हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बदल रहा है ” सारे ज़हाँ से अच्छा ” ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

 

☆ बदल रहा है ” सारे ज़हाँ से अच्छा “☆

मिलकर चलो…मिलकर चलो…

बदल रहा है ” सारे ज़हाँ से अच्छा “…

वक्त कि मांग है मिलकर चलों…

“हरा” तो हर किसी का है…

केसरिया तो सारे जग का है…

” नीला” गगन तो सबका है…

” सफेद ” शांति जग की चाहत है…

मिलकर चलो…मिलकर चलो…

बदल रहा है ” सारे ज़हाँ से अच्छा “…

 

जो गुमराह हैं उनको समझने दें…

भयभीत को शांत होने दें…

ये वक्त है कलम से तकदीर लिखने का…

नये वक्त की तस्वीरों में नये रंग भरने का…

वक्त है वतन कि नई ईबारत लिखने का…

मिलकर चलो…..मिलकर चलो…

बदल रहा है ” सारे ज़हाँ से अच्छा ”

 

सोचो लड़कर आपस में क्या मिलेगा…

ये संसार हँसेगा भी और हम पर राज भी करेगा…

न भीड़ को ताकत का नाम दे…

हो रहा है कुछ नया, इसका अनुभव होने दें…

बढ़ते कदम जब आशंकित होगें….

भीड़ से हम फिर रूख बदल देंगे…

मिलकर चलो…..मिलकर चलो…

बदल रहा है ” सारे ज़हाँ से अच्छा ”

 

© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल 

(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में उप-प्रबन्धक हैं।)

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 6 ☆ फॉलोअर ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “फॉलोअर। भला आज की सोशल मीडिया की दुनियां में कौन फॉलोअर नहीं चाहता? आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 6 ☆

☆ फॉलोअर

आजकल  सभी अपने मन की बात इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे-  ट्विटर , फेसबुक  व व्हाट्सएप पर ही करना पसंद करते हैं । जो भी जी चाहे वहाँ लिखा और बस लाइक की चाह में बैठ गए मोबाइल लेकर । अब तो हर जगह एक ही मुद्दा है मेरे इतने फॉलोवर्स हैं तेरे कितने  हैं । मजे की बात ये है कि इस सम्बंध में लोगों के आइडल  फ़िल्मी स्टार्स व सेलिब्रिटी होते हैं ; उन्ही की तर्ज पर नए- नए बने मोबाइल स्टार भी अपने फॉलो की संख्या तो कम रखते हैं व जल्दी ही लोगों को अनफॉलो कर देते हैं । बस उन्हें तो फॉलोवर्स  चाहिए ।

इस शब्द को सुनकर कहीं न कहीं फालोऑन की याद आती है कि कैसे टेस्ट क्रिकेट में पहली पारी में दूसरी टीम के कम रन होने पर पहली टीम उसे दुबारा खेलने पर मजबूर करती है और अक्सर देखने में आता कि दुबारा भी आल आउट करके विजेता बनना या मैच का ड्रा होना । खैर ये तो सब खेल – खेल में चलता ही रहता है ।

फॉलो मी शब्द भी बहुत प्रचलित है कोई न कोई किसी न किसी को फॉलो अवश्य करता है। हमारे अपने कई रोल मॉडल होते हैं जिनके अनुयायी बनकर जीवन जीना आसान होता है । वैसे भी भेड़ चाल का अपना ही मजा होता है बिना दिमाग लगाए बस मौज उड़ाते रहो यदि गलती एक गड्ढे में गिरा तो उसी के पीछे सब उसी में गिर कर चीखते चिल्लाते रहते हैं । हाँ इतना अवश्य है कि गिरने वाले  इतने सारे लोग होते हैं कि गड्डा भर जाता है और वे एक दूसरे की पीठ पर चढ़कर बाहर आने के लिए  एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं और कुशल चमचे अति शीघ्र ऊपर आ जाते हैं और बन जाते हैं मोटिवेशनल लीडर । जैसे ही लेखनी ने प्रेरणा रूपी आग ऊगली बस फॉलोअर बनने लगे ।

आजकल सबसे ज्यादा पोस्ट  भी बस मोटिवेशनल ही होती है हर व्यक्ति मोटिवेशन चाहता है । सच मानिए जैसे ही पूरा वीडियो देखा उसे लाइक शेयर और कॉमेंट किया तो ऐसा लगता है कि बस पूरी एनर्जी मेरे अंदर  आ गयी है । और  हम निकल पड़ते हैं दूसरे को ज्ञान बाँटने और हाँ अपने फॉलोअर बनाने के लिए फिर पोस्ट को स्पॉन्सर करते हैं । लोगों को व्हाट्सएप पर मैसेज भेज कर उन्हें अपनी पोस्ट पढ़ने हेतु  प्रेरित करते हैं और करना भी चाहिए क्योंकि किसी को प्रेरित करना आज के समय में बहुत बड़ा कार्य है । जहाँ एक तरफ लोग बिना स्वार्थ के किसी की पोस्ट पर लाइक तक नहीं करते वहीं दूसरी ओर लोगों को जाग्रत करने की बात ही कुछ और ही होती है ।

आज के  इलेक्ट्रॉनिक युग में लोकप्रिय होने से कहीं ज्यादा जरूरी है लोकप्रिय होने का दिखावा करना क्योंकि जो दिखता है वही बिकता है । इस तथ्य को सभी कम्पनियों द्वारा समय – समय पर सिद्ध किया जाता रहा है । और तो और अब तो  नेता व दलों का चुनाव भी ये प्रचार के स्लोगन ही निर्धारित करते हैं । आखिर शब्दों की शक्ति को  कौन नहीं जानता । शब्द तो ब्रह्म होते हैं ।  और जहाँ सच्चे शब्द वहाँ समझो जीत पक्की । बस हर क्षेत्र में फॉलो मी का ही खेल चल रहा है । कोई किसी से पिछाड़ी नहीं होना चाहता सभी अगाड़ी बन अपने – अपने स्वार्थ की गाड़ी चलाते रहना चाहते हैं तो बस आप भी जुट जाइये अपने फॉलोवर्स बढ़ाने की जद्दोजहद में और बन जाइये  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सुपर स्टार ।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ छत्रपति शिवजी जयंती विशेष – शिवबा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।   आज प्रस्तुत है छत्रपति शिवजी जयंती के अवसर पर विशेष कविता  “शिवबा… ।)

 

☆ छत्रपति शिवजी जयंती विशेष – शिवबा… ☆

 

मला बी गडावर येऊ द्या की रं

राजांचंं दर्शन घेऊ द्या की…

 

शिवबाचं गुणगान गाऊ द्या की रं

श्रद्धेनं फुलं ही वाहू द्या की…

 

स्वराज्याचं स्वप्न पाहू द्या की रं

रयतेचं राज्य हे येऊ द्या की…

 

त्या तलवारीची धार पाहू द्या की रं

मला बी लढाया जाऊ द्या की…

 

रक्ताचं दान मला देऊ द्या की रं

कडू हे हलाहल पेऊ द्या की…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 36 – रुक ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा   “रुक  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  #36 ☆

☆ लघुकथा – रुक ☆

 

रघु अपनी पत्नी को सहारा देते हुए बोला. ” धनिया ! थोड़ी हिम्मत और कर. अस्पताल थोड़ी दूर है. अभी पहुच जाते है.” मगर धनिया की हिम्मत जवाब दे चुकी थी. वह लटक गई.

रामू और सीता अपनी अम्मा का हाथ पकडे हुए चल रहे थे.

इधर धनिया गश खा कर गिर पड़ी. यह देख कर रघु घबरा गया. इधरउधर देख कर बोला ,” बस धनिया ! थोड़ी देर और रुक जा. हम अस्पताल पहुँचने वाले है.” मगर धनिया का समय आ गया था. वह हाफाने लगी.

“रामू – सीता, तुम अम्मा को सम्हालना. मैं अभी अम्बुलेंस ले कर आता हूँ.” कह कर रघु ने इधरउधर सहायता के लिए पुकारा और फिर अस्पताल की ओर  भाग गया.

इधर धनिया भी चुपचाप चली गई और बच्चे माँ को चुपचाप देख कर रोने लगे.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Yoga Asanas: Yoga Asanas: Chandra Namaskara: Salutations to the Moon  – Video #4 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Yoga Asanas: Chandra Namaskara: Salutations to the Moon ☆ 

Video Link >>>>

YOGA: VIDEO # 4

This posture develops balance and concentration; the breathing pattern becomes more demanding – inhalation, exhalation and breath retention are all prolonged.

The lunar energy flows within ida nadi. It has cool, relaxing and creative qualities.

The word ‘chandra’ means the moon. Just as the moon, having no light of its own, reflects the light of the sun, so the practice of chandra namaskara reflects that of the surya namaskara.

The sequence of the asanas is the same as surya namaskara except that ‘ardha chandrasana’, the half moon pose, is performed after ashwa sanchalanasana.

Also, in ashwa sanchalanasana the left leg is extended back in the first half of the round, activating ida nadi, the lunar force. In the second half of the round, the right leg is extended back.

The inclusion of ardha chandrasana is a significant change. The posture helps develop balance and concentration, adding another dimension to the practice. A further effect is that the breathing pattern becomes more demanding; inhalation, exhalation and breath retention are all prolonged.

The contra indications and other details: same as surya namaskara.

For complete details, please refer:

ASANA PRANAYAMA MUDRA BANDHA

BY SWAMI SATYANANADA SARASWATI

 

Caution – This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.

 Reference book:
ASANA PRANAYAMA MUDRA BANDHA  by Swami Satyananda Saraswati

Music:

I Don’t See the Branches, I See the Leaves by Chris Zabriskie is licensed under a Creative Commons Attribution licence (https://creativecommons.org/licenses/…)

Source: http://chriszabriskie.com/dtv/

Artist: http://chriszabriskie.com/

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (27) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌।

एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌।।27।।

अश्वों में उच्चैश्रवा,मंथन से उद्भूत

ऐरावत गजराज मैं पुरूषों में हूँ भूप।।27।।

 

भावार्थ :  घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान।।27।।

 

Know Me as Ucchaisravas, born of nectar among horses; among lordly elephants (I am) the Airavata; and among men, the king।।27।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 35 – सोच के अनुरूप ही परिणाम भी…. ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  की एक प्रेरक कविता  “सोच के अनुरूप ही परिणाम भी….। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 35 ☆

☆ सोच के अनुरूप ही परिणाम भी…. ☆  

 

एक पग आगे बढ़ो

पग दूसरा आगे चलेगा।

 

एक निर्मल मुस्कुराहट

पुष्प खुशियों का खिलेगा।

 

एक सच के ताप में

सौ झूठ का कल्मष जलेगा।

 

इक निवाला प्रेम का

संतृप्ति का एहसास देगा।

 

सज्जनों की सभासद में

एक दुर्जन भी खलेगा।

 

खोट है मन में यदि तो

आस्तीन विषधर पलेगा।

 

प्रपंचों पर पल रहा जो

हाथ वो इक दिन मलेगा।

 

जी रहा खैरात पर

वो मूंग छाती पर दलेगा।

 

अंकुरित होगा वही

जो बीज भूमि में गलेगा।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 37 – गझल – ………. आले चांदणे! ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी  एक प्यारी सी ग़ज़ल “……. आले चांदणे!.  सुश्री प्रभा जी की  यह गजल चन्द्रमा की चाँदनी को जीवन  दर्शन से जोड़ती हुई प्रतीत  होती है। चन्द्रमा अमावस्या से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा  के पूर्ण चन्द्रमा तक अपनी कलाओं  और आकार से हमारे जीवन से सामंजस्य बनाये रखता है।  सुश्री प्रभा जी ने इस सामंजस्य को अपनी ग़ज़ल में बेहतरीन तरीके से एक सूत्र में पिरोया है। इस अतिसुन्दर  ग़ज़ल  के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 37 ☆

☆ गझल – ………. आले चांदणे! ☆ 

 

मध्यरात्री जन्मताना घेऊन आले चांदणे

गर्द काळ्या त्या तमाला भेदून  आले चांदणे

 

जन्म जेथे जाहला त्या गावात माझा चांदवा

त्याच गावी  आठवांचे ठेवून आले चांदणे

 

ती किशोरी धीट स्वप्ने गंधाळली तेजाळली

मी दुपारी तप्त सूर्या देवून आले चांदणे

 

नेहमी मी मोह फसवे हेटाळले या जीवनी

संशायाचे बीज का हो पेरून आले  चांदणे

 

दूषणे सा-या जगाची सोसून मी तारांगणी

पौर्णिमेने ढाळलेले वेचून  आले चांदणे

 

जीवनाचे गीत गाता आसावरी झंकारली

आर्ततेचे सूर सारे छेडून  आले चांदणे

 

तारकांचा गाव  आता देतो “प्रभा” आमंत्रणे

शुभ्र साध्या भावनांचे  लेवून  आले चांदणे

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – निर्वसन धरती और हरियाली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – निर्वसन धरती और हरियाली  

 

तपता मरुस्थल

निर्वसन धरती

सूखा कंठ

झुलसा चेहरा

चिपचिपा बदन

जलते कदम,

वातावरण-

दूर-दूर तक

शुष्क और बंजर था,

अकस्मात-

मेरी बिटिया हँस पड़ी,

अब-

लबालब पहाड़ी झरने हैं

आकंठ तृप्ति है

कस्तूरी- सा महकता बदन है

तलवों में मखमल जड़ी है

और अब-

दूर-दूर तक

हरियाली खिली है..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ पुस्तक विमर्श #2- स्त्रियां घर लौटती हैं – “क्या यह जरूरी है कि स्त्री विमर्श की कविता कोई कवयित्री ही रचे?” – श्री निरंजन श्रोत्रिय☆

पुस्तक विमर्श – स्त्रियां घर लौटती हैं 

श्री विवेक चतुर्वेदी 

( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह  स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ।  यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया और वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है। ई-अभिव्यक्ति  की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है।  इस श्रृंखला की प्रथम कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं सुप्रतिष्ठित  वरिष्ठ साहित्यकार श्री निरंजन श्रोत्रिय जी के आशीर्वचन “क्या यह जरूरी है कि स्त्री विमर्श की कविता कोई कवयित्री ही रचे?“।)

अमेज़न लिंक >>>   स्त्रियां घर लौटती हैं

☆ पुस्तक विमर्श #1 – स्त्रियां घर लौटती हैं – “क्या यह जरूरी है कि स्त्री विमर्श की कविता कोई कवयित्री ही रचे?” – श्री निरंजन श्रोत्रिय ☆

(‘स्त्रियां घर लौटती हैं” की कुछ कविताओं पर वरिष्ठ कवि, लेखक,आलोचक,सम्पादक-समावर्तन आदरणीय श्री निरंजन श्रोत्रिय जी की  दृष्टि में … जो निःसंदेह कवि का पाथेय है।)

“क्या यह जरूरी है कि स्त्री विमर्श की कविता कोई कवयित्री ही रचे? क्या कोई पुरुष कवि स्त्री- संवेदनों की थाह नहीं ले सकता? कहने को हमारा समाज कितना ही पुरुष प्रधान क्यों ना हो लेकिन क्या हम हर वक्त स्त्रियों से घिरे नहीं हैं! युवा कवि विवेक चतुर्वेदी ने स्त्री को लेकर कई नायाब कविताएं लिखी हैं। ये कविताएं इसका स्पष्ट और पुख्ता प्रमाण हैं कि-  कोई संवेदनशील मन बगैर किसी जेंडर कारक के स्त्री को पूरी शिद्दत के साथ अभिव्यक्त कर सकता है। पहली ही कविता ‘औरत की बात’ स्त्री की क्रियाशीलता का काव्य- रूपक है। अपने उद्मम और जिजीविषा से वह लौकिक और अलौकिक को ऊर्जस्वित कर रही है- लड़की दौड़ती है /तो थोड़ी तेज हो जाती है /धरती की चाल।

‘डोरी पर घर’ कविता एक भारतीय घर का दृश्य है जो कविता होकर अनूठा हो गया है। इस अद्भुत शब्द चित्र के माध्यम से विवेक ने भारतीय स्त्री की सीमाओं और टैबू को रेखांकित किया है। शर्म,लज्जा और परंपरा की कथित बेड़ियों में स्त्री को इस कदर जकड़ दिया गया है कि उसके अंतर्वस्त्रों को एक हाइजेनिक धूप का टुकड़ा भी नसीब नहीं है। पुरुष के अंतर्वस्त्र ‘लहराते’ हुए अलगनी पर पूरी चौड़ाई पाते हैं जबकि साड़ी सलवटों में सिमटी हुई है।

‘स्त्रियों का घर लौटना पुरुषों का घर लौटना नहीं है/ पुरुष लौटते हैं बैठक में फिर गुसलखाने में/फिर नींद के कमरे में/ स्त्री एक साथ पूरे घर में लौटती है’ (स्त्रियां घर लौटती हैं) इस कविता में ‘लौटना’ शब्द की अनेक पुनरावृत्तियां हैं लेकिन हर बार एक नई अर्थवत्ता के साथ! साथ ही स्त्री विमर्श को जब तक पुरुष के साथ तुलनात्मक दृष्टि से नहीं देखा जाएगा तब तक वह विमर्श अधूरा रहेगा। विवेक इस कविता में वह जरूरी काम करते हैं इस अद्भुत क्लाईमेक्स में के साथ कि- दरअसल एक स्त्री का घर लौटना/ धरती का अपनी धुरी पर लौटना है’।

‘ताले रास्ता देखते हैं’ हमारे समय के अलगाते रिश्तों की कविता है जिसे ताले और चाबी के अनिवार्य संबंधों के रूपक के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। यहां दो कारकों की अंतर्निर्भरता को बहुत मार्मिकता से कवि ने दिखाया है विवेक चतुर्वेदी के रोजमर्रा के उपेक्षित- से प्रेक्षण को कविता के केंद्र में ले आते हैं- एक बाकायदा कविता बनाते हुए।’चाबियों को याद करते हैं ताले/ वे रास्ता देखते हैं’ क्या यह पंक्ति ताला खुलने के बाद एक संसार को नए सिरे से देखने के लिए पाठकों को आमंत्रित नहीं करती?

‘उनकी प्रार्थना में’ एक छोटी मगर मार्मिक कविता है। इसमें प्रार्थना का सत्व है जो किसी आस्था को महिमामंडित ना करते हुए उसके मर्म को और सदाशयी भाव को अभिव्यक्त करता है।

‘मां को खत’ जैसी बहुत छोटी कविता में भी धूप की खीर, अक्टूबर का महीना, सुबह, पंजा ठंड की बिल्ली जैसे शब्दों से मां की चिंता का अनूठा काव्य रचा गया है।

इस युवा कवि को रिश्तों और उनकी उदात्तता की गहरी समझ है ‘पिता की याद’ एक ऐसी ही कविता है जिसमें पिता के दायित्व और दाय को बहुत ही मार्मिकता से चित्रित किया गया है ।कटोरदान में बच गई आखरी रोटी की अधूरी भूख एक ऐसा समर्पण है जिसे इस तरह के काव्य संवेदन ही व्यक्त कर सकते हैं ।

हर सच्चा कवि लोग मंगल का भी अभिलाषी होता है। ‘शिवेतरक्षतये’ यह काव्य- प्रतिज्ञा क्या मूल भाव होता है।

ऐसी ही कामनाएं हैं ‘दुनिया के लिए जरूरी है’ कविता में। एक ओर वह गौरैया, कुनकुनी धूप बचपन और तारों का संरक्षण चाहता है वहीं दूसरी ओर मिसाइल और दानवीय मशीनों को इंसानियत के विरुद्ध मानता है।

‘पसीने से भीगी कविता’ कवि और कविता का मूल प्रयोजन व्यक्त करती है। इस कविता में अनूठे बिम्बों द्वारा कवि की अभीप्सा को व्यक्त किया गया है। यह मनुष्य और मानवता के पक्ष में कविता की सार्थक भूमिका का बयान है।

‘सभा’ कविता एक दृश्य- बंध है जिसमें मछलियों और मगर के जरिए समकालीन राजनीतिक परिदृश्य का इकोसिस्टम रचा गया है इसमें कवि की प्रतिबद्धता स्पष्ट परिलक्षित होती है सच की बूढ़ी माई के सभा में ना पाने की विवशता  पूरी कविता को एक प्रभावी क्लाइमैक्स में घटित करती है।

युवा कवि विवेक चतुर्वेदी की कविताएं गहन संवेदनों और कम शब्दों में अधिक बोलती कविताएं हैं। उनकी काव्य पंक्तियां छोटी लेकिन अर्थ और अर्थ से परे तक का विस्तार हैं।जब कविता खलिहान से मंडी तक बैलगाड़ी में रतजगा करे तो उस पर उसी तरह भरोसा किया जा सकता है जैसे कि हम प्रार्थना पर करते हैं”।

  – निरंजन श्रोत्रिय

 

© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर ( म प्र ) 

 

ई-अभिव्यक्ति  की ओर से  युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी को इस प्रतिसाद के लिए हार्दिक शुभकामनायें  एवं बधाई।

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