मराठी साहित्य – ☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “द लास्ट कोर्टेसान” – लेखक – श्री मनीष गायकवाड़ ☆ परिचय – श्री हर्षल सुरेश भानुशाली ☆

श्री हर्षल सुरेश भानुशाली

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ “द लास्ट कोर्टेसान” – लेखक – श्री मनीष गायकवाड़ ☆ परिचय – श्री हर्षल सुरेश भानुशाली ☆

पुस्तक : द लास्ट कोर्टेसान (मराठी)

लेखक : मनीष गायकवाड

पाने : १९४

मूल्य : ३००₹ 

एक तवायफच्या आयुष्याचा वेगळा पट उलगडणारी कादंबरी…

१९८० च्या दशकात कोठ्यांना अभिजात कलेचा मान मिळत नव्हता. तो अदाकारीच्या वेषात असलेला वेश्याव्यवसाय आहे, अशी समाजाची समजूत होती. त्यामुळे तवायफच्या कलेला नाकारले गेले. अशा काळात रेखाबाईंनी कलकत्ता आणि बॉम्बेमध्ये एक गायन- नृत्य करणारी प्रसिद्ध कलावंत म्हणून नाव कमावले.

तो एक काळ होता, जेव्हा तिला बंदुका, गुंड आणि गालिबच्या गझलांना हुलकावणी देऊन स्वतःची नियती घडवायची होती. मोठ्या कुटुंबाचा गुजारा करायचा होता. शिवाय मुलाला इंग्रजी माध्यमाच्या बोर्डिंग स्कूलमध्ये वाढवायचे होते.

हृदयस्पर्शी आठवणीत, तिने कधीही बेताल न होता आपल्या मुलाजवळ तिच्या जगण्याची भावनांनी ओतप्रोत भरलेली अविश्वसनीय कहाणी प्रामाणिकपणे, औचित्यपूर्ण आणि खेळकर शैलीत कथन केली आहे.

परिचय : श्री हर्षल सुरेश भानुशाली

पालघर 

मो. 9619800030

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 276 ☆ कथा – वजूद ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम हृदयस्पर्शी कथा – ‘वजूद‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 276 ☆

☆ कथा-कहानी ☆ वजूद

नाम आर. एस. वर्मा, उम्र अड़सठ साल, डायबिटीज़ और उसके बाद दिल के रोगी। हैसियत —एक मध्यवर्गीय, पेंशनयाफ्ता, सामान्य आदमी। बच्चों में तीन लड़के और दो लड़कियां हैं, लेकिन वह फिलहाल पत्नी के साथ एक पुराने बेमरम्मत मकान में रहते हैं। अकेले क्यों रहते हैं और उनका इतिहास और संबंध-वृत कितना बड़ा है इस सब में जाने से कोई फायदा नहीं है। अब तो बस इतना महत्वपूर्ण है कि वह साढ़े पांच फुट जरबे दो फुट जरबे आठ इंच के चलते-फिरते इंसान हैं।

जिस दिन की बात कर रहा हूं उस दिन वर्मा जी बैंक के लिए निकले थे। बैंक बहुत दूर नहीं था, लेकिन शहर में दूरियां बड़ी होती हैं और कमज़ोर, बीमार आदमी के लिए वे और भी बड़ी हो जाती हैं। आदमी की पैदल चलने की आदत भी अब पहले जैसी नहीं रही। इसलिए वर्मा जी रिक्शे में गये और बैंक का काम निपटाया।

लौटते में रिक्शे वालों से पूछा तो लगा किराया ज़्यादा मांग रहे हैं। बैंक से थोड़ा आगे पुल था। सोचा पुल उतर लें तो किराया कम लगेगा। पैदल चल दिये। अब तक दोपहर हो गयी थी और सूरज ऐन उनके सिर पर चमकने लगा था। पुल चढ़ते-चढ़ते ही सामने के दृश्य अस्पष्ट और अजीब होने लगे। चलने में संतुलन गड़बड़ाने लगा तो उन्होंने पुल की दीवार का सहारा लिया। फुटपाथ को थोड़ा उठा दिया गया था, इसलिए वाहनों से कुचले जाने का भय नहीं था। लेकिन वह ज़्यादा देर तक खड़े नहीं रह सके। उनके पांव धीरे-धीरे खिसकने लगे और जल्दी ही  वह दीवार से टिके, बैठने की मुद्रा में आ गये। उनका सिर उनकी छाती पर झुका हुआ था और आंखें बन्द थीं।

आर. एस. वर्मा का इस तरह बीमार होकर बैठ जाना गंभीर और महत्वपूर्ण घटना थी। वह कभी एक सरकारी मुलाज़िम रहे थे और बत्तीस साल तक अपनी कुर्सी पर बैठकर उन्होंने अनेक मामले निपटाये थे। दफ्तर में अनेक लोगों से उनके नज़दीकी रिश्ते रहे थे। वह किसी के पिता, किसी के पति, किसी के भाई, किसी के दादा, किसी के नाना, बहुतों के रिश्तेदार और परिचित थे। लेकिन फिलहाल इन सब बातों का कोई महत्व नहीं था क्योंकि वह भीड़भाड़ वाले उस पुल की दीवार से टिके साढ़े पांच फुट जरबे दो फुट जरबे आठ इंच के बेनाम शख्स थे।

पुल पर लोगों का सैलाब गुज़र रहा था। साइकिल वाले, स्कूटर वाले, मोटर वाले, रिक्शे वाले और पैदल लोग। ज़्यादातर लोगों की नज़रें चाहे अनचाहे इस बैठे हुए लाचार इंसान पर पड़ती थीं, लेकिन सभी उस तरफ से नज़रें फेर कर फिर सामने की तरफ देखने लगते थे। एक तो इस तरह के दृश्य इतने आम हो गये हैं कि आदमी उन्हें देखकर ज़्यादा विचलित नहीं होता, दूसरे सभी को कोई न कोई काम था और उनके पास एक अजनबी बीमार की परिचर्या का समय नहीं था। तीसरे यह कि एक मरणासन्न दिख रहे आदमी के पास जाकर पुलिस के पचड़े में कौन पड़े।

लाचार आर.एस. वर्मा वैसे ही पड़े रहे और वक्त गुज़रता गया। लेकिन यह सीमित दायरे में पड़ा शरीर वस्तुतः उतना सीमित नहीं था जितना आप समझ रहे हैं। उनके शरीर से स्मृति- तरंगें निकलकर सैकड़ो मीलों के दायरे में एक विशाल ताना-बाना बुन रही थीं।

पहले दिमाग़ में एक दृश्य आया जब वे और बड़े भैया आठ दस साल की उम्र के थे और अपने नाना के गांव गये थे। नाना ज़मींदार थे और हर साल रामलीला कराते थे। उन्हीं के भंडार- गृह से धनुष-बाण निकालकर दोनों भाई खेलने लगे। बड़े भैया ने उनकी तरफ तीर साधा और अचानक वह उनकी पकड़ से छूटकर वर्मा जी की आंख में आ लगा। नाना, नानी, मां सब भागे आये और बड़े भैया की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। सौभाग्य से पुतली बच गयी थी, इसलिए इलाज से आंख बच गयी। वे दृश्य आज उनकी आंखों के सामने साफ-साफ घूम रहे थे।

जीजी के ब्याह का दृश्य सामने आ गया। मां और बाबूजी विदा के वक्त कितने दुखी थे। वर्मा जी के लिए विछोह का यह पहला अनुभव था। पहली बार यह महसूस करना कि अब जीजी पहले की तरह इस घर में कभी नहीं रह पाएंगीं। जीजाजी तब कैसे तगड़े, समर्थ दिखते थे।

स्मृति कॉलेज और हॉस्टल के दिनों की तरफ घूम गयी। एकाएक दोस्त सआदत का चेहरा उभर आया। कैसा अजीब इंसान था। उसने भांप लिया था कि वर्मा जी की माली हालत ठीक नहीं है, इसलिए जब अपने लिए कपड़े सिलवाता तो दो जोड़ी सिलवाता और उन्हें ज़बरदस्ती पहनाता। दोनों का नाप एक ही था।

वह दृश्य जब वे अपने जूतों में पॉलिश करने के लिए बैठते थे और उनके कमरे के और बगल के कमरे के सब साथी अपने-अपने जूते उनके सामने पटक जाते। मेस में थालियों के सामने बैठकर कोलाहल करते साथी और उनके बीच पसीना बहाते घूमते ठेकेदार पंडित जी। एक पूरी रील उनकी आंखों के सामने चल रही थी। जैसे कोई उपग्रह था जिसकी तरंगें कई स्थानों को एक साथ छू रही थीं।

फिर मंडप में अपनी शादी का दृश्य सामने आ गया। पहली बार पत्नी का हाथ हाथ में आया तो उनके शरीर में बिजली सी दौड़ गयी थी। किसी लड़की को ‘उस तरह’ से छूने का उनका वह  पहला अनुभव था।

फिर पैतृक मकान के बंटवारे पर तमतमाया बड़े भैया का चेहरा उभरा। पास ही बांहों में सिर देकर रोती मां।

फिर बड़े बेटे वीरेन्द्र का चालाक चेहरा सामने आ गया। उनकी ग्रेच्युटी मिलने के बाद उसने दस बहाने लेकर उनके चक्कर काटने शुरू कर दिये थे। उसे अपने लिए अलग मकान बनाना था। उसकी देखादेखी अपनी अपनी मांग रखते महेन्द्र और देवेन्द्र कि यदि बड़े भाई को पैसे दिए जाएं तो उन्हें भी क्यों नहीं? फिर पैसे न मिलने पर क्रोध से विकृत वीरेन्द्र का चेहरा। फिर बेटों के अलग हो जाने से व्यथित पत्नी का उदास चेहरा।

तीन घंटे बाद उधर से गुज़रने वालों ने देखा कि पुल से टिका यह आदमी बायीं तरफ को झुक कर अधलेटा हो गया था। यह कोई भी समझ सकता था कि तीन घंटे तेज़ धूप के नीचे लावारिस हालत में पड़े रहने से इस आदमी की हालत और बिगड़ी थी। शायद अब भी वर्मा जी को बचाया जा सकता था, लेकिन अभी तक उनके पास कोई रुका नहीं था।

वर्मा जी के दिमाग़ के दृश्य अब अस्पष्ट और तेज़ हो गये थे। दृश्यों की रील अनियंत्रित, अव्यवस्थित दौड़ी जा रही थी। मां, बाबूजी, पत्नी, पुत्रों, पुत्रियों, दोस्तों के चेहरे गड्डमड्ड हो रहे थे। अब उन चेहरों से अपना संबंध जोड़ना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। चेहरे उभरते थे और हंसते, मुस्कुराते या रोते, उदास विलीन  हो जाते थे। कहीं से आवाज़ें उठ रही थीं, कभी मां की, कभी बाबूजी की, कभी पत्नी की। फिर सब कुछ धुंधला होने लगा और आवाज़ें दूर और दूर जाते जाते हल्की होने लगीं।

वर्मा जी का सिर अब ज़मीन पर टिका था और शरीर में जीवन का कोई चिह्न दिखायी नहीं देता था। स्मृति-तरंगों का विशाल जाल सिमट कर उनके शरीर में लुप्त हो गया था। उपग्रह से तरंगों का प्रवाह रुक गया था। अब सचमुच वर्मा जी का वजूद सिर्फ साढ़े पांच फुट जरबे दो फुट जरबे आठ इंच क्षेत्र तक सीमित हो गया था।

दूसरे दिन वर्मा जी का शरीर वहां नहीं था। शायद उनकी पत्नी को खबर मिली हो और वह उन्हें उठवा ले गयी हों, या कोई पड़ोसी उन्हें पहचान कर उन्हें ले गया हो, या फिर कोई भला आदमी उन्हें उस हालत में देखकर किसी डॉक्टर के पास ले गया हो। अन्तिम संभावना यह हो सकती है कि पुलिस उस लावारिस लाश को ले गयी हो और कल के अखबारों में उसके बारे में संबंधियों को सूचित करने के लिए फोटो सहित खबर छपे। जो भी हो, वर्मा जी का वजूद अब उतना ही था जितने वह दिखायी देते थे।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ गद्य क्षणिका – आत्मकथ्य – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय गद्य क्षणिका “– आत्मकथ्य –” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ गद्य क्षणिका ☆ — आत्म कथ्य — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

मैं अपनी इस उम्र तक विद्वानों की अपेक्षा अशिक्षितों के बीच अधिक रहा हूँ। उनसे मिली हुई भाषा मेरे लेखन की आत्मा है। अपनी ओर से मैं ऐसा करता हूँ उसमें कुछ तर्क और व्याकरण का मुलम्मा चढ़ा देता हूँ। बात ऐसी है मेरे ध्यान में विद्वान रहते हैं। मेरे लेखन का वास्तविक परीक्षण यहीं होता है। विद्वानों में मेरा लेखन मान्य हो जाए तो स्वयं विद्वान हो जाऊँ, अन्यथा मेरे अपने परिवेश के अशिक्षित तो मेरे अपने हैं ही।
***
© श्री रामदेव धुरंधर

13 – 10 – 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 277 – बिखराव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 277 बिखराव… ?

आगे दुकान, पीछे मकान वाली शैली की एक फुटकर दुकान से सामान खरीद रहा हूँ।  दुकानदार सामूहिक परिवार में रहते हैं। पीछे उनके मकान से कुछ आवाज़ें आ रही हैं। कोई युवा परिचित या रिश्तेदार परिवार आया हुआ है। आगे के घटनाक्रम से स्पष्ट हुआ कि आगंतुक एकल परिवार है।

आगंतुक परिवार की किसी बच्ची का प्रश्न कानों में पिघले सीसे की तरह पड़ा, ‘दादी मीन्स?’ इस परिवार की बच्ची बता रही है कि दादी मीन्स मेरे पप्पा की मॉम। मेरे पप्पा की मॉम मेरी दादी है।… ‘शी इज वेरी नाइस।’

कानों में अविराम गूँजता रहा प्रश्न ‘दादी मीन्स?’ ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की संस्कृति में कुटुम्ब कितना सिमट गया है! बच्चों के सबसे निकट का दादी- नानी जैसा रिश्ता समझाना पड़ रहा है।

सामूहिक परिवार व्यवस्था के ढहने के कारणों में ‘पर्सनल स्पेस’ की चाहत के साथ-साथ ‘एक्चुअल स्पेस’ का कम होता जाना भी है। ‘वन या टू बीएचके फ्लैट, पति-पत्नी, बड़े होते बच्चे, ऐसे में अपने ही माँ-बाप अप्रासंगिक दिखने लगें तो क्या किया जाए? यूँ देखें तो जगह छोटी-बड़ी नहीं होती, भावना संकीर्ण या उदार होती है। मेरे  ससुर जी बताते थे  कि उनके गाँव जाते समय दिल्ली होकर जाना पड़ता था। दिल्ली में जो रिश्तेदार थे, रात को उनके घर पर रुकते। घर के नाम पर कमरा भर था पर कमरे में भरा-पूरा घर था।  सारे सदस्य रात को उसी कमरे में सोते तो करवट लेने की गुंज़ाइश भी नहीं रहती तथापि आपसी बातचीत और ठहाकों से असीम आनंद उसी कमरे में हिलोरे लेता।

कालांतर में समय ने करवट ली। पैसों की गुंज़ाइश बनी पर मन संकीर्ण हुए। संकीर्णता ने दादा-दादी के लिए घर के बाहर ‘नो एंट्री’ का बोर्ड टांक दिया। दादी-नानी की कहानियों का स्थान वीडियो गेम्स ने ले लिया। हाथ में बंदूक लिए शत्रु को शूट करने के ‘गेम’, कारों के टकराने के गेम, किसी नीति,.नियम के बिना सबसे आगे निकलने की मनोवृत्ति सिखाते गेम।  दादी- नानी की लोककथाओं में परिवार था, प्रकृति थी, वन्यजीव थे, पंछी थे, सबका मानवीकरण था। बच्चा तुरंत उनके साथ जुड़ जाता। प्रसिद्ध साहित्यकार निर्मल वर्मा ने कहा था, “बचपन में मैं जब पढ़ता था ‘एक शेर था’, सबकुछ छोड़कर मैं शेर के पीछे चल देता।”

शेर के बहाने जंगल की सैर करने के बजाय हमने इर्द-गिर्द और मन के भीतर काँक्रीट के जंगल उगा लिए हैं। प्राकृतिक जंगल हरियाली फैलाता है, काँक्रीट का जंगल रिश्ते खाता है। बुआ, मौसी, के विस्थापन से शुरू हुआ संकट दादी-नानी को भी निगलने लगा है।

मनुष्य के भविष्य को अतीत से जोड़ने का सेतु हैं दादी, नानी। अतीत अर्थात अपनी जड़। ‘हरा वही रहा जो जड़ से जुड़ा रहा।’ जड़ से कटे समाज के सामने ‘दादी मीन्स’ जैसे प्रश्न आना स्वाभाविक हैं।

अपनी कविता स्मरण आ रही है,

मेरा विस्तार तुम नहीं देख पाए,

अब बिखराव भी हाथ नहीं लगेगा,

मैं बिखरा ज़रूर हूँ, सिमटा अब भी नहीं…!

प्रयास किया जाए कि बिखरे हुए को समय रहते फिर से जोड़ लिया जाए। रक्त संबंध, संजीवनी की प्रतीक्षा में हैं। बजरंग बली को नमन कर क्या हम संजीवनी उपलब्ध कराने का बीड़ा उठा सकेंगे?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 222 – हे नारी! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 221 ☆

☆ हे नारी! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हे नारी!

हो आद्य सुमन तुम

सुरभित करतीं सृष्टि सकल।

आद्य शक्ति हो,

ध्वनि-तरंग, लय से

रचना नित करो नवल।

कर्दम को

शतदल कर घोलो

श्वास-श्वास में नव परिमल।

त्रास-हास में

समभावी हो

रास-लास सृजतीं पल-पल।

तुम गौरी

काली कंकाली

कल-अब-कल की हो कल-कल।

तुम ही

भोग-भोग्या-भोजक

चंचल तुम्हीं, तुम्हीं निश्चल।

साध्य-साधना

साधक तुम ही,

तुम्हीं कलुष, तुम हो निर्मल।

सरला विमला

अमला तरला

वाष्प तुम्हीं हिम तुम्हीं सलिल।

पूजा पूजक

पूज्य तुम्हीं हो

तुम ही अमृत, तुम्हीं गरल।

तीन लोक में

दसों दिशा में

तुम ही निर्बल, तुम्हीं सबल।।

प्रात प्रार्थना,

संध्या वंदन,

निशा-गान हो, तुम अविकल।

प्रणति तुम्हें है

हे नर संगिनी!

तुमसे कुटिया राजमहल।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 601 ⇒ जगजीत सिंह के सुर और निदा फजली के गीत ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जगजीत सिंह के सुर और निदा फजली के गीत।)

?अभी अभी # 601 ⇒ जगजीत सिंह के सुर और निदा फजली के गीत ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आज प्रसिद्ध शायर निदा फाजली की पुण्यतिथि और ग़ज़ल गायकी के जादूगर जगजीतसिंह का जन्मदिन है। पहले गीत जन्म लेता है,फिर गायक उसे अपना स्वर देता है। इन दोनों के लिए ही शायद पहले कभी कहा गया होगा ;

तेरे सुर और मेरे गीत

आज बनेंगे दोनों मीत

जी हां ! ये दोनों मीत ही थे । मित्र ही को तो मीत कहते हैं। हर गीतकार की यही दिली तमन्ना होती है कि उसके गीत अमर जो जाएं ;

होठों को छू लो तुम,

मेरे गीत अमर कर दो

और निदा फ़ाज़ली की जितनी भी ग़ज़लों को इस पारस ने बस,छू भर दिया, उनकी किस्मत बदल गई ;

दुनिया जिसे कहते हैं,

जादू का खिलौना है ।

मिल जाए तो मिट्टी है,

खो जाए तो सोना है ।।

और

होश वालों को खबर क्या,

बेखुदी क्या चीज़ है ।

इश्क़ कीजे,फिर समझिए

ज़िन्दगी क्या चीज़ है ।।

आज निदा साहब को उनकी शायरी के लिए याद किया जा रहा है तो जगजीतसिंह को अपनी गायकी के लिए। गीत और गायकी की इस जुगल जोड़ी का भावपूर्ण मधुर स्मरण …

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 223 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 223 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 223) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 223 ?

☆☆☆☆☆

ख़्वाहिशों का कैदी हूँ

हक़ीक़तें सज़ा देती हैं

आसान चीज़ों का शौक नहीं 

मुश्किलें ही मज़ा देती हैं..

☆☆

I’m a prisoner of desires

Though realities do bite me

Never enjoyed easy things

Difficulties only fascinate me

☆☆☆☆☆

था जहाँ कहना वहां

कह न पाये उम्र भर…

कागज़ों पर यूं शेर

लिखना बेज़ुबानी ही तो है…

☆☆

 

Where it was required to speak

Couldn’t say a word entire my life

Composing poems now on paper

Is sheer dumbness only…

☆☆☆☆☆

लोग सुनते रहे दिमाग़ की बात

हम चले दिल को रहनुमा कर के 

किस ने पाया सुकून दुनिया में 

ज़िंदगानी का सामना कर के…

☆☆

People kept listening to their mind

I followed the heart as  patron

Who could ever find the solace

in the world by braving the life!

☆☆☆☆☆

यही है ज़िन्दगी कुछ 

ख़्वाब  चन्द  उम्मीदें, 

इन्हीं खिलौनों  से तुम 

भी बहल सको तो चलो…

☆☆

This only is the journey of life,

Few dreams, a handful of hopes

If  you  can manage playing with 

these  toys  then  come along…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 11: Developing Wisdom ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Meditate Like The Buddha # 11: Developing Wisdom ☆

Lesson 9

The purpose of meditation extends beyond concentration. Its ultimate aim is to:

  • See things as they truly are.
  • Develop wisdom.
  • Let go of defilements.
  • End suffering.
  • Embrace renunciation.

Meditation cultivates wisdom, and wisdom diminishes without consistent practice. Therefore, heedfulness is essential. One must meditate regularly to sustain this inner growth.

Contemplations of Wisdom

By now, you are well-practised in observing your breath, feelings, and mind. Begin your session by meditating for 20 to 30 minutes, focusing on these elements. Then, transition to contemplations of wisdom.

Observing Impermanence

As you breathe in and out, reflect on the impermanence of physical and mental phenomena:

  • Breathe in, focusing on impermanence. Breathe out, focusing on impermanence.
  • Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

The five aggregates of clinging are:

  • Form
  • Feeling
  • Perception
  • Volitional activities
  • Consciousness

Understand that each of these is impermanent. What is impermanent is inherently tied to suffering. Therefore, do not cling to these phenomena.

Realising the Nature of Existence

  • All conditioned phenomena are impermanent.
  • All conditioned phenomena are suffering.
  • All conditioned phenomena are non-self.
  • Nothing is worth clinging to.
  • Directly know all things as they are.

Fading Away of Formations

As you breathe, contemplate the fading away of mental and physical formations:

  • Breathe in, focusing on fading away. Breathe out, focusing on fading away.
  • Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

Specifically, reflect on the fading away of the following:

  • Craving: Breathing in, focus on its fading; breathing out, let it fade away.
  • Aversion: Breathing in, focus on its fading; breathing out, let it fade away.
  • Ignorance: Breathing in, focus on its fading; breathing out, let it fade away.
  • Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out. Fully aware, ardent, and mindful.

Concluding the Session

With a relaxed body and mind, conclude your meditation by cultivating loving kindness:

  • May all beings be happy, be peaceful, be liberated.

When you are ready, gently open your eyes and emerge from meditation, carrying the insights and peace of your practice into your daily life.

♥ ♥ ♥ ♥

Please click on the following links to read previously published posts Meditate Like The Buddha: A Step-By-Step Guide” 👉

☆ Meditate Like The Buddha #1: A Step-By-Step Guide ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #2: The First Step ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #3: Watch Your Breath ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #4: Relax Your Body ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #5: Cultivate Loving kindness ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha # 6: Experience your feelings ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha # 7: Tranquilize Mental Formations☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 8: Midway Recap ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 9: Experience Your Mind ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 10: Liberate the Mind ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

 

© Jagat Singh Bisht

Laughter Yoga Master Trainer

FounderLifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 फरवरी से 16 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 फरवरी से 16 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। भारतवर्ष में एक ऐसा वर्ग भी है जो की भारत के पुराने ज्ञान-विज्ञान को झूठा मानता है। उसके अनुसार ज्योतिष लोगों को भ्रमित करता है। मैं पंडित अनिल पांडे ऐसे लोगों को बताना चाहता हूं कि वह इस साप्ताहिक राशिफल को लग्न राशि के अनुसार पढ़ें और देखें कि यह सत्य निकल रहा है। अगर भी अपना राशिफल चंद्र राशि देखते हैं तो भी वह 60% से ऊपर सही निकलेगा। ज्योतिष भ्रमित करने की विद्या नहीं है वरन वह बहुत आगे का विज्ञान है।

इस सप्ताह 12 फरवरी को प्रयागराज के संगम में अमृत की वर्षा होगी और एक बहुत बड़ा हिंदू जनमानस वहां पर इसका आनंद ले रहा होगा। इस सप्ताह सूर्य 13 तारीख को 2:14 AM से कुंभ राशि में प्रवेश करेगा बुध ग्रह 11 तारीख को 12:12 PM से कुंभ राशि में गोचर करने लगेगा। इसके अलावा वक्री मंगल मिथुन राशि में, गुरु वृष राशि में शुक्र और वक्री राहु मीन राशि में तथा शनि कुंभ राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। व्यापार में आपको लाभ होगा। द्वादश भाव में बैठकर शुक्र कचहरी के कार्यों में आपको सफलता दिलाएगा। परंतु उसके लिए आपको पर्याप्त परिश्रम भी करना पड़ेगा। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए भाई बहनों के साथ संबंध थोड़े अच्छे और थोड़े खराब होंगे। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 10, 11 और 12 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। 15 और 16 तारीख को आपके कार्यों को करने के प्रति सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का और आपके माता जी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी सी मानसिक परेशानी हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। एकादश भाव में बैठकर शुक्र आपको धन लाभ दिलायेगा। व्यापार में आपको लाभ होगा। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। लग्न में बैठे हुए मंगल के कारण आप दुर्घटनाओं से बचेंगे। आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा अर्थात जैसा है वैसा ही रहेगा। आपके खर्चों में वृद्धि जारी रहेगी। सामाजिक प्रतिष्ठा ठीक रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी किसी भी कार्य हेतु अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपके कार्य करने में थोड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। कचहरी के कार्यों में अगर आप सावधानी बरतेंगे तो आपको सफलता मिल सकती है। धन आने का योग है। भाग्य आपका भरपूर से साथ देगा। आठवें भाव में बैठे सूर्य के कारण आपको चाहिए कि आप दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। इस सप्ताह आपके लिए 10 फरवरी के दोपहर के बाद से तथा 11 और 12 तारीख लाभदायक है। 10 फरवरी को दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सचेत होकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान सूर्य को तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प डालकर जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका और आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के पेट में थोड़ी समस्या हो सकती है। आपके जीवनसाथी का व्यवसाय उत्तम चलेगा। जीवनसाथी को मानसिक तनाव संभव है। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 10, 11 और 12 फरवरी को आपको कोई कार्य करने के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। मामूली धन आने का योग है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह उत्तम है। विवाह के कई प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि संभव है। भाग्य आपका सामान्य रूप से साथ देगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। आपके शत्रु इस सप्ताह आपका विरोध कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी शुभ फलदायक है। 13 और 14 फरवरी को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परिश्रम करने पर आपको निरंतर सफलताएं मिलेंगी। शत्रुओं पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं। परंतु इसके लिए आपको प्रयास करने होंगे। कचहरी के कार्यों में इस सप्ताह आपके रिस्क नहीं लेना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 10, 11 और 12 फरवरी कार्यों को करने के लिए फलदायक है। 15 और 16 फरवरी को आपको कार्यों को करने के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। जीवनसाथी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। सूर्य को शत्रु भाव में होने के कारण आपके माताजी को मानसिक कष्ट हो सकता है। इसके अलावा इस सप्ताह आपको अपने सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रति सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 फरवरी परिणाम दायक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके भाग्य भाव को सूर्य सप्तम दृष्टि से देख रहा है। अतः भाग्य आपका साथ देगा। भाग्य से आपके कई कार्य हो सकते हैं। कार्यालय में आपको सतर्क रहना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी हितवर्धक है। 10, 11 और 12 फरवरी को आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति हो सकती है। आपका व्यापार उत्तम चलेगा। भाइयों के साथ संबंध ठीक हो सकते हैं। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ देगा। नवम भाव में बैठा हुआ केतु आपको लंबी यात्राएं कर सकता है। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप शत्रुओं को समाप्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 11 और 12 12 फरवरी शुभ है। 10 तारीख को दोपहर के पहले तथा 13 और 14 फरवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। धन सभी प्रकार के रास्तों से आएगा। आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। लग्न भाव में बैठकर बुध आपको व्यापारिक सफलता दिलाएगा। आपके जीवन साथी को भी उनके कार्यों में सफलता मिल सकती है। आपका व्यापार उत्तम चलेगा। आपको थोड़ा मानसिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको 13 और 14 फरवरी को विभिन्न कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेगा। कचहरी के कार्यों में सावधानी बरतने पर आपको सफलता प्राप्त हो सकती है। भाग्य आपका साथ देगा। विवाह के संबंधों में बाधा आ सकती है। प्रेम संबंधों में आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी फल दायक है। 13 और 14 फरवरी को आपको सावधान रहते हुए कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

 

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सायं छटा ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

⭐ सायं छटा ! ⭐ श्री प्रमो वामन वर्तक ⭐ 

घडे सप्तरंगांचे आकाशी

सांडती बघा मावळतीला,

आटपून आपली दिनचर्या

रवीराज चालले अस्ताला !

*

निरोप घेता घेता अवनीचा

मुख अवलोकी सागरात,

शांतजल चंदेरी चमचमते

बनून आरसा देतसे साथ !

*

रंग केशरी मावळतीचा

शोभा वाढवी किनाऱ्याची,

पिवळ्या बनी केतकीच्या

होई सळसळ वाऱ्याची !

*

परतू लागती घरट्यातूनी

पक्षी पिलांच्या आठवाने,

वाट परतीची चाले गोधन

आता पाडसांच्या ओढीने !

*

पावता अंतर्धान नारायण

साम्राज्य पसरेल रजनीचे,

सुरु होईल राज्य रानोमाळी

बागडणाऱ्या निशाचरांचे !

बागडणाऱ्या निशाचरांचे !

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) – 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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