हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #1 ☆ अनचीन्हे रास्ते ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  हम डॉ.  मुक्ता जी  के  हृदय से आभारी हैं , जिन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के लिए हमारे आग्रह को स्वीकार किया।  अब आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनों से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  “अनचीन्हे रास्ते”। डॉ मुक्ता जी के बारे में कुछ  लिखना ,मेरी लेखनी की  क्षमता से परे है।  )  

डॉ. मुक्ता जी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय –

  • राजकीय महिला महाविद्यालय गुरुग्राम की संस्थापक और पूर्व प्राचार्य
  • “हरियाणा साहित्य अकादमी” द्वारा श्रेष्ठ महिला रचनाकार के सम्मान से सम्मानित
  • “हरियाणा साहित्य अकादमी “की पहली महिला निदेशक
  • “हरियाणा ग्रंथ अकादमी” की संस्थापक निदेशक
  • पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रणव मुखर्जी जी द्वारा ¨हिन्दी  साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार” से सम्मानित ।  डा. मुक्ता जी इस सम्मान से सम्मानित होने वाली हरियाणा की पहली महिला हैं।
  • साहित्य की लगभग सभी विधाओं में आपकी 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कविता संग्रह, कहानी, लघु कथा, निबंध और आलोचना पर लिखी गई आपकी पुस्तकों पर कई छात्रों ने शोध कार्य किए हैं। कई छात्रों ने आपकी रचनाओं पर शोध के लिए एम फिल और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं।
  • कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित
  • सेवानिवृत्ति के बाद भी आपका लेखन कार्य जारी है और कई पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं।

☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – #1 ☆

☆ अनचीन्हे रास्ते ☆

मैं जीना चाहती हूं

अनचीन्हे रास्तों पर चल

मील का पत्थर बनना चाहती हूं

क्योंकि लीक पर चलना

मेरी फ़ितरत नहीं

मुझे पहुंचना है,उस मुक़ाम पर

जो अभी तक अनदेखा है

अनजाना है

जहां तक पहुंचने का साहस

नहीं जुटा पाया कोई

 

मैं वह नदी हूं

जो राह में आने वाले

अवरोधकों को तोड़

सबको एक साथ लिए चलती

विषम परिस्थितियों में जीना

संघर्ष की राह पर चलना

पर्वतों से टकराना

सागर की लहरों से

अठखेलियां करना

आगामी आपदाओं की

परवाह न करते हुए

तटस्थ भाव से बढ़ते जाना

 

‘एकला चलो रे’

मेरे जीवन का मूल-मंत्र

आत्मविश्वास मेरी धरोहर

सृष्टि-नियंता में आस्था

मेरे जीवन का सबब

उसी का आश्रय लिए

उसी का हाथ थामे

निरंतर आगे बढ़ी हूँ

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

 

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हिन्दी साहित्य- पुस्तक समीक्षा – ☆ कोहरे में सुबह ☆ श्री ब्रजेश कानूनगो – (समीक्षक – श्री दीपक गिरकर)

काव्य संग्रह  – कोहरे में सुबह – श्री ब्रजेश कानूनगो  

 

☆ उम्मीदों की रोशनी से जगमग करने वाला समकालीन रचनाओं का एक अनूठा काव्य संग्रह है “कोहरे में सुबह” ☆

 

“कोहरे में सुबह” चर्चित वरिष्ठ कवि-साहित्यकार श्री ब्रजेश कानूनगो की कविता यात्रा का चौथा पड़ाव हैं। इसके पूर्व इनके “धूल और धुएं के परदे में” (1999), “इस गणराज्य में” (2014), “चिड़िया का सितार” (2017) काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। “कोहरे में सुबह” एक ऐसा कविता संग्रह है जो कई मुद्दों और विषयों पर प्रकाश डालता है। श्री ब्रजेश कानूनगो ने अपने कविता संग्रह “कोहरे में सुबह” में अपने जीवन के कई अनुभवों को समेटने की कोशिश की है। “कोहरे में सुबह” उलझन भरे कोहरे में उम्मीदों की रोशनी से जगमग करने वाला एक अनूठा काव्य संग्रह है। ब्रजेशजी ज़मीन से जुड़े हुए एक वरिष्ठ कवि है। इस संग्रह में प्रकृति, प्रेम, गाँव और ग्रामीण जीवन की स्थितियों को अभिव्यक्त करती कविताएं हैं। यह समकालीन कविताओं का एक सशक्त दस्तावेज़ है। इस संग्रह की हर रचना पाठकों और साहित्यकारों को प्रभावित करती है। इस संकलन में 70 छोटी-बड़ी कविताएं संकलित हैं।

इस संग्रह की शीर्षक कविता कोहरे में सुबह में कवि कहते है “सुबह का रैपर हटेगा / तो दिखाई देगी तश्तरी में छपी तस्वीर”। वे एक ऐसा दृश्य रचते है जिसमें पाठक कल्पनाओं के लोक में खो जाता है। आजकल रिश्ते जीवंतता खोते जा रहे हैं। इंतजार करती माँ, घर की छत पर बिस्तर, क्षमा करें इत्यादि भावपूर्ण कविताएं रिश्तों की अहमियत पर प्रकाश डालती हैं। उसका आना  कविता  की  पंक्तियाँ “रात को आई है सुबह की तरह / लगता है गई ही नहीं थी कभी यहां से” बेटी के घर आने पर उनके द्वारा लिखी गई कविता बेटी के प्रति एक पिता के लगाव को महसूस कराती है।

एक टुकड़ा गाँव एवं छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे को उनके इस काव्य संग्रह की सबसे सशक्त कविताएं कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक टुकड़ा गाँव  कविता की पंक्तियाँ “पढ़ता हूं अख़बार में जब विकास की कोई नई घोषणा एक गाँव मेरे भीतर मिटने लगता है छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे नामक कविता पाठकों को अंदर तक झकझोर देती हैं। ग्रामीण परिवेश इन कविताओं में बोलता-बतियाता सुना जा सकता हैं। महानगरों में आजकल चारो ओर सीमेंट के जंगल ही जंगल दिखाई देते है और बिल्डरों द्वारा जो विशाल अट्टालिकाएं बनाई जा रही है उनमें जो मजदूर काम कर रहे है वे गाँवों से ही इन महानगरों में आए हैं। इन मजदूरों ने खाली पड़े हुए ज़मीन के टुकड़ों पर छोटी-छोटी टापरी बना ली हैं और अपने परिवार के साथ मस्ती में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह देखकर कवि को अपने गाँव की और अपने बचपन की बातें याद आ जाती हैं। इस कविता संग्रह की कुछ कविताएं कवि के गाँव के साथ लगाव को उजागर करती हैं। कवि ने इन कविताओं के माध्यम से सही प्रश्न उठाया है कि जिसे हम आज विकास का नाम दे रहे है क्या इससे गाँवों में आर्थिक समृद्धि होगी? आज विकास के नाम पर आपसी रिश्तों के बीच खोखले विकास की दीवार खड़ी हो गई है। इन कविताओं में ब्रजेशजी की बैचेनी और व्यथा महसूस की जा सकती है।

आभासी दुनिया में, तुम लिखो कवि, चीख आदि कविताओं में ब्रजेशजी कला और साहित्य के प्रति व्यथित दिखते है। धर्म के नाम पर हिदुस्तान में इंसानों के बीच जो नफ़रत की दीवार खड़ी की जा रही है उस पर भी छोंक रचना में “ये कौन-सा छोंक लगाया है / कि धुँआ-धुँआ सा हो गया है चारों तरफ” कवि की चिंता अभिव्यक्त होती है। जहाँ पर्यटक की तरह कविता में कवि अपने घर को ही तीर्थ स्थान मानता है, छुट्टियों में अपने घर पर ही तरोताजा होने के लिए आता है और अपने माता-पिता के घर को ही चार धाम समझता हैं क्योंकि उसे घर में ही शांति मिलती है। पतंगबाज़ी कविता में उल्लास-उमंग के साथ-साथ हार-जीत का दर्शन है। संग्रह की कविता चीख एवं गारमेंट शो रूम में व्यंग्य है क्योंकि कवि एक व्यंग्यकार भी है। कवि के तीन व्यंग्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। गारमेंट शो रूम में कविता में उपभोक्तावादी संस्कृति की चकाचौंध पर गहरा कटाक्ष है। इस कविता में कवि कहते है जगमगाते जंगल में कटे सरों के भूत / अपनी टांगों की तलाश में हेन्गरों पर अनगिनत लटके थे” भरा हुआ इस संग्रह की एक ऐसी विशिष्ठ रचना है जो पाठकों को मानवीय संवेदनाओं के विविध रंगों से रूबरू करवाती है पुस्तक मेले में दिख गए गौरीनाथ के पास बैठे विष्णु नागर / साथ आने को कहा तो स्टाल से उतर कर तुरंत चले आए मेरे साथ” प्रेम एवं रिश्तों में जीवंतता को अभिव्यक्त करती यह कविता पाठकों को प्रेम, रिश्ते और मानवीय संवेदनाओं से अभिभूत कर देती है। वैसे इस संग्रह की सभी कविताएं मानवीय संवेदनाओं से भरी हुई हैं। डायरी, देहरी की ठोकर और चकमक कविताओं में कवि के मन के भीतर चल रही उठा पटक महसूस की जा सकती है।

ब्रजेशजी की लेखनी का कमाल है कि उनकी रचनाओं में वस्तु, दृश्य, संदेश, शालीनता और मर्यादा सभी मौजूद है एवं उनके कहने का अंदाज भी निराला है क्योंकि वे एक व्यंग्यकार भी है। ब्रजेश जी की कविताओं में गहरी सोच, वैचारिक सूझ एवं उनकी अपनी शालीनता प्रतिबिंबित होती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कविता ब्रजेश जी की आत्मा में रची-बसी है। कवि की रचनाओं में आदि से अंत तक आत्मिक संवेदनशीलता व्याप्त है। संग्रह की रचनाएं ह्रदय में गहरे चिन्ह छोड़ जाती है। कवि की रचनाओं में जीवन के तमाम रंग छलछलाते नज़र आते हैं। संग्रह की सभी कविताएं कथ्य और शिल्प के दृष्टिकोण से नए प्रतिमान गढ़ती है।

कोहरे में सुबह बोधि प्रकाशन का उत्कृष्ट प्रकाशन है। 120 पृष्ठ का यह कविता संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता है। यह काव्य संग्रह सिर्फ़ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है। यह काव्य संग्रह भारतीय कविता के परिदृश्य में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल हुआ है।

पुस्तक  : कोहरे में सुबह

लेखक   : ब्रजेश कानूनगो

प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा, इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर-302006

मूल्य   : 120 रूपए

पेज    : 120

 

दीपक गिरकर, समीक्षक

28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड, इंदौर- 452016

मोबाइल : 9425067036

मेल आईडी : [email protected]

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ समाजपारावर एक विसावा…. !#1 – पुष्प पहिले …. ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।  कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए कविराज विजय जी ने यह साप्ताहिक स्तम्भ “समाजपारावर एक विसावा…. !” शीर्षक से लिखने के लिए  हमारेआग्रह को स्वीकार किया, इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। अब आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  आज इस लेखमाला की शृंखला में पढ़िये “पुष्प पहिले ….”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समाजपारावर एक विसावा #-1 ☆

 ☆ पुष्प पहिले .. .  ☆

समाज पारावर माणूस माणसाला भेटतो. माणसाचे अंतरंग  उलगडून  एक समाज स्पंदन वेचण्याचा अनोखा प्रयत्न या स्तंभलेखनातून  करणार आहे संवादी माध्यमातून सोशल नेटवर्किंग साईट वरुन वैचारिक देवाणघेवाण होत आहे.

*अक्षरलेणी* या कवितासंग्रहाच्या  दोन यशस्वी  आवृत

माणूस माणसाला घडवतो,  बिघडवतो आणि सोबत घेऊन  अनेक विकासकामे करू शकतो. प्रत्येक व्यक्तीचे विचार वेगवेगळे असतात. विचार पटले की संवाद घडतो. संवादातून नियोजन आखणी केली जाते.  कार्य कौटुंबिक  असो, सांस्कृतिक  असो,  साहित्यिक  असो परस्परांशी साधलेला संवाद महत्वाचा ठरतो.

हा संवाद व्यक्तीशी संस्कारीत जडण घडण त्याला जीवन प्रवासात नवनवीन वाटा उपलब्ध करून देतो. समाज प्रियतेच किंवा समाजाभिमुख रहाण्याच वरदान माणसाला जन्मजात लाभले आहे.

समाज समाज म्हणजे नेमके काय?  समाज म्हणजे कोणतीही जात नव्हे,  कोणताही पंथ नव्हे. व्यक्ती स जन्म देणारे त्याचे आई वडील हा पहिला समाज.

बालपणात संपर्कात  आलेले समवयस्क सवंगडी,  शाळू सोबती हा दुसरा समाज,  जीवनाच्या कुठल्याही टप्प्यावर ज्ञानदान करणारे गुरूजन हा तिसरा समाज,  बालपण, तारूण्य, वृद्धावस्था यात सुखदुःखात सामिल होणारा चौथा समाज,  आणि  आपल्या कार्यकर्तृत्वाच्या प्रभावाने प्रेरित होऊन त्याचे बरे वाईट परिणाम भोगणारा  पाचवा समाज माणसाला सतत जाणीव करून देतो. तो माणूस  असल्याची.

माणसाचं माणूसपण त्याच्या आचारविचारात, दैनंदिन लेखन कला व्यासंगात,त्याच्या कार्य कर्तृत्वात आणि माणसाने माणसावर ठेवलेल्या विश्वासात अवलंबून असते. हा विश्वास माणसाला धरून रहातो तेव्हा तो माणूस समाजप्रिय होतो. समाज प्रिय माणसे जीवनात यशस्वी झाली की आपोआप समाजाभिमुख होतात. हा समाज तेव्हा माणसाला नवा विचार देतो. विचारांची दिशा त्याला कार्यप्रवण ठेवते. त्याच्या या जीवनप्रवात कुठे तरी आपले माणूस सोबत  असावेसे वाटते.

ही सोबत, हा विसावा  शब्दातून, अक्षरातून, विचारातून, मार्गदर्शनातून  ,प्रोत्साहनातून मनाला जेव्हा मिळते ना तेव्हा ही  अनुभवांची  शिदोरी माणसाला वैचारिक मेजवानी देते. एक निर्भेळ आनंद देते.  हे वैचारिक  खाद्य माणसाला आयुष्यभर पुरते.  त्याचा जीवनप्रवास समृद्ध  करते.  हा विसावा ही वैचारिक बैठक वेगवेगळ्या जीवनानुभुतीतून माणसाला विसावा देते. जगायचे कसे? याचे उत्तर देखील या पारावर सहजगत्या उपलब्ध होते.

माणूस जेव्हा माणसाच्या संपर्कात येतो ना  तेव्हा तो  ख-या अर्थाने विकसित होतो. त्याचे हे विकसन त्याला जगाची सफर घडवून  आणते.  कुठल्याही परिस्थितीत खंबीरपणे जगायला शिकवते. मान, पान, पद, पैसा ,  प्रतिष्ठा मिळवून देण्याचा राजमार्ग याच समाजपाराला वळसा घालून जातो.  इथे जगणे आणि जीवन यातला  सुक्ष्म फरक कळतो आणि माणसाचं जीवन प्रवाही बनते. हा जीवनप्रवाह या शब्द पालवीत जेव्हा विसावला तेव्हा नाविन्यपूर्ण  आणि वैविध्यविपूर्ण  आशय ,विषयांची लेखमाला  आकारास  आली हा विसावा रंजनातून सृजनाकडे वळतो तेव्हा हाच माणूस  माणसाला विचारांचे दान देतो. मानाचे पान देतो. हे  आठवणींचे पान समाज पारावर  रेंगाळते आणि

माणूस माणसाशी जोडला जातो.  हे  एकत्रीकरण,  हे  समाज सक्षमीकरण,  अभिव्यक्ती परीवाराशी या लेखमालेतून संलग्न झाले  आणि  विविध विषयांवरील लेख रसिक सेवेत दाखल  झाले. विविध विषयांवर लेख या लेखमालेतून देणार आहे. हे लेख केवळ  शब्द बंबाळ आलेख नव्हे तर हा  आहे. समाजपार. ह्रदयाचा परीघ. वास्तवाचा  आरसा  आणि शब्दांचे  आलय. . .

तुमच्या  आमच्या  अभिव्यक्ती साठी.. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga with Abercrombie & Kent ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,

 Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Yoga with Abercrombie & Kent

Abercrombie & Kent, the world’s leading authority on luxury and experiential travel, has discovered great value in Laughter Yoga.

Their Executive Vice President Simon Laxton is looking at ways to bring this concept to their annual Las Vegas ‘highest level’ meeting and also the London one. Their Managing director of India, Vikram Madhok, has expressed an interest in using Laughter Yoga for cruise line tours and as part of their India Cultural Lecturer program.

Dr Madan Kataria, the founder of Laughter Yoga movement, deputed us from Indore to showcase Laughter Yoga before senior level executives of Abercrombie & Kent at the picturesque city of Udaipur. Twenty-six delegates had gathered at Hotel Leela Palace Kempinski on the beautiful Pichola lake for their cruise conference 2013.

One of the delegates exclaimed on the completion of the laughter session, “In the beginning, it seemed a bit crazy. Then we started enjoying it. Now, we love it! It was simply fantastic!! We are feeling as free as birds in the sky..”

Another delegate shared his experience thus, “Two simple things that we learned just now – breathing and laughing from our diaphragm – have made us feel so light and relaxed. It’s a great feeling.”

This is what their global cruise ambassador, David Vass, based in Miami, had to say a couple of days after the laughter session, “Thank you for both of your excellent energy, understanding of our group time constraints and the delicious outcome you brought to us! Everybody truly enjoyed this session, especially in the middle of ‘budget day’! We referenced the Laughter yoga techniques throughout the remainder of the conference – making milkshakes, being an elephant and so many of the other happy little bits you supplied us with.”

Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (19) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता )

 

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर ।

असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः ।।19।।

 

अतः काम कर तू अंसग हो,करता रह कर्तव्य मगर

कर विरक्त हो सदा आचरण, चाह परम पद की है गर।।19।।

      

भावार्थ :  इसलिए तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्यकर्म को भलीभाँति करता रह क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।।19।।

 

Therefore, without attachment, do thou always perform action which should be done; for, by performing action without attachment man reaches the Supreme. ।।19।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #1 ☆ मैं ऐसा नहीं ☆ – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। श्री ओमप्रकाश  जी  ने इस साप्ताहिक स्तम्भ के लिए  हमारे अनुरोध को स्वीकार किया इसके लिए हम उनके आभारी हैं । इस स्तम्भ के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  हृदयस्पर्शी लघुकथा “मैं ऐसा नहीं”। )

 

☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #1 ☆

 

☆ मैं ऐसा नहीं ☆

 

वह फिर गिड़गिड़ाया, “साहब ! मेरी अर्जी मंजूर कर दीजिए. मेरा इकलौता पुत्र मर जाएगा.”

मगर, नरेश बाबू पर कोई असर नहीं हुआ, “साहब नहीं है. कल आना.”

“साहब, कल बहुत देर हो जाएगी. मेरा पुत्र बिना आपरेशन के मर जाएगा.आज ही उस के आपरेशन की फीस भरना है. मदद कर दीजिए साहब. आप का भला होगा,” वह असहाय दृष्टि से नरेश की ओर देख रहा था.

“ कह दिया ना, चले जाइए, यहाँ से,” नरेश बाबू ने नीची निगाहें किए हुए जोर से चिल्लाते हुए कहा.

तभी उस का दूसरा साथी महेश उसे पकड़ कर एक ओर ले गया.

“क्या बात है नरेश! आज तुम बहुत विचलित दिख रहे हो.” महेश बाबू ने पूछा, “वैसे तो तुम सभी की मदद किया करते हो ? मगर, इस व्यक्ति को देख कर तुम्हें क्या हो गया?” वह नरेश का अजीब व्यवहार समझ नहीं पाया था.

नरेश कुछ नहीं बोला. मगर, जब महेश बाबू ने बहुत कुरैदा तो नरेश बाबू  ने कहा, “क्या बताऊँ महेश ! यह वही बाबू है, जिस ने मेरी अर्जी रिश्वत  के पैसे नहीं मिलने की वजह से खारिज कर दी थी और मेरे पिता बिना इलाज के मर गए थे.”

“क्या !’’ महेश चौंका.

“हाँ, ये वहीं व्यक्ति है.”

“तब तू क्या करेगा?” महेश ने धीरे से कहा, “जैसे को तैसा?”

“नहीं यार, मैं ऐसा नहीं हूं,” नरेश ने कहा, “मैंने इस व्यक्ति की अर्जी कब की मंजूर कर दी है और इलाज का चैक अस्पताल पहुंचा दिया है. यह बात इसे नहीं  मालूम है.’’ कहते हुए नरेश खामोश हो गया.

महेश यह सुन कर कभी नरेश को देख रहा था कभी उस व्यक्ति को. जब कि वह व्यक्ति माथे पर हाथ रख कर वहीं ऑफिस में बैठा था.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य #1 – राऊळ…. ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। श्री सुजित जी ने हमारे  इस स्तम्भ के आग्रह को स्वीकारा इसके लिए हम उनके आभारी हैं।  अब आप उनकी रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत  प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  राऊळ….”)

 

☆ सुजित साहित्य #1 ☆ 

 

☆ राऊळ…. ☆ 

 

जाऊ नको खचूनीया

टाक पुढेच चाहूल

येते आहे मागावर

सुख शोधीत पाऊल. . . . !

 

सुख सोबती घेताना

नको जाऊ हुरळून

माय तुझी रे पाहते

यश तुझे दारातून. . . . !

 

फुलापरी वाढवले

काळजाच्या तुकड्याला

खाच खळगे पाहून

थोडा जप जीवनाला. . . . !

 

दोन घडीचे जीवन

जन्म मृत्यूचा प्रवास.

नको विसरू मायेचा

एका भाकरीचा घास. . . . !

 

खण जीवनाचा पाया

नको वाकडे पाऊल

यशोमंदिराचे तुझ्या

माय बोलके राऊळ.. . . !

 

© सुजित कदम, पुणे

मोबाइल 7276282626

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Meditation and Guided Relaxation sequence  ☆ Shri Jagat Singh Bisht & Smt Radhika Bisht

Shri Jagat Singh Bisht & Smt Radhika Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Meditation and Guided Relaxation sequence 

We have conducted some sessions of laughter yoga meditation and guided relaxation for the public and the response has been very fulfilling and encouraging. The sessions have enabled a number of participants to come over stress and other ailments. The routine is very effective to overcome stress and fatigue in the corporate world.

While the overall method remains the same as we do during the course of certified laughter yoga teacher / leader training, we give below a sequence that we usually follow. Some exercises are added/omitted looking to the audience and time.

Here we share the sequence with our laughter colleagues:

LAUGHTER MEDITATION SEQUENCE
BREATHING EXERCISES:
DEEP BREATHING, MINDFUL BREATHING, SYNCHRONISED OR DIAPHRAGMATIC BREATHING, ANULOM-VILOM, KAPAL BHATI.

WARMING-UP EXERCISES:
SITTING CALCUTTA LAUGHTER, DEEP BREATHING WITH HOLD IT – HOLD IT.

CHILDLIKE PLAYFULNESS:
VERY GOOD VERY GOOD YAY, GIBBERISH TALKING.

LAUGHTER EXERCISES:
ONE METRE, MILK SHAKE, ALOHA, GURU LAUGHTER, ANTENA, LAUGHTER POINT, LION, BIRD, FORGIVENESS, GRADIENT, HEARTY, SILENT, VOWEL LAUGHTER, JOKE BOOK, ACHES AND PAIN, WIPING SMILE ETC.

LAUGHTER MEDITATION:
FAKE IT UNTIL YOU MAKE IT, VOICE RE-INFORCEMENT , CHILDLIKE GIGGLING, BREATH HOLDING TECHNIQUE, HOLDING YOUR KNEES TOGETHER.
GIBBERISH MEDITATION.
SITTING LAUGHTER MEDITATION, LYING ON YOUR BACK LAUGHTER MEDITATION,ROWING A BOAT, HEAD ON BELLY, BULL’S EYE, CENTIPEDE LAUGHTER.

GROUNDING TECHNIQUES:
HOHO-HAHA GROUNDING DANCE, HUMMING, YOGA NIDRA, EXHALEX, BREATH CONNECT MEDITATION. (any one on each day).

We will be happy to share our experiences with our laughter colleagues and answer any queries that they may have. Love and Laughter!

Radhika and Jagat Singh Bisht
Certified Laughter Yoga Teachers
Indore, India

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (18) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

संजय उवाच:

नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन ।

न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः ।18।।

संजय उवाच:

कर्मो के करने न करने में कुछ स्वार्थ नहीं होता

वैसे ही उसके जीवन में उसका स्वार्थ नही होता।।18।।

भावार्थ : उस महापुरुष का इस विश्व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मों के न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है तथा सम्पूर्ण प्राणियों में भी इसका किञ्चिन्मात्र भी स्वार्थ का संबंध नहीं रहता।18।।

 

For him there is no interest whatsoever in what is done or what is not done; nor does he depend on any being for any object. ।18।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात #1 – निर्मिती प्रक्रिया ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

 

(प्रत्येक कवि की कविता के सृजन के पीछे कोई न कोई तथ्य होता है, जो कवि को तब तक विचलित करता है, जब तक वह उस कविता की रचना न कर ले। और शायद यही उस कविता की सृजन प्रक्रिया है।  किन्तु, इसके पीछे एक संवेदनशील हृदय भी कार्य करता है। ऐसी ही संवेदनशील कवियित्रि सुश्री प्रभा सोनवणे जी  ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर “कवितेच्या प्रदेशात” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने हेतु अपनी सहमति दी है।  इसके लिए हम आपके आभारी हैं।  अब आप प्रत्येक बुधवार को उनकी रचनाओं को पढ़ सकेंगे।

यह सच  है कि- कवि को काव्य सृजन की प्रतिभा ईश्वर की देन है। उनके ही शब्दों में  “काव्य प्रतिभा ही आपल्याला मिळालेली ईश्वरी देणगी आहे हे नक्की!”  आज प्रस्तुत है  काव्य सृजन पर उनका आलेख “निर्मिती प्रक्रिया”)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात ☆

 ☆ निर्मितीप्रक्रिया ☆

 

मला आठवतंय मी पहिल्यांदा कविता लिहिली ती इयत्ता आठवीत असताना हस्तलिखितासाठी, *माँ पाठशाला*  या शीर्षकाची ती हिंदी कविता होती, आठवी ते अकरावी या काळात मी तुरळक हिंदी कविता लिहिल्या, त्या रेडिओ श्रीलंका- रेडिओ लिसनर्स क्लब च्या रेडिओ पत्रिकांमध्ये प्रकाशित ही झाल्या!

१९७० सालापासून कविता सतत माझ्या बरोबर आहे, आयुष्याचा एक अविभाज्य घटक  बनली आहे!

चित्र काव्य, विषयावर आधारित काव्य रचताना, कुठली तरी घटना, स्थळ आपल्या मनात येतं आणि आपण कविता रचत जातो,

आपल्याला आवडलेलं, खुपलेलं, खदखदणारं कवितेत उतरत असतं, मी सकाळ नाट्यवाचन स्पर्धेसाठी ग्रामीण भागात परीक्षक म्हणून जात असताना, नुकतीच घडलेली जवळच्या नात्यातल्या तरूण मुलीच्या  आत्महत्येची घटना मनाला क्लेश देत होती, भोर च्या शाळेत नाट्यवाचनाचे परिक्षण करत असताना अचानक रडू कोसळले आणि तिथेच पहिला शेर लिहिला—

 

*तारूण्यातच कसे स्वतःला संपवले पोरी*

*आयुष्याला असे अचानक थांबवले पोरी*

 

काफिये रदीफ़ काहीच मनात योजले नव्हते, मी एकीकडे नाट्यवाचन ऐकत होते, विद्यार्थ्यांना, नाटकाला गुण देत होते आणि त्याचवेळी मला शेर सुचत होते….

 

बाईपण हे नसेच सोपे वाटा काटेरी

रक्ताने तन मृदूमुलायम रंगवले पोरी

 

आले होते मनात तुझिया स्वप्नांचे पक्षी

गोफण फिरवत कठोरतेने पांगवले पोरी

 

तळहातावर ठळक प्रितीची रेषा असताना

निष्प्रेमाचे दिवस कसे तू घालवले पोरी

 

सौंदर्याला दिलीस शिक्षा क्लेश जिवालाही

परक्यापरि तू स्वतःस येथे वागवले पोरी

 

संपवता तू तुझी कहाणी दोष दिला दैवा

अंगण आता पुन्हा नव्याने सारवले पोरी

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

 

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