हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मुरारी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मुरारी ? ?

काल बावरा,

मेरी देह में

मुझे तलाशता रहा,

मुरारी की मानिंद

मेरा शब्द संसार,

काल के माथे पर

नाचता रहा!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 10: Liberate the Mind ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Meditate Like The Buddha # 10: Liberate the Mind ☆

Lesson 8

As per your practice so far, you began by watching your breath, progressed to experiencing your feelings, and then moved on to experiencing your mind. Now, it is time to advance further and liberate the mind.

Concentrating the Mind

  • Breathe in, concentrating the mind. Breathe out, concentrating the mind.

By now, you have cultivated the practice of concentration by observing your breath at the nostrils. You are ready to deepen your concentration further.

  • Focus your mind with stability, avoiding all movements.
  • Develop single-pointed concentration on the breath.
  • Allow your concentration to become sharp and intense, with the mind fully aware of the breath, here and now.

Remain in this state for a while:

  • Breathe in, concentrating the mind. Breathe out, concentrating the mind.
  • Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

Liberating the Mind

  • Breathe in, liberating the mind. Breathe out, liberating the mind.

Free your mind from fear, anxiety, and stress. Let go of clinging and judgement. Release attachments to joy or sorrow, and allow the mind to experience equanimity.

  • Fully aware, breathe in; fully aware, breathe out.

Cultivating Liberation Through Noble Qualities

You can cultivate and develop the mind for liberation by practising:

  • Equanimity
  • Loving Kindness
  • Compassion
  • Altruistic Joy

Let your mind dwell in these sublime states as you breathe:

  • Breathe in, experiencing equanimity; breathe out, experiencing equanimity.
  • Breathe in, feeling loving kindness for all; breathe out, feeling loving kindness for all.
  • Breathe in, feeling compassion; breathe out, feeling compassion.
  • Breathe in, full of altruistic joy; breathe out, full of altruistic joy.

Completing the Practice

As you reach the culmination of this step:

  • Breathe in, liberating the mind; breathe out, liberating the mind.
  • Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

Conclude your meditation by extending loving wishes to the universe:

  • May all be happy, be peaceful, be liberated.

When ready, gently open your eyes and emerge from meditation, carrying the serenity and freedom of your practice into your daily life.

♥ ♥ ♥ ♥

Please click on the following links to read previously published posts Meditate Like The Buddha: A Step-By-Step Guide” 👉

☆ Meditate Like The Buddha #1: A Step-By-Step Guide ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #2: The First Step ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #3: Watch Your Breath ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #4: Relax Your Body ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha #5: Cultivate Loving kindness ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha # 6: Experience Your Feelings ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

☆ Meditate Like The Buddha # 7: Tranquilize Mental Formations☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆   

 

© Jagat Singh Bisht

Laughter Yoga Master Trainer

FounderLifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१२ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१२ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

विरूपाक्ष मंदिर

बस से उतरकर सबसे पहले विरूपाक्ष मंदिर पहुंचे। विरुपाक्ष मंदिर खंडहरों के बीच बचा रह गया था। अभी भी यहाँ पूजा होती है। यह भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां विरुपाक्ष-पम्पा पथी के नाम से जाना जाता है। शिव “विरुपाक्ष” के नाम से जाने जाते हैं। यह मंदिर  तुंगभद्रा नदी के तट पर है। विरुपाक्ष अर्थात् विरूप अक्ष, विरूप का अर्थ है कोई रूप नहीं, और अक्ष का अर्थ है आंखें। इसका अर्थ हुआ बिना आँख वाली दृष्टि। जब आप थोड़ा और गहराई में जाते हैं, तो आप देखते हैं कि चेतना आँखों के बिना देख सकती है, त्वचा के बिना महसूस कर सकती है, जीभ के बिना स्वाद ले सकती है और कानों के बिना सुन सकती है। ऐसी चीजें गहरी ‘समाधि’ में सपनों की तरह ही घटित होने लगती हैं। चेतना अमूर्त है। आप पांच इंद्रियों में से किसी के भी बिना सपने देखते हैं; सूंघते हैं, चखते हैं, आप सब कुछ करते हैं ना? तो विरुपाक्ष वह चेतना है जिसकी आंखें तो हैं लेकिन मूर्त आकार नहीं है।  समस्त ब्रह्मांड में शिव चेतना बिना किसी आकार के जड़ को चेतन करती है, जैसे बिजली दिखाई नहीं देती मगर पंखे को घुमाने लगती है। छठी इंद्रिय का अतीन्द्रिय अहसास ही विरूपाक्ष है। इंद्र की पाँच इन्द्रियों से परे छठी इन्द्रिय का मनोवैज्ञानिक सिद्धांत तो बहुत बाद उन्नीसवीं सदी में सिग्मंड फ्रॉड के अध्ययन के बाद आया। उसके बहुत पहले विरुपाक्ष चेतन शिव की मूर्ति बन चुकी थी।

विरूपाक्ष मंदिर का इतिहास लगभग 7वीं शताब्दी से अबाधित है। विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य-2 ने करवाया था जो इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था। पुरातात्विक अध्ययन से इसे बारहवीं सदी के पूर्व का बताया गया है। विरुपाक्ष-पम्पा विजयनगर राजधानी के स्थित होने से बहुत पहले से अस्तित्व में था। शिव से संबंधित शिलालेख 9वीं और 10वीं शताब्दी के हैं। जो एक छोटे से मंदिर के रूप में शुरू हुआ वह विजयनगर शासकों के अधीन एक बड़े परिसर में बदल गया। साक्ष्य इंगित करते हैं कि चालुक्य और होयसल काल के अंत में मंदिर में कुछ अतिरिक्त निर्माण किए गए थे, हालांकि अधिकांश मंदिर भवनों का श्रेय विजयनगर काल को दिया जाता है। विशाल मंदिर भवन का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के शासक देव राय द्वितीय के अधीन एक सरदार, लक्कना दंडेशा द्वारा किया गया था।

विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर का निर्माण और विस्तार किया। मंदिर के हॉल में संगीत, नृत्य, नाटक, और देवताओं के विवाह से जुड़े कार्यक्रम आयोजित होते थे। विरुपाक्ष मंदिर में  शिव, पम्पा और दुर्गा मंदिरों के कुछ हिस्से 11वीं शताब्दी में मौजूद थे। इसका विस्तार विजयनगर युग के दौरान किया गया था। यह मंदिर छोटे मंदिरों का एक समूह है, एक नियमित रूप से रंगा हुआ, 160 फीट ऊंचा गोपुरम, अद्वैत वेदांत परंपरा के विद्यारण्य को समर्पित एक हिंदू मठ, एक पानी की टंकी, एक रसोई, अन्य स्मारक और 2,460 फीट लंबा खंडहर पत्थर से बनी दुकानों का बाजार, जिसके पूर्वी छोर पर एक नंदी मंदिर है।

विरुपाक्ष मंदिर को द्रविड़ शैली में बनाया गया है। द्रविड़ शैली के मंदिरों की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं कि ये मंदिर आमतौर पर आयताकार प्रांगण में बने होते हैं। इन मंदिरों का आधार वर्गाकार होता है और शिखर पिरामिडनुमा होता है। इन मंदिरों के शिखर के ऊपर स्तूपिका बनी होती है। इन मंदिरों के प्रवेश द्वार को गोपुरम कहते हैं। इस मंदिर की सबसे खास विशेषताओं में, इसे बनाने और सजाने के लिए गणितीय अवधारणाओं का उपयोग हुआ है। मंदिर का मुख्य आकार त्रिकोणीय है। जैसे ही आप मंदिर के शीर्ष को देखते हैं, पैटर्न विभाजित हो जाते हैं और खुद को दोहराते हैं। इस मंदिर की मुख्य विशेषता यहां का शिवलिंग है जो दक्षिण की ओर झुका हुआ है। इसी प्रकार यहां के पेड़ों की प्रकृति भी दक्षिण की ओर झुकने की है।

तुंगभद्रा नदी से उत्तर की ओर एक गोपुरम जिसे कनकगिरि गोपुर के नाम से जाना जाता है। हमने तुंगभद्रा नदी की तरफ़ से कनकगिरि गोपुर से मंदिर प्रांगण में प्रवेश किया। द्वार पर द्वारपालों की मूर्तियां हैं। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है, जो शिव और पम्पा देवी मंदिरों के गर्भगृहों को सूर्योदय की ओर संरेखित करता हैं। एक बड़ा पिरामिडनुमा गोपुरम है। जिसमें खंभों वाली मंजिलें हैं जिनमें से प्रत्येक पर कामुक मूर्तियों सहित कलाकृतियां हैं। गोपुरम एक आयताकार प्रांगण की ओर जाता है जो एक अन्य छोटे गोपुरम में समाप्त होता है। इसके दक्षिण की ओर 100-स्तंभों वाला एक हॉल है जिसमें प्रत्येक स्तंभ के चारों तरफ हिंदू-संबंधित नक्काशी है। इस सार्वजनिक हॉल से जुड़ा एक सामुदायिक रसोईघर है, जो अन्य प्रमुख हम्पी मंदिरों में पाया जाता है। रसोई और भोजन कक्ष तक पानी पहुंचाने के लिए चट्टान में एक चैनल काटा गया है। छोटे गोपुरम के बाद के आंगन में दीपा-स्तंभ  और नंदी हैं।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 146 ☆ गीत – ।। कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 146 ☆

☆ गीत – ।। कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।

हर जीवन में आती खुशी गम यही इसका तंत्र है।।

मुश्किलों के सफर में राह आपने खुद ही बनानी है।

अपने अरमानों की   महफिल खुद ही सजानी है।।

आपका आत्मविश्वास ही बनता सफलता का यंत्र है।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

*

ज़ख्म कितने भी   गहरें हों दुनिया को बताना नहीं है।

दिखा के जख्म अपने दुनिया वालों की दवा पाना नहीं है।।

जब हम अपने रास्ते खुद चुन सकें तभी हम स्वतंत्र हैं।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

*

कभी हारना कभी जीतना  यही जीवन की चाल है।

कभी दया की भावना कभी गुस्से का आता उबाल है।।

मानवता की हार सबसे बड़ी जब हम होते परतंत्र हैं।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

*

व्यक्ति से समाज  समाज से देश का निर्माण होता है।

आत्मनिर्भर राष्ट्र लिए हर कठिनाई का समाधान होता है।।

अनुशासन समर्पित नागरिक से बनता सच्चा लोकतंत्र है।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #212 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – बापू का सपना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – बापू का सपना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 212 ☆

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – बापू का सपना…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

बापू का सपना था—भारत में होगा जब अपना राज ।

गाँव-गाँव में हर गरीब के दुख का होगा सही इलाज ॥

*

कोई न होगा नंगा – भूखा, कोई न तब होगा मोहताज ।

राम राज्य की सुख-सुविधाएँ देगा सबको सफल स्वराज ॥

*

पर यह क्या बापू गये उनके साथ गये उनके अरमान।

रहा न अब नेताओं को भी उनके उपदेशों का ध्यान ॥

*

गाँधी कोई भगवान नहीं थे, वे भी थे हमसे इन्सान ।

किन्तु विचारों औ’ कर्मों से वे इतने बन गये महान् ॥

*

बहुत जरूरी यदि हम सबको देना है उनको सन्मान ।

हम उनका जीवन  समझें, करे काम कुछ उन्हीं समान ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 600 ⇒ मुझसे अच्छा कौन है ! ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मुझसे अच्छा कौन है !।)

?अभी अभी # 600 ⇒ मुझसे अच्छा कौन है ! ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

अच्छा होना बुरा नहीं ! सबसे अच्छा होना तो कतई नहीं। बच्चे अच्छे होते हैं, बहुत अच्छे। अच्छे बेटे मस्ती नहीं करते, गटगट दूध पी जाते हैं। जो मम्मा का कहना नहीं मानते, वे गंदे बच्चे होते हैं।

कोई माँ अपने बच्चे को बड़ा होकर बुरा इंसान नहीं बनाना चाहती, इसलिए उसमें एक अच्छे इंसान बनने की भावना को प्रबल करती रहती है।

बाल मनोविज्ञान भी यही कहता है। बच्चों को मारना, झिड़कना, उन्हें सबके सामने अपमानित करना, उनके व्यक्तित्व पर विपरीत प्रभाव डालता है। वे जिद्दी, गुस्सैल और हिंसक हो जाते हैं। कुछ सुधारकों का यह भी मत है कि बच्चों को भविष्य में एक इंसान बनाने के लिए, सख्ती और अनुशासन भी ज़रूरी है। अधिक लाड़ प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं।।

बालक के मन में केवल एक ही भाव होता है, मैं अच्छा हूँ, सबसे अच्छा ! वह हर जगह प्रथम आना चाहता है, खेल में, पढ़ाई में, बुद्धि और ज्ञान में। लोगों की तारीफ़ और प्रशंसा उसे और अधिक उत्साहित करती है और उसमें यह भाव पुष्ट होता जाता है, कि मुझसे अच्छा कोई नहीं।

शनैः शनैः जब वह बड़ा होता है, तो परिस्थितियां बदलती जाती हैं। संघर्ष, चुनौतियाँ और प्रतिस्पर्धाओं से गुजरते हुए वह परिपक्व होता है। प्रयत्न, पुरुषार्थ और भाग्य अगर साथ देता है, तो वह सफलता की सीढियां पार करते हुए सबसे आगे निकल जाता है। पद, सम्मान और प्रतिष्ठा मिलते ही, अचानक उसे अहसास होता है कि वह अब एक बड़ा आदमी बन गया है। क्या उससे अच्छा भी कोई हो सकता है।।

लोगों से मिलने वाली प्रशंसा और सम्मान से अभिभूत हो, वह और अच्छा दिखने की कोशिश करता है। काम, क्रोध, लालच और अहंकार जैसे विकार अंदर ही अंदर कब विकसित हो गए, उसे पता ही नहीं चलता। उसे बस तारीफ़ और प्रशंसा ही अच्छी लगने लगती है, और वह अपने आप में स्वयं को एक सबसे अच्छा आदमी मान बैठता है।।

अब उससे विरोध, असहमति अथवा आलोचना बर्दाश्त नहीं होती। वह केवल ऐसे ही लोगों के संपर्क में रहना पसंद करता है, जो उसे केवल अच्छा नहीं, सबसे अच्छा आदमी मानें। उससे सलाह लें, मार्गदर्शन लें, उसके पाँव छुएं, लोगों के सामने उसकी तारीफ़ करें।

एक साधारण आदमी को वे परेशानियां नहीं झेलनी पड़ती, जो एक अच्छे आदमी को झेलना पड़ती है। अधिकतर प्रतिस्पर्धा सफल और अच्छे लोगों में ही होती है। एक दूसरे से आगे बढ़ने और , और अधिक अच्छा बनने की स्पर्धा। और बस यहीं से, अच्छा बनने के लिए बुरे हथकंडों का भी सहारा लिया जाने लगता है। एक मैराथन, कौन जीवन में सबसे अच्छा बनकर दिखाता है।

सबसे सच्चा नहीं, सबसे अच्छा।।

सबसे अच्छा तो खैर, ईश्वर ही है। वह ही जानता है, हम कितने अच्छे हैं। हमारा बच्चा सबसे अच्छा है, हमारी माँ सबसे अच्छी है, हमारा परिवार सबसे अच्छा है, और हमारा देश सबसे अच्छा है। सबमें अच्छाई देखना भी बुरा नहीं। लेकिन जिस दिन यह भाव आ गया, मुझसे अच्छा कौन ? समझिए, कुछ तो गड़बड़ है…!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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सूचनाएँ/Information ☆ श्री संतोष नेमा ‘संतोष’ की कृतियों “सुमित्र संस्मरण” एवं “अधरों पर मुस्कान” का विमोचन ☆ साभार – मंथनश्री, पाथेय एवं डायनामिक संवाद टी वी ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्री संतोष नेमा ‘संतोष’ की कृतियों सुमित्र संस्मरण’ एवं अधरों पर मुस्कान का विमोचन ☆ साभार – मंथनश्री, पाथेय एवं डायनामिक संवाद टी वी ☆

जबलपुर। मंथनश्री एवं पाथेय संस्था के तत्वावधान में श्री संतोष नेमा ‘संतोष’ की दो कृतियों सुमित्र संस्मरण एवं  अधरों पर मुस्कान दोहावली का विमोचन आज 8 फरवरी को सायं 5 बजे से कला वीधिका, रानी दुर्गावती  संग्रहालय में आयोजित है।

समारोह संयोजक राजेश पाठक ‘ प्रवीण ‘ ने बताया कि इस अवसर पर श्री अशोक मनोध्या, पं. संतोष शास्त्री, डॉ.विजय तिवारी ‘किसलय’, डॉ. सलमा ‘ जमाल’, श्रीमती अर्चना द्विवेदी ‘ गुदालू’,  मदन श्रीवास्तव,डॉ. गोपाल दुबे, रूपम बाजपेयी, कविता नेमा, कु. आराध्या तिवारी ‘ प्रियम ‘ को सम्मानित किया जायेगा।

समारोह के मुख्य अतिथि मदन तिवारी वरिष्ठ समाजसेवी हैं। अध्यक्षता महाकवि आचार्य भगवत दुबे करेंगे । विशिष्ट अतिथि महामहोपाध्याय डॉ. हरिशंकर दुबे, अमरेन्द्र नारायण वरिष्ठ पत्रकार गंगा पाठक, विजय बागरी एवं प्रतुल श्रीवास्तव होंगे । मंथनश्री से आशुतोष तिवारी एवं कविता राय ने समस्त साहित्य प्रेमियों से कार्यक्रम में उपस्थिति की अपील की है।

साभार – मंथनश्री, पाथेय एवं डायनामिक संवाद टी वी 

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ विवाह बाधा योग और दूर करने के उपाय ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

☆ आलेख ☆ विवाह बाधा योग और दूर करने के उपाय ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

अपने समाज पर दृष्टि डालने पर हम पाते हैं कि अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों के विवाह को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं। अगर बच्चों ने लव मैरिज भी कर ली है तो उनका वैवाहिक जीवन ठीक चलेगा या नहीं इसका भी माता-पिता को काफी चिंता रहती है। उनकी चिंता को दूर करने के लिए अगर हम बालक और बालिका के कुंडली का विश्लेषण करें तो हम आसानी से पता कर सकते हैं कि उनके विवाह में देरी या वैवाहिक जीवन ठीक से न चलने का क्या कारण है। इसके अलावा हम यह भी जान सकते हैं कि विवाह हो तथा वैवाहिक जीवन ठीक चले इसके लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए। आइये आज हम इसी पर चर्चा करते हैं।

विवाह होने में होने वाली परेशानी तथा वैवाहिक जीवन की परेशानी का मुख्य कारण विवाह बाधा योग है।

 विवाह बाधा योग लड़के, लड़कियों की कुंडलियों में समान रूप से लागू होते हैं, अंतर केवल इतना है कि लड़कियों की कुंडली में गुरू की स्थिति पर विचार तथा लड़कों की कुंडलियों में शुक्र की विशेष स्थिति पर विचार करना होता है।

(1) यदि कुंडली में सप्तम भाव ग्रह रहित हो और सप्तमेश बलहीन हो, सप्तम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो, ऐसे जातक को अच्छा पति/पत्नी मिल पाना संभव नहीं हो पाता है।

(2) सप्तम भाव में बुध-शनि की युति होने पर भी दाम्पत्य सुख की हानि होती है। सप्तम भाव में यदि सूर्य, शनि, राहू-केतू आदि में से एकाधिक ग्रह हों अथवा इनमें से एकाधिक ग्रहों की दृष्टि हो तो भी दाम्पत्य सुख बिगड़ जाता है।

(3) यदि कुण्डली में सप्तम भाव पर शुभाशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो पुनर्विवाह की संभावना रहती है। नवांश कुंडली में यदि मंगल या शुक्र का राशि परिवर्तन हो, या जन्म कुंडली में चंद्र, मंगल, शुक्र संयुक्त रूप से सप्तम भाव में हों, तो ये योग चरित्रहीनता का कारण बनते हैं, और इस कारण दाम्पत्य सुख बिगड़ सकता है।

(4) यदि जन्मलग्न या चंद्र लग्न से सातवें या आठवें भाव में पाप ग्रह हों, या आठवें स्थान का स्वामी सातवें भाव में हो, तथा सातवें भाव के स्वामी पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो दाम्पत्य जीवन सुखी होने में बहुत बाधाएं आती हैं।

(5) यदि नवम भाव या दशम भाव के स्वामी, अष्टमेश या षष्ठेश के साथ स्थित हों, तो दांपत्य जीवन में दरार आ सकती है।

(6) अगर लग्नेश तथा शनि बलहीन हों, चार या चार से अधिक ग्रह कुंडली में कहीं भी एक साथ स्थित हों अथवा द्रेष्काण कुंडली में चन्द्रमा शनि के द्रेष्काण में गया हो, और नवांश कुंडली में मंगल के नवांश में शनि हो, और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो तो भी वैवाहिक जीवन में विभिन्न परेशानियां आती हैं।

(7) अगर सूर्य, गुरू, चन्द्रमा में से एक भी ग्रह बलहीन होकर लग्न में दशम में, या बारहवें भाव में हो और बलवान शनि की पूर्ण दृष्टि में हो, तो ये योग जातक या जातिका को सन्यासी प्रवृत्ति देते हैं, या फिर वैराग्य भाव के कारण अलगाव की स्थिति आ जाती है, और विवाह की ओर उनका लगाव बहुत कम होता है।

(8) यदि लग्नेश भाग्य भाव में हो तथा नवमेश पति स्थान में स्थित हो, तो ऐसी लड़की भाग्यशाली पति के साथ स्वयं भाग्यशाली होती है। उसको अपने कुटुम्बी सदस्यों द्वारा एवं समाज द्वारा पूर्ण मान-सम्मान दिया जाता है। इसी प्रकार यदि लग्नेश, चतुर्थेश तथा पंचमेश त्रिकोण या केंद्र में स्थित हों तो भी उपरोक्त फल प्राप्त होता है।

 (9) यदि सप्तम भाव में शनि और बुध एक साथ हों और चंद्रमा विषम राशि में हो, तो दाम्पत्य जीवन कलहयुक्त बनता है और अलगाव की संभावना होती है।

 (10) यदि जातिका की कुुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश एवं गुरू तथा जातक की कुण्डली में सप्तम भाव सप्तमेश एवं शुक्र पाप प्रभाव में हों, तथा द्वितीय भाव का स्वामी छठवें, आठवें या बारहवें भाव में हो, तो इस योग वाले जातक-जातिकाओं को अविवाहित रह जाना पड़ता है।

 (11) शुक्र, गुरू बलहीन हों या अस्त हों, सप्तमेश भी बलहीन हो या अस्त हो, तथा सातवें भाव में राहू एवं शनि स्थित हों, तो विवाह होने में बहुत परेशानी होती है।

 (12) लग्न, दूसरा भाव और सप्तम भाव पाप ग्रहोें से युक्त हों, और उन पर शुभ ग्रह की पूर्ण दृष्टि न हो, तो भी विवाह होने में बहुत ज्यादा परेशानी हो सकती है।

 (13) यदि शुक्र, सूर्य तथा चंद्रमा पुरूषों की कुंडली में तथा सूर्य, गुरू, चंद्रमा, महिलाओं की कुंडली में एक ही नवांश में हों, तथा छठवें, आठवें तथा बारहवें भाव में हों, तो भी विवाह मैं बहुत बाधा आती है।

इस प्रकार ज्योतिषीय ग्रंथों में अनेकानेक कुयोग मिलते हैं जो या तो विवाह होने ही नहीं देते हैं, अथवा विवाह हो भी जाये तो दाम्पत्य सुख को तहस-नहस कर देते हैं।

इस प्रकार के समस्याओं से निपटने के लिए पूरी कुंडली का विश्लेषण करना आवश्यक होता है। पूरी कुंडली के विश्लेषण के पश्चात उचित पूजा पाठ या अन्य प्रभावी उपाय किए जा सकते हैं।

अगर आप पूरी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहते हैं आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

 विवाह बाधा योग को दूर करने के उपाय:-

1- नारी जातक के लिए पुखराज का पहनना एक अच्छा उपाय है।

2- पुरुष जातक के लिए हीरे की अंगूठी पहनना भी अच्छा उपाय हो सकता है।

3- सप्तमेश की पूजा करना या सप्तमेश के लिए उपयुक्त रत्न को धारण करना एक अच्छा उपाय है।

4- शनि, राहु, केतु और मंगल की बुरी दृष्टि होने के कारण विवाह बाधा योग बनने पर इन ग्रहों की पूजा करना एक अच्छा विकल्प होता है।

5- अगर ये उपाय काम नहीं करते हैं तो मेरे पास जातक की डिटेल भेज कर उपाय प्राप्त किया जा सकता है। परंतु इसके लिए पहले जातक का आसरा ज्योतिष में दूरभाष क्रमांक 89 59594400 पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है।

 

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “आयुष्याच्या ताम्रपटावर…” ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “आयुष्याच्या ताम्रपटावर” ☆ सौ राधिका भांडारकर 

धूळ झटकता पटलावरची

लख्खच सारे दिसू लागले

जरी दडवले होते काही

सारेच कसे पुन्हा उजळले॥१॥

*

 वाटेवरचे क्षण काटेरी

 तसेच काही आनंदाचे

 पुन्हा एकदा त्यात हरवले

 सुटले धागे सुखदुःखाचे॥२॥

*

 मुठीत वाळू हळू सांडली

 प्रीत अव्यक्त मनात दडली

काळजातली हुरहुर सारी

आवेगाने कशी दाटली ॥३॥

*

निष्ठा साऱ्या मी बाळगल्या

देणी घेणी चुकती केली

बाकी सारे शून्य जाहले

आता कसली भीती नुरली॥४॥

*

आयुष्याच्या ताम्रपटावर

 एक ओळ ती होती धूसर

शब्द प्रितीचे कोवळ्यातले

तिथे राहिले कसे आजवर

© सौ. राधिका भांडारकर

ई ८०५ रोहन तरंग, वाकड पुणे ४११०५७

मो. ९४२१५२३६६९

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ एकदातरी भेटशील ना?… ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆

सौ. वृंदा गंभीर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ एकदातरी भेटशील ना?सौ. वृंदा गंभीर

एकदा भेटायचं रे तुला

मनातील भरभरून बोलायचं

जीवनातील सुख दुःखाच्या गोष्टी

सांगायच्या… 

 

डोळ्यातील आसवं तुझ्या खांद्यावर

रिचवायचे

भेटशील ना एकदा, देशील ना खांदा

तुझ्या प्रेमात न्हाऊन निघायचं

सोबत सगळेच आहेत पण मनाला

काय वाटत माहित नाही

तुझ्या जवळच मन मोकळं करायचं

तुझ्याकडे का मन ओढ घेत कळतं नाही

तुझ्यात काहीतरी स्पेशल दिसतं

या वेड्या मनाला काही आवरणं

होत नाही

तुझी आठवण मनातून जात नाही

तुला भेटल्याशिवाय राहवत नाही

सांग ना, एकदातरी भेटशील ना

मन मोकळं करायला थोडी जागा देशील ना?

© सौ. वृंदा पंकज गंभीर (दत्तकन्या)

न-हे, पुणे. – मो न. 8799843148

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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