ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (6 जनवरी 2025 से 12 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (6 जनवरी 2025 से 12 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

नए वर्ष के नए सप्ताह की मधुर बेला में मैं पंडित अनिल पांडे नए वर्ष में आपकी सफलता की कामना करते हुए इस सप्ताह आपके अच्छे समय के बारे में बताने हेतु प्रस्तुत हुआ हूं।

इस सप्ताह सूर्य धनु राशि में, मंगल कर्क राशि में, बक्री बुध धनु राशि में, वक्री गुरु वृष राशि में, शुक्र और शनि कुंभ राशि में तथा राहु मीन राशि में रहेंगे। इस सप्ताह चंद्रमा को छोड़कर अन्य कोई ग्रह अपना राशि परिवर्तन नहीं कर रहा है।

आइए अब हम राशिवार राशिफल के चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। धन आने का योग है। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। शत्रुओं से सावधान रहें। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। 8 और 9 जनवरी आपके लिए किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 6 और 7 जनवरी को आपको कोई भी कार्य करने के पहले पूरा सोच विचार करना चाहिए। इस सप्ताह आपके पास 10 और 11 तारीख को धन आ सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। गलत रास्ते से धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। दुर्घटनाओं से अपने आप को बचाने का प्रयास करें। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी लाभदायक है। 8 और 9 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान सूर्य को तांबे के पत्र में जल और लाल पुष्प तथा अक्षत डालकर जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए अच्छा रहेगा। आपके लिए भी ठीक-ठाक रहेगा। व्यापार उत्तम चलेगा। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपके दबाव में सभी लोग रहेंगे। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कचहरी के कार्यों में सतर्कता बरते। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7और 12 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। 10 और 11 जनवरी को आपको संभलकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें। मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

 इस सप्ताह अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को समाप्त कर सकते हैं। आपका स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। जीवनसाथी माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य भी सामान्य रहेगा। धन आने का सामान्य योग है। भाग्य के स्थान पर आपको अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए फल दायक हैं। 12 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

 अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अत्यंत उत्तम है। विवाह के अच्छे-अच्छे प्रस्ताव आएंगे। आपके जीवनसाथी का पिताजी का और माता जी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। आपके साथ में थोड़ी बहुत समस्या आ सकती है। कार्यालय के कार्यों में आप सफल रहेंगे। आपको अपने संतान का सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी उत्तम है। 6 और 7 जनवरी को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन उड़द का दान करें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव की आराधना करें सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

 इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रहेगा। शत्रुओं से सावधान रहिएगा। इस सप्ताह आपके शत्रु शांत रहेंगे, परंतु समाप्त नहीं हो पाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7 और 12 जनवरी हर प्रकार के कार्यों के लिए उपयुक्त है। 8 और 9 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन गायत्री मंत्र की का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका आपके माता-पिता जी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध उत्तम रहेंगे। छात्रों की पढ़ाई अच्छी चलेगी। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। शत्रुओं पर आपका निरंतर दबाव रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। धन आने की पूरी संभावना है। भाग्य भी साथ देगा। विवाह प्रस्ताव आ सकते हैं। इस सप्ताह संतान से आपको कोई मदद नहीं मिल पाएगी। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा परंतु पिताजी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी हितप्रद है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। माता जी को कष्ट हो सकता है। दुर्घटनाओं से आप बचने का प्रयास करें। पेट में कुछ तकलीफ हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7 और 12 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। 10 और 11 जनवरी को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य आपका साथ देगा। लंबी यात्रा का योग बन सकता है। कचहरी के कार्यों में सावधानी के साथ काम करने पर सफलता मिलेगी। धन आने का योग है। आपको अपने संतान से थोड़ा बहुत सहयोग मिल सकता है। छात्रों की पढ़ाई सामान्य रूप से ठीक चलेगी। माताजी पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 जनवरी विभिन्न कार्यों हेतु अनुकूल है। 12 जनवरी को आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी किसी भी कार्यों के लिए उपयुक्त हैं। अगर आप प्रॉपर्टी खरीदने को सोच रहे हैं तो इस दिन आप प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं। सप्ताह के बाकी दिन एक जैसे हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपको कार्यालय के कार्यों में सम्मान मिल सकता है। कचहरी के कार्यों को सावधानी पूर्वक करने पर विजय प्राप्त हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। भाग्य आपका साथ देगा। आपको अपने संतान से सामान्य रूप से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7 और 12 जनवरी लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – सूचनाएं/Information ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

‘सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

☆ संपादकीय निवेदन ☆

 💐🥇अभिनंदन 🥇💐

आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखक व कवी डाॅ. प्रा. प्रवीण जोशी यांना कोकण मराठी परिषद, गोवा यांचेकडून त्यांचे साहित्यिक कार्याबद्दल जीवन गौरव पुरस्कार जाहीर झाला आहे. हा पुरस्कार त्यांना म्हापसा येथे आयोजित करण्यात आलेल्या विसाव्या शेकोटी साहित्य संमेलनात प्रदान करण्यात आला आहे.

तसेच, ‘ मराठी का शिकावी ‘ या विद्यार्थिनींसाठी आयोजित करण्यात आलेल्या चर्चासत्राचे अध्यक्षपदही त्यांनी भूषविले आहे.

साहित्य क्षेत्रातील त्यांच्या या उज्ज्वल यशाबद्दल ई अभिव्यक्ती समुहातर्फे त्यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि हार्दिक शुभेच्छा !

 संपादक मंडळ

ई  अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ गोवा… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ गोवा… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

स्वर्गातीत हा सुंदर ठेवा

असाचं आहे आमचा गोवा

*

रुपसुंदरी खाण मराठी

फणस काजुचा गोड मेवा

*

निसर्ग सौंदर्य आणि पर्यटन

अतीथ्य ब्रीदात आहे गोवा

*

कला नाट्य संगीत मुरब्बी

लता, बाकीबाबा, अभिषेकीबुवा

*

दिले घेतले प्रेम तयांचे

माणुसकीचा गोड ठेवा

*

कोकणी भाषा माय मराठी

स्वरात त्यांचा वाटे गोडवा

*

किती प्रेमात चिंब भिजलो

असाच आहे माझा गोवा

*

जन्म इथेच व्हावा वाटे

लाल मातीचा गुण ठरावा

*

सागर किनारी स्नेह लाटा

असाच आमचा आहे गोवा

© प्रो डॉ प्रवीण उर्फ जी आर जोशी

ज्येष्ठ कवी लेखक

मुपो नसलापुर ता रायबाग, अंकली, जिल्हा बेळगाव कर्नाटक, भ्रमण ध्वनी – 9164557779 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ अनोखा स्वेटर ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

🎽 अनोखा स्वेटर ! 🎽 ⭐ श्री प्रमो वामन वर्तक ⭐ 

गुंडा लोकरीचा आठवांचा

सहज हाती लागला,

उब न्यारी जाणवता

स्वेटर विणाया घेतला !

 *

झाडून साऱ्या नात्यांची

मी छान वीण गुंफली,

होता तयार सुंदर नक्षी

मती माझी गुंग जाहली !

 *

तयार होता होता स्वेटर

शिशिर पूर्ण संपून गेला,

नाही कळले कधी मला

वैशाख वणवा लागला !

 पण,

 मनी ठेवला जपून स्वेटर

केली उतारवयाची सोय,

गोष्ट सांगतो गमतीची

भावी शिशिरांचे सरे भय !

भावी शिशिरांचे सरे भय !

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) – 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ “नदीचा काठ…” ☆ प्रा. भरत खैरकर☆

प्रा. भरत खैरकर

🌸 विविधा 🌸

☆ नदीचा काठ… ☆ प्रा. भरत खैरकर 

नदीचा काठ आता पहिल्यासारखा स्वच्छ राहिला नाही. सकाळपासून संध्याकाळपर्यंत या काठाला आता उसंत नसते. लोक म्हणतात, उन्हाळ्यात नद्या आटतात. मात्र गावची नदी बारमाही सारखीच धो.. धो.. वाहणारी दोन्ही – हातांनी एखाद्या दात्याने भरभरून दान द्यावे. तसं या नदीने आमच्यां गावाला खूप दिलंय. विहिरी आटल्या तरी नदीची धार मात्र खंडत नाही.. शंकराच्या जटेतून निघालेल्या गंगामाईसारखी!!  या नदीची काही कहाणी असेलसं वाटत नाही.

दहा बाय दहाच्या खोलीत आपला संसार छानसा थाटावा, तसा या नदीचा उगम अगदी छोट्या जागेत सामावलेला.. गावापासून चंद्रपूर जिल्ह्यातील खुर्सापार या जंगलातून.. एका डोंगरवजा भागात.. तिची उत्पत्ती झाल्याचे आढळुन येते. एक भला मोठा झरा उंचावरून धबधब्यासारखा अव्याहत खाली वाहतो.. चांदण्यात ही दुधाची धार जणू आकाश धरतीच्या पदरात प्रेमाने टाकतोय.. असं वाटते.

आजूबाजूला उंचच उंच सागवनी वृक्ष.. निसर्गाचं हे रूप पाहात कित्येक सालापासून उभे आहेत. त्या परिसरातील सागाच्या झाडांची वाढ कमालीची झाली आहे. जंगलात सर्वत्र फिरून झाल्यावर निसर्ग याच ठिकाणी इतका ‘खुश’ कसा हे शोधलं तर मुळाशी तो उगम दिसेल..

 साधारण पन्नासेक फुटावरून खालच्या दगडांवर पडणारी ती जाडशी पाण्याची धार हळूहळू घाटदार वळण घेत संथ होते, छोटसं नितळ पाण्याचं तळं.. ते वलयांमुळे अजूनच उठून दिसतं.. मनात भावनांचे हळूवार तरंग उठावे तसे  ह्या पाण्याचे तरंग धारेच्या केंद्रापासून दूरवर काठापर्यंत जाऊन हळूहळू संथ रूप धारण करतात.. मग हे पाणी कड्याकपारीतून मार्ग काढीत. एका नाल्याचं रूप धारण करतं, माणसाचं आयुष्य जसं कधी दुःख तर कधी सुखाच्या अनुभवांनी पुढे पुढे सरकते.. अगदी तस्सच.

या छोट्याशा नाल्याचं, हळूहळू जंगलातून ‘आलेले इतर छोटे छोटे नाले स्वागत करीत त्या नाल्यास येऊन मिळतात, ‘एकमेकां साह्य करू अवघे धरू सुपंथ’ हे या निसर्ग घटकांना कोणी शिकविले कुणास ठाऊक?

आता ही नदी जंगलातील चार-पाच खेड्यांतून आमच्या गावात येते.. ती सरळ गावाच्या मधोमध घुसते..

नदीच्या या घुसखोरीमुळे उगाच एका मोठ्याशा गावाचे दोन भाग झाले. पूर्वेकडचा ‘सिर्सी’ नि पश्चिमेकडचा ‘काजळी’असं नामकरण झाल.

 आता मात्र सिर्सी हेच नाव प्रचलित आहे. तरीही जुन्या माणसांनी ‘कुठं रायतं बाबू?’ म्हटलं का नवीन पोर ‘सिर्सीले रायतो जी !’ उत्तर देतात आणि मग तो माणूस जेव्हा ‘सिर्सी (काजळीच) ना?’ म्हणतो तेव्हा ही पोरं नंद्यांसारखे ‘होजी’ म्हणून होकार भरतात.

नदीमुळे एक बरं झाले.. इतर गावासारखी आमच्या गावाला अजिबात पाण्याची फिकीर करावी लागत नाही. आमच्या लहानपणी आम्ही आईसोबत धुणं धुवायला नदीवर जात होतो.. धुणं धुवायला म्हणजे काय तर तिथं जाऊन काठावरच्या मऊ मऊ रेतीत खेळायला.. पाण्यात पाय ओले करायचे अन् मग आपणच उकीरड्यावर लोळणा-या गाढवासारखं रेतीत लोळायचं.. त्याच्याने ओल्या झालेल्या पायावर रेतीचे मोजे तयार व्हायचे.. जसजशी ऊन तापायची तसतसे त्यातील ओलावा संपल्याने ते मोजे गळून पडायचे! या मोज्याचं आम्हांला तेव्हा भारी अप्रुप वाटायचं.

पायात मोजे घालूनच आमच्या इमारती उभ्या करायचा व्यवसाय चालायचा.. मात्र या इमारती नुसत्या वाळूच्या आणि पाण्याच्या ! हीच त्याची खरी खासियत होती. नानाविध तऱ्हेच्या त्या इमारतीचे ‘स्ल्याब’ मात्र वर्तुळाकारच राहायचे. काही काही इमारतींना कुंपण म्हणून बोटबोटभर.. काड्या सभोवताल लावल्या जायच्या.. त्या रक्षणाचं काम करायच्या… कधीकधी असलाच तर रस्त्यावर सापडलेला सुताचा गुंता येथे तार म्हणून वापरला जायचा.. काहींची घरे एवढी महागडी असायची की त्यांच्या घरात विजेची सोय असायची आणि हे दिवे बाभळीच्या पांढऱ्या काट्यांवर खुपसलेल्या बकरीच्या लेंड्या असायच्या ! काहींच्या घरासमोर किमती मोटारगाड्या.. तुटलेल्या विटांच्या रूपात उभ्या राहायच्या.. रेतीत कोरलेला रस्ता जणू डोंगर पोखरून तयार केल्यासारखा वाटायचा. या सर्व गाड्यांचे डायव्हर मात्र रिमोट कंट्रोलसारखे आपआपल्या जागी बसून फक्त हाताने. गाडी ढकलायचे. बिना ड्रायव्हरचा तो अनोखा प्रवास असायचा.

ज्या कुणाला या चैनीच्या गाडीघोड्यांच्या ‘ लाईफ’ मधे रस नसायचा ते वडिलोपार्जित शेतीचा व्यवसाय करायचे.. नदीकाठाने वाढलेला तरोटा आणि अजून अशाच काही बाही पालेभाजी सदृश वनस्पती उपटून ते ‘मंडई’ मांडत होते.. मग खरेदी करणारे सिगारेटच्या पाकिटच्या, माचीसच्या कव्हरच्या अवमूल्यन न झालेल्या नोटांनी घरच्यासाठी भाजीपाला खरेदी करायचे, काहींचे वावरंही त्या रेतीतच होते. मुख्य म्हणजे रेती चोपडी करून त्यात चौकोनी चौकोनी वाफे करणे खूपच सोपे..

शिवाय उपडलेला काठावरचा तरोटा त्या चौकोनाच्या चौरस्त्यावर एकामागून एक रांगेत लावला की, पाच मिनिटात हिरवंगार शेत दृष्टीस पडे !

असे एक ना अनेक खेळ या नदीकाठावर आम्ही खेळायचो! पडलो, धावलो, मारामाऱ्या सारंसारे येथे केलं. पण मऊशार रेतीवर थोडासाही धक्का कधी लागला नाही. आईने आपल्या पोराला कुशीत घेऊन थोपटावं.. तसंच या काठाने आमचं बालपण जोजावले..

नदीचा काठ आठवला की बालपण ‘फ्कॅशबॅक’ सारखं काठावर जाऊन थांबतं..

नदी, नदीचा उगम, छोटसे तळे, त्यातील तरंग, तिचा गावांपर्यंतचा प्रवास, तिचं गावात प्रवेश करणं.. आम्हां चिमुकल्यांचे तिच्या काठावरचे संसार.. सारं सार

एका पहाटधुक्यासारखे विरळ होत जाऊन गत स्मृतींनी गळा भरून येतो. तेव्हा डोळ्यातील पाणी त्या नदीत जाऊन मिसळत नसेलच कशावरून ??

© प्रा. भरत खैरकर

संपर्क – बी १/७, काकडे पार्क, तानाजी नगर, चिंचवड, पुणे ३३. मो.  ९८८१६१५३२९

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ प्रकाशक – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर ☆

श्री प्रदीप केळुस्कर

?जीवनरंग ?

☆ प्रकाशक – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर

(”तुझे काय मत आहे? तुझी पुस्तके खराब केली असे तुला म्हणायचे आहे काय”? 

”होय’ !

त्याच क्षणी मी रागाने जयंताच्या घराबाहेर पडलो ) — इथून पुढे —

अशी घटना घडली त्यामुळे ती पुस्तके दुसर्‍याने प्रकाशीत केली.

प्रश्न – अलेक्झांडर सारखे सुंदर नाटकाचे पुस्तक असूनही त्या पुस्तकाची विक्री फारशी झाली नाही असे म्हणतात, कां?

मी – नुसते पुस्तक छापून चालत नाही, त्याचे मार्केटिंग करावे लागते, त्या पुण्याच्या प्रकाशकाला मार्केटिंगचा काहीच अनुभव नव्हता.

प्रश्न – मुंबईत मराठी पुस्तकांसाठी तुमची दोन दुकाने असताना आणि त्या काळी वाचक मराठी पुस्तकांसाठी तुमच्याच दुकानात येत असताना जयंतरावांची नाटके तुमच्या दुकानात मिळत नव्हती, हे खरे काय?

मी- हे खरे आहे, याचे कारण पुण्याच्या त्यांच्या प्रकाशकाने आमच्या दुकानात पुस्तके ठेवली नाहीत, आमची पुस्तकांची ऑर्डर त्यांनी पुरी केली नाही.

प्रश्न – कॉलेजमधील तुमची मैत्रिण अनघाताई यांनी जयंतरावांशी लग्न केलं, त्यांच्या प्रेम विवाहा बद्दल तुम्हाला कल्पना होती?

मी – मला कल्पना नव्हती.

प्रश्न – अनघाताई मग दूरदर्शनवर निर्मात्या झाल्या त्यांनी ही नोकरी स्विकारताना तुमचा सल्ला घेतला होता काय?

मी- नाही.

प्रश्न – मग अनघाताई दूरदर्शवर गेल्यानंतर तुमचे त्यांच्याबरोबर अनेक फोटो कसे काय दिसतात?

मी – अनघा ही साहित्यीकांच्या आणि कलावंताच्या मुलाखती घ्यायची, तिला साहित्यीकांच्या भेटी घाटी होण्यास माझी मदत व्हायची कारण माझा प्रकाशन व्यवसाय असल्याने या मंडळीत माझी उठबस असायची.

प्रश्न – अनघाताई जयंतरावांना वर्षभरात सोडून गेल्या, त्या सोडून जाणार हे तुम्हाला माहीत होतं का?

मी- नाही.

प्रश्न – अनघाताईनी जयंतरावांशी स्वत:हून लग्न केलं होतं, मग असं काय झालं, की त्या वर्षाच्या आत त्यांना सोडून गेल्या?

मी – याची मला कल्पना नाही, ते तुम्ही अनघाला विचारा.

एवढ्यात त्या मुलाखत घेणार्‍या दोन मुली पैकी दुसर्‍या मुलीने सोबतच्या बॅग मधून एक जूना पेपर बाहेर काढला, ती मुलगी बोलू लागली.

“वसंत सर, जयंतरावानी १९९५ साली कोल्हापूरच्या पुढारीस मुलाखत दिली होती. त्या मुलाखतीत जयंतराव म्हणतात 

– वसंताने म्हणजे तुम्ही माझी म्हणजे जयंतरावांची नाटके प्रकाशीत करायला नकार दिला, खरं तर वसंताचे पब्लीकेशन हे त्या काळी मराठीतील सर्वोत्तम प्रकाशन होते. शिवाय त्यांची मुंबईत स्वत: ची दोन दुकाने होती, म्हणून मला ती पुस्तके पुण्याच्या नवीन प्रकाशकाकडे द्यावी लागली 

आणि येवढ्या चांगल्या पुस्तकांची त्यांनी वाट लावली, ती खपली नाहीत, लोकांपर्यंत पोहचली नाहीत.

मी ओरडलो- हे खोटं आहे. जयंता खोटे बोलत आहे.

पुन्हा तीच मुलगी बोलू लागली.

वसंत सर, जयंतरावांच्या निधनानंतर दुरदर्शच्या प्रतिनिधीने तुमच्या मोठ्या भावाची म्हणजेच जे तुमची दोन्ही दुकाने सांभाळतात, त्या प्रभाकर रावांची मुलाखत घेतली होती, त्याची कॅसेट माझ्या कडे आहे.

त्या मुलाखतीत तुमचे मोठे भाऊ प्रभाकरराव म्हणतात 

जयंतराव हे उच्च दर्जाचे कवी होते, कथा लेखक होते, आम्ही त्यांची पुस्तके सुरवातीस छापली, पण काय झाले कोण जाणे, माझा धाकटा भाऊ वसंत हाच त्यांच्या पुस्तकांच्या आवृत्या काढायला विरोध करू लागला.

मला दरदरून घाम सुटला. एवढ्या मोठ्या श्रोत्यांसमोर या दोन मुली मला उघडं पाडत होत्या,

मी ओरडलो – कोण आहात तुम्ही ? मला पाहुणा म्हणून बोलावलत आणि मलाच खोटारडा ठरवता ? माझा अपमान करता?

“तुमचा अपमान नाही करत सर, आम्ही दोघीनी जयंतरावांच्या साहित्यावर पी. एच. डी केली आहे. त्यांच्या साहित्यात जसजसं खोल जाऊ लागलो, तसें लक्षात आले, एवढ्या ताकदीचा लेखक त्याची तुम्ही काढलेली कविता संग्रह किंवा कथासंग्रह कुठेच उपलब्ध नाही, अगदी वाचनालयात सुद्धा, ज्यांची कुवत नाही. अशा लेखकांच्या तुम्ही तीन चार आवृत्या काढता 

आणि जयंतरावांसारख्या असामान्य लेखकांची पुस्तके मिळत नाहीत. त्यांची पुस्तके खपत नव्हती. मग जयंतराव गेल्यानंतर त्यांच्या साहित्याच्या दरवर्षी आवृत्या कां काढता?आणि त्यांची पुस्तके आता खपतात कशी?

माझा आरोप आहे जयंतरावांच्या पुस्तकांचे अधिकार स्वत:कडे ठेऊन तुम्ही जयंतरावांची फसगत केलीत. असं नाही वाटत? 

त्या दोन मुलींच्या एका पाठोपाठ एक प्रश्नांच्या फैरी झडत होत्या. मी केविलवाणा होऊन ऐकत होतो.

मी खजील होऊन व्यासपीठ सोडले आणि बाहेर येऊन माझ्या गाडीत बसलो. मी गाडी स्टार्ट केली, एव्हढ्यात माझ्या मनात आले ज्या चुका माझ्या हातून झाल्या त्याची कबूली देण्याची हीच वेळ आहे.

मी गाडी बंद केली आणि पुन्हा हॉल मध्ये आलो. हॉलमध्ये येऊन माझ्या खुर्चीवर बसलो. मी बाहेर पडताच हॉलमधील लोक खुर्च्या सोडत होते, त्या दोन मुली पण आपले कागद, लॅपटॉप आवरून निघायच्या बेतात होत्या.

मी स्टेजवर येऊन खुर्चीवर बसताच आयोजकाने माझ्या हातात माईक दिला आणि मी बोलू लागलो.

साहित्य जीवन या ग्रुपने माझ्या मित्राच्या स्मृतिदीनानिमीत्त येथे मला आमंत्रित केले त्या बद्दल आभार.

मंडळी, आयुष्यात काही चुका होतात. मी माझ्या मित्राशी जे वागलो त्याबद्दल माझ्या मनात खंत आहे. जे मनात आहे त्याची कबुली देण्याची या व्यासपीठा सारखे उत्तम व्यासपीठ कदाचीत मला मिळणार नाही.

माझी मुलाखत घेणार्‍या या दोन हुशार मुलींना जयंताच्या साहित्यावर डॉक्टरेट करावीशी वाटली. यातच त्याचे साहित्य काय उंचीचे आहे ते लक्षात येईल.

मंडळी, आता तुम्हाला माझ्याकडून जयंताच्या साहित्याकडे कानाडोळा का झाला किंवा मी जयंताचा द्वेष का केला हे सांगावे लागेल.

यासाठी सुमारे चाळीस वर्षापूर्वीचा काळ आणि त्यानंतर ची दहा वर्षे डोळ्यासमोर आणावी लागतील 

मी, जयंता आणि अनघा एका कॉलेज मध्ये होतो. तिघांनाही लेखन, नाटक, संगीत यांची आवड, जयंता उत्तम कविता करायचा तसेच उत्तम लिहायचा.

अनघा गायिका, उत्तम वाचक, नाटकामध्ये काम करणारी अभिनेत्री, दिग्दर्शिका. मला सर्वच कलांमध्ये उत्तम गती होती.

अनघा वरच्या आर्थिक परिस्थितीत, मी मधल्या आणि जयंता कनिष्ठ. आम्ही तीघे एकत्र संगीत मैफली ऐकायचो, नाटके पहायचो, प्रायोगिक नाटके करायचो.

मला अनघा आवडायची. ती कधी कधी आमच्या घरी यायची. आमच्या दुकानात यायची, माझ्या आई-बाबा बरोबर गप्पा मारायची. माझ्या घरच्यांना वाटत होते की बहुतेक माझं अनघा बरोबर लग्न होईल.

माझ्या व्यवसाया निमित्त मला दोन महीन्यासाठी लंडन ला जावं लागलं. जाण्याआधी जयंताला त्याची नाटके मी आल्यावर छापूया असे सांगून मी लंडन ला गेलो.

दोन महीन्यानंतर मी लंडनहून आलो. मधल्या काळात जयंताने अनघाशी लग्न केले होते आणि त्यांनी खेतवाडीत बिर्‍हाड केले होते. हा मला मोठा धक्का होता.

– क्रमशः भाग दुसरा 

© श्री प्रदीप केळुसकर

मोबा. ९४२२३८१२९९ / ९३०७५२११५२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈




मराठी साहित्य – आत्मसाक्षात्कार ☆ मी… तारा… – भाग – ५ ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? आत्मसाक्षात्कार ?

☆ मी… तारा… भाग – ५ ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

(आत्मसाक्षात्कार म्हणजे स्वत:शीच केलेलं हितगुज किंवा आपणच घेतलेली आपली मुलाखतच म्हणा ना!

डॉ. तारा भावाळकर या लोकसाहित्याच्या आणि लोकसंस्कृतीच्या अभ्यासक समीक्षक आणि संशोधक. या व्यतिरिक्त नाट्य, समाज, शिक्षण इ. अन्य क्षेत्रातही त्यांच्या लेखणीने करामत गाजवली आहे. त्यांनी आपला लेखन प्रवास, कार्यकर्तृत्व, आपले विचार, धारणा याबद्दल जो आत्मसंवाद साधला आहे… चला, वाचकहो… आपण त्याचे साक्षीदार होऊ या. वस्तूत: ही मुलाखत १३ एप्रील १९२१ पासून क्रमश: ई-अभिव्यक्तीवर ५ भागात प्रसारित झाली होती. आज डॉ. : तारा भावाळकर विशेषांकाच्या निमित्ताने ही मुलाखत आम्ही पुन्हा प्रकाशित करत आहोत.. उज्ज्वला केळकर )

(मागील भाग शेवट…

तारा – आत्तापर्यंत तुम्ही आपल्या लेखनाचा धावता आढावा घेतलात, आता मागे वळून बघताना तुम्हाला नेमकं काय वाटतं? एवढं लेखन झालं, त्याचं कौतुक झालं, पुरस्कार मिळाले, त्यामुळे तुम्हाला धन्यता वाटत असणारच! नाही का?

ताराबाईते धन्यता वगैरेसारखे शब्द ताराबाईंच्या व्यक्तिमत्वात बसत नाहीत   .…  इथून पुढे )

ताराबाईते धन्यता वगैरेसारखे शब्द ताराबाईंच्या व्यक्तिमत्वात बसत नाहीत. ताराबाईंचं जगणं हे आवडक चवडक जगणं आहे. जसा प्रवाह आला, तशा त्या चालत गेल्या. ज्यावेळी जे लिहावासं वाटलं ते लिहिलं. करावसं वाटलं ते केलं. कर्तव्य पार पाडली. माणसं जवळ आली, त्यांना स्वीकारलं. सोडून गेली, त्याची खंत केली नाही. काही संधी सुटून गेल्या. त्याचीही खंत केली नाही. आयुष्यात सगळं चांगलं झालं, असं आता ८० वर्षं ओलांडल्यावर ताराबाईंना वाटतं. स्वातंत्र्यपूर्व काळात जन्म. लहांपणापासूनच्या आठवणी अजूनही लख्खं आहेत. पहिला स्वातंत्र्यदिन आठवतोय. पुण्याला शनिवारवाड्यापुढे ऐकलेली म. गांधी, नेहरू यांची भाषणे आठवताहेत. आता यावस्थेला येईपर्यंत पाहिलेली अनेक परिवर्तने आठवताहेत. सामाजिक, राजकीय, आर्थिक, वैयक्तिक, परिवारात घडलेली परिवर्तने… हे सगळं पाहताना वाटतं, एका जन्मात अनेक जन्म झाले आहेत आपले.

तारा- एवढी सगळी परिवर्तने बघितल्यावर तुम्हाला असं नाही का वाटत की माणसाचं आयुष्य खूप बदललय. सगळी जण म्हणतात, जीवनात खूप बदल झालाय… बदल झालाय… खरंच झालाय का इतका बदल माणसाच्या आयुष्यात?

ताराबाई – ताराबाईंचं वाचन पुष्कळ आहे. मार्क्सपासून वेदांपर्यंत आणि लोकसाहित्यापासून धर्मशास्त्रापर्यंतची अनेक पुस्तके त्यांच्या कपाटात सुखाने नांदत आहेत आणि डोक्यातसुद्धा. त्यांच्या ५००० – ६००० पुस्तकांच्या संग्रहालयातलं एकही पुस्तक असं नाही, जे त्यांनी वाचलेलं नाही. हे सगळं वाचल्यानंतर खरंच विचार करावासा वाटतो, माणूस बदललाय का? मन अंतर्मुख होतं. काही कोटी वर्षापूर्वी आदिमानव जन्माला आला. आज माणूस अवकाशात जाऊन पोचलाय. पण त्या वेळी माणसात दिसणारी, हाव, हिंसा, युद्धप्रवृत्ती आजच्या माणसातही दिसते. पोशाख बदलला. रहाणी बदलली. बाह्य बदल झाले, पण आंतरिक बदल झालाय का? असं प्रश्न त्यांना पडतो.

लोकसंस्कृतीचा प्रवाह आदि ते अद्यतन वाहतो आहे. कधी तो सहज नैसर्गिकपणे वाहतो. कधी कुणी त्याला मुद्दाम वळण देतं. या अवलोकनात, ताराबाई म्हणतात, त्यांच्यापुढे कुणी फार मोठी व्यक्ती नसते. त्यांच्यापुढे असते, ती जात्यावर दळण दळणारी बाई. विशेषत: गेले वर्षभर आपण ज्या परिस्थितीत, मन:स्थितीत जगतो आहोत, जीवनाच्या ज्या अशाश्वतेत जगत आहोत, त्या परिस्थितीत… कुठली तरी महामारी आली आणि तिने सगळ्या मनुष्य जातीला हदरवून सोडलं. त्याची राजसत्ता, अर्थसत्ता, कुटुंब, शिक्षण… सगळं अशाश्वत असल्याची जाणीव करून दिली. सगळं अशाश्वत आहे, हे माझ्या लोकपरंपरेतील अनक्षर बाईला कळलेलं होतं. बाई हा समाजाच्या उतरंडीतला सगळ्यात खालचा, तळातला भाग समजला जातो. माझी बहिणाबाई म्हणते, ‘शेवटी काय? तर शेवटी श्वास संपला. ’ तो कधी ना कधी संपणारच आहे. मधल्या करोनाच्या काळात ही श्वासाची अशाश्वता, सगळ्यांनी जवळून अनुभवली आहे. म्हणून आता मी, माझ्याबद्दल बोलणं फार क्षुद्र वाटायला लागलय कारण मी कोण? संतांनी सांगितलं, तत्वज्ञांनी उत्तर शोधायचा प्रयत्न केला. माझ्या जात्यावर दळणार्‍या बाईनेही सांगितलं. रोकडेपणाने आणि फार सोपेपणाने सांगितलं. माणसाला, मी हे केलं… ते केलं… असं केलं… तसं केलं… असं सांगायची सवय आहे. हा मी… मी… मी… चा फुगा बहिणाबाई चौधरी दोन –चार शब्दात फोडून टाकते.

‘अरे मी कोण मी कोण?

आला मानसाले ताठा

म्हणे गळ्यातला श्वास

तू कोण? तू कोण?

गळ्यातला श्वास कुठल्याही क्षणी अडतो. विचारतो, ‘तू कोण आहेस?’

जन्मल्यापासून माणसाचा श्वास चालू होतो.

‘आला शास गेला शास याचं न्यारं रे तंतर अरे जगणं मरणं एका शासाचं अंतर’

एक श्वास नाही आला की संपलं. तुझ्या हातात काय आहे? माझ्या हातात काही नाही, हे सांगण्यासाठी, हे वर्ष आपल्यासमोर उभं आहे. हेच तत्वज्ञान संतांनी संगीतलय. तत्वज्ञान्यांनीही सांगितलय आणि जात्यावर दळण दळणार्‍या लोकसंस्कृतीतल्या बाईनेही सांगितलय. जात्यावर दळण दळणारी बाई आपल्या शेजारणीला म्हणते, इथे शेजीबाईच्या ऐवजी ताराबाई म्हणू, आपला तृतीय पुरुषी उल्लेख करत…

‘अग अग ताराबाई, नको म्हणूस माझं माझं

नदीच्या ग पलीकडे जागा साडे तीन गज. ’

तेवढंच तुझं. पण आता दुर्दैव असं की कोरोनाच्या काळात, आता तेवढी मिळाली, तरी बास झालं, असं म्हणावं लागणार आहे. आशा स्थितीत ताराबाईंना स्वत:बद्दल काय बोलायचं? आत्मसंवाद कसा साधायचा? असा प्रश्न पडलाय. कारण आता माणसाला स्वत:च्या ‘मी’पणातून बाहेर काढण्याची वेळ आलीय, असं ताराबाईंना वाटतं. या स्थितीत लोकपरंपरेतील ती अनक्षर स्त्री आपली गुरू ठरते आहे आणि तिला वंदन करून इथे थांबावं, असं त्यांना वाटतय.-

– समाप्त –

डॉ. ताराबाई भावाळकर

संपर्क – ३, ’ स्नेहदीप’, डॉ. आंबेडकर रास्ता, सांगली, ४१६४१६ मो. ९८८१०६३०९९

 प्रस्तुती – सौ उज्ज्वला केळकर 

संपर्क – निलगिरी, सी-५ , बिल्डिंग नं २९, ०-३  सेक्टर – ५, सी. बी. डी. –  नवी मुंबई , पिन – ४००६१४ महाराष्ट्र

मो. 836 925 2454, email-id – [email protected] 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ डॉक्टर फॉर बेगर्स ☆ “आमचा सांताक्लॉज…” ☆ डॉ अभिजीत सोनवणे ☆

डॉ अभिजीत सोनवणे

© doctorforbeggars 

??

-☆ डॉक्टर फॉर बेगर्स ☆ “आमचा सांताक्लॉज…” 🎅🏼☆ डॉ अभिजीत सोनवणे ☆

भिक्षेकरी याचक मंडळींनी भीक मागणे सोडून काम करावे यासाठी मी प्रयत्नरत असतो.

दिसेल त्या संधीतून यांच्यासाठी काय व्यवसाय निर्माण करता येईल याचा सतत विचार करत असतो.

कॅलेंडर दिसले, दे नवीन वर्षात विकायला…

झेंडूची फुले दिसली, दे दसऱ्याला विकायला..

पणत्या दिसल्या, दे दिवाळीत विकायला…

टाळ दिसले दे, वारीत विकायला…

चार वर्षांपूर्वी असाच कचरा दिसला होता… भिक्षेकरी मंडळींना तो कचरा साफ करायला लावून पगार दिला होता. या उपक्रमात काम करणाऱ्या लोकांची संख्या वाढत गेली… या टीमला आम्ही मग युनिफॉर्म दिले आणि शिस्तबद्ध पद्धतीने काम करायला शिकवलं.

….. या टीमचं नाव आहे “खराटा पलटण” ! 

गेल्या चार वर्षापासून; सातत्याने दर आठवड्याला सार्वजनिक जागांची स्वच्छता आमच्या या टीम कडून करवून घेत आहोत. बदल्यात त्यांना पगार किंवा पंधरा दिवस पुरेल इतका किराणा देत आहोत.

सांगायला अभिमान वाटतो की आमची ही खराटा पलटण पुण्याच्या “स्वच्छता अभियान” ची ब्रँड अँबेसिडर आहे.

एक भाकरी दिली तर एक वेळ पुरते….

धान्य दिले तर पंधरा-वीस दिवस पुरते…

पण स्वाभिमानाने भाकरी कमवायची अक्कल शिकवली तर ती आयुष्यभर पुरते… !

चिखलात कमळ उगवते असे म्हणतात…

रस्त्यात पडलेल्या कचऱ्यातून आमची भाकरी स्वाभिमानाने उगवत आहे… ! 

तर येत्या नाताळला सुद्धा खराटा पलटण कडून स्वच्छता करून घ्यावी, सहकाऱ्याला सांताक्लॉज बनवावे, सर्व काम झाल्यानंतर अचानक तो येऊन सर्वांना आश्चर्यचकित करेल… याशिवाय भेटवस्तू आणि पंधरा-वीस दिवस पुरेल इतके गहू तांदूळ आणि इतर किराणा देईल असा प्लॅन होता.

पण महिनाअखेर असल्यामुळे संस्थेतील पैशाला अगोदरच वाटा फुटल्या होत्या. जे पैसे शिल्लक होते ते 31 तारखेला इतर कारणांसाठी खर्च होणारच होते. किराणा घेण्यासाठी पैसे शिल्लक नव्हते.

जाऊ दे, बघू जानेवारी महिन्यात… असं म्हणून नाराजीने नाताळाचा प्लॅन मी कॅन्सल केला… ! 

नाताळचा दिवस सुरू झाला आणि पितृतुल्य श्री अशोक नडे सर यांचा मला दुपारी फोन आला.

“ अरे अभिजीत, आज आमच्या लग्नाचा पन्नासावा वाढदिवस ! या निमित्ताने माझ्या मुला – मुलीनी एक मोठा कार्यक्रम ठेवला आहे. आमची धान्यतुला करणार आहेत. आमच्या वजनाइतके धान्य तसेच वर आणखी काही भर घालून 250 किलो पर्यंतचे धान्य तुझ्या लोकांना द्यायचे आम्ही ठरवले आहे आज संध्याकाळी कार्यक्रमाला ये आणि जाताना सर्व धान्य घेऊन जा… “

मला शब्दच फुटेनात… हा योगायोग म्हणावा ? की आणखी काही ? 

…. एखादी गोष्ट ठरवावी… ती रद्द व्हावी आणि पुन्हा कोणीतरी येऊन… ठरल्याप्रमाणे सर्व सुरळीत करून द्यावं… ! 

प्रत्येक वेळी आपल्यापैकीच हे ‘कोणीतरी’ बनुन दरवेळी माझ्या आयुष्यात येतं…

दररोज तुम्ही माझ्या आयुष्यात सांताक्लॉज बनून येता… आणि माझा रोजचा दिवस नाताळ करून जाता… ! 

मी नतमस्तक आहे आपणा सर्वांसमोर !!! 

मातृ-पितृतुल्य नडे पती पत्नी ; यांना प्रत्यक्ष भेटून त्यांना शुभेच्छा दिल्या…

त्यांच्यासमोर सुद्धा नतमस्तक झालो… ! 

25 तारखेला नाताळच्या संध्याकाळी सर्व धान्य आणले 

26 डिसेंबरला इतर तयारी केली आणि आमच्या आयुष्यात 25 तारखेच्या ऐवजी 27 तारीख नाताळ म्हणून उजाडला !!! 

आमच्या वृद्ध आज्यांची खराटा पलटणची टीम बोलावली, सार्वजनिक भाग आम्ही सर्वांनी झाडून पुसून स्वच्छ केला.

गंमत करावी म्हणून मी त्यांना काम झाल्यावर तोंड पाडून म्हणालो, ‘आज तुम्हाला द्यायला माझ्याकडे काहीच नाही’ 

त्यातल्या आज्या मनाल्या, “ आसुंदे दरवेळी तू लय काय काय देतूस, एकांद्या बारीला नसलं म्हनुन काय झालं?“ 

“ तू तर एकटा कुटं कुटं आनि किती जणांचं बगशील लेकरा ? “ त्यांचे खरबरीत हात माझ्या चेहऱ्यावर आणि डोक्यावर फिरवत त्या काळजीने म्हणाल्या.

माझ्या डोळ्यातून अश्रू आले… ! 

याच वेळी तुम्हा सर्वांची आठवण झाली… आणि मी “एकटा” नाही याची जाणीव झाली.

… आईच्या पदराला खिसा नसतो परंतु तरीही लेकराला ती काहीतरी देतच असते….

… बापाच्या सदर्‍याला पदर नसतो परंतु दरवेळी तो लेकराला सावली देतच असतो… ! 

माझ्या आयुष्यात भेटलेले हे याचक लोक सुद्धा कधी माझी आई होतात, काहीतरी देत राहतात….

कधी बाप होतात आणि मलाच सावली देत राहतात…

कसे ऋण फेडावे यांचे… ???

डोळ्यातलं पाणी झटकत मी मग सहकाऱ्याला खूण केली… तो नाचत उड्या मारत हातात काही भेट वस्तू घेऊन आला. आमचे लोक आश्चर्यचकित झाले…

भानावर आल्यानंतर ते मूळ पदावर आले…. “ मुडद्या फशीवतुस व्हय आमाला “ असं म्हणत चप्पल घेऊन त्या माझ्या मागे धावल्या…. आणि सगळे हसायला लागले… ! 

यानंतर नडे साहेबांनी दिलेलं धान्य आमच्या सांताक्लॉजने त्यांना वाटून टाकलं… ! 

आमच्याकडे रोषणाई नव्हती… पण माझ्या म्हाताऱ्या माणसांचे डोळे आनंदाने चमकत होते….

आमच्याकडे ख्रिसमस ट्री नव्हता… पण स्वयंपूर्ण होण्याचं रोपटं आपण सर्वांनी मिळून लावलं होतं…

आमचा नाताळ आज खऱ्या अर्थाने साजरा झाला…. !

आज सांताक्लॉज त्यांना भेटला 

आणि मलाही भेटला…. तुम्हा सर्वांच्या रूपात…!!! 

नतमस्तक आहे…!!! 

© डॉ अभिजित सोनवणे

डाॕक्टर फाॕर बेगर्स, सोहम ट्रस्ट, पुणे

मो : 9822267357  ईमेल :  [email protected],

वेबसाइट :  www.sohamtrust.com  

Facebook : SOHAM TRUST

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “दृष्टिकोन बदला, विचार बदलेल – –” ☆ श्री जगदीश काबरे ☆

श्री जगदीश काबरे

☆ “दृष्टिकोन बदला, विचार बदलेल – –” ☆ श्री जगदीश काबरे

खूप खूप वर्षांपूर्वी वाचलेली गोष्ट. एका छोट्याशा गावात आकाशवाणी होते, “ज्यांना स्वर्गप्राप्ती हवी असेल त्यांनी संध्याकाळी गावाच्या वेशीवर जमावे. ” संध्याकाळी जवळजवळ सारा गाव वेशीवर जमा होते. काळोख पडण्याच्या सुमारास पुन्हा आकाशवाणी होते, “आता सर्वांनी आपापल्या डोळ्यांवर पट्ट्या बांधाव्यात आणि जंगलाच्या दिशेनं वाटचाल सुरू करावी. ” 

त्याप्रमाणे डोळ्यांवर पट्ट्या बांधून गावकरी चालू लागतात. पडत, ठेचकाळत, तोंडाने शिव्याशाप उच्चारत काही तास वाटचाल केल्यावर पुन्हा आकाशवाणी होते, “तुमच्यापैकी तिघांनी माझी आज्ञा पाळली नाही. त्यांनी डोळ्यांवर पट्टी का बांधली नाही ह्याची कारणे सांगावीत!”

“मी व्यवसायाने वैद्य आहे”, पहिला इसम बोलला, “ह्या जंगलात बर्‍याच औषधी वेलीवनस्पती आहेत. मी त्यांचे वर्णन आणि उपयोग लिहून ठेवत आहे. तो कागद इथेच सोडणार. पुढेमागे ह्या वाटेनं जाणाऱ्या कुणाला तरी तो सापडेल आणि समाजासाठी उपयोग करेल!”

“मी चालू लागल्यावर लगेचच ठेचकाळून पडलो. ” दुसरा इसम बोलला, “मनात विचार आला की, असे बरेचजण पडत असतील म्हणून मी पट्टी काढून टाकली आणि पडणार्‍यांना आधार देऊ लागलो!”

“मी पट्टी बांधलीच नाही, ” तिसरा इसम म्हणाला, “कुणीतरी सांगतो म्हणून तसं वागायचं माझ्या स्वभावात नाही. माझा मार्ग मी निवडतो. मग खड्ड्यात पडलो तर मी मलाच दोष देईन. मजल गाठली तर ते यश माझेच असेल!”

“तुम्हा तिघांनाही आपापला स्वर्ग सापडला आहे”, पुन्हा आकाशवाणी झाली, “तुम्ही इथून परत फिरलात किंवा असेच पुढे चालत राहिलात तरी चालेल. इतरांनी मात्र आपली वाटचाल चालू ठेवावी!”

थोडक्यात काय तर, प्रत्येक माणसाचा स्वर्ग हा पृथ्वीवरच आहे आणि ह्या पृथ्वीचा स्वर्ग करायचा की नरक हे त्या माणसाच्या हातातच आहे.

उदाहरणार्थ, नदीला देवी म्हणून पुजत असतानाच नदीचे गटार करण्याचा नीचपणा आपल्याला सोडावा लागेल. स्त्रीची देवी म्हणून आरती करताना स्त्री ही उपभोग्य वस्तू आहे, असे समजणे सोडून द्यावे लागेल. चातुर्वर्ण्य व्यवस्थेतून आलेलीच श्रेष्ठ-कनिष्ठतेची वृत्ती सोडून द्यावी लागेल. प्रत्येक माणसाशी माणसासारखा माणुसकीने व्यवहार करावा लागेल. स्वतःच्या जबाबदारीवर जगायला शिकावे लागेल. मगच दृष्टिकोन बदलला तर विचार बदलेल आणि विचार बदलले तर पृथ्वीचा स्वर्ग होईल.

© श्री जगदीश काबरे

मो ९९२०१९७६८०

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ “लोकनायक टंट्या भिल्ल..” ☆ सुश्री शोभा जोशी ☆

सुश्री शोभा जोशी 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ “लोकनायक टंट्या भिल्ल..☆ सुश्री शोभा जोशी ☆

‘राष्ट्रास्तव जे झिजले कण कण, तेच खरोखर यशस्वी जीवन ‘

असे यशस्वी जीवन जगलेले अनेक क्रांतीकारक आपल्या भारत देशात होऊन गेले हे आपण जाणतो. मातृभूमीला मुघल आणि ब्रिटिशांच्या सत्तेतून मुक्त करण्यासाठी प्राणाचे बलिदान देणारे अनेक शूर वीर आपल्या देशात होऊन गेले त्यात जनजातीतील लोकही अग्रेसर होते. असेच जनजातीतील एक क्रांतीकारक टंट्या भिल्ल.

टंट्या भिल्लांचा जन्म १८४२ साली मध्यप्रदेशातील बदादा गावात झाला. त्यांच्या वडिलांचे नाव भाऊसिंह होते. भिल्लांना स्वसंरक्षणासाठी लहानपणापासूनच भालाफेक आणि धनुष्यबाण चालवण्याचे शिक्षण मिळे. या युध्द कलांमध्ये टंट्या तरबेज होते.

सामान्य लोकांवर ब्रिटिश करत असलेले अत्याचार पाहून टंट्यांच्या मनामध्ये आगडोंब उसळे. त्यांनी गावा गावात जाऊन जनजाती युवकांची एक सेना तयार केली. ही सेना जनतेला लुटणार्‍या सावकारांच्या आणि जमीनदारांच्या विरूध्द लढत होती. टंट्या या लोकांची संपत्ती लुटत आणि गोर गरीबांमध्ये वाटून टाकत. कोणाच्याही संकट काळात ते त्यांच्या मदतीला धाऊन जात. लोकांच्या सुख दुःखात समरस झाल्यामुळे त्यांच्याविषयी लोकांच्या मनात त्यांच्याविषयी आदर निर्माण झाला आणि ते जनतेत मामा म्हणून संबोधले जाऊ लागले.

जमीनदार आणि सावकार हे इंग्रजांचे हस्तक असल्याने टंट्या मामांनी इंग्रजांविरूध्द संघर्षास सुरूवात केली. इंग्रजांनी त्यांना पकडून खांडवाच्या तुरूंगात डांबले. पण तुरूंगात बंदिवासात राहाणे त्यांना सहन होत नव्हते. त्यांनी तुरूंगाच्या भींतीवरून उडी मारून पलायन केले. ५ सप्टेंबर १८५७ ला त्यांची आणि तात्या टोपेंची भेट झाली. त्यांनी तात्या टोपेंकडून गनिमी काव्याने लढण्याचे शिक्षण घेतले आणि त्यांनी इंग्रजांशी गनिमी काव्याने लढण्यास सुरूवात केली. इंग्रजांनी त्यांना पकडण्यासाठी जग जंग पछाडले पण ते इंग्रजांच्या हाती लागेनात.

टंट्या मामांचा एक विशेष म्हणजे त्यांना उलटे चालण्याची कला अवगत होती. जेव्हा जेव्हा इंग्रज सेना त्यांना पकडण्यासाठी येई तेव्हा तेव्हा ते उलटे चालत जात. त्यांच्या पाऊल खुणांमुळे इंग्रजांची दिशाभूल होई. इंग्रज सैन्य बरोबर विरूध्द दिशेला त्यांचा शोध घेई आणि टंट्या मामा निसटून जात. निमाड, बेतुल, होशींगाबाद या भागात त्यांचा जबरदस्त दरारा होता.

११ वर्षं त्यांनी ब्रिटिश सत्तेशी झुंज देऊन त्यांच्या तोंडचे पाणी पळवले होते. ब्रिटिशांनी त्यांना पकडण्यासाठी १०, ५०० रू. रोख आणि पंचवीसशे एकर जमीनीचे बक्षिस जाहीर केले. ‘टंट्या पोलिस ‘नावाचे स्वतंत्र पोलिस दल निर्माण केले. गावा गावात पोलिस चौक्या वसवल्या, जमीनदार आणि सावकारांना मोफत शस्रे दिली. तरी हा वीर ११ वर्षं पोलिसांच्या हातावर तुरी देऊनडोंगर दर्‍यात तळपत होता.

शेवटी इंग्रजांनी षडयंत्र रचून त्यांना पकडले आणि इंदौरला आणले. तिथून त्यांना जबलपूर जेलमध्ये आणले गेले. शेवटी ४ डिसेंबर १८८९ ला त्यांना फाशी दिली. निर्घृणपणे त्यांचे शव पाताल पानी जवळ रेल्वे रूळांवर फेकून दिले. आजही तिथे त्यांचे स्मारक आहे.

आपली वीरता, अदम्य साहस आणि इंग्रजांविरूध्द बुलंद आवाज उठवणारे टंट्या भिल्ल जनजातींचे लोकनायक बनले. त्यांना जनजातींचे राॅबिनहूड म्हणूनही संबोधले जाते.

अशा या शूरवीर साहसी जननायकाच्या ४ डिसेंबर या बलिदान दिनी, जनजाती कल्याण आश्रमातर्फे त्यांना विनम्र श्रध्दांजली.

©  सुश्री शोभा जोशी

मो ९४२२३१९९६२ 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈