हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – माप ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  माप ? ?

मुट्ठी भर राख में

सिमट गया है,

यह वही आदमी है,

जो खुद को

माप की परिधि से

बड़ा समझता रहा

जीवन भर …!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 6:13 बजे, 20 मार्च 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 224 ☆ सुखद संदेश… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना सुखद संदेश। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 224 ☆ सुखद संदेश…

विनम्रता का भाव जीत का आधार बनता है। विकट समस्या भी एक समय के बाद स्वयं हल हो जाती है। जहाँ एक ओर लोग इसे सहजता से स्वीकार करते हैं तो वहीं दूसरी ओर लोग रो पीट कर, थक हार कर इसे ईश्वर की नियति मानकर अपनाते हैं। भाव कोई भी हो वक्त हर मरहम की दवा बन सबको जीने का पाठ पढ़ाता है। जिस वातावरण में हम रहते हैं वहाँ का असर पड़ना स्वाभाविक है, बुद्धिमानी तो इसमें है कि हमें अपनी संगति का सतत ध्यान रखना चाहिए, किसी कीमत पर इससे समझौता न हो। आध्यात्मिक शक्ति हमको जीवन मूल्यों के साथ अपने उद्देश्यों से भी परिचित कराती है इसलिए इसके साथ रहिए…अर्चना, वंदना, भक्ति की शक्ति को अपनी ताकत बना ब्रह्मांड से जुड़ें।

*

करें हम आराधना

नित्य सरस साधना

भेदभाव दूर होवे

प्रार्थना तो कीजिए।

*

वंदना करेंगे सभी

काज पूरे होंगे तभी

मिलजुल कर रहें

शुभाशीष लीजिए। ।

*

कोई न विश्वास दूजा

धर्म कर्म सत्य पूजा

आनन्द में डूबकर

भक्ति रस पीजिए।

*

धार के उम्मीद सारे

प्रेमभाव जो निहारे

ज्ञान भरी ज्योति जले

ये संदेश दीजिए। ।

*

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # 32 – बिल्ली का गाना ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ ☆

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

(डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार, बाल साहित्य लेखक, और कवि हैं। उन्होंने तेलंगाना सरकार के लिए प्राथमिक स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालय स्तर पर कुल 55 पुस्तकों को लिखने, संपादन करने, और समन्वय करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनके ऑनलाइन संपादन में आचार्य रामचंद्र शुक्ला के कामों के ऑनलाइन संस्करणों का संपादन शामिल है। व्यंग्यकार डॉ. सुरेश कुमार मिश्र ने शिक्षक की मौत पर साहित्य आजतक चैनल पर आठ लाख से अधिक पढ़े, देखे और सुने गई प्रसिद्ध व्यंग्यकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित की है। तेलंगाना हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार द्वारा श्रेष्ठ नवयुवा रचनाकार सम्मान, 2021 (तेलंगाना, भारत, के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के करकमलों से), व्यंग्य यात्रा रवींद्रनाथ त्यागी सोपान सम्मान (आदरणीय सूर्यबाला जी, प्रेम जनमेजय जी, प्रताप सहगल जी, कमल किशोर गोयनका जी के करकमलों से), साहित्य सृजन सम्मान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करकमलों से और अन्य कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठात्मक सम्मान प्राप्त हुए हैं। आप प्रत्येक गुरुवार डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – चुभते तीर में उनकी अप्रतिम व्यंग्य रचनाओं को आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय व्यंग्य रचना बिल्ली का गाना)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # 32 – बिल्ली का गाना ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ 

(तेलंगाना साहित्य अकादमी से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

यह कहानी है एक ऐसे गांव की, जहां की हर चीज़ अनोखी थी। गांव का नाम था “गायबपुर”, जहां लोग अजीबोगरीब शौक रखते थे। इस गांव में एक बिल्ली थी, जिसका नाम था “म्याऊं-सर”। म्याऊं-सर का एक खास शौक था – वह हर सुबह बांग्ला गाने गाने का शौक रखती थी। अब सवाल यह था कि एक बिल्ली गाने गा सकती है? लेकिन गायबपुर के लोग तो अपने मजेदार शौक के लिए जाने जाते थे, इसलिए उन्होंने इसे गंभीरता से ले लिया।

गांव के लोग म्याऊं-सर के गाने को सुनने के लिए हर सुबह एकत्र होते। पहले तो गांव के लोग समझ नहीं पाए कि यह क्या हो रहा है, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें इसकी आदत हो गई। म्याऊं-सर जब गाना शुरू करती, तो गांव में हलचल मच जाती। अब यह तो तय था कि गाना किसी इंसान का नहीं था, लेकिन लोग इसे सुनने के लिए बेताब रहते थे।

गांव के कुछ लोग इस स्थिति पर चिंता कर रहे थे। “क्या यह बिल्ली सच में गाना गा रही है?” एक बुजुर्ग ने कहा। “क्या हमें इसे गायक का दर्जा देना चाहिए?” दूसरे ने कहा। सब लोग एक-दूसरे की तरफ देखते रहे। अंततः गांव के प्रधान ने यह तय किया कि म्याऊं-सर को एक पुरस्कार देना चाहिए। उन्होंने घोषणा की कि म्याऊं-सर को “सर्वश्रेष्ठ गायिका” का खिताब दिया जाएगा।

गांव के लोग इस फैसले से खुश थे, लेकिन कुछ लोग इसके खिलाफ थे। उन्होंने कहा, “यह सब बेतुकी बात है! एक बिल्ली को कैसे गायिका माना जा सकता है?” लेकिन प्रधान ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने म्याऊं-सर के लिए एक विशेष समारोह आयोजित किया, जिसमें गांव के सभी लोग शामिल हुए।

समारोह में म्याऊं-सर को एक स्वर्ण पदक और एक बड़ी सी मछली का तोहफा दिया गया। म्याऊं-सर ने गाने का काम जारी रखा और गांव के लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। लेकिन इसके साथ ही, गांव में कुछ नई समस्याएं भी आ गईं। अब गांव के लोग रोज म्याऊं-सर के गाने के लिए पैसे देने लगे थे। कुछ लोग तो म्याऊं-सर के गाने को सुनने के लिए अपनी जमीन तक बेचने लगे।

गायबपुर में यह स्थिति धीरे-धीरे बढ़ती गई। अब तो गांव के बच्चे भी म्याऊं-सर के गाने के दीवाने हो गए थे। वे उसके गाने को सुनने के लिए स्कूल नहीं जाते थे। लेकिन फिर एक दिन, म्याऊं-सर अचानक गायब हो गई। गांव में हड़कंप मच गया। सब लोग म्याऊं-सर की तलाश में निकल पड़े। कुछ लोगों ने कहा, “शायद म्याऊं-सर किसी बड़े संगीत कार्यक्रम में भाग लेने गई होगी!” जबकि दूसरों ने कहा, “शायद वह अब गाना नहीं गाना चाहती।”

गांव के लोगों ने बहुत कोशिश की, लेकिन म्याऊं-सर का कोई सुराग नहीं मिला। लोगों ने कई दिन तक उसके लिए पूजा-पाठ किया, लेकिन वह वापस नहीं आई। अंत में, गांव के लोग इस बात को मानने लगे कि शायद म्याऊं-सर गाने का शौक छोड़ चुकी है। उन्होंने अपने-अपने काम में लगना शुरू किया।

कुछ महीने बाद, एक नया शख्स गांव में आया। उसका नाम था “गायकीपुर”, और वह खुद एक गायक था। उसने गांव वालों को बताया कि वह म्याऊं-सर की गायकी के बारे में सुन चुका है और उसे जानने के लिए आया है। गांव वालों ने उसे म्याऊं-सर की कहानी सुनाई और बताया कि कैसे उसने उन्हें अपनी गायकी से प्रभावित किया।

गायकीपुर ने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि असली गायकी क्या होती है?” गांव वालों ने चौंकते हुए कहा, “क्या मतलब?” गायकीपुर ने उन्हें समझाया, “गायकी तो इंसानों का काम है। बिल्ली का गाना तो एक मजाक है।”

गांव के लोगों ने इस पर गंभीरता से विचार किया। उन्होंने महसूस किया कि वे एक बिल्ली की वजह से अपने जीवन की अहमियत को भूल गए थे। म्याऊं-सर की गायकी एक मजाक बनकर रह गई थी, जबकि असली गायकी और संगीत की महत्वता को उन्होंने नजरअंदाज कर दिया था।

इस घटना के बाद, गांव के लोग म्याऊं-सर को भूल गए और अपने असली सपनों की ओर बढ़ने लगे। गायबपुर ने फिर से अपने असली रंगों में लौटने की कोशिश की। और इस बार, कोई भी बिल्ली के गाने की बात नहीं करता। म्याऊं-सर अब केवल एक याद बन गई थी, एक हास्यास्पद लेकिन महत्वपूर्ण कहानी, जो इस बात की याद दिलाती थी कि कभी-कभी हम बेतुके शौक और हास्यास्पद चीज़ों में अपने असली लक्ष्यों को भूल जाते हैं।

© डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

संपर्क : चरवाणीः +91 73 8657 8657, ई-मेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #197 – अँधा – ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय लघुकथा – अँधा)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 197 ☆

☆ लघुकथा- अँधा ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

 “अरे बाबा ! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चींखते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.

बाबा खुद को सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए. बोले ,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”

“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए ,”बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया ,” मगर , आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”

“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”

“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है .”

 © श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

११/०७/२०१५

संपर्क – 14/198, नई आबादी, गार्डन के सामने, सामुदायिक भवन के पीछे, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675 /8827985775

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – रंगमंच ☆ – “रंगशीर्ष भोपाल का लघु नाट्य प्रयोग” ☆ रपट – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

?  रंगमंच – रंगशीर्ष भोपाल का लघु नाट्य प्रयोग… ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

रंगशीर्ष भोपाल, ने सुश्री रीना बिष्ट के निर्देशन में विगत दिवस दो कहानियां शीर्षक से स्व हरिशंकर परसाई की प्रसिद्ध कहानी “वह जो आदमी है ना” का नाट्य रूपांतरण तथा श्रीमती कांता राय की कहानी “मां की नजर” के नाटक रूपांतरण की लघु प्रस्तुतियां दुष्यंत संग्रहालय भोपाल के सभागार में आयोजित की।

“वो जो आदमी है ना” का प्रसिद्ध व्यंग्य है जिसमें वे लोगों के दोहरे चरित्र को उजागर करते हैं। रचना जीवन के विभिन्न पहलूओं निन्दा, स्वार्थ, स्वहित, चरित्रहीनता पर कटाक्ष करती है। कितने ही लोग है जो ‘चरित्रहीन’ होने के अवसर नहीं मिल पाने से ‘चरित्रवान’ बने रहते हैं।

निंदा में, अपने परिवेश में तांक झांक करने में लोग मजे लेते हैं। इसी कथानक को नाट्य संवाद शैली में मंच पर केवल पंद्रह मिनट में प्रस्तुत किया गया। कलाकार श्री बालक राम यादव तथा श्री सौरभ राजपूत ने संवाद के उतार चढ़ाव और निर्देशक के अनुरूप अभिनय से कहानी को दर्शकों के लिए सहज ग्राहय बना दिया।

नाटक पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध भाषाविद डा जवाहर कर्णावट ने कहा कि सीमित मंच साधनों के बिना भी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। नाट्य लेखक विवेक रंजन श्रीवास्तव ने कहा कि इस तरह की लघु एकांकी पूर्वरंग के अंतर्गत प्रस्तुति हेतु उपयुक्त हैं, उन्होंने रंगशीर्ष की टीम को उनके प्रयासों के लिए बधाई दी।

दूसरी प्रस्तुति भोपाल की लेखिका श्रीमति कांता राय की लघुकथा “माँ की नजर” की नाट्य रूपांतरण प्रस्तुति थी। पत्नि की खुशी और जरूरत का ख्याल रखने वालों को संयुक्त परिवार में जोरू का गुलाम समझा जाता है, इस विसंगति पर चोट करते कथ्य को संवाद शैली में मंच पर अभिनीत किया गया। सुश्री हिमांशी मालवीय एवं श्री सौरभ राजपूत ने अच्छा अभिनय और संवाद प्रस्तुत किया।

कुल मिलाकर रंगशीर्ष का यह प्रयास सराहनीय है। संस्था के श्री मेहता ने बताया कि जल्दी ही कविताएं भी मंच पर प्रस्तुत की जाएंगी।

रपट – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 231 ☆ बाल गीत – ज्ञानवर्धक कविता पहेली –  बूझो तो जानें … ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 231 ☆ 

बाल गीत –  ज्ञानवर्धक कविता पहेली –  बूझो तो जानें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

ग्रेट डिजर्ट कहते जिसे

बच्चों वो है कौन?

सबसे गर्म भूमि जिसकी

रहता बिल्कुल मौन।

क्षेत्रफल में है तीसरा

पूर्व में है जिसके लालसागर।

उत्तर में है भूमध्य सागर

पश्चिम अटलांटिक महासागर।

 *

रेखा कर्क गुजरती

जिसके होकर मध्य।

उसमें एमी कौसी शिखर

देश कई कर बध्य।

 *

वानवे लाख वर्ग किलोमीटर

फैला जिसका क्षेत्र।

उपोष्णकटिबंधीय है मगर

फैला रेत ही रेत।

 *

माली, मोरक्को,मिस्र, लीबिया

और चाड , अल्जीरिया।

फैला सूडान , नाइजर गणराज्य तक

और लगा बुर्किना , नाइजीरिया।

उत्तर सहारा रेगिस्तान 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “दु:खद वास्तव…” ☆ श्री जगदीश काबरे ☆

श्री जगदीश काबरे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “दु:खद वास्तव…–☆ श्री जगदीश काबरे ☆

सुखांमागे धावता धावता, विवेक पडतो गहाण

पाण्यात राहूनही माशाची मग भागत नाही तहान ॥१॥

*

स्वप्न सत्यात आणता आणता दमछाक होते खूप

वाटीवाटीने ओतलं तरी कमीच पडत तूप ॥ २॥

*

बायका आणि पोरांसाठी चाले म्हणे हा खेळ

पैसा आणून ओतेन म्हणतो, पण मागू नका वेळ ॥३॥

*

करिअरच होतं आहे जीवन, मात्र जगायचं जमेना तंत्र

बापाची ओळख मुलं सांगती, पैसा छापणार यंत्र ॥४॥

*

चुकून सुट्टी घेतलीच तरी, पाहुणा ‘स्वतःच्या घरी’

दोन दिवस कौतुक होतं, नंतर डोकेदुखी सारी ॥५॥

*

मुलंच मग विचारू लागतात, बाबा अजून का हो हे जात नाही घरी?

त्यांचाही दोष नसतो, त्यांना याची सवयच नसते खरी ॥६॥

*

सोनेरी वेली वाढत जातात, घराभोवती चढलेल्या,

आतून मात्र मातीच्या भिंती, कधीही न सारवलेल्या ॥७॥

*

आयुष्याच्या संध्याकाळी मग एकदम जाणवू लागत काही,

धावण्याच्या हट्टापायी आपण श्वासच मुळी घेतला नाही ॥८॥

*

सगळ काही पाहता पाहता, आरशात पाहणं राहून गेलं,

सुखाची तहान भागवता भागवता, समाधान दूर दूर वाहून गेलं! ॥ ९॥

© श्री जगदीश काबरे

मो ९९२०१९७६८०

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “क्षितिज संग…” ☆ प्रा. भरत खैरकर☆

प्रा. भरत खैरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “क्षितिज संग” ☆ प्रा. भरत खैरकर 

श्वासामधली अधीर भाषा

कशी कळेना-सखे तुला

प्रणयसुखाच्या फांदीवरती

योवनाचा झुलतो झुला !

*

धडाडती हृदय स्पंदने

अन्‌ उधाणती उसासे

वेदनेच्या कळा साहत

वाजती देहांचे ताशे !

*

धुंद नशेच्या मंथरज्वाला

जाळी माझे अंग अंग

मिठीमाजी सखये तुझ्या

क्षितिजाचा गवसे संग!!

© प्रा. भरत खैरकर

संपर्क – बी १/७, काकडे पार्क, तानाजी नगर, चिंचवड, पुणे ३३. मो.  ९८८१६१५३२९

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ तो आणि मी…! – भाग ३६ ☆ श्री अरविंद लिमये ☆

श्री अरविंद लिमये

? विविधा ?

☆ तो आणि मी…! – भाग ३६ ☆ श्री अरविंद लिमये ☆

(पूर्वसूत्र- दुसऱ्या दिवशी तिन्हीसांजेला जेव्हा न रडता बाळ छान खेळत राहिलं तेव्हा मात्र सगळ्यांच्या डोक्यावरचं ओझं आपसूकच हलकं झालं. बाबा गेले असले तरी या ना त्या रूपात ते आपल्याजवळच आहेत असा दिलासा देणारी ही घटना जेव्हा पुढे गप्पांच्या ओघात मला समजली तेव्हा ते ऐकून माझ्या मनात त्याबद्दल कणभरही साशंकता निर्माण झालेली नव्हती. पण या घटनेला परस्पर छेद देणारी अशीच एक घटना जेव्हा पुढे माझ्या संसारात घडली तेव्हा मात्र…. ?)

माझ्या संसारात घडलेल्या त्या घटनेने निर्माण झालेल्या जीवघेण्या दु:खाशी कधीकाळी माझ्या आयुष्यात येऊन गेलेल्या व्यक्तींचे धागेदोरे जुळलेले असणे शक्य तरी आहे का? पण ते तसे होते. त्याचा थांग मात्र आज चाळीस वर्षे उलटून गेल्यानंतरही मला लागलेला नाही. ते सगळेच अनुभव इतक्या वर्षांनंतर आजही नुकतेच घडून गेलेले असावेत तसे मला लख्ख आठवतायत!

वर उल्लेख केलेल्या खूप वर्षांपूर्वी आमच्या संपर्कात येऊन गेलेल्या त्या व्यक्ती म्हणजे आमचे किर्लोस्करवाडीचे माझ्या बालपणातले शेजारी. बाबांच्या बदलीनंतर आम्ही कुरुंदवाडहून किर्लोस्करवाडीला रहायला आलो तेव्हा कॉलनीतल्या आमच्या शेजारी रहात असलेले ते पाटील कुटुंबीय. त्यांचा शेजार हा माझ्या आयुष्यातला खरंच अतिशय आनंदाचा काळ होता!

किर्लोस्करवाडीला आमचं जाणं म्हणजे आमच्यासाठी वाडासंस्कृतीतून एका आखीव-रेखीव, चित्रासारख्या सुंदर अशा काॅलनीत रहायला जाणे होते. तिथे शेजार कसा असेल याबद्दल दडपणमिश्रित उत्सुकता आईच्या मनात होती आणि ‘आपल्याबरोबर खेळायला तेथे मित्र असतील ना?’ ही अनिश्चितता आम्हा भावंडांच्या. बहिणींनी बोलून दाखवलं नाही तरी मैत्रिणी कशा मिळतील याची उत्सुकता त्यांच्याही मनात असणारच. आमच्या सर्वांच्या या अपेक्षा एकहाती पूर्ण केल्या आमच्या शेजारी रहाणाऱ्या पाटील कुटुंबाने!

बाबा आधीच चार दिवस कि. वाडीला पोस्टात हजर झाले होते. आई बांधाबांध करुन आम्हा भावंडांना घेऊन आलेली. बाबा स्टेशनवर उतरून घ्यायला आले तेव्हा याच सगळ्या भावना मनात गर्दी करीत होत्या. आम्ही तिथे स्टेशनबाहेर आलो तेव्हा बाबांनी आधीच ठरवून ठेवलेला टांगा आमच्या स्वागताला सज्ज होता. टांग्यात प्रथमच बसायला मिळणार असल्याने आम्ही सर्व भावंडे हरखून गेलो.

“ते बघ. बाळाला घेऊन त्या मुली दारात बसल्यात ना त्याच्या शेजारचंच आमचं घर. तिथं थांबव. ” बाबा टांगेवाल्याला म्हणाले.

‘त्या दोन मुली म्हणजे शेजारच्या पाटील कुटुंबातल्या लिला आणि बेबी या दोन बहिणी. जेमतेम १७-१८च्या आसपास वय असलेल्या त्या दोघी पुरता महिनाही न झालेल्या एका लहान बाळाला वाटीत दूध घेऊन ते कापसाच्या बोळ्यानं एकेक थेंब पाजवत बसलेल्या. ते विचित्र दृश्य पाहून आईचा जीव कळवळला. प्रवासातून दमून आलेली असूनही घरात न जाता आई पहिल्या पायरीवरच थबकली.

“एवढ्या लहान बाळाला असं बाहेर दूध पाजवत कां बसलायत ? गार वारं नाही कां गं लागणार त्याला? उठा बरं. त्याला आत न्या. आणि तुम्ही का करताय हे सगळं? बाळाची आई कुठे आहे?” आई म्हणाली.

त्या दोघी एकदम गंभीर झाल्या. मग कसनुसं हसल्या.

“आईला घटप्रभेच्या दवाखान्यात बाळंतपणासाठी नेलंय. तिला खूप बरं नाहीये. म्हणून या इवल्याशा चिमणीला इथे घेऊन आलोय. बाळाला आईजवळ ठेवू नका असं डॉक्टरांनी सांगितलंय. मग काय करायचं? आईला अजून पंधरा दिवसांनी सोडणारायत. “

त्या दोघींमधल्या मोठ्या बहिणीने, लिलाताईने तिच्या वयाला न शोभेल अशा पोक्तपणे सांगितलं. ते ऐकून आई कळवळली.

“तुम्ही सगळे आज येणाराय असं काकांनी सांगितलं होतं. आम्ही दोघी वाटच पहात होतो. बरं झालं आलात. महिनाभर होऊन गेला शेजारचं घर रिकामं झाल्याला. आम्हाला करमतच नव्हतं. ” लिलाताई मनापासून म्हणाली आणि बाळाला घेऊन उठली.

“वहिनी, तुम्ही हातपाय धुवून घ्या. मी चहा करून आणते तुम्हा सगळ्यांचा”

“छे.. छे. मुळीच नाही हं. यांना अजिबात आवडायचं नाही. मला तर नाहीच नाही. तुम्ही या पिल्लाला घेऊन आत जा बरं आधी. काळजी घ्या त्याची. कांही लागलं सवरलं तर कधीही हाक मारा मला. संकोच नका करू. “आई म्हणाली.

त्या पाटील कुटुंबियांंचा औपचारिक परिचय होण्यापूर्वीच अशी आपुलकीची देवाण-घेवाण झाली आणि त्यामुळेच नवीन बि-हाडी आमचा गृहप्रवेश होण्यापूर्वीच दोन्ही कुटुंबात आपुलकीचं, माणुसकीचं नातं अलगद रुजलं गेलं तसंच नंतर अधिकच घट्ट होत गेलं!

ही १९५९ सालातली गोष्ट. सुरुवातीच्या भागांमधे उल्लेख आलेत त्यानुसार बाबांच्या निवृत्तीनंतर माझ्या काॅलेज शिक्षणासाठीची सोय म्हणून आम्ही मिरजेला रहायला आलो ते १९६७ मधे. या आठ वर्षांच्या प्रदीर्घ काळांत येईल त्या परिस्थितीला तोंड देता देता बऱ्याच चढउतारांना सामोरे जात आमची दोन्ही कुटुंबे परस्परांशी मनाने जोडली गेली होती. आम्ही कि. वाडी सोडताच मात्र नंतरच्या काळात आमच्या भेटी आणि संपर्कही जवळजवळ राहिलाच नाही. याला अपवाद ठरली ती एकटी लिलाताई आणि त्यालाही निमित्त ठरली होती तिची दत्तमहाराजांवरील श्रध्दाच!योगायोग असा कीं तिच्या मनात ही श्रध्दा मूळ धरु लागली ती माझ्या बाबांना गाणगापूरला मिळालेल्या प्रसादपादुकांमुळे आणि त्या पादुकांच्या आमच्या अंगणातील लहानशा मंदिरामुळे!

या सगळ्याचाच मागोवा घेणं, माझ्या संसारात अचानक घडलेल्या ‘त्या’ दु:खद घटनेमागचा कार्यकारणभाव शोधण्यासाठी अपरिहार्य तर आहेच तसंच जन्म, मृत्यू आणि पुनर्जन्म या अखंड चक्रामधल्या गूढ रहस्याची दारं थोडी कां होईना किलकिली होण्यासाठीही.. !

क्रमश:…  (प्रत्येक गुरूवारी)

©️ अरविंद लिमये

सांगली (९८२३७३८२८८)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ किरण… – भाग – ३ ☆ डॉ. शैलजा करोडे ☆

डॉ. शैलजा करोडे

🌸 जीवनरंग 🌸

☆ किरण… – भाग – ३ ☆ डॉ. शैलजा करोडे

(आजारावर नियंत्रण मिळालेय ही खात्री झाल्याने मलाही धीर वाटला आणि याचा परिणाम म्हणून माझी शारीरिक रिकव्हरी वेगाने होऊ लागली.) – इथून पुढे — 

कॅन्सर चोर पावलाने प्रवेश करीत असतो, ही या रोगाची विशेषता जाणूनच डॉक्टरांनी दोन डोस रेडिएशन (अर्थात किरणोपचार) चा सल्ला दिला. पण किरणोपचार किंवा रसायन उपचार दोघेही अतिशय तीव्र वेदनादायी उपचार असल्याने माझे तर अवसानच गेले. “नाही, नकोत मला हे उपचार. वाटल्यास मला मारून टाका. पण या उपचारांना सामोरे जायला सांगू नका. ” – माझा आक्रोश सुरू झाला होता.

“ताई घाबरण्याचं कारण नाही. आजच्या प्रगत तंत्रज्ञानाने आधुनिक उपचार पद्धती ही बऱ्याचशा सुकर झाल्या आहेत, कमी त्रासदायक आहेत. पण तुमची इच्छा नसेल तर आपण दर तीन महिन्यांनी पहिल्या वर्षी सोनोग्राफी रिपोर्ट करूया आणि पुढील चाल वर्षे दर सहा महिन्यांनी. आमच्या फॉलोअप रेग्युलर राहिला तर आजाराचे निदान आजाराची कुणकुण आमच्या सहजपणे लक्षात येईल. त्यामुळे काळजी करू नका. आज तुम्ही रोगमुक्त आहात. पुढेही तसेच घडेल. आता तुम्ही तुमच्या कामावर रुजू ही होऊ शकता. मी मेडिकल व फिटनेस सर्टिफिकेट तयार करून देतो. “

माझे दैव बलवत्तर होते, म्हणून स्वर्गाकडे एक पाऊल पुढे पडूनही मी पुन्हा पृथ्वी तळावर परतले होते. एकाच जन्मात पुन्हा नव्याने जन्मण्याचा अनुभव मी घेतला होता. आयुष्याचा बोनस मिळाला होता. आता आयुष्यातील प्रत्येक क्षण आनंदात घालवायचा. कोणतीही चिंता, काळजी करायची नाही हे मी मनोमन ठरवले. पण माझं मन, माझ्या अंतरात्मा मला आवाज देऊ लागला. “तू तर या आजारातून बरी झालीयेस, कॅन्सरला हरवलेस, आयुष्याचा बोनस मिळवला आहेस, आता या आयुष्याचा उपयोग तुझ्या सारख्या कर्करोगाने त्रस्त लोकांसाठी का करत नाहीस?” आणि माझ्या या अंत:स्थ प्रेरणेतूनच “कॅन्सर ची लढा एक पाऊल पुढे” चा जन्म झाला. माझ्यासारखे पीडित कर्करोगग्रस्त बंधू भगिनीं ही हळूहळू या संस्थेची जोडले जाऊ लागले. प्रत्येकाचे अनुभव कथन, आजाराशी दिलेली झुंज याची देवाण-घेवाण होऊ लागली. अर्थात कर्करोगा विषयी जनजागृती होणंही तेवढंच महत्त्वाचं आहे. कारण भारतासारख्या देशात कर्करोगग्रस्तांचं वाढलेलं प्रमाण व त्यायोगे होणारे मृत्यू अधिक प्रमाणात असल्याचं कारण कर्करोगाचे उशिरा होणारे निदान. आजार वाढल्यानंतर किंवा शारीरिक त्रास अधिक प्रमाणात वाढल्यानंतरच आपण डॉक्टरांकडे जातो. कर्करोगाचे निदान होईपर्यंत या रोगाने शरीरात आपले स्थान खूपच मजबूत केलेले असते. साधारणपणे तिसऱ्या व चौथ्या ग्रेड मधील कर्करोगावर नियंत्रण मिळवणे कठीण जाते. यासाठी कर्करोगाचे लवकर निदान होणं गरजेचं आहे. यासाठी जनजागृती महत्त्वाची. तेच काम आमची संस्था करते. यासाठी विविध प्रकारचे कर्करोग, त्यांचं स्वरूप, त्यांची होणारी वाढ, हे स्लाईडशो अर्थात चलचित्रद्वारे आम्ही विविध कार्यक्रमातून दाखवतो. कर्करोगावरील विविध चर्चासत्रांचे आयोजन आमची संस्था करते. यासाठी कर्करोग तज्ज्ञांना निमंत्रित केले जाते.

तसेच प्रत्येक वयाची चाळीस वर्षे पार केलेल्या व्यक्तीने मग ती निरोगी असली तरी त्यांनी आपली शारीरिक तपासणी वर्षातून एकदा तरी अवश्य करावी. अनेकदा आपल्याला काही शारीरिक व्याधी न जाणवताही गंभीर आजाराचे निदान या तपासणीतून झाल्याचे निष्पन्न झाले आहे.

समाज प्रबोधन होण्यासाठी जागतिक कर्करोग दिनी आमच्या संस्थेने मॅरेथॉन स्पर्धेचे ही आयोजन केलं होतं. शालेय विद्यार्थ्यांपासून तर अनेक ज्येष्ठ नागरिक ही या मॅरेथॉन मध्ये सामील झाले होते.

“खूपच छान तुमचं समाज प्रबोधन, जनजागृती, निश्चितच कर्करोगग्रस्तांना तर उपयोगी आहेच पण कर्करोगाला रोखण्यात ही फार महत्त्वाची भूमिका बजावत आहे. प्रेमाताई तुमचा हातभार फार महत्त्वाचा आहे. “

“नाही माधुरीताई, मी खूप काही मोठं काम करतेय असं नाही. पण खारीचा वाटा मात्र जरूर उचललाय. ” माधुरीताई अजून एका गोष्टीचा आवर्जून उल्लेख करावासा वाटतो. कर्करोगग्रस्त रुग्णांच्या मनात अनेक प्रश्न असतात आजाराविषयी, उपचार पद्धती विषयी, त्यास जाणून घ्यायचे असते. कर्करोग म्हणजे काय? तो कशामुळे होतो? तो ओळखावा कसा? त्याच्यावर प्रभावी उपचार कोणते? या उपचारांचे दुष्परिणाम कोणते? यासारखे अनेक प्रश्न रुग्णांच्या आणि त्यांच्या नातेवाईकांच्या मनात गर्दी करतात. या सर्व प्रश्नांची उत्तरे देण्यासाठी डॉक्टरांकडे पुरेसा वेळ नसतो. प्रश्नांची उत्तरे टाळली जातात किंवा सविस्तरपणे दिली जात नाहीत. मिळालेल्या उत्तरांनी रुग्णांचे, नातेवाईकांचे पूर्ण समाधान होत नाही. आणि रुग्णांची ही अडचण ओळखूनच आमच्या संस्थेने विविध प्रकारचे कर्करोग व त्यावरील प्रभावी उपचार सांगणारी पुस्तक मालिकाच तयार केलीय. अनेक कर्करोगग्रस्त रुग्ण व नातेवाईकांनी त्यांना या पुस्तकांचा बराच उपयोग झाल्याचे अनेकांनी कळविले आहे.

“प्रेमाताई, हे फार मोठे कार्य करीत आहे आपली संस्था. कर्करोग ग्रस्तांना या पुस्तक मालिकांचा उपयोग निश्चित होतोय. “

“माधुरीताई, सांगायला मला आनंद होतोय की, मी लिहिलेले “कर्करोग काळोखातून प्रकाशाकडे’ हे मी व माझे सहकारी यांचे स्वानुभवावरचे पुस्तक लवकरच प्रकाशित होतंय. कर्करोग ग्रस्तांना ते निश्चितच प्रेरणा देणारे ठरणार आहे. “

प्रेमाताईंचे कर्करोग व त्यावरील विवेचन त्यांची संस्था करीत असलेले कार्याविषयी आपण जाणून घेतले. आपणास त्यांच्याशी संपर्क करायचा असल्यास त्यांचा दूरध्वनी, भ्रमणध्वनी क्रमांक आम्ही देत आहोत. ते आपण टिपून ठेवावे.

प्रेमाताई आपण व आपली संस्था करीत असलेले कार्य कर्करोगाच्या रुग्णांसाठी महत्त्वाचे आहे. कर्करोगापासून व कर्करोग्यांपासून ही लोक चार हात लांब राहणचं पसंत करतात. कर्करोगाचा संशय देखील मनाचा थरकाप उडवतो. कर्करोग हा अप्रिय शब्द कानावरही पडू नये असेच सर्वसामान्यांना नेहमीच वाटते. तरीही काहींना कर्करोग हा गाठतोच. अशावेळी रुग्णांनी गर्भगळीत न होता कर्करोगाला सामोरे जाणे हे त्यांच्याच हिताचे असते. सर्वसामान्यांकडून नाकारल्या जाणाऱ्या कॅन्सर ग्रस्तांना आपण मदतीचा हात देतात, त्यांचे मनोधैर्य वाढवतात हे खरोखरीच अतुलनीय कार्य आहे. कर्करोग्यांसाठी प्रेमाताई व त्यांचे सगळे सहकारी प्रकाशाची एक एक किरण ज्योती आहेत ज्या या रुग्णांच्या जीवनात पुनश्च आशेचे किरण जागवून कर्करोगाला सामोरे जाण्यात त्यांची मदत करतात. त्यांचे मनोधैर्य वाढवितात. समाज प्रबोधन, विचार जागृती करून कर्करोगाचे लवकर निदान, उपचार आणि कर्करोगा चे नियंत्रण यावर प्रभावी मार्गदर्शन करतात. अशा प्रत्येक शहरात, गावात किरण ज्योती निर्माण झाल्यास आपण या आजारावर नियंत्रण मिळवण्यास यशस्वी होऊ शकतो हे आजच्या “स्वस्थ भारत” या कार्यक्रमातून आपण जाणून घेतले आहेच.

“प्रेमाताई, आपण येथे आलात कर्करोग, व त्याविषयीची जनजागृतीसाठी आपण स्वतः व आपली संस्था करीत असलेले कार्य याविषयी सविस्तर माहिती दिलीत जी आमच्या प्रेक्षकांना निश्चितच मदत करणारी आहे; अनेक कर्करोग ग्रस्तांना यातून दिलासा मिळाला असेलच. मी दूरदर्शनच्या वतीने आपले आभार व्यक्त करते. दूरदर्शनचे व हजारो प्रेक्षकांचे मीही आभार मानते. “

…. फुलांचा बुके माधुरीताईंनी माझ्या हाती दिला. एक विजयी हास्य माझ्या चेहऱ्यावर होते.

— समाप्त —

© डॉ. शैलजा करोडे

नेरुळ नवी मुंबई मो. 9764808391

ईमेल – [email protected] 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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