English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 220 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 220 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 220) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 220 ?

☆☆☆☆☆

मैं न अन्दर से समंदर हूँ

न बाहर आसमान

बस मुझे उतना समझ

जितना नजर आता हूँ मैं…

☆☆

I am neither sea from within

Nor am I the sky externally…

Just try to understand me

As as much I’m visible to you!

☆☆☆☆☆

ज़िन्दगी है साहब

छोड़कर चली जाएगी;

मेज़ पर होगी तस्वीर

कुर्सी खाली रह जाएगी…

☆☆

This  is the life, my  dear!

Will leave you abruptly;

Table will have the picture

While chair will be left empty…!

☆☆☆☆☆

थमती नहीं 

जिंदगी कभी 

किसी के बिना;

मगर 

यह गुजरती भी नहीं 

अपनों के बिना।

☆☆

Life  never stops

Without anyone…

But then

It doesn’t even pass;

Without the loved ones…

☆☆☆☆☆

खुद को भी कभी

महसूस कर लिया करो

कुछ रौनकें खुद से 

भी हुआ करती हैं…

☆☆

Sometimes even try 

to feel yourself

Sometime liveliness is

even self-generated…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – ‘इस जनवरी का माधुर्य…’ – ☆ डॉ अंशु शर्मा ☆

डॉ अंशु शर्मा

(डॉ अंशु शर्मा नई दिल्ली की निवासी, एक सरकारी सेवा निवृत्त एलोपैथिक चिकित्सक हैं। उन्होंने दिल्ली के प्रख्यात लेडी हार्डिंग कॉलेज से स्नातक और दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की, तत्पश्चात् सीजीएचएस में क़रीब ३० वर्ष, एवं केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में Public health officer के पद पर ९ वर्ष कार्यरत रहने के बाद २०२२ में निजी कारणों से सेवानिवृत्ति ले ली थी। उन्हें द्विभाषीय कविताये ( हिन्दी और अंग्रेजी में ) लिखने में क़रीब १२ वर्षो का अनुभव हैं और उनकी हिन्दी कविताओं की पुस्तक “अंतर्मन के संवाद” २०२० में प्रकाशित हो चुकी है।)

आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी लिटररी वारियर्स ग्रुप द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत कविता ~ ‘इस जनवरी का माधुर्य…~. 

☆ ~ ‘इस जनवरी का माधुर्य…’ ~? ☆

(लिटररी वारियर्स ग्रुप द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत कविता। कविता “इस जनवरी” शब्दों से प्रारम्भ होनी थीं।

इस जनवरी का आगमन हुआ , और नववर्ष आया है।

सर्द हवाएँ ख़ुशबू भरी, नया सा ख़ुमार छाया है।

बर्फ की चादर पड़ी हुई कहीं पर, कहीं चंपई धूप निखर आई है।

हर दिन एक नया इरादा, हर कोने में नई सी चमक आई है।

पर सर्दी की ठिठुरन से, बहुतों की उम्मीदें भी जलती हैं,

ठंड से काँपते हाथों में, चाय के संग, बात नई बनती है।

मीठी मीठी धूप की गुनगुनाहट, जोश से भरी सुबह ,

सर्दी का मौसम, प्रकृति का उल्लास हरेक जगह ।

 *

नववर्ष की इस संध्या पर सीख लें,हर दिन एक नया अवसर है।

गिर गिर के बार बार सँभलें, जीवन का यही सफ़र है।

सर्दी की धुँधके बाहर, रौशनी तलाशनी होगी,

सपनों को साकार करने की,  अपनी पूरी ज़िम्मेदारी होगी।

 *

इस जनवरी के माधुर्य के संग, नववर्ष को भरपूर जियो,

कड़कड़ाती ठंड में ,आत्मिक गर्मी से, सबके दिलों के क़रीब जाओ।

इस नये वर्ष के बहुमूल्य समय में, इक नई शुरुआत का संकल्प करो ।

अपने सपनों को गले लगाओ, हर रिश्ते का आदर करो।

 *

कल जो भी था, मीठा या कड़वा, उसे भूल जाओ,

आज के इस दिन को , अपनी हर मंज़िल बनाओ ।

जो भी हुआ और जो भी होगा, उस से अपना ध्यान हटाओ,

कर्म के योगी बन, बस सेवा भाव में लीन हो जाओ ।|

~ डॉ अंशु शर्मा

© डॉ अंशु शर्मा

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 219 – नवगीत – दूर कर दे भ्रांति… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक नवगीत – दूर कर दे भ्रांति)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 219 ☆

☆ नवगीत – दूर कर दे भ्रांति… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

दूर कर दे भ्रांति

आ संक्राति!

हम आव्हान करते।

तले दीपक के

अँधेरा हो भले

हम किरण वरते।

*

रात में तम

हो नहीं तो

किस तरह आये सवेरा?

आस पंछी ने

उषा का

थाम कर कर नित्य टेरा।

प्रयासों की

हुलासों से

कर रहां कुड़माई मौसम-

नाचता दिनकर

दुपहरी संग

थककर छिपा कोहरा।

संक्रमण से जूझ

लायें शांति

जन अनुमान करते।

*

घाट-तट पर

नाव हो या नहीं

लेकिन धार तो हो।

शीश पर हो छाँव

कंधों पर

टिका कुछ भार तो हो।

इशारों से

पुकारों से

टेर सँकुचे ऋतु विकल हो-

उमंगों की

पतंगें उड़

कर सकें आनंद दोहरा।

लोहड़ी, पोंगल, बिहू

जन-क्रांति का

जय-गान करते।

*

ओट से ही वोट

मारें चोट

बाहर खोट कर दें।

देश का खाता

न रीते

तिजोरी में नोट भर दें।

पसीने के

नगीने से

हिंद-हिंदी जगजयी हो-

विधाता भी

जन्म ले

खुशियाँ लगाती रहें फेरा।

आम जन के

काम आकर

सेठ-नेता काश तरते।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२७.१२.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 581 ⇒ पुरानी फिल्मों का संगीत ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पुरानी फिल्मों का संगीत।)

?अभी अभी # 581 ⇒ पुरानी फिल्मों का संगीत ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

रेडियो सीलोन के पुराने श्रोता जानते हैं, सुबह ७.३० का समय पुरानी फिल्मों के गीतों का होता था, जिसका समापन हर रोज के.एल.सहगल के गीत से ही होता था। ८ बजे का समय लोमा टाइम होता था, जिसके पश्चात् आप ही के गीत शुरू हो जाते थे।

तब रेडियो पर पिताजी का ही एकाधिकार होता था। आठ बजते ही सभी रेडियो सेट्स पर एक ही आवाज़ आती थी, ये आकाशवाणी है, अब आप देवकीनंदन पांडे से समाचार सुनिए।।

बात पुरानी फिल्मों के गीतों की हो रही थी। कुंदनलाल सहगल केवल ४३ वर्ष की उम्र में सन् १९४७ में कई यादगार गीत छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए। सहगल के अलावा तलत महमूद, सी. एच.आत्मा, के. सी. डे., रफी, मुकेश और किशोर भी लोगों की जुबान पर चढ़ चुके थे। कौन भूल सकता है सुरैया श्याम की अनमोल घड़ी, आवाज दे कहां है, और नूरजहां और सुरेंद्र का कलजयी गीत, तू मेरा चांद तू मेरी चांदनी और उमा देवी की दर्द भरी आवाज, अफसाना लिख रही हूं।

आज इन गायकों में से कोई भी हमारे बीच मौजूद नहीं है, और ना ही है रेडियो सीलोन का ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन, लेकिन श्रोता हैं कि आज भी रेडियो सीलोन को यू ट्यूब पर भी सुने जा रहे हैं। हम एक अच्छे श्रोता जरूर हैं लेकिन ऐसे अंध भक्त भी नहीं। समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है, इसलिए हमने भी समझौता एक्सप्रेस में सवार हो, कई वर्ष पहले ही आकाशवाणी के पचरंगी प्रोग्राम विविध भारती से समझौता कर लिया है और मजबूरी में ही सही, रोज सुबह सात बजे प्रसारित पुरानी फिल्मों के प्रोग्राम, भूले बिसरे गीत, सुनना शुरू कर दिया है।।

आज के रेडियो और टीवी पर पहला अधिकार विज्ञापन का है और अगर वह आकाशवाणी है तो उस पर दूसरा अधिकार समाचार का है। मनोरंजन का स्थान तो इनके बाद ही आता है। आइए विविध भारती सुनें।

सुबह की सभा प्रातः ६ बजे, मंगल ध्वनि से शुरू होती है, और समाचारों के पश्चात् चिंतन और भजनों का प्रोग्राम वंदनवार, जिसमें एक भजन भारत रत्न लता जी का तय है। अक्सर सभी भजन सुने हुए होते हैं और गैर फिल्मी होते हैं। ६.२० बजे देशभक्ति के गीत के साथ भजनों का कार्यक्रम  समाप्त हो जाता है। पंद्रह मिनट के लिए रामचरित मानस का पाठ होता है और उसके बाद नियमित प्रोग्राम संगीत सरिता, जिसमें अधिकांश प्रोग्राम पुराने ही रिपीट किए जा रहे हैं।।

लिजिए सुबह के सात बज गए और अब भूले बिसरे गीत शुरू होने जा रहे हैं।

एक विज्ञापन के बाद मुश्किल से दो गीत आप सुन पाएंगे और प्रादेशिक समाचार शुरू हो जाएंगे।

समाचार की शुरुआत भी विज्ञापन से ही होती है और उसका समापन भी विज्ञापन से ही होता है। बड़ी मुश्किल से खींच तानकर दो अथवा साढ़े दो/ढाई भी नहीं, और भूले बिसरे गीतों का समय समाप्त हो जाता है।

विविध भारती के पास पुराने मनोरंजक प्रोग्रामों का कुबेर का खजाना है, जिसे वह आजकल विज्ञापनों के जरिए प्रचारित करता रहता है।

नौशाद, मीनाकुमारी और जीवन से इस बहाने दिन में हमारी बीस पच्चीस बार मुलाकात हो जाती है।

आखिर विविध भारती को भी अपने मन की बात कहने का पूरा पूरा अधिकार जो है।।

बात भूले बिसरे गीतों और पुरानी फिल्मी गीतों की हो रही थी। क्या पुरानी फिल्मों के सभी गीत भूले बिसरे होते हैं। जो गीत ज्यादा पॉपुलर होता है, वह अधिक बजता है और बेचारे कुछ गीत समय के साथ भुला दिए जाते हैं।

जब कि कुछ गीत सदाबहार होते हैं और वक्त का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। रफी साहब को गुजरे अब ४५ वर्ष हो गए। इस हिसाब से तो इनके सभी गीत पुराने ही हो जाना चाहिए लेकिन क्या दिल तेरा दीवाना, दिल देके देखो अथवा प्रोफेसर, पारसमणि, आरजू, सूरज और गाइड के गीत सुनकर आपको लगता है कि हम कुछ पुराना अथवा भूला बिसरा सुन रहे हैं।।

ओल्ड इज गोल्ड। कुछ गीत वाकई सदाबहार होते हैं और समय की धूल उन पर कभी जमा नहीं होती।

फिर चाहे वे गीत लता जी ने गाए हों अथवा आशा जी ने। हमारे कुछ संगीतकार भी इसी श्रेणी में आते हैं, जिनमें प्रमुख हैं, ओ पो नय्यर, उषा खन्ना और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, जिनकी पहली फिल्म का गीत भी ऐसा लगता है, मानो आज पहली बार सुन रहे हैं।

संगीत के बारे में हर श्रोता के अपने अपने आग्रह और पूर्वाग्रह होते हैं। अच्छे सदाबहार गीत बताना तो बहुत आसान है, लेकिन सबसे मुश्किल होता है, सबसे खराब गीत के बारे में एक आम राय रखना। हां अगर गायक और संगीतकार से पूछा जाए, तो वह जरूर ईमानदारी से बताएगा।

जैसे लता जी ने फिल्म संगम के गीत, हाय का करूं राम, के बारे में अपनी राय जाहिर करी थी। यह गीत उन्होंने बेमन से गाया था, क्योंकि यह उनकी रुचि से मेल नहीं खाता था।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (20 जनवरी से 26 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (20 जनवरी से 26 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई। मैं पंडित अनिल पाण्डेय आज आपको 20 जनवरी से 26 जनवरी 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा कन्या राशि में रहेगा। सप्ताह के अंत में वह धनु राशि में गोचर करेगा। इसके अलावा मंगल ग्रह 21 जनवरी के सायं काल 4:39 से मिथुन राशि में बक्री होंगे, बुध ग्रह 24 तारीख के 5:26 मिनट शाम से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसके अलावा सूर्य मकर राशि में वक्री गुरु वृष राशि में, शुक्र और शनि कुंभ राशि में तथा राहु मीन राशि में भ्रमण करेंगे।

आई अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आएगा। एकादश भाव में शुक्र की  और द्वितीय भाव में गुरु की उपस्थिति आपके पास धन लाने में मदद करेगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। कार्यालय में  परेशानी आ सकती है। भाग्य से आपके सहयोग मिल सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो शत्रुओं पर  विजय पा सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 21, 22 और 23 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उचित है। 24 और 25 जनवरी को आप दुर्घटनाओं से बच सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत एक तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को सूर्य मत्रों के साथ जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय में अच्छी  प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। लोगों के बीच में आपकी इज्जत बढ़ेगी। उल्टे सीधे रास्ते  से धन आ सकता है। आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए  पर्याप्त परिश्रम करना पड़ेगा। आपको अपनी संतान से  सहयोग प्राप्त होगा। अगर पेट की पीड़ा है तो वह समाप्त होगी। इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 21, 22, 23 और 26 को कोई भी कार्य करने के पहले आपको पूरा सोच विचार करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में उन्नति होगी। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। धन आने की मात्रा में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में सावधान रहें। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। कार्यालय में अपने क्रोध पर काबू रखें। आपको अपने ब्लड प्रेशर और डायबिटीज पर भी काबू करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 24 और 25 तारीख को आपको अपने शत्रुओं पर प्रयास करने पर विजय मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गुड का दान करें और गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने की उम्मीद की जा सकती है। कचहरी के कार्यों में परिश्रम और सावधानी के बाद सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप उनको समाप्त भी कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 21, 22 और 23 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए सहायक है। 24 और 25 तारीख को आपके संतान को कष्ट हो सकता है। 26 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप  काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। कार्यालय में आप कोई स्थिति अच्छी रहेगी। धन आने का योग है। अविवाहित जातकों के लिए विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 24 और 25 जनवरी को आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन पंछियों को चावल का दाना चुगायें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य से मदद मिलेगी। कार्यालय में आपको सफलता मिलेगी। आपके सभी शत्रु शांत रहेंगे। अगर आप मेहनत करेंगे तो आप अपने शत्रुओं  पर  विजय प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 26 जनवरी किसी भी कार्य के लिए फलदायक हैं। 24 और 25 जनवरी को आपको अपने क्रोध पर आपको काबू रखना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर पर जाकर गरीब लोगों के बीच में चावल का दान करें और शुक्रवार को किसी मंदिर के पुजारी को सफेद वस्त्रो का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका आपके पिताजी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। आपके संतान को उन्नति प्राप्त हो सकती है। आपको भी संतान से अच्छा सहयोग मिलेगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। भाग्य आपका साथ दे सकता है। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 21, 22 और 23 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। 20 जनवरी को आपको कोई भी कार्य सचेत होकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन उड़द का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। उनके पेट की परेशानी समाप्त हो सकती है। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाइयों के साथ तनाव हो सकता है। पिताजी को कष्ट हो सकता है। कार्यालय में आपको परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 जनवरी फलदायक है। 21, 22 एवं 23 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का जल और दूध से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। इस समय का उपयोग कर आपको अपना व्यापार बढ़ाना चाहिए। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। भाई बहनों के साथ आपके संबंध अच्छे रहेंगे। छात्रों की पढ़ाई में बाधा हो सकती है। आपके पेट की परेशानी कम हो सकती है। धन के आने में कुछ परेशानी होगी। माता जी को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 26 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक हैं। 24 और 25 जनवरी को अगर आप प्रयास करेंगे तो कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य आपका साथ देगा। अगर आप भरपूर मेहनत करेंगे तो पैसा भरपूर आ सकता है। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। आपके प्रयासों से आपके शत्रु पराजित हो सकते हैं। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। राहु के कारण भाई बहनों के साथ तनाव हो सकता है। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में थोड़ी कमी आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 21  22 और 23 जनवरी किसी भी काम को करने के लिए परिणाम दायक है। 24, 25 और 26 जनवरी को सावधान रहकर कार्य करें। कोई रिस्क का कार्य इस समय ना करें। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन गणेशअथर्व शीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन  बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाई बहनों को कुछ कष्ट हो सकता है। धन आने की उम्मीद की जा सकती है। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। समाज में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। आपको अपनी संतान का सहयोग प्राप्त होगा। कचहरी के कार्यों में सावधान रहे हैं। इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 जनवरी उत्तम है। 20 जनवरी को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिल सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध में तनाव आ सकता है। आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी इस सप्ताह आपके लिए 20 और 26 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है 24 और 25 जनवरी को भाग्य आपका विशेष रूप से साथ दे सकता है 21 22 और 23 जनवरी को आपको कोई भी कार्य सावधान होकर करना चाहिए इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन विश्व सहस्त्रनाम का पाठ करें विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ क्षितिज नमते तेथे… ☆ प्रा. सौ. सुमती पवार ☆

प्रा. सौ. सुमती पवार

? कवितेचा उत्सव ?

☆ क्षितिज नमते तेथे… ☆ प्रा. सौ. सुमती पवार ☆

क्षितिज नमते तेथे मजला जावे वाटते रोज

काय ते गूढ लपले त्याचा घ्यावा वाटतो शोध

खुणावते मज रोज रोज ती धुसर संध्याकाळ

किती मजेने बुडती रोजच अजस्र असे पहाड..

*

लपेटून ते धुक्यात बसती चंदेरी सोनेरी

छटा गुलाबी निळी शेंदरी काळपट काटेरी

उन्हे चमकती कनक लपेटून शुभ्र कापसापोटी

लालचुटूक ती छटा मधूनच क्षितिज हासते ओठी..

*

ढग पालख्या हलके हलके वाहून नेतो वारा

रंगांची सांडते कसांडी धवल कुठे तो पारा

मध्येच दिसती खग पांथस्थ क्षितिजाकडे धावती

संध्याछाया लपेटून ते निवासस्थानी जाती…

*

निरोप घेता रविराजाने क्षितिज येते खाली

धरती हासते प्रियकर येता गाली उमटते लाली

विसावते मग क्षितिज धरेवर निरव शांतता होते

मिलन होता क्षितिज धरेचे विश्वच सारे गाते..

*

विश्वशांतीचे दूत असे ते बाहू पसरून घेती

वसुंधरा मग झेलत बसते दवबिंदूंचे मोती

रात्रीच्या निशांत समयी दोघे ही नि:शब्द

असा सोहळा पहात बसती चंद्र चांदण्या अब्ज…

*

मंजुळवात ते पहाटसमयी घेऊन येती गंध

हळूहळू मग दिशा उजळती क्षितिजी भरतो रंग

लाल तांबडा रथारूढ तो भास्कर ये प्राचिला

निरोप देते धरती मग त्या आवडत्या क्षितिजाला…

© प्रा.सौ.सुमती पवार 

 नाशिक

मो. ९७६३६०५६४२; ईमेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ पोकळी आणि श्रद्धांजली ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? विविधा ?

पोकळी आणि श्रद्धांजली ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

“आज xxx xxx यांच्या जाण्यामुळे कधीही भरून न निघणारी अशी एक पोकळी निर्माण झाली आहे !”

हे एखाद्या नेत्याच्या किंवा एखाद्या मान्यवराच्या तोंडातलं वाक्य, कोणी दिग्गज कलाकार किंवा नेता आपल्या सर्वांना कायमचा सोडून गेल्यावर त्या मृत व्यक्तीला श्रद्धांजली वाहतांना हमखास ऐकायला मिळत. पण या वाक्याचं खरेपण किती पोकळ आहे हे आपल्या सर्वांच्या मनांत असलं, तरी उघडपणे ते कोणी बोलून दाखवत नाही. कारण शिष्टाचार !

अशा कोणा एकाच्या जाण्यामुळे आपल्या सर्वांच्याच जीवनात खरंच अशी, कधीही भरून न निघणारी पोकळी निर्माण होते का हो ? आपण मला विचाराल तर पोकळी वगैरे काही नाही, पण थोडे दिवस त्या व्यक्तीच्या आठवणीने दुःख होतं, व्याकुळ व्हायला होतं वगैरे, वगैरे ! गेलेली व्यक्ती आपल्या किती जवळची होती यावर त्या दुःखाची इंटेंसिटी अवलंबून असते, असं माझं तरी वैयक्तिक मत आहे.

मंडळी, राम-कृष्णासारखे अवतार या भूतलावरून गेले तरी जग रहाटी थांबल्याचे किंवा एखादी कधीही भरून न येणारी पोकळी निर्माण झाल्याचे माझ्या तरी ऐकीवात नाही. त्यामुळे आपल्या सारख्या मर्त्या मानवामुळे आपण गेल्यावर पोकळी वगैरे निर्माण व्हायचा प्रश्नच कसा निर्माण होईल ? एखादी व्यक्ती जग सोडून गेल्यावर तो किंवा ती, आपल्या कितीही जवळचा किंवा जवळची असली तरी हे त्रिवार सत्य आपण नाकारू शकतो का ? अगदी आपले आई वडील गेल्यानंतर सुद्धा, कोणी उरलेल्या सगळ्या आयुष्यात दुःख करत हातावर हात ठेवून बसलाय असं माझ्या तरी पाहण्यात नाही. शेवटी प्रत्येकाला स्वतः जिवंत राहण्यासाठी स्वतःच हातपाय हलवणे गरजेचे नाही का ? यावर हे “तुमचं पोकळ मत पटलं नाही बुवा !” असं कोणीही म्हणू शकेल, त्याला माझा ईलाज नाही. पण या बाबतीत भा. रा. तांबे यांच्या कवितेच्या “जन पळ भर म्हणतील….. ” या अजरामर ओळी आपण आठवून पहा, असं मी त्या लोकांना नक्कीच सांगेन ! असो !

मंडळी, अनेक शोक सभांच्या दुःखद प्रसंगी, त्याला किंवा तिला श्रद्धांजली वाहतांना ज्याच्या त्याच्या तोंडी तेच तेच वाक्य ऐकून मला तर कधी कधी हसू येत, अर्थात मनातल्या मनांत ! कारण असा एखादा दिग्गज कलाकार गेला, तरी भविष्यात कुठल्यातरी नवीन कलाकाराची अदाकारी किंवा त्याच गाणं किंवा वादन ऐकून आपल्याला गेलेल्या कलाकाराची आठवण येते असं आपण अनेकदा म्हणतो! गेलेल्या नेत्याच्या बाबतीत आजच्या “या” तरुण नेत्यामधे “त्या अमुक तमुक नेत्याचे” गुण दिसतात, असं म्हटलं जात.

आपली मराठी भाषा समृद्ध होण्यासाठी ज्यांची काहीच भरीव कामगिरी नाही, पण ज्यांना सामान्यपणे आपली माय मराठी भाषा बोलता अथवा लिहिता येते, कळते, तो किंवा ती सुद्धा माझ्या आधीच्या वाक्याशी सहमत होतील, याची मला खात्री आहे !

“आज xxx xxx यांच्या जाण्यामुळे कधीही भरून न निघणारी अशी एक पोकळी निर्माण झाली आहे !” हे लेखाच्या सुरवातीच वाक्य आपल्याकडे सर्वात प्रथम कोणी आणि कोण गेल्यावर त्याला किंवा तिला श्रद्धांजली वाहतांना उच्चारलं असेल, या बद्दल मला खरंच माहिती नाही, पण मला ते जाणून घ्यायची पोकळ नाही पण भरीव इच्छा नक्कीच आहे ! या बाबत श्रद्धांजली वाहण्याच्या विषयात तज्ञ असलेली मंडळी, मला पोकळ आश्वासन न देता काहीतरी ठोस माहिती पुराव्यासकट देतील अशी मला आशा आहे.

बरं वर्षान वर्ष कोणत्याही श्रद्धांजलीच्या कार्यक्रमात हेच वाक्य अजून आपली जागा राखून आहे, याच सुद्धा मला कधी कधी नवल वाटतं ! आपली मराठी भाषा इतकी समृद्ध असतांना या वाक्याला अजून तोडीस तोड वाक्य मिळू नये, हे मराठी भाषेच दुर्दैव म्हणायचं का ? का या गंभीर विषयात “आपण कशाला नाक खुपसा” असा सूज्ञ विचार मराठी भाषेच्या विचारवंतांनी किंवा श्रद्धांजली वाहण्यात एक्स्पर्ट असलेल्या लोकांनी केला आहे ? पूर्वापार चालत आलेल्या जशा अनेक परंपरा आपल्याकडे आपण डोळे मिटून पाळत आहोत, तशाच पद्धतीने हे घासून गुळगुळीत आणि पोकळ झालेलं वाक्य, अशा दुःखद प्रसंगी श्रद्धांजली वाहणाऱ्याच्या तोंडातून आपोआप बाहेर येत असावं, असं मला स्वतःला कधी कधी मग वाटून जात.

एखादा माणूस आपला मुद्दा दुसऱ्याला समजावतांना त्याच्या बोलण्यातून, देह बोलीतून तो खरंच मनापासून पोट तिडकीने बोलतोय का वरवरच बोलतोय, हे सामान्यपणे लोकांना कळतं. पण या लेखाच जे ब्रीद वाक्य आहे ते कोणी कधीही, कितीही वेळा बोलला तरी त्यातील पोकळपणा लगेच मला तरी दिसून येतो. अर्थात तो इतरांना सुद्धा दिसत, कळत असेल, पण वर म्हटल्याप्रमाणे तो उघडपणे म्हणून दाखवायचं किंवा बोलायचं हे शिष्टाचाराच्या आड येत असल्यामुळे तसं कोणी बोलून दाखवत नाही, हे ही तितकंच खरं !

शेवटी, इतक्या वर्षांनी आपल्या माय मराठीला अभिजात भाषेचा दर्जा मिळाल्या नंतर, आता तरी मराठी भाषेच्या अभ्यासकांनी या “पोकळ” भासणाऱ्या वाक्याला बदलून, त्या ऐवजी अशा श्रद्धांजलीच्या कार्यक्रमाला काहीतरी नवीन असं भरीव वाक्य तयार करावं, शोधावं असं मला मनापासून वाटतं ! त्यामुळे होईल काय, गेलेल्या व्यक्तीच्या आत्म्याला, या श्रद्धांजलीच्या नवीन वाक्याने थोडं तरी आत्मिक समाधान मिळेल, अशी आशा करायला काय हरकत आहे ?

ताजा कलम – आपण अटेंड केलेल्या श्रद्धांजलीच्या कार्यक्रमात, एखाद्या वक्त्याने “पोकळी” या शब्दाशिवाय कोणाला श्रद्धांजली वाहिली असेल, तर कृपया मला ते वाक्य जरूर कळवा !

© प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) ४०० ६१०

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ ‘आभाळाला हात टेकवून जमिनीवर येणारा माणूस !’ – भाग – २ ☆ श्री संभाजी बबन गायके ☆

श्री संभाजी बबन गायके

? जीवनरंग ?

आभाळाला हात टेकवून जमिनीवर येणारा माणूस !‘ – भाग – २ श्री संभाजी बबन गायके 

(आपल्या सभ्य वागण्याने त्याने त्याच्या सहवासात येणा-या सा-याच महिलांचा आदर कमावला. त्या सा-या जणींना त्याच्या सहवासात सुरक्षित वाटायचे!) – इथून पुढे —

ज्या स्वरूपाचे काम तो करायचा ते काम काही त्याला आधीपासून येत नव्हते. त्याच्या क्षेत्रात आधी शिक्षण मगच नोकरी असा क्रम. याचा मात्र आधी नोकरी, नोकरीतील किचकट पण आव्हानात्मक कामे आणि मग त्याचे औपचारिक शिक्षण असा उलटा क्रम लागला. हे नंतरचे शिक्षण तसे खूप जिकीरीचे असते. पण नोकरीची आव्हाने पेलताना त्याने पदवी आणि नंतर कायद्याची पदवीही पदरात पाडून घेतली…. हे तो शिकला नसता तरी चालले असते, एवढे त्याने नोकरीतील कामावर प्रभुत्व मिळवले होते. अर्थात हे कसब त्याने त्याच्या पहिल्या नोकरीत तेथील अनुभवी लोकांच्याकडूनच प्राप्त केले होते. पाया उत्तम असल्याने त्याला कळस चढवणे काही अंशी सोपे गेले. पण पाया आणि कळस हे अंतर पार करण्यातले कष्ट त्याने अफाट घेतले.

अफाट, अचाट वाटणा-या कृती तर त्याने शेकड्याने केल्या असतील. चारचाकी वाहन घेण्याआधी लोक रीतसर क्लास वगैरे लावतात. याने नवीन कार घेताना फक्त त्या शो रूम मधून ती कार बाहेर रस्त्यावर आणेपर्यंत शोरूम मधील माणसाची मदत घेतली. आणि पूर्वी इतरांना कार चालवताना पाहिलेला हा बाबा थेट कारचक्रधर बनला आणि कुठेही न धडकता अगदी सुरक्षितरीत्या घरी पोहोचला!

पुढे त्याला मालकाने ड्रायवर दिला तेंव्हा त्या ड्रायवरची काळजी घ्यायला हा तत्पर. कधी कधी त्याला मागे बसवून हा गाडी हाकायचा. ड्रायवरला त्याच्या कामाचे पैसे व्यवस्थित मिळतील याकडेही त्याचे बारीक लक्ष असे.

कोरोना काळात रिकामा वेळ असा फुकट कसा घालवेल हा? कापडी मास्क शिवण्याची कल्पना याचीच… हा स्वत: शिलाई मशीनवर मास्क शिवायला शिकला आणि नंतर सोसायटीमधील सर्वांना याने कामाला लावले. पुढे मागणी वाढल्यावर मास्क शिवण्याचा रोजगार गरजूंना मिळवून दिला.

लोकांच्या सुखाच्या समारंभात हा फारसा दिसला नाही पण दु:खाच्या प्रसंगी अगदी हजर. शवागारात जाऊन प्रेत ताब्यात घेण्यात त्याला कधी भीती, किळस नाही वाटली. आपले मानलेल्या माणसांची किंवा त्यांच्या जवळच्या माणसांशी जर इतर कुणाशी अदावत झाली तर मध्यस्थी करायला याच्या सारखा माणूस मिळणे दुरापास्त. जीव लावावा तो कसा हे त्याच्याकडून शिकावं. लहान मुलांमध्ये तो लहान होई तर मोठ्या माणसांत मुद्दाम लहान बनून राही. बच्चे कंपनीचा तो मॅनेजर होई…. स्वत: नोकरीत त्या पदासमकक्ष याचं काम असल्याचा यात अडथळा कधीच येत नसे. तो कधी कुणाला मोठा वाटलाच नाही! 

शहरातल्या पाहुण्या पोरांना भाताची शेतं मनोसोक्त अनुभवता यावीत म्हणून सरळ रस्ता सोडून मुद्दाम, चिखलाने माखलेल्या आडवळणी वाटेवर आपली नवी कार कोण घालेल… याच्या शिवाय? म्हणून अनेक मुलांचा तो मामा आणि अनेक बहिणींचा दादा होता!

एकदा मालकाने त्याला त्याच्या विशेष कामगिरीबद्दल त्याला एक ब-यापैकी रक्कम भेट दिली. त्या पाकिटातले काही रुपये सर्वांना मेजवानी देण्यात खर्ची टाकून बाकी रक्कम त्या रुपयांच्या पाकिटासह जसेच्या तसे मित्राच्या हाती देताना त्याने आपण काही वेगळे करतो आहोत, असे किंचितही जाणवू दिले नाही. त्या पैशांची परतफेड लवकर झाली म्हणून तो नाराजही झाला होता! 

बाहेरच्या खाण्याच्या पदार्थांना त्याने वेगळी नावे दिली होती… उदा. कच्छी दाबेली… त्याच्यासाठी कच्ची दाभळ होती.

आश्चर्य वाटले, नवल वाटले की… हात तिच्या मारी… हे तो एका विशिष्ट लकबीने म्हणत हसत सुटायचा. त्याला विनोद उत्तम समजत. पु. लं. च्या सगळ्या कथा त्याने पारायण करावे तशा ऐकल्या होत्या… आणि त्यातल्या पात्रांची नावे देण्यासाठी माणसे शोधली होती.

शहरात साहेब असलेला हा गावात जातीवंत शेतकरी बनायचा… स्वत:ची कार चालवणारा… बैलगाडी उत्तम हाकायचा! कामासाठी विमान प्रवास, उत्तम हॉटेलात वास्तव्य करण्याची संधी त्याला खूपदा मिळायची… पण त्यामुळे घरातील अंगणात, पत्र्यावर झोपण्याची, चुलीवरचं अन्न चवीने खाण्याची त्याची सवय काही गेली नाही. त्यामुळे हा शहरात, एका मोठ्या उद्योगात खरंच साहेब आहे का? अशीही शंका त्याच्या गावातल्या सवंगड्यांना यायची.

लहान वयातच पोक्तपणाचे जोखड खांद्यावर घेतल्याने त्याच्या मनावर काहीसे ओझे असावे. पण कुणापाशी व्यक्त करण्याची त्याला सवड आणि आवडही नव्हती. त्यामुळे संधी मिळेल तेंव्हा इतरांशी हास्यविनोद, चेष्टा-मस्करी करण्यामध्ये त्याच्या मनातील ताणाचे तण बहुदा जळून जात असावे…. भाताची खाचरं पेरणीसाठी तयार करण्याआधी त्यांतील गवत जाळावे लागते….. त्याचे हे असे हसून वावरणे त्यातलेच! जवळची माणसं एका पाठोपाठ गमावली त्याने, पण त्या दु:खाचा निचरा होईपर्यंत त्याला काळाने सवलत दिली नाही… आणि जसा तो लपाछपीच्या खेळात कुणाला सहजी सापडू नये अशा अनवट जागी लपायचा… तसाच तो अचानक कुठे तरी लपला… त्यावेळी त्याच्या सोबत कुणीही लपाछपी खेळत नसताना! आणि आता तर तो कुणालाच सापडणार नाही… कितीही शोधलं तरी! 

पण आठवणींच्या चौसोपी वाड्याच्या, एखाद्या अंधा-या खोलीत ठेवलेल्या कणग्यांमध्ये शिगोशीग भरून ठेवलेल्या भाताच्या साळींमधून तो गावरान पण चवदार तांदळाचा सुवास बनून राहील, अशी चिन्हे आहेत. त्याचं अकाली जाणं म्हणजे त्याने आणखी एक केलेली थट्टा असावी, अशी आशा करण्याची हिंमत आता नाही. फक्त त्याच्या या मस्करीमुळे आता हसू मात्र येणार नाही!

पण जेंव्हा कधी कुणी पोरगा भाताच्या खाचरात डोक्यावर पोतं पांघरून भाताची रोपणी करताना दिसेल तेंव्हा हा आठवेल… एखादे हेलिकॉप्टर उंच आकाशात उडत जाताना दिसेल तेंव्हा त्याची आठवण मात्र येईल! 

(अशी दुर्मिळ माणसं तुमच्याही सहवासात असतील तर त्यांना सांभाळा!)

– समाप्त –

© श्री संभाजी बबन गायके 

पुणे

9881298260

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ साडी म्हणोनी कोणी – लेखिका : सौ. क्षमा एरंडे ☆ प्रस्तुती – सौ. स्मिता सुहास पंडित ☆

सौ. स्मिता सुहास पंडित

⭐ मनमंजुषेतून ⭐

☆ साडी म्हणोनी कोणी – लेखिका : सौ. क्षमा एरंडे ☆ प्रस्तुती – सौ. स्मिता सुहास पंडित ☆

“ मावशी, उद्या कॉलेज मध्ये साडी डे‌ आहे, मी तुझी पैठणी नेसणार आहे चालेल ना तुला?”

“अगं चालेल काय पळेल, पण ब्लाऊज…… “,

“don’t worry मावशी I will manage”… ‘इती केतकी’,

एक बरं आहे या जनरेशनचे, त्यांच्याकडे सर्व पर्याय उपलब्ध असतात. केतकी येईलच इतक्यात…… पैठण्या पण दोन तीन त्यातली तिला कोणती आवडेल… जाऊ देत तिन्ही तिच्यासमोर ठेवाव्यात, आवडेल ती नेसेल. आपण पैठणी नेसून किती वर्ष, महिने झालेत आठवायलाच हवे.

कपाट उघडले तसा कपाटातून आवाज येऊ लागला. कोणी तरी आपापसात बोलत आहेत असा मला भास झाला.

“अगं मला नेस मला नेस, ” आवाजाच्या दिशेने पाहते तर‌, हॅंगर जोरदार हेलकावे घेत होते. नारायणपेठी हलल्यासारखी वाटली,

“ए तू बाजूला हो गं, ” नारायण पेठीला कोणीतरी दूर लोटले. तशी ती पटकन बाजूला झाली.

“बायकांना माहेरचा खूप खूप अभिमान असतो असं ऐकलं होतं, पण छे:, गेली वीस वर्षे मी बाहेरचं जग पाहिलं नाहीये. वीस वर्षांपूर्वी ‘सौरभच्या’ मुंजीसाठी, ‘माहेरची (पांढरी) साडी’, हवी म्हणून खास गर्भरेशमीची फर्माईश होती.. येतयं का काही लक्षात, बघ बघ जरा माझ्याकडे”.. बिचारी पांढरी साडी विरविरली.

‘अगं बाई खरंच की’, माझे मलाच वाईट वाटले.

आता सौरभचे लग्न ठरत आलयं. खरंच वीस वर्ष झाली आपण कसे काय विसरलो माहेरच्या साडीला. साडीला चुचकारले, आईची आठवण आली, क्षणभर गलबलल्या सारखे झाले.

“आम्ही पण कपाटात आहोत बरं का, तुझ्या लक्षात तरी आहे का, ‘बरोबर-बरोबर, आम्ही आता काकूबाई झालो ना., ‘अहो’ इंदोरला गेले होते, अहोंना किती instructions दिल्या होत्यास, डाळिंबी रंगच हवा, काठ सोनेरीच हवेत. सुरुवातीला नेसलीस, आता आम्ही बसलोय मागच्या रांगेत.. “ प्रेमाने मी इंदूरीवरून हात फिरवला. तशी ती आक्रसून गेली..

“माझ्याकडे बघता का जरा मी तर अजून गुलाबी कागदात तशीच आहे गुंडाळलेली”… अगं बाई खरंच वास्तूशांतीची आलेली, त्यालाही पाच वर्ष झाली.. मला तो रंग आवडला नव्हता, मग ती पिशवीत तशीच राहिली, नवी कोरी.. ” 

“मी कित्ती लकी आहे, डिझायनर बाईसाहेब पुटपुटल्या. “.. खरंच होतं तिचे.. पण, त्यातली मुख्य मेख तिला कुठं माहिती होती… तेवढा ‘एकमेव’ ब्लाऊज मला अंगासरशी बसत होता.

तेवढ्यात, शिफॉन बाईंनी लगेच तिला टाळी मागीतली,

“अगं मी नेसले ना की बाईसाहेब बारीक दिसतात, मग कायं, आमचा नंबर ब-याचदा लागतो बरंका…. “

कपाटातल्या साड्यांची सळसळ जरा जास्तच होवू लागली. पटकन कपाटाचे दार लावून टाकले.

आतल्या कांजीवरम, इरकलं कलकत्ता, पोचमपल्ली, ऑरगंडी, पुणेरी.. सगळ्यांची एकमेकींच्यात चाललेली कुजबूज बाहेर मला स्पष्ट ऐकू येत होती. प्रत्येकीची आपली आपली कहाणी होती. त्या कहाणीचे रूपांतर आता रडकथेत झाले होते आणि याला सर्वस्वी मीच जबाबदार होते..

बाहेर येऊन पहिलं गटागटा पाणी प्यायलं. खरंच मोजायला गेले असते तर ‘सेन्च्युरी’ नक्की मारली असती साड्यांनी. पण नाही नेसवत आता. काही जरीच्या साड्या जड पडतात. आताशा पंजाबी ड्रेसच बरे वाटू लागलेत. वावरायला सोप्पं पडतं ना. कपाटातल्या डझनभर साड्या मिळालेल्याच आहेत, तिथं आपल्याला choice थोडाच असतो. प्रेमापोटी मिळालेल्या, काही सरकवलेल्या(म्हणजे घडी बदल, इकडून तिकडे)मग काय नगाला नग, कपाट ओसंडून वाहणार नाही तर काय… सगळ्यांना सांगून दमले, आता काही देत जाऊ नका, साडी तर नकोच नको… पण…

असो…..

आता मात्र मनाशी पक्की खूणगाठ बांधली, जास्तीत जास्त वेळा साडीच नेसायची आणि हो, त्याच्यावरचे ब्लाऊज होण्यासाठी ‘१ तारीख आणि सोमवार’ ज्या महिन्यापासून येईल तेव्हा पासून जिम चालू करायचे..

मनावरचा ताण एकदम हलका झाला.

‘केतकी’ साठी पैठणीसोबत अजून दोन चार साड्या काढून ठेवल्या, तेवढीच हवा लागेल त्यांना.

खरं तर ‘साडी’ नेसणे‌ हीच समस्त महिला वर्गाची दुखरी नस‌ असावी…….

… हव्या हव्याश्या‌ तर वाटतात.. पण……

लेखिका : सौ क्षमा एरंडे

प्रस्तुती : सौ. स्मिता सुहास पंडित 

सांगली – ४१६ ४१६

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ “’शिवगंगा’ आली हो अंगणी…” ☆ सुश्री शोभा जोशी ☆

सुश्री शोभा जोशी 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ “’शिवगंगा’ आली हो अंगणी…☆ सुश्री शोभा जोशी ☆

— झाबुआचा सर्वांगीण विकास

(अगदी आत्ताच्या काळात सुध्दा पाण्यासाठी वणवण करणार्‍या, २/२ मैलांवरून पाण्याचे हंडे डोक्यावरून वाहून आणून पाण्याची गरज भागवणार्‍या लोकांविषयी आपण ऐकतो पाहतो. विशेषतः महिलांना हे काम करावं लागतं. पावसाच्या पाण्याला योग्य प्रकारे अडवून, ते साठवून त्याचा पिण्यासाठी, शेतीसाठी, जंगलवाढीसाठी योग्य रितीने उपयोग केला तर हे संकट टळू शकतं याचं उत्तम उदाहरण म्हणजे झाबुआ या आदिवासी बहुल भागात ‘शिवगंगा’ संस्थेने केलेलं काम. )

‘माळ्याच्या मळ्यामंदी पाटाचं पाणी जातं।

गुलाब जाई जुई मोगरा फुलवितं’।।

खरं तर आपल्या देशातील बर्‍याच गावांमध्ये पाटाचं पाणी ही कवी कल्पनाच राहिली आहे.

माणूस, प्राणी, पशू पक्षी, झाडं एकूणच जीवसृष्टीसाठी पाणी किती महत्वाचं आहे हे वेगळं सांगण्याची गरज नाही. जीवसृष्टीच्या निर्मितीपासूनच पाण्याचं महत्व अधोरेखित झालं आहे.

महाभारतात कौरव-पांडव युध्दानंतर युधिष्ठिराच्या राज्यात एकदा नारदमुनी त्याच्या भेटीला गेले. प्रजेचे क्षेमकुशल विचारताना त्यांनी युधिष्ठीराला विचारले…

कच्चित राष्ट्रे तडागानी पूर्णानि वहन्ति च।

भागशः विनिविष्टानि न कृषि देवमातृका।।

हे राजा, तुझ्या राष्ट्रात जलसिंचनासाठी मोठमोठे तलाव खोदण्यात आले आहेत ना? हे सर्व तलाव पाण्याने पूर्ण भरलेले आहेत ना? शेती, देवमातृका म्हणजे केवळ पावसाच्या पाण्यावर निर्भर नाही ना? ‘ म्हणजेच पावसाचं पाणी साठवणं हे हजारो वर्षांपूर्वी सुध्दा महत्वाचं मानलं जायचं हे नारदांनी विचारलेल्या प्रश्र्नावरून सिध्द होतं.

झाबुआ हा मध्यप्रदेशातील एक जिल्हा. जिल्ह्याची लोकसंख्या १०२४०९१ (२०११ च्या जनगणनेनुसार) आहे. जिल्ह्याची समुद्रसपाटीपासून उंची११७१’ आहे. साक्षरतेचं प्रमाण ४४. ४५% आहे. प्रमुख नद्या माही, अनास या आहेत. जिल्ह्यामध्ये जवळ जवळ ३७%लोक भिल्ल, भिलाला आणि पटालिया या जनजातींचे आहेत. इथल्या जनजातींबद्दल बरेच गैरसमज पसरविले गेले होते. त्यांना बदनाम करण्यात आले होते.

झाबुआ जिल्ह्यात पाऊस बर्‍यापैकी पडतो. पण ते पाणी अडविण्याची सोय नसल्यामुळे सर्व पाणी वाहून जात असे. त्यामुळे पाणी टंचाई निर्माण होई. पिण्याला पाणी मिळणे दुरापास्त होई. जंगले उजाड होत. जल, जंगल, जमीन यावर अवलंबून असलेले आदिवासी ना धड शेती पिकवू शकत ना जंगल संपत्तीवर गुजराण करू शकत. त्यामुळे त्यांना कामाच्या शोधात गुजराथ, महाराष्ट्र किंवा इतर राज्यात जावे लागे.

काही संस्थांनी या भागात पाण्याच्या व इतर समस्यांवर कामं केली पण त्यात त्यांनी आदिवासींना सहभागी करून घेतले नाही. त्यांच्या समस्या जाणूनच घेतल्या नाहीत. त्यामुळं ही कामं वरवरची झाली. त्यांच्या समस्या तशाच राहिल्या.

या समस्या खर्‍या अर्थी दूर केल्या पद्मश्री प्राप्त महेशजी शर्मा आणि त्यांच्या टीम मध्ये असलेल्या डाॅ. हर्ष चौहान, राजाराम कटारिया आणि इतर सहकार्‍यांनी.

पद्मश्री प्राप्त महेशजी शर्मा, संघाचे स्वयंसेवक. १९९८ला संघाने त्यांच्यावर वनवासी कल्याण परिषदेची जबाबदारी सोपवली. महेशजींनी झाबुआ जिल्ह्यात प्रवास केला. लोकांमध्ये मिसळून त्यांच्या समस्या जाणून घेतल्या आणि त्यांच्या लक्षात आलं की, ज्या लोकांना चोर, दरवडेखोर ठरवून त्यांच्याबद्दल गैरसमज पसरविण्यात आले आहेत. प्रत्यक्षात हे लोक अतिशय प्रामाणिक, कष्टाळू आहेत. कोणाचे पैसे बुडवत नाहीत. एकमेकांना मदत करण्याची वृत्ती आहे. फक्त त्यांना योग्य मार्गदर्शनाची गरज आहे. त्यांची पाणी ही मुख्य समस्या आहे. म्हणून शर्माजींनी त्यावर लक्ष केंद्रित करण्याचे ठरविले.

२००७ साली त्यांनी ‘ शिवगंगा ‘ प्रकल्पाची स्थापना केली. त्यांच्या मदतीला होते, दिल्ली आय आय टी मधून सुवर्णपदक प्राप्त करून एम् टेक् झालेले, देश-विदेशातील उच्चपदस्थ नोकर्‍यांकडे पाठ फिरवलेले, संघ प्रचारक, भिल्ल राजघराण्यातले श्री. हर्ष चौहान आणि जनजातीतील राजारीम कटारिया, ज्यांनी पदवी प्राप्त केल्यानंतर जनजातीतील लोकांसाठीच काम करायचे ठरविले. हे तिघे वत्यांचे इतर साथीदार यांनी झाबुआला जलमय करायचे ठरविले.

या टीमने प्रथम गावातील तरूणांबरोबर संवाद साधला. संकटात साह्य करणार्‍या गावातील तरूणांचे सघटन केले. इंदोर मध्ये ‘ ग्राम इंजिनियर वर्क ‘ या संस्थेमध्ये त्यांना प्रशिक्षण दिले. पहिल्यांदा ६ ‘ उंचीचे तलाव बांधून पाणी अडविण्यास सुरूवात केली.

महाभारतातील कथेनुसार भगिरथाने तपश्र्चर्या करून गंगा पृथ्वीवर आणली तेव्हा तिचा आवेग पृथ्वीला सहन होणार नाही म्हणून शंकराची प्रार्थना करून त्याच्या जटांमधून ती जमिनीवर आणली.

अगदी याच तत्वाचा अवलंब करून ‘शिवगंगा ‘ च्या कार्यकर्त्यांनी२००७ पासून पाणी अडविण्यास सुरूवात केली. पावसाळ्यात डोंगरातून धो धो वाहणारे, नुसतेच वाहून जाणारे पाणी अडवून त्याचा पिण्यासाठी, शेतीसाठी उपयोग करण्यात येऊ लागला. लोकांच्या साह्याने तलाव बांधले गेले. हजारो बांध बांधले. ग्राम अभियंत्यांना; समतल रेषा, (कंटूर) काढण्याचं, बांध बंदिस्ती, नाला बंडिंगचं, पाणलोट, वृक्ष लागवड यांचं शास्रीय शिक्षण देण्यात आलं. इंजिनिअर्स आणि स्थानिक लोकांच्या सहकार्याने हाथीपावा पहाडावर १ लाख ११ हजार समतल रेषा (कंटूर ट्रेन्स) पाणी प्रकल्प राबविले. ३५० गावांमध्ये रिचार्जींग हॅंडपंप बसविण्यात आले. ४५०० मेड बंधान, चेक डॅम, तलाव इ. च्या माध्यमातून करोडो लिटर पाणी जमिनीत मुरले आणि जमिनीतील पाण्याचा साठा वाढला. झाबुआ जिल्हा दुष्काळ मुक्त झाला. जिथे वर्षात एकदा मक्याची शेती व्हायची तिथं वनवासी लोक गव्हाची शेती करायला लागले. वर्षातून दोन पिकं घेऊ लागले.

शेतीबरोबरच त्यांना हस्तकलेचे, बांबूपासून निरनिराळ्या वस्तू तयार करण्याचे, कुंभारकामाचे शिक्षण देण्यात आले. बी-बियाणे, वनौषधी यांच्या पारंपारिक जतन करण्याच्या पध्दतीला चालना देण्यात आली.

हलमा… या लोकांचं एक वैशिष्ट्य म्हणजे ‘ एकमेका साह्य करू, अवघे धरू सुपंथ ‘या उक्तीनुसार संकटात असलेल्या भिल्ल कुटुंबाला, सर्व कुटूंबे एकत्र येऊन साह्य करतात. उदा. एखाद्याचे घर पडले तर गावातील सर्वजण एकत्र येऊन त्याचे घर उभे करून देतात.

पडजी… शेतीचे काम असेल तर ८/१० कुटुंबं एकत्र येतात आणि शेतातील कामं निपटतात.

मातानुवन… हा उत्सव वर्षातून ५/६ वेळा सर्व भिल्ल एकत्र येऊन साजरा करतात.

वृक्षारोपण… दुष्काळामध्ये झाडं लावणं बंद झालं होतं. पण आता पुन्हा वन उभारणीचे काम सुरू झाले आहे. ११० गावात ७०, ००० वर झाडे लाऊन झाली आहेत.

विशेष म्हणजे रूरकी, मुंबई, दिल्ली इ. ठिकाणच्या IIT चे विद्यार्थी इथे प्रशिक्षणास येतात.

शिवगंगा’ प्रकल्पाने फक्त जलसंवर्धनाचेच काम केले नाही तर आदिवासींचा सर्वांगीण विकास, ग्रामविकास, स्वयंरोजगार याबरोबरच जगाला पर्यावरण संरक्षणाचे उत्तम उदाहरण घालून दिले आहे.

©  सुश्री शोभा जोशी

कार्यकर्ती, जनजाती कल्याण आश्रम, पुणे महानगर. 

मो ९४२२३१९९६२ 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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