(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
पैसा कमाने के चक्कर में निजी अस्पतालों ने दिया सिजेरियन डिलीवरी को बढ़ावा
(सुश्री ऋतु गुप्ता जी का एक सार्थक, सामयिक एवं सटीक लेख। सुश्री ऋतु जी ने एक अत्यंत ज्वलंत समस्या पर अपने विचार रखे हैं । इस विषय पर हमारे साथ ही चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों को मानवीय दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अभी भी कुछ सम्माननीय चिकित्सक हैं, जो बिना हिम्मत हारे अथक प्रयास करते हैं ताकि सर्जरी की आवश्यकता न पड़े। हम उनका सादर सम्मान करते हैं।)
जब मैनें 20 जनवरी रविवारीय दैनिक ट्रिब्यून में एक न्यूज का हैडलाइन पढ़ा कि मोटी कमाई के लिए सिजेरियन डिलीवरी को बढ़ावा दे रहे हैं निजी अस्पताल, मेरे अपने साथ बीती एक-एक घटना मेरी आँखों के सामने तैर गई।आज क्या आज से दस साल पहले भी तो यही तो होता था। तब भी तो सिजेरियन डिलीवरी के नये -नये बहाने खोज लिए जाते थे और बेचारे घरवाले डॉक्टर्स के सामने कुछ बोल नहीं पाते और मजबूरन हाँ भर देते।
मुझे पूरा टाईम हो चुका था डिलीवरी कभी भी हो सकती थी। एक दिन जब मेरी तबीयत थोड़ा बिगड़ी तो मैं अपने डॉक्टर के पास गई उसने कहा कि तुरंत एडमिट करना पड़ेगा बच्चे ने अंदर ही पॉटी कर ली है।मुझे आर्टिफिशियल दर्द चालू किये गये लेकिन असफल रहे। इंजेक्शन व दवाओं के जरिये कोशिश की जाती रही लेकिन दर्द रूक रहे थे। मैं जब तक होश में थी मुझे याद है कई डाक्टर व स्टाफ के लोग खड़े थे।मेरे कानों में यह शब्द साफ पड़ रहे थे कि बच्चे का सिर नीचे फंस चुका है,ऑपरेशन भी नहीं कर सकते फोरसेप्स डिलीवरी करनी पड़ेगी वो भी जल्दी क्योंकि बच्चे की हार्ट बीट कम होती जा रही हैं।उसके बाद पता नहीं मुझे होश नहीं रहा मालूम नहीं जान बूझ कर बेहोश किया गया था या फिर दवाओं की ओवरडोज से ऐसा हुआ था। मेरे शरीर का ज्यादातर ब्लड बह चुका था शायद गलत कट लग गया था। मुझे 24घंटों के बाद होश आया। बेटे को 5 दिन तक नर्सरी में डाल दिया गया।बहुत कोशिशों के बाद ही मेरी तबीयत में कुछ सुधार आना शुरू हुआ।बाद में उन डॉक्टर्स में से हमारे जान पहचान के एक ने बताया कि केस बिगड़ चुका था. दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने की पूरी योजना बना ली थी अगर कुछ झण और देरी होती तो। बाद में पता चला इतने नामी नर्सिंगहोम में भी ज्यादातर डिलीवरी सिजेरियन के चक्कर में ऐसे ही करते हैं। एक बार तो दिल किया कि केस कर दें डॉक्टर पर लेकिन सबूत क्या था कि मुझे यह समस्या नहीं थी। सिजेरियन डिलवरी तो नहीं हो पाई मेरी पर फोरसेप्स डिलीवरी व नाजुक हालत की वजह से कई दिन वहाँ रख पूरा पैसा वसूल लिया।
पिछले एक दशक में एनएचएफएस के अनुसार सिजेरियन डिलीवरी की प्रतिशत दुगुनी हो गई है जो 2005 में 8.5% थी वह 2016 तक 17.2% पहुंच गई। निजी अस्पतालों में 40% व सरकारी अस्पतालों में 16.44% डिलीवरी सीजेरियन होती हैं। डॉक्टर्स के अनुसार वे बहुत जरूरत पड़ने पर ही ऐसा करते हैं, उनके अनुसार ऐसी कई विभिन्न परिस्थितियों में जैसे यूटरस का मूहँ नहीं खुलना, बी.पी. हाई होना,बच्चे की धड़कन कम होना, गले में गर्भनाल फंसना, बच्चे का, उल्टा या फिर कमजोर होना इत्यादि। लेकिन जो भी है निजी अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी का इंतजार न कर आननफानन में कुछ ऐसा प्रेशर बना देते हैं कि हार कर घरवाले तैयार हो जाते हैं।
सरकार भी चिंतित है इन सिजेरियन डिलीवरी की वजह से क्योंकि एक तो प्रसूता के शरीर पर इससे गलत असर होता है,दूसरे नॉर्मल डिलीवरी व सिजेरियन डिलीवरी के खर्चे में कई गुणा अंतर है। जहाँ नॉर्मल में दस हजार के आसपास तो सिजेरियन में लगभग पचास हजार के आसपास का खर्चा है।स्वास्थय मंत्रालय ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए सीजीएचएस से जूड़े सभी प्राईवेट व सरकारी अस्पतालों के लिए जरुरी कर दिया है कि इस तरह हर दिन हुई डिलीवरी को बोर्ड लगा कर सार्वजनिक करें।
सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई गई है कि कोई ऐसा कानून व नियम निकाले जाये कि बेवजह सिजेरियन डिलीवरी से बचा जा सकें। वैसे भी निजी अस्पतालों पर इल्जाम लगते रहें हैं कि पैसा कमाने के चक्कर में मरीज को जबरदस्ती ज्यादा दिन एडमिट रखते हैं, जबरदस्ती की ज्यादा दवाईयां आदि लिख देते हैं।इन शिकायतों में भी कुछ सुधार हो सकेगा। इसके लिए भी और ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान उचित व पौष्टिक डाइट, कैल्शियम, आयरन व अन्य जरूरी विटामिन मिल सके।उचित देखरेख से इन परस्थितियों से बचा जा सकता है। भगवान स्वरूप डॉक्टर्स को भी चाहिए की वे बिना किसी जरूरी वजह ऐसी डिलीवरी करने से बचें। क्योंकि इससे स्वास्थ्य व पैसे दोनों का ही नुकसान हैं। वे अपने इस सम्मानजनक पेशे व ओहदे का ध्यान रखें।
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ।।17।।
काशिराज धनुवीर ने औ” शिखण्डी रथवान
राजा विराट, धृष्टद्युम्न व सात्यकि वीर महान।।17।।
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।18।।
द्रुपद द्रौपदी पुत्र सब,महाबाहु अभिमन्यु
सब राजाओं ने किया शंखनाद निज भिन्न।।18।।
भावार्थ : श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु- इन सभी ने, हे राजन्! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाए॥17-18॥
The king of Kasi, an excellent archer, Sikhandi, the mighty car-warrior, Dhristadyumna and Virata and Satyaki, the unconquered ।।17।।
Drupada and the sons of Draupadi, O Lord of the Earth, and the son of Subhadra, the mighty-armed, all blew their respective conches! ।।18।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
महीने का आखिरी दिन होता है और तोप गाड़ी फैक्ट्री के गेट के सामने ढोल – ढमाके और डांस इंडिया डांस का नजारा देखने लायक होता है। इतनी भीड़ बढ़ जाती है कि ट्रेफिक जाम हो जाता है, रंग गुलाल और फूलों से सड़क तरबतर हो जाती है। हर महीने की आखिरी तारीख को तोप गाड़ी फैक्ट्री से दस – पन्द्रह लोग रिटायर होते हैं और उनके परिवार, रिश्तेदार और दोस्त भाई ढोल – ढमाके के साथ फैक्ट्री के गेट के सामने डेरा डाल देते हैं। अनुमान है कि ठंड के नौ महीने बाद पैदा हुए लोग जुलाई – अगस्त में ज्यादा रिटायर होते हैं।
आज जानकी प्रसाद का भी रिटायरमेंट है नात – रिश्तेदार और मोहल्ले वाले ढोल – नगाड़ों एवं सजी बग्घी लेकर जानकी प्रसाद का इंतजार कर रहे हैं। गेट के सामने भीड़ ज्यादा बढ़ रही है ढोल – ढमाकों का शोर बढ़ रहा है क्योंकि आज अधिक लोग रिटायर हो रहे हैं जो लोग रिटायर होकर चैक लेकर बाहर आ गए हैं उनके खेमे में उछलकूद बढ़ गई है डांस हो रहे हैं। फूल माला की बिक्री अचानक बढ़ गई है ढोल की थाप पर सब लोग थिरक रहे हैं।
वो देखो माला पहने जानकी प्रसाद फैक्ट्री गेट के सुरक्षा गार्ड से गले मिलकर बिदा ले रहे हैं उनको देखते ही उनके रिश्तेदारों में बिजली सी कौंध गई, ढोल – नगाड़े बजने चालू हो गए मोहल्ले वाले थिरकने लगे। बहू-बेटे फूल माला लेकर दौड़ पड़े और देखते देखते जानकी फूलों से लद गए, चारों तरफ हबड़धबड़ मच गई, रंग गुलाल से रंग गए। दोनों बहू बेटे खुशी से झूम कर नाचने लगे। डांस चालू… ढोल में तेजी… सजी बग्घी तैयार, युवाओं की टोली का सरसराहट लिए नागिन डांस…. वीडियो की बहार…. तड़ा तड़…. भड़ा भड़… सब तरफ उत्साह, उमंग, थिरकन दिख रही है पर इन सबके पीछे नेपथ्य में चुपचाप वो चालीस लाख का चैक हंस रहा है जो रिटायरमेंट में जानकी को मिला है जिसमें बहुओं एवं बेटों की उम्मीद के पंख लग गए हैं। मोहल्ले वालों और रिश्तेदारों की रिटायरमेंट पार्टी के छप्पन व्यंजन में नजर है इसलिए डांस करके ज्यादा उचक रहे हैं।
सजी हुई चमचमाती बग्घी में जानकी प्रसाद दूल्हे जैसे बैठ चुके हैं। सामने एक चैनल वाले ने माइक अड़ा दिया, पूछ रहा है अब कैसा लग रहा है ? नाईट ड्यूटी जब लगती थी तो काम करते थे कि सो जाते थे ? फैक्ट्री के अंदर जुआ – सट्टा में भाग लिया कि नहीं ?
बड़ा लड़का आ गया, एक हजार रुपये की न्यौछावर कर पत्रकार को दी, जब तक जानकी प्रसाद ने बोल ही दिया – रात सोने के लिए बनी है इसलिए घर हो या फैक्ट्री सोना जरूरी था और सीधी सी बात है कि जब नाईट ड्यूटी लगती थी तो मनमाना ओवरटाइम भी मिलता था। पत्रकार डांस करते हुए अगले ठिकाने तरफ बढ़ गया था। इतने सारे रिटायरमेंट हुए हैं कि सारी सड़कों में जाम लग गया है डांस मोहल्ला डांस चल रहा है। ट्रेफिक पुलिस वाले परेशान हैं जाम की खबर एसपी तक पहुंच गई है और पुलिस फोर्स पहुंच गई है, डांस की भीड़ को तितर-बितर करने डंडे भी चलाये नहीं जा सकते इसलिए पुलिस वाले ढोल की थाप पर मटक रहे हैं। जानकी प्रसाद ये सब देख देख मस्त हो रहा है आज न गांजा मिला है न भाँग, पर मजा उनसे ज्यादा मिल रहा है। सबसे बड़ा जुलूस जानकी का है क्यूँ न हो, जानकी विनम्र रहा है रामलीला में रावण के रोल में हिट हुआ है, लाल झंडे के साथ नारे लगवाने में पापुलर रहा है, मधुर मुस्कान से दिलों को जीता है, अहीर नृत्य में हर बार टॉप पर रहा है तभी न इतने सारे लोग डांस करके पसीना बहा रहे हैं। जानकी को अचानक धर्मपत्नी याद आ गई, वो लेने नहीं आई.. वो घर में थाली सजाकर दिया जलाकर इंतजार कर रही होगी। जानकी को बग्घी में दूल्हे जैसा सुख मिल रहा है फर्क इतना है कि दूल्हे बनकर तन्दुरस्त घोड़े में बैठे थे और आज बग्घी को बुढ़िया घोड़ी खींच रही है। डांस करती टोलियाँ मस्ती में चूर हैं उसे याद आया…. चालीस साल पहले जब बारात निकली थी तो डांस के चक्कर में गोली चल गई थी 30-35 बरातियों को पुलिस पकड़ कर ले गई थी….
जुलूस घर पहुंचने वाला है, घरवाली देख कर दंग हो जाएगी उसको आज समझ आ जाएगा कि दमदार आदमी मिला है। चैक की चिंता में बेटे बहू ने रास्ते भर पानी को पूछा, इसका मतलब चैक में दम तो है। बेटे बहू जानकी से ज्यादा खुश दिख रहे हैं और बीच-बीच में चैक ठीक से रखने की हिदायत भी दे रहे हैं।
रिटायरमेंट ग्रांट पार्टी के लिए मुंबई से बार-बालाओं को खास तरह के डांस के लिए बुलाया गया है रिश्तेदार और मोहल्ले वाले भी इस खबर से खुश हैं।
पान की दुकानों में आजकल डब्बू अंकल के चर्चे चल रहे हैं। विदिशा की शादी के डांसिंग अंकल ने सड़ा सा डांस क्या कर दिया, मुख्यमंत्री ने एंबेसडर बना दिया, स्थूलकाय डब्बू अंकल की नचनिया देह के थिरकने से सोशल मीडिया कांप गया, गोविंदा का दिल थरथराके डांस करने लगा। कुछ जले भुने ताली बजा बजाकर कहने लगे डब्बू अंकल नर है कि नारी कि ……. ।
जानकी ने चालीस साल फैक्ट्री में नौकरी करी। फैक्ट्री की नौकरी में समय पर गेट के अंदर घुसने का बड़ा महत्व है, हर दिन का जेल जैसा है। सुबह सात बजे हूटर बजने के साथ घुसो, शाम को हूटर बजने पर साईकिल लेकर भागो, चालीस साल में जानकी ने इतना ही सीखा है। चालीस साल पहले जुगाड़ से फैक्ट्री में भर्ती हो गई थी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। लड़किया के बाप ने फैक्ट्री की नौकरी देख के शादी कर दी थी। बारात में सबने गेटपास वाला आई कार्ड देखा था जिसमें नाम के आगे जानकी प्रसाद अहीर लिखा था और दांत निपोरते फोटो लगी थी। सो रिटायरमेंट की पार्टी में धर्मपत्नी के मायके के लोगों की भीड़ रही। सबने खूब मस्ती की, बार-बालाओं के भड़काऊ डांस को देखकर सब पगलाए रहे फिर सबने पेट भर खाया पिया और पार्टी में जानकी प्रसाद तगड़े से उतर गए।
दो चार दिन तो शान्ति रही फिर बहू बेटों को चैक की सेहत की चिंता सताने लगी तब धर्मपत्नी ने चैक छुपा कर संदूक में रखा और अलीगढ़ का ताला लगा दिया।
एक रात जानकी को सपना आया कि चैक को चूहे कुतर रहे हैं तब संदूक से चैक निकाला गया। जानकी चैक लेकर बैंक पहुंचे, बैंक वालों ने चैक देखा और जमा करने से इंकार कर दिया। खाता जानकी प्रसाद यादव के नाम पर था जबकि चैक जानकी प्रसाद अहीर के नाम पर जारी हुआ था। आधार कार्ड देखा गया उसमें भी जानकी प्रसाद यादव लिखा था। जब चैक जमा नहीं हुआ तो जानकी ने बैंक वालों को बताया कि चालीस साल पहले फैक्ट्री में जानकी प्रसाद अहीर के नाम से भर्ती हुए थे। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं है तो नये जमाने के लड़कों ने खाता खोलने के फार्म में यादव लिख दिया होगा और आधार भी उसी नाम से बना होगा। क्या है कि जबसे लालू, मुलायम, शरद बड़े नेता बने हैं तब से नयी उमर के लड़कों को यादव लिखने का शौक चरार्या है, जे सालों ने खाते में यादव लिखवा के चैक को डांस करने मजबूर कर दिया है बैंक वाले ने सलाह दी कि फैक्ट्री से जानकी प्रसाद यादव के नाम का चैक बनवा लो तब खाते में चैक जमा हो जाएगा।
जानकी प्रसाद की दौड़ फैक्ट्री तरफ बढ़ने लगी, फैक्ट्री का बाबू एक न माना बोला – चालीस साल से फैक्ट्री के रिकॉर्ड में जानकी प्रसाद अहीर चल रहा था तो चैक भी वही नाम से बनेगा। बाबू ने सलाह दे दी कि कोई दूसरे बैंक में जानकी प्रसाद अहीर नाम से खाता खोल कर जमा कर दो। अब तक जानकी समझ चुका था कि लापरवाही में किसी का बस नहीं है। सलाह सुनकर जानकी बैंक दर बैंक भटकने लगा पर किसी बैंक ने खाता नहीं खोला इसप्रकार चालीस लाख का चैक तीन महीने तक बैंक से फैक्ट्री और फैक्ट्री से बैंक डांस करता रहा पर किसी को दया नहीं आयी। नब्बे दिन बाद एक बैंक वाले ने कह दिया चैक तो मर चुका है अब कोई काम का नहीं रहा। चैक का जीवनकाल तीन महीने का था, जानकी के काटो तो खून नहीं….. अचानक दिमाग में विस्फोट सा हुआ और जानकी का दिमाग खिसक गया…… अंट-संट बकने लगा..कभी नाचने लगता… कभी रोने लगता…. तंग आकर बहू – बेटों ने घर से निकाल दिया।
अब वो कभी बैंक के सामने कभी फैक्ट्री के गेट पर बड़बड़ाता, चिल्लाता, रोने लगता, डांस करने लगता, लोग भीड़ लगाकर मजा लूटते। एक दिन चैक लेकर फैक्ट्री के गेट में जबरदस्ती घुसने की कोशिश की तो सिक्योरिटी गार्ड ने डण्डा पटक दिया, चैक डांस करते हुए जेब से बाहर गिरा तो जानकी झुक कर नाचने लगा… नाचते नाचते वहीं गिरा और मर गया……….
(कवयित्री सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी का e-abhivyakti में स्वागत है।)
जब हर रोज़ रसोई घर में
कैद हो जाती है सांसें
कुछ बदल नहीं सकती हूँ
अपनी सीमाओं को तब
कभी कभी खाने में परोस
दिया करती हूँ ।
अपना भरोसे से भरा परांठा
अपनी खुशी, नाराजगी, उदासी की मिक्स सब्जी
टुटे, बिखरे, सहमे ख्यालों का पुलाव
कभी तीखे, खट्टे, रूखे स्वभाव को
ढेर सारा उंडेल कर
बेस्वाद, बदहजमी वाला खाना
कभी-कभी खाने में परोस देती हूँ ।
खाने की टेबल पर बिछा देतीं हूँ
अपनी अधुरी महत्वाकांक्षाएं से बुना
टेबल क्लोथ
खाली ग्लास में भर देती हूँ
उम्मीदों का पानी ।
थाली, कटोरी, चम्मच जब सब को
भर देती हूँ
अपनी आंखों की नमीं से
मुंह में कैद हुऐ अलफाजों से
कुछ गीले लम्हों से
और थोड़ी सी खामोशी से
तब अस्तित्व टूट कर टेबिल के
नीचे बिखर जाता है
जूठन सा और
आत्मविश्वास सहम जाता है
खरखट सा हो जाता है ।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
आत्मकथ्य: जिंदगी रंग-बिरंगी है ये हमे हर मोड़ पर अलग-अलग रसों का अनुभव करवाती है । इस पुस्तक में भी कुछ पन्नो की 27 कहनियाँ है नौ रसों में से हर एक रस की 3 कहानियाँ, पहली 9 कहानियाँ एक-एक रस की नौ रसों तक फिर कहानी नंबर 10 से 18 तक फिर उसी क्रम में नौ रसों की एक-एक कहानी ऐसे ही 19 से 27 तक फिर उसी क्रम में नौ रसों की एक-एक कहानी। कुछ कहानियों में सब को आसानी से पता चल जाएगा की वो किस रस की है । कुछ में उन्हें थोड़ा सोचना पड़ेगा इसलिए हर एक कहानी के बाद मैंने लिख दिया है की उस कहानी में कौन सा रस प्रधान है पुस्तक की कहानियों में रसो का क्रम श्रृंगार, हास्य, अद्भुत, शांत, रौद्र, वीर, करुण, भयानक एवं वीभत्स हैं।
अर्थात पहली कहानी श्रृंगार रस दूसरी हास्य ऐसे ही नौवीं कहानी वीभत्स रस की है इसी क्रम में दसवीं कहनी फिर श्रृंगार रस, ग्यारहवी कहानी फिर हास्य रस की है और ऐसे ही उन्नीसवीं कहानी फिर से श्रृंगार रस आदि आदि ….. सत्ताईसवीं कहनी वीभत्स रस की है ।
मैंने इस पुस्तक में सामान्य बोलचाल की हिंदी का प्रयोग किया है जिससे सब आसानी से कहानियों के भावों को समझ सके जहाँ पर कोई वार्तालाप है वहाँ मैने उसे उसी तरह लिखा है जैसे वो हुआ था हिंदी और अंग्रजी दोनों में। कुछ स्थानों पर मैने समान्य बोलचाल से हट कर कहानी के हिसाब से हिन्दी शब्द प्रयोग किये है जिनका अर्थ मैने उन्हीं शब्दों के आगे ( ) के अन्दर अङ्ग्रेज़ी में समझा दिया है।
पुस्तकांश :
छोले चावल
सितम्बर 2005 से लेकर फरवरी 2006 तक मैने दिल्ली से C-DAC का कोर्स किया था जिसमे उच्च (advanced) कप्म्यूटर की तकनीक पढ़ाई जाती है। हमारा केंद्र दिल्ली के लाजपत नगर 4 में अमर कॉलोनी में था। हमारे अध्ययन केंद्र से मेरे किराये का कमरा बस 150-200 मीटर दूर था। हमारे केन्द्र में सुबह 8 से रात्रि 6 बजे तक क्लास और लैब होती थी। उन दिनों हम रात में लगभग 2-3 बजे तक जाग कर पढ़ाई करते थे। हमारा अध्ययन केन्द्र और मेरा किराये का कमरा बीच बाज़ार में थे।
मेरे साथ मेरे तीन दोस्त और रहते थे। क्योंकि हमारा कमरा बीच बाज़ार में था तो वहाँ खाने और पीने की चीजों की दुकानों और होटलों की कोई कमी न थी। जिस इमारत में तीसरी मंजिल पर हमारा कमरा था उसी मंजिल में भूतल (ground floor) पर एक चाय वाले की दुकान थी चाय वाले का नाम राजेंद्र था उसके साथ एक और लड़का भी काम करता था जिसका नाम राजू था। उस पूरे क्षेत्र में केवल वो ही एक चाय की दुकान थी तो राजेंद्र चाय वाले के यहाँ सुबह 7 से लेकर रात 11 बजे तक काफी भीड़ रहती थी। राजेंद्र की चाय औसत ही थी इसलिए कभी-कभी हम थोड़ा दूर जा कर भी किसी और टपरी पर चाय पी लिया करते थे और अगर कभी देर रात को चाय पीनी हो तब भी हम टहलते-टहलते दूर कहीं चाय पीने चले जाते थे ।
धीरे-धीरे समय के साथ राजेंद्र की दुकान पर भीड़ बढ़ने लगी। उसकी दुकान पर हमेशा लोगो का ताँता लगा रहता था। राजेंद्र की दुकान पर सभी तरह के लोग आते थे। कुछ वो भी जो लोगो को डराने धमकाने का काम करते थे। कुछ हमारे जैसे पढ़ने वाले छात्र एवं कुछ पुलिस वाले भी । धीरे-धीरे राजेंद्र की चाय की गुणवत्ता घटने लगी। मैं और मेरे मित्र चाय के लिए कोई और विकल्प ढूंढ़ने लगे। हम राजेंद्र की चाय से ऊब गए थे। अचानक एक दिन जब मैं अपने केन्द्र पर जा रहा था मैने देखा की राजेंद्र की चाय की दुकान की बायीं ओर की सड़क पर एक 23-24 साल का लड़का कुछ सामान लगा रहा था वो लड़का देखने में बहुत सुन्दर और हट्टा-कट्टा था एवं बहुत अच्छे घर का लग रहा था। शाम को जब मैं अपने अध्ययन केन्द्र से वापस आ रहा था तो मैने देखा की राजेंद्र की दुकान के बायीं ओर सुबह जहाँ एक लड़का कुछ सामान लगा रहा था वहाँ पर एक नयी चाय की दुकान खुल चुकी थी। उस चाय की दुकान को देख कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। उस चाय की दुकान पर कोई भी ग्राहक ना था। जैसे ही मैने चाय वाले की तरफ देखा उस चाय वाले के मुस्कुराते हुए चेहरे ने मेरी तरफ देख कर बोला ‘भईया चाय पियोगे?’
मैं थका हुआ था मैने कुछ देर सोचा उसकी तरफ देखा और बोला ‘हाँ भईया एक स्पेशल चाय बना दो केवल दूध की’ पांच मिनट के अंदर उसने चाय का गिलास मेरी तरफ बढ़ाया। चाय काफी अच्छी बनी थी मैने चाय पीते-पीते कहा ‘भईया चाय अच्छी बनी है’। उसने कहा ‘धन्यवाद सर’ फिर मैने पूछा की उसका नाम क्या है और वो कहाँ का रहनेवाला है? तो उसने अपना नाम चींकल बताया और वो पंजाब के किसी छोटे से शहर का था। धीरे-धीरे मैने और मेरे तीन साथियो ने राजेंद्र की जगह चींकल की टपरी से चाय पीना शुरू कर दिया। चींकल केवल 1 कप चाय या 1 ऑमलेट भी तीसरी मंजिल तक ऊपर आ कर दे देता था। वह बहुत ही जिन्दादिल लड़का था बड़ा हसमुख सब को खुश रखने वाला। धीरे-धीरे चींकल, चाय वाले से ज्यादा हमारा दोस्त बन गया था। 1 महीने के अंदर ही अंदर राजेंद्र चाय वाले के ग्राहक कम होने लगे और चींकल के बढ़ने लगे।
क्योकि हम लोगो को काफी पढ़ाई करनी होती थी तो हम चींकल की दुकान पर कम ही जाते थे और जो कुछ चाहिए होता था वो तीसरी मंजिल के छज्जे से आवाज़ लगा कर बोल देते थे और चींकल ले आता था। कई बार मैने उससे पूछने की कोशिश की कि वो तो अच्छे घर का लगता है फिर ये चाय बेचने का काम क्यों करता है? पर वो हर बार टाल जाता था। एक दिन जब करीब सुबह के 11 बजे मैं अपने केंद्र जा रहा था तो चींकल ने आवाज़ लगायी और बोला ‘भईया मेरी बीवी ने आज छोले चावल बनाये है आ जाओ थोड़े-थोड़े खा लेते है’ मैने काफी मना किया पर वो नहीं माना और टिफिन के ढक्कन में मेरे लिए भी थोड़े से छोले चावल कर दिए। मैने खा लिए। छोले चावल बहुत ही स्वादिष्ट बने थे।
उस दिन मैं बहुत थक गया था हमारे कंप्यूटर केंद्र में मैं नयी तकनीक में प्रोग्रामिंग सीख रहा था जो मेरी समझ में नहीं आ रहा थी, तो शाम के करीब 6 बजे जब मैं निराश और थक कर कमरे पर वापस जा रहा था तो मैंने देखा की चींकल की दुकान के पास कुछ लोग खड़े है। तीन चार लोग उसे पीटते जा रहे थे और दो लड़के उसकी चाय की टपरी का सामान तोड़ रहे थे। पास ही में राजेंद्र चाय वाला खड़ा हुआ हंस रहा था। मैं समझ गया कि ये सब राजेंद्र चाय वाला ही करवा रहा था। मैं कुछ बोलने वाला ही था कि राजेंद्र चाय वाले ने मेरी तरफ घूर कर देखा और मैं डर गया। चींकल ने मुझे आवाज़ भी लगायी ‘आशीष भईया’ पर मैं अनसुना कर के आगे निकल गया और अपने कमरे में जाने के लिए इमारत में घुस गया। पता नहीं क्यों मैं डरपोक बन गया था। अगली सुबह वहाँ जहाँ पर चींकल की चाय की दुकान हुआ करती थी उसके कुछ अवशेष पड़े थे मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। चींकल द्वारा खिलाये हुए घर के बने छोले चावल शायद मैं आज भी नहीं पचा पाया हूँ ।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
सुबह सुबह पड़ोसी लाल कंपकंपाते हुए, दोनों हाथों को रगडते हुए हमारे यहाँ आ धमके और आते ही हमारे ऊपर प्रश्न दाग दिया — ” सिंह साहब, ये ठंड कब जायेगी ? अब तो जनवरी भी खत्म हो गई है । आप तो कहते थे कि मकर संक्रांति के बाद तिल तिल करके ठंड कम होने लगती है । लेकिन कम होने की जगह यह तो बढ़ती ही जा रही है । अब आप ही बताइये ऐसा क्यों हो रहा है ?”
हमने पड़ोसी लाल को आराम से सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए श्रीमती जी को अदरक वाली चाय बंनाने को कहा । फिर पड़ोसी लाल की ओर मुखातिब होते हुए कहा — “आप क्यों इतना घबरा रहे हो, मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार यह जो ठंड पड़ रही है यह लंदन से आयातित है, अपने यहां ठंड का स्टॉक खत्म हो गया था न इसलिये लंदन से ठंड मंगवायी है ।जिस वजह से कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ों पर भारी बर्फ बारी होने से ठंड का दौर कुछ लम्बा खिंच गया है लेकिन जैसे दिये की लौ बुझने से पहले और तेजी से जलने लगती है उसी प्रकार ठंड का यह आखिरी दौर है । ठंड अब कुछ दिनों की मेहमान है । हमें मालूम है कि आप रजाई में दुबके दुबके बोर हो गये हैं और रजाई से छुटकारा पाना चाहते हैं । अभी तक आप सिकुड़े हुए थे,अब अकड़ना चाहते हैं ।”
पड़ोसी लाल ने मुस्कराते हुए कहा –” सिंह साहब, अच्छा है जो वैज्ञानिकों ने बता दिया, नहीं तो विपक्ष सरकार पर ही इतनी ठंड पड़ने का आरोप लगाकर सरकार से इस्तीफा मांगने लगता । आप तो जानते हैं, बहुत दिन हो गये सिकुड़े हुए, सिकुड़ने का यही हाल रहा तो फिर सिकुड़े सिकुड़े ही अकड़ न जायें ।इस बार की ठंड में ऐसी घटनायें कुछ ज्यादा ही हो रही हैं । ऐसे में वास्तविक रूप से अकड़ने का मौका हाथ से न निकल जावे । अब तो अकड़ दिखाने का मौका आ गया है, देखो बजट भी पेश हो गया है । बजट के हलुआ का प्रसाद जो केवल वित्त मंत्रालय के अधिकारियो , नेताओं के अलावा किसी को भी प्राप्त न हो पाता था, इस बार किसान, मजदूर गरीबों के साथ ही मध्यम वर्ग को भी मिल गया है । चुनावी वर्ष में ये सभी अकड़ने को तैयार हैं लेकिन ठंड है कि मानती नहीं । वसन्त भी एक कोने में दुबका खड़ा है इस इंतजार में कि ठंड जाए तो फिर मैं चहुँ ओर अपना जलवा बिखेरकर जनमानस को बौराना शुरू करूं । बसन्ती बयार भी बहने को बेताब हैं । लेकिन रह रहकर चलने लगती शीत लहर के कारण वह भी ठिठक जाती हैं । युवा वर्ग भी अपना वसन्त ( वेलेंटाइन डे ) मनाने की तैयारी में है, वह भी अपने शरीर पर लदे जैकेट,स्वेटरों से छुटकारा पाने के लिये छटपटा रहा है । किसान कर्ज के बोझ तले दबा है ।उसके पास न रजाई है न स्वेटर वह ठंड से कंपकंपा रहा है और सरकार कर्ज माफी का अलाव जलाकर खुद अपनी ठंड दूर कर रही है । बेरोजगार सिकुड़ रहा है नोकरी की आस में, कब नोकरी मिले और वह भी अकड़ दिखा सके ।”
पड़ोसी लाल की चिंता की वजह अब समझ आयी । हमने कहा — “आप तो ऐसे चिंता कर रहे हैं जैसे इस देश के चौकीदार आप ही हो । अरे भाई ठंड का क्या है ,आज नहीं तो कल चली ही जायेगी । लेकिन आपको भी मालूम है कि ठंड के जाते ही गर्मी अपना असर दिखाने लगेगी इसलिए कुछ दिन और ठंड का मजा ले लो । फिर गर्मी के साथ साथ चुनावी गर्मी का भी आनन्द उठाना।”
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )
ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः ॥14॥
श्वेत अष्वों से युक्त रथ में तब हो आसीन
माधव-पाॅडव सबो ने दिव्य शंख ध्वनि कीन।।14।।
भावार्थ : इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए॥14॥
Then also, Madhava (Krishna), and the son of Pandu (Arjuna), seated in their magnificent chariot yoked with white horses, blew their divine conches ॥14॥
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)