हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #232 – कविता – ☆ धूप तेज है गर्म हवाएँ…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “नया पथ अपना स्वयं गढ़ो…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #231 ☆
☆ धूप तेज है गर्म हवाएँ…☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(मेरे बाल गीत संग्रह “बचपन रसगुल्लों का दोना” से एक बालगीत)
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धूप तेज है गर्म हवाएँ
बोलो! कैसे बाहर जाएँ।
मौसम जब आए गर्मी का
सूरज जी की हठधर्मी का
सभी तरफ सूखा ही सूखा
इंतजार शीतल नरमी का,
जैसे तैसे कूलर वुलर से
हम अपने मन को समझाएँ
बोलो कैसे ……।
*
कुम्हला गए फूल गमलों के
पेड़ सभी हो गए उदासे
इधर पिया पानी कुछ पल के
बाद वही प्यासे के प्यासे,
शीतल पेय बर्फ के गोले
ये भी ताप नहीं हर पाएँ
बोलो कैसे …….।
*
माँ कहती बारी-बारी से
मौसम तो आते जाते हैं
हर मौसम में कुछ तकलीफें
तो फिर कुछ अच्छी बातें हैं,
गर्मी के कारण ही तो, बादल
नभ से पानी बरसाए
बोलो कैसे ……।
*
मिली छुट्टियाँ है गर्मी की
खेल-कूद में समय बिताएँ
लूडो, केरम साँप-सीढ़ी तो
सुबह शाम बाहर क्रीड़ाएँ,
इस्केटिंग तैराकी, कथा-कहानी
आपस में बतियाएँ
धूप तेज है गर्म हवाएँ
बोलो! कैसे बाहर जाएँ।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈