श्री सदानंद आंबेकर
© सदानंद आंबेकर
(श्री सदानंद आंबेकरजी हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में अभिरुचि। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से निरंतर प्रवास।)
श्री सदानंद आंबेकर
© सदानंद आंबेकर
(श्री सदानंद आंबेकरजी हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में अभिरुचि। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से निरंतर प्रवास।)
सुरेश पटवा
प्रस्तुत है सफरनामा – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से
(इस श्रंखला में अब तक आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ रहे होंगे। प्रस्तुत है उनकी यात्रा के अनुभव उनकी ही कलम से उनकी ही शैली में। )
क्रमशः …..
© श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)
Neelam Saxena Chandra
(We salute “Women Power”. Yesterday, we shared journey of life of Ms. Malati Mishra. Today, we would like to share literary journey of Ms. Neelam Saxena Chandra, who is having a number of published books and awards in her credit. She is working as a General Manager (Electrical Engineer), Pune Metro.)
Date of Birth: 27/06
Education: BE (Electronics and Power), PG Dip in IM&HRD, PG Dip in Financial Management, Certificate course in Finance from London School of Economics
Field of Interest: Writing poems/stories/novels
Introduction: Neelam Saxena Chandra works as a General Manager (Electrical) at Mahametro, Pune. She is an Engineering graduate from VNIT and has done her Post Graduation Diploma in IM&HRD and also in Finance. She has completed a course in Finance from London School of Economics. She has authored 4 novels, 1 novella and 6 short story collections, 29 poetry collections and 10 children’s books to her credit. She is a bilingual writer; writing in English and Hindi.
Your Literary journey:
I was a very coy and introvert person as a child. My classmates must have rarely heard my voice, except when it came to answering questions raised by teachers. However, I would listen to books and open up my heart to my diary. I used to write poems at that time.
After joining Railways, I began compeering for events and I loved using short poems written by me. I also started writing short skits and would not only act in them, I would also direct those skits. After my daughter was born, her craving for a story a day kept the imaginative person in me live till I finally wrote down those stories and sent them for publishing. That marked the beginning of my writing journey.
Best and memorable events of life: In 2010, I won II prize for a short poem written by me in a contest organized by Arushi and American Embassy, for which Gulzar sahib was the judge. This marked a turning point in my writing journey.
Toughest moment of life: There can be nothing worse than ill-health and my toughest moments were when I was diagnosed with Rheumatoid Arthritis. However, subsequently, I learnt to fight and survive.
Strength: My patience, my staying grounded and my creativity.
Weakness: Occasionally, I do lose my temper.
Literary work: Since I have written around 53 books, I will only name the ones written in 2017 and 2018:
मैंने पिरोये हैं अलफाज | Aug-18 | Authors Press | Hindi | Poetry |
कसम मटमैले मशरूम की | May-18 | National Book Trust | Hindi | Children’s stories |
Tales from Venus | May-18 | LiFi Publications | English | Short story |
The Frozen Evenings | Dec-17 | Authors Press | English | Poetry |
दहलीज़ | Nov-17 | Virtuous Publications | Hindi | Children’s stories |
ज़िंदगी का अलाव | Sep-17 | Authors Press | Hindi | Poetry |
एक शमा हरदम जलती है | Jul-17 | Authors Press | Hindi | Poetry |
आज बादल बन बरस जाना है | Jul-17 | Authors Press | Hindi | Poetry |
A Princess, A Goal and A Mole | Jun-17 | Omji Publishing | English | Children’s stories |
The Soul Unbound | Apr-17 | Authors Press | English | Poetry |
Trove of Musings | Apr-17 | Authors Press | English | Poetry |
मैं बहने लगी हूँ | Apr-17 | Authors Press | Hindi | Poetry |
मैंने रंग दिये अलफाज | Apr-17 | Authors Press | Hindi | Poetry |
मैंने तराशे हैं अलफाज | Apr-17 | Authors Press | Hindi | Poetry |
रंगी मैं तेरे रंग में | Apr-17 | Authors Press | Hindi | Poetry |
सप्तरंगी परी एवं रंगबिरंगी कहानियाँ | Feb-17 | AlokparvPrakashan | Hindi | Children’s stories |
In the Flickering of an Eye | Jan-17 | LiFi Publications | English | Novel |
Stella | Jan-17 | Prabhat Prakashan | English | Novel |
Work life balancing journey and how you manage to write in between:
I adore my job and I am passionate about writing. So, I am able to find time for both. Writing comes to me very naturally, and it’s like a stream waiting to flow. It always tends to find its path.
Positive message to society:
Always believe in yourself, for no one knows you better than yourself.
Email : [email protected]
© Neelam Saxena Chandra
श्री सुरेश पटवा
प्रस्तुत है सफरनामा – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से
(इस श्रंखला में अब तक आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ रहे होंगे। प्रस्तुत है उनकी यात्रा के अनुभव उनकी ही कलम से उनकी ही शैली में। )
क्रमशः …..
© श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)
मालती मिश्रा
(जीवन में प्रत्येक मनुष्य को अपनी जीवन यात्रा नियत समय पर नियत पथ पर चल कर पूर्ण करनी होती है। किसी का जीवन पथ सीधा सादा सरल होता है तो किसी का कठिन संघर्षमय ।
मैं “नारी शक्ति”का सम्मान करते हुए शेयर करना चाहूँगा, एक युवती की जीवन यात्रा, जिसने एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर बचपन से संघर्ष करते हुए एक अध्यापिका, ब्लॉगर/लेखिका तक का सफर पूर्ण किया। शेष सफर जारी है। जब हम पलट कर अपनी जीवन यात्रा का स्मरण करते हैं, तो कई क्षणों को भुला पाना अत्यन्त कठिन लगता है और उससे कठिन उस यात्रा को शेयर करना। प्रस्तुत है सुश्री मालती मिश्रा जी की जीवन यात्रा उनकी ही कलम से।)
साहित्यिक नाम– ‘मयंती’
जन्म : 30-10-1977
संप्रति : शिक्षण एवं स्वतंत्र लेखन
जीवन यात्रा :
मेरा नाम मालती मिश्रा है। मेरे पिताजी एक कृषक हैं और ग्राम देवरी बस्ती जिला, जो कि अब सन्त कबीर नगर में आता है के निवासी हैं। एफ०सी०आई० विभाग में कार्यरत होने के कारण पहले कानपुर उ०प्र० में सपरिवार रहते थे। इसलिए मेरी प्रारंभिक शिक्षा कानपुर से ही हुई। जब मैं कानपुर कन्या महाविद्यालय से ग्यारहवीं की पढ़ाई कर रही थी तभी मेरी माँ की तबियत अधिक खराब होने के कारण मुझे उनकी देखभाल के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी और ऑपरेशन के उपरांत उनके साथ ही गाँव चली गई। एक वर्ष के बाद मैंने पुनः श्री जगद्गुरु शंकराचार्य विद्यालय मेहदावल से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की। चित्रकला में मुझे बचपन से शौक होने के कारण तथा उसमें मेरा हाथ साफ था अतः ये जानने के बाद कि मैं आगे की पढ़ाई कानपुर से करूँगी मेरे आर्ट के अध्यापक महोदय ने ही मुझे कानपुर के डी०ए०वी० कॉलेज में एडमिशन लेने की सलाह दी। मैंने फिर डी०ए०वी० से चित्रकला विषय के साथ स्नातक की पढ़ाई आरंभ की परंतु कुछ व्यक्तिगत कारणों से बी०ए० की तृतीय वर्ष की परीक्षा पूरी न दे सकी और निराशा के अधीन हो आगे न पढ़ने का फैसला कर लिया।
तदुपरांत विवाह के पश्चात मैं दिल्ली की स्थानीय नागरिक बन गई। समय का सदुपयोग और स्वयं को आजमाने के लिए किसी सहेली के साथ विद्यालय में शिक्षिका के पद के लिए साक्षात्कार दे आई और नियुक्ति भी हो गई। मुझे बखूबी याद है कि मुझे दूसरी कक्षा दी गई थी पढ़ाने के लिए और मैं बहुत नर्वस थी। परंतु कक्षा में जाकर जब मैंने अंग्रेजी की पुस्तक देखी तो सारा डर काफ़ूर हो गया। अब अध्यापन के साथ-साथ मैंने पुनः दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक तथा इग्नू से हिन्दी में स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की। चित्रकला में स्नातकोत्तर या करियर तो अतीत में देखा हुआ महज़ स्वप्न बन चुका था। मैं स्नातकोत्तर होने से पहले ही हिन्दी की अध्यापिका बन चुकी थी और दसवीं कक्षा तक हिन्दी पढ़ाती थी। बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते ही मैं क्रिया-कलाप करवाते हुए अपनी चित्रकारी के शौक को पूरा कर लिया करती। क्रियाकलाप के लिए बच्चों के लिए एकांकी लिखती थी, साथ ही स्कूल में होने वाले कार्यक्रमों का प्रतिवेदन अखबारों के लिए लिखती। इससे मेरे भीतर लेखन के प्रति रुचि उत्पन्न होने लगी। इसी प्रक्रिया के अंतर्गत मैंने छात्रों से मैगज़ीन बनवाया और उसमें मैंने अपनी पहली कविता लिखी किन्तु दुर्भाग्यवश मैं वो मैगजीन पब्लिश करवाती उससे पहले ही स्कूल छोड़ दिया। मैंने अध्यापन किसी अन्य स्कूल से बदस्तूर जारी रखा।
मैं अपने विचारों को पब्लिकली रखना चाहती। इसमें मेरी मदद मेरे पति ने की, उन्होंने मुझे ‘अन्तर्ध्वनि’ द वॉयस ऑफ सोल’ नामक वेब साइट तथा meelumishra.Blogspot.in ब्लॉग बनाकर दिया ताकि मैं अपने विचार उस पर साझा कर सकूँ। अब मेरे विचारों को ज़मीन मिल गई थी। धीरे-धीरे मैंने काव्य रचना शुरू की। मेरे काव्य संग्रह में जब कविताओं की संख्या इतनी हो गई कि मैं उन्हें पुस्तक का रूप दे सकूँ, तब मैंने ‘उन्वान प्रकाशन’ से अपनी पुस्तक पब्लिश करवाई। अब मेरी दूसरी पुस्तक भी प्रकाशन हेतु तैयार है।
आपके जीवन के यादगार क्षण:
एक माँ के तौर पर 1995 में जब मैंने पहली बार अपनी बेटी को गोद में लिया और एक लेखिका के तौर पर जब मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित होकर मेरे हाथ में आई।
आपके जीवन का सबसे कठिन क्षण :
मेरे इकलौते मामा जी के देहांत के उपरांत तय हुआ कि मैं और मेरे दोनों छोटे भाई बाबूजी के साथ कानपुर में रहेंगे। माँ गाँव में रहते हुए नाना-नानी की व अपने तथा उनके खेत-खलिहान की देखभाल करेंगीं। उस समय मेरी स्थिति ऐसी थी मानों किसी बच्चे को मनचाहा खिलौना हाथ में देकर उससे जबरन छीन लिया गया हो, मैं बहुत रो रही थी कोई चुप नहीं करवा पा रहा था। तभी बाबूजी ने डाँटा। अब मैं न रो पा रही थी और न चुप हो पा रही थी। उस समय और फैसले ने मुझसे मेरा बचपन छीन लिया।
आपकी शक्ति : मेरा आत्मविश्वास और मेरे बच्चे ये दोनों ही मेरी शक्ति हैं।
आपकी कमजोरी : गलत चीजें बर्दाश्त न कर पाने के कारण मेरा शीघ्र ही क्रोधित होजाना।
आपका साहित्य :
प्रकाशित पुस्तक- ‘अंतर्ध्वनि’ (काव्य-संग्रह), ‘इंतजार’ अतीत के पन्नों से (कहानी संग्रह), तीन साझा संग्रह तथा पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी।
आपका कार्य-जीवन संतुलन
विवाहोपरांत, परिवार व बच्चों के प्रति जिम्मेदारियों को निभाते हुए अध्यापन के साथ-साथ मैंने अध्ययन भी किया। आसान न होने के बावजूद इसे पूर्ण किया। आजकल प्राइवेट स्कूल में अध्यापन का मतलब 24×7 स्कूल के कार्यों में व्यस्त, ऐसे में घर और स्कूल में तालमेल बिठाना भी अपने-आप में चुनौतीपूर्ण होता है। परंतु, मैं इसके साथ-साथ लेखन भी करती हूँ इसके पीछे मेरी बेटियों का सहयोग है। बिना उनके मेरे लिए ये सब बहुत मुशकिल होता।
आपका समाज के लिए सकारात्मक संदेश
मनुष्य हर पल, हर घड़ी, हर स्थान पर हर परिस्थिति में कुछ न कुछ सीखता ही है। बेशक उसे उस वक्त इसका ज्ञान न हो परंतु आवश्यकता पड़ने पर उसे अनायास ही परिस्थिति, घटना, समस्या और समाधान सब याद हो आते हैं और तब महसूस होता है कि हमने अमुक समय अमुक सबक सीखा था। अत: जब हम जाने-अनजाने प्रतिक्षण सीखते ही हैं तो क्यों न हम प्रकृति से भी सीखें। प्रकृति एक ऐसी शिक्षक है, जिसकी शिक्षा ग्रहण करके यदि मानव उसका अनुकरण करने लगे तो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ महज एक मान्यता नहीं रह जाएगी बल्कि यह सहज ही साक्षात् दृष्टिगोचर होगी।
आकाश पिता की भाँति सभी प्राणियों पर बिना भेदभाव के समान रूप से अपनी छाया करता है, धरती सबकी माँ है, इसे देश, नगर, गाँव में मनुष्यों ने बाँटा है। नदी जल देने में, वृक्ष फल व प्राणवायु देने में जब कोई भेदभाव नहीं करते, सभी प्राणिमात्र पर सदैव समान कृपा करते हैं तो हमें भी उनसे सीख ग्रहण कर अपने बीच के भेदभाव मिटाकर आपसी भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए, तभी यह “वसुधैव कुटुम्बकम्” की धारणा साकार हो सकती है।
मैं मानती हूँ कि आज के समय में यह इतना सहज नहीं है। परन्तु, जिससे जितना हो सके उतना तो अवश्य करना चाहिए मसलन अपने आस-पास यदि हम किसी की कोई मदद कर सकें तो यथासंभव करना चाहिए। इससे उस इंसान का इंसानियत पर विश्वास बढ़ जाता है तथा वह या अन्य जिसने भी उस क्षण का अवलोकन किया होगा, सक्षम होने की स्थिति में दूसरों की मदद करने में कतराएँगे नहीं। इंसानियत से ही इंसानियत का जन्म होता है और मनुष्य को स्वार्थांध होकर अपना यह सर्वोच्च गुण नहीं त्यागना चाहिए।
व्यक्ति से समाज और समाज से गाँव, नगर और देश बनते हैं। किसी भी देश के सम्पन्न होने के लिए उसके नागरिकों की सम्पन्नता आवश्यक है और इसके लिए प्रत्येक नागरिक का शिक्षित होना आवश्यक है अतः यथासंभव हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि कोई बच्चा अनपढ़ न रहे क्योंकि शिक्षा ही वह माध्यम है जो व्यक्ति से उसकी स्वयं की पहचान कराती है तथा उसे उसकी मंजिल तक ले जाती है।
Email : [email protected]
© सुश्री मालती मिश्रा
श्री सुरेश पटवा
प्रस्तुत है सफरनामा – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से
(इस श्रंखला में अब तक आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ रहे होंगे। प्रस्तुत है उनकी यात्रा के अनुभव उनकी ही कलम से उनकी ही शैली में। )
क्रमशः …..
© श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)
नीलम सक्सेना चंद्रा
मैं काली नहीं हूँ माँ!
माँ,
सुना है माँ,
कल किसी ने एक बार फ़िर
यह कहकर मुझसे रिश्ता ठुकरा दिया
कि मैं काली हूँ!
माँ, मैं काली नहीं हूँ माँ!
कल जब मैं
बाज़ार जा रही थी,
चौक पर जो मवाली खड़े रहते हैं,
उन्होंने मुझे देखकर सीटी बजाई थी
और बहुत कुछ गन्दा-गन्दा बोला था,
जिसे मैंने हरदम की तरह नज़रंदाज़ कर दिया था;
काले तो वो लोग हैं माँ!
माँ, मैं काली नहीं हूँ माँ!
उस दिन जब मेरे बॉस ने
चश्मे के नीचे से घूरकर कहा था,
प्रमोशन के लिए
और कुछ भी करना होता है,
मैं तो डर ही गयी थी माँ!
काला तो वो मेरा बॉस था माँ!
माँ, मैं काली नहीं हूँ माँ!
अभी कल टेलीविज़न पर ख़बर सुनी,
एक औरत के साथ कुकर्म कर
उसे जला दिया गया!
माँ, यह कैसा न्याय है माँ?
काले तो वो लोग थे माँ!
माँ, मैं काली नहीं हूँ माँ!
यह कैसा देश है माँ
जहाँ बुरे काम करने से कुछ नहीं होता
और चमड़ी के रंग पर
लड़की को काली कहा जाता है?
माँ, मैं काली नहीं हूँ माँ!
माँ, मैं काली नहीं हूँ माँ!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। वर्तमान में आप जनरल मैनेजर (विद्युत) पद पर पुणे मेट्रो में कार्यरत हैं।)
श्री सुरेश पटवा
प्रस्तुत है सफरनामा – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से
(इस श्रंखला में अब तक आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ रहे होंगे। प्रस्तुत है उनकी यात्रा के अनुभव उनकी ही कलम से उनकी ही शैली में। )
क्रमशः …..
© श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)
श्री सुरेश पटवा
प्रस्तुत है सफरनामा – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से
(इस श्रंखला में अब तक आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ रहे होंगे।
श्री पटवा जी ने नर्मदा परिक्रमा खंड-1 की यात्रा अपने परिक्रमा-दल के साथ पूर्ण कर ली है। अब हम साझा करेंगे उनकी यात्रा का अनुभव उनकी ही कलम से उनकी ही शैली में ।)
क्रमशः …..
© श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)
जय प्रकाश पाण्डेय
पहाड़ पर कविता
जंगल को बचाने के लिए,
पहाड़ पर कविता जाएगी,
कुल्हाड़ी की धार के लिए,
कमरे में दुआ मांगी जाएगी,
पहाड़ पर बोली लगेगी,
कविता भी नीलाम होगी,
कवियों के रुकने के लिए,
कटे पेड़ के घरौंदे बनेंगे,
उनके ब्रेकफास्ट के लिए,
सागौन के पेड़ बेचे जाएंगे,
उनके मूड बनाने के लिए,
महुआ रानी चली आयेगी,
कविता याद करने के लिए,
रात रानी बुलायी जाएगी,
कविता के प्रचार के लिए,
नगरों के टीवी खोले जाएंगे,
कवि लोग कविता में,
जंगल बचाने की बात करेंगे,
टी वी में कविता के साथ,
पेड़ रोने की आवाजें आयेंगी,
दूसरे दिन मीडिया से,
जांच कमेटी खबर बनेगी,
और पहाड़ पर कविता,
बेवजह बिलखती मिलेगी,
© जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जय प्रकाश पाण्डेय, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा हिन्दी व्यंग्य है। )