हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 214 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  दोहा सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 214 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

निज माता की कीजिए, सेवा कहें न भार।

जगजननी तब कर कृपा, देंगी तुमको तार।।

*

जन्म ब्याह राखी तिलक गृह-प्रवेश त्योहार।

सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।

*

कोशिश करते ही रहें, कभी न मानें हार।

पहनाए मंजिल तभी, पुलक विजय का हार।।

*

डरकर कभी न दीजिए, मत मेरे सरकार।

मत दें मत सोचे बिना, चुनें सही सरकार।। 

*

कमी-गलतियों को करें, बिना हिचक स्वीकार।

मन-मंथन कर कीजिए, खुद में तुरत सुधार।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

हमारे जीवन में आने वाली कई शिक्षाएं एक दूसरे के से भिन्न होती हैं। जैसे एक शिक्षा है सठे-साठ्यम् समाचरेत। अर्थात दुष्ट के साथ दुष्ट का व्यवहार करो। दूसरी शिक्षा है जो तू को कांटा बुये ताहि बोई तूं फूल। यह दोनों शिक्षाएं एक दूसरे के विरुद्ध है परंतु हमें समय-समय पर दोनों को मानना पड़ता है। इसी तरह से किस समय आपको सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए यह बताने के लिए आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय 16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024 के राशिफल के साथ उपस्थित हूं।

राशिफल बताने के पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म लिए बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा।

सप्ताह के प्रारंभ से 17 तारीख को 8:48 रात तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मिथुन होगी। भाग्य इनका साथ देगा। एकाएक इनके काम बन जायेंगे। 17 तारीख को 8:48 रात से 20 तारीख को प्रातः काल 4:18 a. m. तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कर्क होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी और अपनी संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। 20 दिसंबर के प्रातः काल 4:18 a. m. से लेकर 22 तारीख को 2:30 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि सिंह होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। उनकी संतान बहुत ऊंचे पद तक पहुंचेगी। इनको भी बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी। 22 तारीख को 2:30 दिन से सप्ताह के अंत तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कन्या होगी।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। भाग्य आपका साथ देगा। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा अच्छी रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर अच्छे हैं। 22 दिसंबर को 2:00 बजे दोपहर के बाद से आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृष राशि

आपका व्यापार ठीक चलेगा। भाई बहनों के साथ थोड़ा बहुत तनाव हो सकता है। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। आपको अपने संतान का सहयोग थोड़ा कम मिलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर लाभदायक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें तथा बृहस्पतिवार को विष्णु भगवान या उनके किसी अवतार के मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। एकाएक आपके काम बन सकते हैं। कार्यालय में आप फालतू के बहस में ना पड़े। आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। थोड़ा बहुत धन आने का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। आपको अपने जीवनसाथी का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। संतान भी आपके साथ सहयोग करेगी। भाग्य से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो शत्रुओं को आप परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर परिणाम दायक हैं। 16 और 17 दिसंबर को आपको सावधान होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन माला गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

अगर आपके ऊपर किसी प्रकार का ऋण है तो उसमें कमी होगी। आपको कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपको इस सप्ताह अपने शत्रुओं से भी सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 तारीख लाभ वर्धक है। 18 और 19 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह भाग्य से आपको सामान्य मदद मिलेगी। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ अच्छा संबंध रहेगा। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर मंगलप्रद हैं। 20-21 और 22 तारीख को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार उत्तम चलेगा। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। आपके क्रोध में भी वृद्धि हो सकती है। जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर मंगल दायक हैं। 22 दिसंबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द की दाल का दान दें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव की पूजा करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को थोड़ी परेशानी हो सकती है। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ दे सकता है। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपको अपने संतान से इस सप्ताह कोई सहयोग नहीं मिल पाएगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर अनुकूल हैं। इस सप्ताह आप 16 और 17 दिसंबर को सावधान रहकर कोई भी कार्य करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में सावधानी से कार्य करें। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 18 और 19 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ दे सकता है। लंबी यात्रा का भी योग बन सकता है। कार्यालय में आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। धन आने का योग है। कचहरी के कार्यों में प्रयास करने पर सफलता मिल सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिलेगी। धन आने की उम्मीद है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। कार्यालय में आपका समय ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20, 21 और 22 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 18, 19 और 22 तारीख के दोपहर के बाद का समय सावधानी से कार्य करने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा मैं वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ देगा। धन आने का योग है। शत्रुओं से आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। माता-पिता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर लाभदायक हैं। 20-21 और 22 दिसंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

‘सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे

💐 संपादकीय निवेदन 💐

💐 अभिनंदन! अभिनंदन! अभिनंदन! 💐

तितीक्षा इंटरनॅशनल पुणे आयोजित दशदिवशीय नवरात्र काव्य लेखन स्पर्धेत आपल्या समूहातील ज्येष्ठ लेखिका व कवयित्री सुश्री उज्ज्वला सहस्रबुद्धे यांना प्रथम क्रमांक प्राप्त झाला आहे. विशेष म्हणजे नवरात्रातील प्रत्येक दिवसासाठी एक आणि दसऱ्यासाठी एक अशा एकूण दहा काव्यरचना स्पर्धेसाठी मागवलेल्या होत्या, आणि सगळ्या रचना विचारात घेऊन क्रमांक ठरवण्यात आले. उज्ज्वलाताईंचे आपल्या सर्वांतर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील अशाच यशस्वी साहित्यिक वाटचालीसाठी असंख्य हार्दिक शुभेच्छा. 

– आजच्या अंकात वाचूया त्यातील त्यांची एक पुरस्कारप्राप्त कविता – “सीमोल्लंघन करू…”

– संपादक मंडळ

ई – अभिव्यक्ती, मराठी विभाग

?कवितेचा उत्सव  ?

सीमोल्लंघन करू… ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे ☆

‌ नवरात्रीचे दिवस, 

 आगमन दसऱ्याचे !

 रंग,रूप नव रीती,

 जगी या आचरण्याचे !..१

*

 सीमोल्लंघन करू या,

 दुष्ट अनिष्ट प्रथांचे !

 स्वागत आपण करू,

 नित्य नूतन जगाचे !….२

*

 देवी शारदे स्फूर्ती दे,

 साहित्य नवे लिहावे !

 उदासी मनाची जावी,

 कार्य नवे आचरावे !…३

*

  रामायण ते दाखवी ,

  अन्यायाचे निर्दालन!

  महाभारत शिकवी ,

  दुष्टांचे व्हावे दमन !…४

*

  इतिहासातून घ्यावा ,

  बोध मनी घटनांचा !

  दुष्ट शक्तींना मारून,

  विजय व्हावा सत्याचा !…५

*

 सीमोल्लंघन करूनी,

 वाट पुढील पहावी !

 आयुष्यात प्रत्येकाच्या,

 नवीन पहाट व्हावी !…६

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈



मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ निराळे कायदे… ☆ सौ. ज्योती कुळकर्णी ☆

सौ. ज्योती कुळकर्णी 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ निराळे कायदे…☆ सौ. ज्योती कुळकर्णी ☆

(आनंदकंद)

भागीरथीत जाती पापे कितीक धुतली

होते मलीन ती जर आहे प्रथाच  इथली

 *

रानात सिंह राजा प्राणीच भक्ष्य त्याचे 

मांडून कायद्याला टाळी तुम्हीच पिटली

 *

वाटे कुणास नारी अन्याय सोसणारी

केले असूर मर्दन तेव्हा सुखात निवली

 *

विश्वास ठेवला पण त्यानेच घात केला

नात्यास शुद्ध म्हणतो जाणून लाज विकली

 *

मिळतो बरा तुम्हाला बाहेर न्याय सहजी

न्यायालयात माझी नाणी बरीच झिजली

© सौ. ज्योती कुळकर्णी

अकोला

मोबा. नं. ९८२२१०९६२४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – क्षण सृजनाचे ☆ थेम्सच्या नदीकिनारी… ☆ प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ ☆

प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ

? क्षण सृजनाचे ?

थेम्सच्या नदीकिनारी… ☆ प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ ☆

लंडन येथील नदीचे नाव- थेम्स, त्या नदीवर एक मोठा ऐतिहासिक पूल आहे- टाॅवर ब्रिज. या पुलाच्या बाजूंना दोन मोठे टाॅवर असून राजघराण्यातील व्यक्ति बोटीने जाताना मध्यभागातून तो उघडला जातो.त्या नदीवर एक मोठा दुसरा पूल असून त्याला लंडन ब्रिज म्हणतात. मी त्यावर  मुक्त पध्दतीत एक कविता लिहीली आहे. 👇🏻

☆ थेम्सच्या नदीकिनारी… ☆ प्रा. डॉ.सतीश शिरसाठ ☆

थेम्सच्या नदीकिनारी

पाहिला मी टाॅवर  ब्रिज

ब्रिटिश राजसत्तेला

अभिवादन करताना

मध्यातून  मुडपणारा.

 *

थेम्सच्या नदीकिनारी

पाहिला मी लंडनब्रिज

मुखवटे घालून फिरणा-या

शेकडो  माणसांच्या

घामांत भिजलेला.

 *

थेम्सच्या नदीकिनारी

पाहिला मी एक भिकारी

कळकटलेल्या कपडयांवर

फेकलेली नाणी

गोळा करताना.

© प्रा. डाॅ. सतीश शिरसाठ

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ वृद्धपण आणि मौन… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

श्री अमोल अनंत केळकर

?  विविधा ?

☆ वृद्धपण आणि मौन… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

वृद्धपण आणि मौनः

मौन” हा शब्द ऐकल्याक्षणी कुसुमाग्रजांची कविता आठवली.

शिणलेल्या झाडापाशी

कोकिळा आली

म्हणाली, गाणे गाऊ का ?

झाड बोललं नाही

कोकिळा उडून गेली.

 

शिणलेल्या झाडापाशी

सुग्रण आली

म्हणाली घरटे बांधु का?

झाड बोललं नाही

सुग्रण निघून गेली.

 

शिणलेल्या झाडापाशी

चंद्रकोर आली

म्हणाली जाळीत लपू का?

झाड बोललं नाही.

चंद्रकोर मार्गस्थ झाली.

 

बिजली आली

म्हणाली मिठीत येवू का?

झाडाचे मौन सुटलं

अंगांअंगातून

होकारांचे तुफान उठलं.

.

.

.

.

 

पहिल्यांदा वाचली तेव्हा नव्हती समजली. परत वाचली….

परत परत वाचली…

आणि लक्षात आले की हे तर शिणलेल्या झाडाचे समजूतदार मौन आहे….

अनेक वर्ष कोकिळा येवून  गात असेल, बर्‍याच सुगरण पक्षांनी पिल्लांसाठी सुंदर घरटी विणली असतील, चंद्रकोर तर कितीतरी वेळा झाडाच्या जाळीत लपली असेल….

असे सगळ्यांच्या सोबतीत ऐश्वर्यसंपन्न आयुष्य घालवलेल्या झाडासाठी आता आपण थकलो आहोत…

शिणलो आहोत हे स्विकारणे किती कठिण झाले असेल…

 

पक्षांच्याही लक्षात आले आहे की झाड दमलेय….

म्हणून तर विचारताहेत….

की शिणलेल्या झाडाला एकटे वाटू नये म्हणून येताहेत…

 

“नाही” पण म्हणता येत नाही आणि “हो” पण…

 

अश्या वेळी मौनाची सोबत असते….

थोडीशी घुसमट…

पण शब्दाशिवाय पोहोचते बरेच काही….

अशी ही मौनाची भाषा…

आणि कवितेचा शेवट तर….

 

समर्पणाचा…

मनाला चटका लावणारा…..

 

यानिमित्ताने आठवत राहिले ते स्वतःहून स्विकारलेलेले मौन….

 

पटत नसले तरी त्या क्षणी वाद वाढू नये म्हणून,

खूप आनंदाच्या वेळी शब्दातून व्यक्त होता येत नाही तेव्हा,

जंगलातील नीरव शांततेत,

कधीतरी स्वतः लाच चाचपडत असतांना….

 

माणसामाणसातील नात्यांमध्ये तर

कधीतरी  समोरच्याला समजून घेतांना

एकाने थांबणे पण गरजेचे….

.

.

.

.

 

यानिमित्ताने एक प्रसंग आठवला. तरुण मंडळींनी गावातल्या एका आजीबाईंना विचारले की

 

 इतकी वर्ष तुम्ही आनंदाने कसा संसार केला?

त्या म्हणाल्या “तो आग झाला की मी पाणी व्हते…”

 

गम्मत म्हणजे एका तरुण मित्राने लगेच प्रतिसाद दिला आणि म्हणाला

 “म्हणून तर ती राजाची राणी होते “

 

……असे पाणी होतांना मौनाची सोबत नक्की होत असेल का? 

खरं तर मला असे वाटते की ठरवून धारण केलेल्या मौनाची ताकद असतेच असते पण कधी व्यक्त व्हायचे आणि कधी मौनात रहायचे हे  समजले की आयुष्य मात्र नक्की सोपे, सहज होते.

लेखक : अज्ञात 

संग्राहक :श्री. अमोल केळकर

बेलापूर, नवी मुंबई, मो ९८१९८३०७७९

poetrymazi.blogspot.in, 

kelkaramol.blogspot.com  

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ कुणाच्या खांद्यावर… — भाग-१ ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

डॉ. ज्योती गोडबोले 

? जीवनरंग ❤️

कुणाच्या खांद्यावर… — भाग-१ ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले 

आईला थोडे बरे नाही हे समजल्यावर आरती लंडनहून नोकरीतून रजा काढून मुंबईला आली.

आरतीच्या आई रजनीताई  म्हणजे एक बडे प्रस्थ होते… दिसायला सुंदर,शिकलेल्या,त्या काळात कॉलेजमध्ये नोकरी करणाऱ्या. त्यांचे यजमान रमेशराव सुद्धा खूप श्रीमंत घराण्यातले. गावाकडे पिढीजात जमिनी वाडे असे  वैभव असलेले. 

एका समारंभात त्यांनी रजनीला  बघितलं आणि मागणी घालून ही मध्यमवर्गातली मुलगी करून घेतली. रजनी होतीच कर्तृत्ववान. मध्यमवर्गातून आल्यावर हे सासरचे वैभव बघून डोळे दिपले नाहीत तरच नवल. 

आपल्या पगारातून रजनी वाट्टेल तसा खूप खर्च करत असे. कोणीही विचारणारे नाही आणि  रमेशरावांना एवढा वेळही नसे. बँकेत शिल्लक टाकावी, सेव्हिंग करावे असं रजनीला कधी वाटलंच नाही. 

रजनी स्वार्थी होती आणि तिचा हा स्वभाव तिची आई जाणून होती. रजनीचे आपल्या आईवडिलांशी तरी कुठे पटायचे ? मग भावंडे तर दूर राहिली… .. आणि श्रीमंत सासर मिळाल्यावर तर रजनीने आपल्या बहिणी आणि भावाशी संबंधच ठेवले नाहीत. भारी साड्या, दागिने, पार्ट्या,  सतत श्रीमंत मैत्रिणीत वावरणे हे रजनीचे आयुष्य बनून गेले. कॉलेजची नोकरी झाली की तिला वेळच वेळ असे रिकामा.

लागोपाठ तीन मुली झाल्या तरीही रजनीने नोकरी न सोडता त्यांना छान वाढवलं.  घरात खूप नोकरचाकर, हाताशी भरपूर पैसा, रजनीला काहीच जड गेलं नाही. 

रजनीबाईनी मुलींना चांगलं वाढवलं. मुली छान शिकल्या. दरम्यान लहानश्या आजाराने रमेशराव अचानकच वारले. रजनीने तिन्ही मुलींची लग्ने थाटात करून दिली. दोघी लगेचच परदेशात गेल्या.  

रजनीताईना आता एकाकीपण जाणवायला लागले   .त्यांची नोकरीही संपली होती  .  खाजगी कॉलेजात नोकरी असल्याने त्यांना  पेन्शन पण नव्हते. गावाकडचे वाडे जमिनी भाऊबंदकीत हातातून निसटून गेल्या. पण तरीही रमेशरावांनी ठेवलेलं काही कमी नव्हतं.

दरम्यान बऱ्याच गोष्टी घडल्या . रजनीताईंची मोठी मुलगी अलका अगदी आईसारखीच होती स्वभावाने.तिला एक  मुलगा झाला . तिचा नवरा अचानकच एक्सीडेंटमध्ये गेला. अलकाने लगेचच कोणताही विचार न करता , आईलाही न विचारता आपला आठ वर्षाचा मुलगा चिन्मय आईकडे आणून टाकला.

”आई , मी दुसरं लग्न करतेय आणि तो आपल्या जातीचा नाहीये. तो चिन्मयला संभाळायला तयार नाही.

मी त्याच्याबरोबर दुबईला जाणार आहे.

रजनीताईंची संमती आहे का नाही हे न विचारताच अलका आली तशी निघून गेली. बिचारा चिन्मय घाबरून आजीकडे बघत राहिला. रजनीताईंचं मन द्रवलं. त्यांना या पोरक्या मुलाचं फार वाईट वाटलं.त्यांनी चिन्मयला पोटाशी धरलं आणि म्हणाल्या,

”  घाबरू नको चिन्मय. मी आहे ना? तू रहा माझ्याकडे हं. आपण चांगल्या शाळेत  घालू तुला.” रजनीबाईनी चिन्मयला चांगल्या नावाजलेल्या शाळेत घातलं. 

अलकाला फोन केला आणि सांगितलं. “ हे बघ अलका.तुझा मुलगा ही तुझी जबाबदारी आहे. त्याच्या खर्चाचे, फीचे सगळे पैसे जर देणार नसलीस तर त्याला मी मुळीच संभाळणार नाही. आई आहेस का कोण आहेस ग तू? माझी इतका भार सहन करण्याची ऐपत आणि ताकदही नाही. जर वर्षभराचे पैसे चार दिवसात जमा झाले नाहीत तर मी त्याला अजिबात संभाळणार नाही. येऊन घेऊन जा तुझा मुलगा.” 

चिडचिड करत अलकाने मुकाट्याने पैसे  रजनीताईंच्या खात्यात जमा केले.

ती कधीही बिचाऱ्या चिन्मयला भेटायलाही यायची नाही. 

बाकीच्या तीन मुलींपैकी एकटी आरती सहृदय आणि शहाणी होती.रजनीताईंशी तिचं चांगलं पटे. या सगळ्या गोष्टी रजनीताई आरतीच्या कानावर घालत. 

मधली अमला तर असून नसल्यासारखी होती.    

जमीनदारांच्या घरी तिला दिली होती खरी, पण तिच्या हातात काडीची सत्ता नव्हती.पार कर्नाटकातील ते खेडं आणि सतत देवधर्म कुलाचार यातच बुडलेली.दोनदोन वर्षं तिला माहेरी यायला जमायचं नाही. आपल्या आईचं बहिणींचं काय चाललंय याची तिला दखलही नसे. ती कधी माहेरीही यायची नाही आणि कोणाला आपल्या घरी बोलवायचीही नाही.  

नशिबाने चिन्मय बुद्धीने चांगला निघाला.  कोणाचाही आधार नसताना तो चांगल्यापैकी मार्क्स मिळवून पास होत गेला.

रजनीताई आता थोड्या थकायला लागल्या. चिन्मयला नाही म्हटलं तरी आजीचं प्रेम लागलं होतं. तिच्याशिवाय त्याला जगात होतंच कोण?

पण सतत  आजी जवळ राहून चिन्मय एकलकोंडा झाला होता.ना त्याचे मित्र घरी येत,ना तो कधी त्यांच्याकडे खेळायला जात असे. 

चिन्मय आता   एम कॉम झाला.त्याला बँकेत नोकरीही लागली.   रजनीताईंनी त्याला जवळ बसवून सांगितलं,”हे बघ चिन्मय.तू आता मिळवायला लागलास .आता तुझ्या खर्चाचे  पैसे मला दरमहा देत जा. 

निमूटपणे चिन्मय आजीला पैसे देऊ लागला.कोणालाही विरोध करण्याची ताकद त्याच्यात निर्माणच झाली नव्हती. सतत त्याच्या मनात एक  कमीपणाची भावना असे. 

सगळ्या बहिणींनी आपली आई म्हणजे जणू चिन्मयचीच जबाबदारी असेच गृहीत धरले होते.

बिचाऱ्या चिन्मयला स्वतःचे आयुष्यच उरले नव्हते.सतत आजीला डॉक्टरकडे ने, तिची औषधे आण, तिला फिरायला ने हेच आयुष्य झाले चिन्मयचे.

ना कधी त्याच्या आईने त्याला फोन केला की कधी कौतुकाने पैसे पाठवले. बँकेत मान खाली घालून काम करणे आणि घर गाठणे हेच आयुष्य झाले होते चिन्मयचे.

आरती पुण्यात आली तेव्हा  माहेरी,रजनीताईंकडेच उतरली होती.

त्यांना बरं नाही म्हणून तिला त्यांनी बोलावून घेतलं खरं पण चांगल्या मस्त तर होत्या त्या.

आरतीला सगळं चित्र लख्ख दिसलं.

बिचारा चिन्मय आजीकडे भरडून निघतोय हेही तिला दिसलं.दोन दोन मिनिटांनी त्याला हाका मारणारी आणि राबवून घेणारी आपलीच आई तिने बघितली. 

“चिन्मय, उद्या माझी  डॉक्टरकडे अपॉइंटमेंट आहे,  लक्षात आहे ना?लवकर ये ऑफिसमधून.नंतर मग लगेच ते सांगतील त्या तपासण्याही करून टाकू.”

चिन्मयच्या कपाळावरच्या आठ्या आरतीला बरंच काही सांगून गेल्या.

आरती तेव्हा काही बोलली नाही.

नंतर चिन्मयला म्हणाली,”उद्या माझ्याबरोबर बाहेर चल चिन्मय.उद्या रविवार म्हणजे सुट्टी असेल ना तुला?आई, तू उद्या आपली जेवून घे ग.मी आणि चिन्मय बाहेर जाऊन कामे करून जेवूनच येऊ .”

रजनी ताईंच्या कुरकुरीकडे लक्षच न देता आरती चिन्मयला घेऊन बाहेर पडली.

एका छानशा हॉटेलमध्ये आरती चिन्मयला घेऊन गेली.”तुला काय आवडतं ते मागव चिन्मय.मला हल्ली फारसं तुम्हा नव्या मुलांना काय आवडतं ते समजत नाही”आरती हसत हसत म्हणाली. 

चिन्मय हळूहळू  आरती मावशी जवळ मोकळा होत गेला. या भिडस्त आणि पडखाऊ मुलाचं तिला फार वाईट वाटलं.

चिन्मय,कोणी मैत्रीण मिळालीय की नाही,  बँकेत किंवा आणखी कुठे?”

आरतीने गमतीने विचारलं.  मावशी, आहे ग माझ्याच बँकेतली  विदिशा माझी चांगली मैत्रीण. पणअजून लग्नाचं विचारलं नाही मी तिला.कोणत्या तोंडानं विचारू ग?

आधीच आजी सतत म्हणत असते, “ बघ, तुझी आई तुला टाकून गेली. मी सांभाळलं नसतं तर काय केलं असतंस रे तू? कठीणच होतं बरं बाबा तुझं.” 

– क्रमशः भाग पहिला 

© डॉ. ज्योती गोडबोले

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “सकारात्मकता : एक कला…” ☆ श्री जगदीश काबरे ☆

श्री जगदीश काबरे

☆ “सकारात्मकता : एक कला☆ श्री जगदीश काबरे ☆

पावसाळ्याचे दिवस होते. संध्याकाळी एका उद्यानात फिरायला गेलो होतो. तिथे दोन मैत्रिणींची मुलं झाडावर चढलेली दिसली. मैत्रिणीच्या झाडाखालीच गप्पा मारत बसल्या होत्या. मुलं झाडावर उंच पोहचल्यावर अचानक जोराचं वादळ आलं. ते झाड वाऱ्यानं गदागदा हालू लागलं.

पहिल्या मुलाची आई तिच्या मुलाला म्हणाली, “अरे, पडशील !”

तर दुसऱ्या मुलाची आई म्हणाली, ” सांभाळ, फांदी घट्ट पकडून ठेव.”

खरंतर दोन्ही मैत्रिणींना आपापल्या मुलांना पडण्यापासून वाचवायचं होतं. परंतु त्यांच्या मुखातून निघालेल्या संदेशांमध्ये मात्र खूप फरक होता. परिणामी पहिल्या स्त्रीचा मुलगा घाबरून फांदीवरून घसरून खाली पडला. मात्र दुसऱ्या स्त्रीच्या मुलानं फांदी घट्ट धरून ठेवली आणि तो अलगद उतरून खाली आला.

काय बरं असेल यामागचं कारण? ….. 

…. पहिल्या स्त्रीच्या शब्दामध्ये नकारात्मकता होती. जी तिच्या मुलानं ग्रहण केली आणि तो पडला.

…. या उलट दुसऱ्या स्त्रीनं उच्चारलेल्या शब्दांमध्ये सकारात्मकता असल्याने तिच्या मुलानं ती ग्रहण केली आणि तो फांदीवर आपले पाय घट्ट रोवून बसला आणि नंतर सावकाश खाली आला. 

…… म्हणून सकारात्मक वागणं, बोलणं ही एक कला आहे आणि ती प्रत्येक पालकाने आत्मसात करायला हवी.

© श्री जगदीश काबरे

मो ९९२०१९७६८०

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ डॉक्टर फॉर बेगर्स ☆ आई … ☆ डॉ अभिजीत सोनवणे ☆

डॉ अभिजीत सोनवणे

© doctorforbeggars 

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☆ डॉक्टर फॉर बेगर्स ☆ आई …  ☆ डॉ अभिजीत सोनवणे

साधारण चार वर्षांपूर्वी COVID लॉकडाऊन काळात मला भेटलेली एक माऊली… 

स्वतःचं सर्व आयुष्य उध्वस्त झालेलं… 

मुलं सोडून गेलेली… 

आयुष्य संपवायच्या विचारात असलेली…

 

त्याच टप्प्यावर एक अपंग मुलगा तिच्या आयुष्यात येतो… 

ती त्याचं मातृत्व स्वीकारते…. 

70 व्या वर्षी ती पुन्हा आई होते… 

त्याच्या आनंदासाठी ती कोणत्याही थराला जावू शकते… 

….. फक्त एक आईच हे करू शकते…. !!! 

 

हा सर्व भावपूर्ण प्रसंग मी माझ्या शब्दात ” आई ”  या शीर्षकाखाली मांडला होता ! 

 

श्री. व सौ. भाविका काळे हे माझे स्नेही… त्यांचा मुलगा विवस्वत काळे… ! 

कोवळ्या वयातच या मुलाने दिग्दर्शक होण्याचे स्वप्न पाहिले… ! 

पहिल्यांदा हा मला भेटला, त्यावेळी मी त्याला विचारले, “ बाळा आयुष्यात तुला पुढे काय करायचंय ?” 

 

“ समाजाला एक सकारात्मक दिशा मिळेल… नुकत्याच उमलणाऱ्या आमच्यासारख्या तरुणांना एक आशा मिळेल; असे चित्रपट मला पुढे बनवायचे आहेत काका …  मला व्ही. शांताराम सर, सत्यजित रे साहेब यांच्यासारखा दिग्दर्शक व्हायचंय… “ .. ठाम स्वरात विवस्वत बोलत होता. 

…. हा मुलगा जेमतेम १८  वर्षाचा सुद्धा नसेल… 

 

अठरा वर्षांचा असतानाचा मला मी आठवलो … 

शाळा / कॉलेज बुडवून, दे धमाल हाणामारीचे पिक्चर मी मित्रांसोबत पाहायचो… 

एकतर डोअरकीपर आमचा मित्र असायचा… आमच्या भीतीने तो तिकीट नसतानाही गप गुमान आम्हाला आत सोडायचा… 

एखाद्या अनोळखी डोअरकीपरने आत सोडायला आम्हाला अटकाव केला तर, चित्रपटाआधीच आमच्यातल्या प्रत्येकाच्या अंगात बच्चन… मिथुन… धर्मेंद्र यायचा… ! 

… मग त्या नवीन डोअर कीपरचा आम्ही “चुथडा” करायचो… ! 

 

मी साधारण त्यावेळी बारावीत असेन… 

मला कोणतीही दिशा नव्हती… ! 

वडील पोलीस डिपार्टमेंट मध्ये…. वडिलांचे मित्र म्हणजे लय मोठे अधिकारी… 

ते घरी यायचे आणि मला विचारायचे, “ बाळा आयुष्यात पुढे तू कोण होणार आहेस… ? “

मी नव्या नवरीगत खाली मान घालून उत्तर द्यायचो… “ बच्चन, मिथुन किंवा धर्मेंद्र… ! “

….. ते मोठे सायेब गेल्यावर, बापाचा लय मार खात असे मी… ! 

 

आम्हाला … म्हणजे आमच्यासारख्या मुलांना एक सकारात्मक दिशा मिळेल… नुकत्याच उमलणाऱ्या, आमच्यासारख्या तरुणांना एक आशा दिसेल, असे आमच्यापुढे कोणीच रोल मॉडेल नव्हते… किंवा असतील तर त्यांना पाहण्याइतपत … समजण्याइतपत आमची अक्कल आणि लायकी नव्हती…  

 

‘ अशा मोठ्या लोकांना पहा रे… समजून घ्या रे बाळांनो… ‘   हे प्रेमानं सांगणारे लोकही आम्हाला त्यावेळी भेटले नाहीत… ! 

मला फक्त आठवतात… चुकलो म्हणून मुस्काटावर खणखणीत मारलेला हात…. आणि ढुंगणावर बसलेली लाथ… !

 

…. “हात” आणि “लाथ” यापेक्षा आमच्यासारख्या नालायक मुलांशी, थोडीशी जर कोणी केली असती “बात”….  तर आम्ही बी घडलो असतो… ! 

… पण नाही… आम्ही बिघडलो…. ! 

 

“ सर…” विवस्वत ने हाक मारली आणि मी डोळे उघडून, भूतकाळातून पुन्हा वर्तमान काळात आलो…!

“ सर मला तुमचा “आई” हा अनुभव आवडला आहे…  आणि मी त्यावर शॉर्ट फिल्म करू इच्छितो, आयुष्याची सुरुवात … ध्येयाची सुरुवात मी आपल्यापासून करू इच्छितो… आपल्या शब्दांनी एक सकारात्मक ऊर्जा निर्माण होईल समाजामध्ये…आपण मला शॉर्ट फिल्म करायची परवानगी द्याल काय ?” 

 

डोळे उघडून मी जागा झालो…  

…. जगाने “ना लायक” ठरवलेल्या माझ्यासारख्या एका मुलाला, विवस्वत नावाच्या दुसऱ्या एका “लायक” मुलाने दिलेली ही सलामी होती…

माझ्या डोळ्यात पाणी होतं… !!! 

 

मी त्याला म्हणालो,  “ ए भावा, समाजाला दिशा किंवा तरुणांची आशा म्हणून माझे शब्द किती योग्य ठरतील मला माहीत नाही रे… पण तू आयुष्याची सुरूवात माझ्या सारख्या नालायक माणसापासून करू नकोस… समाजात खूप लायक आणि नायक लोक आहेत… तू त्यांची एखादी कथा किंवा अनुभव घे ना..!”

 

“ सर, प्लीज तुम्ही लायक आहात किंवा नालायक हे समाजाला ठरवू द्यात… विवस्वत सारख्या मुलांना ठरवू द्यात… तुम्ही जजमेंट नका देऊ…”  सौ भाविकाताई काळे, विवस्वतची आई बोलली. 

…. यापुढे परमिशन देण्या आणि घेण्याचा प्रश्नच नव्हता… ! 

 

यानंतर या छोट्या मुलाने, “आई” नावाने एक शॉर्ट फिल्म बनवली… 

ती जगभर गाजली… 

माझ्या शब्दांना त्याने चित्ररूप दिले… ! 

या शॉर्ट फिल्मची लिंक खाली देत आहे…

…… शॉर्ट फिल्म आवडली, तर त्याचे सर्व श्रेय विवस्वतचे… ! … माझा रोल करणाऱ्या श्रीपाद पानसे यांचे… 

… आजीचा रोल करणाऱ्या श्रीमती आरती गोगटे यांचे… 



https://youtu.be/zhm6g-X2IoQ?si=J-1bGa6aAKZlXaiv

नाहीच आवडली फिल्म, तर सर्व शिव्या या  ना – लायकाच्या पदरात घाला… ! 

मी पदर पसरून उभा आहे माऊली… !!! 

आपला;

डॉ अभिजित सोनवणे

डाॕक्टर फाॕर बेगर्स, सोहम ट्रस्ट, पुणे

मो : 9822267357  ईमेल :  [email protected],

वेबसाइट :  www.sohamtrust.com  

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ “जठराग्नीत उजळलेलं सोनं !” ☆ श्री संभाजी बबन गायके ☆

श्री संभाजी बबन गायके

 

? इंद्रधनुष्य ?

“जठराग्नीत उजळलेलं सोनं ! ☆ श्री संभाजी बबन गायके 

… अर्थात भुकेलाही खाऊन उरलेली माणसं !

क्षुधा हा संस्कृत शब्द..आणि भूख बहुदा जर्मन भाषेतून जगभर पसरलेला शब्द…आपल्याकडे भूक  अर्थात या शब्दाच्या आधीपासूनच जगात भूक आहेच..सर्वव्यापी! भुकेचा आणि पोटाचा संबंध असणं स्वाभाविक आणि त्यामुळे भुकेल्या पोटी,अर्धपोटी राहिलेल्या लोकांचाही इतिहास असणं स्वाभाविक. 

भुकेपोटी भीकेला लागलेली माणसं,जठराग्नी शांत करण्यासाठी कोणत्याही थराला जाणारी  जगाने पाहिलीत तशी भुकेला खाऊन राहिलेली माणसंही पाहिलीत…ती संख्येने अगदी थोडी असली तरी! 

खरं तर जगात अन्नाची कमतरता कधीच नव्हती. कमतरता होती आणि आहे ती अन्नाच्या समान वितरणाची. कुणाचं ताट शिगोशीग भरलेलं तर कुणाचं ताट निरभ्र आकाशासारखं…रितं! माणसं दैव नावाच्या कुंभाराने घडवलेलेल्या मडक्यांसारखी.. कुणाच्या मुखी लोणी तर कुणा मुखी अंगार पडतो. 

देवाला जगात यापुढे अवतार घ्यावा लागला तर तो भाकरीच्या रुपात घ्यावा लागेल,असं म्हणतात. ज्यांची पोटं भरलेली आहेत आणि ज्यांची रिकामी आहेत…हे दोन्ही गट देवाने अवतार घेण्याची वाट पाहताना दिसतात! 

गानकलेच्या क्षेत्रात अत्युच्च शिखरावर चिरंजीव विराजमान झालेली स्वरांची अपत्ये म्हणजे दीनानाथ आणि माई मंगेशकर यांची पंचरत्ने. त्यांनी, विशेषत: लतादीदी आणि आशाताई या दोघींनी मिळून तर दोन्ही ध्रुव आपल्या आवाजाच्या कवेत घेतले. हृदयनाथ,लता,आशा,उषा आणि मीना यांचे यश देदीप्यमान आहेच. पण त्यापेक्षाही त्यांनी भुकेशी दिलेला लढा असामान्य असाच म्हणावा लागेल. या संघर्षातून त्यांची व्यक्तिमत्वे घडली….अनेक कंगोरे असलेली. ज्याने भूक अनुभवली त्याच्या जीवनात तो अनुभव कदापि विसरता न येणारा असतो. किंबहुना पानात पंचपक्वान्ने वाढलेली असताना, त्यांच्या जिव्हाग्री त्यांनी उपवासनंतर चाखलेला पहिला घास नांदत असतो….आणि तो भरवणारा हातही! 

दैनिक सकाळ सप्तरंग पुरवणीत गेले काही महिने रविवारी पंडित हृदयनाथ मंगेशकर एक महान इतिहास शब्दबद्ध करून ठेवत आहेत….त्यांचे हे कार्य सिद्धीस जावो,ही माता सरस्वतीचरणी प्रार्थना. आजच्या लेखनात माई,आशा,उषा आणि हृदयनाथ यांनी त्यांच्या खानदेशातील गावातून मुंबईपर्यंत केलेल्या रेल्वे प्रवासाची आठवण लिहिली गेली आहे. 

संपूर्ण प्रवासभर सहप्रवासी विविध पदार्थ सेवन करीत असताना प्रचंड भुकेजलेली ही मुलं कुणाकडे हात पसरत नाहीत. पाणी पिऊन भुकेची समजूत काढत काढत उघड्यावर निजतात. किती तरी तासांनी पुढ्यात आलेल्या बिस्किटास आईच्या संमतीशिवाय हात लावत नाहीत. त्यांच्या समोर इतर माणसं जेवून उठत असताना यांच्या चेह-यावर बुभुक्षितपणाची रेषाही उमटत नाही. पहिल्या पंगतीतून काही कारणाने उठावे लागते आणि दुस-या पंगतीत त्यांच्या आईने, माईने दाखवलेला बाणेदारपणा भुकेवर मात करून पंगत सोडून उठतो…आणि ताठ मानेने पुढच्या प्रवासात निघतो! 

तिस-या दिवशी हाता तोंडाची गाठ पडायची होती….पण इथे तो हात दैवी होता आणि तोंड बाळाचे होते. माई,आशा,उषा इत्यादी समोर असताना त्यांच्याशी न बोलता दीदी थेट हृदयनाथ यांच्याकडे आल्या आणि त्यांना अन्नाचा घास भरवला….हा पहिला घास अमृताचा न ठरता तरच नवल! जठरात पेटलेल्या अग्नीत हे स्वर-सुवर्णालंकार काळाने घातले ते जाळाव्यास नव्हेत तर उजळावायास…आणि त्यांचा प्रकाश सा-या जगाने अनुभवला आहे! 

प्रत्यक्ष हा लेख वाचताना प्रत्येक सहृदय माणसाच्या पोटात कालवाकालव झाल्याशिवाय राहणार नाही..असाच हृदयनाथांनी लिहिलेला अनुभव आहे. 

© श्री संभाजी बबन गायके 

पुणे

9881298260

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈