हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हमतुम ****    हम        तुम    ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  एक भावप्रवण कविता  हमतुम ****    हम        तुम    )

 

हमतुम ****    हम        तुम   

हम तुम—

क्या सिर्फ एक “संज्ञा” बन गये हैं

व्याकरण की सीमा से बंधा

एक परिचय मात्र?

नहीं – – – सुनों बहुत मेहनत की है

साथ साथ चलने—चलते रहने के लिए

बहुत सहनशीलता लगती है

मिले जुले– एक मंजिल पर पहुंचकर

सच होने वाले सपनों को

पाने में।

बहती सदानीरा सी जिंदगी को निर्मल

बनाए रखने में

सुनों – – हम तुम लगे रहे बरसों बरस

जिंदगी को जिंदगी बनाने में

फिर कैसे मान लें कि हम तुम

एक संज्ञा मात्र हैं—जीवन के व्याकरणों में

क्या सिर्फ इसलिए कि

जिंदगी कम पड़ रही है

रिश्तों को निभाने में

या—थक गये हैं रिश्तों को बनाए रखने

की जद्दोजहद में

चलो–बदल दें समीकरण

सौंप दें दायित्व

रिश्तों का रिश्तों पर

भूल जाएं आत्मांश की परिभाषा

भूल जाएं दुनियावी रिश्तों से भी

पूर्व रूहानी रिश्तों की आशा

बस – – बन जाएं “हम   तुम”

-सिर्फ सिर्फ – –

” हमतुम”

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 24 ☆ संसार ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी के मौलिक मुक्तक / दोहे   “संसार”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 24 ☆

☆ संसार ☆

 

संवाद

द्योतक रहे विचार के ,अपने यह संवाद

हों अक्सर संवाद बिन,जग से रोज विवाद

 

पेट

दौलत से धनवान का,कभी न भरता पेट

देते किंतु गरीब को,प्रतिदिन ही अलसेट

 

संसार

हम सब को प्यारा लगे,मायाबी संसार

धन दौलत में लिप्त हो,भूल गए आचार

 

उजियार

लड़ें तिमिर से सदा हम,मन में रख उजियार

तभी सफलता मिलेगी,समझो मेरे यार

 

नेपथ्य

जीवन के इस मंच पर,दिखे न पूरा सत्य

झूठ संवरता ही रहा,सत्य गया नेपथ्य

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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मराठी साहित्य – समाजपारावरून साप्ताहिक स्तम्भ ☆ पुष्प चौवीस # 24 ☆ पिंपळपान ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं ।  इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से वे किसी न किसी सामाजिक  व्यवस्था के बारे में चर्चा करते हैं एवं हमें उसके निदान के लिए भी प्रेरित करते हैं।  आज प्रस्तुत है श्री विजय जी की एक  भावप्रवण कविता  “पिंपळपान”।  आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  )

☆ समाजपारावरून साप्ताहिक स्तम्भ ☆ पुष्प चौवीस # 24 ☆

☆ पिंपळपान ☆

 

वयानुसार सारच बदलत

बदलत नाहीत आठवणी

पिंपळपान जपलेले

बालपणीची करते उजळणी.

कितीही झाल जीर्ण तरीही

जाळीमधून उलगडते

क्षण क्षण जपलेले

सांभाळताना  गडबडते.

पुस्तकात जपलेले

पिंपळपान दिसले की

आठवणींना फुटतो पाझर

असे होतो तसे होतो

भावनांचा सुरू जागर.

जपून ठेवलेले पिंपळपान

कुणी म्हणते  लक्ष्मी वसे

कुणी म्हणते आहे खवीस

वाईट शक्ती तिथे वसे.

हिरवेगार पिंपळपान

आकार त्याचा ह्रदयाकार

सतत वाटते जवळचे

स्पर्श त्याचा शब्द सार. . . !

हिरवे असो वा पिवळे

घेते लक्ष वेधून

पिंपळपान  आयुष्याचे

मनामनात बसे लपून

मनामनात बसे लपून

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga in Goa with the top officials of Airports Authority of India – Video #13 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ Laughter Yoga in Goa with the top officials of Airports Authority of India☆ 

Video Link >>>>

Laughter yoga and meditation sessions were conducted for the top officials of the Airports Authority of India (AAI) at Goa as per details given below:
Goa, April 8 and 9, 2016.
Locale: exotic –  a five-star golf and spa resort.

Team: thirty top officials, including the CEO and the CFO, of one of the busiest airports of India.

Objective: goal setting.

Day: one.

Time: sunrise.

Venue: an exclusive sea beach.

Activity: laughter yoga, body percussion and mind-body synergy.

Feedback: feeling exuberant!

Time: sunset.

Venue: closed hall.

Activity: guided relaxation, yoga nidra.

Feedback: feeling serene!!

Day: two.

Time: just before sunrise.

Venue: golf course on one side and swimming pool on the other.

Activity: breath shower, three deep breaths, gentle laughs and dynamic meditation.

Feedback: feeling calm and happy!

Facilitators:

Jagat Singh Bisht – happiness coach & laughter yoga master trainer.

Radhika Bisht – yoga teacher & laughter yoga master trainer.

Email: [email protected]

 

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (14) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।

न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ।।14।।

देव दानवों को भी नहिं है प्रभु का सच्चा ज्ञान

जो कुछ मुझसे आपने कहा सत्य भगवान।।14।।

 

भावार्थ :  हे केशव! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्‌! आपके लीलामय (गीता अध्याय 4 श्लोक 6 में इसका विस्तार देखना चाहिए) स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही।।14।।

 

I believe all this that Thou sayest to me as true, O Krishna! Verily, O blessed Lord, neither the gods nor the demons know Thy manifestation (origin)! ।।14।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 19 ☆ लघुकथा – सलमा बनाम सोन चिरैया ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी . उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं. अब आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक लघुकथा  “सलमा बनाम सोन चिरैया”।  यह लघुकथा  मात्र लघुकथा ही नहीं अपितु मानवीय संवेदनाओं की पराकाष्ठा है, जिसे डॉ ऋचा जी की कलम ने  सांकेतिक विराम देने की चेष्टा की है और इसमें वे पूर्णतः सफल हुई हैं। डॉ ऋचा जी की रचनाएँ अक्सर यह अहम्  भूमिकाएं निभाती हैं । डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को ऐसी रचना रचने के लिए सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 19 ☆

☆ लघुकथा –सलमा बनाम सोन चिरैया 

 

सलमा बहुत हँसती थी, इतना कि चेहरे पर हमेशा ऐसी खिलखिलाहट जो उसकी सूनी आँखों पर नजर ही ना पड़ने दे। गद्देदार सोफों, कीमती कालीन और महंगे पर्दों से सजा हुआ आलीशान घर? तीन मंजिला विशाल कोठी, फाइव स्टार होटल जैसे कमरे। हँसती हुई वह हर कमरा दिखा रही थी  — ये बड़े बेटे साहिल का कमरा है, न्यूयार्क में है, गए हुए ८ साल हो गए, अब आना नहीं चाहता यहाँ।

फिर खिल-खिल हँसी — इसे तो पहचान गई होगी तुम — सादिक का गिटार, बचपन में कितने गाने सुनाता था इस पर, उसी का कमरा है यह,  वह बेंगलुरु में है- 6 महीने हो गए उसे यहाँ आए हुए, मैं गई थी उसके पास। वह आगे बढी — ये गेस्ट रूम है, ये हमारा बेडरूम —- पति ? – —  अरे तुम्हें तो पता ही है सुबह ९ बजे निकलकर रात में १० बजे ही वो घर लौटते हैं – वही हँसी, खिलखिलाहट, आँखें छिप गई।

और ये कमरा मेरी प्यारी सोन चिरैया का — सोने -सा चमकदार पिंजरा कमरे में बीचोंबीच लटक रहा था, जगह – जगह छोटे झूले लगे थे। सोन चिरैया इधर – उधर उड़ती, झूलती, दानें चुगती और पिंजरे में जा बैठती।  कमरे का दरवाजा खुला हो तब भी वह बाहर नहीं उड़ती।

सलमा बोली – दो थीं एक मर गई, ये अकेली कब तक जिएगी पता नहीं? इस बार उसकी आँखें बोलीं थी।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 23 – Darkness ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager,Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Darkness .  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 23

☆  Darkness ☆

Imagine

When the trumpeting rains have shoved away

The vivacity of the branches of the trees

And they are gloomy,

When the sun refuses to show its face

The whole day along

And you terribly miss its beam,

When the footsteps of the darkness

That wraps the night

Are heard earlier than usual,

When you’ve had a hard day,

And someone smiles and asks,

“How are you?”

 

Just those three simple words,

Set forth a cycle of cheerfulness;

You begin to see the bright stars

And the darkness of the night vanishes

As if it was never there,

The splendid sun inside your soul

Gets ignited, burns amber,

And you are jovial,

From the branches of the trees,

Tiny leaves begin to sprout

Bringing the enthusiasm of your life back…

 

Tender love, care and fondness,

Can always rejuvenate you;

But then,

Why wait for others to ask you your well-being?

Why not let that splendid sun inside your soul

Be so glowing

That darkness thinks twice before touching you!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – डी एन ए ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – डी एन ए

 

ये कलम से निकले

कागज़ पर उतरे

शब्द भर हो सकते हैं

तुम्हारे लिए…,

पर

मन, प्राण और देह का

डी एन ए हैं

मेरे लिए..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ मौन- व्रत ☆ डॉ. सतिंदर पाल सिंह बावा

डॉ सतिंदर पल सिंह बावा 

(डॉ सतिंदर पाल सिंह बावा जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है।  डॉ सतिंदर जी मूलतः पंजाबी लेखक हैं । आपकी पंजाबी आलोचना में  विशेष रुचि है। आपकी एक पुस्तक पंजाबी  भाषा में प्रकाशित हुई है। वर्तमान में आप  वोह फ्रेड्रिक जेम्सोन के संकल्प राजनीतिक अवचेतन पर पंजाबी में एक आलोचनात्मक पुस्तक लिख रहे हैं। आपने हाल  ही में “नक्सलबाड़ी लहर से सम्बंधित पंजाबी उपन्यासों में राजनीतिक अवचेतन” विषय पर पंजाबी विश्वविद्यालय से पीएच डी की डिग्री प्राप्त की है। पंजाबी में आपके कुछ व्यंग्य सुप्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। हिन्दी में व्यंग्य लिखने के आपके  सफल प्रथम प्रयास  के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें। आज प्रस्तुत है आपकी  प्रथम सामयिक एवं सार्थक व्यंग्य रचना “मौन – व्रत”। हम भविष्य में आपके ऐसे ही सकारात्मक साहित्य की अपेक्षा करते हैं। )

☆ व्यंग्य  –  मौन- व्रत ☆

पहले हमारा उपवास में कोई विश्वास नहीं था, लेकिन जब से नया युग शुरू हुआ है, हमने इन परिस्थितियों से निपटने के लिए उपवास रखने शुरू कर दिये हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि यदि किसी युग की धारणा व विचारधारा को समझना है, तो उस युग के महा प्रवचनों को व्यावहारिक रूप से आत्म सात करके ही समझा जा सकता है। अतः हमने अपनी समकालिक स्थितिओं को समझने को लिये ही उपवास रखने शुरू किये हैं। उपवास से यहाँ हमरा अर्थ खाने वाले खाद्य पदार्थों का त्याग नहीं है। वैसे भी, नए-युग के समर्थकों ने खाद्य व स्वादिष्ट पदार्थों पर प्रतिबंध लगा कर उपवास जैसी स्थिति तो पहले से ही बना रखी है। दूसरा, भाई हम भोजन के बिना तो जीवत नहीं रह सकते क्योंकि खाने को देख कर हम से कंट्रोल नहीं होता, इस लिए हम ने उपवास तो रखा है लेकिन उस को मौन-व्रत के रूप में रखा है।

अब, जब चारों ओर शोर शराबा हो रहा है, तो आप में से कोई सज्जन पूछ सकता है कि अब कौन मौन-व्रत रखता है? यह तो आउट डेटेड फैशन है क्योंकि यह कौन-सा महात्मा गांधी का युग है कि हम उपवास करके या मौन रहकर अपना विरोध प्रगट करें? लेकिन भई हम तर्क से सिद्ध कर सकते हैं कि आज भी भारत में मौन-व्रत उतना ही कारगर हथियार है जितना कि ब्रिटिश सरकार के समय था।

जब मौन शब्द के साथ व्रत शब्द जुड़ जाता है तो यह एक नए अर्थ में प्रवेश कर जाता है। जिस तरह विज्ञापनों में छोटा-सा सितारा ‘शर्तें लागू’ कहकर सच मुच दिन में तारे दिखा देता है उसी तरह, मौन के साथ व्रत शब्द जुड़ कर कड़े नियमों में प्रवेश कर जाता है। जिस में ‘मन की मौत’ की घोषणा भी शामिल होती है। हालांकि हमने लम्बी चुप्पी साध रखी है, लेकिन हमारे मन की मृत्यु नहीं हुई है! जैसे कि आम तौर पर मौन-व्रत रखने से होता है कि मन में जो संकल्प-विकल्प उठते हैं, उन पर नियंत्रण हो जाता है। पर भाई मन तो मन है जो हर समय नामुमकिन को मुमकिन बनाने के लिए हमेशा संघर्षशील और चलायमान रहता है।

जिस क्षण से हम ने मूक रहने का दृढ़ संकल्प लिया है, उस दिन से ही कई बार हमारी चुप्पी पर सर्जिकल स्ट्राइक हो चुके हैं लेकिन मजाल है जो हमने अपनी चुप्पी तोड़ी हो। पहले, हम समझते थे कि हमारे पड़ोसी ही हमारी चुप्पी को लेकर दुखी रहते हैं, लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस नए दौर में सारा देश ही हमारी चुप्पी से खफ़ा है, हमें लगता है कि हमारी चुप्पी का राष्ट्रीकरण हो चुका रहा है। कभी-कभी हमें यह भी लगता है कि हमारी चुप्पी का वैश्वीकरण किया जा रहा है। चूंकि अब तो विदेशों में भी लंबे चौड़े लेख केवल हमारी चुप्पी पर ही प्रकाशित होते हैं। आफ्टर आल हम भी भाई ग्लोबल नागरिक हैं और थोड़ी बहुत खबर तो हमें भी रखनी ही पड़ती है।

हमारी प्यारी पत्नी तो हमारी चुप्पी से बेहद दुखी हो गई. पहले तो हमारे बीच नोक-झोक का तीसरा महा युद्ध चलता ही रहता था। कभी-कभी तो संसदीय हंगामा भी हो जाता था। लेकिन अब उसकी हालत बहुमत वाली विजेता पार्टी की तरह हो गई है, जहाँ विरोध की सभी संभावनाएं समाप्त हो गई हैं। इन परिणामों के आकलन के बाद उन्होंने कई बार शीत युद्ध का प्रस्ताव रखा है, परंतु हमने उसका जवाब ही नहीं दिया क्योंकि हमने तो मौन-व्रत रखा हुआ है।

आजकल हमारी चुप्पी पर कई तरह की बातें की जा रही हैं। कल ही की तो बात है कि हमारे पड़ोसी हम से कहने लगे क्या बात है बड़बोला राम जी आजकल बहुत गुम-सुम से रहने लगे हो? हम क्या बताते कि आंतरिक और बाहरी दबाव के कारण हमारी बोलती बंद है। हम ने उनको कोई जवाब नहीं दिया और आगे बढ़ गए क्योंकि हम ने तो ‘एक चुप सौ सुख’ मंत्र धारण कर रखा था।

चूंकि हम चुप हैं इसलिए हमें अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी प्रार्थना सभा में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि हमें इस बात का ज्ञान हो गया है कि जब तक हम चुप हैं हम सुरक्षित हाथों में हैं, हम देश प्रेमी हैं, देशभक्त हैं और देश के विकास में चुप रह कर हम बहुत बड़ा योगदान दे रहे हैं क्योंकि हमारा मानना है के यह योगदान भी किसी ‘शुभ दान’ या ‘गुप्त दान’ से कम नहीं है। इधर हमने अपना मुँह खोला नहीं; उधर से आक्रमण शुरू हुए नहीं कि यह देश-द्रोही है, गद्दार है, देश के विकास में बाधा डालता है, अन्यथा हमें नक्सली समर्थक ही कहना शुरू कर देंगे।

भले ही हम महात्मा गांधी के शांति संदेश से बहुत प्रभावित और प्रेरित हैं, लेकिन अब हमने शांति का प्रचार करना भी बंद कर दिया है, क्योंकि हमें अब डर लगता है कि पता नहीं कब हमें कोई यह कह दे कि ऐसी बातें करनी है तो भाई साहिब आप पाकिस्तान चले जाओ, वहाँ आप की ज़्यादा ज़रूरत है। इस लिए तो भई हमने मौन-व्रत रखा है। लेकिन चुप्पी के साथ साथ; हमारी सूक्ष्म दृष्टि में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। अब हम जगह-जगह सरकारी बोर्डों का अर्थ खूब समझने लगे हैं, जैसे ‘बचाव में ही बचाव है’ , ‘आपकी सुरक्षा परिवार की रक्षा’ आदि।

अब आप कहेंगे हम बहुत विरोधाभासी बातें कर रहे हैं। लेकिन जब यह युग ही विरोधी विचारधारा का है, तो हम इसके प्रभाव से कैसे मुक्त हो सकते हैं! लेकिन हमने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से आप के मन की बात भी जान ली है कि आप हम से क्या पूछना चाहते हैं। अरे महाराज! भूल गए! हमने तो मौन-व्रत रखा हुआ है।

 

©  डॉ सतिंदर पल सिंह बावा

#123/6  एडवोकेट कॉलोनी, चीका, जिला कैथल, हरियाणा  – PIN 136034
मोबाईल – 9467654643 ई मेल – [email protected][email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 32 ☆ आलेख – गांधी जी और गाय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा  रचनाओं को “विवेक साहित्य ”  शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे.  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  महात्मा गाँधी जी के 150 वे जन्म वर्ष पर एक विचारोत्तेजक आलेख  “गांधी जी और गाय”.  श्री विवेक जी को धन्यवाद इस सामयिक किन्तु  शिक्षाप्रद  आलेख  के लिए। इस आलेख  को  सकारात्मक दृष्टि से पढ़कर कमेंट बॉक्स में बताइयेगा ज़रूर। श्री विवेक रंजन जी ऐसे बेहतरीन आलेख के लिए निश्चित ही बधाई के पात्र हैं. )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 32 ☆ 

☆ आलेख – गांधी जी और गाय  ☆

भारतीय संस्कृति में गाय की कामधेनु के रूप की परिकल्पना है.  गाय ही नही लगभग प्रत्येक जीव जन्तु हमारे किसी न किसी देवता के वाहन के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इस तरह हमारी संस्कृति अवचेतन में ही हमें जीव जन्तुओ के संरक्षण का पाठ पढ़ाती है. गौवंश के पूजन को आदर्श बनाकर भगवान श्री कृष्ण ने राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए गौवंश की महत्ता का प्रतिपादन किया. भगवान शिव ने गले में सर्प को धारण कर विषधर प्राणी तक को स्नेह का संदेश दिया और बैल को नंदी के रूप में  अपने निकट स्थान देकर गौ वंश का महत्व स्थापित किया.

यथा संभव हर घर में गौ पालन दूध के साथ ही धार्मिक आस्था के कारण किया जाता रहा है. मृत्यु के बाद वैतरणी पार करने के लिये गाय का ही सहारा होता है यह कथानक प्रेमचंद के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास गोदान का कथानक है. आज भी विशेष रूप से राजस्थान में  घरों के सामने  गाय को घास खिलाने व पानी पिलाने के लिये नांद रखने की परम्परा देखने में आती है. १८५७ की क्रांति के समय पहली बार गाय के प्रति आस्था राजनैतिक रूप से मुखर हुई थी. बाद में लगातार अनेक बार यह हिन्दू मुस्लिम विरोध का कारण  बनती रही है. क्षुद्र स्वार्थ के लिये कई लोग इस भावना को अपना हथियार बना कर समाज में विद्वेष फैलाते रहे हैं.  अनेक साम्प्रदायिक दंगे गाय को लेकर हुये हैं. पिछले कुछ समय से गौ रक्षा के नाम पर माब लिंचिंग जैसी घटनाये मीडीया में शोर शराबे के साथ पढ़ने मिलीं. यह वर्ष महात्मा गांधी के जन्म का १५० वां साल है. गांधी जी वैश्विक विचारक के रूप में सुस्थापित हैं. यद्यपि स्वयं गांधी जी बकरी पाला करते थे व उसी का दूध पिया करते थे किंतु गाय को लेकर उन्होनें समय समय पर जो विचार रखे वे आज बड़े प्रासंगिक हो गये हैं, तथा समाज को उनके मनन, चिंतन की आवश्यकता है.

महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम गौ रक्षा की बात सार्वजनिक तौर पर करते हुए 1921 में यंग इंडिया में लिखा ‘गाय करुणा का काव्य है. यह सौम्य पशु मूर्तिवान करुणा है. यह करोड़ों भारतीयों की मां है. गाय के माध्यम से मनुष्य समस्त जीव जगत से अपना तादात्म्य स्थापित करता है. गाय को हमने पूजनीय क्यों माना इसका कारण स्पष्ट है. भारत में गाय मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र है. वह केवल दूध ही नहीं देती बल्कि उसी की वजह से ही कृषि संभव हो पाती है. ‘गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा। गाय नष्ट होगी तो उसके साथ, हमारी सभ्यता और अहिंसा प्रधान संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी.

एक बार साबरमति आश्रम में एक बछड़े की टांग टूट गई. उससे दर्द सहा नहीं जा रहा था, ज़ोर-ज़ोर से वह कराह रहा था.पशु डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए, कहा कि उसे बचाया नहीं जा सकता. उसकी पीड़ा से गांधी बहुत परेशान थे.जब कोई चारा न बचा तो उसे मारने की अनुमति दे दी. अपने सामने उस जहर का इंजेक्शन लगवाया, उस पर चादर ढंकी और शोक में अपनी कुटिया की ओर चले गए. कुछ  लोगों ने इसे गोहत्या कहा. गांधी को गुस्से से भरी चिट्ठियां लिखीं. तब गांधी ने समझाया कि इतनी पीड़ा में फंसे प्राणी की मुक्ति हिंसा नहीं, अहिंसा ही है, ठीक वैसे ही, जैसे किसी डॉक्टर का ऑपरेशन करना हिंसा नहीं होती.

गांधी जी बहुत पूजा-पाठ नहीं करते थे, मंदिर-तीर्थ नहीं जाते थे, लेकिन रोज सुबह-शाम प्रार्थना करते थे. ईश्वर से सभी के लिए प्यार और सुख-चैन मांगते थे.

उनके आश्रम में गायें रखी जाती थीं. गांधी गोसेवा को सभी हिंदुओं का धर्म बताते थे. जब कस्तूरबा गंभीर रूप से बीमार थीं, तब डॉक्टर ने उन्हें गोमांस का शोरबा देने को कहा. कस्तूरबा ने कहा कि वे मर जाना पसंद करेंगी, लेकिन गोमांस नहीं खाएंगी. गाय के प्रति  उनकी ऐसी आस्था थी.

यंग इंडिया व हरिजन में उनके समय समय पर छपे लेखो को पढ़ने से समझ आता है कि, गांधी जी उस ग्रामस्वराज की कल्पना करते थे जहां कसाई अपनी कमाई के लिये गौ हत्या पर नही वरन केवल अपनी स्वाभाविक मृत्यु मरी हुई गायों के उन अवयवो के लिये कार्य करे जो मरने के बाद भी गौमाता हमारे उपयोग के लिये छोड़ जाती है. इसके लिये वे कसाईयो को वैकल्पिक संसाधनो से और सक्षम बनाना चाहते थे. वे कानूनन गौ हत्या रोकने के पक्ष में नही थे. गौ रक्षा से गांधी जी की सार्व भौमिक व्यापक दृष्टि का तात्पर्य समूचे विश्व में गाय ही नही सारे जीव जंतुओ के संरक्षण से था. आज गो सेवा के नाम पर सरकारें व कई संस्थायें बहुत सारा काम कर रही हैं, जरूरी है कि गाय दो संप्रदायो में वैमनस्य का नही मेल मिलाप के प्रतीक के रूप में स्थापित की जावे, क्योंकि गाय हमेशा से मानव जाति के लिये स्वास्थ सहित विभिन्न प्रयोजनो के लिये बहुउपयोगी थी और रहेगी.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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