किला
वह अभागिन
अपने भाग्य को कोसती
अजस्त्र आंसू बहाती रहती
स्वर्णिम सुबह की इंतज़ार में…
जब औरत को मात्र वस्तु नहीं
संवेदनशील इंसान स्वीकार
दी जायेगी अहमियत
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
मो• न•…8588801878
आज प्रस्तुत है हिंदी साहित्य की सशक्त युवा हस्ताक्षर सुश्री निर्देश निधि जी की अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक विशेष कविता “ सुनो धनिया ”।
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सुनो धनिया ☆
सुनो धनियाँ
कल तुम्हें देखा था मैंने,
सरसों के हरे – पीले खेत के पार
साँझ की नारंगी धूप में नहाई हुई
कमर में कसी चटख गुलाबी साड़ी
क्या तुम्हें पता था
फबेगी उसपर खूब, घास की धानी गठरी
वृहत्तर हरे कैनवासों के बीचों बीच सतर पगडंडी पर।
पूरी लय और ताल के साथ
बेरहम बोझ से लचक कर जब चलती हो तुम
सौंदर्य प्रतियोगिताओं के रैम्प पर
कैटवॉक करती हर अल्पवसना
लगने लगती है बेमाने
तुम्हारे साथ गाते हैं मैली चूड़ियों के सुर
तुम्हारी तेज़ साँसों से उड़ते हैं पवन के परिंदे
तुम्हारी गिलट की पायलों की रुनझुन
भरती है चाल में रागिनी
बेला की महकती डार जैसे
छिपी हो तुम्हारे अधखुले बालों में
उतरती धूप की अलसाई अंगड़ाई में
तुम्हारा निश्चल यौवन उगाता है धरती पर
ईश्वर के होने का विश्वास
क्या हुआ जो नहीं हैं नरम, तुम्हारे साँवले मेहनती हाथ
क्या हुआ जो नहीं हैं, तुम्हारे पाँवों की एड़ियाँ गुलाबी
मानव भेड़ियों से भरे बहरूपिये समाज से
अकेली जूझती हो तुम
पशु भेड़ियों भरे जंगलों से निडर गुजरती हो
हर मुसीबत को हँसिये से चीरती सी तुम
कौन कहता है कि तुम में नहीं है,
सशक्त आधुनिक नारी का वास।
बताओ तो धनियाँ ।
संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001
ईमेल – [email protected]