Laughter is the best medicine. To get all the health benefits of laughter, you need to laugh deep and continuously for 10-20 minutes. How to do that every day when you are all alone? This video is a tutorial for that.
Laughter Yoga is usually done in groups. People find it difficult to practice it on a daily basis by themselves.
Laughter Yoga is a unique concept where anyone can laugh for no reason without relying on humour, jokes or comedy. The concept is based on a scientific fact that the body cannot differentiate between real and fake laughter if done with willingness. One gets the same physiological and psychological benefits.
Dr Madan Kataria, a medical doctor, founded the first Laughter Club with just five members in Mumbai in the year 1995. Today there are thousands of laughter clubs all over the world where laughter is initiated as an exercise in a group but with eye contact and childlike playfulness, it soon turns into real and contagious laughter.
It is called Laughter Yoga because it combines laughter exercises with yoga breathing. This brings more oxygen to the body and the brain which makes one feel more energetic and healthy.
When we laugh, our body generates feel good hormones called endorphins which improve our mood and general outlook. During laughter exercises, all the stale air inside the lungs is expelled and our system gets more oxygen which enhances the immune system. In the long run, the inner spirit of laughter helps you build more caring and sharing social relationships, and laugh even when the going in not good.
Our Fundamentals:
The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]
A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.
Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.
Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दशम अध्याय
( विभूति योग)
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥
जान न पाये आज तक कोई ऋषि या देव
कारण मैं उत्पत्ति का उनका प्रमुख सदैव।।2।।
भावार्थ : मेरी उत्पत्ति को अर्थात् लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन ही जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ।।2।।
Neither the hosts of the gods nor the great sages know My origin; for, in every way I am the source of all the gods and the great sages.।।2।।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनका एक बेहतरीन व्यंग्य “पुस्तक मेले की याद” उनके ही फेसबुक वाल से साभार । आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) \
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 31 ☆
☆ व्यंग्य – पुस्तक मेले की याद ☆
हेड आफिस के बड़े साहेब के दौरे की खबर से आफिस में हड़बड़ी मच गई। बड़ी मंहगी सरकारी कार से बड़े साहब उतरे तो आफिस के बॉस ने पूंछ हिलाते हुए गुलदस्ता पकड़ा दिया। आते ही बडे़ साहब ने आफिस के बॉस पर फायरिंग चालू की तो बॉस ने रोते हुए गंगा प्रसाद उर्फ गंगू को निशाना बना दिया, सर…. सर हमारे आफिस में गंगू नाम का स्टाफ है काम धाम कुछ करता नहीं, अपने को कभी साहित्यकार तो कभी व्यंग्यकार कहता है। दिन भर आफिस में फेसबुक वाटस्अप के चक्कर में और बाकी समय ऊटपटांग लिख लिखकर आफिस की स्टेशनरी बर्बाद करता है। आपके दौरे की भी परवाह नहीं कर रहा था दो दिनों पहले दिल्ली भाग रहा था.. बिना हेडक्वार्टर लीव लिए। दादागिरी दिखाते हुए कह रहा था कि दिल्ली के प्रगति मैदान में उसकी व्यंग्य की पुस्तक का विमोचन और व्यंग्य का कोई बड़ा पुरस्कार – सम्मान मिलेगा साथ में 21 हजार या 51 हजार रुपये भी मिलने की बात कर रहा था।
सर… र… बिल्कुल भी नहीं सुनता बहुत तंग किए है और दूसरे काम करने वालों को भी भड़काता है लाल झंडा दिखाने की धमकी देता है…. हम बहुत परेशान हैं। सर.. र… आफिस का माहौल उसके कारण बहुत खराब है हमारा भी काम में मन नहीं लगता, इसलिए आपके पास इतनी शिकायतें और गड़बड़ियों की लिस्ट पहुंच रही है। बाहरी आदमी तक कह रहा है कि आपके आफिस का गंगाधर (गंगू) अखबार और पत्रिकाओं के साथ सोशल मीडिया में आफिस के कामकाज का मजाक उड़ा रहा है व्यंग्य लिखता है। सरकार की नीतियों के खिलाफ व्यंग्य लिखकर खूब ऊपरी पैसे कमाता है और आफिस में धेले भर काम नहीं करता।
सर….. र… आप विश्वास नहीं करोगे पिछले दिनों मेरे और मेरी स्टेनो के ऊपर ऐसा व्यंग्य लिखा कि मैं मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया….. झांक झांक कर सब देख लेता है तिरछी नजर से सब बातें पकड़ लेता है, कुछ करने के लिए आगे बढ़ो तो दरवाजा खटखटा देता है। न कुछ करता है न करने देता है..
स.. र.. र आप बताइए हम क्या करें ?
……. अच्छा ऐसा है तो तुम तंग आ गये हो…. तुमको इस आफिस का बाॅस बनाकर इसलिए बैठाया गया है कि एक सड़े से कर्मचारी पर तुम्हारा कन्ट्रोल नहीं है।स्टोनो सुंदर होने पर सबका मन भटकता है स्वाभाविक है कि स्टेनो के साथ बिजी रहते होगे तभी आफिस का माहौल अनकन्ट्रोल हो गया है।
….. नहीं स.. र.. र इसने ही अपने व्यंग्य लेख से इतने सारे किस्से बना लिए हैं वास्तविकता कुछ नहीं है सर जी प्लीज।
…… अच्छा ये बताओ कि बदमाश तुम हो कि तुम्हारी स्टेनो ? किस्से तो काफी फैल गये हैं और तुम्हारी काम नहीं करने की भी बड़ी शिकायतें हेड आफिस पहुंच रहीं हैं।
…… नहीं सर, ये गंगा प्रसाद ‘गंगू’ के कारण ही ये सब हो रहा है।
……. तो बुलाओ उस हरामजादे गंगाधर को… अभी देखता हूं साले को, बहुत बड़ा साहित्यकार कम व्यंग्यकार बन रहा है…… ।
बॉस ने घंटी बजायी चपरासी से कहा कि गंगू को बताओ कि बड़े साहब मिलना चाहते हैं। जब चपरासी ने गंगा प्रसाद को खबर दी तो गंगू फूला नहीं समाया… उसे लगा चलो दिल्ली नहीं जा पाए तो दिल्ली के हेड आफिस से सबसे बड़े साहब हमारा सम्मान करने पहुंच गए, जरूर किसी बड़े लेखक ने बड़े साहब को ऊपर से दम दिलाई होगी तभी ये आज भागे भागे आये हैं चलो चलते हैं देखते हैं कि………
…….. मे आई कमइन सर.. कहते हुए गंगा प्रसाद केबिन में घुसे तो बड़े साहब ने व्यंग्य भरी नजरों से ऊपर से नीचे तक देखा।
……. आइये आइये… वेलकम… तो आप हैं 1008 व्यंग्य श्री आचार्य गंगा प्रसाद गंगू…..
……. जी….. स… र.. र आपके आने की खबर के कारण हमने अपना दिल्ली जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया सर…. वहां विश्व पुस्तक मेले में हमारा सम्मान और हमारी पुस्तक का विमोचन….
……. अच्छा ! सुना है आप सरकार के खिलाफ और आफिस की कमियों पर व्यंग्य लिखकर पैसे कमाते हैं बड़े भारी व्यंग्यकार बनते हो। आफिस के कामकाज और विसंगतियों और बाॅस पर व्यंग्य से प्रहार करते हो। आफिस का काम करने कहो तो लाल झंडा दिखाने की धमकी देते हो….. व्यंग्य के विषय में जानते हो कि व्यंग्य क्या होता है ? नौकरी करना है कि व्यंग्य लिखना है आपको मालूम नहीं कि असली व्यंग्यकार सबसे पहले अपने आप पर व्यंग्य लिखता है अपने अंदर की गंदगी विसंगतियों की पड़ताल कर आत्मसुधार करता है। आफिस और सरकार के खिलाफ लिख कर नाम कमाने से आत्ममुग्धता आती है। आफिस के बाॅस और स्टेनो के संबंधों पर लिख कर उनका काम बिगाड़ दिया तुमने…. दाल भात में मूसरचंद बन गए। तुम भी तो लंबे समय से आफिस में लफड़ेबाजी कर रहे हो कभी तिल का ताड़ कभी राई का पहाड़ बनाते रहते हो और सीधी सी बात है कि तुमने व्यंग्य लिखने के लिए
विभागीय अनुमति नहीं ली है अभी दस तरह के मामलों में फंस जाओगे नौकरी चली जाएगी, बाल-बच्चे बीबी भूखी मरने लगेंगी। तुम्हें नहीं मालूम कि समाज में तुम्हारी इज्जत इस विभाग के कारण है। नहीं तो आजकल कोई पूछता नहीं है समझे। जितना पैसा व्यंग्य लिख कर कमा रहे हो उसका हिसाब आफिस में दिया क्या ? जितना पैसा कमाया वो विभाग में जमा किया क्या ? तो आयकर विभाग को चकमा देने का मामला भी बनता है। गंगू लाल अपने बाल बच्चों के पेट में लात मत मारो भाई। तुम्हें नहीं मालूम कि व्यंग्यकार के पास पैनी वैज्ञानिक दृष्टि होती है वह ईमानदार होता है तुम तो सौ प्रतिशत बेईमान लग रहे रहे हो। इसका मतलब है कि तुम्हारे लिखे कड़े शब्द नपुंसक होते हैं तभी न आफिस का माहौल नपुंसक हो गया। अरे भाई व्यंग्यकार तो लोकशिक्षण करता है। तुम लोग झांकने का काम करते हो किसी का बना बनाया काम बिगाड़ते हो। तुम लोग चुपके चुपके दरबार लगाते हो एक दूसरे की टांगे खींचते हो शरीफ और बुद्धिजीवी होने का नाटक करते हो। साहित्यकारों से समाज यह अपेक्षा करता है कि वे अपने आचरण और लेखन में शालीनता बरतें और बेहतर समाज बनाने में अपना योगदान दें…. पर तुम तो अपने पेट से दगाबाजी करते हो आफिस का काम भी नहीं करते और चले व्यंग्यकार बनने……. तुम साले कुछ नकली व्यंग्यकार पूर्वाग्रही, संकुचित सोच, अहंकारी गुस्सैल और स्वयं को सर्वज्ञानी मानते हो। हर पल चालाकियों की जुगत भिड़ाते हो………… ।।
आज गंगू को समझ में आ गया कि दिल्ली के सम्पादक ने सही कहा था कि “अच्छा लिखने के लिए खूब पढ़ना जरुरी है आजकल हर कोई कुछ भी लिख रहा है फिरी में सोशल मीडिया क्या मिल गया हर कोई बड़ा लेखक होने का भ्रम पाले है इन दिनों कविता कहानी छोड़ हर कोई व्यंग्य में भाग्य अजमा रहा है……..”
गंगू के काटो तो खून नहीं….. सारा लिखना पढ़ना, सम्मान पुरस्कार, पुस्तक मेला मिट्टी में मिल गया। बड़े साहब ने जम के दम देकर बेइज्जती की और नौकरी से निकाल देने की ऐसी धमकी दी कि सीने के अंदर खलबली मच गई, बाल बच्चे और घरवाली की चिंता बढ़ गई हार्ट कुलबुलाके के बाहर आने को है…. बार बार शौचालय जाना पड़ रहा है शौचालय के कमोड में बैठे बैठे जैसे ही गंगू ने फेसबुक खोली त्रिवेदी की वाल में पुस्तक मेले का लाइव कार्यक्रम चल रहा है बार – बार गंगा प्रसाद “गंगू” को पुस्तक विमोचन के लिए और 51 हजार रुपये के सम्मान के लिए पुकारा जा रहा है.. एक से एक सजी बजी सुंदर लेखिकाएं ताली बजा रहीं हैं। पुस्तक मेले में भीड़ ही भीड़ उमड़ पड़ी है। बड़े बड़े व्यंग्यकारों पर त्रिवेदी का कैमरा घूम रहा है, विमोचन होने वाली पुस्तकों का कोई नाम नहीं ले रहा धकाधक विमोचन चल रहे हैं। एक व्यंग्य के मठाधीश बाजू वाले डुकर से कह रहे हैं कि इस महाकुंभ में मुफ्त में आंखें सेंकने मिलती हैं, किताबों में यही तो जादू है वे बुलातीं भी हैं और अज्ञान को भी नष्ट करतीं हैं।………
इधर जब गंगू ने शौचालय के कमोड का नल खोला तो पानी दगा दे गया और मोबाइल की बैटरी टें बोल गई……….
(सुश्री नेहा यादव जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। 6 मार्च 1994 को देवरिया उत्तर प्रदेश में जन्मी सुश्री नेहा यादव जी ने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। साथ ही शिक्षिका के पद पर निरंतर कार्य का अनुभव हासिल किया। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएं व आलेख प्रकाशित । बाल कथा कहानियों के लेखक यश यादव जी की लिखी किताब संयोग में मुक्तक व भावों को काव्यात्मक तरीके से लिखा।)
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “चार दिशेची चार पाखरे” । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 33 ☆
☆ चार दिशेची चार पाखरे ☆
सोडून कट्टी कर ना ग बट्टी, हट्ट सखे हा सोड ना।
प्रेमा मध्ये नको दुरावा, बरी नव्हे ही खोड ना।।धृ।।
(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति कोम. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “उम्मीदें”। इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)
लोकतंत्र का पंचवर्षीय महोत्सव पूरा हुआ. करोड़ो का सरकारी खर्च हुआ जिसके आंकड़े शायद सूचना के अधिकार के जरिये कोई भी कभी भी निकलवा सकता है, पर कई करोड़ो का खर्च पार्टियो और उम्मीदवारो ने ऐसा भी किया है जो कुछ वैसा ही है कि “घी कहां गया खिचड़ी में..” व्यय के इस सर्वमान्य सत्य को जानते हुये भी हम अनजान बने रहना चाहते है. शायद यही “हिडन एक्सपेंडीचर” राजनीति की लोकप्रियता का कारण भी है. सैक्स के बाद यदि कुछ सबसे अधिक लोकप्रिय है तो संभवतः वह राजनीति ही है. अधिकांश उम्मीदवार अपने नामांकन पत्र में अपनी जो आय घोषित कर चुके हैं, वह हमसे छिपी नही है. एक सांसद को जो कुछ आर्थिक सुविधायें हमारा संविधान सुलभ करवाता है, वह इन उम्मीदवारो के लिये ऊँट के मुह में जीरा है. प्रश्न है कि- आखिर क्या है जो लोगो को राजनीति की ओर आकर्षित करता है? क्या सचमुच जनसेवा और देशभक्ति ? क्या सत्ता सुख, अधिकार संपन्नता इसका कारण है? मेरे तो बच्चे और पत्नी तक मेरे ऐसे ब्लाइंड फालोअर नही है, कि कड़ी धूप में वे मेरा घंटों इंतजार करते रहें, पर ऐसा क्या चुंबकीय व्यक्तित्व है, राजनेताओ का कि हमने देखा लोग कड़ी गर्मी के बाद भी लाखो की तादाद में हेलीकाप्टर से उतरने वाले नेताओ के इंतजार में घंटो खड़े रहे, देश भर में. इसका अर्थ तो यही है कि अवश्य कुछ ऐसा है राजनीति में कि हारने वाले या जीतने वाले या केवल नाम के लिये चुनाव लड़ने वाले सभी किसी ऐसी ताकत के लिये राजनीति में आते हैं, जिसे मेरे जैसी मूढ़ बुद्धि समझ नही पा रहे.
तमाम राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार देश के “रामभरोसे” मतदाता की तारीफ करते नही अघाते. देश ही नही दुनिया भर में हमारे ‘रामभरोसे’ की प्रशंसा होती है, उसकी शक्ति के सम्मुख लोकतंत्र नतमस्तक है. ‘रामभरोसे’ के फैसले के पूर्वानुमान की रनिंग कमेंट्री कई कई चैनल कई कई तरह से कर रहे हैं. मैं भी अपनी मूढ़ मति से नई सरकार का हृदय से स्वागत करता हूं. हर बार बेचारा ‘रामभरोसे’ ठगा गया है, कभी गरीबी हटाने के नाम पर तो कभी धार्मिकता के नाम पर, कभी देश की सुरक्षा के नाम पर तो कभी रोजगार के सपनो की खातिर. एक बार और सही. हर बार परिवर्तन को वोट करता है ‘रामभरोसे’, कभी यह चुना जाता है कभी वह. पर ‘रामभरोसे’ का सपना हर बार टूट जाता है, वह फिर से राम के भरोसे ही रह जाता है. नेता जी कुछ और मोटे हो जाते हैं. नेता जी के निर्णयो पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं, जाँच कमीशन व न्यायालय के फैसलो में वे प्रश्न चिन्ह गुम जाते हैं. रामभरोसे किसी नये को नई उम्मीद से चुन लेता है. चुने जाने वाला ‘रामभरोसे’ पर राज करता है, वह उसके भाग्य के घोटाले भरे फैसले करता है. मेरी पीढ़ी ने तो कम से कम यही होते देखा है. प्याज के छिलको की परतो की तरह नेताजी की कई छवियाँ होती हैं. कभी वे जनता के लिये श्रमदान करते नजर आते हैं, शासन के प्रकाशन में छपते हैं. कभी पांच सितारा होटल में रात की रंगीनियो में ‘रामभरोसे’ के भरोसे तोड़ते हुये उन्हें कोई स्पाई कैमरा कैद कर लेता है. कभी वे संसद में संसदीय मर्यादायें तोड़ डालते हैं, पर उन्हें सारा गुस्सा केवल ‘रामभरोसे’ के हित चिंतन के कारण ही आता है. कभी कोई तहलका मचा देता है स्कूप स्टोरी करके कि नेता जी का स्विस एकाउंट भी है. कभी नेता जी विदेश यात्रा पर निकल जाते हैं ‘रामभरोसे’ के खर्चे पर. वे जन प्रतिनिधि जो ठहरे. जो भी हो शायद यही लोकतंत्र है. तभी तो सारी दुनिया इसकी इतनी तारीफ करती है. नई सरकार से मेरी यही उम्मीद है कि, और शायद यही ‘रामभरोसे’ की भी उम्मीद होगी कि पिछली सरकारो के गड़े मुर्दे उखाड़ने में अपना श्रम, समय और शक्ति व्यर्थ करने के बजाय सरकार कुछ रचनात्मक करे. कागजो पर कानूनी परिवर्तन ही नही समाज में और लोगो के जन जीवन में वास्तविक परिवर्तन लाने के प्रयास हों.
केवल घोषणायें और शिलान्यास नहीं कुछ सचमुच ठोस हो. सरकार से हमें केवल देश की सीमाओ की सुरक्षा, भय मुक्त नागरिक जीवन, भारतवासी होने का गर्व, और नैसर्गिक न्याय जैसी छोटी छोटी उम्मीदें ही तो हैं, और क्या?
Have you ever had the experience of laughter meditation?
It is one of the most intense and beautiful experiences that you can ever have. But you have to experience it yourself. It is a mystery. It cannot be told in words by anyone to you.
When you laugh, you forget the past. You can’t bother about the future. And, you are oblivious of the surroundings. Laughter starts to flow like a fountain. There is no laugher, it’s only laughter. The laugher mingles with laughter and they become one. It is something Divine. It is pure and pristine bliss. The mind becomes serene and radiant like the full moon.
I have got my deepest fulfilment while conducting laughter meditation. The participants feel cathartic and fully liberated. All the pain and agony has gone. It feels so good and light. There is no trace of physical, mental or emotional stress anywhere near. Every molecule of the universe is tranquil. All the blockages are cleared. Consciousness flows happily and freely. You become a part of the joyous cosmic dance. A Sufi inside you starts singing the most enchanting melodies.
Laughter opens a beautiful door to transcendence.
Laughter meditation is a state of no mind. Complete mindlessness. But it is total existence. You have a feel of totality for the first time. It is a paradise that you can create on your own. Anytime, anywhere.
According to Dr Madan Kataria, the founder of laughter yoga, “Laughter meditation is the purest kind of laughter and a very cathartic experience that opens up the layers of your subconscious mind and you will experience laughter from deep within.”
In some of the Zen monasteries, every monk has to start his morning with laughter, and has to end his night with laughter – the first and the last thing every day. Says Osho, “If you become silent after your laughter, one day you will feel God also laughing, you will hear the whole existence laughing – trees and stones and stars with you!”
I recommend laughter meditation for all those who face a lot of stress at the workplace. It is also beneficial for students and homemakers.
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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer
Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दशम अध्याय
( विभूति योग)
श्रीभगवानुवाच
भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ।।1।।
श्री भगवान ने कहा –
महाबाहु सुन फिर मेरा अनुपम आप्त विचार
जो मैं तेरे भले को बतलाता सुखसार।।1।।
भावार्थ : श्री भगवान् बोले- हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझे अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूँगा।।1।।
Again, O mighty-armed Arjuna, listen to My supreme word which I shall declare to thee who art beloved, for thy welfare!।।1।।
( ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है। इस श्रंखला के माध्यम से हम हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर नमन करते हैं।
हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंनेअपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया तथा हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं, उनके हम सदैव ऋणी रहेंगे । यदि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी के साथ डिजिटल एवं सोशल मीडिया पर साझा कर सकें तो निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। वे हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत भी हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी,डॉ राजकुमार ‘सुमित्र’ जी, प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘ विदग्ध’ जी,श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी, डॉ. रामवल्लभ आचार्य जी, श्री दिलीप भाटिया जी, डॉ मुक्त जी, श्री अ कीर्तिवर्धन जी एवं डॉ कुंदन सिंह परिहार जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं : –
इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा कि – प्रत्येक रविवार को एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध वरिष्ठ साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।
आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम पीढ़ी के अग्रज एवं मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के व्यक्तित्व एवम कृतित्व को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें।
☆ हिन्दी साहित्य – श्री कृष्ण कुमार ‘पथिक’ ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆
(आज ससम्मान प्रस्तुत है वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार ‘पथिक’जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श डॉ भावना शुक्लजी की कलम से। मैं डॉ भावना शुक्ल जी का हार्दिक आभारी हूँ ,जो उन्होंने मेरे इस आग्रह को स्वीकार किया। साहित्यिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि के साथ अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री कृष्ण कुमार ‘पथिक’ जी हम सबके आदर्श हैं। )
(संकलनकर्ता – डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची ‘)
जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्य साधक स्व। माणिकलाल चौरसिया के पुत्र, कवि स्व.जवाहरलाल ‘तरुण’ के अनुज स्वनाम धन्य श्री कृष्ण कुमार पथिक ने विरासत को सहेजा सँवारा और बढ़ाया है।
5 मई 1937 को जन्मे श्री पथिक जी ने साहित्य विशारद और शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर अध्यापन कार्य किया और सेवा निर्वृत हुए.
श्री पथिक जी ने सन 1960 के आसपास काव्य रचना प्रारंभ की और अपने विशिष्ट कृतित्व के कारण उन्हें मान्यता और प्रतिष्ठा मिलती चली गई स्थानीय पत्रों के अतिरिक्त अनेक पत्र-पत्रिकाओं और आपकी रचनाएँ प्रकाशित और संकलित हुई. जिन संकलनों में आपकी रचनाएँ प्रकाशित और संकलित हुई हैं उनमे सर्वश्रेष्ठ विरह गीत (संपादक नीरज जी), हिन्दी के मनमोहक गीत (संपादक विराट), युद्धों का आव्हान (डॉ सुमित्र), मिलन के कवि, चेतना के स्वर, स्वप्न गीत, मधु श्रंगार, मानसरोवर, प्रेम गीत, काव्यांजलि, पहरुए जाग उठे आदि.
भावुकता और बतरस के धनी श्री पथिक जी के संदर्भ में उनके काव्य ग्रंथ में कितना सटीक परिचय दिया गया है-
“काव्य की अराजकता के युग में भी पथिक ने अपने को छंदानुशासित रखा है जो उसकी परंपरा प्रियता और काव्य सामर्थ्य का प्रतीक है। पूजा और प्यार के इस गायक ने राष्ट्रीय भाव भूमि को भी स्पष्ट किया है।
पथिक जी का कुल कृतित्व परिमाण और गुणवत्ता की दृष्टि से विस्मय जनक है। प्रदेश की प्रतिभाओं का निष्पक्ष मूल्यांकन करने वाली दृष्टि पथिक का विस्मरण नहीं कर पाएगी।”
पथिक के गीत—-
वास्तव में श्री पथिक जी के कव्योन्मेष में छंदों के लिए अपरिचित लय ताल और शब्दों के नए संगीत सम्बंधों की गर्माहट मिलती है। जीवंत भाषा के व्यावहारिक स्वरूप को ग्रहण कर काव्य भाषा की ताजगी को संजोने का अविकल लगाओ भी मिलता है। कवि की व्यापक दृष्टि होने से उसमें शिल्प की समृद्धता भी परिलक्षित होती है। पथिक ने अपनी समस्त अनुभूति और प्रेरणा की पूंजी लेकर छंदों की अराजकता और विश्रंखलता के युग में सुलझेपन से सुगठित छंद विधान अपनाकर एक प्रौढ़ और विचारशील कवि व्यक्तित्व का प्रभावी परिचय दिया है। अभिव्यक्ति की अकुलाहट और नए अर्थ के लिए आंतरिक छटपटाहट ने इनके गीतों को ग्राह्य बना दिया है।
पथिक जी के गीतों में हमें संगमरमर शिल्प सौंदर्य के बीच प्रवाहित नर्मदा को चंचल किंतु संयमित धारा का श्रुतिमधुरनाद नयन मोहक रूप जाल और हृदयस्पर्शी भावोद्रेक भी मिलता है
” चरण चिह्न मिट चले चांद के
डूब चले हैं कलश किरण के
धूल प्रतिष्ठित हुई जहाँ कल
चर्चित थे चर्चे चंदन के.
मधुबन में पतझड़ ठहरा है
फूल खिलाओ हरसिंगार के.”
उपर्युक्त पद में अनुप्रास एक आनंद के साथ भावानुकूल भाषा प्रवाह भी है। बोधगम्यता है शब्दों में नगीनो-सा कसाव है।
पथिक जी ने काव्य और कथाओं को टकसाली सौंदर्य देने वाली मुहावरा बंदी का प्रयोग भी किया है।
” यात्रा जीवन की लंबी है
पांव थके पग दो पग चल के
उमरें अपावन, पावन कैसे
बोलो बिन गंगाजल के
भौतिक भ्रम पग-पग गहरा है
द्वार दिखाओ हरिद्वार के
अंधकार बेहद गहरा है
दीप जलाओ मीत प्यार के.”
सौंदर्य के प्रति अनुराग, तद्जन्य मानसिक तनाव और रूप आकर्षण के प्रति लगाव, पथिक जी की अभिव्यक्ति को सहज और विशिष्ट बनाते हैं।
“आह की अदालत में हारा यह मन
कुर्क किया अपनों ने अपना ही धन
काजल की कथा लिखी
हुई बड़ी भूल
प्रीति की पराजय पर
हंस पड़े बबूल
कदमों की कांवर को
कांधों पर लाद
यात्रा तय कर लेंगे
तुमको कर याद
तुमने जो दर्द दिया
मन को कुबूल
प्रीति की पराजय पर
हंस पड़े बबूल, ”
यहाँ “आह की अदालत” और “कसमों की कांवर” जैसे नए प्रतीक कवि की सूझबूझ के परिचायक है।
कवि नए अर्थों का अन्वेषी है। अछूती कल्पना की भाव भूमि को सफलता से मोड़ता चलता है ताकि कविता का पौधा पुष्टता ग्रहण करें। पीड़ा को धंधा मिले। प्यार में पूजा भाव की प्रतिष्ठा कर कवि अपनी उदात्त भावना का परिचय देता है।
” रास रंग राहों में,
नीलमी निगाहों में
गौर वर्ण हाथों पर
मेहंदी की छांहों में
हमने भाषा प्रणाम तेरा है।”
आज के यांत्रिक युग में जबकि व्यक्ति अपने सम्बंध विसर्जित करता जा रहा है गीतकार सम्बंधों की गंगा को शीश झुका रहा है।
“मन में फर्क ज़रा भी आए
ऐसी कोई बात न करना
अपनी रजत मयी पूनम पर
कभी अंधेरी रात न करना
परिचय से सम्बंध बड़े हैं
सम्बंधों को शीश झुकाना”
एक ओर तो कभी सम्बंधों को स्थिर रखने पर बल दे रहा है, दूसरी ओर वह यथार्थ परक दृष्टि भी रखता है…
“ठीक वहीं पर मन फटता है
वर्षों के सम्बंध टूटते
पीछे ने निबंध छूटते
आपस के झगड़े में तेरे
अपने ही आनंद लूटते
मान प्रतिष्ठा का घटता है
सौदा जिधर ग़लत पटता है।”
परिचय और प्रीति ही तो जीवन की शक्ति है। यदि यह दोनों को कुहासे से घिर जाएँ तब कभी यही कहेगा…
“हमने तो परिचय पाले पर तुमने भुला दिए
तुम ही कहो भला ऐसे में कैसे प्रीत जिए
याद याद न रही
भ्रम में ऐसे भटक गए
रंग चुनरिया के कांटो
में जाकर अटक गए
बदले कौन जन्म के तुमने मुझसे भांजा लिए
तुम ही कहो भला ऐसे में कैसे प्रीत जिए.”
कवि पथिक की आंखों में सपने हैं किंतु यथार्थ से जुड़े हैं। कवि ने जीवन को संपूर्णता के साथ स्वीकार किया है।
“जीवन जो भी जिया उसे स्वीकार किया
बिखरे बिंब दरकते दर्पण
और अधूरे नेह समर्पण
तुमने जो दे दिया उसे स्वीकार किया
चंदन द्वारे वंदन वारे
सारी खुशियाँ नाम तुम्हारे
मुझे मिला मर्सिया, उसे स्वीकार किया
पाषाणों का स्वर अपनाया
तुमने मेरे द्वार बनाया
जीवन के संपूर्ण पृष्ठ पर
खंडित एक सांतिया, उसे स्वीकार किया
जीवन के संपूर्ण पृष्ठ पर
तुमने सारे रंग भर दिए
छोड़ दिया हाशिया, उसे स्वीकार किया।”
जीवन को नया मोड़ देने की आकांक्षा रखने वाला कवि, गहराई से चिंतन करता है और निष्कर्ष देता है…
“ज्योति यह कब तक जलेगी यह न सोचें
तिमिर भरते चलें हम
*
जब तलक यह उजाला है
दूरियों को पार करने
उम्र की क्षणिका अनिश्चित
बात हम दो चार कर ले
यात्रा कब तक चलेगी यह न सोचें
पाव भर धरते चलें हम …
पंडित श्रीबाल पांडे जी के शब्दों में “पथिक जी के गीत उन पहाड़ी स्रोतों के समान प्रवाहित होते हैं जिनके पत्थरों के दिल भी पसीजे रहते हैं। उनके गीत बंजारों की मस्ती और अंगारों की तड़पन लिए रहते हैं।”
विगत दिवस जबलपुर में पथिक जी के गीत संग्रह “पीर दरके दर्पणों की” का विमोचन हुआ। अतः यह स्पष्ट है की इनकी लेखनी आज भी गतिमान है हम इनके दीर्घायु होने की कामना करते हैं।