हिन्दी साहित्य – कविता – * बेटी * – सुश्री ऋतु गुप्ता

सुश्री ऋतु गुप्ता

बेटी 

(सुश्री ऋतु गुप्ता जी  रचित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर का एक सार्थक कविता ‘बेटी’।) 

 

बेटी शब्द का आगाज होते ही
हृदय में सम्पूर्ण माँ बनाने की अद्वितीय अनुभूति होती है
बगैर बेटी जन्मे मानो नारी अधूरी होती है।

 

उसका पहली बार माँ बोलना
हृदय को मुदित ममतामयी कर जाता है
हर उदित उमंग उल्लासित कर
गरिमामयी पद अतुल्य अभिनंदन पाता है।

 

कदम पहला उसका उठते ही बेचैन
मन मुद्रा मुसकुराती छवि हो जाती है
उसकी इक-इक भाव भंगिमा
एकटक निहारते नैनों की चमक अद्भुत हो जाती है

 

विस्मय से भरता जाता उसका बड़ा होना
घर पूरा गूँजता मानों चिड़िया चहचहाती है
पग घूम-घूम जहाँ-जहाँ रखती
धरा धन्य हो अपार आभार प्रकट कर जाती है।

 

बेटी कभी नहीं होती पराई
जिस्म से कभी नहीं अलग होती परछाई
बड़ी होने पर भी वही आँचल आगोश सदैव लालायित रहते हैं ।
बोझ नहीं आन वह कलेजे का टुकड़ा गौरवान्वित हो कहते हैं।

© ऋतु गुप्ता

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मराठी साहित्य – कविता * जागतिक महिला दिवस निमित्त * शौर्यराणी * सुश्री स्वप्ना अमृतकर

* शौर्यराणी *

सुश्री स्वप्ना अमृतकर
(जागतिक महिला दिना ८ मार्च २०१९ निमित्त माझी स्वरचित रचना)
कन्या माता भगिनी पत्नी
स्त्री जन्माची हीच कहाणी,
प्रभात होता ती फुलराणी
रात्र होता ती रातराणी,
सुकले डोळ्यांतले पाणी
शांतच होती तरी ती राणी,
वाईट प्रसंगांची सुरुच पर्वणी
मौन दिले तीने सोडूनी,
नवनवीन रूप स्वीकारूनी
लढते ती रुद्र अवतार घेऊनि,
दुःखांच्या सुरांची गाणी
आताशा बदलली तीची वाणी
अखेर आजची मर्दिनी
बनली स्वतः साठीच शौर्यराणी,
© स्वप्ना अमृतकर (पुणे)

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।

क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ।।3।।

पार्थ ! न कायर तुम बनो ,अनुचित यह व्यवहार

तज दुर्बलता हदय की , हो लड़ने तैयार।।3।।

 

भावार्थ :  इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा ।।3।।

 

Yield not to impotence, O Arjuna, son of Pritha! It does not befit thee. Cast off this mean weakness of the heart. Stand up, O scorcher of foes! ।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – 91 – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

 

Woman is Strong.
Woman is Powerful.
Woman is Leader.
LifeSkills wishes you all a very Happy International Women’s Day!
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – * चीज़ों को रखने की सही जगह  * – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

चीज़ों को रखने की सही जगह  

(डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का  एक सटीक व्यंग्य) 
जबसे मेरी पुत्री ने नया टीवी ड्राइंगरूम से हटवा कर भीतर रखवा दिया है तबसे मेरा जी बहुत दुखी रहता है।टीवी के कार्यक्रमों का रंग और आनंद आधा हो गया है।पुत्री का कहना है कि मेहमानों के आवागमन के कारण ड्राइंगरूम में टीवी एकचित्त होकर नहीं देखा जा सकता और मेरा कहना है कि मंहगा टीवी सिर्फ देखने के लिए नहीं, दिखाने के लिए भी होता है।देखने के लिए कोई मामूली टीवी पर्दे के भीतर रखा जा सकता है, लेकिन मंहगा टीवी तो ड्राइंगरूम में ही होना चाहिए।जिन लोगों को जंगल में नाचता हुआ मोर अच्छा लगता है, उन्हें उनका मोर मुबारक।अपना मोर तो ड्राइंगरूम में नाचना चाहिए।
मेरी एक बुआजी हुआ करती थीं जो पैरों में सोने की पायलें धारण किया करती थीं।जब कोई मिलने वाला आता तो वे उसकी तरफ पाँव पसारकर बैठ जाती थीं ताकि पायलों की चौंध सामनेवाले की आँखों तक पहुँचे।अगर बुआजी पायलों को अलमारी में बन्द करके रखतीं तो वे दुनिया को जलाने के सुख से वंचित हो जातीं।इसलिए चीज़ें अपने सही स्थान पर रहें तो वे इच्छित प्रभाव छोड़ती हैं।
शास्त्रों में कहा है कि स्थानभ्रष्ट होने से अनेक चीज़ें अपना महत्व खो देती हैं, जैसे केश,दाँत, नख और नर।चीज़ों की यह फेहरिस्त पुरानी है।मैं इसमें टीवी, फ्रिज, म्यूज़िक सिस्टम, एयरकंडीशनर, कार, मंहगे वस्त्र और कलात्मक वस्तुएं जोड़ने की इजाज़त चाहूँगा।
फ्रिज को रसोईघर में रखना मैं फ्रिज का दुरुपयोग मानता हूँ।फ्रिज ड्राइंगरूम में ही होना चाहिए।अगर फ्रिज अस्सी हजार का है तो उसे भीतर छिपा कर रखना कौन सी अक्लमंदी है?दूसरी बात यह है कि उसमें कुछ ऐसे ऊँचे किस्म के खाद्य पदार्थ स्थायी रूप से रखे रहना चाहिए कि फ्रिज का दरवाज़ा खोलते ही देखने वालों पर खासा रोब पड़े। स्थायी खाद्य सामग्री में मंहगे फलों, मेवों, डिब्बाबंद भोजन को शामिल किया जा सकता है।ये सब चीज़ें सिर्फ दिखाने के लिए होना चाहिए, खाने के लिए नहीं।जब दिखाते दिखाते ज़्यादा खराब या बासी होने लगें तब इनका इस्तेमाल करके तुरंत फ्रिज में नयी वस्तुएं भर दी जाएं।
बढ़िया वाला टीवी ड्राइंगरूम में ही रखा जाना चाहिए।अगर आपके पास थ्री-डी वाला टीवी है तो उसे ड्राइंगरूम से मत हिलाइए।किसी मेहमान के आते ही उसे चालू करना न भूलें।
एयरकंडीशनर ड्राइंगरूम में ज़रूर लगाना चाहिए, बाकी घर में लगे या न लगे।भीतर ठंड लगे तो उसका मुकाबला रज़ाई से और गर्मी का मुकाबला मामूली कूलर से किया जा सकता है, लेकिन एयरकंडीशनर तो ड्राइंगरूम में ही शोभा देता है।एयरकंडीशनर के दर्शन से लोगों के मुख पर जो ईर्ष्या का भाव आता है वह गृहस्वामी को शीत-ताप से लड़ने की पर्याप्त शक्ति देता है।
कीमती पेन्टिंग, मूर्तियां, झाड़-फानूस वगैरः भी ड्राइंगरूम में ठेल देना चाहिए।ये चीज़ें गृहस्वामी की संपन्नता के साथ उसकी सुरुचि और कलाप्रेम को प्रदर्शित करती हैं।इन चीज़ों में अगर उनकी कीमत की चिप्पियाँ लगी हों तो बेहतर है।अगर न लगी हों तो गृहस्वामी अपनी तरफ से लगा सकता है।
आभूषण और मंहगी साड़ियां स्त्रियों के शरीर पर ही ज़्यादा शोभते हैं, इसलिए स्त्रियों को चाहिए कि रात्रि के सोने के समय को छोड़कर सारे वक्त उन्हें धारण किये रहें।हमारे समाज में स्त्रियों ने गहनों के बोझ को कभी बोझ नहीं माना।चोरों लुटेरों के डर से उन्हें बाहर ज़ेवर पहनने का मोह कम करना पड़ा, लेकिन घर के भीतर सारे वक्त ज़ेवर पहने रहने में कोई हर्ज़ नहीं है।कोई न कोई मिलने वाला आता ही रहता है।
अगर आपका किचिन माड्यूलर है और उसमें कुकिंग रेंज, मंहगा ओवन, न चिपकने वाले बर्तन, वैक्युअमाइज़र और अन्य आधुनिक खटर-पटर हो तो किचिन को ड्राइंगरूम के ठीक बगल में रखें और बीच का पर्दा इस तरह उठा कर रखें कि मेहमानों को किचिन का साज़ो-सामान दिखता रहे।सामान बहुत बढ़िया हो तो ड्राइंगरूम के एक कोने में ही किचिन बनाया जा सकता है।
अगर सब सामान भरने के बाद ड्राइंगरूम में बैठने की जगह न बचे तो उसकी चिंता न करें।मेहमान खुद ही बैठने की जगह ढूंढ़ लेंगे।यह भी हो सकता है कि अगर सामान नायाब हुआ तो मेहमान उसको देखने और तारीफ करने में इतने मसरूफ हो जाएं कि उन्हें बैठने की फुरसत ही न मिले।जो भी हो, आपकी प्रमुख दिलचस्पी मेहमानों को आराम देने में नहीं, उन पर रोब ग़ालिब करने में होना चाहिए।
अब इसके बाद कार के बारे में विचार कर लिया जाए क्योंकि ड्राइंगरूम में कार रखना मुश्किल होगा।अगर कार पुरानी खटारा या दो चार लाख वाली हो तो उसे ज़्यादातर वक्त पर्दे में यानी गैरेज में रखना ही ठीक होगा।अगर बीस पच्चीस लाख वाली हो तो रात को छोड़कर उसे दरवाज़े के सामने या घर के सामने सड़क पर रखना चाहिए।और अगर मर्सिडीज या बी.एम.डब्ल्यू जैसी कोई गाड़ी हो तो उसे दिन रात खुले में ही रखना चाहिए, भले ही रात को जागकर उसकी चौकीदारी करना पड़े।वैसे जाग कर चौकीदारी करने के बजाय बेहतर होगा कि रात को एक आदमी कार के भीतर ही सोये।बुरा से बुरा यही हो सकता है कि जब कार चोरी होगी तो आदमी भी उसके साथ चला जाएगा, लेकिन जब कार ही न रही तो आदमी की जान की क्या फिक्र!
तो मेरी बात का निचोड़ यह है कि अगर आपको समाज में ऊँचा मुकाम पाना है तो चीज़ों को उनकी सही जगह रखने का शऊर हासिल करना ज़रूरी है।
© कुन्दन सिंह परिहार
जबलपुर (म. प्र.)

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – * पारंपरिक उत्सव काळाची गरज * – सुश्री रंजना लसणे 

सुश्री रंजना लसणे 

पारंपरिक उत्सव काळाची गरज – गणेश जयंती
(e-abhivyakti में  सुश्री रंजना लसणे जी का स्वागत है।  प्रस्तुत है  पारंपरिक उत्सवों  की महत्ता पर  सुश्री रंजना जी का एक आलेख) 
माघ शु. चतुर्थी म्हणजेच गणेश जयंती  घरा शेजारी असलेल्या गणेश मंदिरात काल खूप  मोठा गणेश जयंती उत्सव साजरा करण्यात आला अगदी नियोजन बद्ध रीतीने साजरी करण्यात आली आठ दिवस अगोदरच बच्चे कंपनी ते आजी आजोबा सगळे जोमाने कामाला लागले ज्यांना जे जमेल ते काम कुठल्याही जबरदस्ती शिवाय उचलले गेले अगदी गल्ली बोळी सफाई ते व्यासपीठ उभारणी पर्यंत सगळी कामे शिस्तबद्ध रितीने व उत्साहात पार पडली तृतीयेला लहान मुलींची भजन जुगलबंदी अक्षरशः बारा तास रंगली. नऊ ते चौदा वयोगटातील मुली परंतु अंगावर शहारे येईल असे सादरीकरण रात्री बारा पर्यंत चालले, भजनाच्या तालावर सगळी कामेही जोरात सुरूच होती. अगदी जवळपासच्या गावातील लोकांनीही कार्यक्रमाचा आस्वाद घेतला.
ज्या दिवसाची आतूरतेने वाट पाहात होते तो दिवस म्हणजेच माघ शु. चतुर्थीचा दिवस उगवला.  पहाटेच  ब्रह्म मुहूर्तावर सुमधुर आवाजात गणेश वंदना लावण्याता आली. फक्त गल्लीच नव्हे तर पूर्ण गावच सडा रांगोळ्यांनी साजला गेला अगदी दिवाळी सारखा. लहान मुले ते वयस्कय मंडळी पर्यंत सारेच उत्साहाने कामाला लागले , सगळे भेदभाव विसरून ज्याला जे जमेल ते काम तो करू लागला. मंगलमय  गणेश याग करण्यात आला  नंतर गणेश प्रतिमेची उत्साहाने कलश यात्रा काढण्यात आली. गावाती लहान मुली ते प्रौढ स्त्रिया कलश घेऊन  मिरवणूकीत सामील झाल्या ,वृद्ध पुरूष सुद्धा टाळ वीणा घेऊन हजरच होते. मागच्या वर्षी  या मंडळाला गणेशोत्सवाचा  जिल्ह्यातील प्रथम पुरस्कार  मिळाला . त्यातूनच ढोल पथकासाठी साहित्य आणून सुंदर ढोल पथकतयार करण्यात आले होते.   दररोज सायंकाळी हरीपाठ भजन घेतले जाते यात लहान मुले ते वयस्कर मंडळी यांचा समावेश असतो. पूर्ण गावच जणू मिरवणूकीत सहभागी झाला होता.  या दिवशी बारा ते तीन कीर्तन घेण्यात आले त्या नंतर महाप्रसाद ठेवण्यात आला अगदी रात्री दहा वाजेपर्यंत कार्यक्रम चालला  प्रत्येकजण शिस्तबद्ध रीतीने एकमेकांच्या सहकार्याने काम करत होते. दिवसभर मिळणारा प्रसाद मोदक यावर बच्चा पार्टी एकदम खूष होती सार्वजनिक सकस आहाराची सर्वांनाच मेजवानी होती .शिवाय परस्पर सहकार्य प्रेम सेवा , एकात्मता , सृजनानंद , संस्कृतीचा आदर इत्यादी अनेक मूल्ये विकसित होण्यास मदत झाली.
कुठलाही सांस्कृतिक उत्सव केवळ अंधश्रद्धा कालबाह्य परंपरा म्हणून ते नाकारण्या पेक्षा त्यातील चांगल्या गोष्टी घेवून त्या वृद्धींगत केल्या पाहिजेत शिवाय आजच्या गरजा ओळखून त्यात आवश्यक ते बदल करून ते नव्याने सुरू केले तर अनेक सामाजिक सांस्कृतिक मूल्ये सहज राबवता येतील लहान थोर मंडळी एकत्र येऊन कार्य केल्यामुळे दोन पिढ्यांमधील अंतर कमी होऊन विचारांची देवाणघेवाण होईल समाजातील सर्व स्तरातील लोक सहभागी होत असल्यामुळे सामाजिक ऐक्य निर्माण होण्यास नक्कीच मदत होईल यासाठी जुन्या उत्सवांना असे नवीन रूप मिळणे ही आजच्या काळाची गरज आहे असे मला वाटते.
© रंजना लसणे
बाळापूर आखाडा,  हिंगोली

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – 90 – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Be honest, truthful, and altruistic. If you concern yourself with taking care of others, there’ll be no room for lies, bullying and cheating. If you’re truthful you can live transparently, which will enable you to establish trust, the basis for making friends.
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (1-2) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

 

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

संजय उवाच

तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ ।

विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥

संजय ने कहा-

सजल नयन आकुल हदय मन से दुखित महान

ऐसे अर्जुन से सहज , बोले श्री भगवान।।1।।

भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा।।1।।

 

To him who was thus overcome with pity and who was despondent, with eyes full of tears and agitated, Krishna or Madhusudana (the destroyer of Madhu), spoke these words. ।।1।।

 

श्रीभगवान उवाच

Sri Bhagavaan Uvaacha

कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌ ।

अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ।।2।।

भगवान ने कहा-

जो न उचित है वीर को जो देती अपकीर्ति

असमय,बाधक स्वर्ग की अर्जुन यह क्या रीति ?।।2।।

      

भावार्थ : श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है।।2।।

 

Whence is this perilous strait come upon thee, this dejection which is unworthy of thee, disgraceful, and which will close the gates of heaven upon thee, O Arjuna? ।।2।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – कविता – * पहले क्या खोया जाए * – डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन)

 

पहले क्या खोया जाए  
पशमीना की शाल-से
पिता जी भी थे तो बेशकीमती
पर खो दिए मुफ्त में
माँ है
अभी भी खोने के लिए
कितना भी कुछ कर लो
खोती  ही नहीं
कुछ समझती भी नहीं
ऊपर से गाती रहती है
‘खोने से ही पता चलती है कीमत
बेटे!
पिता जी तो समझदार थे
समय पर
खोकर  बता गए कीमत
खो जाऊँगी मैं भी
किसी समय, एक दिन
तब पता चलेगी कीमत मेरी भी
पर पता नहीं
यह क्यों  नहीं चाहती
बतानी कीमत अपनी भी
समय पर
देर क्यों कर रही है
निरर्थक ही
हम  भरसक कोशिश में रहते हैं
खो जाए किसी मंदिर की भीड़ में
छोड़ भी देते हैं
यहाँ-वहाँ मेले-ठेले में
कभी तेज़-तेज़ चलकर
कभी बेज़रूरत ठिठक कर
और
जानना चाहते हैं कीमत
माँ  की भी
सोचता हूँ
होने  की कीमत जान न पाया  तो
खोने की ही जान-समझ लूँ
कुछ तो कर लूँ  समय पर
कीमत समझने का ।
यही कामयाब तरीका चल रहा है
इन दिनों
इसी तरीके से  तो एक-एक कर
खोते रहे  हैं रिश्ते दर रिश्ते
दादा-दादी,नाना-नानी
ताऊ,ताई,मामा-मामी
और पिताजी भी
अब तो
‘एंजेल’ या ‘मार्क्स’ भी तो नहीं  बचे हैं
इस गरीब के पास
या तो एक अदद माँ बची है
या फिर  एक अदद फटा कंबल
कीमत दोनों  की जानना ज़रूरी है
अब इतने छोटे  भी नहीं रहे जो,
माँ के सीने से चिपक कर
बिताई जा सकें  सर्द रातें
फिर कोई तो बताए
आखिर पहले क्या खोया जाए ?
अधफटा कंबल या
अस्थि शेष माँ?
© डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – * मोबाइल एक चिंतन. . . . * – कवी श्री सुजित कदम.

कवी श्री सुजित कदम.
मोबाइल एक चिंतन. . . .
(e-abhivyakti में श्री सुजित कदम जी का स्वागत है।  प्रस्तुत है उनका मोबाइल फोन पर एक आलेख) 
मोबाइल फोन्स हे आजच्या आयुष्याचा महत्त्वाचा भाग आहे.मोबाईल  . . .  एक जीवनावश्यक  वस्तू. जितके फायदे तितके तोटे.   आपली मुले या तंत्रज्ञान विश्वात हुशार झाली आहेत.  पूर्ण वाक्य स्पष्ट पणे बोलू न शकणारा तीन वर्षाचा छोकरा आज चित्रे पाहून हवी ती गेम डाऊनलोड करून खेळत बसू शकतो. हा मोबाईल  एकमेकांशी होणारा  संवाद कमी करतो पण मेसेज मधून यात्रीक किंवा छापील संवाद साधतो.
ज्या दिवसांमध्ये मोबाइल फोनला लक्झरी वस्तू म्हणून मानले गेले ते दिवस गेले. मोबाईल उत्पादकांमधील वाढत्या स्पर्धेमुळे मोबाईल फोन्सच्या किमती इतकी कमी झाल्या आहेत की आजकाल मोबाईल फोन खरेदी करणे फारसे काही नाही. फक्त काही पैसा खर्च करा आणि आपण मोबाइल फोनचा गर्व मालक आहात. आजच्या काळात, मोबाईल फोन नसलेल्या व्यक्तीस शोधणे फार कठीण आहे. लहान गॅझेट ही जीवनाची मूलभूत गरज आहे. पण मोबाईल फोनची मूलभूत गरज म्हणून टॅग का करतात? आपल्या आयुष्यातील मोबाईल फोनचे महत्व काय आहे? येथे उत्तर आहे.
काही वर्षापूर्वी चिठ्ठी, संदेश, पत्र यातून संपर्क साधला जात  असे. बिनतारी संदेश यंत्रणा अस्तित्वात  आली.  टेलिग्राम युगानंतर निवासी दूरध्वनी  लॅन्ड लाईन अस्तित्वात आले. यानंतर वायरलेस फोन ची संकल्पना  कार्यरत झाली. त्याची जागा  आता मोबाईल, स्मार्ट फोन यांनी घेतली आहे.
आजच्या युगात मोबाईल हे मनोरंजनाचे महत्त्व पूर्ण साधन बनले आहे. सावली पेक्षा ही जास्त जवळची वस्तू म्हणून मोबाईल ने स्थान पटकावले आहे. हा मोबाईल चा वापर सवयी चा गुलाम बनला आहे. 1973 मध्ये  पहिला मोबाईल  अस्तित्वात आला. भारतात त्याचे आगमन 1995 साली झाले. हा भ्रमणध्वनी  आता केवळ संपर्क साधण्याचे माध्यम नसून गजराचे घड्याळ, विविध समारंभाची क्षणचित्रे, चित्रफीती,  व्हिडिओ गेम्स, विविध सोशल नेटवर्किंग चे संदेश, ई मेल यंत्रणा, आणि जुन्या नव्या काळाची, कलेची,  साहित्याची सांगड मोबाईल ने घातली आहे.
आज खेळण्याची जागा मोबाईल ने घेतली आहे.  मुलांना मोबाईल दिला की घर शांत रहाते हे  आजचे वास्तव आहे.  क्षणभरात हव्या त्या विषयावर मार्गदर्शन, माहिती हा मोबाईल पुरवतो. मोबाईल टेक्नॉलॉजी कडे वैज्ञानिक चमत्कार म्हणून पाहिले जाते. नव्या जुन्या मित्रांना एकत्र येण्याची संधी या मोबाईल ने दिली आहे.
एखाद्या गावी जाताना स्वतःचे  वाहन घेऊन निघालो की हा मोबाईल जगभरातील कुठल्याही ठिकाणी  आपल्याला सुरक्षीत पोचवू शकतो.  शालेय अभ्यास क्रमा व्यतिरिक्त अवांतर कला,क्रीडा, विज्ञान चे अद्ययावत ज्ञान हा मोबाईल देतो. हे फायदे मोबाइल चे  जगाचा वेध घरबसल्या घेत आहेत . आज दूर राहूनही  आपण  एकमेकाच्या संपर्कात आहोत ते मोबाइल मुळे.
मोबाइल मुळे गुन्हे गारी विश्वात वचक बसला आहे.  सी सी टि व्ही यंत्रणेने तपास कार्यात सोयी सुविधा निर्माण झाली आहे.
अस मोबाइल कौतुक होत  असले तरी सर्वात जास्त नुकसान शालेय विद्यार्थांचे होत आहे.  अभ्यासातील लक्ष कमी होऊन अनेक गेम्स,  व्हिडिओ यातून शालेय शिक्षणापासून आपला पाल्य दुरावण्याची भिती निर्माण झाली आहे. वेळेचा अपव्यय या मोबाईल मुळे होतो  आहे.  आपण पालकांनी मोबाइल चा काळजीपूर्वक वापर केला तरच नवी पिढी  मोबाईल चा अतिरेक टाळेल.
आपण मुलांना घडवताना चिऊ काऊचा घास भरवायचो. मोबाइल टॉवर च्या रेडिएशन मुळे या पाखरांची संख्या कमी झाली आहे. मोबाईल किरणांचा दुष्परिणाम विविध मानसिक ताणतणावात होतो आहे.
घरातले खेळीमेळीचे वातावरण या मोबाईल मधल्या खेळांनी हिरावून घेतले आहे. लहान वयात पाल्यांना चष्मा लागण्याचा धोका या मोबाईल मुळे निर्माण झाला आहे.
अपघाताचे प्रमाण वाढले आहे. मुले हट्टी झाली आहेत. मोठय़ांचा अनादर करण्याची वृत्ती मुलांमध्ये बळावलीआहे.  खोट बोलण्याची सवय या मोबाईल ने आबाल वृद्धांना लावली आहे.  कॅशलेस व्यवहारात मोबाइल खूप महत्त्व पूर्ण कामगिरी बजावतो आहे.
हा मोबाईल जीवलग तर  आहेच त्याला जीव किती लावायचा हे मात्र जागरूक नागरिक  आणि जागरूक पालक या नात्याने  आपण ठरवायची  वेळ आली आहे. .
© सुजित कदम. पुणे
मोबाइल 7276282626.

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