(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ लघुकथा – “खोया हुआ कुछ…”☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
-सुनो।
-कौन?
-मैं।
-मैं कौन?
– अच्छा। अब मेरी आवाज भी नहीं पहचानते?
– तुम ही तो थे जो काॅलेज तक एक सिक्युरिटी गार्ड की तरह चुपचाप मुझे छोड़ जाते थे। बहाने से मेरे काॅलेज के आसपास मंडराया करते थे। सहेलियां मुझे छेड़ती थीं। मैं कहती कि नहीं जानती।
– मैं? ऐसा करता था?
– और कौन? बहाने से मेरे छोटे भाई से दोस्ती भी गांठ ली थी और घर तक भी पहुंच गये। मेरी एक झलक पाने के लिए बड़ी देर बातचीत करते रहते थे। फिर चाय की चुस्कियों के बीच मेरी हंसी तुम्हारे कानों में गूंजती थी।
– अरे ऐसे?
– हां। बिल्कुल। याद नहीं कुछ तुम्हें?
– फिर तुम्हारे लिए लड़की की तलाश शुरू हुई और तुम गुमसुम रहने लगे पर उससे पहले मेरी ही शादी हो गयी।
-एक कहानी कहीं चुपचाप खो गयी।
– कितने वर्ष बीत गये। कहां से बोल रही हो?
– तुम्हारी आत्मा से। जब जब तुम बहुत उदास और अकेले महसूस करते हो तब तब मैं तुम्हारे पास होती हूं। बाॅय। खुश रहा करो। जो बीत गयी सो गयी।
☆ पुस्तक चर्चा ☆ विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार मारीशस निवासी रामदेव धुरंधर – लेखक – श्री पावन बख्शी ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆
☆
क्या बात है आपने तो गागर में सागर भर दिया। एक बड़े समुद्र को ऐसे समेटा कि साहित्यिक नजरे उसे नाप लें । वरना आम नजरों की क्या औकात जो समंदर को ढाँप ले। श्री रामदेव धुरंधर, मॉरीशस के प्रख्यात साहित्यकार, जिनकी कलम, न सिर्फ यथार्थ को बयाँ करती है, बल्कि ब्रह्मांड से भी यथार्थ भरी रचनाएं उतार लाती हैं।
मेरे सामने अब बारी थी कि उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में जन्मे हिमाचल को सिरमौर मान चुके, वर्तमान में सिरमौर हि.प्र. में निवास कर रहे हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ साहित्यकार श्री पवन बख्शी जी कृति “विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार मारीशस निवासी रामदेव धुरंधर” पर अपने मानोभावों को प्रस्तुत करने की।
श्री पवन बख्शी जी ने अब तक इक्कहत्तर पुस्तक लिखी है। जिनमे ग्यारह ऐसी पुस्तक लिखी जो कि हिंदी साहित्य के विद्वान् एवं विशेष लेखकों पर आधारित हैं।
मूर्धन्य लेखकों पर लिखी जाने वाली श्रृंखला को नाम दिया है विद्वन्मुक्तामणिमालिका। आज जो पुस्तक प्राप्त हुई है वह है विद्वन्मुक्तामणिमालिका -11। श्रृंखला की इस पुस्तक का शीर्षक है “विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार रामदेव धुरंधर”। अब यह पुस्तक मेरे हाथों में थी।
मुझे इस पुस्तक की समीक्षा लिखनी थी, जो कि अब मेरा मिशन था। ब्लू जे बुक्स प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर श्री धुरंधर जी का वही पुरानी शैली का चित्र था जिसे हम उनसे जुड़ी कई पुस्तकों में देखते हैं। यह चित्र धुरंधर जी के रुचिर साहित्य को व्याख्यायत करने वाला चित्र है।
पुस्तक के लेखक श्री पवन बख्शी जी के विचार पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर ही दिख जाते हैं, जब वह इस पुस्तक को श्री रामदेव धुरंधर के पूज्य पिताजी- माताजी एवं उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय देवरानी जी को समर्पित करते हुए लिखते हैं कि-
“उस माता-पिता को नमन जिन्होंने रामदेव धुरंधर को जन्म दिया। उस पत्नी को नमन, जिन्होंने रामदेव धुरंधर को दुनिया के रंजो गम से दूर रखकर उन्हें भरपूर लेखन में सहयोग किया।”
लेखक, सम्मानित साहित्यकार श्री धुरंधर के विषय में लिखते हैं कि- “आपके भीतर बैठे परमात्मा को मेरा प्रणाम”। श्री पवन बख्शी जी, श्री धुरंधर जी के प्रति गजब का आदर भाव व्यक्त करते हैं। धुरंधर जी की शान में एक पंक्ति और भी लिखते हैं कि “आपके बारे में कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है।”
आदरणीय धुरंधर जी भी श्री पवन बख्शी जी के लिए लिखने से कहां चूकते हैं। वे अपने शुभकामना संदेश “पुस्तक : विश्व प्रसिद्ध गिरमिटिया साहित्यकार मारीशस निवासी रामदेव धुरंधर” में लिखते हैं – “इस शीर्षक से मेरा मानना है कि पवन बख्शी जी ने मुझे इस तरह प्रेरित किया कि इस कृति के लिए सहयोग करता जाऊं। तब तो निश्चित ही दो नाम एक दूसरे के पूरक जाएंगे, वे नाम है पवन बख्शी एवं रामदेव धुरंधर।”
अंत में श्री धुरंधर जी जी लिखते हैं – पवन बख्शी ने एक नए अंदाज में मुझ पर आधारित इस कृति का प्रणयन किया है।”
अपने इस शुभकामना आलेख में – श्री धुरंधर जी, श्री पवन बख्शी जी के अतिरिक्त डॉ राम बहादुर मिश्रा जी, श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस (मेरी) की चर्चा करते हैं। इसके अलावा श्री रामदेव धुरंधर जी डॉक्टर दीपक पाण्डेय और डॉ नूतन पाण्डेय जी का जिक्र बड़े ही स्नेह और सम्मान भाव से करते हैं, साथ ही साथ उनके द्वारा सम्पादित ऐतिहासिक कृति रामदेव धुरंधर की रचनाधार्मिता का हवाला भी देते हैं।
इन नामो के अतिरिक्त श्री राम किशोर उपाध्याय जी, डॉ. हरेराम पाठक जी, डॉ जयप्रकाश कर्दम जी, की भी चर्चा करते हैं। श्री रामदेव धुरंधर जी का ऐतिहासिक उपन्यास पथरीला सोना भी इस लेख के केंद्र में है।
श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस (स्वयं) की खुशी यह है कि- “मैं इस पुस्तक का सारथी बना” शीर्षक से छपा मेरा यह लेख मेरे चित्र के साथ है। यह लेखक एवं साहित्यकार जिनके विषय में पुस्तक लिखी गयी है, दोनों की ही भावना को दर्शाता है। श्री श्रेयस (मै) बक्शी जी के विषय में लिखते हैं – जिस स्वभाव या प्रकृति का व्यक्ति होता है ईश्वर उसकी मिलन वैसे ही स्वभाव के व्यक्तियों से कर देता है।
“ऐसे ही मेरी मुलाकात स्वच्छ एवं साहित्यिक हृदय के साहित्यकार श्री बख्शी जी के साथ होनी थी”।
लेखक ने अपनी इस पुस्तक के पांच पृष्ठों में धुरंधर जी के लेखकीय कृतित्व और उनके सम्मानों की खूब चर्चा करते है। यह पृष्ठ शोधार्थियों के लिए अति उपयोगी होंगी, ऐसा मेरा मानना है।
अपने स्वयं के आलेख “खुशी के वो क्षण जब सपना साकार हुआ” में श्री बक्शी जी, भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं महामहिम पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे कलाम जी के साथ अपने चित्र को साझा करते हैं, जिसमें वह उनकी किसी एक कृति का विमोचन करते हैं।
इसी आलेख में लेखक जब एक पुस्तक किसी विदेशी लेखक के कृतित्व व्यक्तित्व पर लिखना चाहता है तो फिर नाम आता है रामदेव धुरंधर जी का इसका जिक्र बड़े ही सुन्दर ढंग से किया गया हैं।
श्री धुरंधर जी पर लिखने की प्रेरणा के लिए वे मेरा और डॉ. राम बहादुर मिश्रा जी का नाम प्रोत्साहन कर्ता के रूप देते हैं। यह तो सिर्फ उनकी उदारता हुई वरना, ऐसे बड़े साहित्यकार के लिए यह सामान्य सी बात है।
पुस्तक का पृष्ठ 19, 20, 21 और 22 श्री धुरंधर जी के जन्म से लेकर उनके लेखन की दुनिया की कहानी कुछ ही पन्नों में समेट देती है।
लेखक ने श्री रामदेव धुरंधर अन्य मित्रों से संपर्क भी किया और फिर धुरंधर जी के विषय में जो गूढ़तम और कुछ ऐसी बातें जो कि आम लोगों तक अभी तक नहीं पहुंची है उसको भी खोज निकाला, जो कि इस पुस्तक का एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं मजबूत पक्ष है।
प्रख्यात समीक्षक एवं भुवनेश्वर में रहकर रचनाकर्म कर रहे विजय कुमार तिवारी जी का आलेख रामदेव जी की दिनचर्या और उनकी रचनाशीलता पर आधारित है।
किसी साहित्यकार के संस्मरण उस साहित्यकार के मन के भाव एवं उसके लेखकीय शैली को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं।
लेखक ने कुछ पुस्तकों से, कुछ विद्वान् साहित्यकारों से बात कर के और ज्यादा से ज्यादा सीधे-सीधे श्री धुरंधर जी से संपर्क कर संस्मरण जुटाये है। यह श्री पवन बक्शी जी की इस पुस्तक को लाने के प्रति गहरी रुचि को दर्शाता है।
श्री रामदेव धुरंधर ने “मौत नामा”, “भुवन चाचा के बारे में”, “डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉक्टर शिवमंगल सिंह सुमन से संबद्ध एक भावभीना संस्मरण “एवं तुम्हें नमन मेरे पिता” जैसे संस्मरण देकर, इस पुस्तक की गरुता को बढ़ाया है।
श्री राम बहादुर मिश्रा जी ने श्री पवन बक्शी जी से कहा आप श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ जी से मिले रामदेव धुरंधर जी से जुडी बहुत सारी जानकारियां आपके पुस्तक के लिए मिल जाएगी। श्रेयस (मैने) भी इसे गुरबचन मान लिया। राजेश श्रेयस डॉ राम बहादुर मिश्र को अपना गुरु मानते हैं। अतः इस आदेश को उन्होंने माथे पर ओढ़ लिया। फिर क्या दो संस्मरण (मेरे लेखन का भगवान, एवं जब स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने मोटर रुकवा कर मुझे अपने साथ गाड़ी में बैठा लिया, जो श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस के शब्दों में है, इस पुस्तक के अंश बन जाते हैं।
श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस (मै) जो अक्सर उनसे संवाद करते रहते हैं उनके संवादों को सीधे सीधे शब्दों में पिरो कर साहित्य का स्वरूप दे देते हैं तो एक शीर्षक निकलकर आता है “हमारा साहित्य, भाषा, बोली और संस्कृति”।
श्री धुरंधर जी के साथ वार्ता के दौरान भोजपुरी की एक पंक्ति का जिक्र भी श्रेयस ने किया है कि – बात की बात में श्री धुरंधर जी मॉरीशस में अपने गांव की किसी घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि “फलनवा बड़ा अगरात रहल”।
श्री धुरंधर जी के मुंह से भोजपुरी शब्द अगराना सुनकर श्रेयस आश्चर्य चकित होते है। श्री राजेश जी (स्वयं) का यह लेख बताता है कि श्री धुरंधर जी भाषायी रूप से किस प्रकार भारत से जुड़े है।
श्री रामदेव धुरंधर जी के अभिन्न मित्रों में एक नाम आता है श्री राम किशोर उपाध्याय जी का। श्री उपाध्याय जी श्री रामदेव धुरंधर जी के विषय में लिखते हुए अपने आलेख का शीर्षक देते हैं – “रामदेव धुरंधर की रचना के विषय और शिल्प दोनों के प्रति सतर्क है” अपने इस आलेख के माध्यम से श्री उपाध्याय जी ने श्री धुरंधर जी के रचना संसार के हर पक्ष को स्पर्श किया है।
भारत के श्रेष्ठ समीक्षकों में से एक श्री विजय कुमार तिवारी जी का आलेख “दुनिया में एक ही है रामदेव धुरंधर” के माध्यम से तिवारी जी श्री धुरंधर जी के ही शब्दों को उतारते हुए लिख देते हैं कि- अपने जीवन व लेखन के बारे में उन्होंने कहा कि “साधारण ग्राम्य अंचल में जन्म पाकर में यही उम्र की सीढ़ियां चढ़ता गया। “
मैंने अपने इस ग्रामीण मां की गोद में बैठकर अपने जीवन की धूप छांव को जाना है। श्री रामदेव धुरंधर के ये शब्द उनके गांव के प्रति प्रेम को दर्शाते हैं।
भारत में श्री रामदेव धुरंधर के साहित्य पर लिखा ऐतिहासिक ग्रंथ “रामदेव धुरंधर की रचना धर्मिता” सहित सर्वाधिक (पांच) साहित्यिक कृतियाँ देने वाले, एवं श्री रामदेव धुरंधर जी के अतिशय प्रिय साहित्यकार दम्पति डॉ. दीपक पाण्डेय एवं डॉ. नूतन पाण्डेय जी (सहायक निदेशक केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली) ने इस पुस्तक के लिए अपना सर्वाधिक लोकप्रिय आलेख “लघु कथाएं- रामदेव धुरंधर की लघुकथाओं का वैशिष्टय को इस पुस्तक में समाहित करने की सहमति देकर इस पुस्तक की गरिमा को बढ़ा दिया है।
भोपाल मे रहकर साहित्य सृजन करने वाले विद्वान साहित्यकार श्री गोवर्धन यादव का श्री धुरंधर जी के साथ लिया गया साक्षात्कार, श्री रामदेव धुरंधर जी का व्यक्तित्व और कृतित्व धुरंधर जी के साहित्यिक एवं व्यक्ति का जीवन से जुड़े लगभग हर पक्ष को बेबाकी से रखने का सामर्थ्य रखता है।
श्री धुरंधर जी का ऐतिहासिक उपन्यास पथरीला सोना इस पुस्तक के अधिकांश हिस्सों में रमण करते हुए कहता है कि भारत से मॉरीशस पहुंचे भारतीयों की दास्तान साहित्यिक दृष्टि से दोनों देशों के साहित्यकारों के लिए कितना महत्व रखती है।
श्री रामदेव धुरंधर जी का यह सप्त खंडीय उपन्यास अतीत को वर्तमान से जोड़ने वाला, मारिशस में भारतीय संस्कृति और संस्कारों को संरक्षित रखने वाला सफलतम ऐतिहासिक और लोकप्रिय उपन्यास है।
अपनी इस पुस्तक में लेखक ने धुरंधर जी के दो लोकप्रिय कहानियों को यात्रा कराया है, जैसे -छोटी उम्र का सफर, ऐसे भी मांगे वैसे भी मांगे, किसी से मत कहना। इसके अतिरिक्त कई कहानी संग्रह के आवरण चित्र इस पुस्तक की शोभा बढ़ा रहे है, जैसे – विषमंथन, जन्म की एक भूल, अंतर मन, रामदेव धुरंधर संकलित कहानियां, अंतर्धारा, अपने-अपने भाग्य दूर भी पास भी, उजाले का अक्स।
श्री रामदेव धुरंधर की लघु कथाओं का संग्रह और उसके आवरण पृष्ठ के चित्र (प्रकाशन वर्ष के साथ) इस पुस्तक को और भी सजाते हैं, जैसे -चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आसमान, आते जाते लोग, मैं और मेरी लघु कथाएं।
इस पुस्तक में लेखक ने रामदेव धुरंधर की कुछ लघु कथाओं को भी सीधे सीधे डाला है। जैसे – कल्पित सत्य, कुछ पल के साथ ही, अपना ही भंजक, सोने का पिंजरा, चोर दरवाजा अनदेखा सत्य, आत्म मंथन, खामोश तूफान, महात्मा, जगमग अंधेरा।
श्री रामदेव धुरंधर सुधी व्यंग्यकार भी है। लेखक ने उनके लोकप्रिय व्यंग आलेख “अकेली दुकेली चिरैया को” इस साहित्यिक कृति के डाल पर बैठा कर इस कमी को पूर्ण किया है। श्री रामदेव धुरंधर के व्यंग कृतियों के कुछ आवरण चित्र भी इस पुस्तक में डाले गए हैं जिसमें – कलयुगी करम धरम, बंदे आगे भी देख, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, कपड़ा उतरता है।
श्री रामदेव धुरंधर के नाटक संग्रह प्रवर्तन और जहां भी आदमी का आवरण चित्र यह बताने के लिए काफी है कि धुरंधर जी ने नाट्यसाहित्य में भी अपनी बेजोड़ कलम चलाई है।
श्री रामदेव धुरंधर को गद्य क्षणिका का अन्वेषक माना जाता है।
आपकी गद्य क्षणिकाएं इतनी लोकप्रिय हुई, साहित्यकार मन की जुबान बन गयीं। श्री पवन बक्शी जी ने कुछ एक क्षणिकाओ को भी इस पुस्तक में उद्धरित किया है। कुछ गद्य क्षणिकाओ के संग्रह के आवरण पृष्ठ के चित्र जैसे – गद्य क्षणिका एक प्रयोग, छोटे-छोटे समंदर, तारों का जमघट को पुस्तक में डाले हैं।
श्री धुरंधर जी का गद्य क्षणिकाओ को लेकर एक और प्रयोग किया है, जिसमें 80 से कम शब्दों का प्रयोग किया गया है। लेखक ने इस पुस्तक में कुछ ऐसी क्षणिकाएं भी डाली हैं।
श्री पवन बख्शी जी ने रामदेव धुरंधर के पुरस्कार सम्मानो को नाम एवं वर्ष के अनुरूप न सिर्फ क्रमबद्ध तरीके से पुस्तक में छापा है बल्कि उन पुरस्कार और सम्मानों के चित्र भी प्रदर्शित किए हैं। ऐसा करके श्री पवन बख्शी जी ने साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले शोधार्थियों एवं साहित्यकारों के लिए श्री धुरंधर जी के साहित्य को समझने के लिए और भी आसानी प्रदान की है।
श्री धुरंधर जी की क्षणिकाएं अक्सर रामदेव धुरंधर जी के फेसबुक पेज पर आती है, तो उनके नियमित पाठक भी उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने से नहीं चूकते हैं।
“पुस्तक में सृजन के सेतु मित्रों के स्वर” शीर्षक से कुछ पाठकों की टिप्पणियों को भी स्थान दिया गया है जिसमे कुछ नियमित पाठकों में श्री राजनाथ तिवारी, श्री राम किशोर उपाध्याय, श्री महथा रामकृष्ण मुरारी, श्री राजेश सिंह, श्री वल्लभ विजय वर्गीय, श्री रामसनेही विश्वकर्मा, कुमार संजय सुमन श्री उपाध्याय, इंद्रजीत दीक्षित, दिलीप कुमार पाठक, सनत साहित्यकार, सौरभ दुबे, संजय पवार की टिप्पणीयाँ शामिल है।
श्री पवन बख्शी जी ने अपनी इस पुस्तक में श्री रामदेव धुरंधर जी को देश विदेश के बड़े बड़े साहित्यकारों के साथ चित्रों को भी दर्शाया है। इसकी अतिरिक्त श्री धुरंधर जी के पारिवारिक चित्रों को भी इस पुस्तक में खूब स्थान दिया गया है।
श्री धुरंधर जी अपनी पत्नी देवरानी जी को बहुत ही मान देते रहे हैं। उनसे जुड़े हुए संस्मरण पर आधारित लेख रामदेव की जुबानी रामदेव की देवरानी इस पुस्तक का अंश बनी हुई है।
भारत यात्रा के दौरान ताजमहल के सामने खड़े होकर श्री धुरंधर दंपति का चित्र भी इस पुस्तक को पूर्णता प्रदान कर रहा है।
साहित्यिक जीवन के सत्तर से अधिक सालों बाद का एक ऐसा शुभ संयोग जब मुझे रामदेव धुरंधर जी द्वारा साझा किया हुआ वह डाटा प्राप्त हुआ जिसमें उनके परदादा भारत के कोलकाता बंदरगाह से मॉरीशस आए थे। इस दस्तावेज के अनुसार धुरंधर जी के पूर्वजों की जन्मस्थली तात्कालिक जनपद गाजीपुर परगना बलिया जो वर्तमान जनपद बलिया, के गांव गंगोली में है का पता चलता है। राजेश श्रेयस (मेरे) द्वारा तैयार किए गए इस आलेख को “मॉरीशस साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर के पुर्वजों का गांव गंगोली बलिया उत्तर प्रदेश (भारत) राजेश सिंह की एक खोज” शीर्षक से इस पुस्तक में छापकर श्री पवन बख्शी ने इस बड़ी उपलब्धि को स्थायी मुकाम प्रदान कर दिया है।
पुस्तक के अंतिम चरण में डॉ जितेंद्र कुमार सिंह ‘संजय’ (लेखक एवं प्रकाशक ) ने श्री पवन बक्शी जी का बृहद परिचय कराया है। साथ ही साथ उनकी इक्कहत्तर कृतियों को आम पाठकों के सामने लाकर रख दिया है।
इस कृति के लेखन के बाद श्रेष्ठ साहित्यकार आदरणीय पवन बख्शी जी कहते हैं। अब जब कोई मुझसे मारीशस के साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी के बारे में पूछना या जानना चाहेगा, तो मैं कहूंगा कि लीजिए श्रीमान! 222 पृष्ठों की यह पुस्तक आपको सब कुछ बता देगी।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी
प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२१ ☆ श्री सुरेश पटवा
हम लोग जैसे-जैसे सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे थे, पसीना से तरबतर होते जा रहे थे। अंत में तीखी चढ़ाई पर पेड़ों की मौजूदगी भी कम होती जा रही थी। तक़रीबन सौ-सवा सौ सीढ़ियाँ बची होंगी। वहाँ सीधी चढ़ाई पर भारी भीड़ अटी थी। चढ़ने वाले और उतरने वाले दोनों आमने-सामने अड़े थे। उनमें ध्यानु-ज्ञानु बकरों का विवेक नहीं था कि एक दूसरे को राह देकर निकल जाएँ। सीढ़ियों के आजूबाजू बहुत बड़े पत्थरों के ढेर थे। जिन पर बंदरों का हुजूम था। एक बंदर ने बच्चे के हाथ से कोल्ड ड्रिंक की बोतल छुड़ा, ढक्कन खोल गटागट पीना शुरू किया तो लोगों ने फोटो निकालना शुरू कर दिया। मानों पुरखों की पेप्सी पसंदगी को सहेजना चाहते हों। भीड़ इंच भर भी नहीं खिसक रही थी। ऊपर आंजनेय पहाड़ी पर जय हनुमान के जयकारे के साथ घंटों की टंकार ध्वनि गूँज रही थी। एक लाउड स्पीकर पर हनुमान-चालीसा चल रहा था। भक्त भी उसकी ध्वनि में ध्वनि मिला रहे थे कि शायद इस मुश्किल से मुक्ति मिल जाए।
एक प्रश्न मन में आया कि हम लोग तो हनुमान-चालीसा पढ़-सुन कर कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की राह देखते हैं। जब हनुमान जी पर मुश्किल आती थी तो वे बुद्धि-विवेक से राह तलाशते थे। जब बुद्धि-विवेक से संजीवनी बूटी सूझ नहीं पड़ी तो समूचा पर्वत उठा लाए थे। भूखी-प्यासी भीड़ निजात की राह तलाशते खड़ी थी। तभी उतरती भीड़ के कुछ युवक चट्टानों के बीच से रास्ता बना नीचे की तरफ़ उतरने लगे। हमने भी इसी तरह की कोशिश सोची। बाईं तरफ जूते-चप्पलों का एक छोटा सा ढेर दिखा। कई भक्त शनिवार को दर्शन करने आते हैं तो अपने जूतों के साथ शनि की बुरी दशा को भी उतार कर फेंक जाते हैं।
शनिदेव से जुड़ी से जुड़ी एक और परिपाटी है कि शनिदेव को तेल का दान करने से शनि के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है। जो लोग ये उपाय नियमित रूप से करते हैं, उन्हें साढ़ेसाती और अढय्या से भी मुक्ति मिलती है। लेकिन शनिदेव तेल चढ़ाने से क्यों प्रसन्न होते हैं।
ऐसी मान्यता है कि रावण की क़ैद में शनिदेव काफी जख्मी हो गए थे, तब हनुमान जी ने शनिदेव के शरीर पर तेल लगाया था जिससे उन्हें पीड़ा से छुटकारा मिला था। उसी समय शनि देव ने कहा था कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। इसको लेकर कथा प्रचलित है कि रावण ने सभी नौ ग्रहों को बंदी बना रखा था। शनिदेव को उल्टा लिटा कर उनकी पीठ पर पैर रख सिंहासन पर बैठता था। शनिदेव ने रावण से विनती की “हे राजन, मुझे चित लिटा कर मेरे ऊपर पैर रखकर बैठिए, मैं कम से कम आपके मुखारबिंद का दर्शन लाभ प्राप्त करता रहूँगा। विनाशकाले विपरीत बुद्धि कहावत चरितार्थ करते रावण ने शनिदेव को चित लिटा लिया। शनिदेव की वक्रदृष्टि रावण के चेहरे पर पड़ती रही। यहीं से रावण के अंत की शुरुआत होती है।
हनुमान द्वारा मुक्ति के समय शनिदेव ने कहा था कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उस पर मेरी वक्रदृष्टि नहीं पड़ेगी। उसे सारी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। एक साथी ने उत्कंठा वश जानना चाहा, क्या ऐसा होता है।
हमने कहा- एक चीज होती है- श्रद्धा और दूसरी चीज उसी से उपजती है- विश्वास। जब आपको हनुमान जी पर श्रद्धा है तो उनके कार्यों पर विश्वास भी होगा ही। नहीं तो विकलांग श्रृद्धा किसी काम की नहीं होती। पूरे भारत में शनिवार को शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है। यह इसी पौराणिक आख्यान में विश्वास का द्योतक है और इन्ही विश्वासों से किसी देश की संस्कृति जन्म लेती है। आधुनिक मनोविज्ञान मानता है कि मुश्किलों से पार पाने में आत्म-विश्वास बड़े काम की चीज होता है।
हमने भी आत्म-विश्वास पूर्वक जूतों के ढेर पर से चलते हुए सीढ़ियों से हटकर रास्ता बनाया। पंद्रह मिनट में पर्वत की चोटी पर थे। दो साथी भी उसी तरीक़े से ऊपर पहुँच गए। ऊपर से नीचे सीढ़ियों की तरफ़ देखा तो हमारा दल बुरी तरह गसी भीड़ में पैवस्त था। किसी भी तरफ़ निकल नहीं सकता था। उन्हें भीड़ के साथ ही चींटी चाल से खिसक कर चढ़ना था।
हमको भूख लगी थी। एक जगह नारियल से नट्टी निकालने का उपक्रम चल रहा था। कुछ महिलाएं भक्तों का नारियल पत्थरों से कूट कर निकाल एक हिस्सा अपने पास रख बाकी भक्तों को दे देती थीं। हम उनके नज़दीक उनके नारियल निकालने की कला को देखते बैठ गए। एक भक्त हमको भी नारियल से नट्टी निकालने को देने लगे तो हमने तनिक देर सोचा, और नारियल लेकर पत्थरों की दो चोट से गूदा बाहर करके एक हिस्सा उन्हें पकड़ा दिया। दूसरा नीचे रख लिया। फिर तीन-चार भक्त और आ गए। करीब दसेक मिनट यह धंधा चला। भूख मिटाने योग्य नारियल को नल के पानी से धोया और चबाते रहे। कुछ भक्त प्रसाद में मीठी चिरौंजी दे गए। नारियल और चिरौंजी के ग्लूकोस से प्रफुल्लित हो, दल के साथियों के आने तक पहाड़ी से नीचे तुंगभद्रा नदी के आलिंगन में बसे हनुमानहल्ली गांव के साथ सुंदर दृश्यावली का आनंद लिया।
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “त्याग पत्र उर्फ इस्तीफा…“।)
अभी अभी # 653 ⇒ त्याग पत्र उर्फ इस्तीफा श्री प्रदीप शर्मा
भोग से विरक्ति को त्याग कहते हैं, और पद से त्याग को त्याग पत्र कहते हैं। जिस तरह निवृत्ति से पहले प्रवृत्ति आवश्यक है, उसी प्रकार त्याग पत्र से पहले किसी पद पर नियुक्ति आवश्यक है। सेवा मुक्त भी वही हो सकता है जो कहीं सेवारत हो। सेवा से रिटायरमेंट और टर्मिनेशन से बीच की स्थिति है यह त्याग पत्र।
सेवा चाहे देश की हो अथवा समाज की, शासकीय हो अथवा गैर सरकारी, जिसे आजकल सुविधा के लिए प्राइवेट जॉब कहते हैं।
जॉब शब्द से काम, धंधा और मजदूरी की गंध आती है, जब कि सेवा शब्द में ही त्याग, सुकून और चारों ओर सुख शांति नजर आती है। शासकीय सेवा, भले ही सरकारी नौकरी कहलाती हो, लेकिन कभी शादी के रिश्ते की शर्तिया गारंटी कहलाती थी। लड़का शासकीय सेवा में है, यह एक तरह का चरित्र प्रमाण पत्र होता था। ।
वैसे तो सेवा अपने आप में एक बहुत बड़ा त्याग है, लेकिन कभी कभी परिस्थितिवश इंसान को इस सेवा से भी त्याग पत्र देना पड़ता है। जहां अच्छे भविष्य की संभावना हो, वहां वर्तमान सेवा से निवृत्त होना ही बेहतर होता है। ऐसी परिस्थिति में औपचारिक रूप से त्याग पत्र दिया जाता है और साधारण परिस्थितियों में वह मंजूर भी हो जाता है। आधी छोड़ पूरी का लालच भी आप चाहें तो कह सकते हैं।
एक त्याग पत्र मजबूरी का भी होता है, जहां आप व्यक्तिगत कारणों के चलते, स्वेच्छा से त्याग पत्र दे देते हैं। लेकिन कुछ देश के जनसेवकों पर लोकसेवा का इतना दायित्व और भार होता है, कि वे कभी पद त्यागना ही नहीं चाहते। अतः उनके पद भार की समय सीमा बांध दी जाती है। उस समय के पश्चात् उन्हें इस्तीफा देना ही पड़ता है।।
जो सच्चे देशसेवक होते हैं, वे कभी देश सेवा से मुक्त होना ही नहीं चाहते। जनता भी उन्हें बार बार चुनकर भेजती है। ऐसे नेता ही देश के कर्णधार होते हैं। इन्हें सेवा में ही त्याग और भोग के सुख की अनुभूति होती है।
लेकिन सबै दिन ना होत एक समाना। पुरुष के भाग्य का क्या भरोसा। कभी बिल्ली के भाग से अगर छींका टूटता है, तो कभी सिर पर पहाड़ भी टूट पड़ता है। अच्छा भला राजयोग चल रहा था, अचानक हायकमान से आदश होता है, अपना इस्तीफा भेज दें। आप हवाले में फंस चुके हैं। ।
एक आम इंसान जब नौकरी से रिटायर होता है तो बहुत खुश होता है, अब बुढ़ापा चैन से कटेगा। लेकिन एक सच्चा राजनेता कभी रिटायर नहीं होता। राजनीति में सिर्फ त्याग पत्र लिए और दिए जाते हैं, राजनीति से कभी सन्यास नहीं लिया जाता।
आज की राजनीति सेवा की और त्याग की राजनीति नहीं है, बस त्याग पत्र और इस्तीफे की राजनीति ही है। जहां सिर्फ सिद्धांतों को त्यागा जाता है और अच्छा मौका देखकर चलती गाड़ी में जगह बनाई जाती है।
अपनों को छोड़ा जाता है, और अच्छा मौका तलाशा जाता है। जहां त्याग पत्र एक हथियार की तरह इस्तेमाल होता है, और इस्तीफा, इस्तीफा नहीं होता, धमाका होता है।।
☆ व्यंग्य ☆ वी आर एस की रजत जयंती… ☆ श्री अ. ल. देशपांडे ☆
पच्चीस साल की बेदाग़ सेवाएँ देने के उपरांत बैंक ने हमारे उत्साहवर्धन एवं चुस्त दुरुस्त सेवाएँ देने की हमारी परम्परा को उज्जवल बनाए रखने हेतु चाँदी की तश्तरी से हमें सम्मानित करने का निर्णय लिया था। हालाँकि सराफ़े की अलग अलग 3 दुकानों से हमने ही तीन कोटेशन भरी धूप में तीन दिन में प्राप्त किए थे। हमारे मित्र श्रीवास्तव जी ने एक ही दुकान से अलग अलग लेटर हेड पर तीन कोटेशन तीन मिनट में प्राप्त कर के हमारे पहले ही प्रस्तुत कर हमें व्यवहार ज्ञान सीखने हेतु प्रेरित किया था। कोटेशन प्रस्तुत करने के बाद एक दुकान से चाँदी की तश्तरी ख़रीदने हेतु हमें स्वीकृति मिली थी।
सोने चाँदी की दुकान हमने इसके पहले कभी देखी नहीं थी ना सोना चाँदी। वैसे बचपन में मेरे कान में सोने की बाली तथा पैर में चाँदी का कड़ा था ऐसे घर के बुजुर्ग बताते हैं। हमारे ब्याह के समय पत्नी ने जो गहने मायके से लाए थे वही हमारी संपत्ति थी। इसमे हम रिटायर्ड होने तक कोई इज़ाफ़ा नहीं कर पाए। वास्तव में हमारी सोने जैसी बहुमूल्य पत्नी में ही मुझे अधिक विश्वास था तथा है अतः सोने चाँदी की दुकान की दहलीज़ हमने लांघी नहीं थी।
हमारी जेब मे एक दिन पूर्व, बैंक खाते से आहरित रुपये एक हज़ार मात्र जो रखे थे, का उपयोग कर एक चमचमाती हुई तश्तरी ख़रीदी थी एवं दूसरे दिन तश्तरी तथा रीएमबर्समेंट हेतु पक्की रसीद मैनेजर साहब को सौंप दी थी। उन्होने रसीद रख ली तथा बोले तश्तरी की क्या ज़रूरत है यह तो आप रख लो। मैं असमंजस में पड़ गया मुझे लगा की शाखा में सम्मान समारोह होगा, फूल मालाएँ पड़ेंगी गले में, समोसा रसगुल्ला रहेगा प्लेटों में। मैंने ज़िक्र किया तो मैनेजर साहब बोले “पंडितजी! कहाँ लगे हो? फूल मालाओं के पीछे! आपको समझता नहीं, एक टुकड़ा फेंक कर आपको मार्च के महीने में फूल बनाया जा रहा है।
मैंने मैनेजर सहाब का अधिक क़ीमती समय ज़ाया न करते हुए लाल रंग की पन्नी में लिपटी हुई तथा सुनहरे डिब्बे से सुसज्जित चाँदी की चमचमाती प्लेट को घर ले आया। श्रीमती तथा बच्चों को यह उपहार देखकर बेहद प्रसन्नता हुई। उन्हें अब बताया गया कि यह सब हमारी बेदाग़ पच्चीस वर्ष की बैंक सेवा का उपहार है। सब को इस बात पर प्रसन्नता हुई कि रोज़ रात्रि साढ़े आठ/ नौ बजे हमारे पति/पापा बैंक से लौटा करते थे तथा अवकाश के दिनों में दोपहर का खाना भी घर में चैन से नहीं खा पाते थे, को सम्मानित किया गया है। घर का वातावरण एकदम प्रसन्न हो गया। हमने उसी दिन तुरंत बच्चों के साथ बाज़ार जाकर एक अच्छी सी फ्रेम में तश्तरी मढवाने हेतु दुकान में दी। दूसरे दिन वह फ्रेम तथा भगवान बजरंग बली का एक और फ्रेम ख़रीद कर (जो हमें आज तक शक्ति प्रदान करते आ रहे थे) उसे अपने शयनकक्ष में स्थापित किया। सोते तथा जागते समय हमें तश्तरी एवं भगवान अंजनीसुत के दर्शन नियमित रूपसे होने लगे। पच्चीस वर्षों से तन मन तथा ईमानदारी से हम जो सेवाएं देते आ रहे थे उसमें चाँदी की तश्तरी देखकर और इज़ाफ़ा होता रहा। अब हमें विश्वास हो गया कि चाँदी, सोना तथा धन इसका मोह छोड़ने के लिए यह तश्तरी हमें प्रेरित कर रही है।
देखते देखते 31/03/01 को हम आज तक की बची हुई सर्विस बेदाग़ पूरी कर वीआरएस के अंतर्गत सेवानिवृत्त हो गए। 1 अप्रैल को जब हम सुबह स्वास्थ्य लाभ हेतु टहल रहे थे तो मोहल्ले के एक बुजुर्ग ने हमें पास आकर धीरे से पूछा “कितने लाख मिले हैं?” हमने आख़िर तक हमारी कुल जमा प्राप्ति के बारे में मोहल्ले के बुजुर्गों को हवा नहीं लगने दी थी अतः वे हम से पूर्व में जितना स्नेह रखते थे उससे ज़्यादा दूरी रखने लगे। हिक़ारत की नज़र से देखने लगे। वीआरएस की इस प्राप्ति से हमारे प्रगाढ़ संबंधों में दरार सी पढ़ने लगी। एक बुज़ुर्ग का ब्लड प्रेशर हमें प्राप्त राशि की सही जानकारी उन्हें न देने के कारण बढ़ गया था तथा नॉर्मल होने की संभावना दूर दूर नज़र नहीं आ रही थी।
हमने सोचा कि हमारी कुल जमा प्राप्ति के बारे में मोहल्ले के बुजुर्गों को बताना इतना आवश्यक हो गया है? इसके पहले प्रतिवर्ष बंद लिफ़ाफ़े में हमारी संपत्ति का विस्तृत ब्योरा बैंक को देने की परंपरा का निर्वाह हम बख़ूबी करते आए थे। लेकिन इन बुज़ुर्गों के समक्ष हमें अपने वीआरएस की प्राप्ति का लिफ़ाफ़ा खोलकर रखना आवश्यक हो गया था जिससे हमारे संबंधों में सुधार परिलक्षित हो।
हमने पेंशनर्स फ़ोरम में, (भोर में चहल कदमी करने वाला झुंड) उनके बहुत ज़ोर देने पर सही सही बताया कि 14.32 प्राप्त हो गए हैं। फ़ोरम के महानुभावों के चेहरे पर हमें प्रसन्नता की लकीर नहीं दिखाई दी उन्होंने अच्छा अच्छा कहकर हमें आगे बढ़ने दिया। मैं पेड़ की आड़ में खड़ा होकर बुजुर्ग वाणी की आहट पाने उत्सुकत था। आपस में वे बतिया रहे थे ‘फला दुबे जी कह रहे थे कि उन्हें 30, श्रीवास्तव जी को 50 और पांडे जी को 40 लाख प्राप्त हुए हैं तथा उन सबने केवल बैंक एफ़डी में ही सब पैसा रखा है। अरे! यह पंडत झूठ बोल रहा है। निकम्मे थे सभी , तभी तो बैंक ने इन्हें वीआरएस में मुक्ति दिलायी है।
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 272 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – परीक्षाओं से डर मत मन…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 220 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – परीक्षाओं से डर मत मन… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆