मध्य प्रदेश के रंगक्षेत्र में स्टेट बैंक के रंगकर्मियों का योगदान
न तज्ज्ञानं न तच्छिल्पं न सा विद्या न सा कला |
ना सौ न तत्कर्म नाट्यास्मिन यन्नदृश्यते ||
(कोई ज्ञान, कोई शिल्प, कोई विद्या , कोई कला, कोई योग तथा कोई कर्म ऐसा नहीं है जो नाट्य में दिखाई न देता हो |)
नाटक से न केवल भाषा का विकास होता है, वरन मनुष्य का भी विकास होता है . भौतिकवाद के विश्व-व्यापी विकास के बाद आज सारी दुनिया में पुनः सांस्कृतिक मूल्यों कि आवश्यकता महसूस कि जा रही है . भले ही साहित्य में नाटक को कविता या कहानी के समतुल्य स्थान न मिला हो परन्तु नाटक में साहित्य कि सारी विधाओं का अद्भुत मेल है. नाटक भाषा को भाषा से जोड़ता है, नाटक मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है और नाटक जीवन को जीवन से जोड़ता है. दरअसल नाटक का एक मजबूत संपर्क सूत्र है .
भारतीय स्टेट बैंक और रंगकर्म
यदि इस विषय पर चर्चा की जाये तो लोग सोच में पड़ जायेंगे कि एक बैंक का रंगकर्म से क्या नाता ? भारतीय स्टेट बैंक के भोपाल मंडल (मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ ) के कलाकारों ने विगत 40 वर्षों में प्रदेश के और विशेषकर भोपाल के रंगक्षेत्र में अत्यंत उल्लेखनीय योगदान दिया है। राजभाषा मास के दौरान ३० वर्षों तक सतत स्टेट बैंक नाट्य समारोह का आयोजन किया जाता रहा ( दुर्भाग्य से विगत कुछ वर्षों से यह समारोह बंद कर दिया गया है )। इस नाट्य समारोह ने रंगमंच को एक नई ऊंचाई, एक नई शक्ति और एक नई ऊर्जा दी है। स्टेट बैंक नाट्य समारोहों में मंचित नाटकों ने रचनात्मकता, सृजन क्षमता और रंगकर्म के प्रति कलाकारों की निष्ठा का एक ऐसा उदहारण प्रस्तुत किया है, जो शौकिया (अव्यवसायिक) रंगमंच में मिलना संभव नहीं है।
स्टेट बैंक के इस प्रतिष्ठित आयोजन में देश के ख्यातनाम रंग निर्देशकों श्री हबीब तनवीर, श्री बंसी कौल, श्री प्रभात गांगुली, श्री राजेंद्र गुप्त, श्री अलखनंदन, श्री जयंत देश्मुख, श्री प्रशांत खिरवडकर आदि का निर्णायकों एवं मुख्य अतिथियों के रूप में इस समारोह में शामिल होना इसके प्रतिष्ठित होने का प्रमाण है। स्टेट बैंक के इस नाट्य समारोह को मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपालों महामहिम श्री भाई महावीर एवं श्री बलराम जाखड़ जी से भी सराहना मिली है।
स्टेट बैंक नाट्य समारोह ने कई श्रेष्ठ निर्देशक एवं अभिनेता/अभिनेत्री भोपाल के रंमंच को दिए है। इनमे से कई अभिनेताओं ने भारत महोत्सव (रूस -1988) सहित देश के अनेक प्रतिष्ठित नाट्य समरोहों में शिरकत की है। बैंक के अनेक रंगकर्मी दूरदर्शन की टेलिफिल्मो, धारावाहिकों एवं फीचर फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं।
स्टेट बैंक के मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ के रंगकर्मियों में से कुछ प्रमुख नाम हैं स्व. श्री विजय डिंन्डोरकर, स्व. श्री प्रदीप पोद्दार, श्री अशोक बुलानी, श्री उदय शहाणे, श्री बसंत काशिकार, श्री असीम कुमार दुबे, श्री राकेश सेठी, श्री प्रवीण महुवाले, श्री आलोक गच्छ, श्री अविनाश नेमाडे, श्री जगदीश बागोरा, श्री संजय जैन, श्री सुधीर खानवलकर , श्री अरविन्द बिलगैया , श्री दीपक सभरवाल, श्री दीपक तिवारी, श्रीमती संध्या पोद्दार, श्रीमती सुशीला प्रसाद, श्रीमती रश्मि मुजुमदार, श्रीमती गीता अइयर आदि।
३० वर्षों में स्टेट बैंक नाट्य समारोहों में सैंया भये कोतवाल, दुलारी बाई, एक था गधा, आषाढ़ का एक दिन, सदगति, राम लीला, बगिया बांछा राम की , माँ रिटायर होती है , महाभोज, मोटेराम का सत्याग्रह , संध्या छाया, कोर्ट मार्शल, जिस लाहोर नई देख्या , अच्छे आदमी, अंजी, बजे ढिंडोरा, अरे शरीफ लोग, शुतुरमुर्ग, कालचक्र सहित 100 से अधिक नाटकों के श्रेष्ठ प्रदर्शन किये गए हैं।
Everyone wants to be happy. It is our duty to ensure that all children are adequately nourished; that they go to school, feel safe, and engage in sports and games.
LifeSkills wishes you a very happy and prosperous Diwali! RadhikaJagat Bisht Jagat Singh Bisht
YOGA ASANAS: STANDING POSTURES
In this video, we have demonstrated yoga asanas in the standing posture including
Tadasana, TiryakTadasana, Trikonasana, Virbhadrasana, Parsakonasana, Padottanasana, Utkatasana, Parshvotannasana, Padangushtasana, Padahastasana, Uttanasana, Utthita Hasta Padangusthasana, Mukta Hastasana, Vrikshasana and Natrajasana.
(This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.)
आज से हम सबके घर-आँगन प्रकाशोत्सव दीपावली पर्व के पावन अवसर पर जगमगाने लगे हैं। किन्तु, ऐसे भी कुछ घर-आँगन हैं जो उनकी बाट जोह रहे हैं जो सीमा पर शहीद हो गए हैं और कभी लौट के नहीं आएंगे। उन समस्त परिवारों को नमन एवं वीरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मेरे काव्य संग्रह “शब्द ….. और कविता” में प्रकाशित एक कविता “दीपों की मौन अभिव्यक्ति”।
मराठी मित्र मंडल, फ़्रांकेन जर्मनी द्वारा एर्लांगेन शहर में रविवार 22 अक्तूबर 2017 को दीपावली समारोह के आयोजन के अवसर पर मेरी काव्य प्रस्तुति ‘दीपों की मौन अभिव्यक्ति’ का विडियो लिंक निम्न है:
आज अचानक माँ का फ़ोन आया “सोनी घर आ गई है ।कह रही अब वह नहीं जायेगी ।”
पर बेटा ” आशू फोन करके मना रहा है पर इसका कहना है अलग रहेंगे तो ही मैं वापस आउंगी ।”
आशू का कहना है “मैं माता-पिता को नहीं छोड़ सकता।रहेंगे तो साथ ही रहेंगे।”
यह सब सुनकर हमसे नहीं रहा गया हम उसे समझाने चले गए।
सब याद आने लगा जब हमने रिश्ता बताया था और माँ ने सब देखकर चन्द दिनों में सोनी की शादी कर दी थी।और माँ शादी करके निश्चिन्त हो गई थीं।परंतु कुछ दिनों बाद से ही माँ का फोन आता रहता सोनी खुश नहीं है आये दिन छोटी -मोटी बात पर विवाद होता रहता है ।आशू तो बस माँ का ही दामन थामे है उसे कुछ दिखाई नहीं देता।
हमने भी फोन पर कहा..” यह क्या कह रही हो ।कुछ नही होता धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा।”
वह बोली “मैं बहुत एडजेस्ट कर रही हूँ दीदी।”
होली का त्यौहार था उन सबको भी बुला लिया। सास, पति, नन्द सभी आये और सबका समझौता करवा दिया। सभी खुश थे और सबसे ज्यादा हम खुश थे, हमने ही शादी करवाई थी ।जब सब चलने लगे माँ ने सोनी से कहा…” बेटा अब अच्छे से रहना छोटी-छोटी बाते तो होती रहती है इतना सुनते ही सोनी बोली .. सास की और इशारा करके “इनका मुंह बंद रहे तो सब ठीक है।”
इतना सुनते ही उन्होंने विदा का सामान पटका और बेटे को बोली …”चल बेटा अब इसको यहीं रहने दे ये हमारे लायक नहीं है।”
Gross National Happiness, or GNH, is a holistic and sustainable approach to development, which balances material and non-material values with the conviction that humans want to search for happiness. The objective of GNH is to achieve a balanced development in all the facets of life that are essential; for our happiness. LifeSkills
दीपावली से दो दिन पहले खरीदारी के लिए वो सबसे पहले पटाखा बाजार पहुंचा। अपने एक परिचित की दुकान से चौगुनी कीमत पर एक हजार के पटाखे खरीदे।
फिर वह शॉपिंग सेंटर पहुंचा, यहां मिठाई की सबसे बड़ी दुकान पर जाकर डिब्बे सहित तौली गई हजार रूपये की मिठाई झोले में डाली।
इसके बाद पूजा प्रसाद के लिए लाई-बताशे, फल-फूल और रंगोली आदि खरीदकर शरीर में आई थकान मिटाने के लिए पास के कॉफी हाउस में चला गया।
कुछ देर बाद कॉफी के चालीस रूपये के साथ अलग से बैरे की टीप के दस रूपये प्लेट में रखते हुए बाहर आया और मिट्टी के दीयों की दुकान की ओर बढ़ गया।
“क्या भाव से दे रहे हो यह दीये?”
“आईये बाबूजी, ले लीजिये, दस रूपये के छह दे रहे हैं।”
“अरे! इतने महंगे दीये, जरा ढंग से लगाओ, मिट्टी के दीयों की इतनी कीमत?”
“बाबूजी, बिल्कुल वाजिब दाम में दे रहे हैं। देखो तो, शहर के विस्तार के साथ इनको बनाने की मिट्टी भी आसपास मुश्किल से मिल पाती है। फिर इन्हें बनाने सुखाने में कितनी झंझट है। वैसे भी मोमबत्तियों और बिजली की लड़ियों के चलते आप जैसे अब कम ही लोग दीये खरीदते हैं।”
“अच्छा ऐसा करो, दस रूपये के आठ लगा लो।”
दुकानदार कुछ जवाब दे पाता इससे पहले ही वह पास की दुकान पर चला गया। वहाँ भी बात नहीं बनी। आखिर तीन चार जगह घूमने के बाद एक दुकान पर मन मुताबिक भाव तय कर वह अपने हाथ से छांट-छांट कर दीये रखने लगा।
“ये दीये छोटे बड़े क्यों हैं? एक साइज में होना चाहिए सारे दीये।”
“बाबूजी, ये दीये हम हाथों से बनाते हैं, इनके कोई सांचे नहीं होते इसलिए….”
घर जाकर पत्नी के हाथ में सामान का झोला थमाते हुए वह कह रहा था –
“ये महंगाई पता नहीं कहा जा कर दम लेगी। अब देखों ना, मिट्टी के दीयों के भाव भी आसमान छूने लगे हैं।”