(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)
We present his awesome poem Eternal QuestWe extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – टूट गए अनुबंध सभी हैं…।
रचना संसार # 38 – गीत – टूट गए अनुबंध सभी हैं… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “…तो मुश्किल होगी“।)
अभी अभी # 592 ⇒ …तो मुश्किल होगी श्री प्रदीप शर्मा
हम आम लोगों की मुश्किलें कुछ अलग किस्म की होती हैं, मसलन कभी जेठ की भरी दोपहर में लाइट चली जाए अथवा कड़ाके की ठंड में गीज़र खराब हो जाए। लेकिन शायर कुछ अलग किस्म की मिट्टी के बने होते हैं और उनकी मुश्किलों की तो बस पूछिए ही मत।
कौन किससे प्यार करे, यह उसका जाती मामला होता है, दुनिया इसे चाहत का खेल कहती है। हमारे साहिर साहब तो वैसे भी बड़े दिल वाले हैं, उनको क्या फ़र्क पड़ता है क्योंकि उनका तो पहला प्यार ही शायरी है।।
वे कितनी आसानी और दरियादिली से कह जाते हैं ;
तुम अगर मुझको ना चाहो
तो कोई बात नहीं ..
यह कोई छोटी बात नहीं। यह बतलाता है कि वे भी सामने वाले की पसंद नापसंद की कद्र करते हैं, ठीक है ;
तुम मगर मुझको ना चाहो तो कोई बात नहीं
मेरी बात और है
मैंने तो मोहब्बत की है ..
लेकिन नहीं, यहां हमारे साहिर साहब एकदम पलटी मार देते हैं। वे एकदम कह उठते हैं ;
तुम किसी और को चाहोगी
तो मुश्किल होगी …
अब क्या मुश्किल होगी, कौन सी आफत आ पड़ेगी अथवा कौन सा पहाड़ टूट जाएगा।अरे भाई साफ साफ क्यों नहीं कहते, दिल टूट जाएगा, मैं बर्बाद हो जाऊंगा। लेकिन नहीं, यहां भी शराफत ओढ़, कह दिया, तो मुश्किल होगी।।
बात यहां खत्म नहीं होती, यहां से तो शुरू होती है। आप फरमाते हैं ;
अब अगर मेल नहीं है तो जुदाई भी नहीं
बात तोड़ी भी नहीं तुमने बनाई भी नहीं
ये सहारा भी बहुत है मेरे जीने के लिये
तुम अगर मेरी नहीं हो तो पराई भी नहीं
मेरे दिल को न सराहो तो कोई बात नहीं
गैर के दिल को सराहोगी, तो मुश्किल होगी ..
तुम हसीं हो, तुम्हें सब प्यार ही करते होंगे
मैं तो मरता हूँ तो क्या और भी मरते होंगे
सब की आँखों में इसी शौक़ का तूफ़ां होगा
सब के सीने में यही दर्द उभरते होंगे
मेरे ग़म में न कराहो तो कोई बात नहीं
और के ग़म में कराहोगी तो मुश्किल होगी ..
इतना ही नहीं, जरा आगे देखिए ;
फूल की तरह हँसो, सब की निगाहों में रहो
अपनी मासूम जवानी की पनाहों में रहो
मुझको वो दिन न दिखाना तुम्हें अपनी ही क़सम
मैं तरसता रहूँ तुम गैर की बाहों में रहो
तुम अगर मुझसे न निभाओ तो कोई बात नहीं
किसी दुश्मन से निभाओगी तो मुश्किल होगी ..
हर इंसान में एक पजेसिव इंस्टिंक्ट होती है। जो मेरा नहीं हो सका, वह किसी का भी ना हो। आम आदमी पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ सकता है, वह देवदास भी बन सकता है। लेकिन जो लोग संजीदा होते हैं, वे ही कवि अथवा शायर बन पाते हैं।
साहिर भले ही एक कामयाब शायर हों, लेकिन अमृता की तरह खुलकर उन्होंने कभी अपने प्यार अथवा दर्द का इज़हार नहीं किया। आप कह सकते हैं, यही तो फर्क है, एक पुरुष और नारी में। कहीं भावुकता और समर्पण है तो कहीं ग़मों से समझौता करने का गुर अथवा दिल पर पत्थर रख लेने की मजबूरी। शायद यही फर्क है साहिर – अमृता और सुरैया – देवानंद में।
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण रचना वतन के गीत।)
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.“साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे… । आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
हा फोटो एका टोमॅटोच्या झाडाचा आहे. कदाचित एखाद्या प्रवासी यात्रेकरूने टोमॅटोचे बी धावत्या रेल्वेतून फेकली असेल. हे झाड मातीशिवाय, काळ्या पाषाणात रुजले आणि वाढले. लहान असताना शताब्दी किंवा राजधानी एक्सप्रेससारख्या जलद गाड्या याच्या अगदी जवळून जात असतील, कर्कश आवाज याला हादरवत असतील. अस्तित्व संपण्याची भिती होती, पण झाडाने संघर्ष करत स्वतःला जिवंत ठेवले.
ना पाणी, ना खत, ना माती, ना संगोपन… असल्या प्रतिकूल परिस्थितीतही या झाडाने फळ धरले. त्याचा उद्देश एकच होता, वंश सातत्य टिकवणे. या संघर्षात झाडाने तो उद्देश पूर्ण केला.
समाजात बऱ्याच जणांना वाटते की, आपण अपयशी ठरलो, आपले जीवन निरर्थक झाले. परंतु त्यांनी या टोमॅटोच्या झाडापासून शिकायला हवे. परिस्थिती कितीही कठीण असो, संघर्ष करत राहणे आणि ध्येय गाठणे हेच जीवनाचे खरे यश आहे.
म्हणून साथींनो, परिस्थिती प्रतिकूल असली तरी निराश होऊ नका, संघर्ष करा. कारण यश तुमचे उद्दिष्ट पूर्ण करण्यासाठी तुमची वाट पाहत आहे. जिद्द, चिकाटी आणि विश्वास, हाच असतो माणसाचा यशाकडे जाण्याचा प्रवास.
☆ व्रतोपासना – ९. पशू पक्षी यांचा आदर करावा ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆
आपण ज्या पृथ्वीवर रहातो तेथे मानव एकटाच नसतो. पृथ्वीवर जी जीवसृष्टी आहे त्यातील माणूस हा एक प्राणी आहे. माणूस बुध्दीने सर्वश्रेष्ठ असल्याने सर्वांच्या वरचढ ठरला आहे. तसे पाहिले तर इतर प्राण्यांच्या कडे जे आहे त्यातील काहीच माणसाकडे नाही. पण आपल्या बुद्धीच्या बळावर तो सर्वांना ताब्यात ठेवू शकतो. प्राण्यांच्या ठायी असलेल्या शक्ती मशिन द्वारे प्राप्त करतो. खरे तर सर्व पशू पक्षी निसर्गात महत्वाचे असतात. ते निसर्गाचा समतोल राखतात. त्यांच्या मुळे निसर्गाचे संवर्धन होते. या मुळे आपले जीवन समृध्द होते. निसर्गाचे चक्र अव्याहत चालू रहायचे असेल तर हे पशू, पक्षी, कीटक, वृक्ष, नद्या, डोंगर आवश्यक आहेत. परंतू हे लक्षात न घेता माणसाने आपल्या बुद्धीचा स्वार्थी व बेबंद वापर केला तर माणसाचीच सर्वात जास्त हानी होणार आहे. ज्या जीवसृष्टीच्या आधारे माणूस सुखात जगत असतो, ज्यांच्या आधाराने जगत असतो त्यांचे आपण ऋणी असले पाहिजे. ही साधी माणुसकी आहे.
या विषयी भारतीय संस्कृतीने उच्च आदर्श जपला आहे. श्राद्ध या कृतज्ञता विधीमध्ये धर्मपिंड दिले जाते. ते सर्व पशू, पक्षी, वृक्ष, नद्या, पर्वत ज्या सर्वांनी आपल्याला पोसले त्या सर्वांना हे धर्मपिंड असते.
कोणीही कितीही श्रेष्ठ असेल, बुद्धिवादी असेल तरी कोणालाही क्षुद्र म्हणून हिणवू नये, निंदा करू नये, लाथाडू नये. या निसर्गा पुढे नम्र व्हावे. आणि सर्वांच्या कल्याणासाठी प्रार्थना करावी.