हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 269 – मढ़ी न होती चामड़ी…! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 269 मढ़ी न होती चामड़ी…! ?

संध्या भ्रमण के लिए मुझे सूनी सड़क के सूने फुटपाथ पसंद हैं। यद्यपि महानगर में यह पसंद स्वप्न से अधिक कुछ नहीं होती। तथापि भाग्यवश कैंटोन्मेंट प्रभाग में निवास होने के कारण ऐसी एकाध सड़कें बची हुई हैं। ऐसी ही तुलनात्मक रूप से सूनी एक सड़क के कम भीड़भाड़ वाले फुटपाथ पर भ्रमण कर रहा हूँ।

सूर्यास्त का समय है। डूबते सूरज के धुँधलके में  मनुष्य साये में बदलता दिखता है। साँझ और साया..! जीवन की साँझ और साया रह जाना! यूँ दिन भर साथ चलती परछाई भी साया होने के सत्य को इंगित कर रही होती है। सूर्योदय से सूर्यास्त की परिक्रमा दैनिक रूप से मनुष्य को नश्वरता का शाश्वत स्मरण कराती है।

अस्तु! भ्रमण जारी है। भ्रमण के साथ अवलोकन भी जारी है। मुझसे कुछ आगे एक युवक चल रहा है। वह सिगरेट का कश लेकर धुआँ आसमान की ओर छोड़ रहा है। देखता हूँ कि यह धुआँ एक आकार लेकर धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। धुएँ का  आकार देखकर अवाक हूँ। यह कंकाल का आकार है। मनुष्य द्वारा फूँका जाता धुआँ, मनुष्य को फूँकता धुआँ। कंकाल पर देह ओढ़ता मनुष्य, देह का ओढ़ना खींचकर मनुष्य को कंकाल करता धुआँ।

यूँ देखें तो देह का भौतिक अस्तित्व कंकाल पर ही टिका है। कंकाल आधार है, माँस-मज्जा  आधार पर चढ़ी सज्जा है। चमड़ी की सज्जा न होती तो क्या मनुष्य दैहिक आकर्षण में बंध पाता?

दृष्टांत  है कि एक गाँव में एक रूपसी अकेली रहती थी। गाँव के जमींदार का उसके रूप पर मन डोल गया। वासना से पीड़ित जमींदार उस स्त्री के घर पहुँचा। महिला ने प्राकृतिक चक्र की दुहाई देकर चार दिन बाद आने के लिए कहा। जमींदार के लौट जाने के बाद उस रूपसी ने  रेचक का बड़ी मात्रा में सेवन कर लिया। रेचक के प्रभाव के चलते उसे पुन:- पुन: शौच के लिए जाना पड़ा। स्थिति यह हुई कि सारा का सारा माँस शरीर से उतर गया और वह कंकाल मात्र रह गई। चार दिन बाद आया जमींदार उल्टे पैर लौट गया।

लोकोक्ति है,

सुंदर देह देखकर उपजत मन अनुराग।

मढ़ी न होती चामड़ी तो जीवित खाते काग।

प्रकृति सुंदर है। दैहिक सौंदर्य का आकर्षण भी स्वाभाविक है। तथापि आत्मिक सौंदर्य न हो तो दैहिक सौंदर्य व्यर्थ हो जाता है। सहज रूप से उगे गुलाब पुष्प की सुगंध नथुनों में गहरे तक समाती है। वहीं बड़े करीने से तैयार किए हाईब्रीड गुलाब दिखते तो सुंदर हैं पर सुगंध के नाम पर शून्य। सुगंध आत्मिकता है, शेष सब धुआँ है।

दूर श्मशान से धुआँ उठता देख रहा हूँ। किसी देह का ओढ़ना धुआँ-धुआँ हो रहा है। सबके लिए समान रूप से लागू इस नियम में बिरले ही होते हैं जो धुआँ होने के बाद भी अपनी आत्मिकता के कारण चिर स्मरणीय हो जाते हैं। दैहिक सौंदर्य के साथ मनुष्य आत्मिक सौंदर्य के प्रति भी सजग हो जाए तो धुआँ होने से पहले जग को सुवासित करेगा और आगे धुआँ इस सुवास को अनंत में प्रसरित करेगा।

हर मनुष्य आत्मिक सौंदर्य का धनी हो।…  तथास्तु!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 215 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 215 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 215) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 215 ?

☆☆☆☆☆

ख़ुद का दर्द महसूस होना

ज़िंदा होने का एक सबूत है..!

मग़र औरों के दर्द का अहसास होना 

ज़िंदादिल इंसान होने का सबूत है..!

☆☆

 To feel your own pain

Is a proof of being alive but

Proof of compassionate human

Is to feel the pain of others!

☆☆☆☆☆

काश एक ख्वाहिश पूरी हो

इबादत के बगैर

वो आके गले लगा ले

मेरी इजाजत के बगैर…

☆☆

If only one  wish could be fulfilled

Without offering the prayers

That she came and hugged me

Without my  permission…!

☆☆☆☆☆

दर्द की तुरपाइयों की 

नज़ाकत तो देखिये

एक धागा छेड़ते ही 

ज़ख्म पूरा खुल गया…

☆☆

Look at the tenderness of

the hemstitch of the pain…

Just disturbing one thread was

enough to open the whole wound!

☆☆☆☆☆

सूरज ढला तो कद से

ऊँचे हो गए साये

कभी पैरों से रौंदी थी

यहीं परछाइयां हमने..!

☆☆

Setting sun elong☆☆☆☆☆ated the

Shadows bigger than the stature,

Thes’re the shadows which once

were trampled under my feet..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈



English Literature – Travelogue ☆ New Zealand: A Morning Ritual in the Land of the Flat White # 3 ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

Shri Jagat Singh Bisht

☆ Travelogue – New Zealand: A Morning Ritual in the Land of the Flat White # 3 ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

During our extended stay in New Zealand, a cherished morning ritual has taken root in our daily lives. Each day begins with a long walk through the serene neighborhoods, the crisp air carrying a hint of the sea and the promise of a new day. Along the way, we’ve adopted the delightful habit of pausing at a local café for a leisurely cup of coffee, a moment of calm amidst our explorations.

New Zealand’s coffee culture is nothing short of a revelation. These cozy neighborhood cafes, each with its unique charm, beckon with their warm and inviting atmospheres. The friendly baristas, often brimming with infectious Kiwi cheer, greet us as though we’re old friends. Inside, the scene is a delightful blend of the old and the new: elderly patrons sipping their morning brews, sharing stories, or indulging in a crossword puzzle, while younger professionals dart in to grab their takeaway cups before heading to work. We often find ourselves thumbing through local newspapers or glossy magazines, adding a touch of nostalgia to our mornings.

When we first arrived, our coffee choices leaned toward familiar favorites like cappuccinos and mochas. But it wasn’t long before the locals’ love for the Flat White intrigued us. A perfect harmony of velvety milk and robust espresso, the Flat White is a testament to New Zealanders’ passion for coffee, and it has since become our drink of choice. Occasionally, we pair it with a warm cheese scone or a sweet muffin, elevating the experience into something almost ceremonial.

Interestingly, cafes here open early, around 7 am, to cater to the early risers and close by 3:30 pm, making evenings without a café outing feel a tad incomplete. How we wish these delightful spots stayed open late, offering the joy of a quiet evening coffee!

Our favorites include Vero Café in Unsworth Shops, Lulu Café in Wairau Valley, and Tob Café in Rosedale. Each has its signature touch, yet they all share a commitment to crafting a superb cup of coffee. Further afield, the coastal charm of Devonport and the bustling energy of Takapuna have provided memorable coffee moments, blending the aromas of fresh brews with the stunning views of the surrounding landscapes.

New Zealand’s coffee culture is steeped in its people’s dedication to quality and community. The Flat White, with its origins hotly debated between Kiwis and Australians, is more than just a drink—it’s a cultural emblem. The sheer number of independent cafes here speaks to a nation that takes its coffee seriously. In fact, New Zealand has more cafes per capita than even New York City, underscoring its status as a global coffee hotspot.

As our days here continue, the morning ritual of walking and pausing for coffee has become more than a habit—it’s a connection to the heart of New Zealand’s culture. Whether in the bustling streets of Auckland or a quiet suburban nook, these moments, and the exceptional coffee that accompanies them, are memories we’ll savor long after we leave.

#coffee #auckland #newzealand

© Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Founder:  LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 550 ⇒ एक जिंदगी स्मार्ट सी… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक जिंदगी स्मार्ट सी।)

?अभी अभी # 550 ⇒ एक जिंदगी स्मार्ट सी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

सादा जीवन उच्च विचार, क्या कहीं सुना सुना सा नहीं लगता ! दिमाग पर बहुत जोर डालना पड़ता है, तब अनायास लालबहादुर शास्त्री का ख्याल आता है। तब हमारे जीवन में भी कहां तड़क भड़क थी। आज की पीढ़ी भले ही कह ले, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी, लेकिन इसमें हमारा भी कोई दोष नहीं। दिलीप कुमार खुद २२ इंच की मोरी की पैंट पहनता था, लड़के लोग देवानंद जैसे फुग्गे वाले बाल रखते थे और लड़कियां साधना कट बाल। तब बस यही फैशन और स्मार्टनेस की परिभाषा थी।

पहले बच्चों के कपड़े घर में मां ही सीती थी। इतने भाई बहन होते थे कि कपड़े, बस्ते और किताबें आपस में शेयर की जाती थी। वही कोर्स की पुरानी किताबें, नया कवर चढ़ाकर छोटे भाई बहन के काम आती थी। नये कपड़े वार त्योहार और शादी ब्याह के मौके पर।।

परिवार का एक ही दर्जी होता था, भीखाभाई टेलर मास्टर। हेयर कटिंग भी अगर करवानी है तो आपले केश कर्तनालय में।

अपनी कोई पसंद ही नहीं होती थी। रेडियो तक को सिर्फ पिताजी हाथ लगाते थे। बाल कभी बढ़ते ही नहीं थे। शरीफ बच्चे जो होते थे हम।

पहला फोटो कृष्णपुरा के गोपाल स्टूडियो में खिंचवाया, क्योंकि कॉलेज में आइडेंटिटी कार्ड बनवाना था। पहली बार खुद की साइकिल हाथ लगी और खुद का अलग कॉलेज। साला मैं तो स्मार्ट बन गया। अब हाफ पैंट पहनने में शर्म आने लगी थी।।

अच्छी तरह याद है, एवर स्मार्ट टेलर ने हमारा पहला पैंट सीया था। अब मुंह से अंग्रेजी निकलने लगी थी। स्टार लिट टॉकीज में अंग्रेजी फिल्में और अंग्रेजी उपन्यास भी पढ़ने शुरू कर दिए थे। कम सेप्टेंबर की धुन और टकीला ने हमें पूरा अंग्रेज बना दिया था।

अंग्रेजी फिल्म समझे ना समझे, डॉक्टर जिवागो, गन्स ऑफ नेवरोन, साइको (psycho) जिसे कुछ लोग पिस्को भी कहते थे, और ड्रेकुला देखना और रात में बिस्तर में डरना किसे याद नहीं।

तब तक इतने स्मार्ट तो हम भी हो गए थे, कि कॉलेज को बंक मार फिल्में देखना शुरू कर दिया था। अगर आए दिन कॉलेज में जी टी (जनरल तड़ी) और स्ट्राइक होगी तो रोज रोज सीधे घर तो नहीं जाया जा सकता ना। यहां हमारा कोई भाई बहन नहीं होता था, जो घर जाकर मां से चुगली कर दे। सभी जानते थे, कॉलेज लाइफ कैसी होती है।।

आज स्मार्ट टीवी के सामने बैठकर, स्मार्ट फोन पर जब पिछली जिंदगी का सिंहावलोकन करने बैठते हैं, तो बड़ी हंसी आती है। उंगलियों और कागजों पर गुणा भाग करना पड़ता था। तब कहां कैलकुलेटर नसीब होता था। एक चल मेरी लूना हमें कहां कहां ले जाती थी। अलका और प्रकाश सिनेमाघर हमेशा हाउसफुल रहते थे। लाइन में लगे, लेकिन कभी ब्लैक में टिकट नहीं लिया। लेकिन बाद में कई चीजों पर ऑन देना पड़ा।

कभी पूरा शहर पैदल और आसपास के पर्यटन स्थल साइकिल से आराम से नाप लिए जाते थे, लेकिन स्मार्ट सिटी बनता जा रहा हमारा शहर, अब हमसे नहीं नापा जाता। फेसबुक की पोस्ट पर रीच की तरह शहर में भी हमारी रीच बहुत कम हो गई है। या तो हम कम रिच (rich) हो गए हैं, या फिर मेरा शहर बहुत अमीर हो गया है।।

जिस शहर में लोग साइकिल छोड़ बाइक और कार में आ जाते हैं, वहां फिर पैदल कोई नहीं चलता। मोहल्ले कॉलोनियों में, और कॉलोनियां बहुमंजिला इमारतों में तब्दील होती चली जाती है। लोग अब शहर छोड़ गांव में नहीं जाते, गांव खुद ही शहर में शामिल होते चले जाते हैं।

मेरे आसपास आजकल सब्जियां और किराना बिग बास्केट से , और खाना जोमैटो से आता है। महीने का किराना आजकल बनिया नहीं लाता, लोग डी मार्ट चले जाते हैं। सभी कुछ ऑनलाइन होने से , भले ही आपकी जेब में फूटी कौड़ी ना हो, आप दुनिया भर की सैर आराम से कर सकते हैं। जब दुनिया भर का समय भी आजकल स्मार्ट वॉच ही बताती है, तो हमारी जिंदगी भी स्मार्ट ही हो गई है। कितना सुख चैन है इस स्मार्ट लाइफ में। आज अगर शैलेंद्र होते तो मजबूरी में वे भी शायद यही कहते ;

जीना यहां मरना यहां

इसके सिवा जाना कहां।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 214 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  दोहा सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 214 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

निज माता की कीजिए, सेवा कहें न भार।

जगजननी तब कर कृपा, देंगी तुमको तार।।

*

जन्म ब्याह राखी तिलक गृह-प्रवेश त्योहार।

सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।

*

कोशिश करते ही रहें, कभी न मानें हार।

पहनाए मंजिल तभी, पुलक विजय का हार।।

*

डरकर कभी न दीजिए, मत मेरे सरकार।

मत दें मत सोचे बिना, चुनें सही सरकार।। 

*

कमी-गलतियों को करें, बिना हिचक स्वीकार।

मन-मंथन कर कीजिए, खुद में तुरत सुधार।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

हमारे जीवन में आने वाली कई शिक्षाएं एक दूसरे के से भिन्न होती हैं। जैसे एक शिक्षा है सठे-साठ्यम् समाचरेत। अर्थात दुष्ट के साथ दुष्ट का व्यवहार करो। दूसरी शिक्षा है जो तू को कांटा बुये ताहि बोई तूं फूल। यह दोनों शिक्षाएं एक दूसरे के विरुद्ध है परंतु हमें समय-समय पर दोनों को मानना पड़ता है। इसी तरह से किस समय आपको सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए यह बताने के लिए आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय 16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024 के राशिफल के साथ उपस्थित हूं।

राशिफल बताने के पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म लिए बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा।

सप्ताह के प्रारंभ से 17 तारीख को 8:48 रात तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मिथुन होगी। भाग्य इनका साथ देगा। एकाएक इनके काम बन जायेंगे। 17 तारीख को 8:48 रात से 20 तारीख को प्रातः काल 4:18 a. m. तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कर्क होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी और अपनी संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। 20 दिसंबर के प्रातः काल 4:18 a. m. से लेकर 22 तारीख को 2:30 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि सिंह होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। उनकी संतान बहुत ऊंचे पद तक पहुंचेगी। इनको भी बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी। 22 तारीख को 2:30 दिन से सप्ताह के अंत तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कन्या होगी।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। भाग्य आपका साथ देगा। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा अच्छी रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर अच्छे हैं। 22 दिसंबर को 2:00 बजे दोपहर के बाद से आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृष राशि

आपका व्यापार ठीक चलेगा। भाई बहनों के साथ थोड़ा बहुत तनाव हो सकता है। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। आपको अपने संतान का सहयोग थोड़ा कम मिलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर लाभदायक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें तथा बृहस्पतिवार को विष्णु भगवान या उनके किसी अवतार के मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। एकाएक आपके काम बन सकते हैं। कार्यालय में आप फालतू के बहस में ना पड़े। आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। थोड़ा बहुत धन आने का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। आपको अपने जीवनसाथी का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। संतान भी आपके साथ सहयोग करेगी। भाग्य से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो शत्रुओं को आप परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर परिणाम दायक हैं। 16 और 17 दिसंबर को आपको सावधान होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन माला गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

अगर आपके ऊपर किसी प्रकार का ऋण है तो उसमें कमी होगी। आपको कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपको इस सप्ताह अपने शत्रुओं से भी सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 तारीख लाभ वर्धक है। 18 और 19 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह भाग्य से आपको सामान्य मदद मिलेगी। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ अच्छा संबंध रहेगा। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर मंगलप्रद हैं। 20-21 और 22 तारीख को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार उत्तम चलेगा। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। आपके क्रोध में भी वृद्धि हो सकती है। जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर मंगल दायक हैं। 22 दिसंबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द की दाल का दान दें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव की पूजा करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को थोड़ी परेशानी हो सकती है। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ दे सकता है। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपको अपने संतान से इस सप्ताह कोई सहयोग नहीं मिल पाएगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर अनुकूल हैं। इस सप्ताह आप 16 और 17 दिसंबर को सावधान रहकर कोई भी कार्य करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में सावधानी से कार्य करें। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 18 और 19 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ दे सकता है। लंबी यात्रा का भी योग बन सकता है। कार्यालय में आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। धन आने का योग है। कचहरी के कार्यों में प्रयास करने पर सफलता मिल सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिलेगी। धन आने की उम्मीद है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। कार्यालय में आपका समय ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20, 21 और 22 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 18, 19 और 22 तारीख के दोपहर के बाद का समय सावधानी से कार्य करने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा मैं वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ देगा। धन आने का योग है। शत्रुओं से आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। माता-पिता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर लाभदायक हैं। 20-21 और 22 दिसंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

‘सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे

💐 संपादकीय निवेदन 💐

💐 अभिनंदन! अभिनंदन! अभिनंदन! 💐

तितीक्षा इंटरनॅशनल पुणे आयोजित दशदिवशीय नवरात्र काव्य लेखन स्पर्धेत आपल्या समूहातील ज्येष्ठ लेखिका व कवयित्री सुश्री उज्ज्वला सहस्रबुद्धे यांना प्रथम क्रमांक प्राप्त झाला आहे. विशेष म्हणजे नवरात्रातील प्रत्येक दिवसासाठी एक आणि दसऱ्यासाठी एक अशा एकूण दहा काव्यरचना स्पर्धेसाठी मागवलेल्या होत्या, आणि सगळ्या रचना विचारात घेऊन क्रमांक ठरवण्यात आले. उज्ज्वलाताईंचे आपल्या सर्वांतर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील अशाच यशस्वी साहित्यिक वाटचालीसाठी असंख्य हार्दिक शुभेच्छा. 

– आजच्या अंकात वाचूया त्यातील त्यांची एक पुरस्कारप्राप्त कविता – “सीमोल्लंघन करू…”

– संपादक मंडळ

ई – अभिव्यक्ती, मराठी विभाग

?कवितेचा उत्सव  ?

सीमोल्लंघन करू… ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे ☆

‌ नवरात्रीचे दिवस, 

 आगमन दसऱ्याचे !

 रंग,रूप नव रीती,

 जगी या आचरण्याचे !..१

*

 सीमोल्लंघन करू या,

 दुष्ट अनिष्ट प्रथांचे !

 स्वागत आपण करू,

 नित्य नूतन जगाचे !….२

*

 देवी शारदे स्फूर्ती दे,

 साहित्य नवे लिहावे !

 उदासी मनाची जावी,

 कार्य नवे आचरावे !…३

*

  रामायण ते दाखवी ,

  अन्यायाचे निर्दालन!

  महाभारत शिकवी ,

  दुष्टांचे व्हावे दमन !…४

*

  इतिहासातून घ्यावा ,

  बोध मनी घटनांचा !

  दुष्ट शक्तींना मारून,

  विजय व्हावा सत्याचा !…५

*

 सीमोल्लंघन करूनी,

 वाट पुढील पहावी !

 आयुष्यात प्रत्येकाच्या,

 नवीन पहाट व्हावी !…६

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈



मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ निराळे कायदे… ☆ सौ. ज्योती कुळकर्णी ☆

सौ. ज्योती कुळकर्णी 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ निराळे कायदे…☆ सौ. ज्योती कुळकर्णी ☆

(आनंदकंद)

भागीरथीत जाती पापे कितीक धुतली

होते मलीन ती जर आहे प्रथाच  इथली

 *

रानात सिंह राजा प्राणीच भक्ष्य त्याचे 

मांडून कायद्याला टाळी तुम्हीच पिटली

 *

वाटे कुणास नारी अन्याय सोसणारी

केले असूर मर्दन तेव्हा सुखात निवली

 *

विश्वास ठेवला पण त्यानेच घात केला

नात्यास शुद्ध म्हणतो जाणून लाज विकली

 *

मिळतो बरा तुम्हाला बाहेर न्याय सहजी

न्यायालयात माझी नाणी बरीच झिजली

© सौ. ज्योती कुळकर्णी

अकोला

मोबा. नं. ९८२२१०९६२४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – क्षण सृजनाचे ☆ थेम्सच्या नदीकिनारी… ☆ प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ ☆

प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ

? क्षण सृजनाचे ?

थेम्सच्या नदीकिनारी… ☆ प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ ☆

लंडन येथील नदीचे नाव- थेम्स, त्या नदीवर एक मोठा ऐतिहासिक पूल आहे- टाॅवर ब्रिज. या पुलाच्या बाजूंना दोन मोठे टाॅवर असून राजघराण्यातील व्यक्ति बोटीने जाताना मध्यभागातून तो उघडला जातो.त्या नदीवर एक मोठा दुसरा पूल असून त्याला लंडन ब्रिज म्हणतात. मी त्यावर  मुक्त पध्दतीत एक कविता लिहीली आहे. 👇🏻

☆ थेम्सच्या नदीकिनारी… ☆ प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ ☆

थेम्सच्या नदीकिनारी

पाहिला मी टाॅवर  ब्रिज

ब्रिटिश राजसत्तेला

अभिवादन करताना

मध्यातून  मुडपणारा.

 *

थेम्सच्या नदीकिनारी

पाहिला मी लंडनब्रिज

मुखवटे घालून फिरणा-या

शेकडो  माणसांच्या

घामांत भिजलेला.

 *

थेम्सच्या नदीकिनारी

पाहिला मी एक भिकारी

कळकटलेल्या कपडयांवर

फेकलेली नाणी

गोळा करताना.

© प्रा. डाॅ. सतीश शिरसाठ

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ वृद्धपण आणि मौन… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

श्री अमोल अनंत केळकर

?  विविधा ?

☆ वृद्धपण आणि मौन… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

वृद्धपण आणि मौनः

मौन” हा शब्द ऐकल्याक्षणी कुसुमाग्रजांची कविता आठवली.

शिणलेल्या झाडापाशी

कोकिळा आली

म्हणाली, गाणे गाऊ का ?

झाड बोललं नाही

कोकिळा उडून गेली.

 

शिणलेल्या झाडापाशी

सुग्रण आली

म्हणाली घरटे बांधु का?

झाड बोललं नाही

सुग्रण निघून गेली.

 

शिणलेल्या झाडापाशी

चंद्रकोर आली

म्हणाली जाळीत लपू का?

झाड बोललं नाही.

चंद्रकोर मार्गस्थ झाली.

 

बिजली आली

म्हणाली मिठीत येवू का?

झाडाचे मौन सुटलं

अंगांअंगातून

होकारांचे तुफान उठलं.

.

.

.

.

 

पहिल्यांदा वाचली तेव्हा नव्हती समजली. परत वाचली….

परत परत वाचली…

आणि लक्षात आले की हे तर शिणलेल्या झाडाचे समजूतदार मौन आहे….

अनेक वर्ष कोकिळा येवून  गात असेल, बर्‍याच सुगरण पक्षांनी पिल्लांसाठी सुंदर घरटी विणली असतील, चंद्रकोर तर कितीतरी वेळा झाडाच्या जाळीत लपली असेल….

असे सगळ्यांच्या सोबतीत ऐश्वर्यसंपन्न आयुष्य घालवलेल्या झाडासाठी आता आपण थकलो आहोत…

शिणलो आहोत हे स्विकारणे किती कठिण झाले असेल…

 

पक्षांच्याही लक्षात आले आहे की झाड दमलेय….

म्हणून तर विचारताहेत….

की शिणलेल्या झाडाला एकटे वाटू नये म्हणून येताहेत…

 

“नाही” पण म्हणता येत नाही आणि “हो” पण…

 

अश्या वेळी मौनाची सोबत असते….

थोडीशी घुसमट…

पण शब्दाशिवाय पोहोचते बरेच काही….

अशी ही मौनाची भाषा…

आणि कवितेचा शेवट तर….

 

समर्पणाचा…

मनाला चटका लावणारा…..

 

यानिमित्ताने आठवत राहिले ते स्वतःहून स्विकारलेलेले मौन….

 

पटत नसले तरी त्या क्षणी वाद वाढू नये म्हणून,

खूप आनंदाच्या वेळी शब्दातून व्यक्त होता येत नाही तेव्हा,

जंगलातील नीरव शांततेत,

कधीतरी स्वतः लाच चाचपडत असतांना….

 

माणसामाणसातील नात्यांमध्ये तर

कधीतरी  समोरच्याला समजून घेतांना

एकाने थांबणे पण गरजेचे….

.

.

.

.

 

यानिमित्ताने एक प्रसंग आठवला. तरुण मंडळींनी गावातल्या एका आजीबाईंना विचारले की

 

 इतकी वर्ष तुम्ही आनंदाने कसा संसार केला?

त्या म्हणाल्या “तो आग झाला की मी पाणी व्हते…”

 

गम्मत म्हणजे एका तरुण मित्राने लगेच प्रतिसाद दिला आणि म्हणाला

 “म्हणून तर ती राजाची राणी होते “

 

……असे पाणी होतांना मौनाची सोबत नक्की होत असेल का? 

खरं तर मला असे वाटते की ठरवून धारण केलेल्या मौनाची ताकद असतेच असते पण कधी व्यक्त व्हायचे आणि कधी मौनात रहायचे हे  समजले की आयुष्य मात्र नक्की सोपे, सहज होते.

लेखक : अज्ञात 

संग्राहक :श्री. अमोल केळकर

बेलापूर, नवी मुंबई, मो ९८१९८३०७७९

poetrymazi.blogspot.in, 

kelkaramol.blogspot.com  

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈