हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ शेष कुशल # 49 ☆ व्यंग्य – “ब्लर्बसाज़ों को चिंतिंत करती एक ख़बर…” ☆ श्री शांतिलाल जैन ☆

श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य  ब्लर्बसाज़ों को चिंतिंत करती एक ख़बर…” ।)

☆ शेष कुशल # 49 ☆

☆ व्यंग्य – “ब्लर्बसाज़ों को चिंतिंत करती एक ख़बर…” – शांतिलाल जैन 

वे एक नामचीन ब्लर्बसाज़ हैं. इन दिनों कुछ डिस्टर्ब चल रहे हैं. जिस खबर से वे सशंकित हैं उसे बताने से पहले हम आपको उनके बारे में थोड़ा सा विस्तार से बताना चाहते हैं.

कभी वे हिंदी के नामचीन लेखक रहे हैं मगर इन दिनों वे सिर्फ नई किताबों के ब्लर्ब भर लिखते हैं. प्रति सप्ताह औसतन दो से तीन ब्लर्ब तो लिख ही मारते हैं. प्रकाशकों के स्टाल पर सजी हुई हर तीसरी किताब का ब्लर्ब आपको उन्ही का लिखा मिलेगा. जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों. जिस लेखक को कोई ब्लर्ब लेखक नहीं मिलता उनके लिए वे भगवान हैं.  ब्लर्बसाज़ी एक नशा है और वे उसके एडिक्ट. जिस सप्ताह उनके पास ब्लर्ब लिखने के लिए कोई किताब नहीं होती वो अपनी ही किसी पुरानी किताब का ब्लर्ब लिख मारते है. मुझसे बोले – “सांतिबाबू, जितने ब्लर्ब तुमने पढ़े नहीं होंगे उससे ज्यादा तो मैं लिख चुका हूँ.”

समय का सदुपयोग करना कोई उनसे सीखे. किसी परिचित का फ्यूनरल चल रहा हो तो एक ओर साईड में जाकर गूगल पर वॉईस इनपुट से बोलकर ब्लर्ब सेंड कर देते हैं. तकनीक ने उनका काम आसान कर दिया है. ब्लर्ब लेखन की दुनिया में उन्होंने वो मकाम हासिल कर लिया है कि नए लेखक खुद अपनी किताब का ब्लर्ब लिखकर ले आते हैं, वे उस पर सिग्नेचर जड़ देते हैं. कभी कभी उन्हें लटकती तलवार के नीचे बैठकर मंत्री जी की पीए से लेकर थानेदार साब की जोरू-मेहरारू तक की  किताब के लिए भी ब्लर्ब लिखना पड़ता है. ‘ना’ कह कर मुसीबत मोल लेने से बेहतर है कुछ मीठे नफीसतारीफों से भरे जुमले लिख दिए जाएँ. एक बार उन्होंने थानेदार की वाईफ़ की किताब पर लिख दिया – “कहानियाँ इतनी रोमांचक है कि पाठक सांस रोक पढ़ने को विवश हो जाता है.” उनकी बीड़ के पाठक चालाक निकले, उन्होंने पुलिस की नज़र बचाकर बीच बीच में सांस ले ली और मरने से बच गए. वे स्वयं सीवियर अस्थमेटिक रहे हैं, सांस रुक जाने के डर से उन्होंने भी इसे नहीं पढ़ा, मगर लिखने में क्या जाता है. वे मनुहार के कच्चे हैं. आग्रह हसीन हो, वाईफ की छोटी सिस्टर की किताब हो, बॉस की अपनी लिखी कविताओं की किताब हो तो मधुर-झूठ बोलने का पाप माथे लेने में वे कोई हर्ज़ नहीं समझते.

कोई यूं ही ब्लर्बसाज़ नहीं बन जाता है. किताब  के बाबत ऐसा ज़ोरदार लिखना पड़ता है कि गंजा भी कंघी खरीद ले. कुनैन की गोली को स्वीट-कैंडी बताने की कला विकसित करनी पड़ती है. हालाँकि वे घोषित प्रगतिशील हैं मगर मन ही मन बैकुंठ की आस पाले रहते हैं सो हर दिन सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर पिछले दिन ब्लर्ब पर लिखे गए झूठ की प्रभु से क्षमा मांग लेते हैं. कुछ लोग इसे झांसा देने की साहित्यिक कला मानते हैं. एक बार एक किताब के ब्लर्ब पर उन्होंने लिख दिया ‘लेखक नया है मगर उसमें स्पार्क है.’ नामचीन लेखक के कहे गए इस वाक्य को  पढ़कर पाठकों ने पुस्तक मेले के स्पेशल ट्वेंटी परसेंट डिस्काउंट में किताब खरीद तो ली मगर कुछ पन्ने पढ़ने के बाद ही उसमें स्पार्क ढूँढने लगे कि मिले तो उसी से जला दें इस किताब को.

वे किताबों की हसीन दुनिया के जॉन अब्राहम हैं. भोलाभाले पाठक ब्लर्ब पर उनका नाम, कभी कभी फोटो भी, देखकर ही क्यूआर कोड से यूपीआई पेमेंट कर डालते हैं. थोड़ा सा पढ़ने के बाद उन्हें वैसी ही निराशा हुआ करती है जैसी अमिताभ बच्चन के कहने पर आपको नवरतन तेल खरीद लेने पर हुआ करे है. मगर इससे न अमिताभ की सेहत पर कोई फर्क पड़ता है न ब्लर्बसाज़ की.

किताब के बकवास निकल जाने पर कंज्यूमर कोर्ट में क्षतिपूर्ति के दावे नहीं लगा करते. ऐसी ठगी से किताब के उपभोक्ता को बचाने के लिए पिछले दिनों एक सुखद खबर अमेरिका से आई है और वही हमारे ब्लर्बसाज़ जी के डिस्टर्ब होने का सबब बनी हुई है. खबर यह है कि साइमन और शूस्टर नामक एक अमेरिकी प्रकाशक ने तय किया है अब से वह किताबों पर ब्लर्ब नहीं छापा करेगा. न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी. न ब्लर्ब रहेगा न उस पर ‘अद्भुत’ लिखे जाने के भ्रामक दावे. ‘जागो पाठक जागो’ आन्दोलन के प्रणेताओं के लिए भले ही यह खबर सुकून देनेवाली हो मगर उनके तो हाथों के तोते उड़ने के लिए रेडी हैं. गर-चे भारत के प्रकाशकों ने ब्लर्ब न छापने का फैसला कर लिया तो ‘हम जी कर क्या करेंगे’. मन में वे एक आस पाले हुए हैं कि अपने आप में विधा बन चुका उनका विपुल ब्लर्ब लेखन उन्हें एक दिन ज्ञानपीठ सम्मान दिलवाएगा. अब उन्हें अपने सपनों पर पानी फिरता नज़र आ रहा है. भगवान् अमेरिकी प्रकाशक के फैसले जैसा समय भारत में कभी न आने दे. आमीन.

-x-x-x-

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जिजीविषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – जिजीविषा ? ?

संकट, कठिनाई,

अनिष्ट, पीड़ादायी,

आपदा, अवसाद,

विपदा, विषाद,

अरिष्ट, यातना,

पीड़ा, यंत्रणा,

टूटन, संताप,

घुटन, प्रलाप,

इन सबमें सामान्य क्या है?

क्या है जो हरेक में समाता है,

उत्कंठा ने प्रश्न किया..,

मुझे इन सबमें चुनौती

और जूझकर परास्त

करने का अवसर दिखता है,

जिजीविषा ने उत्तर दिया..!

?

© संजय भारद्वाज  

दोपहर 3: 24 बजे, सोमवार 9 मार्च 2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Endless Journey… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present Capt. Pravin Raghuvanshi ji’s amazing poem “~ Endless Journey… ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.) 

? ~ Endless Journey… ??

A moment swells into the eternity’s tide

in a journey where heart and spirit reside

Each step leaves a mark, a promise made,

in the universe, where memories cascade

*

Time’s waves crash, thoughts freely roam,

Then surrender to silence, its tranquil home

In the boundless sea, words lose their sway,

Silence speaks volumes, be it a night or day

*

In the depths of the soul, a light will shine,

Guiding us forward, through the life, divine

With each step, a new path will be designed

Journey of life, will have heart & soul aligned

~Pravin Raghuvanshi

 © Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune
23 March 2025

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 175 ☆ “इनविजिबल इडियट” – व्यंग्यकार… श्री प्रभाशंकर उपाध्याय ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री प्रभाशंकर उपाध्याय जी द्वारा लिखित  इनविजिबल इडियटपर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 175 ☆

“इनविजिबल इडियट” – व्यंग्यकार… श्री प्रभाशंकर उपाध्याय ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा

चर्चित व्यंग्य संग्रह.. इनविजिबल इडियट

व्यंग्यकार .. श्री प्रभाशंकर उपाध्याय

भावना प्रकाशन, दिल्ली

मूल्य 300रुपए, पृष्ठ 164

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

श्री प्रभाशंकर उपाध्याय

चर्चित कृति इनविजिबल इडियट, सामयिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को व्यंग्य के तीखे तेवर के साथ प्रस्तुत करती है। लेखक ने समाज में व्याप्त विसंगतियों, राजनीतिक पाखंड, साहित्यिक अवसरवादिता और मानवीय दुर्बलताओं को बेबाकी से उजागर किया है।

विषयवस्तु और व्यंग्य की प्रकृति

किताब में शामिल किए गए व्यंग्य लेखों से झलकता है कि इस कृति में अपनी पुरानी व्यंग्य पुस्तकों के क्रम में ही प्रभा शंकर उपाध्याय जी ने समकालीन सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों पर चोट की है। “सरकार इतने कदम उठाती है मगर, रखती कहाँ है?” और “गुमशुदा सरकार” जैसे लेखों में व्यंग्यकार ने प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचे की विसंगतियों को तीखे कटाक्ष के साथ उठाया है। वहीं “कोई लौटा दे मेरे बालों वाले दिन” और “पके पपीते की तरह आदमी का टूटना” जैसे शीर्षक मानवीय भावनाओं और जीवन की नश्वरता को हास्य और व्यंग्य के मेल से प्रस्तुत करते हैं।

भाषा और शिल्प

व्यंग्य-लेखन में भाषा की धार सबसे महत्वपूर्ण होती है, और यहां व्यंग्यकार ने सहज, प्रवाहमयी और चुटीली भाषा का प्रयोग किया है। “भेड़ की लात”, “घुटनों तक, …. और गिड़गिड़ा”, “जुबां और जूता दोनों ही सितमगर” जैसे शीर्षक ही भाषा में रोचकता और पैनेपन की झलक देते हैं।

हास्य और विडंबना का संतुलन

एक अच्छा व्यंग्यकार केवल कटाक्ष नहीं करता, बल्कि हास्य और विडंबना पर कटाक्ष का संतुलित उपयोग करके पाठक को सोचने पर मजबूर कर देता है। “फूल हँसी भीग गई, धार-धार पानी में”, “तीन दिवस का रामराज”, “लिट्रेचर फेस्ट में एक दिन” जैसे लेख संकेत करते हैं कि किताब में व्यंग्य के माध्यम से समाज के गंभीर पहलुओं को हास्य के साथ जोड़ा गया है।

समकालीनता और प्रासंगिक लेखन

लेखों के शीर्षकों से स्पष्ट है कि इसमें समकालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर तीखी टिप्पणियाँ हैं। “डेंगू सुंदरीः एडीस एजिप्टी”, “भ्रष्टाचार को देखकर होता क्यों हैरान?” और “अंगद के पांव” आदि व्यंग्य लेख आज के दौर की ज्वलंत समस्याओं को हास्य-व्यंग्य के जरिये प्रस्तुत करते है।

व्यंग्य के मूल्यों की पड़ताल

पुस्तक केवल समाज और राजनीति पर ही कटाक्ष नहीं करती, बल्कि साहित्यिक हलकों की भी पड़ताल करती है। “साहित्य का आधुनिक गुरु”, “ताबड़तोड़ साहित्यकार”, “साहित्य-त्रिदेवों का स्तुति वंदन” जैसे शीर्षक यह दर्शाते हैं कि इसमें साहित्यिक दुनिया के भीतर की राजनीति और दिखावे पर भी व्यंग्य किया गया है।

यह किताब व्यंग्य-साहित्य के मानकों पर खरी उतरती है। इसमें हास्य, विडंबना, कटाक्ष और सामाजिक जागरूकता का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है। भाषा प्रवाहमयी और चुटीली है, लेखों में पंच वाक्य भरपूर हैं। विषयवस्तु समकालीन मुद्दों से गहराई से जुड़ी हुई है। अगर लेखों का शिल्प और कथ्य शीर्षकों की रोचकता के अनुरूप है। मैने यह पुस्तक व्यंग्य की एक प्रभावशाली कृति के रूप में पाई है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, apniabhivyakti@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 170 – सजल – साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं…  ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण सजल “साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 170 – सजल – साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं…  ☆

(समांत – अस्त, पदांत – हैं, मात्राभार – 16)

साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं।

हर संचालक बड़े त्रस्त हैं।।

 *

छपवाने की होड़ मची कुछ।

प्रकाशक अब सभी मस्त हैं।।

 *

खुद का लिखा पीठ खुद ठोंका।

छंद-विज्ञानी सभी पस्त हैं।।

 *

श्रोताओं की कहाँ कमी अब।

उदरपूर्ति कर हुए लस्त हैं।।

 *

लंबी-चौड़ी कविता पढ़ लें।

चाँद-सितारे नहीं अस्त हैं।

परिहासों का दौर चल रहा।

पिछली आमद सभी ध्वस्त हैं।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

3/4/25

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 649 ⇒ पंचवटी ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पंचवटी।)

?अभी अभी # 649 ⇒ संतुलन ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जीवन संतुलन का नाम है। पूरी सृष्टि का संचालन श्रेष्ठ संतुलन का ही परिणाम है। भौगोलिक परिस्थितियां और पर्यावरण, मौसम के बदलते चक्र, सब कुछ किसी अज्ञात शक्ति के इशारे पर होता हुआ, क्रमबद्ध, नियम बद्ध। सुबह उठते ही एक कप चाय की तरह, तश्तरी में सुबह की ताजी हवा और धूप, और वह भी आपकी खिड़की में, बिना नागा।

क्या हमारी धरती और क्या आसमान, सुबह दोपहर और शाम, दिन और रात, अंधेरा उजाला, सूरज चंदा, तारा, नदी पहाड़ और वृक्ष वनस्पति और कुछ नहीं एक दिव्य संतुलन है। अगर पांचों तत्व हम पर मेहरबान हैं तो यह सब सृष्टि के संतुलन का ही परिणाम है।।

हम संतुलन का पाठ बचपन से ही सीखते चले आए हैं। एक नन्हा बालक पहले पालने में हाथ पांव मारता है, फिर जमीन पर संतुलन बनाते हुए वह उठना, बैठना और चलना भी सीख ही लेता है। आज हमें गर्व नहीं होता, लेकिन जब पहली बार अपने पांव के संतुलन के सहारे गिरते पड़ते दौड़ लगाई थी, तो मां कितनी खुश हुई थी। एक एक कदम लड़खड़ाते हुए चलना, संभलना, गिरना, फिर उठ खड़े होना। कभी रोना, कभी खुश होकर ताली बजाना। अपने पांव पर खड़े होना। जीवन के संतुलन का पहला पाठ।

संतुलन को हम balance भी कहते हैं और equilibrium भी। न कम न ज़्यादा, समान अनुपात। अगर हमारा वजन कम है तो हमें पौष्टिक आहार की सलाह दी जाती है और अगर वजन ज्यादा है तो संतुलित आहार। मात्रा का अनुपात ही प्रतिशत है। शून्य से शत प्रतिशत। कहीं जीरो तो कहीं हीरो। किसे पता था कि संतुलन का ग्राफ किसी दिन इतना ऊपर चला जाएगा कि लोग सफलता की सीढ़ियां चढ़ तो जाएंगे, लेकिन बाद में उतरना ही भूल जाएंगे। और सफलता का ग्राफ 0 से 100 का नहीं, 99 से 100 का ही रह जाएगा। आज जितना सुखी और संपन्न इंसान पहले कभी नहीं था।।

तराजू संतुलन के लिए होती है। जितने वजन का बांट होता है, उतना ही सौदा तुलता है। औषधि हो या भोजन, एक निश्चित मात्रा में ही असर करते हैं। पुण्य का कोई घड़ा नहीं होता, पाप का घड़ा जल्दी भर जाता है। जब पुण्य घटता है तो पाप का पलड़ा भारी हो जाता है। प्रकृति का संतुलन भी डगमगा जाता है। हमारे शरीर में भी अलार्म सिस्टम है और प्रकृति में भी। लेकिन हम उससे अधिकतर अनजान ही रहते हैं। जब पानी सर से ऊपर निकल जाता है, तब होश आता है।।

नफरत, स्वार्थ, खुदगर्जी, गला काट प्रतिस्पर्धा, किसी की टांग खींचना, किसी की चुगली करना, अपना ईमान गिरवी रखना, मुल्क के साथ, परिवार के लोगों के साथ विश्वासघात करना चारित्रिक असंतुलन की पराकाष्ठा है। मानवता पर कुठाराघात है। यह एक ऐसा सामूहिक अपराध है, जिसका दंड साधु और शैतान दोनों को भोगना है।

नृत्य में संतुलन है, भाव है भंगिमा है। नृत्य वंदना भी है और आराधना भी। नृत्य से नटराज प्रसन्न रहते हैं और नंगे नाच से वे भी क्रोधित और कुपित हो तांडव लीला प्रारंभ कर देते हैं। कोरोना का नंगा नाच हम देख ही चुके हैं।।

संतुलन ही असंतुलन का एकमात्र हल है, विकल्प है। अपने विकारों का नहीं, अच्छे विचारों का पलड़ा भारी हो। किसी का अनिष्ट सोचने की अपेक्षा सबके कल्याण के लिए प्रार्थना व प्रयत्न करें। पाप का पलड़ा भारी ना हो।

मानवता की रक्षा ही सृष्टि की सुरक्षा है। मन, वचन और कर्म में संतुलन बनाए रखें।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 223 – लघुकथा – मौन रामलला ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा मौन रामलला”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 223 ☆

🌻लघु कथा🌻 🛕 मौन रामलला🛕

बरसों से अस्पताल के चक्कर महंगे ईलाज, गाँव का झाड़ फूँक, जगह-जगह  देवी देवताओं की मन्नत, करते-करते वह थक चुकी थी।

शायद उसके आँसू और हृदय की वेदना को समझने के लिए, अभी रामलला मौन है। यही कहकर सविता अपने आप को धीरज बाँधती थी।

भरा- पूरा परिवार, परिवार के ताने और शायद बच्चें की किलकारी के लिए तरसती सविता। वेदना से भरी।

पतिदेव की सांत्वना सब कुछ समय आने पर ठीक होगा। हजारों की संख्या में मंदिर में आज भक्त भगवान श्री रामनवमी का महोत्सव मना रहे थे। पूजा की थाल लिए पीछे खड़ी सविता अखियाँ बंद परंतु अश्रुं की धार अविरल बह रही थी। इतनी भीड़ में भी वह अकेली शायद प्रभु भी नहीं, मौन सिर्फ मौन।

थककर वह बैठ गई। अब तो दर्शन की चाहत भी नहीं, बस समय को जाते हुए देख रही थी। अचानक दस वर्ष का बालक सविता के आँखों को पोछते गले में बाहें डाल कहने लगा— माँ जल्दी दर्शन करो रामलला दिखने लगे। वह आवाज चारों तरफ देखने लगी। आश्चर्य से न जाने कहाँ से यह बच्चा इतनी भीड़ में आ गया। पीछे पतिदेव कंधे पर हाथ रख मुस्कुराते कहने लगे सविता यह तुम्हारा मौन रामलला।

बस स्वागत करो। सविता को समझते देर ना लगी। आज पतिदेव ने जो कर दिखाया। प्रभु राम को हाथ जोड़ थाली में रखा पुष्प हार पतिदेव को पहना, माथे तिलक लगा चरणों पर गिर पड़ी।

बस एक ही शब्द निकला – – –

मेरे रामलला, मौन भी एक कला। 🛕🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 126 – देश-परदेश – Marry a Colleague ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 126 ☆ देश-परदेश – Marry a Colleague ☆ श्री राकेश कुमार ☆

जब तक विवाह नहीं हो जाता है, तब तक पेरेंट्स परेशान रहते हैं। विवाह हो जाने पर “विवाहित युगल” परेशान रहते हैं। इसी समस्या को लेकर बेंगलुरु के युवाओं ने इसके समाधान हेतु एक नई पहल आरम्भ कर दी है।

विगत कुछ वर्षों से युवा लड़के और लड़कियां समान रूप से किसी संस्था में कार्य करते हैं। रेल के इंजन चालक से देश के सुरक्षा बलों में महिलाएं पूर्णतः सहभागी बन चुकी हैं।

पति और पत्नी दोनों का नौकरी करना और अपने पेरेंट्स के बिना रहने से अनेक कठिनाइयां उनकी जिंदगी को दूभर बना देती है।

एक जापानी कांसेप्ट “क्वालिटी सर्कल” कार्यालय की समस्या को सुलझाने के लिए प्रचलन में हुआ करता था। उसी से प्रेरणा लेकर आज के युवा अपने कुलीग से ही विवाह कर बहुत सारी समस्याओं का निराकरण स्वत: कर सकते हैं।

पूर्व में भी कुलीग से प्रेम विवाह या पेरेंट्स द्वारा भी विवाह तय किया जाता रहा है। ये कोई नई बात तो नहीं है, परंतु इसके होने वाले लाभ की चर्चा आजकल सोशल मीडिया में खूब हो रही है।

आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक सुविधाओं की चर्चा में घर किराए से लेकर यातायात में शत प्रतिशत बचत की बात की जा रही है। एक ही टिफिन में दोपहर के भोजन से भविष्य में युगल के बच्चों को पति और पत्नी दोनों रेफर कर, दोहरा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

दोनों द्वारा “घर से कार्य” करने पर तो ये लाभ की मात्रा तो कई गुना बढ़ जाएगी। एक ही कार्यालय में काम करने से एक दूसरे पर शक सुबहा की संभावना भी नगण्य हो जाती है। इतनी सुख सुविधाओं के कारण “marry a colleague” एक बहुत अच्छा आइडिया कहा जा सकता है।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ सुश्री विनीता सिन्हा की पुस्तक ‘प्रेरणादीप : वर्तमान और अतीत’ लोकार्पित ☆ साभार – क्षितिज ब्यूरो ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ सुश्री विनीता सिन्हा की पुस्तक ‘प्रेरणादीप : वर्तमान और अतीत’ लोकार्पित – साभार – क्षितिज ब्यूरो ☆

मुंबई, सुश्री विनीता सिन्हा जी की पुस्तक ‘प्रेरणादीप : वर्तमान और अतीत’ का विमोचन मुंबई प्रेस क्लब के सभागृह में शनिवार 22 मार्च को सम्पन्न हुआ। यह पुस्तक क्षितिज प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुई है।

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ सूर्यबाला जी ने कहा कि – “कृति को और रचनाकार को अपने दम पर खड़ा होना चाहिए न कि पुरस्कार के दम पर। लेखक के पास अपनी आत्मा होनी चाहिए जिसमें वह झांक कर स्वयं को देख सके। आज का पुस्तक विमोचन समारोह एक पवित्र अनुष्ठान है। अपने आसपास की ऊँचाइयों को प्रेरणादीप के रूप में प्रस्तुत करने वाली लेखिका विनीता सिन्हा मेरे लिए ख़ुद एक प्रेरणादीप हैं। आज के समय में जब लेखन हृदय से नहीं केवल विचार से किया जाता हो, यह पुस्तक हृदय से लिखी गई है।हमारी आज की पीढ़ी को ऐसी पुस्तकों की आवश्यकता है।”

हिंदी आंदोलन परिवार के अध्यक्ष श्री संजय भारद्वाज जी ने कहा कि – “किसी सफल व्यक्ति से उसकी सफलता का राज़ पूछिए तो वह सामान्यत: कहता है कि फलां पुस्तक का प्रभाव उस पर पड़ा या बचपन में फलां लेखक की एक पंक्ति ने उसका जीवन बदल डाला। यह कथन, लेखन और पुस्तक के महत्व को प्रतिपादित करता है। तथापि जब दुनिया के सबसे प्रभावी 100 व्यक्तियों की सूची बनाई जाती है तो उसमें राजनेता, उद्योगपति, सिने कलाकार, खिलाड़ी तो होते हैं पर कभी लेखक नहीं होता। ‘प्रेरणादीप’ एक ऐसी पुस्तक है जिसमें लेखिका ने जिन व्यक्तित्वों का उल्लेख किया है, वे सभी लेखक हैं।” सुश्री विनीता सिन्हा जी को जिजीविषा का साकार रूप बताते हुए उन्होंने लेखिका के आत्मविश्वास की प्रशंसा की।

वरिष्ठ लेखक, अनुवादक श्री रमेश यादव जी ने पुस्तक की विस्तृत विवेचना की‌। उन्होंने लेखिका द्वारा उल्लिखित हर प्रेरणादीप के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा की। लेखिका द्वारा वर्णित स्व. चित्तरंजन दास बक्शी की जीवनगाथा के अनेक आयामों और तत्संबंधी घटनाओं पर प्रकाश डाला। स्व. चंद्रकांत खोत से सम्बंधित कुछ प्रसंगों को भी उन्होंने याद किया। उन्होंने लेखिका द्वारा अपने माता-पिता पर लिखी कविताओं का पाठ भी किया।

प्राध्यापिका डॉ. मेघा पवार ने पुस्तक के साहित्यिक शिल्प की चर्चा की। श्रीमति सुधा भारद्वाज जी ने प्रकाशक का मत रखते हुए लेखिका के व्यक्तित्व के विभिन्न शक्ति बिंदुओं का उल्लेख किया। श्री नवीन सिन्हा जी ने लेखिका की साहित्यिक यात्रा की जानकारी दी।

अपनी बात रखते हुए लेखिका सुश्री विनीता सिन्हा जी ने कहा कि- “बहुत लंबे वक़्त से मन में एक बात आती रहती थी कि हमारी पीढ़ी नें पुराना वक़्त भी देखा और अब नई शताब्दी की दिनों-दिन हासिल होती उपलब्धियों को भी देख रही है। हमारे बाद जो आने वाली पीढ़ियाँ होंगी, उनके लिए तो हमारे कल और आज, दोनों ही की बातें इतिहास होंगी। जो आज वर्तमान है, वही तो कल इतिहास होगा। अतः महसूस होता है कि उनके लिए धरोहर के रूप में कुछ ऐसी हस्तियों के कुछ ऐसे कारनामे बयान किए जाएँ जो उनकी ज़िन्दगी के सफ़र में पाथेय की भूमिका निभाएँ और उसे संवारने में उनकी मदद कर सके। यह पुस्तक उसी अतीत और वर्तमान के कुछ पन्नों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोने का एक प्रयास मात्र है।”

वेरा सिन्हा जी ने कार्यक्रम का सटीक संचालन किया। वरिष्ठ लेखिका सुश्री वीनु जमुआर जी ने आभार प्रदर्शन किया।

कार्यक्रम में मुंबई -पुणे के लेखक, पत्रकार, विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य, लेखिका के परिजन तथा परिचित उल्लेखनीय संख्या में उपस्थित थे।

साभार : क्षितिज ब्यूरो 

☆ ☆ ☆ ☆

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #279 ☆ कैलास व्हावे… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 279 ?

☆ कैलास व्हावे… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

वाटते मुद्दाम मी नापास व्हावे

मालकी मजला नको मी दास व्हावे

*

पाउले गिरिजा पतीची पूज्य मजला

त्याचसाठी वाटते कैलास व्हावे

*

रेशमी केसात गजरे माळले तू

वाटते आहे सुगंधी वास व्हावे

*

चाळलेला देह सारा हा तुझा मी

वाटते आता तुझा मी श्वास व्हावे

*

दूर तू आहेस याची जाण आहे

तू जवळ आहेस असले भास व्हावे

*

आसनावर तू बसावे छान पैकी

आसनाची मी तुझ्या आरास व्हावे

*

पाहिलेला हिंस्र प्राणी मी भुकेला

वाटते मज आज त्याचा घास व्हावे

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

ashokbhambure123@gmail.com

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares