हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 26 ☆ प्रभात ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी के मौलिक मुक्तक / दोहे   “प्रभात ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 26 ☆

☆ प्रभात ☆

सौगात

सूरज की यह लालिमा,देती सुखद प्रभात

खगकुल का कलरव मधुर,पूरब की सौगात

 

लालिमा

देख उषा की लालिमा,मन हर्षित हो जाय

करते सूरज को नमन,दिल से अर्घ चढ़ाय

 

पूरब

पूरब दिशा सुहावनी,पूरब घर का द्वार

उत्तम फल मिलता सदा,दूर भगे अँधियार

 

सूरज

सूरज की गर्मी सदा,करती नव बरसात

जिसके दिव्य प्रकाश से,डरती है यह रात

 

खगकुल

खगकुल की महिमा बड़ी,उनके रूप अनेक

देते संदेशा सुबह,काम करें सब नेक

 

प्रभात

प्रथम नमन माता-पिता,फिर प्रभात -सत्कार

करते जो उनके यहाँ,खुशियाँ सदाबहार

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ छत्रपति शिवजी जयंती विशेष – अमर जाहला छत्रपती.. ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आज प्रस्तुत है  छत्रपति शिवजी जयंती पर विशेष  कविता  “अमर जाहला छत्रपती.. “ )

 ☆ छत्रपति शिवजी जयंती विशेष –  अमर जाहला छत्रपती.. ☆

 

मर्द मराठी काळजात या

अमर जाहला छत्रपती.

माय जिजाऊ पोटी जन्मला

स्वराज्य रक्षक… हा नृपती ..(१)

 

गनिमी कावा शस्त्र घेऊनी

दिले  अभय ते रयतेला.

शौर्य, शक्तीचे मूर्त रूप तू

मावळ माती. .. दिमतीला..  (२)

 

प्रचंड गडी त्या स्वराज तोरण

इतिहासातील सुवर्ण चांदी .

माता, भगिनी, जाण ठेवली

रायगडी त्या. . .   स्वराज्य नांदी.. (३)

 

गडकोटांची हीच निशाणी

पराक्रमाची गाते गाथा

गड राखिले , गडी अर्पिले

दिगंत कीर्ती. . .  झुकतो माथा…  (४)

 

औरंग्याला जेरीस आणूनी

पाणी पाजले यवनाला

असा शिवाजी होणे नाही

काळ सांगतो . . . काळाला …(५)

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Yoga Asanas: Shashank Bhujangasana – Video #5 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Yoga Asanas: Shashank Bhujangasana ☆ 

Video Link >>>>

YOGA: VIDEO #5 

 

VAJRASANA, USHTRASANA, SUPTA VEERASANA

This video demonstrates the following yoga asanas:

Vajrasana (thunderbolt pose),

Shashankasana (hare pose),

Shashank Bhujangasana (striking cobra pose),

Ardha Ushtrasana (half camel pose),

Ushtrasana (camel pose),

Veerasana (hero’s pose) and

Supta Veerasana (reclining hero pose).

 

Caution: This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.

Music:

Virtues Inherited, Vices Passed On by Chris Zabriskie is licensed under a Creative Commons Attribution licence (https://creativecommons.org/licenses/…)

Source: http://chriszabriskie.com/reappear/

Artist: http://chriszabriskie.com/

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (28) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्‌।

प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ।।28।।

शस्त्रों में मैं वज्र हॅू कामधेनू हूँ गाय

प्रजनन में मैं काम हूँ वासुकि सर्प निकाय।।28।।

भावार्थ :  मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोक्त रीति से सन्तान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि हूँ।।28।।

 

Among weapons I am the thunderbolt; among cows I am the wish-fulfilling cow called Surabhi; I am the progenitor, the god of love; among serpents I am Vasuki.।।28।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 21 ☆ लघुकथा – हाथी के दांत खाने के और ‌‌….. ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक लघुकथा  “हाथी के दांत खाने के और ‌‌…..”।  यह लघुकथा हमें जीवन  के उस कटु सत्य से रूबरू कराती है जो हम देख कर भी नहीं देख पाते और स्वयं को  कुछ भी करने में असहाय पाते हैं। जब तक हमारे हाथ पांव चल रहे हैं तब तक ही हमारा मूल्य है। डॉ ऋचा जी की रचनाएँ अक्सर  सामाजिक जीवन के कटु सत्य को उजागर करने की अहम्  भूमिकाएं निभाती हैं । डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को ऐसी रचना रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 21 ☆

☆ लघुकथा – हाथी के दांत खाने के और ‌‌….. 

रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। उत्तर भारत में सर्दी के मौसम में शाम से ही ठंड पाँव पसारने लगती है। ऐसा लगने लगता है मानों ठंडक कपड़ों को भेदकर शरीर में घुस रही हो। मुझे नींद आ रही थी, एक झपकी लगी ही थी कि बर्तनों की खटपट सुनाई दी। सब तो सो गए फिर कौन इस समय रसोई में काम कर रहा है ? रजाई से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी फिर भी बेमन से मैं रसोई की ओर चल पड़ी। देखा तो सन्न रह गई। काकी काँपते हाथों से बर्तन माँज रही थी। शॉल उतारकर एक किनारे रखा हुआ था। स्वेटर की बाँहें कोहनी तक चढ़ाई हुई थी जिससे पानी से गीली ना हो जाए। दोहरी पीठ वाली काकी बर्तनों के ढ़ेर पर झुकी धीरे–धीरे बर्तन माँज रही थी।

मैं झुंझलाकर बोली – “क्या कर रही हो काकी ? समय देखा है ? रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं रजाई में लेटकर भी कँपकँपी छूट रही है और तुम बर्तन धोने बैठी हो ? छोड़ो बर्तन, सुबह मंज जाएंगे। बीमार पड़ जाओगी तुम।“

काकी से मेरी फोन पर अक्सर बातचीत होती रहती है। उनका हमेशा एक ही डायलॉग होता ‘गुड्डो’! काम से फुरसत नहीं मिलती। घर के काम खत्म ही नहीं होते। काकी की बातें मैं हंसी में टाल देती – “अब बुढ़ापे में कितना काम करोगी काकी ?” और सोचती शायद याददाश्त खराब होने के कारण काकी बातें दोहराती रहती हैं

मैं उनका हाथ पकड़कर जबर्दस्ती उठाना चाह रही थी। काकी मेरा हाथ छुड़ाते हुए बहुत शांत भाव से बोलीं “हम बीमार नहीं पड़तीं गुड्डो। हमारा तो यह रोज का काम है,  आदत हो गई है हमें।“ मैंने फिर कहा – “हालत देख रही हो अपनी  जरा – सा चलने में थक जाती हो। हाथ की उंगलियाँ देखो गठिए के कारण अकड़ गई हैं। काकी ! तुम जिद्द बहुत करती हो। भाभी भी तुम्हारी शिकायत कर रही थीं। भैया कितना मना करते हैं तुम्हें काम करने को, उनकी बात तो सुनो कम से कम।“

“रहने दे गुड्डो, क्यों जी जला रही है अपना। चार दिन के लिए आती है यहाँ आराम से रह और चली जा, भावुक ना हुआ कर। भैया – भाभी की मीठी बातें तू सुन। हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और। तू वह सुनती है जो वो तेरे सामने बोलते हैं। मैं साल भर वो सुनती हूँ जो वे मुझे सुनाना चाहते हैं। बूढ़ी हूँ, कमर झुक गई है तो क्या हुआ ? घर में रहती हूँ, खाना खाती हूँ, चाय पीती हूँ, मुफ्त में मिलेगा क्या ये सब ……………..?”

काकी काँपती आवाज़ में मुझे वह बताना चाह रही थीं जो मैं खुली आंखों से देख नहीं पा रही थी।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 25 – Death ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager,Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Death.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 25

☆  Death ☆

 

I’ve lived on the fence

Many-a-times

And also taken occasional plunges

Into the deep seas.

Yes, I’ve died

Not once,

But several times.

 

Whoever says

That there is no rebirth

Is wrong;

I am good specimen

Of enormous number

Of rebirths!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अपने वरक्स ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अपने वरक्स 

 

फिर खड़ा होता हूँ

अपने कठघरे में

अपने अक्स के आगे

अपना ही मुकदमा लड़ने,

अक्स की आँख में

पिघलता है मेरा मुखौटा

उभरने लगता है

असली चेहरा..,

सामना नहीं कर पाता

आँखें झुका लेता हूँ

और अपने अक्स के वरक्स

हार जाता हूँ अपना मुकदमा

हर रोज की तरह!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 13 ☆ कविता – प्यार में ☆ डॉ. राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘चक्र’ 

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी  का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस जी की स्मृति में एक एक भावप्रवण कविता  “प्यार में.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 13 ☆

☆ प्यार में ☆ 

 

प्यार में हम जिए या मरे

मुश्किलों से मगर कब डरे

 

आस्था का समर्पण रहा

अर्घ्य देकर रहे हम खरे

 

बचपना जब हवा हो गया

फूल, शूलों में जाकर झरे

 

लोग कहते रहे यूँ हमें

कोई पागल, कोई मसखरे

 

खेत, बच्चे, पखेरू, विटप

सब मेरे दिल को लगते हरे

 

मेरे अंदर के बच्चे सभी

मुझसे मिलते हैं खुशियाँ भरे

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी,  शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उ.प्र .

मोबाईल –9456201857

e-mail –  [email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 34 ☆ व्यंग्य – समस्या का पंजीकरण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्या अभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  व्यंग्य  “समस्या का पंजीकरण”।  इस  बेहतरीन व्यंग्य के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 34 ☆ 

☆ व्यंग्य – समस्या का पंजीकरण ☆

“आपकी समस्या सरकार की” अभियान में अपनी हिस्सेदारी की कठिनाई का टाइप किया हुआ प्रतिवेदन लेकर, रामभरोसे  गांव से सुबह की पहली बस से ही साढ़े दस बजते बजते जिले के दफ्तर में जा पहुंचा.

ग्राम सचिव से लेकर, सरपंच जी तक ने उसे दिलासा दी थी कि अब सरकार में जनता की कठिनाई, सरकार की समस्या है. इसके लिये  विशेष अभियान चलाया जा रहा है. लोगों से उनकी कठिनाईयां इकट्ठी की जा रही हैं. अगले बरस चुनाव भी होने वाले हैं, तो लोगों को उम्मीद है कि कठिनाईयों का कुछ न कुछ हल भी मिल सकता है. किन्तु समस्या के हल के लिये सबसे पहले समस्या का पंजीकरण जरूरी था, इसी मुहिम में रामभरोसे जिला दफ्तर आ पहुंचा था. इस प्रयास में उसका पहला साक्षात्कार दफ्तर के बाहर ही हनुमान मंदिर के निकट बने चाय के टपरे पर उपस्थित पकौड़े बना रहे  स्वरोजगार युवा से हुआ. रामभरोसे ने सदैव सर्वत्र उपस्थित हनुमान जी को नमन किया. पंडित जी भी बाकायदा घंटी की ध्वनि करते उपस्थित थे, उन्होने आरती का थाल रामभरोसे की ओर बढ़ाया, तो उसने न्यौछावर कर आरती ले ली और चाय के टपरे में दफ्तर खुलने की बाट देखता चाय पीने चला गया.  चाय पीते हुये बातों ही बातों में रामभरोसे को ज्ञात हुआ कि वह युवक डबल एमए भी है.  रामभरोसे के हाथों में टंकित प्रतिवेदन देखकर, चाय के रुपये काट कर बाकी चिल्हर लौटाते हुये उसने रामभरोसे को कार्यालय के आवक विभाग की दिशा भी सौजन्य स्वरूप दिखला दी. रामभरोसे बड़ा प्रसन्न हुआ, मन ही मन वह हनुमान जी को धन्यवाद करता हुआ, आवक विभाग की ओर बढ़ चला. वहां पहुंच रामभरोसे को पता चला कि  आवक लिपिक आये ही नही हैं. प्रतीक्षा का फल हमेशा मीठा होता है, घण्टे भर की प्रतीक्षा के बाद पान चबाते हुये जब आवक लिपिक आये, तो रामभरोसे ने अपनी अर्जी प्रस्तुत कर दी. आवक लिपिक ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा, फिर अर्जी पढ़ी, रामभरोसे को लगा कि वह तो केवल समस्या के पंजीकरण के लिये आया था, लगता है बजरंगबली की कृपा से आज समाधान ही मिल जावेगा. पर तभी लिपिक की नजर अर्जी पर ऊपर ही टंकित पंक्ति ” आपकी समस्या सरकार की ” पर पड़ गयी.

लिपिक ने रामभरोसे के भोलेपन कर नाराजगी जाहिर करते हुये उसे ज्ञान प्रदान किया कि यह तो सामान्य अर्जियों का आवक विभाग है. इन दिनो जो यह विशेष अभियान चलाया जा रहा है उसकी पंजीकरण खिड़की तो प्रवेश द्वार के बाजू में ही बनायी गयी है,और खिड़की पर इस सूचना की तख्ती भी टांगी गई है. रामभरोसे को अपनी अज्ञानता पर स्वयं ही खेद हुआ,वह बजरंगबली से अपनी मूर्खता के लिये मन ही मन क्षमा मांगता हुआ तेजी से वापस प्रवेश द्वार की ओर लपका, वहां खिड़की के बाहर लम्बी कतार थी. रामभरोसे कतारबद्ध हो लिया. उसका नम्बर आने ही वाला था कि इंटरनेट हैंग हो गया, और सुबह से लगातार काम में जुटा आपरेटर कुर्सी छोड़ गया. रामभरोसे फिर रामनाम सुमिरन करते हुये,प्रतीक्षा के मीठे फल खाने लगा.  जब कतार की प्रतीक्षा हो हल्ले में तब्दील होते दिखने लगी तो, प्रोग्रामर को बुलाया गया उसने कम्प्यूटर बंद कर पुनः चालू कर साफ्टवेयर अपडेट किया. पर इस सब में लंच ब्रेक लग गया. खैर लंच के बाद काम शुरू होते ही रामभरोसे का नम्बर आ गया, और अपनी समस्या की कम्प्यूटर मुद्रित रजिस्ट्रेशन स्लिप पाकर रामभरोसे मुदित मन से लौट ही रहा था कि उसे थकान और भूख का अहसास हुआ. वह उसी सुबह वाले चाय के टपरे पर ही पकौड़े खाने घुस गया. डबल एमए सरोजगार युवक पकौड़ो का ताजा घान झारे से निकाल रहा था. रामभरोसे ने पकौड़े खाते हुये उस युवक के ज्ञान में संशोधन करते हुये उसे बताया कि सुबह उसने, आवक विभाग की गलत जानकारी बता दी थी, इस उपक्रम में जब रामभरोसे ने समस्या पंजीकरण कम्प्यूटर स्लिप में दर्ज अपना मोबाईल नम्बर पढ़ा तो उसे नम्बर गलत होने का अहसास हुआ, डबल जीरो की जगह ट्रिपल जीरो अंकित हो गया था, शायद आपरेटर की हड़बड़ी के चलते ऐसा हुआ हो, या की बोर्ड की खराबी भी हो सकती थी, पकौड़े खाकर  स्वयं को संतोष देता हुआ रामभरोसे बजरंगबली की मर्जी मान, फिर से लाईन में लगने जाने लगा. उसने देखा पंडित जी मंदिर में घंटी बजाते हुये नये आगंतुको की ओर आरती का थाल बढ़ा रहे थे.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य ☆ पुस्तक विमर्श #3- स्त्रियां घर लौटती हैं – “जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी” – सुश्री संध्या श्रीवास्तव☆

पुस्तक विमर्श – स्त्रियां घर लौटती हैं 

श्री विवेक चतुर्वेदी 

( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह  स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ।  यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया और वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है। ई-अभिव्यक्ति  की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है।  इस श्रृंखला की तीसरी कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं  सुश्री संध्या श्रीवास्तव के विचार  “जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी“।)

अमेज़न लिंक >>>   स्त्रियां घर लौटती हैं

 

☆ पुस्तक विमर्श #1 – स्त्रियां घर लौटती हैं – “जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी” – सुश्री सन्ध्या श्रीवास्तव ☆

(चण्डीगढ़ में रह रहीं… प्रतिभाशाली…प्रयोगधर्मी चित्रकार सुश्री सन्ध्या श्रीवास्तव ने ‘स्त्रियां घर लौटती हैं’ पढ़कर भेजा…एक पाठक का रचनात्मक संतोष… जो निःसंदेह एक कवि को रचनात्मक साहस देता है ।  आत्मिक आभार सन्ध्या!  – विवेक चतुर्वेदी।

 

अमेज़न से आज तुम्हारा कविता संग्रह मिला।

वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश मानस ने कहीं कहा है – “कविता की पहली सामर्थ्य है उसकी यात्रा-शक्ति ।

यात्रा-शक्ति यानी पाँव-पाँव चलने का हौसला । यात्रा-शक्ति अर्थात् स्मृति के पर्वत,  खाई,  जंगल,  घाटी,  बीहड, गाँव,  शहर,  बस्ती और गली फिर घर – कहीं भी जा पहुँचने की शक्ति । पाठक या श्रोता यानी भावबोध तक सारे थकानों, सारी उदासियों, सारे अड़चनों के बाद भी उपस्थिति की आत्मीय जिद  !

जिस कविता में यह सामर्थ्य होगी, वह मनुष्य या मन की सारी विस्मृतियों के बाद भी वनफूल की तरह महमहा उठेगी।”

आज तुम्हारे संग्रह से शीर्षक कविता ‘स्त्रियां घर लौटती हैं’ पढ़ रही थी कि Family WhatsApp group में हजारों मील दूर से यही कविता पोस्ट होकर पास ही रखे मोबाइल पर सामने आ खड़ी हुई तो लगा कि मानस जी की टिप्पणी कितनी सार्थक है,

पुस्तक की और भी कविताएं भी कितनी सुन्दर,कितनी गहरी हैं और इनमें स्त्री मन की समझ बेहद हैरान करती है

मुझे लगता है जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी

मेरी शुभकामनाएं साथ हैं।

–  सन्ध्या श्रीवास्तव

 

© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर ( म प्र ) 

 

ई-अभिव्यक्ति  की ओर से  युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी को इस प्रतिसाद के लिए हार्दिक शुभकामनायें  एवं बधाई।

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