हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 6 ☆ कविता – छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

डॉ सत्येंद्र सिंह

(वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  – “छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे..“।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 6 ☆

✍ कविता – छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

बंदिशें आएंगी, रुकावटें आएंगी,

पर तुम न रुकना, राह बन जाएंगी।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

आगे चलते रहना, मुड़ कर न देखना,

असफला न देखना सफलता देखना।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

हारना सोचना मत, कोशिश छोड़ना मत,

 उडोगे तो गिरोगे, पर उड़ना छोडना मत।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

लोग गिराएंगे डराएंगे, तुम कुछ न देखना,

बस उड़ने की सोचना, आगे ही देखना।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

साथ कोई दे न दे,  जमींन तेरे साथ है,

ज़मीर पक्का हो, आसमान साफ है।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

तू लक्ष्य तय कर, उसे पाने का संकल्प कर,

और कुछ मत कर, लक्ष्य को प्राप्त कर।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

हिम्मत तेरा हथियार है, जजवा तेरा उद्गार है,

सपना देखना ऊंचाई का, होगा साका है।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

© डॉ सत्येंद्र सिंह

सम्पर्क : सप्तगिरी सोसायटी, जांभुलवाडी रोड, आंबेगांव खुर्द, पुणे 411046

मोबाइल : 99229 93647

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 584 ⇒ शौकीन ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शौकीन।)

?अभी अभी # 584 ⇒ शौकीन ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ लोग मीठे के शौकीन होते हैं, कुछ नमकीन के ! सन् १९८१ में बसु चटर्जी की एक फिल्म आई थी शौकीन, जिसमें उत्पल दत्त, अशोक कुमार, रति अग्निहोत्री और मिथुन चक्रवर्ती जैसे मंजे हुए कलाकार थे। ऋषिकेश मुखर्जी और बसु चटर्जी अक्सर पारिवारिक हल्की फुल्की, मनोरंजक स्वस्थ फिल्में बनाते हैं। मैं यह फिल्म नहीं देख पाया। मैं तब सठियाया नहीं था, फिर भी सठियाए लोगों की उल्टी सीधी हरकतें मुझे न तब पसंद थी, न आज हैं।

पसंद अपनी अपनी, खयाल अपना अपना की तरह ही लोगों के अपने अपने शौक होते हैं। अच्छी आदत को शौक समझा जाता है और बुरी आदत को लत। आदत और तबीयत में बड़ा महीन फर्क होता है। जो शौकीन तबीयत के लोग होते हैं उनमें से कुछ केवल पान का शौक रखते हैं तो कुछ के अन्य शौकों में पान भी शामिल होता है। वैसे पान का शौक संगीत रसिकों और भोजन प्रिय लोगों को भी होता है। पान खाएं सैंया हमार। ।

कहते हैं, समय बड़ा कीमती होता है। फिर भी हर व्यक्ति अपने कीमती समय में से कुछ समय अपने शौक के लिए निकाल ही लेता है। इसे अंग्रेजी में hobby हॉबी कहते हैं। सेलिब्रिटीज और विशिष्ट व्यक्तियों से यह सवाल अवश्य पूछा जाता है, आप फुर्सत के वक्त में क्या करते हैं। जब से लोगों के हाथ में मोबाइल आया है, फुर्सत के कीमती पल, पलक झपकते ही निकल जाते हैं।

शौक का संबंध रुचि से होता है। सुरुचि से सृजन होता है। शौक जब passion बन जाता है तब कलाकार मुखर हो उठता है। कलम और कूची रंग लाती है। पेशे और शौक में बड़ा अंतर होता है। पेशा अगर पैसा देखता है तो शौक सिर्फ जुनून और मस्ती देखता है। ।

कुछ लोगों को खतरों से खेलने का शौक होता है। यह खतरा अगर रोमांच अथवा एडवेंचर तक सीमित है, तो ठीक, लेकिन अगर यह जीवन को एक विपरीत अथवा नकारात्मक दिशा की ओर ले जा रहा है, तो यह एक खतरे का संकेत है। ऐसे शौक से तौबा, ऐसे खतरे से बचना और किसी को बचाना ही बेहतर।

जीवन में अरुचि ना हो। रुचि टेस्ट को कहते हैं। आप इसे जीवन मूल्य भी कह सकते हैं। सुरुचि, रस, मिठास, कोमलता एवं सहजता कुछ ऐसे गुण हैं, जो शौक से आजमाए जा सकते हैं। अच्छा खाएं, अच्छा पहनें, अच्छा बोलें। अपने शौक़ को एक दिशा दें, हो सकता है, वह आपकी दशा बदल दे।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 56 – मानवता… ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मानवता।)

☆ लघुकथा # 56 – मानवता श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’        

“भैया अम्मा की तबियत ठीक नहीं है आप भाभी और बच्चों को लेकर आ जाइए।”

शांति ने अपने बड़े भाई को फोन किया।

बड़े भाई  अरुण की  आंखें भर आयीं थी और वह अपनी छोटी बहन से कह रहा था कि 4 साल से मां बिस्तर में हैं और तू अपना घर परिवार देखते हुए कैसे सेवा कर रही है?

अपनी माँ को अकेले में छोड़कर तुम्हारी भाभी से डर कर के घर में शांति बनी रहे अपने बच्चों को देख रहा था लेकिन तूने हर कर्तव्य का निर्वाह किया।

सुबह शाम मां को खाना बनाकर अपने हाथ से उनको खाना खिलाना। उनके बिस्तर को ठीक करना, गन्दे कपड़े धोना आदि  सभी काम वह स्वयं ही करती है इतनी हिम्मत कहां से आई जीजाजी और बच्चों को भी तो तू ही संभालती है।

शांति ने मुस्कुरा कर कहा भैया “अरे कुछ नहीं , आप तो बेकार ही परेशान हो जाते हैं,  आप ही आ जाते तो कम से कम अम्मा आपको ही देख लेतीं उनकी तबियत बहुत खराब है।”

बड़ी दीदी भी आई है मां दरवाजे की तरफ अपनी उदास नजरों से देखती है कुछ कह नहीं पाती। आप हम दोनों बहनों के बीच में अकेले भाई हो। आप ही का इंतजार कर रही है अब जल्दी से आ जाओ भैया।

इतने में अंदर से कुछ आवाज आती है और शांति – भैया अब मैं फोन रख रही हूं।

हाथ का पानी का गिलास छूटकर नीचे जा गिरा।

उसकी मां अब इस दुनिया से जा चुकी थी बड़ी बहन कमला ने आवाज दी। वह भी हड़बड़ा कर मां के कमरे में पहुंची।

क्या हुआ कहते हुए जब उसने मां को छुआ तो वह भी सन्न रह गई।

वे तो अनन्त यात्रा पर निकल चुकी थीं।

सभी को फोन कर के बुलाया गया। कुछ ने थोड़ा सच में तो कुछ ने नाटक में आंसू भी गिराये, दुख  प्रकट किया।

बड़े बेटे के साथ भाभी भी आई।

भाभी का ध्यान अम्मा के बक्से  पर ही टिका हुआ था।

अन्तिम संस्कार के बाद शाम को बड़ी बहन कमला से बोली  जीजी  सन्दूक मैं मां के गहने सब छोटी ने ही रख लिए क्या? हमें उन में कुछ नहीं मिलेगा?

बीच में सन्दूक रख कर छोटी बहन ने चाबी भाभी को दे दी।

भाभी भाई और बड़ी बहन कमला के बीच उनकी अम्मा से अधिक उनके जेवरों और पैसों पर चर्चा हो रही थी। 

भाई ने कहा – दोनों भी अम्मा की एक एक चीज यादगार के रूप में रख लो।

भैया आज ही सुनार बुला रहे हो जो भी लोग  सुनेंगे वे क्या कहेंगे?

अरे कोई कुछ भी क्यों कहेगा ? किसी के घर डाका डालने जा रहे हैं क्या ? बड़े भाई भाभी एक ही जबान में बोल पड़े।

अब  जेवर कौन रखता है? सोनार को बुलाकर इसे बेच देते हैं और रकम ले लेते हैं।

कोई प्रॉपर्टी खरीद लेंगे।

फिर बहस का विस्तार हुआ।

यही अधिकार तब दिखाते जब अम्मा बीमार थीं। तब तो उनकी सेवा में हिस्सेदारी करने कोई भी नहीं आया।

रहने दो दीदी बेकार की बात बढ़ाने में क्या फायदा?  भाई ने बहन को शान्त करते हुए

कहा।

सुनार बहुत देर तक गहनों को देखता रहा।

सुनार  की आंखों  से दो बूंद आंसू लुढ़क आए…। कमला मां की कमरे में जाकर उनकी तस्वीर देखने लगी। मां सारे संस्कार तूने हम बहनों को ही दिए भाई को क्या कुछ भी नहीं सिखाया?

भाई के अंदर की सारी मानवता मर गई है क्या…?

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ अट्टहास के प्रधान संपादक श्री अनूप श्रीवास्तव जी नहीं रहे – विनम्र श्रद्धांजलि ☆ प्रस्तुति – श्री रमाकांत ताम्रकार ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

💐 अट्टहास के प्रधान संपादक श्री अनूप श्रीवास्तव जी नहीं रहे – विनम्र श्रद्धांजलि 💐

अभी हम स्मृति शेष जय प्रकाश पांडे जी के अवसान से उबर भी नहीं पाए और एक और दुःखद समाचार मिला. य़ह व्यंग्य के क्षेत्र की अपूरणीय क्षति है.

अभी नवंबर 24 में कादम्बरी सम्मान समारोह में अनूप जी जबलपुर आए थे तब 3 दिन स्मृति शेष व्यंग्यकार श्री जय प्रकाश पांडे जी तथा मैं उनके साथ रहे और अट्टहास पत्रिका हम लोगों को सौंप कर वे निश्चिंत होना चाह रहे थे। इस बाबत उन्होंने हम लोगों से गहन चर्चा भी की थी. इसके साथ ही व्यंग्य की स्थिति और उसके उन्नयन पर बहुत ही सार्थक चर्चा की. 10 नवम्बर 24 को एक भव्य आयोजन में उन्होंने जबलपुर के व्यंग्यकारों को अट्टहास और माध्यम परिवार की ओर से व्यंग्य गौरव अलंकार से सम्मानित किया था. आप अपनी अगली पीढ़ी को व्यंग्य की बारीकियां समझाते और उन्हें अपनी पत्रिका में स्थान भी देते थे.

व्यंग्य के प्रकाश पुंज को ईश्वर अपने श्री चरणों में स्थान दें.

प्रस्तुति – श्री रमाकांत ताम्रकार, जबलपुर

💐 ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से स्मृतिशेष अनूप श्रीवास्तव जी को विनम्र श्रद्धांजलि  💐

– श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 257 ☆ ओझी… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 257 ?

☆ ओझी… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

 सारी ओझी जड झाली

नाती कशी निभवावी

कुणी कुणाला टाळावे

कुठे जत्रा भरवावी ?

*

 संग अंसगाशी नको

असे सांगती नावाला

जिथे जायचे नसते

येतो तरी त्या गावाला

*

जगण्याच्या असोशीला

काय समजावे आता

माथी ओझी जड झाली

यश का येईना हाता

*

 सांजवेळ आयुष्याची

रम्य असो भगवंता

डोई वरची ही ओझी

कशी उतरावी आता ?

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार

पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रस्ता… ☆ मेहबूब जमादार ☆

मेहबूब जमादार 

? कवितेचा उत्सव ?

रस्ता ☆ 🖋 मेहबूब जमादार ☆

सायंकाळी काम संपताच घरी येतो मी

आपल्या गावच्या मातीत हर्षभरीत होतो मी

*

माहित आहे उन्हात पायाला बसती चटके

तरी मला कळत नाही का बरे तेथे जातो मी

*

बऱ्याच वेळा असहकार भांडतो मी दुसऱ्याशी

 काही वेळा माझ्या सावलीला का बरे भीतो मी

*

तसा जगतो मी जीवनात अगदीच धाडसाने

तरी ही ऐनवेळी निर्णयात का बरे चुकतो मी

*

मला जायचे ठरवतो आणि तसाच निघतो मी

हे सारे कळत असता का बरे रस्ता चुकतो मी

*

जगताना ब-याच गोष्टींनी त्रासावून जातो मी

सारे समजूनही तडजोड का बरे करतो मी

© मेहबूब जमादार

मु. कासमवाडी,पोस्ट -पेठ, ता. वाळवा, जि. सांगली

मो .9970900243

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ शब्द, शब्द आणि शब्द… ☆ श्री सुहास सोहोनी ☆

श्री सुहास सोहोनी

🌺 विविधा 🌺

☆ शब्द शब्द आणि शब्द… 🤔 ☆ श्री सुहास सोहोनी ☆

थारेपालट की थालेपारट ??

परोक्ष की अपरोक्ष ??

व्यस्त की व्यग्र ??

चपल की अचपल ??

व्यासपीठ की मंच ??

असे अनेक शब्द आहेत ना, जे चुकीच्या जागी – चुकीच्या अर्थाने सर्रासपणे वापरले जातात ! एक म्हणजे अर्थ नीट माहीत नसतो किंवा चुकीचा शब्द वापरायची रूढी किंवा परंपरा असते.

वरीलपैकी पहिलाच शब्द बघा ना. थारेचा मूळ शब्द थारा म्हणजे जागा किंवा आश्रय. पालट म्हणजे बदलणे. जसे कायापालट, खांदेपालट. म्हणून थारेपालट हा योग्य शब्द. म्हणजे जागा बदलणे. पण थालेपारट हा शब्द सुद्धा अनेक ठिकाणी चुकीने वापरला जातो.

 

परोक्ष आणि अपरोक्ष मध्ये तर घोळ ठरलेलाच. परोक्ष म्हणजे नजरेआड आणि अपरोक्ष म्हणजे नजरेसमोर. पण सर्रासपणे हे शब्द उलट अर्थी वापरले जातात.

 

“मी कामात व्यस्त होतो. ” असं म्हणणं खरं तर चुकीचं आहे. “मी कामांत व्यग्र होतो. ” हे बरोबर. अस्त-व्यस्त म्हणजे सुलट व उलट. त्याचे रूप बदलून नित्य वापराचा शब्द झाला अस्ताव्यस्त. म्हणजे पसरलेलं, बेशिस्त, पसारा. सम आणि व्यस्त हे विरोधाभासी शब्द तर आपण नेहमीच वापरतो. त्यामुळे “मी कामात व्यग्र आहे” हे बरोबर. तथापि व्यस्त या शब्दाला सुद्धा अलीकडे कामात गुंतलेला असणे, कामात बुडालेला असणे, हे अर्थ प्राप्त झाले आहेत आणि त्याला लोकमान्यता मिळाली आहे.

 

आपण चपल-अचपल हे शब्द चुकीच्या रुढीमुळे चुकीच्या पद्धतीने वापरले जातात. “अचपल मन माझे नावरे आवरिता” चपल या अर्थाने अचपल हा शब्द श्री रामदास स्वामींनी देखील वापरला आहे.

 

महाविद्वान, बुद्धिवंत अशा व्यासमुनींनी ज्या आसनावर किंवा पीठावर बसून महाभारत सांगितले, त्या आसनाला व्यासपीठ असं म्हणतात. हे आसन किंवा पीठ पवित्र समजले जाते. आध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञानप्रबोधनाची प्रवचने ज्या आसनावरून दिली जातात ते व्यासपीठ.

एक किंवा अनेक वक्ते ज्या स्थानावरून राजकीय, सामाजिक, आर्थिक विषयांवर आधारलेली भाषणे देतात, त्या स्थानाला मंच असे म्हणतात.

ज्या स्थानावरून मनोरंजनात्मक कार्यक्रमांचे – नाटके, गायन, नृत्य, तमाशा वगैरे सादरीकरण केले जाते, त्या स्थानाला रंगमंच असे म्हणतात. म्हणजेच व्यासपीठ, मंच व रंगमंच असे तीन प्रकार या स्थानांचे आहेत.

🌺

अशा स्वरूपाचे, चुकीच्या अर्थाने वापरले जाणारे, इतर अनेक शब्द सुद्धा प्रचलित आहेत.

☘️

©  श्री सुहास सोहोनी

रत्नागिरी

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ आणि… कविता जिवंत राहिली…भाग – २ ☆ श्री नितीन सुभाष चंदनशिवे ☆

श्री नितीन सुभाष चंदनशिवे

 

?जीवनरंग ?

☆ आणि… कविता जिवंत राहिली…भाग – १ ☆ श्री नितीन सुभाष चंदनशिवे ☆ 

(रमाईला आणि बाबासाहेबांना डोळे भरून बघून घेताना अंगात बळ येत गेलं. इतकं बळ आलं की त्या क्षणाला मी जगातली कुठलीही स्पर्धा जिंकू शकत होतो.) 

माझी तमाशा नावाची कविता बेंबीच्या देठातून सादर केली. कविता संपली. टाळ्या कानावर यायला लागल्या. त्याच टाळ्यांच्या आवाजात पुन्हा येऊन जाग्यावर बसलो आणि पुन्हा डोळ्यासमोर संसार दिसू लागला.

स्पर्धा संपली. पारितोषिक वितरण समारंभ सुरू झाले. त्यावेळी सामाजिक न्यायमंत्री राजकुमार बडोले यांच्या हस्ते पारितोषिक वितरण होणार होतं. मंचावर ते उपस्थित होते. सूत्रसंचालकाने विजेत्यांची नावे जाहीर करण्यासाठी माईक हातात घेतला, आणि छातीत धडधड सुरू झाली. त्याने सर्वात आधी तृतीय क्रमांक पुकारला. टाळ्या सुरू झाल्या. तो तीन नंबरचा विजेता स्टेजवर गेला. त्याच्या हातात ट्रॉफी, गळ्यात शाल, पुष्पगुच्छ व ते पांढऱ्या रंगाचं पाकीट राजकुमार बडोले यांनी दिलं. त्याला तिथेच थांबवला. माझी नजर त्याच्या पांढऱ्या पाकिटावरून हटत नव्हती.

सूत्रसंचालकाने दुसरा नंबर घोषित केला. माझं नाव नव्हतं. पोटात अजून गोळा आला. तो विजेता ही तसाच जाऊन स्टेजवर थांबला आणि आता सुत्रसंचालक प्रथम क्रमांक घोषित करणार होता. मी डोळे गच्च मिटून घेतले. पोटात कळ यायला लागली होती. छातीत धडधड वाढेलेली होती. दोन डोळ्यांच्या बंद पापणीच्या आड फक्त गरोदर असणारी माझी पत्नी माझी वाट बघत असलेली दिसत होती, आणि कानावर आवाज आला. “आणि या स्पर्धेचा प्रथम क्रमांकाचा विजेता आहे, ज्याने तमाशा कविता सादर केली असा नितीन चंदनशिवे. “

टाळ्यांचा प्रचंड कडकडाट होत होता. बंद पापणीच्या आतून डोळ्यांनी बांध सोडला आणि गालावर पाणी घळघळ वाहायला लागलं. सगळ्या जगाला मोठ्याने ओरडून सांगावं वाटत होतं ‘मी आयुष्यभर कविता लिहिणार आहे. होय मी कवी म्हणून जिवंत राहणार आहे. ‘

टाळ्या थांबत नव्हत्या. आतल्या आत हुंदके देत मी स्टेजवर गेलो. बाजूच्या विंगेतून साडी नेसलेली मुलगी हातात ट्रे घेऊन येताना दिसू लागली. मी प्रमुख पाहुण्यांच्या समोर अंतर राखून उभा राहिलो होतो. फोटोवाला फोटो घेण्यासाठी कॅमेऱ्या डोळ्याला लावून तयार झाला होता. मी खिशातला मोबाईल काढला आणि दिपालीला फोन केला. पहिल्या रिंगमध्ये तिने फोन उचलला आणि म्हणली, “चंदनशिवे काय झालं सांगा ना लवकर, ” ती बिचारी वेड्यासारखं हातात फोन धरून माझ्या फोनची वाट बघत बसली होती. मी फोन कानाला दाबून गच्च धरला आणि म्हणलं, “दिपाली पहिला नंबर आलाय. ” 

मला एक अपेक्षा होती तिने अभिनंदन वैगेरे म्हणावं अशी. पण ती तसलं काही बोलली नाही. ती पटकन म्हणाली, “ते पहिला नंबर आलाय ठीक आहे पण रक्कम किती आहे ते सांगा आधी. ” आणि तेवढ्यात ती मुलगी ट्रे घेऊन जवळ आली. ती प्रमुख पाहुण्यांच्या हातात ट्रे देत होती. इकडं कानाजवळ दिपाली फोनवरून रक्कम विचारत होती. माझ्या डोळ्याला समोर फक्त पांढरं पाकीट दिसू लागलं.

मी कसलाच विचार केला नाही. ते पाकीट मी हिसकावून हातात घेतलं. सगळेजण तोंडाकडे बघत होते. मला काहीच वाटत नव्हतं. मी स्टेजवर ते पाकीट फोडलं. दोन बोटं आत घालून त्या पाचशे रुपयाच्या नोट्या मोजल्या. दहा नोटा होत्या आणि मी फोन कानाला लावून म्हणलं, “दिपाली, पाच हजार रुपये आहेत. ” हे वाक्य बोलताना घळकन डोळ्यातून एक धार जोरात वाहिली.

त्यावर दिपाली काहीच बोलली नाही. तिचा एक बारीक हुंदका मात्र ऐकू आला आणि जवळ जवळ वीस पंचवीस सेकंद आम्ही एकमेकांशी काही बोललो नाही. फक्त दोघांचे श्वास आम्ही अनुभवत होतो. मला वाटतं आम्ही दोघेजण किती जगू माहीत नाही, पण आयुष्यातला तो पंचवीस सेकंदाचा काळ हा सुवर्णकाळ वाटतो मला. आम्ही नवरा बायकोने त्या पंचवीस सेकंदाच्या काळात आमचं जन्मोजन्मीचं नातं मुक्याने समजून घेतलं.

नंतर हातात ती ट्रॉफी आली. गळ्यात शाल पडली. फुलांचा तो गुच्छ घेतला आणि मी तिथून कसलाही विचार न करता निघालोसुद्धा. त्या फोटोवाल्याला हवी तशी पोझ मिळालीच नाही आणि माझ्या त्या वागण्याने सगळेजण मला बावळट आहे की काय अशा नजरेने बघत होते. फोटोवाला ही रागानेच बघत होता. मी थेट गेटमधून पांढरं पाकीट खिशात कोंबून बाहेर पडलो.

घरी येताना तिच्यासाठी मिठाई घेतली. तिला समोसे आवडतात म्हणून गरमागरम समोसे ही घेतले. तिसऱ्या मजल्यावर आमचं घर होतं. मी अक्षरश: पायऱ्या तुडवत पळत पळत धापा टाकत दारात आलो. दार वाजवणार तेवढ्यात तिनेच दार उघडलं आणि म्हणाली, “कवी नितीन चंदनशिवे यांचं माझ्या संसारात स्वागत आहे. ” 

हुंदका दाटून आला. मला स्पर्धा जिंकल्याचा, पाच हजार मिळाल्याचा, आनंद नव्हताच. मी आयुष्यभर तिच्यासमोर ताठ मानेने कविता लिहिणार होतो कवी म्हणून तिच्या नजरेत जगणार होतो. कवी म्हणून जिवंत राहणार होतो, याचा आनंदच नाही तर मी हा महोत्सव माझ्या काळजाच्या गाभाऱ्यात आतल्या आत साजरा करत होतो. तिने माझे पाणावलेले डोळे पुसले. तिच्यासाठी खायला आणलेलं तिच्या हातात दिलं.

आम्ही दोघेही खायला बसलो आणि ती म्हणाली, “चंदनशिवे, आपल्याला जर मुलगा झाला तर आपण त्याचं नाव निर्भय ठेवायचं. कारण आज पोटात तो सारखं लाथा मारून मला त्रास देत होता. तो सोबतीला होता म्हणून मनात भितीच नव्हती. तुमचा फोन येणार आणि तुम्हीच जिंकलाय असं सांगणार असंच वाटत होतं. ” 

सगळी मिठाई दोघांनी खाल्ली. तिने कागद आणि पेन घेतलं आणि किराणा मालाची यादी लिहायला सुरुवात केली. तिने ती यादी लिहून झाल्यावर माझ्या हातात दिली अशी….

माझा महिन्याचा पगार होतो तेव्हा,

माझी बायको तिच्या सुंदर हस्ताक्षरात

किराणा मालाची यादी लिहिते,

ती यादीच माझ्यासाठी जगातली 

 सर्वात सुंदर कविता असते…

 आणि यादीची समिक्षा फक्त आणि फक्त

तो दुकानदारच करत असतो

तो एक एक शब्द खोडत जातो

पुढे आकडा वाढत जातो

आणि कविता तुकड्या तुकड्याने 

पिशवीत भरत जातो

आयुष्यभर माहीत नाही

पण, कविता आम्हाला

महिनाभर पुरून उरते

कविता आम्हाला महिनाभर पुरून उरते”

 मित्रहो, संघर्षाच्या सुगंधी वाटेला सुद्धा वेदनेचे फास असतात. बंद डोळ्यांनाच फक्त सुखाचे भास असतात. पण जोडीदारावर अमाप माया आणि विश्वास ठेवला की, संसाराच्या या गाडीत बसून प्रवास करताना येणाऱ्या वादळात ही गाडी कधी थांबत नाही. आणि म्हणूनच उंबरठ्यावर भूक, वेदनेचे अभंग गात असली तरीही आतल्या घरात नवरा बायकोने कायम आनंदाच्या ओव्या गात जगलं पाहिजे. यासाठी शब्दांचा लळा आणि आनंदाचा गळा हा असलाच पाहिजे. कारण, आयुष्य सुंदर आहेच आणि आयुष्याचं गाणं हे अशाच सुख दुःखाच्या सुरांनी नटलेलं असलंच पाहिजे.

 चालत राहा, आयुष्याचे आनंदगाणे हसत हसत गात राहा.

– समाप्त  

© श्री नितीन सुभाष चंदनशिवे (दंगलकार)

संपर्क – मु. पोस्ट. कवठेमहांकाळ, जि. सांगली.

मो 7020909521

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “सुखांचे शाॅटस्…” ☆ सुश्री नीता चंद्रकांत कुलकर्णी ☆

सुश्री नीता कुलकर्णी

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☆ “सुखांचे शाॅटस्…” ☆ सुश्री नीता चंद्रकांत कुलकर्णी

रोजच्यासारखी सकाळी शारदा कामाला आली. आल्या आल्या म्हणाली,

“वहिनी हे बघा पैंजण.. शंभर रुपयांना घेतले. काल दारावर एक माणूस आला होता विकायला”

 तिच्या चेहऱ्यावरचा आनंद लोभसवाणा होता… आज एकदम खुषीत होती.

“अगं किती छान आहेत.. थांब शारदा फोटो काढते.. “

“नको नको”.. ती लाजून म्हणाली

“अग तुझा नाही.. पैंजणाचा काढते मग तर झालं…. “

फोटो काढला… फोटो काढताना ती हसत होती.

पैंजणावरून प्रेमानी हात फिरवून शारदा कामाला लागली…

तिच्या पैंजणांचा छुमछुम नाद तिच्याबरोबर मलाही सुखावत होता…

दिवसभर अनेक घरात कामं करूनही ती नेहमी आनंदात असते…

माझ्याही दिवसाची छान सुरुवात झाली…

 

देवाची पूजा करताना बाप्पाला गुलाब अर्पण केला… सरूची आठवण आली…

काळी सावळी तरतरीत सरू मी गेले की ” या काकू” म्हणते. मी नेहमी तिच्याकडूनच देवासाठी फुलं घेते. काल फुलं घेतली तर एक टपोरा गुलाब देऊन म्हणाली

” काकू हा घ्या तुमच्या देवाला “

.. मनात आलं किती गोड निरागस मन आहे पोरीचं…. देवाला हात जोडले त्याला मनोमन प्रार्थना केली..

“ पहाटे पासून दिवसभर कष्ट करणाऱ्या सरूला सुखी आणि आनंदी ठेव बाबा.. “

 

साहिलच्या म्हणजे नातवाच्या शाळेत फन फेअर होतं. तिथे त्यांचा पाणीपुरीचा स्टॉल होता. तो बघायला निघाले होते. रिक्षा बघत उभी होते…

काल साहिलने सांगितले होते.. “आजी आम्ही” चीझ रगडापुरी” करणार आहोत”

“अरे पण असं कसं? रगडापुरी वर चीझ?…. असं कुठे कोणी कधी केलं नसेल… कशी चव लागेल रे “

“नसेल केलं… पण आमचं तसंच ठरलं आहे… आणि पाणीपुरीवर नेहमीचं चिंचेचे पाणी नाही तर आम्ही त्यात थम्सअप, फॅन्टा, किंवा स्प्राईट घालणार आहोत… त्याला आम्ही “पाणीपुरी शॉटस् “असं नाव दिले आहे”

मी म्हटलं, “अरे हे कसलं कॉम्बिनेशन? कोणी तरी खाईल का?”

“अगं टीचर म्हणाल्या तुम्हाला करावसं वाटतंय ना करून बघा…. शिवाय आम्ही चिंचेचं पाणी पण घेऊन जाणार आहोत. लोकांना नाही आवडलं तर ते घालून नेहमीची पाणीपुरी करणार. “

 

काय झालं असेल… मी विचार करत होते तेवढ्यात..

“नीता. “.. अशी हाक आली

मैत्रीण दुकानात आईस्क्रीम घेत होती. बाईसाहेबांनी स्वेटर घातला होता आणि घेत होती आईस्क्रीम…

विचारलं तर म्हणाली.. “थंडीतच आईस्क्रीम खायला मजा येते.. ही घे तुला एक कॅंन्डी जाताना खा”

” अग आत्ता.. नको नको. नातवाच्या शाळेत चालले आहे “

तर डोळा मारून म्हणाली, ” घे ग.. वन फाॅर द रोड…. एन्जॉय इट.. कोणी…. तुझ्याकडे बघत नाही…. “

.. आयुष्यात प्रथमच रिक्षात बसून आईस कँन्डी खाताना मला गंमत वाटत होती….

 

फन फेअरला शाळेत पोचले तर तिथे खूपच मज्जा चालली होती… 

नातवाच्या स्टॉलवर गर्दी उसळली होती. लोक धमाल करत होते. पाणीपुरी शॉटस् हिट झाली होती…

आई, बाबा, आजी, आजोबा, पोरं… सगळे हसत होते. ट्राय करून बघत होते…

साहिलचे मित्र मैत्रिणी चीझ रगडा पुरी, पाणीपुरी शाॅटस बनवत होते. ते पण लोक आवडीने खात होते…

“कसली भारी आयडिया आहे ना… वाॅव….. मला अजून एक दे रे… एक्सलंट.. ए तु पण ट्राय कर रे… ” वगैरे चाललं होतं…

इतकी गर्दी होती की नातवाला आमच्याकडे बघायलाही वेळ नव्हता. काही वेळाने हे आणि सुनबाईचे आई-वडील पण आले. आम्ही चौघेही गप्पा मारत बसलो.

.. खूप वेळानंतर साहिल सांगायला आला,

” बघ आजी तुला काळजी वाटत होती ना पण… सगळ्यांना खूप आवडलं… आमचं एकुणएक सगळं संपलं. “

“हो रे.. आम्ही तुला बघीतलं तुमची गडबड चालली होती “

” अग पण तुम्हाला शॉट्स नाही मिळाले.. आता उद्या घरी करू.. तेव्हा तू ट्राय कर… “

“चालेल रे…. ” त्याला सांगितले.

पोरं अगदी खुष होती.

मनात म्हणाले…. “ नाही रे राजा…. उलट आज मला सुखांचे शॉट्स मिळाले.. ते कसे घ्यायचे हे समजले

.. त्याची चव दुय्यम होती.. मुलांचा आनंद महत्त्वाचा होता “ 

 

खरंच अशा छोट्या छोट्या शॉट्सनीच जीवनाची मजा घ्यायला शिकू… सारखं मोठं काहीतरी होईल मग मी सुखी.. आनंदी होईन असं म्हणत बसलं की हे छोटे शॉटस् हातातून निसटून जातात… हे समाधानाचे असे क्षण मनात भरून घ्यायचे… आणि मुख्य म्हणजे नेमके समाधान कशात मानायचे हे आपले आपण ठरवायचे मग असे क्षण सापडतात…

 

खरं म्हणजे ते असतातच आसपास… बघायचे ठरवले तर दिसतात..

बघायचे…. हळूहळू येईल ती दृष्टी…. मग दिसतील…. आपले आपले सुखांचे असे शॉटस्

 

मग ठरलं तर…

अशा शॉट्सची मजा घेत जगायचं.. आनंदाने… हसत हसत..

…. मग पुढचे दिवस, महिने आणि वर्षही नक्कीच आनंदात जातील.

© सुश्री नीता चंद्रकांत कुलकर्णी

मो 9763631255

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ प्रसंगावधान… ☆ माहिती संकलन व प्रस्तुती – डाॅ.भारती माटे ☆

डाॅ.भारती माटे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ प्रसंगावधान… ☆ माहिती संकलन व प्रस्तुती – डाॅ.भारती माटे

आदिती प्रधान, पुण्यात राहणारी एक उच्चशिक्षित, सुंदर २३ वर्षीय तरूणी. आदिती एका बहुराष्ट्रीय आयटी कंपनीत टेक्नॉलॉजी अॅनालिस्ट आहे. सध्या ती एका महत्त्वाच्या प्रोजेक्टवर काम करत असल्याने घरी जायला बर्‍याचदा उशीर होतो. पण आज क्लायंट सोबतच्या व्हिडिओ कॉन्फरन्स मुळे रात्रीचे अकरा कसे वाजले तिला कळंलं देखील नाही.

आदितीने बॅग उचलली, ड्रॉवर उघडून मोबाइल बाहेर काढला. आईचे ५ मिसकॉल दिसत होते. फोन करून आईला तिने तासाभरांत घरी पोहचते असे सांगून मोबाइल वर कंपनीचे कॅब बुकिंग अॅप उघडले आणि कॅब बुक केली. ती बाहेर पडत असतानाच कॅब समोरून येताना दिसली. दार उघडून ती आत बसली. ड्राइवर शिवाय कॅबमधे कोणीही नव्हते. आज तिला फारच उशीर झाला होता. ड्रायव्हर सुद्धा ओळखीचा वाटत नव्हता. कंपनीतील महिला कॅबमधे एकटी असल्यास किंवा तिचा शेवटचा स्टॉप असल्यास सेक्युरीटी गार्ड बरोबर घेण्याची सुविधा होती पण आदिती सहसा गार्ड बरोबर घेण्याचे टाळत असे.

हिंजेवडी फेज वन वरून गाडी बाहेर पडली आणि मुंबई बेंगलोर रस्त्याला लागली. पाच दहा मिनिटं झाली असतील ड्रायव्हरने समोर ठेवलेला त्याचा मोबाईल उचलून स्विच अॉफ केला. तिने कारण विचारल्यावर “मोबाइल डिस्चार्ज होतो आहे आणि थोडय़ा वेळाने महत्त्वाचा कॉल करायचा आहे. म्हणून बंद केला. ” असे त्याने सांगितले. पण त्याच्या उत्तराने आदितीचे समाधान झाले नाही. कंपनीच्या कॅब बुकिंग अॅपला त्याचे लोकेशन ट्रॅक करता येऊ नाही म्हणून त्याने मोबाइल बंद केला हे तिच्या लक्षात आले.

तिच्या डोक्यात धोक्याची घंटा वाजू लागली. तेव्हढ्यात ड्रायव्हरने गाडीचा स्पीड वाढवला. आणखी थोड्या वेळात रस्त्याच्या कडेला उभ्या असलेल्या एका माणसाजवळ गाडी येऊन थांबली आणि तो माणूस ड्रायव्हर शेजारचे दार उघडून गाडीत येऊन बसला. पेहरावावरून आणि चेहर्‍यावरून तो माणूस काही सभ्य वाटत नव्हता. दोघांच्या हेतूची तिला पूर्ण कल्पना आली आणि तिची खात्री झाली कि ती फार मोठ्या संकटात सापडली आहे.

थंडीचे दिवस असूनही आदितीला घाम फुटला. घशाला कोरड पडली. मोठ्या प्रयत्नाने तिने स्वतःवर ताबा मिळवला आणि शांत डोक्याने विचार करण्याचा प्रयत्न करू लागली. अचानक तिला आठवले काही दिवसांपूर्वी व्हॉट्सअॅपवर आलेली एक पोस्ट वाचून तिने 112India अॅप डाउनलोड करून मोबाइलवर इन्स्टॉल करून घेतले होते आणि त्याला टेस्टही केले होते. थरथरत्या हाताने तिने पर्समधून मोबाइल बाहेर काढला. पिन टाकून सुरू करून होमस्क्रीन वरचे 112India अॅप ओपन केले आणि पोलिसांच्या मदतीसाठीचे बटन दाबले. आत्ताच्या परिस्थितीत या अॅपमुळे आपल्याला काही मदत मिळते की नाही या बाबतीत अादिती साशंक होती.

एव्हाना गाडीचा वेग कमी होऊन गाडी एका सुनसान रस्त्यावरून धावत होती. ड्रायव्हर शेजारी बसलेला माणूस मागे वळून घाणेरड्या नजरेने तिच्याकडे पाहून अश्लील हावभाव करत होता. तिने पुन्हा एकदा 112India अॅपवरचे पोलिस आणि अदर्स हे दोन्ही बटन्स एकामागोमाग एक दाबले. दुसरी कुठलीही मदत मिळेपर्यंत तिला स्वतःच्या सुरक्षेसाठी प्रयत्न करणे भाग होते. ड्रायव्हरजवळ बसलेल्या माणसाला ती मोबाइलवर कोणाची तरी मदत मिळवण्याचा प्रयत्न करते आहे, याचा संशय आला होता. त्याने मागच्या सीटवर झुकून तिचा मोबाइल काढून घेण्याचा प्रयत्न केला. आदितीने मोबाइल पटकन पर्समधे टाकला आणि चालत्या गाडीचे दार उघडून बाहेर पडण्याचा प्रयत्न करू लागली. पण गाडी आतून लॉक होती.

गाडी एका निर्मनुष्य जागी येऊन थांबली. ड्रायव्हर आणि त्याच्याजवळ बसलेला माणूस दोघेही दार उघडून मागे आले. दोघेही गाडीची मागची दोन्ही दारं उघडून तिला घेरून उभे राहिले. क्षणाचाही विलंब न करता अादिती उजव्या बाजूच्या दारातून ड्रायव्हरला ढकलून बाहेर पडली आणि रस्त्याच्या दिशेने धावत सुटली.

अॅपवरून पोलिसांना सूचना देऊनही दहा मिनिटे उलटली होती. ती जीवाच्या आकांताने पळत होती. त्याचबरोबर पोलिसव्हॅनच्या सायरनचा आवाज येतो का हे ऐकण्याचा प्रयत्न करत होती. दोघेही तिचा पाठलाग करत होते. दोन तीन मिनिटांतच त्यांनी तिला सहज गाठलं असतं.

तेवढ्यातच पोलिसांच्या गाडीच्या सायरनचा आवाज तिला एेकू आला. तिच्या जीवात जीव आला आणि ती अधिकच जोरात रस्त्याच्या दिशेने धावू लागली. थोड्याच वेळात पोलिस व्हॅन तिच्या दृष्टीस पडली. पाच पोलीस व्हॅनमधून उतरले. त्यात एक महिला पोलीस देखील होती. तिने धावण्याचा वेग कमी केला आणि मागे वळून पाहिले. दोघंही नराधम पोलिसांना पाहून पळून गेले होते.

आदिती पोलीस व्हॅनजवळ आली. तिने सगळी घटना पोलीसांना सांगितली. पोलीसांनी आसपासचा परीसर पिंजून काढला पण दोघंही सापडले नाही. पोलीसांनी व्हॅनमधून आदितीला घरी सोडले.

आज भारत सरकारनी सुरू केलेल्या 112India अॅपमुळे आदिती एका मोठ्या संकटातून सहीसलामत बाहेर पडली होती.

आदितीने दोघा नराधमांविरुद्ध एफआयआर दाखल केला. तिने सांगितलेल्या गाडीच्या आणि दोघांच्या वर्णनावरून तसेच कंपनीजवळ असलेल्या ड्राइव्हरच्या कॉन्ट्रॅक्ट पेपर्सवरून पोलीसांनी सातारजवळच्या एका गावातून दोघांनाही ताब्यात घेतले.

112India अॅप डाउनलोड करून इंस्टॉल केल्यावर, नाव, जन्मतारीख आणि फोन नंबर दिल्यावर ओटीपी येतो. अॅपला कॉन्टॅक्ट्स, लोकेशन, फोनकॉल्स वगैरे ची परवानगी द्यावी लागते. ह्या माहितीशिवाय इच्छित काम करणे 112India ला अशक्य असते. लगेच स्क्रीनवर अॅप लोकेशन दाखवू लागते. पोलीस, आग, मेडिकल व इतर अशी चार बटन्स दिसायला लागतात.

भारत सरकारने फेब्रुवारी 2019 मध्ये 112 हा नंबर कुठल्याही प्रकारच्या इमर्जंसी मध्ये वापरण्यासाठी खुला केला आहे. आजपर्यंत २२ राज्ये व केंद्रशासित प्रदेशांमध्ये ही योजना कार्यान्वित झालेली आहे, इतर राज्यातही होत आहे.

पोलीस (१००), आग (१०१), आरोग्य (१०८) आणि स्त्री सुरक्षा (१०९०) हे चार नंबर ११२ नंबराखाली आणलेले आहेत. सध्या सगळ्यांजवळ स्मार्टफोन आहेत त्यामुळे अँड्रॉइड व आयफोनसाठी अॅप विकसित केलेले आहे. अॅपवर ४ पॅनिक बटन्स दिलेली आहेत – पोलीस, आग, मेडिकल व इतर. आपल्या गरजेप्रमाणे बटन दाबले तर योग्य ती मदत ६ ते १० मिनिटांत मिळू शकते.

आपली क्षमता व इच्छा असल्यास आपण स्वयंसेवक म्हणून स्वतःची नोंद करू शकतो. आपल्या भागात कुणी मदतीची याचना केल्यास ती आपल्यापर्यंतही पोचून आपण तिथे धाव घेऊन मदत करू शकतो.

बर्‍याचदा घरात फक्त वृद्ध व्यक्ती असतात. कुणा एकाच्या बाबतीत मेडिकल इमर्जन्सी उद्भवली तर दुसऱ्याला काय करावे सुचत नाही, हाक मारून बोलावण्याच्या अंतरावर कुणी नसते, मुले दूरदेशी असतात. अशा वेळी हे अॅप वापरून तात्काळ मदत मिळवता येईल. अमेरिकेतील ९११ सारखा याचा वापर व उपयोग व्हावा ही सरकारची अपेक्षा आहे. ही योजना केंद्र सरकारने निर्भया फंडमार्फत सुरू केलेली आहे. एपचा वापर करून आपले रक्षण करण्याचा प्रयत्न करणे हे तर नक्कीच आपल्या हातात आहे.

आपल्या जवळच्या व्यक्तीपर्यंत हि स्टोरी तुम्हीच पोहचवा… शेअर करा..

माहिती संकलन व प्रस्तुती : डॉ. भारती माटे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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