हिंदी साहित्य – संस्मरण ☆ दस्तावेज़ # 15 – – कारवां चलता रहा… – हंसा परिचय – 2 – मराठी लेखिका – सौ. उज्ज्वला केलकर ☆ हिन्दी भावानुवाद – श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ ☆

सौ. उज्ज्वला केलकर

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है सौ. उज्ज्वला केलकर जी का डॉ हंसा दीप जी के जीवन से जुड़े संस्मरणों पर आधारित एक आत्मीय दस्तावेज़ कारवां चलता रहा… – हंसा परिचय । यह दस्तावेज़ तीन भागों में दे रहे हैं।) 

डॉ. हंसा दीप

☆  दस्तावेज़ # 15 – कारवां चलता रहा… – हंसा परिचय – 2 – मराठी लेखिका – सौ. उज्ज्वला केलकर ☆ हिन्दी भावानुवाद – श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ ☆

पर्व दो 

हंसा के जीवन का दूसरा पर्व आरंभ होता है, उसके विवाह से । उसके शब्दों में, ‘वहां शुरू में चिंता का सागर था।’ लकड़ियों के चूल्हे पर धुएं की जलन से आंखें मलते हुए भोजन पकाना। वह कहती है, ‘पहले दिन मैंने खाना पकाया, वह भोजन यानी फ्लॉप-फिल्म थी।’ उसे खाना पकाने की बिल्कुल आदत न थी। पढ़ाई, स्पर्धा, अन्य कार्यक्रम, दुकान का हिसाब-किताब। इनसे निबटते उसके पास खाना पकाने के लिए समय कहां था? पर ससुराल में आने के उपरांत उसके छोटे देवर, चंचल ने उसे घर के कामों में खूब सहायता की । साथ ही विवाह में  ‘जीवन में सदा साथ निभाने की कसम’ खानेवाले और उसका पालन करने वाले धर्मपाल जी उसे किसी मसीहा तरह लगे। सभी ने उसे प्यार किया। उस कारण नयी चीजें सीखना आसान हो गया और वह कठिन समय बहुत आसानी से कट गया, ऐसा उसे लगता है।

श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’

धर्मपाल जी भी मेघनगर के ही। बचपन से लेकर कॉलेज की शिक्षा तक वे हंसा को देख रहे थे। पहचानते थे। वह उन्हें प्रिय लगती थी। वे भी उसे प्रिय थे। पर प्रत्यक्ष कहने की हिम्मत उन दिनों और उस पिछड़े देहात में कहां से होती? उसने अपनी निगाहों से ही अपनी पसंद को वाणी दी। धर्म जी ने उसके घर आकर अपनी बात रखी। उन दिनों उन्होंने अनेक विरह गीत लिखे और हसा को समर्पित किए ।

विवाह पूर्व दोनों परिवार परस्पर परिचित थे। उस कारण 1977 में उनका विवाह सहजता से सम्पन्न हो गया। उसके उपरांत हंसा छह माह संयुक्त परिवार में रही और एक दिन … धर्मपाल जी का तबादला उज्जैन हो गया।

उज्जैनी समान महानगर में अपनी नयी-नवेली गृहस्थी बसाने पर उसे लगा जैसे स्वर्गीय सुख प्राप्त हो गया। वह कहती है, ‘आगे चलकर इस धरती से इतना आत्मीय संबंध स्थापित हो गया कि आज भी मुंह से ‘मेरी उज्जैनी’ ही निकलता है। उसके बाद बैंक ऑफ इंडिया ने धर्म जी के साथ मध्यप्रदेश के अनेक शहरों की और गांवों की उससे  पहचान करा दी।

ऑफिस जाते समय धर्म जी उसे अपना आधा-अधूरा लेखन व्यवस्थित करके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को प्रेषित करने को कह जाते। उसीसे उसे अपने लेखन की प्रेरणा मिली। एक बार उसने एक कहानी लिखी और आकाशवाणी इंदौर को भेज दी। ‘पहले स्वीकृति-पत्र, फिर रेकॉर्डिंग की तारीख, उसके बाद मानदेय … बड़ा रोमांचक अनुभव था’ -वह कहती है।उसके बाद आकाशवाणी से बार-बार बुलावा आने लगा। उसने आकाशवाणी इंदौर और भोपाल के लिए नाटक भी लिखे। उसके लगभग 30 नाटक आकाशवाणी से प्रसारित हुए।इसी दौरान नई दुनिया, दैनिक भास्कर, स्वदेश, नवभारत , हिन्दी हेराल्ड, सारिका, मनोरमा, योजना, शाश्वतधर्म, अमिता समान अनेक सुप्रसिद्ध और प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उसकी कहानियां प्रकाशित होने लगीं ।

हंसा कहती है, ‘समय के साथ तालमेल बिठाते हुए जीवन में आया हर बदलाव नया कुछ सीखने के लिए ही होता है ऐसा मैं महसूस करती हूं। धर्मा जी की नियुक्ति जीरापुर, खुजनेर, राजगढ़, ब्यावरा समान देहातों में हुई तब उससे लाभ ही हुआ। वह समूचा प्रदेश ‘सौंधवाड’ नाम से जाना जाता है। उसके पीएच-डी के गाइड डॉ बसंतीलाल बम ने उसे सौंधवाडी लोकसाहित्य पर काम करने के लिए कहा। एक मालवी भाषा-भाषी का सौंधवाडी बोलीपर काम करना उसे बड़ा रोमांचक लगा। इसी दौरान उसे कन्यारत्न की प्राप्ति हुई। शैला। एक ओर पुत्री की देखभाल और दूसरी ओर सौंधवाड़ी लोकगीत और लोककथा-संग्रह। दोनों काम साथ-साथ होने लगे। लोकगीत और लोककथा जुटाने वह पास-पड़ोस के गांवों में जाया करती। सात साल के अथक प्रयासों  के बाद उसे ‘सौंधवाड़ की लोकधरोहर’ इस विषय पर पीएच-डी मिल गयी। लोकगीत और लोककथा प्राप्त करते, उनकी खातिर गांवों में भ्रमण करते उसे अनेक कथानक मिले। मन की माटी में, वे तिजोरी में संग्रहीत खजाने की भांति रखे रहे। उसके बाद समय-समय पर वे अंकुरित हुए। डॉ बम उसके काम से बहुत प्रसन्न हुए।

पीएच-डी प्राप्त होने के पहले ही महाविद्यालय में हिंदी के सहायक प्राध्यापक के रूप में उसकी नियुक्ति हो गयी। उस समय उसे दो छोटी कन्याएं थीं। उन्हें तैयार करके स्कूल पहुंचाने के बाद वह कॉलेज जाती।  अपने मारवाड़ी परिवार में नौकरी करने वाली वह पहली ही बहू! सिरपर आंचल लेकर वह कॉलेज जाती। उस कारण ससुरालवालों को शिकायत का कभी मौका नहीं मिला। उसके लिए परम्पराएं अपनी जगह और काम अपनी जगह था। पहले-पहल कुछ छात्र ‘बहन जी’ कहकर उसे चिड़ाते। आगे चलकर सभी को उसकी आदत हो गयी।

आगे चलकर विदिशा, राजगढ (ब्यावरा) और धार महाविद्यालयों में अध्यापन का अनुभव प्राप्त हुआ। इस दौरान अनेक ख्यातनाम कवि, कहानीकार,विद्वानों के साथ काम करने का अवसर मिला। चर्चाएं होती रहीं । ‘उस कारण अनुभव- सम्पन्न होती रही’, ऐसा उनका कहना है।

अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों को दक्षतापूर्वक निभाते, अध्यापन का आनंद लेते, सहयोगियों से वैचारिक आदान-प्रदान करते हंसा का जीवन आनंद में व्यतीत हो रहा था कि धर्मा जी का तबादला न्यूयार्क हो गया। सब कुछ सुचारु के चलते वह सब छोड़कर, विदेश में सिरे से जीवन आरंभ करना था । फिर नयी बिसात बिछानी थी …।

क्रमशः… 

डॉ हंसा दीप

संपर्क –  22 Farrell Avenue, North York, Toronto, ON – M2R1C8 – Canada

दूरभाष – 001 + 647 213 1817  ईमेल  – [email protected]

मूल लेखिका – सौ. उज्ज्वला केळकर

संपर्क – निलगिरी, सी-५ , बिल्डिंग नं २९, ०-३  सेक्टर – ५, सी. बी. डी. –  नवी मुंबई , पिन – ४००६१४ महाराष्ट्र

मो.  836 925 2454, email-id – [email protected] 

भावानुवाद  – श्री भगवान वैद्य ‘ प्रखर ‘

संपर्क – 30 गुरुछाया कालोनी, साईनगर, अमरावती 444607

मो. 9422856767, 8971063051

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 220 – ग्रहों का कुंभ : ९ दोहे ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – ग्रहों का कुंभ : ९ दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 220 ☆

ग्रहों का कुंभ : ९ दोहे ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नीलाभित नभ में लगा, कुंभ ग्रहों का मीत।

रूप राशि शशि को पुलक शुक्र निहारे रीत।।

दिनकर हँस स्वागत करे, उषा रश्मि शुभ स्नान।

सिंहासन आसीन गुरु, पा श्रद्धा-सम्मान।।

राई-नौन लिए शनि, नजर उतारे मौन।

बुध सतर्क हो खोजता, राहु-केतु हैं कौन?

मंगल थानेदार ने, दिया अमंगल रोक।

जन-गण जमघट सितारे, पूज रहे आलोक।।

हर्षल को शिकवा यही, कर न सका व्यापार।

नैपच्यून ने मान ली, कर विरोध निज हार।।

धरती धरती धैर्य दे, हर ग्रह को आशीष।

रक्षा करिए शारदा, चित्रगुप्त जग ईश।।

आप अपर्णा पधारीं, शिव गणपति के संग।

कार्तिकेय सौंदर्य लख, मोहित हुए अनंग।।

रमा रमा में मन रहा, हरि का वृंदा भूल।

लीन राधिका साधिका, निरख कान्ह-ब्रज धूल।।

नेह नर्मदा नहाए, गंगा थामे हाथ।।

सिंधु ब्रह्मपुत्रा जमुन, कावेरी के साथ।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४.१.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 588 ⇒ मोनालिसा ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मोनालिसा।)

?अभी अभी # 588 ⇒ मोनालिसा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मोनालिसा, इतालवी चित्रकार लियोनार्दो दा विंची की पेंटिंग है. यह पेंटिंग 16वीं शताब्दी में बनाई गई थी. यह दुनिया की सबसे चर्चित पेंटिंगों में से एक है. यह पेंटिंग फ़्लोरेंस के एक व्यापारी फ़्रांसेस्को देल जियोकॉन्डो की पत्नी लीज़ा घेरार्दिनी को देखकर बनाई गई थी. यह पेंटिंग फ़िलहाल पेरिस के लूवर म्यूज़ियम में रखी हुई है। इसकी रहस्यमयी मुस्कान ही इस पेंटिंग की जान है।

आज आपको घर घर में यह नाम मिल जाएगा। कहीं एक बहन का नाम अगर मोना है, तो दूसरी का लिसा। हमारे चलचित्र के खलनायक आदरणीय अजीत जी का तो आदर्श वाक्य ही मोना डार्लिंग था। ।

उधर प्रयाग राज के महाकुंभ में भी एक माला बाला प्रकट हुई है, जो अपनी मोनालिसाई मुस्कान के कारण चर्चित हुई जा रही है। सोचिए, करोड़ों साधु, संन्यासी और श्रद्धालुओं का सैलाब, और सबके हाथ में कैमरा। इतने पत्रकार, देसी विदेशी टीवी रिपोर्टर, इनकी आंखों से बच पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।

काहे का कुंभ और काहे का अमृतपान, जिसे देखो वही इस मोनालिसा की तस्वीर अपने कैमरे में कैद कर रहा है, और आम और खास को परोस रहा है।

जो महाकुंभ में नहीं जा पाए, वे इसी माला वाली बाला की झील सी आंखों में डुबकी लगाना चाहता है। ।

इतना ही नहीं, महाकुंभ की इस मोनालिसा पर कविता, ग़ज़ल, कथा कहानी और व्यंग्य तक का सृजन हो चुका है। सिर्फ एक तस्वीर वायरल होती है और इंसान आम आदमी से सेलिब्रिटी बन जाता है।

मैं भी पशोपेश में हूँ, आज लोग किस मोनालिसा को देखना चाहते हैं, विंची की मोनालिसा तो हमारे लिए कब की पुरानी हो चुकी, आज तो घर घर जिसका चर्चा है, वह तो बेचारी एक साधारण सी महाकुंभ में माला बेचने वाली लड़की है। भविष्य के गर्त में क्या है, कोई नहीं जानता, लेकिन पारखी लोग महाकुंभ में से भी अनमोल रत्न निकाल ही लाते हैं। ।

यह मंथन हम बाद में करेंगे, इस महाकुंभ के स्नान से कितने श्रद्धालुओं को अमृत की बूंद प्राप्त हुई, फिलहाल आज का दिन तो, आज की मोनालिसा का ही है …!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (27 जनवरी से 2 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (27 जनवरी से 2 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम।  मैं पंडित अनिल पांडे आज आपको 27 जनवरी से 2 फरवरी 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताने जा रहा हूं। मेरा दावा है कि इस साप्ताहिक राशिफल को अगर आप लग्न राशि देखेंगे तो राशिफल पूर्णतया सही मिलेगा। अगर आप इसको चंद्र राशि देखेंगे तो भी अधिकांश बातें सही होगी। अगर आपको यह राशिफल 80% से ऊपर सही नहीं मिलता है तो आप अपनी जन्म तारीख, समय और स्थान मेरे मोबाइल नंबर 8959594400 पर भेज दें। मैं आपको आपकी लग्न राशि बता दूंगा।

वर्तमान में प्रयागराज में मां गंगा और मां यमुना के संगम पर महाकुंभ का मेला चल रहा है। मोनी अमावस्या का स्नान इस सप्ताह होगा। इसके अलावा गुप्त नवरात्रि भी 30 जनवरी से प्रारंभ हो रही है जो की 6 फरवरी तक रहेगी। इस सप्ताह चंद्रमा को छोड़कर अन्य कोई ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में गोचर नहीं कर रहे हैं। इस सप्ताह सूर्य धनु राशि में, वक्री मंगल कर्क राशि में, बुध वृश्चिक राशि में, वक्री गुरु वृष राशि में, शुक्र और शनि कुंभ राशि में तथा राहु मीन राशि में रहेंगे। आई अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। वक्री गुरु और शनि देव के अच्छे प्रभाव के कारण आपके पास धन आने की उम्मीद की जा सकती है। कार्यालय में आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। कचहरी के कार्यों में उच्च का शुक्र आपके द्वारा उचित एवं प्रभावी प्रयास करने पर सफलता दिलाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 28, 29 और 30 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 2 फरवरी को आपको कोई भी कार्य सतर्क होकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

लाभ के भाव में उच्च का शुक्र बैठा हुआ है अतः आपको इस सप्ताह धन लाभ होगा। कार्यालय में आपको सम्मान प्राप्त होगा। आपको चाहिए कि आप भाग्य के स्थान पर परिश्रम पर ज्यादा विश्वास करें। वक्री गुरु के कारण आपको स्वास्थ्य लाभ हो सकता है। जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी संभव है। इस सप्ताह आपके लिए 31 जनवरी और 1 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल हैं। 27 और 28 जनवरी को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प डालकर सूर्य मत्रों के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य दें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

वक्री मंगल इस सप्ताह आपको स्वास्थ्य लाभ दिलाएगा। कचहरी के कार्यों में सावधानी बरतें। आपको अपने कार्यालय में प्रसन्नता प्राप्त होगी। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ देगा। आपको दुर्घटनाओं से सतर्क रहना चाहिए। आपके जीवन साथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 के दोपहर तक का समय तथा 2 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 28 के दोपहर के बाद से लेकर 29 और 30 जनवरी को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीब लोगों के बीच में गुड का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। भाग्य के कारण आपके सफलताओं में वृद्धि होगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। कचहरी के कार्यों में सफलता हो सकती है। कचहरी के कार्य आपको बहुत सावधानीपूर्वक करने होंगे। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 28 के दोपहर के बाद से 29 और 30 तारीख को लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करना है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। उनको कई सफलताएं मिल सकती हैं। भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना पड़ेगा। आपको मानसिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 31 जनवरी और 1 फरवरी किसी भी काम को करने के लिए लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह अविवाहित जातकों के विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में अगर आप कर्मचारी या अधिकारी हैं तो आपके सम्मान में वृद्धि होगी। आपको अपने संतान से सहयोग मिलने में कमी आएगी। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। माता-पिता जी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 की दोपहर तक तथा 2 फरवरी को कोई भी कार्य करना लाभदायक रहेगा। 31 जनवरी और 1 फरवरी को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का और आपके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में थोड़ी कमी हो सकती है। भाग्य से आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके शत्रु शांत रहेंगे तथा आपके प्रयास करने पर समाप्त भी हो जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 28 की दोपहर के बाद से 29 और 30 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ है। 2 फरवरी को आपको सावधानीपूर्वक सचेत होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके माता जी और जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी के गरदन या कमर में दर्द होने की शिकायत हो सकती है। आपका स्वास्थ्य भी पेट में खराबी के कारण थोड़ा खराब हो सकता है। दुर्घटनाओं से आप बाल बाल बचेंगे। इस सप्ताह आपको अपने संतान से उत्तम सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ आपके संबंध कम ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 31 जनवरी और 1 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह अगर आप थोड़ा भी प्रयास करेंगे तो आपके प्रतिष्ठा और पराक्रम में वृद्धि होगी। थोड़ा बहुत धन आने का योग है। माता जी और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको रक्त संबंधी कोई विकार हो सकता है। अगर आपके पेट में कोई तकलीफ है तो वह समाप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 जनवरी तथा 2 फरवरी कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन भी आपके अधिकांश कार्य सफल हो सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर पर जाकर गरीबों के बीच में चावल का दान करें। अगर संभव हो तो शुक्रवार को मंदिर के पुजारी को सफेद वस्त्रो का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी, माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाग्य आपका साथ देगा। लंबी यात्रा का योग बन सकता है। भाई बहनों के साथ अच्छे संबंध रहेंगे। संतान आपके साथ सहयोग करेगी। अगर आप थोड़ा प्रयास करेंगे तो अपने शत्रुओं को आप समाप्त कर सकते हैं। धन आने का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 तारीख शुभ है। 27 और 28 तारीख को आपको सचेत होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी के पेट में पीड़ा हो सकती है। जीवनसाथी और माता जी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। धन आने की उत्तम संभावना है। कचहरी के कार्यों में सावधानी बरतें। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि संभव है। इस सप्ताह आपके लिए 31 जनवरी और 1 फरवरी कार्यों को करने के लिए उपयुक्त हैं। 28, 29 और 30 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

अगर आप विवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। कचहरी के कार्यों में सावधानी रखकर अगर आप कार्य करेंगे तो आप सफल हो सकते हैं। धन आने की संभावना है। जनता में आपको प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी को रक्त संबंधी कोई समस्या हो सकती है। भाग्य आपका सामान्य रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 जनवरी तथा 2 फरवरी कार्यों को करने के लिए उपयुक्त हैं। 31 जनवरी और 1 फरवरी को आपको सावधानी पूर्वक कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ सुश्री राधिका भांडारकर – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? सुश्री राधिका भांडारकर – अभिनंदन ?

💐 संपादकीय निवेदन 💐

आपल्या समूहातील ज्येष्ठ लेखिका सुश्री राधिका भांडारकर यांना, साहित्यातील भरीव आणि प्रचंड कार्याबद्दल ‘सर्वद फाउंडेशन‘ यांच्यातर्फे राज्य पातळीवर देण्यात येणारा “कवी कुसुमाग्रज साहित्य पुरस्कार“ नुकताच प्रदान करण्यात आला आहे.

या पुरस्काराबद्दल सुश्री राधिकाताई यांचे आपल्या सर्वांतर्फे अतिशय मनःपूर्वक अभिनंदन, आणि त्यांच्या यापुढील अशाच यशस्वी साहित्यिक वाटचालीसाठी असंख्य हार्दिक शुभेच्छा.💐

संपादक मंडळ, ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ लोकशाहीचे स्तंभ… ☆ सौ. ज्योती कुळकर्णी ☆

सौ. ज्योती कुळकर्णी 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ लोकशाहीचे स्तंभ☆ सौ. ज्योती कुळकर्णी ☆

(वनहारिणी – ८/८/८/८)

लोकशाहिला आधाराला

आहेत म्हणे चार स्तंभ हे

गोंधळ माजू नये म्हणोनी

असतात विधीकार स्तंभ हे

*

पळवाटांचा शोध लावती

त्यांना मोठा वचक बसावा

म्हणून येथे पोलीस रूपे

असती कार्यभार स्तंभ हे

*

ढासळू नये संसद अपुली

तोल उचलुनी सांभाळावा

यासाठी तर सुसज्ज असती

न्यायपालिका द्वार स्तंभ हे

*

पाय लंगडे तीन पाहता

चौथा आला आधाराला

सांभाळाया माध्यम म्हणजे

लेखणीचे प्रहार स्तंभ हे

*

कसले फसती पाय सदा हे

सत्तेला या सावरताना

बरेच पक्के हवे जनांचे

ऐक्याचे आधार स्तंभ हे

*

ताज घालण्या जनसत्तेला

सोनार कुशल तशीच जनता

निर्माणाला कारण बनले

सुवर्ण मंदिरकार स्तंभ हे

© सौ. ज्योती कुळकर्णी

अकोला

मोबा. नं. ९८२२१०९६२४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सां ग ता ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

⭐ सां ग ता ! ⭐ श्री प्रमो वामन वर्तक ⭐ 

मन झाले मोरपीस

वाऱ्यासवे हले-डुले,

रांगोळी इंद्रधनुची

अंगा अंगात फुले !

*

 काय घडले कसे घडले

 माझे मला न कळले,

 धून ऐकून हरीची

 नसेल ना तें चळले ?

*

मनी झाली घालमेल

चुके पावलांचा ताल,

आर्त स्वर बासरीचा

करी हृदयी घाव खोल !

*

 झाले कावरी बावरी

 शोधले परस दारी,

 परि दिसे ना कुठेच

 मज नंदाचा मुरारी !

*

जादू अशी मुरलीची

वाट दावे मज वनीची,

दिसता मूर्ती हरीची

झाली सांगता विरहाची !

झाली सांगता विरहाची !

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) – 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “नवीन वर्षाचा कागद…” ☆ श्री कौस्तुभ परांजपे ☆

श्री कौस्तुभ परांजपे

? विविधा ?

☆ “नवीन वर्षाचा कागद…” ☆ श्री कौस्तुभ परांजपे

खरंतर त्या कागदाबद्दल इतकं बोलण्यासारखं काहिच नव्हतं. पण एखादी गोष्ट उकरुन काढणे म्हणजे काय? याचा अनुभव परत एकदा आला. प्रत्येक काही दिवसांनी एक तिथी परत परत येते, तितक्याच सहजतेने हा उकरुन काढण्याचा अनुभव काही कालावधीनंतर परत येतोच. कधी तो येतो, तर काही वेळा आणण्यात आपणही मागे नसतो….. असो.

 लिहिलेल्या काही जुन्या कागदांना खूपच महत्त्व प्राप्त होतं. अर्थातच ते कोणी लिहिले, त्यात काय आहे, आणि कोणाच्या हाती लागले आहे यावर सुध्दा ते अवलंबून असतं. पण यांचं तसं नव्हतं…….

 माझ्या हस्ताक्षरातले असेच काही कागद घरातल्या अशा माणसाच्या हाती लागला, की त्याला महत्त्व येण्याऐवजी त्याचा विनोद झाला. आणि मग वाद……

 तुमच्या या कागदांना रद्दीत सुध्दा जागा नाही. असं म्हणत ते वाचले जात होते. अगदी तारीख आणि वर्ष यासकट.

 कागदावरच्या बऱ्याच गोष्टी सारख्याच असल्या तरी तारखेनुसार त्याच्यातलं अंतर एक वर्ष इतका मोठ्ठा काळ दाखवत होतं. म्हणजे वाढदिवस साजरा केला असता तर त्यातले काही कागद एकविस वर्षांचे सुद्धा झाले असते.

 यातही मी वर्षभरानंतर बऱ्याच गोष्टी तशाच लिहू शकतो, याच कौतुक न करता तेच तेच लिहिण्यात काय अर्थ? जे आपण करतच नाही……… असा उपहास होता. आणि अक्षराबद्दल तर एक अक्षर तोंडातून निघालं नाही. खरंतर माझ्या अक्षरावरून मी साक्षर आहे हे तिला मान्यच नाही.

 हा अक्षर, साक्षर, मधला क्ष, आणि गणितातला क्ष तेव्हापासूनच अक्षरशः माझ्या बाबतीत यक्षप्रश्न आहे.

 म्हणजे क्ष किरण यंत्राने काही गोष्टी समजतील. पण माझं लिहिलेलं समजणार नाही.

 आता एक वर्ष अंतर असणाऱ्या कागदावर काय वेगळं लिहिलेलं असणार….. नवीन वर्षात नियमितपणे करायच्या, आणि निग्रह करून सोडायच्या गोष्टी त्यात होत्या.

 यातल्या करायच्या गोष्टींचा निग्रह होत नव्हता, तर काही गोष्टी सोडल्याचा ग्रह मी करुन घेतला होता.

 ज्या गोष्टी करायच्या नाहीत ती व्यसनं आणि सवयी अर्थात वाईट सवयी आहेत असं इतरांच म्हणणं. आता हे इतर एकच असतील तरी त्यांचं म्हणणं हेच बहुमतासारखं असतं असं नाही, तर तेच बहुमत असतं यात शंका नाही……

 करायच्या काही गोष्टींमध्ये ज्या करायच्या होत्या त्याच्या विरुद्ध साहजिकच सोडायच्या होत्या. जसं सकाळी लवकर उठायचं म्हणजेच उशिरापर्यंत झोपणं सोडायचं होतं. ज्याला लोळत पडणं हा शब्द माझ्यासाठी घरात वापरला जातो.

 हळू आणि शक्यतो गोड आवाजात बोलायचं. म्हणजेच मोठ्याने बोलायचे तर नाहीच, पण बोलण्यातला ताठपणा सुद्धा सोडायचा हे ओघाने आलंच होतं. हे वाचतांना समोरचा आवाज उगाचच हुकूमशहा सारखा वाटला.

 नियमितपणे सूर्य नमस्कार घालणे. असंही त्यात होतं. नमस्कार करणे आणि घालणे यात फरक असतो. हे सुद्धा मला समजवून देण्यात आलं. आणि एक नमस्कार सुध्दा झाला. अगदी कोपरापासून. आता हा नमस्कार केला, की घातला हे मी ठरवेन…. पण नमस्कार करतेवेळी तेव्हाच तीच रुप मला सकाळच्या सूर्यासारखं तेजस्वी वाटलं……. आणि माझा चेहरा अस्ताला जाणाऱ्या सूर्यासारखा शांत वाटला……

 अन्न हे पूर्ण ब्रह्म…… उदर भरण नोहे……. याचा दाखला देत. जेवायला काय आहे? हे विचारायचं नाही. म्हणजेच जे मिळेल ते खायचं. आपल्या घरातलं चांगलच असतं. असं मीच लिहिलं होतं. पण…..

 हे वाचतांना त्यांचा रोख जिभेच्या पुरवलेल्या लाडामुळे माझ्या वाढलेल्या पोटाकडे होता.

 विकएंडला एकट्याने जायचं नाही. म्हणजेच जोडीने आणि गोडीने जायचं. हे फक्त लिहिलेलंच होत…… अंमलबजावणी व्हायची होती……

 म्हणजे वरच्या काही गोष्टी मी ठरवणार होतो, पण यातल्या बऱ्याचशा गोष्टी मी करायलाच पाहिजेत हे माझी परवानगी न घेता ठरवण्यात आलं होतं. आणि तेच त्या कागदांवर माझ्याकडून लिहिलं (गेलं) होत. अशा छोट्या छोट्या पण मोठ्या वाटणाऱ्या बऱ्याच गोष्टी होत्या.

 नंतर नंतर तर कागदावर लिहिलेल्या गोष्टी वाचण्याचा वेग इतका वाढला, की काही गुंतवणुकीच्या जाहिरातीत शेवटी फक्त नियम आणि अटी लागू हेच समजतं, बाकी सगळं कानावरून जात, तसंच सगळं कानावरून गेलं. फक्त शेवटचा सोडलेला उसासा तेवढा समजला.

 असो…… आता तसाही त्या कागदांचा उपयोग नसला तरी यातल्या बऱ्याचशा गोष्टी मी तशाच, पण चांगल्या अक्षरात परत लिहून काढेन. पण पुढच्या वर्षीच्या सुरुवातीला………

 तो पर्यंत संदर्भ म्हणून गरज वाटली तर हे कागद आहेतच……….

©  श्री कौस्तुभ परांजपे

मो 9579032601

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ हार्मोनल फेन्सिंग… (अनुवादित कथा) हिन्दी लेखक : श्री प्रबोध कुमार गोविल ☆ भावानुवाद – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? जीवनरंग ?

☆ हार्मोनल फेन्सिंग… (अनुवादित कथा)  हिन्दी लेखक : श्री प्रबोध कुमार गोविल ☆  भावानुवाद – सौ. उज्ज्वला केळकर

डॉ. रसबाला कोड्यात पडल्या होत्या. त्यांच्या एकवीस वर्षाच्या करियरमध्ये अशी एकही केस आली नव्हती. ना भारतात, ना जमैकामध्ये. त्यांच्या पतीचा पोस्टिंग जमैकामध्ये झाल्यानंतर त्याही तिथे राहिल्या होता आणि जवळ जवळ सात वर्षे त्यांनी तिथे प्रॅक्टीस केली होती. कुठल्याही पेशंटशी बोलताना आत्तापर्यंत त्यांनी पावणे चार तासांपेक्षा कधीही जास्त वेळ घेतला नव्हता. आणि आता या देखण्या युवकाबरोबर चार तास बोलल्यानंतर त्या गोंधळात पडल्या होत्या, की याला पेशंट म्हणावं की न म्हणावं.. नो ही इज नॉट ए पेशंट. ही कांट बी. या पेशंटबरोबर चाललेल्या चार तास चौकशीच्या दरम्यान, त्यांनी नऊ वेळा तरी डॉ. सनालीला फोन केला होता. डॉ. सनाली त्यांची बॅचमेट होती आणि प्रत्यक्षात तीनेच ही केस रिफर केली होती. सनालीने मानसोपचारतज्ज्ञ डॉ. रसबालाकडे या युवकाला पाठवण्यापूर्वी चार-पाच वेळा स्वत:च या युवकाची तपासणी केली होती.

युवकाला असं वाटू नये, की डॉक्टरांचं एखादं रॅकेट पैसे उकळण्यासाठी त्याच्या भावनांशी खेळतय, या भीतीने सनालीने त्याच्याकडून फक्त एकाच वेळचे पैसे घेतले होते. नंतर तिच्या मनात असंही आलं की एकदा घेतलेली फीदेखील परत द्यावी. पण यामुळेदेखील त्याच्या मनात संदेह निर्माण झाला असता, म्हणून तिने सगळ्या गोष्टी रसबालाला सांगून त्याला तिचाकडे पाठवले.

त्या युवकाचा नाव सौरभ होतं. डॉ. सनालीकडे येण्यापूर्वी जवळ जवळ दोन महीने तो जिममध्ये जात होता. ही जीम सनालीच्या नर्सिंग होमच्या परिसरात होती आणि तिचे पतीच ती चालवत होते.

सौरभने जेव्हा ती जीम जॉइन केली, तेव्हा पहिले दोन आठवडे सगळं ठीक ठाक चाललं. या वयाच्या इतर मुलांप्रमाणेच सौरभनेदेखील तिथे ठेवलेल्या उपकरणांची माहिती घेतली आणि प्रॅक्टीस सुरू केली. पण हळू हळू जीमचे संचालक, जे कोचही होते, त्यांनी नोट केलं, की सौरभ इतर मुलांप्रमाणे एक्सरसाईज करत नाहीये. त्याचे लक्ष केवळ आपली छाती फुगवण्याच्या एक्सरसाईजवर केन्द्रित झालेलं आहे.

सौरभ एका कंपनीत नोकरी करत होता. विवाहित होता. आपल्या ऑफीसनंतर बाईकवरून जिमला येत होता. वय होतं जवळ जवळ चोवीस. कोचाला वाटलं, याला बहुतेक सैन्यात किंवा पोलीसमध्ये नोकरी करायची असावी. म्हणून चेस्ट इम्प्रुमेंव्हेंटसाठी प्रयत्न करतोय. कोचने एकदा त्याला सांगितलं, ‘पळण्यासाठी मजबूत पिंढर्‍या आणि स्नायुंची मजबुती आवश्यक आहे. इकडेही लक्ष दे, नाहीतर असंतुलीत ग्रोथ होईल.

सौरभने यावर काहीच प्रतिक्रिया व्यक्त केली नाही. तो आपल्या आभ्यासाला लागला. एक दिवस मसाज करणारा मुलगा संचालकांना म्हणाला की हा सौरभ लेडीज क्रीमने मसाज करण्यावर जोर देतोय. तेव्हा त्यांचं डोकं ठणकलं. त्यांना नंतर असंही कळलं, की महिलांसाठीची ही महाग क्रीम सौरभ स्वत:च विकत आणून देतो. संचालकांनी एकदा सौरभला आपली डॉक्टर पत्नी सनालीला भेटायला सांगितलं. तिने सौरभची इच्छा जाणून त्याला हार्मोन ट्रीटमेंट द्यायला सुरुवात केली. तिने सौरभला सांगितले, की कधी कधी मुलांच्या शरिरात हार्मोन्सच्या असुंतलनामुळे मुलींसारखा लुक आणि इच्छा दिसू लागतात. त्यामुळे त्याला औषधे आणि इंजक्शन्स घेऊन आपले शरीर पुष्ट करायला हवे. पण तिला जेव्हा कळले, की सौरभ स्वत:च आपली छाती महिलांप्रमाणे वाढवू इच्छितो, तेव्हा ती थक्क झाली.

तिने सौरभला वक्ष वाढवणारी औषधे आणि इंजक्शन्स दिले, मात्र तिच्या मनाला ही गोष्ट पटली नाही. अखेर ती डॉक्टर होती. तिला वाटलं आपल्या पेशाची जबाबदारी यापेक्षा किती तरी मोठी आहे. एका रोग्याला एका रोगातून बाहेर काढून दुसर्‍या रोगाकडे जाणून बुजून ढकलण्याचा आपल्याला काहीही हक्क नाही. त्यांनी सौरभला समजावलं की त्याने आपल्या व्यक्तिमत्वाशी असे खेळ करू नयेत. तो चांगल्या उंचीचा – बांध्याचा, चांगल्या परिवारातला स्वस्थ युवक आहे. तो का आपली छाती बायकांप्रमाणे वाढवू इच्छितो? मुलं जेव्हा छाती वाढवतात, तेव्हा सार्‍या शरीराची मजबुती आणि स्वास्थ्य इकडे लक्ष देतात कारण त्यांना सेना, पोलीस यासारख्या सुरक्षेसंबंधीच्या सेवाकार्यात जायचे असते. छत्तीस इंच छाती पुरुषोचित पद्धतीने वाढलेलीच चांगली दिसते. त्याबरोबर पुरं शरीर तंदुरुस्त वाटू लागतं.

डॉक्टर सनाली म्हणाली, ‘आपल्याला माहीत आहे शरीरातील हार्मोनल गडबडीमुळे ज्या युवकांची छाती आशा पद्धतीने वाढते, त्यांना किती शरम वाटते. घट्ट कपडे घालून ते ती लपवण्याचा प्रयत्न करतात. ’

सौरभ काहीच बोलला नाही, पण त्याने असाही संकेतही दिला नाही की डोक्टरांचं बोलणं त्याला समजलय आणि तो त्याच्याशी सहमत आहे. डॉक्टरांनी ही गोष्ट निसर्गाचा प्रकोप आहे, असं मानलं. तिला आठवलं मागे एकदा एक पोलीस अधिकारी बघता बघता स्त्रीची वेशभूषा धारण करून तिच्याप्रमाणे वागू लागला होता. शरिराची ही विचित्र माया कुणाला कळणार? त्यांनी सौरभला अनुभवी मनोचिकित्सक डॉ. रसबालाकडे पाठवलं. एका युवकाला जाणून बुजून आजारी मानसिकतेच्या रस्त्याने जाऊ दिलं, या अपराधबोधाचं ओझं ती वागवू इच्छित नव्हती.

डॉ. रसबालाला हे ऐकून आश्चर्य वाटलं, की तो आई – वडलांच्या बरोबर रहातोय आणि त्याला एक दीड वर्षाची मुलगी आहे. त्याच्या पत्नीबद्दल विचारताच तो एकाएकी गप्प बसला. त्याचे डोळे भिजलेल्या हिर्‍याप्रमाणे चमकून सजल होऊ लागले.

‘इज शी नो मोअर…. ’ डॉटरांनी विचारले.

…………..

‘हं… बोला ‘

‘गेल्या वर्षी एका दुर्घटनेत ती गेली. माझे आई-वडील माझा दूसरा विवाह करू इच्छितात. पण मी माझ्या मुलीचं पालन पोषण करू इच्छितो. ’ सौरभ म्हणाला.

‘मग आई-वडीलांचं ऐका. ते बरोबर बोलताहेत. ’

‘पण मी माझ्या मुलीला काहीच नकली किंवा दुय्यम दर्जाचं दिलेलं नाही. जर मी तिला योग्य आई देऊ शकलो नाही, तर माझी दिवंगत पत्नी मला मुळीच माफ करणार नाही. ’

डॉ. रसबाला म्हणाली, पण यासाठी आणखीही मार्ग आहेत. तुम्ही विवाह करू नका. मुलीचं पालन पोषण करा. तिला शिकवा, पण तुम्ही आपली पर्सनॅलिटी का बादलू इच्छिता?… इट्स स्ट्रेंज… ’

‘आपल्याला माहीत नाही डॉक्टर, रात्री माझी मुलगी माझ्याजवळ झोपते. झोपेत प्रेमाने ती आपला हात माझ्या छातीवर ठेवते. त्यावेळी मला स्वर्गसुखाचा आनंद मिळतो. पण…. ’

‘पण काय?’ डॉ. रसबालाने विचारलं.

‘पण कधी कधी ती झोपेत अतिशय घाबरते. माझ्या छातीवर हात ठेवताच कधी कधी तिला याची जाणीव होते की तिची आई तिच्याबरोबर नाही. ती घाबरते आणि झोपेत ती माझ्यापासून दूर जाते. मी तिच्या भावी जीवनासाठी तिच्या मनात एक हार्मोनल फेंसिंग बनवू देऊ इच्छितो. एक कुंपण, जिच्या आत ती स्वत:ला सुरक्षित समजेल……

डॉ. रसबाला आपल्या सीटवरून उठली आणि तिने सौरभला हृदयाशी धरले आणि दुसरीकडे तोंड फिरवून रुमालाने आपले डोळे टिपले.

सौरभ जेव्हा केबीनचं दार उघडून वेगाने बाहेर पडला, तेव्हा बाहेर बसलेला सहाय्यक हे पाहून आश्चर्याने थक्क झाला, की चार तास डॉक्टरांकडून इलाज करून घेऊन, पैसे न देताच हा माणूस निघून जातोय आणि डॉक्टरांनी निळा दिवा लावला नाही, जो डॉक्टर नेहमी फी घेण्यासाठी संकेताच्या स्वरुपात लावतात.

मूळ हिन्दी कथा – ’हार्मोनल फेंसिंग‘

मूळ लेखक – श्री प्रबोध कुमार गोविल

मो. 9414028938

प्रस्तुती : सौ. उज्ज्वला केळकर 

संपर्क – निलगिरी, सी-५ , बिल्डिंग नं २९, ०-३  सेक्टर – ५, सी. बी. डी. –  नवी मुंबई , पिन – ४००६१४ महाराष्ट्र

मो. 836 925 2454, email-id – [email protected] 

≈संपादक –  श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ फाटकी नोट… ☆ श्री मंगेश मधुकर ☆

श्री मंगेश मधुकर

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☆ फाटकी नोट… ☆ श्री मंगेश मधुकर

कडक उन्हाळ्याचे दिवस, ऑफिसच्या कामासाठी भर उन्हात बाहेर पडावं लागलं. गाडी चालवायचा कंटाळा आला म्हणून रिक्षा केली. तासाभरात काम आटपून परत ऑफिसला निघालो दहा मिनिटं झाली तरी रिक्षा मिळेना. चार-पाच जणांनी ‘नाही’ म्हटलं. ऑनलाइन बुकिंग पण होत नव्हतं. चिडचिड वाढली. काही वेळाने एक रिक्षा थांबली. लाल रंगाचा शर्ट,जीन्स,मानेपर्यंत वाढलेले केस अशा हँकी-फिंकी तरुण ड्रायव्हरला पाहून खात्री झाली की नकार येणार पण तो चक्क तयार झाला. त्याचा विचार बदलायच्या आधी लगबगीनं रिक्षात बसलो.

“थॅंक्यु दादा,बराच वेळ थांबलो होतो. कोणी यायला तयार नव्हतं. ”

“रिक्षासाठी पॅसेंजर म्हणजे देव. त्याला नाही म्हणायचं नसतं” रिक्षावाल्याकडून अनपेक्षित उत्तर.

“तुमच्यासारखा विचार केला तर प्रॉब्लेमच नाही पण इथं प्रत्येकाला लांबचं भाडं पाहिजे. मोबाईल नाहीतर गप्पा मारत टाईमपास करतील पण कामं करणार नाही. ”

“काहीजण तर रिकामी गाडी चालवतात पण जवळचं भाडं घेत नाहीत. अशांमुळेच पब्लिक रिक्षावाल्यांना सरसकट शिव्या घालतं. ”रिक्षावाला मार्मिक बोलत होता. चांगलाच समजूतदार निघाला. गप्पांच्या नादात कधी उतरायचं ठिकाण आलं कळलचं नाही.

“एकशे तीन झालेत. ऑनलाइन पेमेंट करतो. ”मी

“साहेब,आजची भवानी तुमच्याकडूनच. कॅश असेल तर द्या. ”

“ओके” मी पाकीटात पाहिलं तर शंभरच्या तीन नोटा होत्या. एक नोट काढली पण त्याक्षणी मनात आलं की आपल्याकडची फाटकी नोट खपवावी म्हणून मधोमध फाटेलली पण चिकटपट्टी लावलेली नोट पुढे केली. रिक्षावाल्यानं आधी हँडलला मग कपाळाला लावून नमस्कार करून नोट खिशात ठेवली. त्यावेळी मी तीन रुपयांसाठी खिसे चाचपडत होतो.

“साहेब,राहू द्या ” 

“नाही असं कसं,कष्टाचे पैसे आहेत”

“पुन्हा भेटलो की द्या ” छान हसत त्यानं रिक्षा सुरू केली आणि काही क्षणातच दिसेनासा झाला.

मी एकटक पाहत राहिलो. पेहरावाच्या अगदी विरुद्ध टोकाचं रिक्षावाल्याचं आदबीचं बोलणं आणि वागणं यामुळे भारावलो. त्याच्याविषयी प्रचंड आदर वाटायला लागला आणि एकदम आपण केलेली घोडचूक लक्षात आली. अरे बापरे !! स्वार्थाच्या नादात काय करून बसलो. रिक्षावाला माझ्याशी चांगला वागला आणि मी काय केलं तर फाटकी नोट देऊन त्याला फसवलं. स्वतःची लाज वाटायला लागली. प्रचंड राग आला. अस्वस्थ झालो. काय करावं सुचेना दुसरी नोट देऊन चूक सुधारावी असं डोक्यात आल्यानं तिरमिरीत गाडी घेऊन निघालो.

काळ्या हुडची रिक्षा,नंबर माहिती नाही आणि लक्षात राहिलेला ड्रायव्हर, एवढ्या भांडवलावर शोधाशोध सुरू केली. चार-पाच चौक फिरलो. रस्त्यावरची प्रत्येक रिक्षा निरखून पाहत होतो. रिक्षा स्टँड,दुकानं,पान टपरीवर चौकशी केली पण उपयोग झाला नाही. खूप निराश झालो. अपराध भाव वाढला. फाटकी नोट बघितल्यावर तो भला माणूस आपल्याविषयी काय विचार करत असेल या जाणिवेनं बेचैनी वाढली. जवळच्या दोन-चार किलोमीटर परिसरातील जागांवर चकरा मारून अर्धा-पाऊण तासानं ऑफिसमध्ये आलो. चेहरा बघून सहकाऱ्यांनी “काय झालं” म्हणून विचारलं.

“काही विशेष नाही. नंतर सांगतो म्हणत बोलणं टाळलं आणि कम्प्युटर सुरू केला पण चित्त थाऱ्यावर नसल्यानं कामात लक्ष नव्हतं. वारंवार चुका व्हायला लागल्या.

“काय साहेब,तुमच्यासारख्या जंटलमनकडून ही अपेक्षा नव्हती” फाटकी नोट हातात घेऊन बोलणारा रिक्षावाला सारखा डोळ्यासमोर यायला लागला.

तब्येत ठीक नाही कारण देऊन ‘हाफ डे’ सुट्टी घेऊन घरी आलो. मला अवेळी आलेलं पाहून बायकोला आश्चर्य वाटलं पण तिनं लगेच काही विचारलं नाही. थोड्यावेळानं बायकोला घडलेला सगळा प्रकार सांगितल्यावर काहीच प्रतिक्रिया न देता ती एकटक माझ्याकडे पाहत राहिली.

“काय झालं असं का पाहतेस”

“साध्या साध्या गोष्टींचा किती त्रास करून घेतोयेस”

“तुला वाटती तितकी साधी गोष्ट नाहीये. एका चांगल्या माणसाला फसवलं”

“इट्स ओके,ठिक आहे. तुला चूक कळली. सुधारायचा प्रयत्न देखील केलास यातच सगळं आलं”

“अगं पण”

“असं होतं. ठरवून नाही परंतु एखाद्या क्षणी मोहाला भुलून जाणीवपूर्वक चुकीचं वागतो नंतर त्याचा खूप पश्चाताप होतो मग स्वतःलाच दोष देतो अशावेळी फक्त मनस्तापा शिवाय काही हाती लागत नाही. प्रत्येकाला हा अनुभव येतो ”.

“पण माहिती असूनही मी मुद्दाम वागलो याचाच जास्त त्रास होतोय. ”

“बास आता !! जे झालं ते झालं त्यावर उगीच जास्त विचार करू नकोस. आपल्याला मिळालेली फाटकी नोट दुसऱ्याच्या गळ्यात मारण्याचा प्रयत्न सगळेच करतात. म्हणून म्हणते तू फार मोठा गंभीर गुन्हा केलायेस असं काही नाही आणि शंभर रुपयांसाठी इतका त्रास करून घेतलाय तो पुरेसा आहे. ”

“रिक्षावाल्याचं नुकसान झालं ना”

“मग भरून देऊ. भरपाई म्हणून डबल पैसे देऊ. ”

“हा बरोबर. असंच करू”

“चल. त्याला पैशे देऊ आणि सॉरी सुद्धा म्हणू. ” बायको उपहासानं म्हणाली.

“पण तो भेटणार कसा? हाच तर मोठा प्रॉब्लेम आहे ना ” मी विचारलं.

“अरे सोन्या !!,एवढं कळतयं ना मग कशाला जीव जाळतोस. एक काम कर, त्याची मनापासून माफी माग म्हणजे बरं वाटेल आणि आता हा विषय सोडून दे. होतं असं कधी कधी….. ”

बायकोनं समजावल्यानं अपराधभाव बऱ्याच कमी झाला तरी सल कायम होती. बरोब्बर शंभर दिवस झालेत अजूनही तो रिक्षावाला भेटलेला नाही. कधी भेटेल ते माहिती नाही. मी मात्र अजूनही आशा सोडलेली नाही. या दरम्यान अजून एक फाटकी नोट पाकिटात आली. ती मात्र घरातच ठेवलीय…..

उगीच पुन्हा…..

© श्री मंगेश मधुकर

मो. 98228 50034

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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