मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # 3 ☆ साहित्य संसार ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

सुश्री स्वप्ना अमृतकर

(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं।  आप कविता की विभिन्न विधाओं में  दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। हम आपका  “साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना की कवितायें ” शीर्षक से प्रारम्भ कर रहे हैं।  इस शृंखला की यह तीसरी कड़ी है। संभवतः ‘साहित्य संसार’ शीर्षक से  काव्यप्रकार : सुधाकरी अभंग (६,६,६,४) में रचित यह कविता उनके साहित्य संसार में से उत्कृष्ट रचनाओं में से एक होनी चाहिए। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की कविता “साहित्य संसार”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # -3 ☆ 

☆ साहित्य संसार  ☆ 

काव्यप्रकार : सुधाकरी अभंग (६,६,६,४)

 

गीता सहवास

  ज्ञानेश्वरी ध्यास

     साहित्य प्रवास

                दादपुर्ण     ॥ १ ॥

 

परंपरा जुनी

शब्दांची च झोळी

          ओळींची लव्हाळी

                       परीपुर्ण     ॥ २॥

 

साहित्य संसार

महिमा अपार

विश्वाचा प्रचार

                        अर्थपुर्ण      ॥ ३ ॥

 

 

काव्या च्या रुपांत

   होई काव्य खेळ

 दिसे शब्द भेळ

                        कार्यपुर्ण      ॥ ४॥

 

भासते रचना

कधी हास्यमय

कधी तत्वमय

स्नेहपुर्ण      ॥ ५ ॥

 

साहित्य प्रगती

वंश चाले पुढे

साहित्तिक घडे

हो संपुर्ण     ॥ ६ ॥

 

© स्वप्ना अमृतकर , पुणे

 

Please share your Post !

Shares

योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Positive Education: A Revolution in World Education☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Positive Education: A Revolution in World Education

Positive education is the combination of traditional education with the study of happiness and well-being.

Video Link : Positive Education: A Revolution in World Education

Every parent wants the best for their children, they want their child to be happy and flourish.

However, finding the right education for their child can be a challenge.

Positive education emphasises the importance of training the heart as well as the mind in education.

Positive Education curriculum has been implemented with good results in schools in Australia, USA and Germany.

Be the first one to start this initiative at your school in India!

Well-being should be taught in school on three grounds:

  • As an antidote to depression
  • As a vehicle for increasing life satisfaction
  • And as an aid to better learning and more creative thinking.

“All young people need to learn workplace skills, which has been the subject matter of the education system in place for two hundred years. In addition, we can now teach the skills of well-being – of how to have more positive emotion, more meaning, better relationships, and more positive accomplishment. Schools at every level should teach these skills”.

Martin Seligman Founder, Positive Psychology “Positive Education is preparing students for the tests of life, not just a life of tests. All schools can and should be 21st century schools”.

Anthony Seldon “Positive education is based on the science of well-being and happiness.“

Positive Education is –

  • an approach to education that blends academic learning with character & well-being.
  • preparing students with life skills such as: grit, optimism, resilience, growth mindset, engagement, and mindfulness amongst others.

“Widespread support is necessary for the success of the positive education movement.“

“Positive education views school as a place where students not only cultivate their intellectual minds, but also develop a broad set of character strengths, virtues, and competencies, which together support their well-being”.

“In consultation with world experts in positive psychology, the Geelong Grammar School developed its

‘Model for Positive Education’ to complement traditional learning – an applied framework comprising six domains: Positive Relationships, Positive Emotions, Positive Health, Positive Engagement, Positive Accomplishment, and Positive Purpose.

“Positive education is a whole-school approach to student and staff well-being: it brings together the science of positive psychology with best-practice teaching, encouraging and supporting individuals and communities to flourish.”

 

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings. Email: [email protected]

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

 

Please share your Post !

Shares

आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (5) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

श्रीभगवानुवाच

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।

तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ।।5।।

भगवान ने कहा-

मेरे तेरे जन्म अनेकों भूत काल में बीते हैं

मुझे याद हैं सारे,लेकिन तेरे ज्ञान में रीते हैं।।5।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानता, किन्तु मैं जानता हूँ॥5॥

 

Many births of Mine have passed, as well as of thine, O Arjuna! I know them all but thou knowest not, O Parantapa!

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #5 ☆ औरत! ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  “औरत! ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 5  ☆

 

☆ औरत! ☆

 

तुझे इन्सान किसी ने माना नहीं
तू जीती रही औरों के लिये
तूने आज तक स्वयं को पहचाना नहीं।

नारी!
तू नारायणी
भूल गयी,शक्ति तुझमें
दुर्गा और काली की
तु़झ में ही औदार्य और तेज
लक्ष्मी,सरस्वती-सा
तूने उसे पहचाना नहीं।

तुझमें असीम शक्ति
दुश्मनों का सामना करने की
पराजित कर उन्हें शांति का
साम्राज्य स्थापित करने की
तूने आज तक उसे जाना नहीं।

 

तुझमें ही है!
कुशाग्र बुद्धि
गार्गी और मैत्रेयी जैसी
निरूत्तर कर सकती है
अपने प्रश्नों से
जनक को भी
तूने आज तक यह जाना नहीं।

 

तुझमें गहराई सागर की
थाह पाने की
साहस लहरों से टकराने का
सामर्थ्य आकाश को भेदने की
क्षमता चांद पर पहुंचने की
तूने अपने अस्तित्व को पहचाना नहीं।

 

तू पुरूष सहभागिनी!
दासी बन जीती रही
कभी तंदूर,कभी अग्नि
कभी तेजाब की भेंट चढती रही
तुझमें सामर्थ्य संघर्ष करने का
तूने स्वयं को आज तक पहचाना नहीं।

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #3 – हृदय का नासूर… ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से अब आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की  शिक्षाप्रद लघुकथा  “हृदय का नासूर…। ) 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – #3  साहित्य निकुंज ☆

 

हृदय का नासूर…

 

‘ मां क्या हुआ? इतनी दुखी क्यों बैठी हो?”

 

“बेटा क्या बताये आजकल लोग कितनी जल्दी विश्वास कर लेते है। सब जानते है अपनों पर विश्वास बहुत देर में होता है फिर भला ये कैसे कर बैठी अनजान पर विश्वास।

 

“मां कौन?”

 

“प्रिया और कौन?”

 

“ओह्ह …प्रिया आंटी सोहन अंकल की बेटी!”

 

“हाँ हाँ वही …”

 

“क्या हुआ?”

 

“अभी-अभी फोन आया प्रिया का तो वह बोली …दीदी बहुत गजब हो गया मैं कहे बिना नहीं रह पा रही हूँ पर आप किसी से मत कहना मन बहुत घबरा रहा है।

 

“अरे तू बोलेगी अब कुछ या पहेलियां की बुझाती रहेगी।“

 

“हाँ हाँ बताती हूँ …”

 

“एक दिन बस स्टेण्ड पर एक अजनबी मिला बस आने में देर हो रही थी और मैं ऑटो करने लगी तभी एक लड़का आया और बहुत नम्रता से बोला मुझे भी कुछ दूरी तक जाना है प्लीज मुझे भी बिठा लीजिये मैं शेयर दे दूँगा। मैं न जाने क्यूँ उसके अनुरोध को न टाल पाई और ठीक है कह कर बिठा लिया। अब तो रोज की ही बात हो गई वह रोज उसी समय आने लगा और न जाने क्यों? मैं भी उसका इन्तजार करने लगी। हम रोज साथ आने लगे और एक अच्छे दोस्त बन गए। उसने कहा “एक दिन माँ से मिलवाना है।”

 

हमने कहा…”हम दोस्त बन गए है अच्छे पर मेरी शादी होने वाली है हम ज़्यादा कहीं आते जाते नहीं न ही किसी से बात करते है पता नहीं आपसे कैसे करने लगे?”

 

वह बोला “…कोई बात नहीं फिर कभी …”

 

कुछ दिन बीतने पर वह दिखाई नहीं दिया हमे चिंता हो गई तो हमने फोन किया तो उसकी मम्मी ने उठाया वह बोली …”पापाजी बहुत बीमार है ऑपरेशन करवाना है अभि पैसों के इंतजाम में लगा है बेटा आते ही बात करवाती हूं।”

 

थोड़ी देर बाद अभि का फोन आया वह बोला “क्या बताये? पापा को अचानक हॉर्ट में दर्द हुआ और भर्ती कर दिया। अब ऑपरेशन के लिए कुछ पैसों की ज़रूरत है 50 मेरे पास है 50 हजार की ज़रूरत है।

 

हमने कहा …”कोई बात नहीं हमसे ले लेना।”

 

वह बोला “नहीं … हमने कहा हम सोच रहे तुम्हारे पापा हमारे पापा।“ और अगले दिन उसे पैसा दे दिया। कुछ दिन बाद कुछ और पैसों से हमने मदद की। वह बोला…”हम तुम्हारी पाई-पाई लौटा देंगे। मुझे नौकरी मिल गई है हमें कंपनी की ओर से बाहर जाना है दो माह बाद आकर या तुम्हारे अकाउंट में डाल देंगे। कुछ दिन वह फोन करता रहा बातें होती रही एक दिन उसके फोन से किसी और दोस्त का फोन आया और वह बोला…

 

“मैं बाथरूम में फिसल गया पैर टूट गया है चलते नहीं बन रहा मैं जल्दी आकर तुम्हारा क़र्ज़ चुकाना चाहता हूँ।

 

हमने कहा “कोई बात नहीं …कुछ दिन बाद बैंक में डाल देना।“

 

बोला “ओके.”

 

दो चार दिन बाद हमने मैसेज किया “प्लीज पैसा भेजो।“

 

तब उसके दोस्त का फोन आता है “एक दुखद सूचना देनी है गलती से अभि की गाड़ी के नीचे कोई आ गया और एक्सिडेंट हो गया तो उसे पुलिस ले गई है। वह आपसे एस एम एस से ही बात करेगा आज मैं   यह फोन उसे दे दूँगा।“

 

हमने कहा…”हे भगवन ये क्या हो गया बेचारे की कितनी परीक्षा लोगे।”

 

कुछ समय बाद उसका मैसेज आया “मैं ठीक हूं जल्द ही बाहर आ जाऊंगा”।

 

तब हमने कहा …”आप अपने दोस्त से कहकर मेरा पैसा डलवा दो मेरी शादी है मुझे ज़रूरत है।”

 

वह बोला “ठीक है …”

 

फिर हमने कई बार मैसेज किया कोई जबाब नहीं आया।

 

तब मैं बहुत परेशान हो गई और सोचने लगी एक साथ उसके साथ जो घटा वह वास्तव में था या सिर्फ़ एक नाटक था।

 

तब मन में एक अविश्वास का बीज पनपा और हमने उसका नंबर ट्रेस किया तो वह नंबर भारत में ही दिखा रहा था। यह जानकर मन दहल गया और वह दिन याद आया जब वह बहुत अनुरोध कर रहा था होटल चलने की कुछ समय बिताने की लेकिन हमने कहा “नहीं हमें घर जाना है यह सही नहीं है तुम्हारे साथ मेरा दोस्त रुपी पवित्र रिश्ता है।“

 

दीदी बोली… “बेटा पैसा ही गया इज्जत तो है। बेटा अब पछताये होत क्या जब… ।”

 

“अब अपने आप को कोसने के सिवा कोई चारा नहीं है दीदी। यह तो अब हृदय का नासूर बन गया है।”

 

© डॉ भावना शुक्ल

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प पाचवे #5 – ☆ धावती भेट. . . . ! ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं  ।  अब आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  आज इस लेखमाला की शृंखला में पढ़िये “पुष्प पाचवे  – धावती भेट. . . . !” ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – पुष्प पाचवे  #-5 ☆

 

धावती भेट. . . . !

 

किती बरं वाटतं  *धावती भेट* हा शब्द  ऐकल्यावर. खरच  आजच्या स्पर्धेच्या युगात ही धावती भेट  आवश्यक झाली आहे. भरधाव वेगाने जाणाऱ्या  अलिशान वातानुकुलित गाडीतून विहंगम दृश्यांची धावती भेट मनाला टवटवीत करून जाते.

ब-याच वर्षानी  महाविद्यालयीन जीवनातील  एखादा मित्र लोकलमध्ये, प्रवासात बसमध्ये  घाई  घाईत  आपला मोबाईल क्रमांक घेतो. अचानक पणे कधीतरी  आपला पत्ता शोधत आपल्या  ऑफिस वर, घरी येऊन धडकतो. त्याच अस  अवचित येण मनापासून  आवडत.  एकमेकांना कडकडून भेटताना दोघांच्या चेहर्‍यावरचा आनंद खूप काही देऊन जातात. हे समाधान मिळण्यासाठी योग यावा लागतो. हल्ली मित्रांच्या गाठी भेटी व्यावहारिक पातळीवर अस्तित्वात येतात. पार्टी साठी येणारा मित्र जेव्हा पार्ट टी वर खूष होतो ना तेव्हा ते समाधान काही औरच असते.

धावत्या भेटीत मिळालेली  आठवणींची वस्त्रे आपल्याला मनाने चिरतरुण ठेवतात. धावत्या भेटीत  वेळेचा हिशेब नसतो पण ही भेट संपू नये असे वाटत  असतानाच  एकमेकांचा निरोप घ्यावा लागतो.  धावती भेट घ्यायला कुठल्याही नियोजनाची गरज नसते.  एक विचार मनात येतो आणि परस्परांना भेटण्याची  ओढ ही धावती भेट घडवून  आणते.

कौटुंबिक जीवनातील ताणतणाव दूर करण्यासाठी  आपल्या  आवडत्या पर्यटन स्थळाला धावती भेट दिली तर मिळणारं समाधान नवी उमेद देत ही उर्मी,  उर्जा मनाला  उभारी देते. हल्ली या व्यवहारी जगात  एकमेकांच्या मनाचा फारसा विचार कुणी करत नाही. प्रत्येक जण आपापल्या परीने विचार करून मोकळा होतो. सहजीवनात याच गोष्टी वादाचे कारण बनतात.  एकमेकांशी मनमोकळा संवाद साधायचा असेल तर  अशा धावत्या भेटी व्हायला हव्यात.  आवडती वस्तू,  आवडत्या व्यक्तीला  आठवणीने देण्यात जे समाधान मिळते ते अनमोल आहे. त्यासाठी पैसा नाही थोडा समंजस पणा हवा.  आपले पणा हवा.

देवाचे दर्शन घेताना देवळाबाहेर उभे राहून चप्पल बूट न काढता केवळ बाहेरून हात जोडून देवदर्शन करता येते पण जरा थोडा वेळ काढून गाभाऱ्यात जाऊन देवदर्शन घेतल्यावर मनाला मिळणारे समाधान अवर्णनीय आहे. तेव्हा या  धकाधकीच्या जीवनात आपल  आयुष्य  अधिक  आनंदी करायचे  असेल लोकाभिमुख रहायचे असेल तर धावती भेट घ्यायलाच हवी.  संवाद साधताना मी देखील घेतोय धावती भेट. . . तुमच्यातल्या रसिकाची आणि माणसातल्या माणसाची. . . . !

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मराठी कथा / लघुकथा – ☆अनिश्चितता ☆ – श्री कपिल साहेबराव इंदवे

श्री कपिल साहेबराव इंदवे 

 

(युवा एवं उत्कृष्ठ कथाकार, कवि, लेखक श्री कपिल साहेबराव इंदवे जी का एक अपना अलग स्थान है। आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशनधीन है। एक युवा लेखक  के रुप  में आप विविध सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के अतिरिक्त समय समय पर सामाजिक समस्याओं पर भी अपने स्वतंत्र मत रखने से पीछे नहीं हटते। हाल ही में आपकी एक मराठी कथा “पबजी” e-abhivyakti में प्रकाशित हो चुकी है। हम भविष्य में श्री कपिल जी की और उत्कृष्ट रचनाओं को आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक भावुक एवं मार्मिक  मराठी कथा अनिश्चितता।)

 

☆ अनिश्चितता ☆

 

सकाळीच रोहितला जाग आली पण त्याला अंथरूणातुन उठावसं वाटत नव्हतं. रात्रीच्या जारणाने त्याची झोप पुर्ण झाली नव्हती. सवयीमुळे नेहमीच्याच वेळेवर त्याला जाग आली. पण डोळ्यांत झोप मात्र शिल्लक होती. अंग जड-जड वाटत होतं. डोकंही दुखत होतं. रात्री उशिरापर्यंत त्याला एकच विचार भेडसावत होता. कि काय होईल? या एकाप्रश्नाने त्याची झोप उडाली होती. वय  27  झाली होती. घरी बाबांची तब्येत बरी नव्हती. बाबांना दमाचा त्रास आहे. काही दिवसांपूर्वीच डाॅक्टरांनी निदान केलं होतं. बाबा म्हणत होते “मी जिवंत आहे तोवर संसाराला लागुन जा. मी गेल्यानंतर तुला कोणी विचारणार नाही. तो मोठा आहे. त्याचं लग्न झालंय. तो त्याच्या संसारात रमला आहे. तो तुझ्यावर लक्ष देणार नाही. त्यात तुझी आई म्हातारी ती काय करेल.”  बाबांचं म्हणणं जरी भावनिक होतं पण ते योग्य होतं. कारण त्याच्या मोठ्या भावाचं लग्न होऊन चार वर्षंपेक्षा जास्त वेळ झाला होता. लग्नानंतर मोजून दोन महिने राहिला असेल तो. नंतर त्याच्या बायकोला घेऊन बड्या शहरात निघून गेला होता. गेला तो परतला नव्हता. एकंदरीत म्हणायचं झालं तर त्यानं पुन्हा त्यांच्याकडे ढुंकूनही पाहिलं नव्हतं. म्हणुन तो काही करेल ही उमेद बाबांनीही आणि रोहितनेही सोडली होती. जे काही करायचं ते रोहितलाच करायचं होतं. वय झालं म्हणुन बाबांची तब्येत बरी राहत नव्हती. आणि त्यातच दमाचं नादान. म्हणजे पायाखालची जमीन सरकली होती रोहितची. मोठ्या भावाच्या गोड गोड शब्दाना भुलून होतं तेवढं शेतही विकून टाकलं होतं. आणि आता सगळंच आयुष्य उन्हात उभं होतं. ते घरच तेवढं शिल्लक राहिलं होतं. आणि त्या घराची परिस्थिती बदलावी. आणि गेलेलं शेत परत मिळावं म्हणून म्हणुन रोहितने एका अशा जगात उडी घेतली होती जिथं काही निश्चीत नव्हतं. सगळं काही अनिश्चित होतं. ते क्षेत्र असं होतं कि ज्यात आपलं कोणीच नव्हतं. तिथं जायला त्याच्यासाठी दरवाजे बंद होते. खिडकी तेवढी उघडी होती. तो दरवाजा आतुन उघडण्यासाठी तो जिवाचे रान करत होता. घरची गरिबी आणि सुखी भविष्याचे स्वप्न घेऊन तो मुंबईत आला होता.

मुंबई म्हणजे पैसे वाल्यांची. आणि त्याच्याकडे तोच नव्हता. पण येणा-या काळावर आपल्या कौशल्याचा घाव घालून बदलावा. या निर्धाराने तो मुंबईत आला होता. सुरूवातीच्या चार- सहा महिन्यांच्या निराशेनंतर आता कुठेतरी जम बसायला लागला होता. काही अंशी त्याला यशही मिळू लागलं होतं. मुंबईने आता कुठे तरी त्याला आपलंसं करायला सुरूवात केली होती. पण जे काही मिळतं होतं त्यात त्याचं भागत होतं. आणि त्यांतच बाबांच्या आजाराचं निदान होणं. हे त्याला हैराण करून सोडणारं होतं. आता बाबांच्या इलाजासाठी त्याला पैसे हवे होते. ते कुठून नि कसे येणार? आणि आता पुढे काय?

बाबांचं म्हणणं होतं की लग्न कर. आता त्याच्या समोर तिहेरी संकट आलं होतं. हो संकटच म्हणावं लागेल. एक तर गेलेली शेती, लग्न आणि बाबांचा दवाखाना. भावाकडून त्याला अपेक्षा नव्हती. जे काही करायचं ते त्यालाचं करायचं होतं. आणि याच विचारांनी त्याला झोप आली नव्हती.

सकाळी उठला तेव्हा त्याचं डोकं दुखत होतं. शरीर जड-जड वाटत होतं. पण त्याकडे कानाडोळा करून तो अंथरूणातुन उठला. आणि आपल्या नित्याच्या कामाला लागला. तो कामावर जायची तयारी करत होता तेव्हा त्याला घरून फोन आला. ” बाबाना पुन्हा श्वास घ्यायला त्रास होतोय. त्यांना दवाखान्यात दाखल केले आहे. तू लवकर घरी ये.” त्याने फोन ठेवला. आणि कामावर गेला. डोक्यात तोच विचार होता. रोहितने बाॅस कडे पैसे मागितले तेव्हा बाॅस म्हटला. ” अरे, आता तर जाऊन आला तू गावाकडे. आणि मागच्या महिन्यात तूझ्या किती सुट्या आहेत. पगाराची तारीख पण अजुन लांब आहे. कसा देऊ तुला पैसे?” म्हणत बाॅसने नकार दिला. पण थोडी विनवणी केल्यानंतर व त्याची सर्व हकीकत ऐकल्यानंतर बाॅस पैसे द्यायला तयार झाला. पण त्यापूर्वी त्याच्याकडून  मरणाचं काम  करून घेतले. थकलेल्या अवस्थेत तो घरी आला आणि न थांबता लगेच जायला निघाला.

गावी पोहोचल्यावर तो घरी न जाता सरळ दवाखान्यात गेला. डाॅक्टरांना भेटला. डाॅक्टरांशी भेट झाल्यानंतर बाहेर आला. तेव्हा समोर त्याचा भाऊ उभा दिसला. त्याने त्याच्याकडे दुर्लक्ष केले आणि पुढे जाऊ लागला. पण भाऊने त्याला हाक दिली “रोहित” तो मागे वळला. आणि एखाद्या अनोळखी माणसाने माणसाकडे आवाज दिल्यावर जसं उत्तर दिलं जातं. तस त्याने त्याला पाहीले. आईही बाजुलाच दवाखान्यातील खुर्च्यावर बसली होती. “फक्त तुझेच नाही माझेही बाबा आहेत ते. आता यापुढचा इलाज मी करेल त्यांचा” रोहीतने त्याला काही उत्तर दिले नाही. पण बाजुलाच बसलेल्या आईला त्याच्या बोलण्यात त्याचा स्वार्थ वाटला. तीने शांतपणे त्याला उत्तर दिले ” आता काही नाही रं बाबा आमच्याकडे तुला हिस्सा देण्यासाठी. डोकी लापवण्यासाठी तेवढी झोपडी -हायलीय.  जा घेऊन जा ती बी. पण अश्या येळेला नको येऊ बाबा मंधी. एकतर आधीच पोरगं मरतयं माझं” आईच्या या बोलण्याने भावाच्या डोळ्यांत पाणी आलं. रडतच त्याने आईचे पाय धरले. आणि म्हटला ” नाही आये, मी काही घेण्यासाठी नाही आलो. मोठा मुलगा म्हणुन माझी जबाबदारी पार पाडण्यासाठी आलोय. चुकलं माझं, माफ कर मला” त्याच्या विरहाच्या दिवशी रडून-रडून डोळे सुजवून घेतलेली आईच्या डोळ्यांत आता मात्र एक थेंबही दिसत नव्हता. या आधीही त्याने अश्याच भावनिक गोष्टी बोलुन पार भिकेला लावलं होतं. म्हणुन त्याच्यावर विश्वास ठेवणं कठीण होतं. आणि म्हणुन ती गप्प होती. आईने कोणताही प्रतिसाद दिला नाही म्हणुन तो रोहित जवळ गेला. ” रोहित तू तरी सांग ना आईला. बघ ना ती कशी बोलतेय.” रोहितला मात्र त्याच्याबद्दल थोडीशीही तक्रार नव्हती. त्याने एक नजर आईकडे पाहिलं आणि भाऊकडे पाहून म्हटला. ” बाबा अजुन थोडेच दिवस………. ” अर्धवटचं बोलला आणि त्याचा अश्रंचा बांध फुटला. भाऊने त्याला मिठीत घेतले. आणि दोघेही ढसाढसा रडू लागले. दोघा भावांच्या कित्येक वर्षानंतरच्या भेटीने व त्या प्रेमळ मिठीने आईचेही डोळे पाणावले. ती ही निशब्द झाली होती.

 

© कपिल साहेबराव इंदवे

मु पो. मा. मोहीदा त श , ता. शहादा जि. नंदुरबार

मोब. 9168471113

Please share your Post !

Shares

योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Buddha: Quotes ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

 

☆ Buddha: Quotes

THE MIND, WHEN DEVELOPED AND CULTIVATED, BRINGS HAPPINESS.

 

Video Link : Buddha Quotes

 

“If with an impure mind you speak or act, then suffering flows you as the cartwheel follows the foot of the draft animal.”

“Burning now, burning hereafter, the wrongdoer suffers doubly… Happy now, happy hereafter, the virtuous person doubly rejoices.”

“You have to do your own work, those who have reached the goal will only show the way.”

“Abstain from all unwholesome deeds, perform wholesome ones, purify your mind. This is the teaching of enlightened persons.”

“If one man conquer in battle a thousand times thousand man, and if another conquer himself, he is the greatest of conquerors.”

“As rain breaks through an ill-thatched house, passion will break through an unreflecting mind.”

“To support mother and father, to cherish wife and children and to be engaged in peaceful occupation – this is the greatest blessing.”

“One by one, little by little, moment by moment, a wise man should remove his own impurities, as a smith removes his dross from silver.”

“Monks, I know not of any other single thing that brings such bliss as the mind that is tamed, controlled, guarded and restrained. Such a mind indeed brings great bliss.”

“The mind, when developed and cultivated, brings happiness.” – Buddha।

 

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings. Email: [email protected]

 

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

 

Please share your Post !

Shares

आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (4) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

अर्जुन उवाच

अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः ।

कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।।4।।

अर्जुन ने कहा-

जन्म आपका अभी बाद का विवस्वान थे पहले के

तो फिर कैसे समझूँ बाते कही आपने ये उनसे।।4।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अर्वाचीन-अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात कल्प के आदि में हो चुका था। तब मैं इस बात को कैसे समूझँ कि आप ही ने कल्प के आदि में सूर्य से यह योग कहा था?॥4॥

 

Later on was Thy birth, and prior to it was the birth of Vivasvan (the Sun); how am I to understand that Thou didst teach this Yoga in the beginning? ।।4।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ घर ☆ – सुश्री रक्षा गीता

सुश्री रक्षा गीता 

 

(सुश्री रक्षा गीता जी का e-abhivyakti में स्वागत है।  आपने हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर किया है एवं वर्तमान में कालिंदी महाविद्यालय में तदर्थ प्रवक्ता हैं । आज  प्रस्तुत है उनकी कविता  “घर”।)

संक्षिप्त साहित्यिक परिचय 

  • एम फिल हिंदी- ‘कमलेश्वर के लघु उपन्यासों का शिल्प विधान
  • पीएचडी-‘धर्मवीर भारती के साहित्य में परिवेश बोध
  • धर्मवीर भारती का गद्य साहित्य’ नामक पुस्तक प्रकाशित

 

☆ घर

 

संबंधों में जब “किंतु-परंतु”

‘घर कर’ जाते हैं’

स्नेह के पंछी

कूच कर जाते हैं

छोड़ जाते हैं-

भद्दे निशान बीट के,

असहनीय दुर्गंध,

बिखरे तिनके।

उजड़े घौंसलों में

पंछी बसेरा बसाते नहीं ,

खंडहरों में “घर”

बसा करते नहीं,

विश्वास का मीठा फल

चखा भी ना गया जो पहले ,

सड़ चुका है आज ।

फेंकना ही लाजमी है ।

यादों के जख्म भरते हैं

समय के साथ हौले-हौले

काल-स्थान की दूरी ने

अचानक नहीं

पर नाप लिया ‘वो’ एहसास

जिसे संग रहकर

छूना भी संभव

जाने क्यों ना हो पाया

बहुत करीब से देखने पर

अक्सर चीजें स्पष्ट दिखती है उचित दूरी जरूरी होती है

‘स्पष्टता’ के लिए

दूर रहकर पढ़ सकते हैं

इक दूजे का मन

साफ- साफ

समय निकलने के बाद

व्यर्थ न जाए पढ़ना

कुछ कदम संग-संग बढ़े

कुछ हम बोले

कुछ तुम सुनो

कुछ तेरा हम सुने

समय रहते मिटा ले दूरियां

यही बेहतर है

दोनों के लिए ताकि

इक “घर” बने

 

© रक्षा गीता ✍️

दिल्ली

 

Please share your Post !

Shares