( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर लघुकथा “शारदा”। श्रीमती कृष्णा जी की यह लघुकथा भारतीय समाज के एक पहलू को दर्शाती है साथ ही यह भी कि हम जो संस्कार देते हैं या बच्चे समाज से पाते हैं, वे उसी का अनुसरण भी करते हैं। )
☆ साप्ताहक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 13 ☆
☆ लघुकथा – शारदा ☆
चौदह बरस की शारदा का विवाह बचपन मैं तय किये गये बाईस वर्षीय लड़के के साथ कर दिया गया। शारदा तो खुश थी।
बचपन से संस्कार से भरी बालिका पहनने ओढ़ने से बेहद अपने आपको सुंदर समझ रही थी। पर वह लड़का खुश नहीं था। ससुराल पहुँचते ही पता चला कि जिसके साथ उसे सात फेरों में बांधा गया है। माँ ने कहा था बेटी जिसके साथ फेरे लेती है वही जीवन भर उसका साथी होता है । उसी से निभाया जाता है। किसी और के बारे में कुछ भी नहीं सोचा जाता ।
यहाँ आते ही उसे पता चला कि वह किसी और से भी विवाह कर चुका है और वह उसके साथ ही रहना चाहता है। शारदा एक पढ़ी और समझदार लड़की थी। भले वह पाँचवीं पढ़ चुकी थी। अधिक बहस में न पड़ माँ पिता को समझा कर तलाक के लिये अर्जी लगवा दी।
फिर विधिपूर्वक तलाक भी हो गया। तलाक हो जाने के बाद सबके कहने पर भी उसने विवाह नहीं किया। और जब कोई भी उससे कहता या पूछता कि आगे क्या होगा तब वह कहती जिसने मुझे बनाते समय यह सब सोच लिया था तो आगे भी वही समझेगा। एक बार ही खुशियों का द्वार भारतीय लड़कियों का खुलता है बार बार नहीं खुलता। अर्थात हो चुका जो होना था अब और नहीं।
The main purpose of the meditation asanas is to allow the practitioner to sit for extended periods of time without moving and without discomfort. Only when the body has been steady and still for some time will meditation be experienced.
Deep meditation requires the spinal column to be straight and very few asanas can satisfy this condition. Furthermore, in high stages of meditation the practitioner loses control over the muscle of the body. The meditation asana, therefore, needs to hold the body in steady position without conscious effort.
In this video, we have demonstrated how to get into the following meditation asanas:
Practice note: A useful suggestion to make the above poses comfortable is to be place a small cushion under the buttocks.
Caution – This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.
Reference book: ASANA PRANAYAMA MUDRA BANDHA by Swami Satyananda Saraswati
Music:
I Don’t See the Branches, I See the Leaves by Chris Zabriskie is licensed under a Creative Commons Attribution licence (https://creativecommons.org/licenses/…)
Source: http://chriszabriskie.com/dtv/
Artist: http://chriszabriskie.com/
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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “खामोशी”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 27 ☆
( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह “स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ। यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया औरवरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया।काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है। ई-अभिव्यक्ति की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है। इस श्रृंखला की प्रथम कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं सुप्रतिष्ठित वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कमल जी के आशीर्वचन “विवेक की कविताएं एक मानसिक अभयारण्य बनाती है “।)
☆ पुस्तक विमर्श #1 – स्त्रियां घर लौटती हैं – “विवेक की कविताएं एक मानसिक अभयारण्य बनाती है” – श्री अरुण कमल ☆
विवेक चतुर्वेदी की कविताओं में सघन स्मृतियां हैं, भोगे हुए अनुभव हैं और विराट कल्पना है इस प्रकार वे भूत, वर्तमान और भविष्य का समाहार कर पाते हैं, और यहीं से जीवन के वैभव से संपन्न समवेत गान की कविता उत्पन्न होती है कविता एक वृंदगान है पर उसे एक ही व्यक्ति गाता है।
अपनी कविता में विवेक, भाषा और बोली बानी के निरंतर चल रहे विराट प्रीतिभोज में से गिरे हुए टुकड़े भी उठाकर माथे पर लगाते हैं उनकी कविता में बासमती के साथ सावां कोदो भी है वे बुंदेली के, अवधी के, और लोक बोलियों के शब्द ज्यों का त्यों उठा रहे हैं यहां पंक्ति की जगह पांत है, मसहरी है, कबेलू है, बिरवा है, सितोलिया है जीमना है वे भाषा के नए स्वर में बरत रहे हैं रच रहे हैं हालांकि अभी उन्हें अपनी एक निज भाषा खोजनी है और वे उस यात्रा में हैं।
वे लिखने की ऐसी प्रविधि का प्रयोग करने में सक्षम कवि हैं, जिसमें अधिक से अधिक को कम से कम में कहा जाता है।
विवेक की कविताएं एक मानसिक अभयारण्य बनाती है उनके लिए जिनका कोई नहीं है उनमें स्त्रियां भी हैं बूढ़े भी बच्चे भी,और हमारे चारों ओर फैली हुई यह धरती भी।
हिन्दी कविता के गांव में विवेक चतुर्वेदी की आमद भविष्य के लिए गहरी आश्वस्ति देती है मुझे भरोसा है कि वे यहां नंगे पांव घूमते हुए इस धरती की पवित्रता का मान रखेंगे।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – जीवन और मृत्यु ☆
*शाश्वत, चिरंतन प्रेमीयुगल की गाथा साझा करने का प्रयास रहा हूँ।*
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी एक प्रिय कविता कविता “शब्द … और कविता”।)
मेरा परिचय आप निम्न दो लिंक्स पर क्लिक कर प्राप्त कर सकते हैं।
☆ जनार्दन राय नागर विद्यापीठ उदयपुर में दो दिवसीय राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी संपन्न ☆
अच्छा साहित्य वही है जो संस्कारों का निर्माण करता है— कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत
बालसाहित्य जिस के लिखे लिए लिखा जा रहा है उस तक पहुंचना चाहिए–ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
श्री जनार्दनराय नागर, राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी) के संघटक साहित्य संस्थान तथा राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी— ‘बाल साहित्य एवं समकालीन हिंदी’ का समापन 16 फरवरी को हुआ. इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए बाल साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश “ने कहा है कि- “बाल साहित्य की उपादेयता बालकों के लिए है। जो बाल साहित्य लिखा जा रहा है वह बालको तक नहीं पहुंच पा रहा है. वह बालकों तक पहुंचे. यह हमारी पहली प्राथमिकता होना चाहिए.”
राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए मुख्य अतिथि विज्ञान लेखक देवेंद्र मेवाड़ा जी ने कहा है कि- “आज विज्ञान को साहित्य से जोड़ने की जरूरत है. आप ने पुराण, भागवत गीता, महाभारत रामायण, वेद आदि के उदाहरण दे कर इस बात को पूरे विस्तार से प्रस्तुत किया है.”
वही कार्यक्रम के उद्धाटन के अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रोफेसर शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा है कि- “किसी भी सभ्यता के लिए हमारे जीवन मूल्य ही विशिष्ट होते हैं. आज हमें बच्चों को जीवन मूल्य से जोड़ने की आवश्यकता है.” वहीं विशिष्ट अतिथि बाल वाटिका के संपादक डॉ भेरुलाल गर्ग ने बाल साहित्य विमर्श पर जोर देते हुए कहा है कि- “बाल साहित्य वह है जो बच्चों के मन से कचरे को बाहर निकालकर उसे सुसंस्कार प्रदान करें.”
बाल साहित्य और समकालीन हिन्दी— विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 5 सत्रों में किया गया. जिस में अनेक शोध पत्रों का वाचन हुआ. इन पर साहित्यकारों ने विमर्श प्रस्तुत किया. प्रथम सत्र की अध्यक्षता बाल साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश और शिक्षाविद् डॉ चेतना उपाध्याय ने कीं. इस सत्र में बालसाहित्याकार क्षत्रिय ने बाल साहित्य की पहुंच बच्चों तक कैसे पहुंचे, इस पर जोर दिया. वही डॉ.उपाध्याय का कहना था कि- “बच्चों को आज के संदर्भ में रोचक ढंग से उन के पास सामग्री पहुंचाई जाए.”
दूसरे सत्र की अध्यक्षता पत्र लेखन मुहिम के प्रवक्ता एवं एसडीएम डॉ सुरेश सिंह नेगी और प्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षाविद् गोविंद भारद्वाज जी ने की. जिस में दो शोध पत्रों का वाचन हुआ. जिस पर साहित्यकार के बीच विमर्श किया गया. डॉक्टर नेगी जी ने बच्चों की कार्यव्यवहार में परिवर्तन पर जोर दिया. वहीं भारद्वाज जी ने बच्चों को आनंद के साथ सिखनेसीखने पर अपनी बात हास्यपूर्ण अंदाज में कहीं.
तीसरे सत्र की अध्यक्षता सलिला संस्था के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ विमला भंडारी और रीता दीक्षित जी ने की. जिस में तीन शोध पत्रों का वाचन और उस पर विमर्श किया गया. इस अवसर पर रीता दीक्षित जी ने कहा है कि- “बच्चों के पास साहित्य पहुंचे यह हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.” वही सलिला संस्था की अध्यक्ष डॉ.विमला भंडारी जी ने अध्यक्षता करते हुए कहा है कि- “हमें बच्चों को उपहार में खिलौने की जगह पुस्तके देनी चाहिए. तभी उनमें पढ़ने की संस्कृति विकसित कर पाएंगे.”
राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन, समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन एसडीएम साहब एवं प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉक्टर सूरत सिंह नेगी ने कहा है कि- “बच्चों को माता-पिता से जोड़ने और उन्हें संस्कारित करने के लिए हमें बहुत कुछ प्रयास करने होंगे.” अपनी बात को आप ने विस्तार से समझाते हुए कहानी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा है कि- “हम एक प्रयास के रूप में बच्चों को पत्र लेखन मुहिम जोड़ सकते हैं. ताकि वे पत्र के माध्यम से मातापिता और दादादादी को समझ सकें. तभी हम बच्चों को संस्कारित कर पाएंगे.”
विशिष्ट अतिथि बालप्रहरी पत्रिका के संपादक श्री उदय किरौला जी ने बच्चों को मोबाइल के गिरफ्त में होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि- “इसके दुष्परिणाम से बचने के लिए हमें प्रयास करने होंगे तभी बच्चे सुसंस्कारित हो पाएंगे.”
इस अवसर पर अनेक विद्वानों ने अपनी उपस्थित से कार्यक्रम को ऊंचाई प्रदान कीं. इस अवसर पर बच्चों के देश के संपादक प्रकाश तातेड़, साहित्यकार चंद्रेशकुमार छतलानी, दरबान सिंह रावत, कवि शिक्षाविद नंदकिशोर निर्झर, योगधारा के संस्थापक डॉ ज्योति पुंज, डॉ कुलशेखर व्यास, मलय पानेरी, ललित पांडे, प्रोफेसर देव कोठारी, अमित दवे, डॉ कृष्णदेव राठौर, हसन मेघवाल , कार्यक्रम प्रभारी गिरीशनाथ माथुर आदि अनेक वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए. तत्पश्चात सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम में अपने अपने क्षेत्र की स्थापित और विद्वान हस्तियां मौजूद रही.
कार्यक्रम की महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि वर्तमान युग में बालसाहित्य की अति आवश्यकता होने से इस कार्यक्रम के दौरान ही कुलपति महोदय प्रो शिवसिंह सारंगदेवोत ने अप्रैल से विवि से एक नियमित बाल पत्रिका निकालने की घोषणा की है. वही बच्चों के लिए पोस्टकार्ड लिखो अभियान और पत्र लेखन पर विभिन्न विद्यालयों में 5000 से अधिक बच्चों को पोस्टकार्ड द्वारा पत्र लेखन प्रतियोगिता की जमीनी स्तर पर साकार करने की रूपरेखा तैयार हो पाई .
कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉक्टर महेश आमेटा ने किया. वही आभार कार्यक्रम संयोजक डॉ कुलशेखर व्यास ने व्यक्त किया.
इस अवसर पर डॉक्टर के पी सिंह देवड़ा, नारायण पालीवाल, संगीता जैन, रीना मेनारिया, ललित पांडेय, डॉ उग्रसेन राव, शिरिश माथुर, शौयब कुरेशी और विश्वविद्यालय के अनेक विद्वान मनीषियों की भी उपस्थित सराहनीय रही है.
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना एक काव्य संसार है । आप मराठी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण ग़ज़ल “मुसाफिर ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 37☆
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण लघुकथा “रोका”। एक माँ और पिता के लिए बिटिया के विवाह जुड़ने से विदा होते तक ही नहीं, अपितु जीवन में कई ऐसे क्षण आते हैं जो आजीवन स्मरणीय होते हैं। वेअनायास ही हमारे नेत्र नम कर देते हैं। और यह लघुकथा भी सहज ही हमारे नेत्र नम कर देती है। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने मनोभावनाओं को बड़े ही सहज भाव से इस लघुकथा में लिपिबद्ध कर दिया है ।इस अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 36 ☆
☆ लघुकथा – रोका☆
सुगंधा आज बहुत ही खुश थी। क्योंकि उसकी बिटिया को देखने लड़के वाले आने वाले थे। सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था। किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था।
घर में त्यौहार का माहौल बना हुआ था। मीनू, सुगंधा की बिटिया बहुत सुंदर भोली प्यारी सी बिटिया। सभी की निगाहें सामने सड़क से आती जाती गाड़ियों पर थी। समय पर गाड़ी से उतर परिवार के सभी सदस्य घर आए। बातों ही बातों में सभी का मन उत्साह से भर उठा। और मीनू को देखने के बाद लड़के और उसके परिवार वाले बहुत खुश हो गए और मीनू उनको पसंद आ गई।
तुरंत ही बातचीत कर रोका करने को कहने लगे क्योंकि सुगंधा भी इतनी जल्दी सब हो जाएगा। इसका आभास नहीं लगा सकी थी। आंखें और गला दोनों भर आया। स्वादिष्ट भोजन खा लेने के बाद पंडित जी को बुलाकर साधारण तरीके से रोका का कार्यक्रम करने को कहा गया।
दोनों घर परिवार आमने सामने बैठ कर पंडित जी के कहे अनुसार साधारण सामग्री से मंत्रोच्चार कर लड़के की मां को बिटिया की ओली में सगुन डालने को कहा… जैसे ही लडके की माँ कुछ रुपया और मिठाई का डिब्बा ओली डाल रही थी बिटिया को। बिटिया की मां सुगंधा प्यार और स्नेह के कारण रो पड़ी, आंखों से आंसू गिरने लगे। यह देख लड़के की मां भी रो पड़ी। देखते ही देखते ऐसा लगने लगा मानो बिटिया की विदाई अभी होने वाली है।
इस समय की नजाकत को देखते हुए लड़के के पिताजी जो काफी समझदार और सुलझे हुए व्यक्तित्व के धनी। उन्होंने तुरंत बात संभाली और जोरदार हंसी ठहाके लगाते हुए ताली बजाकर कहने लगे क्यों श्रीमती जी अपना रोका याद कर रही हो याने सास भी कभी बहू थी। पत्नी भी हंसते हुए शरमाने लगी।
सुगंधा भी अपने समधी के व्यवहार कुशलता पर हंस पड़ी और गर्व करने लगी। सब कुछ हंसी खुशी संपन्न हुआ।
शादी का मुहूर्त निकाल कर पंडित जी बहुत खुश हुए। मीनू को बहू के रूप में पाकर लड़के वाले गदगद थे। और हंसी खुशी विदा होकर जाने लगे मानों कह रहे हो रोका हमने कर लिया। अब जल्दी ही विदाई करा कर ले जाएंगे। मीनू भी बहुत खुश थी।