हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 10 ☆ कविता – संस्कार ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता  “संस्कार।)

☆ साप्ताहक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 10 ☆

☆ संस्कार ☆

 

कल जहाँ   से   चली   थी   वहाँ  आई  है

उसकी  किस्मत  कहाँ   से  कहाँ  लाई  है

 

ये    जरूरी   नहीं     रक्त   संबंधी   हों

जो   हिफाजत   करे  वो  मिरा  भाई  है

 

कैसी  बेसुध  हुई   आज   तरुणाईयाँ

देख  लज्जा  जिन्हें आज  सकुचाई है

 

जिसके कंधों पे है भार दुनिया का वो

हाँ वो  पीढ़ी  स्वयं  आज  अलसाई है

 

अब  हे  ईश्वर   बचा   संस्कारों को  तू

वरना निश्चित प्रलय की ही अगुआई है

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – ☆ आइये सीखें – हास्य योग कैसे करें? – Video #4 ☆ – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ आइये सीखें – हास्य योग कैसे करें? ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #4

हास्य-योग करने की शुद्ध विधि इस विडियो में सुन्दर व सरल ढंग से समझायी गयी है. इसे देखकर आप सही ढंग से हास्य-योग करना सीख सकते  हैं और सिखा सकते हैं.

How to do Laughter Yoga? (Tutorial in Hindi)

This video explains in a simple and beautiful manner how to do Laughter Yoga in the correct manner. After watching this video, you can learn and teach the four basic steps of Laughter Yoga.

हास्य-योग करने की शुद्ध विधि इस विडियो में सुन्दर व सरल ढंग से समझायी गयी है. इसे देखकर आप सही ढंग से हास्य-योग करना सीख सकते हैं और सिखा सकते हैं. हास्य-योग के चार चरणों को इस विडियो में समझाया गया है. ये चार चरण हैं:

१. ताली बजाना
२. गहरी सांस
३. बच्चों की तरह मस्ती
४. हास्य व्यायाम

This video explains in a simple and beautiful manner how to do Laughter Yoga in the correct manner. After watching this video, you can learn and teach the four basic steps of Laughter Yoga.

The four steps of Laughter Yoga are:

1. Clapping and chanting
2. Deep breathing
3. Child like playfulness
4. Laughter Exercises

हास्य-योग बिना किसी कारण हंसी और प्राणायाम का मिश्रण है. कोई भी बिना चुटकुलों के, यहाँ सिर्फ हास्य व्यायामों के माध्यम से देर तक लगातार हंस सकते हैं. बच्चों की तरह मस्ती और नज़रें मिलने से हंसी वास्तविक हंसी में परिवर्तित हो जाती है और एक-दूसरे की देखा-देखी सब खुलकर हंसने लगते हैं.

Laughter Yoga is a unique concept of prolonged voluntary laughter created by an Indian physician Dr Madan Kataria in the year 1995 in Mumbai. We begin laughter as an exercise and it soon becomes contagious by eye contact and childlike playfulness.

(This video is excerpted from 2-day Certified Laughter Yoga Leader training conducted in Indore on the 10th and 11th of July 2015 by Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht, Certified Laughter Yoga Master Trainers and assisted by Sai Kumar Mudaliar, Certified Laughter Yoga Teacher.)

आभार:
श्री राम किशन जी, मन पसंद पार्क लाफ्टर क्लब, इंदौर
Grateful Thanks:
Shri Ram Kishan ji, Man Pasand Laughter Club, Indore.
For providing us the video clips and permission to use them for the benefit of all.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्‌ ।

असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।3।।

अजर अमर परमात्मा हॅू जिसे मैं देता ज्ञान

वह ज्ञानी संसार में है निष्पाप महान।।3।।

भावार्थ :  जो मुझको अजन्मा अर्थात्‌ वास्तव में जन्मरहित, अनादि (अनादि उसको कहते हैं जो आदि रहित हो एवं सबका कारण हो) और लोकों का महान्‌ ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान्‌ पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।।3।।

He who knows Me as unborn and beginningless, as the great Lord of the worlds, he, among mortals, is undeluded; he is liberated from all sins. ।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 24 ☆ धारा जब नदी बनी ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “धारा जब नदी बनी”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 24 ☆

☆ धारा जब नदी बनी

उस धारा के हाथों को

उस ऊंचे से पहाड़ ने

बड़े ही प्रेम से पकड़ा हुआ था,

और उसके गालों से उसके गेसू उठाते हुए

उसने बड़ी ही मुहब्बत भरी नज़रों से देखते हुए कहा,

“मैं तुमसे प्रेम करता हूँ!”

 

धारा

पहाड़ के प्रेम से अभिभूत हो

बहने लगी-

कभी इठलाती हुई,

कभी गीत गाती हुई!

इतना विश्वास था उसे

पहाड़ की मुहब्बत पर

कि उसने कभी पहाड़ों के आगे क्या है

सोचा तक नहीं!

 

पहाड़ का दिल बहलाने

फिर कोई नयी धारा आ गयी थी,

और इस धारा को

पहाड़ ने धीरे से धकेल दिया

और छोड़ दिया उसे

अपनी किस्मत के हाल पर!

 

कुछ क्षणों तक तो

धारा खूब रोई, गिडगिडाई;

पर फिर वो भी बह निकली

किस्मत के साथ

अपनी पीड़ा को अपने आँचल में

बड़ी मुश्किल से संभालते हुए!

 

यह तो धारा ने

पहाड़ से अलग होने के बाद

और नदी का रूप लेने के पश्चात जाना

कि उसके अन्दर भी शक्ति का भण्डार है

और उसकी सुन्दरता में

चार चाँद लग आये!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – साथी हाथ बढ़ाना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – साथी हाथ बढ़ाना

( श्री संजय भारद्वाज जी  द्वारा तीन वर्ष पूर्व गणतंत्र दिवस पर लिखी इस पोस्ट को आज साझा कर रहा हूँ। इसका विषय सदैव सामयिक ही रहेगा, ऐसा प्रतीत होता है।
फिर पहला पग तो कभी भी उठाया जा सकता है। )

विगत दिवस गण की रक्षा के लिए  गांदरबल में भारी हिमपात के बीच आतंकियों से जूझते सैनिकों के चित्र  देखे।

चौबीस घंटे पल-पल चौकन्ना सुरक्षातंत्र और उनकी कीमत पर राष्ट्रीय पर्व की छुट्टी मनाता गण अर्थात आप और हम।

विचार उठा क्यों न राष्ट्रीय पर्वो की छुट्टी रद्द कर उन्हें सामूहिक योगदान से जोड़ें!

बुजुर्गों तथा बच्चों को छोड़कर देश की आधी जनसंख्या लगभग पैंसठ करोड़ लोगों के एक सौ तीस करोड़ हाथ एक ही समय एक साथ आएँ तो कायाकल्प हो सकता है।

देश की सामूहिकता केवल डेढ़ घंटे में एक सौ तीस करोड़ पौधे लगा सकती है, लाखों टन कचरा हटा सकती है, कृषकों के साथ मिलकर अन्न उगाने में हाथ बँटा सकती है।

हो तो बहुत कुछ सकता है।’या क्रियावान स पंडितः’..। पूरे मन से साथी साथ आएँ तो ‘असंभव’ से ‘अ’ भी हटाया जा सकता है।

इन पंक्तियों को लिखनेवाला यानी मैं एवं पढ़नेवाले यानी आप, हम अपने स्तर पर ही पहला पग उठा लें तो यह शुभारंभ होगा।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

26 जनवरी 2017

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 4 ☆ बूढ़ा फकीर ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(माँ सरस्वती तथा आदरणीय गुरुजनों के आशीर्वाद से “साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति” लिखने का साहस/प्रयास कर रहा हूँ। अब स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। इस आशा के साथ ……

मेरा परिचय आप निम्न दो लिंक्स पर क्लिक कर प्राप्त कर सकते हैं।

परिचय – हेमन्त बावनकर

Amazon Author Central  – Hemant Bawankar 

अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी एक रचना “बूढ़ा फकीर”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति #4 

☆ बूढ़ा फकीर  ☆

बूढ़ा फकीर

बूढ़ा फकीर ही होता है।

जो फकीर

फकीर नहीं होता

वो फकीर हो ही नहीं सकता।

 

उसकी न कोई जात होती है

न उसका कोई मजहब ही होता है

और

यदि उसके पास कुछ होता है

तो वो उसका ईमान ही होता है।

 

मस्तमौला है वो

फक्कड़ है वो

कुछ मिला तो भी खुश

कुछ ना मिला तो भी खुश।

 

एक दिन देर शाम

बूढ़े फकीर ने

अपनी पोटली से दो रोटियाँ निकाली

एक रोटी दे दी

दौड़ कर आए कुत्ते को

और

दूसरी रोटी खा ली।

कटोरे का थोड़ा पानी खुद पी लिया

और

थोड़ा पिला दिया

दौड़ कर आए कुत्ते को।

 

एक इंसान दूर खड़ा देख रहा था

तमाशा

बड़े अचरज से

नजदीक आ कर पूछा

“बाबा …..?”

 

बूढ़े फकीर ने टोकते हुए कहा –

“जानता हूँ क्या पूछना चाहते हो?

ऊपर वाले ने

पेट सबको दिया है

और रोटी पानी पर

हक भी सब को दिया है।“

 

इंसान

देखता रह गया

और

बूढ़ा फकीर

सो गया

पोटली का सिरहाना बनाकर

बिना छत वाले आसमान के नीचे

जिसका रंग

आसमानी नीले से सुर्ख स्याह हो चला था ।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

20 दिसम्बर 2016

 

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English Literature – Poetry ☆ Eternal Truth ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwj’s Hindi Poetry “मृत्यु” published in today’s edition as ☆ संजय दृष्टि  – मृत्यु ☆  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.   )

☆ Eternal Truth☆

 … why do you write so much on death?
 … I do not write on death.
 … read through your writings.
 … tell me, what is unalterable in life?
 … death.
 … what is the ceaselessly perennial in life?
 … death.
 … what is eternally true in life?
 … death.
 … I write on the unalterable,  ceaselessly perennial
and eternal truth…!
© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 23 ☆ कथा संग्रह – सॉफ्ट कार्नर – श्री राम नगीना मौर्य ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री राम नगीना मौर्यजी के कथा संग्रह  “ सॉफ्ट कार्नर ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.   श्री विवेक जी ने  दाम्पत्य की कहानियों पर आधारित पुस्तक की  अतिसुन्दर समीक्षा लिखी है।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 23☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – कथा संग्रह  –  सॉफ्ट कार्नर

पुस्तक – सॉफ्ट कार्नर 

लेखिका – श्री राम नगीना मौर्य

☆ कथा संग्रह  – सॉफ्ट कॉर्नर – श्री राम नगीना मौर्य –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव 

दांपत्य की कहानियां

सुपरिचित कथाकार राम नगीना मौर्य का यह तीसरा कहानी संग्रह है। इसमें ग्यारह कहानियां हैं। इनके दो कहानी संग्रह आखिरी गेंद और आप कैमरे की निगाह में हैं चर्चित हो चुके हैं। मौर्य अपनी कहानियों में अक्सर छोटे मुद्दे उठाते हैं। यहां भी मुद्दे छोटे हैं पर इनमें आमजन की जिंदगी बसी हुई है। कहानियों में आम आदमी के जीवन की विविध समस्याओं, स्थितियों और वर्तमान पीढ़ी में आई नवीन चेतना के इस तरह बारीक ब्योरे मिलते हैं कि चरित्रों में जीवतंता पूरी गंभीरता से लक्षित होती है। प्रायः सभी कहानियों में शहरी मध्यवर्गीय जीवन के अनुभव और विचारधारा यूं रूपायित हुए हैं कि ये हमारे जीवन का हिस्सा लगते हैं।

अधिकांश कहानियों में दांपत्य प्रमुखता से दर्ज है। जिन कहानियों के कथानक सामाजिक हित साधने वाले हैं, वहां भी दांपत्य अपने महत्व और उपयोगिता के साथ मौजूद है। दंपती अपने उद्देश्य, उम्मीद और उसूलों को उत्तम वैज्ञानिक विश्लेषण और विवेकपूर्ण तर्क के साथ स्थापित करते हैं। इसलिए उनकी आपसी नोक-झोंक निरर्थक नहीं लगती। पति-पत्नी तमाम अभाव, चिंताओं, तनाव और दबावों के बावजूद प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो के कथन ‘हम स्वतंत्र पैदा जरूर हुए हैं, पर हर जगह जंजीरों से जकड़े हुए हैं’ को स्वीकार करते हुए दायित्व और अधिकार के मध्य अच्छा संतुलन रखते हैं।

शीर्षक कहानी ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ में एक-दूसरे के विवाह पूर्व के प्रेम प्रसंगों को जानने-समझने के लिए कूटनीति नहीं बनाई गई है, बल्कि स्वाभाविक जिज्ञासा की तरह जानकारी ली गई है। इन कहानियों के दंपती उस आर्थिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें एक निश्चित आय में गुजर-बसर करना है। घर में पत्नी आडंबर से परे सरल-सा व्यवहार करती है। वह कहती है, “अभी शाम को चाय बनाई थी। अधिक बन गई है। आपके लिए रख दी थी। अब गरम कर दिया है।

इस मितव्ययता से एक किस्म का सदाचार तैयार होता है जो व्यय-अपव्यय के साथ नैतिक-अनैतिक में भी फर्क करना सिखा देता है। इसीलिए कहानी ‘बेकार कुछ भी नहीं होता’ के माधव बाबू सड़क के किनारे पड़े दो स्क्रू पेंच को उठा लेते हैं। दफ्तर में उनके चैंबर की मेज के ड्राअर के हैंडल के जो दो पेंच निकल गए हैं, इन दो पेंच को वहां लगा लेंगे।

वस्तुतः इन कहानियों के पात्र उन साधारण लोगों के बेहद करीब हैं जो रोजमर्रा की खींचतान से भले ही उद्विग्न हो जाएं, पर उनके अंतस में प्राणी मात्र के लिए एक सॉंफ्ट कॉंर्नर होता है। वहीं से वे ताकत पाते हैं। कहानी ‘आखिरी चिट्ठी’ के नायक को कुछ ढूंढ़ते हुए स्कूली दिनों के मित्र की चिट्ठी मिलती है। उसे लगता है जैसे मित्र हरदम उसके आस-पास मौजूद रहता आया है। कहानी ‘संकल्प’ का नायक अपनी अपव्यय की आदत खत्म करने के लिए संकल्प लेता है कि आज एक भी पैसा खर्च नहीं करेगा। लेकिन दफ्तर से घर लौटते हुए एक किशोर उसके जूतों में पालिश करने का आग्रह करता है कि वह सुबह से भूखा है।

नायक उसे उपेक्षित करते हुए स्कूटर स्टार्ट कर घर की जानिब चल देता है। लेकिन उसके भीतर का सॉफ्ट कॉर्नर उसे अधीर करता है कि किशोर भीख नहीं, काम मांग रहा था। तब वह लौटकर आता है और किशोर को कुछ पैसे देने की कोशिश करता है, पर वह किशोर भीख नहीं, जूते पॉलिश कर मेहनताना लेता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ये कहानियां बड़े आग्रह और कोमलता से लिखी गई हैं।

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 34 – जूही का श्रृंगार ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  – एक भावप्रवण लघुकथा  “जूही का श्रृंगार”।  बचपन की स्मृतियाँ आजीवन हमारे साथ चलती रहती हैं और कुछ स्मृतियाँ भविष्य में  यदा कदा भावुकतावश नेत्र सजल कर देती हैं। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी  का कथा शिल्प कथानक को सजीव कर देता है। इस अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई। 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 34 ☆

☆ लघुकथा – जूही का श्रृंगार

जूही अपने घर परिवार में बहुत प्यारी बिटिया। सभी उसका ध्यान रखते और जूही भी सबका दिल जीत लेती।

घर के पास में ही फूल मंडी थी। इसलिए मम्मी पापा ने बिटिया के जन्म होते समय बहुत प्यार से बिटिया का नाम ‘जूही’ रख दिया। धीरे-धीरे जूही बड़ी होने लगी।

स्कूल पढ़ने जाने लगी। समय बीतता गया फूल मंडी में एक दादू बैठ, अपनी दुकान लगाते थे। जहां पर बचपन से वह पापा के साथ जाकर, फूल खरीद कर लाया करती थी। दादू भी जूही की बाल लीला को देखते देखते जाने कब उसे अपने स्नेह से अपना बना लिए कि बिना दुकान जाए जूही का मन नहीं लगता था।

दादू कहते… देखना जूही तेरी शादी के समय मैं इतना सुंदर फूलों का श्रृंगार बनाऊंगा कि सब देखते रह जाएंगे। दादू के मजाक करने की आदत और उनका अपनापन जूही को बहुत भाता था।

कालेज पढ़ने जूही दूसरे शहर गई हुई थी। जब भी आती दादू से जरूर मिल कर जाती थी। अब दादू सयाने हो चले थे।

एक दिन बातों ही बातों में उन्होंने कहा…. जूही मैं देखना किसी दिन चला जाऊंगा दुनिया से और तू मुझे बहुत याद करेगी।

जूही का मन बहुत व्याकुल हो उठता था, उनकी बातों से। अब दादू के दुकान पर उनका बेटा बैठने लगा था।

अचानक जूही की शादी तय कर दी गई। कुछ दिनों से जूही बाहर थी। घर आई शादी का कार्यक्रम शुरु हो चुका था। बहुत खुश जूही आज जल्दी से अपने दादू के पास जाने को बेकरार हो रही थी। क्योंकि दादू ने कहा था… शादी में फूलों का श्रृंगार बनाऊंगा। घर से निकलकर जूही दुकान पर पहुंची बेटे से पूछा…. कि दादू कहां है… उन्होंने एक पत्र निकाल कर दिया। पत्र पढ़ते ही धम्म से जूही पास की बेंच पर बैठ गई। क्योंकि उसके दादू तस्वीर में कैद हो चुके थे, और उनकी अंतिम इच्छा थी कि जब भी जूही आए, मुझे गुलाब के फूलों की माला पहनाकर मेरा श्रृंगार करें।

जूही को लगा आज सारे फूलों की खुशबू दादू के साथ चली गई है और जूही बिना सुगंध के रह गई। जूही ने भरे मन से तस्वीर पर माला पहनाया और घर वापस लौट आई।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #34 – मानवतेचा झेंडा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है गणतंत्रता दिवस के अवसर पर रचित मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण एक विचारणीय कविता  “मानवतेचा झेंडा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 34☆

☆ मानवतेचा झेंडा ☆

(सर्व भारतीयांना प्रजासत्ताक दिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा ! )

 

मानवतेचा झेंडा घेउन फिरतो मी तर

जोडू हृदये मने जिंकुया ध्यास निरंतर

 

काल फुलांच्या झाडाखाली जरा पहुडलो

कोण शिंपुनी देहावरती गेले अत्तर

 

देशोदेशी नेत्यांच्या या इमले माड्या

प्रत्येकाच्या वाट्याला ना येथे छप्पर

 

शूर विरांच्या कर्तृत्वावर संशय घेती

जी जी करुनी अतिरेक्यांचा करती आदर

 

देशभक्त हे मुसलमान तर शानच आहे

रोहिंग्यांचा फक्त बांधुया बोऱ्याबिस्तर

 

देशासाठी धर्म बाजुला ठेवू थोडा

मिळून सारे कट्टरतेला देऊ टक्कर

 

ईद दिवाळी मिळून सारे करू साजरी

खिरीत हिंदू लाडुत मुस्लीम होवो साखर

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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