योग-साधना LIFESKILLS/जीवन कौशल-22 –SHRI JAGAT SINGH BISHT

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Recent studies reveal that nearly half of India’s private sector employees suffer from depression, anxiety and stress.
LifeSkills

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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हिन्दी साहित्य – कविता – दीप पर्व / दीवाली (दो कवितायें) – डॉ.राजकुमार “सुमित्र”

डॉ.राजकुमार “सुमित्र”

दीप पर्व

दीप पर्व का अर्थ है,  जन मन भरो उजास ।

केवल अपना ही नहीं ,सबका करो विकास।।

 

दीप उजाला बांटकर ,  देता है   संदेश ।

अपना हित साधो मगर, सर्वोपरि हो देश।।

 

बांध ,रेल, पुल में नहीं, अपना  हिंदुस्तान ।

सच्चे मन से देख  ले ,बच्चों की मुस्कान।।

 

नारे व्यर्थ विकास के, भाषण सभी फिजूल।

हंसते गाते यदि  नहीं ,  बच्चों  के   स्कूल ।।

 

दाता ने हमको  दिये, अन्न ,वस्त्र ,  स्कूल  ।

देश देवता को करें, अर्पित जीवन फूल ।।

 

एक अंधेरा  उजाला , किंतु नहीं है मित्र ।

सदभावों की सुरभि से ,होंगे सभी सुमित्र।।

 

© डॉ.राजकुमार “सुमित्र”



दीवाली

 

दीवाली की दस्तकें, दीपक की पदचाप।

आओ खुशियां मनायें,क्यों बैठे चुपचाप।।

 

अंधियारे की शक्ल में, बैठे कई सवाल ।

कर लेना फिर सामना ,पहले दीप उजाल।।

 

कष्टों का अंबार है ,दुःखों का अंधियार ।

हम तुम दीपक बनें तो ,फैलेगा  उजियार ।।

 

© डॉ.राजकुमार “सुमित्र”

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रंगमंच – मध्य प्रदेश के रंगक्षेत्र में स्टेट बैंक के रंगकर्मियों का योगदान – श्री असीम कुमार दुबे

असीम कुमार दुबे 

मध्य प्रदेश के रंगक्षेत्र में स्टेट बैंक के रंगकर्मियों का योगदान

न तज्ज्ञानं न तच्छिल्पं न सा विद्या न सा कला  |

ना सौ न तत्कर्म नाट्यास्मिन  यन्नदृश्यते ||

(कोई ज्ञान, कोई शिल्प, कोई विद्या , कोई कला, कोई योग तथा कोई कर्म ऐसा नहीं है जो नाट्य में दिखाई न देता हो |)

नाटक से न केवल भाषा का विकास होता है, वरन मनुष्य का भी विकास होता है . भौतिकवाद के विश्व-व्यापी विकास के बाद आज सारी दुनिया में पुनः सांस्कृतिक मूल्यों कि आवश्यकता महसूस कि जा रही है . भले ही साहित्य में नाटक को कविता या कहानी के समतुल्य स्थान न मिला हो परन्तु नाटक में साहित्य कि सारी विधाओं का अद्भुत मेल है. नाटक भाषा को भाषा से जोड़ता है, नाटक मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है और नाटक जीवन को जीवन से जोड़ता है. दरअसल नाटक का एक मजबूत संपर्क सूत्र है .

भारतीय  स्टेट बैंक और रंगकर्म

यदि इस विषय पर चर्चा की जाये तो लोग सोच में पड़ जायेंगे कि एक बैंक का रंगकर्म  से क्या नाता ? भारतीय स्टेट  बैंक के भोपाल मंडल (मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ ) के कलाकारों ने विगत 40 वर्षों में  प्रदेश के और विशेषकर भोपाल के रंगक्षेत्र में अत्यंत उल्लेखनीय योगदान दिया है।   राजभाषा मास के दौरान ३० वर्षों तक सतत स्टेट बैंक नाट्य समारोह का आयोजन किया जाता रहा ( दुर्भाग्य से विगत कुछ वर्षों से यह समारोह बंद कर दिया गया है )।   इस नाट्य समारोह ने रंगमंच को एक नई ऊंचाई, एक नई शक्ति और एक नई ऊर्जा दी है।  स्टेट बैंक नाट्य समारोहों में मंचित नाटकों ने रचनात्मकता, सृजन क्षमता और रंगकर्म के प्रति कलाकारों की निष्ठा का एक ऐसा उदहारण प्रस्तुत किया है, जो शौकिया (अव्यवसायिक) रंगमंच में मिलना संभव नहीं है।

स्टेट बैंक के इस प्रतिष्ठित आयोजन में  देश के ख्यातनाम रंग निर्देशकों श्री हबीब तनवीर, श्री बंसी कौल,  श्री प्रभात गांगुली, श्री राजेंद्र गुप्त, श्री अलखनंदन, श्री जयंत देश्मुख, श्री प्रशांत खिरवडकर आदि का निर्णायकों एवं मुख्य अतिथियों के रूप में इस समारोह में शामिल होना इसके प्रतिष्ठित होने का प्रमाण है।   स्टेट बैंक के इस नाट्य समारोह को मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपालों महामहिम श्री भाई महावीर एवं श्री बलराम जाखड़ जी से भी सराहना मिली है।

स्टेट बैंक नाट्य समारोह ने कई श्रेष्ठ निर्देशक एवं  अभिनेता/अभिनेत्री भोपाल के रंमंच को दिए है। इनमे से कई अभिनेताओं ने भारत महोत्सव (रूस -1988) सहित देश के अनेक प्रतिष्ठित नाट्य समरोहों  में शिरकत की है।  बैंक के अनेक रंगकर्मी दूरदर्शन की टेलिफिल्मो, धारावाहिकों एवं फीचर फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं।

स्टेट बैंक के मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ के  रंगकर्मियों में से कुछ प्रमुख नाम हैं  स्व. श्री विजय डिंन्डोरकर, स्व. श्री प्रदीप पोद्दार, श्री अशोक बुलानी, श्री उदय शहाणे, श्री बसंत काशिकार, श्री असीम कुमार दुबे, श्री राकेश सेठी, श्री प्रवीण महुवाले, श्री आलोक गच्छ, श्री अविनाश नेमाडे, श्री जगदीश बागोरा, श्री संजय जैन, श्री सुधीर खानवलकर , श्री अरविन्द बिलगैया , श्री दीपक सभरवाल, श्री दीपक तिवारी, श्रीमती संध्या पोद्दार, श्रीमती सुशीला प्रसाद, श्रीमती रश्मि मुजुमदार, श्रीमती गीता अइयर आदि।

३० वर्षों में स्टेट बैंक नाट्य समारोहों में सैंया भये कोतवाल, दुलारी बाई, एक था गधा, आषाढ़ का एक दिन, सदगति, राम लीला, बगिया बांछा राम की , माँ रिटायर होती है , महाभोज, मोटेराम का सत्याग्रह , संध्या छाया, कोर्ट मार्शल, जिस लाहोर नई देख्या , अच्छे आदमी, अंजी, बजे ढिंडोरा, अरे शरीफ लोग, शुतुरमुर्ग, कालचक्र  सहित 100 से अधिक नाटकों के श्रेष्ठ प्रदर्शन किये गए  हैं।

© असीम कुमार दुबे

 

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योग-साधना LIFESKILLS/जीवन कौशल-21 –SHRI JAGAT SINGH BISHT

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Everyone wants to be happy. It is our duty to ensure that all children are adequately nourished; that they go to school, feel safe, and engage in sports and games.

LifeSkills

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल- Yoga Asanas:Standing Postures– Smt Radhika Jagat Bisht & Shri Jagat Singh Bisht

LifeSkills wishes you a very happy and prosperous Diwali!
RadhikaJagat Bisht Jagat Singh Bisht

 

YOGA ASANAS: STANDING POSTURES

 

 

In this video, we have demonstrated yoga asanas in the standing posture including

Tadasana, TiryakTadasana, Trikonasana, Virbhadrasana, Parsakonasana, Padottanasana, Utkatasana, Parshvotannasana, Padangushtasana, Padahastasana, Uttanasana, Utthita Hasta Padangusthasana, Mukta Hastasana, Vrikshasana and Natrajasana.

(This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.)

© Radhika Jagat Bisht & Jagat Singh Bisht

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हिन्दी साहित्य – कविता – दीपों की मौन अभिव्यक्ति – श्री हेमन्त बावनकर

दीपों की मौन अभिव्यक्ति

आज से हम सबके घर-आँगन प्रकाशोत्सव दीपावली पर्व के पावन अवसर पर जगमगाने लगे हैं। किन्तु, ऐसे भी कुछ घर-आँगन हैं जो उनकी बाट जोह रहे हैं जो सीमा पर शहीद हो गए हैं और कभी लौट के नहीं आएंगे। उन समस्त परिवारों को नमन एवं वीरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मेरे काव्य संग्रह “शब्द ….. और कविता” में प्रकाशित एक कविता “दीपों की मौन अभिव्यक्ति”।

 

 

 

 

 

 

 

 

मराठी मित्र मंडल, फ़्रांकेन जर्मनी द्वारा एर्लांगेन शहर में रविवार 22 अक्तूबर 2017 को दीपावली समारोह के आयोजन के अवसर पर मेरी काव्य प्रस्तुति ‘दीपों की मौन अभिव्यक्ति’ का विडियो लिंक निम्न है:

विडियो लिंक – दीपों की मौन  अभिव्यक्ति

© हेमन्त बावनकर

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा – लायक  – डॉ भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

 

लायक 

आज अचानक माँ का फ़ोन आया “सोनी घर आ गई है ।कह रही अब वह नहीं जायेगी ।”

पर बेटा ” आशू फोन करके मना रहा है पर इसका कहना है अलग रहेंगे तो ही मैं वापस आउंगी ।”

आशू का कहना है “मैं माता-पिता को नहीं छोड़ सकता।रहेंगे तो साथ ही रहेंगे।”

यह सब सुनकर हमसे नहीं रहा गया हम उसे  समझाने चले गए।

सब याद आने लगा जब हमने रिश्ता बताया था और माँ ने सब देखकर चन्द दिनों में सोनी की शादी कर दी थी।और माँ शादी करके निश्चिन्त हो गई थीं।परंतु कुछ दिनों बाद से  ही माँ का फोन आता रहता सोनी खुश नहीं है आये दिन छोटी -मोटी बात पर विवाद होता रहता है ।आशू तो बस माँ का ही दामन थामे है उसे कुछ दिखाई नहीं देता।

हमने भी फोन पर कहा..” यह क्या कह रही हो ।कुछ नही होता धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा।”

वह बोली “मैं बहुत एडजेस्ट कर रही हूँ दीदी।”

होली का त्यौहार था उन सबको भी बुला लिया। सास, पति, नन्द सभी आये और सबका समझौता करवा दिया। सभी खुश थे और सबसे ज्यादा हम खुश थे,  हमने ही शादी करवाई थी ।जब सब चलने लगे माँ ने सोनी से कहा…” बेटा अब अच्छे से रहना छोटी-छोटी बाते तो होती रहती है इतना सुनते ही सोनी बोली .. सास की और इशारा करके “इनका मुंह बंद रहे तो सब ठीक है।”

इतना सुनते ही उन्होंने विदा का सामान पटका और बेटे को बोली …”चल बेटा अब इसको यहीं रहने दे ये हमारे लायक नहीं है।”

© डॉ भावना शुक्ल

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हिन्दी साहित्य – कविता – मकड़-जाल – श्री सुरेश पटवा

श्री सुरेश पटवा
मकड़-जाल। 
(दीपावली  पर तन्हा दम्पत्ति को समर्पित)
संतान! हाँ संतान की हर उम्र की
होतीं अलग-अलग समस्याएँ
शैशव, बचपन, किशोर, युवा, प्रौढ़
रेशमी धागे हैं एक जाल के
देखा है हर माँ-बाप ने पाल कर।
परेशानियों से लड़ते
पल-पल क्षण-प्रतिक्षण
उलझते, सुलझते
एक-एक क़दम रखते
वे संभाल-संभाल कर।
संतान को समस्या की तरह
समस्या को संतान की तरह
उलट-पुलट कर परखते
बढ़िया से बढ़िया हल ढूँढते
हर नज़र से देख भाल कर।
दिक़्क़तों पर दिक़्क़तें सुलझाते
तन मन धन से
सुलगते देह दिमाग़ से
सब जानते समझते
उलझते जाते जान कर।
भुनभुनाते खीझते चिल्लाते
उलझते जाते महीन रेशों में
ख़ुद के बनाए घरोंदे में
गुज़ारते समय
एक-एक साल कर।
उन्हें जीवन देने में
फिसलती जाती
जीवन मुट्ठी से रेत
रीते-हाथ थके-पाँव
बैठे अब निढ़ाल कर।
लड़का-बहु अमेरिका में व्यस्त
बेटी-दामाद बैंगलोर में मस्त
हम अपने बुने जाल में क़ैद
सूनी दीवारों पर तैर रहे
साँस संभाल-संभाल कर।
हाँ! हम मकड़ी हैं
बुनते मोह का ख़ुद जाल
उलझते जाते उसमें
धन दौलत भाव तृष्णा
अकूत डालकर।
बचपन की बगिया में
जवानी की खटिया में
कमाई के कोल्हू में
बुने थे जो ख़्वाब
बिखर गए निस्सार कर।
© सुरेश पटवा

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योग-साधना LIFESKILLS/जीवन कौशल-20 –SHRI JAGAT SINGH BISHT

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Gross National Happiness, or GNH, is a holistic and sustainable approach to development, which balances material and non-material values with the conviction that humans want to search for happiness. The objective of GNH is to achieve a balanced development in all the facets of life that are essential; for our happiness.
LifeSkills

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा – मानसिकता/मंहगे दीये – डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

दीपावली पर विशेष 


डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

मानसिकता/मंहगे दीये

दीपावली से दो दिन पहले खरीदारी के लिए वो सबसे पहले पटाखा बाजार पहुंचा। अपने एक परिचित की दुकान से चौगुनी कीमत पर एक हजार के पटाखे खरीदे।

फिर वह शॉपिंग सेंटर पहुंचा, यहां मिठाई की सबसे बड़ी दुकान पर जाकर डिब्बे सहित तौली गई हजार रूपये की मिठाई झोले में डाली।

इसके बाद पूजा प्रसाद के लिए लाई-बताशे, फल-फूल और रंगोली आदि खरीदकर शरीर में आई थकान मिटाने के लिए पास के कॉफी हाउस में चला गया।

कुछ देर बाद कॉफी के चालीस रूपये के साथ अलग से बैरे की टीप के दस रूपये प्लेट में रखते हुए बाहर आया और मिट्टी के दीयों की दुकान की ओर बढ़ गया।

“क्या भाव से दे रहे हो यह दीये?”

“आईये बाबूजी, ले लीजिये, दस रूपये के छह दे रहे हैं।”

“अरे!  इतने महंगे दीये, जरा ढंग से लगाओ, मिट्टी के दीयों की इतनी कीमत?”

“बाबूजी, बिल्कुल वाजिब दाम में दे रहे हैं। देखो तो, शहर के विस्तार के साथ इनको बनाने की मिट्टी भी आसपास मुश्किल से मिल पाती है। फिर इन्हें बनाने सुखाने में कितनी झंझट है। वैसे भी मोमबत्तियों और बिजली की लड़ियों के चलते आप जैसे अब कम ही लोग दीये खरीदते हैं।”

“अच्छा ऐसा करो, दस रूपये के आठ लगा लो।”

दुकानदार कुछ जवाब दे पाता इससे पहले ही वह पास की दुकान पर चला गया। वहाँ भी बात नहीं बनी। आखिर तीन चार जगह घूमने के बाद एक दुकान पर मन मुताबिक भाव तय कर वह अपने हाथ से छांट-छांट कर दीये रखने लगा।

“ये दीये छोटे बड़े क्यों हैं? एक साइज में होना चाहिए सारे दीये।”

“बाबूजी, ये दीये हम हाथों से बनाते हैं, इनके कोई सांचे नहीं होते इसलिए….”

घर जाकर पत्नी के हाथ में सामान का झोला थमाते हुए वह कह रहा था –

“ये महंगाई पता नहीं कहा जा कर दम लेगी। अब देखों ना, मिट्टी के दीयों के भाव भी आसमान छूने लगे हैं।”

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’


 

दीपावली पर विशेष 

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