(आपसे यह साझा करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं e-abhivyakti के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं । अब हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा –“तरक़ीब ”। हमारे जीवन में घटित घटनाएँ कुछ सीख तो दे ही जाती हैं और कुछ तो तरक़ीब भी सीखा देती हैं। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 8 ☆
☆ लघुकथा – तरक़ीब ☆
रमेश जी अपने परिवार के साथ प्लेटफार्म पर बैठे थे। गाड़ी का इंतज़ार था। दोनों बच्चे प्लेटफार्म पर धमाचौकड़ी मचाये थे। थोड़ी ही देर में उन्होंने ‘भूख लगी है’ की टेर लगानी शुरू कर दी। माँ ने टिफिन-बॉक्स खोला और बच्चों को देकर पति की तरफ भी पेपर-प्लेट बढ़ा दी।
रमेश जी के हलक़ तक निवाला पहुँचा होगा कि वे प्रकट हो गये—-तीन लड़कियाँ और दो लड़के, उम्र तीन चार से दस बारह साल के बीच। फटेहाल । करीब पांच फुट की दूरी पर जड़ हो गये। आँखें खाने पर, अपलक। जैसे आँखों की बर्छी भोजन को बेध रही हो।
निवाला रमेश जी के गले में अटक गया। मुँह फेरा तो वे मुँह के सामने आ गये। दृष्टि वैसे ही खाने पर जमी। रमेश जी के बच्चे भी उनकी नज़र देख कौतूहल में खाना भूल गये। रमेश जी गु़स्से में चिल्लाये, लेकिन बेकार। उनकी नज़र यथावत। झल्लाकर रमेश जी ने प्लेट उनकी तरफ ढकेल दी, चिल्लाये, ‘लो, तुम्हीं खा लो।’ वे प्लेट उठाकर पल में अंतर्ध्यान हो गये।
दिमाग़ ठंडा होने पर रमेश जी ने सोचा, यह तरक़ीब अच्छी है। न लड़ना झगड़ना, न चीख़ना चिल्लाना। बस खाना गले में उतरना मुश्किल कर दो । रमेश जी खीझ में हँस कर रह गये।
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना “होम करते रहे हाथ जलते रहे.!”)
(प्रस्तुत है सुश्री आरूशी दाते जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “मी _माझी “ शृंखला की बरहवीं कड़ी अंतर… । सुश्री आरूशी जी के आलेख मानवीय रिश्तों को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं। आज पढ़िये अंतर… । वास्तव में सम्बन्धों में दूरी एवं मर्यादा का स्थान, काल, समय, उम्र एवं जिम्मेवारी का कितना महत्व है न । फिर उससे भी अधिक सम्बन्धों में समर्पण की भावना। आरुशी जी के संक्षिप्त एवं सार्थकआलेखों का कोई सानी नहीं। उनकी लेखनी को नमन। इस शृंखला की कड़ियाँ आप आगामी प्रत्येक रविवार को पढ़ पाएंगे। )
? साप्ताहिक स्तम्भ – मी_माझी – #12  ?
☆ अंतर… ☆
कितीक हळवे कितीक सुंदर,
अपुल्यामधले अंतर…
हे गाणं खूप जवळचं आहे… ह्यातील अपुल्यामधले अंतर हे दोन शब्द मनाचा ठाव घेतात… आणि एक प्रकारचं समाधान देऊन जातात…
मैत्रीला जपत असताना, त्या नात्याला फुलवत असताना, दोघांमधील मर्यादा लक्षात घेऊन त्या मर्यादांचा आदर ठेवणे, खरंच वाटतं तेवढं सोपं आहे का?
नक्कीच नाही ! पण स्थळ, काळ, वेळ, वय, जबाबदारी ह्याचं भान ठेवणंही तितकंच महत्वाचं आहे नाही !
हे अंतर जास्त असलं तरी एका हाकेत नष्ट होतं, खूप समजूतदार असतं, खोल असतं, अनेक क्षणांना एकत्रित गुंफलेलं असतं, मनाच्या एका कोपऱ्यात बंदिस्त असतं, ओंजळीत सुरक्षित असतं, बंद डोळ्यात बहरतं, शब्दांमध्ये अबोल असतं, स्वप्नांमध्ये जागं असतं, आठवणींचे झंकार छेडीत स्वरमय होऊन जातं, भरती ओहोटीच्या लाटेवर आरूढ होऊन किनारा शोधत असतं, नदीच्या पाण्याप्रमाणे प्रवाही असतं… !
हे अंतर म्हणजे प्रेमळ मन लागतं, आणि त्यातून निर्माण होणारे समर्पण, अवघ्या विचारधारेला ग्रासून टाकत हृदयस्थ होतं !
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक सामयिक कविता “वारकरी…! ”। )
इस प्रश्न का विज्ञान सम्मत उत्तर इस वीडियो में दिया गया है।
LAUGHTER YOGA EXERCISE Children love fun and activity.
This is a laughter exercise that children love to enact.
Tell them that we have become dolls, the keys have been turned to the full and we are dancing and laughing.
(The video is excerpted from Certified Laughter Yoga Leader training held in Indore and vidographed by Shri Ram Kishan ji.)
Founders: LifeSkills
Jagat Singh Bisht
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
Radhika Bisht:
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.
ज्ञानानल से भस्मित जिसके कर्म वही सच्चा पंडित।।19।।
भावार्थ : जिसके सम्पूर्ण शास्त्रसम्मत कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञानरूप अग्नि द्वारा भस्म हो गए हैं, उस महापुरुष को ज्ञानीजन भी पंडित कहते हैं।।19।।
He whose undertakings are all devoid of desires and (selfish) purposes, and whose actions have been burnt by the fire of knowledge,-him the wise call a sage. ।।19।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “स्मृतियाँ/Memories”में उनकी स्मृतियाँ । आज के साप्ताहिक स्तम्भ में प्रस्तुत है एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति “पगली गलियाँ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ स्मृतियाँ/MEMORIES – #8 ☆
☆ पगली गलियाँ ☆
बचपन गुजर भी गया तो क्या हुआ ?
याद वो पगली गलियाँ अब भी आती हैं।
क्यों ना हो जाये फिर से वही पुराना धमाल
वही मौसम है, उत्साह है और वही साथी हैं।
कल जो काटा था पेड़ कारखाना बनाने के लिए
देखते हैं बेघर हुई चिड़िया अब कहाँ घर बनाती है|
गरीब जिसने एक टुकड़ा भी बाँट कर खाया
ईमानदारी उस के घर भूखे पेट सो जाती है |
बरसों से रोशन है शहीदों की चिता पर
सुना है इस जलते दिये में वो ही बाती है |
(Mr. Suraj Kumar Singh is a young and dynamic author. He is also an editor of “Young Literati” (E-Magazine). Today, we present an excellent story “The creator and the destroyer”)
☆ The creator and the destroyer ☆
Once, the Creator joined the Destroyer for tea. Seated high above in what theists call heaven they started discussing about the creations and destruction tools whose emergence wasn’t their business at all.
“Hey Destroyer, did you see that?” The Creator tried to point out towards one thing out of billion other things going on.
“See what?” The Destroyer asked in dismay.
“Humans used chemical weapons in Syria that affected many innocents!”
“I know dear but I want to make it loud and clear that I am not responsible.” The destroyer’s face looked as if he sought acquittal.
“Hmm…. neither am I, my friend. It’s them.”
The discussion deepened further. “The only mistake of ours isn’t keen on correcting itself as we thought. It rather wants to correct us! And their interference has no limit. In fact, I can admit in all seriousness that it is more than possible that man will learn to bend time and space, travel across times, open gateways to other dimensions and multiverses. And in their quest to find answers they might come and knock our doors someday. If that happens then they might replace us too.” Creator presented his speculation and summed up his view to which Destroyer replied, “But we aren’t responsible for their miseries. Why would they think we deserve punishment at all? They are the results of our creations so why would they punish us for their own wrongdoings. They can’t replace us. They can’t punish us.”
The Creator added, “No my dear, I have no objection with humans taking over our places but I highly doubt that they would be able to carry out our tasks and maintain the balance. Not because they are any less able than us but because their greed, anger, ego, jealousy etc will never allow them to make right decisions.”
“Now this, my friend, is a question which even a gaze into the future won’t help to answer. Only the moment of their arrival will tell.”
(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं। आप कविता की विभिन्न विधाओं में दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। हमने आपका “साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती” शीर्षक से प्रारम्भ
किया है। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की हायकू शैली में कविता “मोहक थेंब”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # -5 ☆