(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 218 – कथा क्रम (स्वगत)…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “समझ गई जो जीवन को...”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 218 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “समझ गई जो जीवन को...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी।
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व “सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रे” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
☆ “ सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रे” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
अत्यंत सहज, सामान्य से दिखने वाले अंशलाल पंद्रे को उनके ज्ञान, कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी, सहृदयता, मिलनसारिता, देशभक्ति और सशक्त लेखनी ने उनके जीवन काल में ही विशिष्ट बना दिया था। एक समय ऐसा था जब न सिर्फ जबलपुर वरन आसपास के अनेक नगरों की साहित्यिक – सांस्कृतिक, आध्यात्मिक संस्थाओं के कार्यक्रमों के सूत्रधार और शक्तिपुंज पंद्रे जी ही हुआ करते थे। पंद्रे जी ने धर्म – आध्यात्म, प्रकृति, महापुरुषों और देशभक्ति पर अविस्मरणीय मधुर, प्रेरणादायी, सहज – सरल भावभरे गीत लिखे।
एकता और समानता पर उनकी पंक्तियां –
राम, कृष्ण, ईसा, मोहम्मद,
नानक का सम्मान यहां।
जाति धर्म का भेद नहीं है,
हम सब एक सामान यहां।।
,,,,और प्रकृति प्रेम –
रिमझिम गाए सावनी घटा।
बहलाए मन फगुनी छटा।।
जो दिखे लगे निखरा – निखरा।
है नमन तुझे हे ! वसुंधरा।।
,,,,श्रम का पूजन –
हाथों में लेकर कुदाल खेतों को हम जाते।
सूरज की पहली किरन से रोज ही नहाते।
श्रम की पूजा करने में विश्वास हमारा है।
सबसे अच्छी फुलवारी – हिन्दुस्तान हमारा है।।
12 सितम्बर 1954 में ग्राम विजयपानी खुर्द में जन्में अंशलाल पंद्रे की प्रारंभिक शिक्षा एवं कर्म भूमि का केंद्र छपारा जिला – सिवनी रहा। आपने अर्थशास्त्र में एम. ए. तथा गायन में संगीत प्रभाकर किया। सफलता के लिए निरंतर प्रयत्न एवं कर्म पर विश्वास रखने वाले अंशलाल पंद्रे जी मध्यप्रदेश के लोकप्रिय क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी रहे। शासकीय सेवा में अति व्यस्तता के बाद भी उन्होंने साहित्य सृजन जारी रखा। उनकी रचनाएं देश की प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन से प्रसारित होती रहीं। पंद्रे जी आकाशवाणी से अनुबंधित गीतकार, सुगम संगीत व ड्रामा आर्टिस्ट भी रहे हैं। आप जबलपुर की संस्था “वर्तिका” के अध्यक्ष सहित अनेक संस्थाओं व पत्रिकाओं के संरक्षक भी रहे। दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय, भोपाल के परिषद सदस्य पंद्रे जी का देश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मान किया गया। यों तो आपके गीत अनेक संग्रहों में शमिल हैं तथापि आपके द्वारा रचित कृतियों में प्रमुख हैं – सच्चिदानंद साईं हरि, गीत गुंजन, गीत मेरे मीत, प्यारा मध्यप्रदेश, सुर हरसिंगार (संगीत साधकों के लिए), जय मां हे भारती, किलकारी – फुलवारी, अंश भजनामृत एवं जननी भारत माता। देश के प्रसिद्ध शायर साज़ जबलपुरी के अनुसार कविता में अनेक विषयों पर अपनी सशक्त अभिव्यक्ति करने वाले अंशलाल पंद्रे में रसिकता, आध्यात्मिकता, राष्ट्रचिंतन तथा सरसता का अदभुत योग है।
साहित्य साधिका संध्या जैन “श्रुति” कहती हैं –
पंद्रे जी के गीतों का सरस सुवासित काम।
सद्भावी वाणी सरल अंशलाल है नाम।।
डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के तत्कालीन प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग डॉ.आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने लिखा था कि “व्यक्तिगत जीवन में भी पंद्रे जी की सरलता, सहजता और भावप्रवणता को देखकर हर कोई मुग्ध हो उठता है। व्यक्तित्व की यही छाप पंद्रे जी के गीतों में देखी जा सकती है।”
पंद्रे जी की देशभक्ति पूर्ण भावभरी रचनाएं सदा आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहेंगी।
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हृदय परिवर्तन…“।)
अभी अभी # 551 ⇒ हृदय परिवर्तन श्री प्रदीप शर्मा
आज हम हृदय प्रत्यारोपण की नहीं, हृदय परिवर्तन की बात करेंगे। इसमें केवल ट्रांसफॉर्मेशन होता है, ट्रांसप्लांटेशन नहीं। इसमें कोई मरीज नहीं होता, कोई चिकित्सक नहीं होता। कोई सर्जरी, दिल की अदला बदली नहीं होती, कुछ नहीं होता, बस कुछ कुछ होता है।
अगर किसी का हृदय परिवर्तन इतना आसान होता, तो दुनिया में युद्ध न होते, दुराचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार न होता। न रावण मरता, न कंस का वध होता।।
ईश्वर के इतने अवतार हुए, कभी मानवता के आदर्श के रूप में हुए तो कभी दुष्टों के संहार और अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए। कभी हमने रामराज्य का विहंगावलोकन किया तो कभी कृष्ण ने प्रेम की बंसी बजाई। विश्व के कल्याण के लिए इन अवतारों को कितने पापड़ बेलने पड़े, समय साक्षी है।
ह्रदय परिवर्तन ज़ोर ज़बरदस्ती से, चाकू या तलवार की नोंक पर नहीं किया जा सकता !इसके लिए दोनों तरफ एक सी आग का होना जरूरी है। यह हृदय परिवर्तन है, धर्म परिवर्तन नहीं। जब कोई आदर्श हमारे हृदय में प्रवेश कर जाता है, तो हमारा हृदय परिवर्तन हो जाता है।।
आत्मा के सुधार के लिए किया गया परिवर्तन ही हृदय परिवर्तन है। अंगुलिमाल और वाल्मीकि के उदाहरण हृदय परिवर्तन के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। किसी आदर्श का हमारे मन में बस जाना ही हृदय परिवर्तन है। कभी इसके लिए माध्यम कोई मार्गदर्शक भी हो सकता है, अथवा कभी कभी कोई परिस्थिति।
समर्पण ही हृदय परिवर्तन है। बुरे का अच्छे के प्रति समर्पण श्रेष्ठ समर्पण है। जयप्रकाश नारायण ने डाकुओं के आत्म-समर्पण जैसा अनूठा कदम उठाया। ऐसे सत्प्रयास भले ही शत प्रतिशत सफल न हों, लेकिन ये समाज को एक नई दिशा देते हैं, एक संदेश देते हैं।।
हमारी विधा में अपराध के बाद दंड का प्रावधान है। जेल सजा भुगतने के लिए तो होता ही है, लेकिन कैदी को वहां भी सुधरने के अवसर दिए जाते हैं। उनकी प्रवृत्ति के अनुसार उन्हें उत्तरदायित्व सौंपे जाते हैं। किरण बेदी ने कैदियों को सुधरने के कई अवसर दिए और उन्हें आशातीत सफलता भी मिली। महर्षि अरविंद स्वतंत्रता की खातिर कई वर्षों तक अंग्रेजों की जेल में रहे, जहां उन्होंने सावित्री जैसे महाकाव्य की रचना कर डाली। आपातकाल में मीसा में बंद अटल जी की कविताएं यह साबित करती हैं, कि शरीर को कैद किया जा सकता है, किसी की आत्मा को नहीं।
अच्छे और बुरे का संग्राम ही देवासुर संग्राम है। बुरे पर अच्छे की विजय सदा से होती आई है। खेत में से खरपतवार का निकालना आवश्यक होता है। कुछ पौधों की छंटनी से वे और अधिक पनपते हैं, पल्लवित होते हैं। अगर अपने अवगुणों की छंटनी कर दी जाए, तो अच्छाई उभर कर ऊपर आ सकती है। हमारे अंदर की गाजर घास का खात्मा भी उतना ही जरूरी है।।
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)
We present his awesome poem ~ ‘Harvest of Potentiality’ ~We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सर्दी का मौसम…”।)
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता ‘विडंबना…‘।)