हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 28 – कर्मो का सिद्धान्त ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “कर्मो का सिद्धान्त।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 28 ☆

☆ कर्मो का सिद्धान्त 

हम यहाँ पर एक साथ कर्मों के रण बंधन या ऋण बंधन के कारण हैं जो मेरे आपके साथ हैं। इस ब्रह्मांड में कुछ भी कर्मों के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं है। कर्म का अर्थ सबसे सामान्य शब्दों में ‘क्रिया’ है, और क्रिया भीतर से उत्पन्न होती है। अपनी आंतरिक मूल ऊर्जा के उपयोग से हुई क्रिया, यदि इसकी मूल दहलीज या सीमा  (हमारी आंतरिक ऊर्जा की वो कम से कम मात्रा जिससे किसी क्रिया का भान होता है) से अधिक या कम मात्रा में है तो वो कर्म है।ऊर्जा प्रभाव का यह उपयोग हमारे आस-पास की प्रकृति पर तुरंत या कुछ विलम्ब से परिणाम उत्पन्न करता है। जो क्रिया की प्रतिक्रिया या कारण का प्रभाव कहा जाता है। तो इन दोनों का संयोजन, प्रकृति पर कार्यरत हमारी ऊर्जा और उस ऊर्जा के प्रभाव पर प्रकृति की प्रतिक्रिया वास्तव में कर्म कहा जाता है।व्यय की गई एक निश्चित राशि जल्द ही या बाद में समाप्त हो जाएगी। लेकिन प्रतिक्रिया खुद में एक नई क्रिया बन जाती है।यह ज्यादातर व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा पर निर्भर करता है। वह एक ही क्रिया पर गुस्से में प्रतिक्रिया कर सकता है या समान क्रिया पर स्नेह दिखा सकता है।व्याकरण में क्रिया से निष्पाद्यमान फल के आश्रय को कर्म कहते हैं। क्रिया और फल का संबंध कार्य-कारण-भाव के अटूट नियम पर आधारित है। यदि कारण विद्यमान है तो कार्य अवश्य होगा। यह प्राकृतिक नियम आचरण के क्षेत्र में भी सत्य है। अत: कहा जाता है कि क्रिया का कर्ता फल का अवश्य भोक्ता होता है।

हम तीन श्रेणियों में हमारे द्वारा किए गए प्रत्येक कर्म को वर्गीकृत कर सकते हैं, और यहाँ कर्म का अर्थ केवल वह कार्य नहीं है जो हम शरीर के संचालन की क्रिया के साथ करते हैं, अपितु यह हमारे अंदर तीन प्रकार की प्रतिक्रियाओं का परिणाम है।

पहले भौतिक कर्म शरीर के दृश्य आंदोलन या हमारे शरीर के हिलने डुलने के द्वारा किए जाते हैं, दूसरे बोलने द्वारा होते हैं- हमारा भाषण या वचन, या जो शब्द हम अपने मुँह से कहते हैं; और तीसरे मन या विचारों से है, जो हम अपने मस्तिष्क से सोचते हैं। इसलिए हर पल हम सभी कर्मों या कारणों और प्रभावों के नियमों से बंधे होते हैं।

हम इन कर्मों को तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं:

संचित कर्म :

मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर या देह ही नष्ट होती है, जबकि सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मांतरों तक आत्मा के साथ संयुक्त रहता है। यह सूक्ष्म शरीर ही जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ संस्कारों का वाहक होता है। संस्कार अर्थात हमने जो भी अच्छे और बुरे कर्म किए हैं वे सभी और हमारी आदतें।ये संस्कार मनुष्य के पूर्वजन्मों से ही नहीं आते, अपितु माता-पिता के संस्कार भी रज और वीर्य के माध्यम से उसमें (सूक्ष्म शरीर में) प्रविष्ट होते हैं, जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व इन दोनों से ही प्रभावित होता है। बालक के गर्भधारण की परिस्थितियां भी इन पर प्रभाव डालती हैं।ये कर्म ‘संस्कार’ ही प्रत्येक जन्म में संगृहीत (एकत्र) होते चले जाते हैं, जिससे कर्मों (अच्छे-बुरे दोनों) का एक विशाल भंडार बनता जाता है। इसे ‘संचित कर्म’ कहते हैं।

प्रारब्ध कर्म:

संचित कर्मों का कुछ भाग एक जीवन में भोगने के लिए उपस्थित रहता है और यही जीवन प्रेरणा का कार्य करता है। अच्छे-बुरे संस्कार होने के कारण मनुष्य अपने जीवन में प्रेरणा का कार्य करता है। अच्छे-बुरे संस्कार होने के कारण मनुष्य अपने जीवन में अच्छे-बुरे कर्म करता है। फिर इन कर्मों से अच्छे-बुरे नए संस्कार बनते रहते हैं तथा इन संस्कारों की एक अंतहीन श्रृंखला बनती चली जाती है, जिससे मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। दरअसल, इन संचित कर्मों में से एक छोटा भाग हमें नए जन्म में भोगने के लिए मिल जाता है। इसे प्रारब्ध कहते हैं। ये प्रारब्ध कर्म ही नए होने वाले जन्म की योनि व उसमें मिलने वाले भोग को निर्धारित करते हैं।हम कह सकते हैंकि प्रारब्ध कर्म वो है जो शुरू हुआ है, और वास्तव में फल पैदा कर रहा है।यह संचित कर्मों के द्रव्यमान में से चुना जाता है। प्रत्येक जीवनकाल में, संचित कर्मों का एक निश्चित भाग जो उस समय आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अनुकूल है,बाहर कार्य करने के लिए चुना जाता है। इसके बाद यह प्रारब्ध कर्म उन परिस्थितियों को बनाते हैं, जिन्हें हम अपने वर्तमान जीवनकाल में अनुभव करने के लिए नियत हैं, वे हमारे भौतिक परिवार, शरीर या जीवन परिस्थितियों के माध्यम से कुछ सीमाएँ भी बनाते हैं, जिन्हें हम जन्मजात रूप से भाग्य के रूप में जानते हैं।

अधिक आसानी से समझाने के लिए, मान लीजिए कि आपके संचित कर्म ऐसे हैं कि आपके उस समय तक अपने आने वाले जीवनों में 1000 कारणों का परिणाम सकारात्मक रूप से भोगना है और 500 कारणों का परिणाम नकारात्मक रूप से भोगना हैं। इसलिए इन कुल 1500 प्रभावों को आपके संचित कर्म कहा जाएगा।अब मान लें कि आपके द्वारा किये गए कर्मों के 300 सकारात्मक प्रभाव और 100 नकारात्मक प्रभावों को आपको अपने वर्तमान जीवन में उचित वातावरण द्वारा पक कर भोगने का मौका मिलेगा।तो वर्तमान जीवन के लिए आपके प्रारब्ध कर्म 300 + 100 = 400 होंगे।

दरअसल हम ऊपर की तरह कर्मों की गणना नहीं कर सकते क्योंकि यह गणित की गणना के लिए बहुत ही जटिल मापदण्ड है और इसके द्वारा हम सूक्ष्म और साझा कर्मों की व्याख्या नहीं कर सकते हैं।मैंने आपको कर्मों की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए केवल संख्याओं द्वारा एकउदाहरण दिया है।

जिस तरह से चोर को सहायता करने के जुर्म में साथी को भी सजा होती है ठीक उसी तरह काम्य कर्म और संचित कर्म में हमें अपनों के किए हुए कार्य का भी फल भोगना पड़ता है और इसीलिए कहा जाता है कि अच्छे लोगों की संगति करो ताकि कर्म की किताब साफ रहे। जिस बालक को बचपन से ही अच्छे संस्कार मिले हैं वो कर्म भी अच्छे ही करेगा और फिर उसके संचित कर्म भी अच्छे ही होंगे। अलगे जन्म में उसे अच्छा प्रारब्ध ही मिलेगा।

क्रियमाण कर्म:

ये वे कर्महैं जो मनुष्य वर्तमान में बना रहा है, जिनके फल भविष्य में अनुभव किए जाएंगे। ये ही केवल वह कर्म हैं जिन पर हमें अपनी इच्छा शक्ति और मन की स्थिति के अनुसार चुनाव करने का अधिकार है।ये वो ताजा कर्म हैं जो हम प्रत्येक गुजरने वाले पल के साथ कर रहे हैं। वर्तमान जीवन और आने वाले जीवन में हमारे भविष्य का निर्णयकरने के लिए ये कर्म ही संचित कर्मों का भाग बन जाते हैं।

 

© आशीष कुमार  

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होत आहे रे # 19 ☆ लग्नाचा घाणा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होत आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है उनके द्वारा रचित एक लग्न गीत “लग्नाचा घाणा”। आज भी पिछली  पीढ़ियों ने विवाह संस्कार तथा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में गीतों के माध्यम से विरासत में मिले संस्कारों को जीवित रखा है। हम श्रीमती उर्मिला जी द्वारा रचित इस लग्न गीत  के लिए उनके आभारी हैं। निश्चित ही यह गीत  आवश्यक्तानुसार परिवर्तित कर भविष्य में विवाह संस्कारों में गाये जायेंगे।

यह एक संयोग ही है  कि – आज दिनांक 1-2-2020 को उनके पौत्र चिरंजीव अवधूत जी का विवाह है । इसके लिए  ई- अभिव्यक्ति की ऒर से  उनके भावी  दाम्पत्य जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं।  इस सुन्दर लग्न गीत की रचना  के  समय उनके मन में  आई भावनाएं उनके ही शब्दों में  – “लग्नाची मुहूर्तमेढ, देवांना बोढण म्हणजे पुरणपोळी पक्वांनाचा नेवैद्य व सवाष्णींना भोजन असा विधी पार पडला त्यावेळी मला सुचलेला लग्नाचा घाणा “. इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को नमन।)  

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 19 ☆

☆ लग्नाचा घाणा ☆

पाच कुलदेवतांचं देवक वाजत आणलं घरात !

पाच पत्रींची मुहूर्तमेढ रोविली दारात !!१!!

 

पाच सवाष्णींच्या हाताने जात ते पुजिलं!

हळद कुंकू लावुनिया उखळ-मुसळ पुजिलं!!२!!

 

घाणा तो भरण्या सुंदर ते जातं !

सवाष्णींचा हात लागता गरगरा ते फिरतं !!३!!

 

गरगरा फिरतं ते हळकुंड दळितं!

हळकुंड दळित त्याचीहळद करतं !!४!!

 

अवधूत-प्राजूच्या लग्नाची  दळताती हळद!

दळताती हळद बाई ओव्यांच्या सुरात !!५!!

 

ओव्यांच्या सुरात बाई नाद घुमतो घरात!

नाद घुमतो घरात बाई आनंद होतो मनात !!६!!

 

पुरण-पोळीच्या पक्वांनाचं भरिल बोढण !

देवांना नेवैद्य अन् सवाष्णींना भोजन !!७!!

 

हळद-कुंकू लावुनि द्या पानसुपारी हातात!

खण नारळ तांदुळ घाला त्यांच्या ओटीत !!८!!

 

जाई जुईचा गजरा माळा त्यांच्या वेणीत !

गजऱ्याचा वास घुमे सगळ्या घरात  !!९!!

 

उर्मिला हात जोडोनी विनंती करीत !

आनंद सुखसमृद्धी सदा नांदो माझ्या घरात!!१०!!

 

©®उर्मिला इंगळे

दिनांक:- १-२-२०२०

 

!! श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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मराठी साहित्य – ☆ स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती – आधारवड ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

सुश्री स्वप्ना अमृतकर
(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं।  आप कविता की विभिन्न विधाओं में  दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की  हायकू शैली में कविता “आधारवड ”। )

सुश्री स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती – आधारवड  ☆ 

(७रचना)

(Photo by icon0.com from Pexels)

निसर्ग छाया

आश्रितांना आधार

अर्पितो माया       १,

आधार वड

केवढा चमत्कार

प्रेम अपार         २,

विस्तार मोठा

पारंब्या हो अनंत

भासतो संथ        ३,

आधार वड

सावलीच्या छायेत

घेतो कवेत         ४,

छान घरटे

पशुपक्षी बांधती

आधार वाटे        ५,

सोशीक फार

उभा आधारवड

झेलतो भार        ६,

 

दुर्लक्ष होते

आधारवड तरी

सदा हासते        ७..

© स्वप्ना अमृतकर , पुणे

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga: Learning Session For Beginners – Video #7 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ Laughter Yoga: Learning Session For Beginners ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #7

This is a laughter yoga learning video for those who would like to lead laughter yoga sessions on their own. Probationary/ Trainee Officers from all over India come to State Bank Foundation Institute (Chetana), Indore on a regular basis for their initial grooming. All of them have a brief tryst with Laughter Yoga during their stay here.

Some days ago, Shiva Prasad K and Barane Tharan expressed desire to conduct laughter sessions on their own when they are back home. They organized a brief learning session encompassing the 4 basic steps of laughter yoga and videographed it.

Hope, this video will be useful for all those who have attended a laughter yoga session or two and wish to conduct laughter sessions on their own. Love and Laughter..

 

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।

सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।।7।।

 

मम इस योग विभूति को जो भी लेता जान

वह निश्चित ही योग से जुडता शुभ पहचान।।7।।

 

भावार्थ :  जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है और एक वासुदेव भगवान ही सर्वत्र परिपूर्ण है, यह जानना ही तत्व से जानना है), वह निश्चल भक्तियोग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है।।7।।

 

He who  in  truth  knows  these  manifold  manifestations  of  My  Being  and  (this) Yoga-power of Mine, becomes established in the un-shakeable Yoga; there is no doubt about it ।।7।।

 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 32 ☆ समस्या नहीं : संभावना  ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का आलेख “खामोशी और आबरू”.  डॉ मुक्ता जी का यह विचारोत्तेजक एवं प्रेरक लेख हमें  जीवन के कठिन से कठिन समय  में विपरीत परिस्थितियों में भी सम्मानपूर्वक जीने का लक्ष्य निर्धारित करने हेतु प्रेरणा देता है। इस आलेख का कथन “जीवन में हम कभी हारते नहीं, जीतते या सीखते हैं अर्थात् सफलता हमें विजय देती है और पराजय अनुभव अथवा बहुत बड़ी सीख… जो हमें गलत दिशा की ओर बढ़ने से रोकती है। ” ही इस आलेख का सार है। डॉ मुक्त जी की कलम को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें एवं अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य  दर्ज करें )    

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 32☆

☆ समस्या नहीं : संभावना 

‘जीवन में संभावनाएं देखिए, समस्याएं नहीं। सपने देखिए, रास्ता स्वयं मिल जाएगा’— अनुकरणीय उक्ति है। आप समस्या, उससे उपजी परेशानियों व  चिंताओं को अपने जीवन से बाहर निकाल फेंकिए, आपको मंज़िल तक पहुंचने का सीधा-सादा विशिष्ट मार्ग मिल जाएगा। आप संभावनाएं तलाशिए अर्थात् यदि मैं ऐसा करूं, तो इसका परिणाम उत्तम होगा, श्रेष्ठ होगा और झोंक दीजिए… स्वयं को उस कार्य में… अपनी सारी शक्ति अर्थात् तन, मन, धन उस कार्य को संपन्न करने में लगा दीजिए… और पथ में आने वाली बाधाओं-आपदाओं का चिंतन करना छोड़ दीजिए। सपने देखिए…रास्ता भी मिलेगा और मंज़िल भी बाहें फैलाए आपका स्वागत-अभिनंदन करेगी। हां! सपने सदैव उच्च, उत्तम व श्रेष्ठ देखिए …बंद आंखों से नहीं, खुली आंखों से देखिए…जैसा अब्दुल कलाम जी कहते हैं। आप पूर्ण मनोयोग से उन्हें साकार करने में लग जाइए…पथ की बाधाएं- आपदाएं स्वत: अपना रास्ता बदल लेंगी।

‘ए ऑटो विन विस्मार्क’ का यह वाक्य भी किसी संजीवनी से कम नहीं है कि ‘ समझदार इंसान दूसरों की गलती से सीखता है। मूर्ख इंसान गलती करके सीखता है।’ सो! बन जाइए बुद्धिमान और समझदार …दूसरों की गलती से सीखिए, खुद संकट में छलांग न लगाइये… जलती आग को छूने का प्रयास मत कीजिए ताकि आपके हाथ सुरक्षित रह सकें। इससे सिद्ध होता है कि दूसरों के अनुभव का आकलन कीजिए… उन्हें आज़माइये मत …और बिना सोचे-समझे कार्य-व्यवहार में मत लगाइए। बड़े बड़े दार्शनिक अपने अनुभवों को, दूसरों के साथ सांझा कर उन्हें गलतियां करने से बचाते हैं और कुसंगति से बचने का प्रयास करते हैं।

जो लोग ज़िम्मेवार, सरल, ईमानदार व मेहनती होते हैं, उन्हें ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है, क्योंकि वे धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना होते हैं। अब्दुल कलाम जी की यह उक्ति उपरोक्त भाव को पुष्ट करती है। ऐसे लोगों का अनुकरण कीजिए…उन द्वारा दर्शाये गये मार्ग पर चलने का प्रयास कीजिए, क्योंकि सरल स्वभाव के व्यक्ति ईमानदारी व परिश्रम को जीवन में धारण कर सबका मार्ग-दर्शन करते हैं,  उन सभी महापुरुषों के जीवन का उद्देश्य आमजन को दु:खों-संकटों व आपदाओं  से बचाना होता है। कबीर, नानक, तुलसी व कलाम सरीखे महापुरूषों के जीवन का विकास व आत्मोन्नति कीचड़ में कमलवत् था। इसलिए आज भी उनके उपदेश समसाययिक हैं और एक लंबे अंतराल के पश्चात् भी सार्थक व अनुकरणीय रहेंगे।

वे संत पुरुष सबके हित व कल्याण की कामना करते हैं तथा सबके साथ रहने का संदेश देते हैं। संत बसवेश्वर अपने घुमंतू स्वभाव के कारण गांव-गांव का भ्रमण कर रहे थे तथा वे एक सेठ के निमंत्रण पर उसके घर गए… जहां उनकी खूब आवभगत हुई। थोड़ी देर में उनसे मिलने कुछ लोग आए और उन्होंने उन लोगों को यह कह कर लौटा दिया कि ‘मैं अभी अतिथि के साथ व्यस्त हूं।’ इसके पश्चात् वे भीतर चले आये और संत से कल्याण के मार्ग के बारे में पूछने लगे। ‘जो व्यक्ति द्वार पर आये अतिथि से कटु व्यवहार करता है, उन्हें भीषण गर्मी में लौटा देता है… उसका कल्याण किस प्रकार संभव है? यह सुनते ही सेठ समझ गया कि व्यर्थ दिखावे व  पूजा-पाठ से अच्छा है,  हम सदाचार व परोपकार को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। शायद! इसीलिए वे धरती पर प्रभु की सर्वश्रेष्ठ रचना कहलाते हैं तथा लोगों को यह भी समझाते हैं कि कुदरत ने तो आनंद ही आनंद दिया है और दु:ख मानव की खोज है। हर वस्तु के दो पक्ष होते हैं। परंतु फूल व कांटे तो सदैव साथ रहते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस का चुनाव करते हैं? हम घास पर बिखरी ओस की बूंदों को मोतियों के रूप में देख उल्लसित -आनंदित हो सकते हैं या प्रकृति द्वारा बहाये गये आंसुओं के रूप में देख व्यथित हो सकते हैं।

उसी प्रकार कांटों से घिरे गुलाब को देख, उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो सकते हैं तथा कांटों को देख, उसकी नियति पर आंसू भी बहा सकते हैं। इसी प्रकार सुख-दु:ख का चोली दामन का साथ है… दोनों इकट्ठे कभी नहीं आते। एक के विदा होने के पश्चात् ही दूसरा दस्तक देता है, परंतु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम सुखों को स्थायी समझ, उसके न रहने पर आंसू बहते हैं… अपने भाग्य को कोसते हैं तथा अपने जीवन को दूभर व नरक बना लेते हैं। उस स्थिति में हम भूल जाते हैं कि सुख तो बिजली की कौंध की भांति हमारे जीवन में प्रवेश करता है-और हम भ्रमित होकर अपने वर्तमान को दु:खी बना लेते हैं। सुख- दु:ख दोनों मेहमान हैं और आते-जाते रहते हैं। इसलिए सुख का लालच व दु:ख का भय हमें सदैव कष्टों व आपदाओं में रखता है और हम चाह कर भी उस व्यूह से मुक्ति नहीं पा सकते।

सो! दोस्ती व प्रेम उसी के साथ रखिए, जो तुम्हारी हंसी व गुस्से के पीछे का दर्द अनुभव कर सके मौन की वजह तक पहुंच सके। अर्थात् सच्चा दोस्त वही है, जो आपका गुरू भी है… सही रास्ता दिखलाता है और विपत्ति में सीना ताने आपके साथ खड़ा होता है। सुख में वह आपको भ्रमित नहीं होने देता तथा विपत्ति में गुरु की भांति आपको संकट से उबारता है। वह उस कारण को जानने का प्रयास करता है कि आप  दु:खी क्यों हैं? आपकी हंसी कहीं बनावटी व  दिखावे की तो नहीं है? आपकी चुप्पी तथा मौन का रहस्य क्या है? कौन-सा ज़ख्म आपको नासूर बन साल रहा है? उसके पास सुरक्षित रहता है… आपके जीवन के हर पल का लेखा-जोखा। सो! ऐसे लोगों से संबंध रखिए और उन पर अटूट विश्वास रखिए, भले ही संबंध बहुत गहरे ही न हों? इसके साथ ही वे ऐसे मुखौटाधारी लोगों से भी सचेत रहने का संदेश देते हैं, जो अपने बनकर, अपनों को छलते हैं। इसलिए उनसे सजग व सावधान रहिए, क्योंकि चक्रव्यूह रचने वाले व पीठ में छुरा घोंकने वाले सदैव अपने ही होते हैं। यह तथ्य कल भी सत्य था, आज भी सत्य है और कल भी रहेगा। इसलिए मन की बात बिना सोचे-समझे, कभी भी दूसरों से सांझा न करें, क्योंकि कुछ लोग बहुत उथले होते हैं। इसलिये वे बात की गंभीरता को अनुभव किए बिना, उसे आमजन के बीच प्रेषित कर देते हैं, जिससे आप ही नहीं, वे स्वयं भी जग-हंसाईं का पात्र बनते हैं। सो! सावधान रहिये, ऐसे मित्रों और संबंधियों से.. जो आपकी प्रशंसा कर, आपके मनोबल को गिराते हैं तथा आपको निष्क्रिय बना कर, अपना स्वार्थ साधते हैं। ऐसे ईर्ष्यालु आपको उन्नति करते देख, दु:खी होते हैं तथा आपके कदमों के नीचे से सीढ़ी खींच सुक़ून पाते हैं। तो चलिए इसी संदर्भ में जिह्वा का ज़िक्र भी कर लें, जो दांतों के घेरे में रहती है…अपनी सीमा व मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करती। इसलिए वह भीतरी षड्यंत्र व बाहरी आघात से सुरक्षित रहती है… जबकि उसमें विष व अमृत दोनों तत्व निवास करते हैं… प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं, बल्कि साथी व सहयोगी के रूप में और मानव उनसे मनचाहा संबंध बनाने व प्रयोग करने में स्वतंत्र है। इसी प्रकार वह कटु वचन बोलकर दोस्त को दुश्मन बना सकता है और शत्रु को को पल भर में अपना साथी-सहयोगी, मित्र व विश्वासपात्र।

हमारी वाणी में अलौकिक शक्ति है… यह प्रयोगकर्ता  पर निर्भर करता है कि वह शर-संधान अर्थात् कटु वचन रूपी बाण चला कर हृदय को आहत करता है या मधुर वाणी से, उसके अंतर्मन में प्रवेश पाकर व  उसे आकर्षित कर अपना पक्षधर बना लेता है। इसलिये स्वयं को पढ़ने की आदत बनाइए, क्योंकि कुदरत को पढ़ना अत्यंत दुष्कर कार्य है। दुनिया बहुत बड़ी है, इसलिए सब कुछ समझना व सब की आकांक्षाओं पर खरा उतरना मानव के वश में नहीं है। सो! दूसरों से अपेक्षा मत कीजिए। अपने अंतर्मन में झांकिये व आत्मावलोकन कीजिये जो समस्याओं के निदान का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। जब आप अपने दोषों व अवगुणों से अवगत हो जाते हैं तो आप सब के प्रिय बन जाते हैं। इस स्थिति में कोई भी आपका शत्रु नहीं हो सकता। आप अनहद नाद की मस्ती में डूब, अलौकिक आनंद में अवगाहन कर सकते हैं… यही जीते जी मुक्ति है, कैवल्य है।

सो! हर समस्या के दो पहलुओं के अतिरिक्त, तीसरे विकल्प की ओर भी दृष्टिपात कीजिए… जीवन उत्सव बन जाएगा और कोई भी आपके जीवन में अंर्तमन में खलल नहीं डाल पाएगा। इसलिए जीवन में संभावनाओं की तलाश कीजिये और निरंतर अपनी राह पर बढ़ते जाइए… स्वर्णिम भोर पलक पांवड़े बिछाए आपकी प्रतीक्षा कर रही होगी। जीवन में हम कभी हारते नहीं, जीतते या सीखते हैं अर्थात् सफलता हमें विजय देती है और पराजय अनुभव अथवा बहुत बड़ी सीख… जो हमें गलत दिशा की ओर बढ़ने से रोकती है। तो आइए! जीवन में सम स्थिति में रहना सीखें…जीवन में सामंजस्यता का प्रवेश होगा और समरसता स्वत: आ जायेगी, जो आपको अलौकिक आनंद प्रदान करेगी क्योंकि संभव और असंभव के बीच की दूरी, व्यक्ति की सोच और कर्म पर निर्भर करती है।

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि  – वसंत पंचमी विशेष – माँ शारदा शतश: नमन  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – वसंत पंचमी विशेष – माँ शारदा शतश: नमन  

[1]

शुभ्र परिधानधारिणी, पद्मासना
हर शब्द, हर अक्षर तुम्हें अर्पण,
उज्ज्वल हंस पर विराजमान
दुग्धधवला महादेवी,
माँ शारदा को शतश: नमन।

[2]

मानसरोवर का अनहद
शिवालय का नाद कविता,
अयोध्या का चरणामृत
मथुरा का प्रसाद कविता,
अंधे की लाठी
गूँगे का संवाद कविता,
बारम्बार करता नमन ‘संजय’
माँ सरस्वती साक्षात कविता।

[3]

मौसम तो वही था,
यह बात अलग है
तुमने एकटक निहारा
स्याह पतझड़,
मेरी आँखों ने चितेरे
रंग-बिरंगे बसंत..,
बुजुर्ग कहते हैं,
देखने में और दृष्टि में
अंतर होता है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कवितासंग्रह ‘योंही’ एवं ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 32 ☆ वसंत पंचमी विशेष – बसंत ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी वसंत पंचमी  पर्व पर विशेष कविता  ‘ बसंत ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 32 – साहित्य निकुंज ☆

☆ बसंत 

माघ माह की पंचमी,

आया है ऋतु राज,

सरस्वती को पूजते ,

लोग घरों में आज।।

 

बसंत

बसंत आता है

मन को लुभाता है

चहुँ ओर

फ़ैल रही है हरियाली

झूम रही है डाली डाली

धरती ने हरीतिमा का किया शृंगार

मन में उठी उमंग की फुहार

प्रेम प्यार की कोपलें फूटी

खिलने लगे फूल और कलियाँ

छा गई सब ओर खुशियाँ

फ़ैली है बसंत की महक

गूंज रही पक्षियों की चहक

जीवन में खिलने लगे नये रंग

लगा लिया कलियों ने अंग

देखो आ गया बसंत

आ गया बसंत।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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मराठी साहित्य ☆ वार्ता ☆ शब्दांचा प्रवास हृदयपासून हृदयपर्यन्त – कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆ वार्ताकार – श्री काशिराम खरडे

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आज प्रस्तुत है  मोहरली लेखणी साहित्य समुह का विशेष  वार्ता कार्यक्रम  आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत…। किसी भी विशिष्ट व्यक्ति से वार्ता एक कला है। श्री काशिराम खरडे जी वास्तव में इस कला में दक्ष हैं। हम इस विशेष वार्ता के लिए कविराज विजय यशवंत सातपुते जी, मोहरली लेखणी साहित्य समुह एवं श्री काशिराम खरडे जी  के हृदय से आभारी हैं । 

 मोहरली लेखणी साहित्य समुह प्रस्तुति –  आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत… ☆

नमस्कार मोहरलीकर…

आज आपण _आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत…_ या आपल्या साप्ताहिक उपक्रमाअंतर्गत एका अशा साहित्यिकांशी संवाद साधणार आहोत, जे मागिल तीन दशकांहून अधिक काळ साहित्यसेवा करत आहेत. राज्य शासनाच्या अनुदानातून ज्यांचा काव्य संग्रह रसिकांपर्यंत पोहोचला. शेतीमाती पासून चित्रपटांपर्यंत ज्यांच्या शब्दांनी रसिकमनाला भुरळ घातली. असे जेष्ठ साहित्यिक “कवीराज विजय सातपुते”…

चला तर मग… जाणून घेऊया विजयजींकडून त्यांच्या साहित्यिक प्रवासाबद्दल…

नमस्कार कवीराज

मोहरली लेखणी साहित्य समुहाच्या “आठवांच्या हिंदोळ्यावर.. काशिराम खरडे सोबत… आ उपक्रमात आपले स्वागत..

खरं तर एवढा मोठा साहित्य प्रवास, साहित्याची अस्सल जाण, साहित्यासोबतच पत्रकारीतेच्या क्षेत्रातही नावलौकिक मिळवत शब्दांची नैसर्गिकता जपणं… हे खूप कमी लोकांना जमतं. आपण ‘साहित्य’ या संकल्पनेकडे कसं बघता….

विजय सातपुतेनमस्कार, सर्व प्रथम  आपल्याला.  आणि समस्त मोहरली करांना.

कथा,  कविता, लेख यांची निर्मिती करताना मांडलेले  आशय, विषय जितके लोकाभिमुख तितके  आपले साहित्य रसिकांना जास्त भावते त्या साठी वाचन, लेखन, चिंतन आणि मनन, यांचा व्यासंग खूप  उपयोगी ठरतो  असे मला वाटते. साहित्य हे माणूस जीवंत ठेवण्याचे प्रभावी माध्यम आहे  असे मला वाटते.

काशिराम खरडे व्वाह…!!

माणसाचं जिवंतपण साहित्यात दडलेलं आहे हा अतिशय उमदा विचार आपला… बहोत खूब…!

सर, आपण १९८८ पासून लिहिताय, असं आम्हाला कळलं. हा एवढा प्रदीर्घ साहित्यिक अनुभव गाठीशी बांधून साहित्याच्या प्रांगणात वावरत असतांना बऱ्याच आठवणींच्या गाठोड्यातील एखादी अशी आठवण सांगता येईल की ज्यामुळे आपण साहित्याशी जुळले गेलात…?

विजय सातपुतेखरं तर  आज मागे वळून बघताना  इतका साहित्य प्रवास  आपला होईल हे त्या वेळी कुणी भाकीत केले  असते तर ते खोटे ठरले  असते पण दोन महत्वपूर्ण घटना घडल्या  आणि मी साहित्याशी जोडला गेलो.

1992 मध्ये राज्य स्तरीय काव्य संमेलन आणि स्पर्धा चे सूत्रसंचालन करण्याची संधी मिळाली. यावेळी राजा गोसावी, वसंत शिंदे, वसंत बापट आणि जीवन राव कीर्लोस्कर व्यासपीठावर होते. तेव्हा मी केलेले स्वागत गीत आणि मोरपीस कविता सर्वांना  अतिशय  आवडली.  वसंत बापट यांनी सभागृहातून माझ्या वडिलांना व्यासपीठावर बोलावून घेतले. त्यांच्या हातून पुष्पहार अर्पण केला व पेढे दिले आणि त्याच वेळी मला कविराज पदवी बहाल केली. हा  आनंद क्षण आणि जगदीश खेबुडकर यांनी वेळोवेळी केलेले मार्गदर्शन मला साहित्याचा नावकरी आणि गावकरी बनवून गेले.

ऐन वसंती,  बहर संगती

वसंत बापट नाव गाजते

भावनेच्या शिशिरालाही

वसंत वैभव देऊन जाते

धन्य लेखणी नरोत्तमाची

स्वागत करतो तिचे

स्वागतम शुभ स्वागतम सुस्वागतम.

 

राजा राजा काय चीज ही

वाचून पाहून सांगा मजला

गोष्ट राजा गोसावींची

धन्य धन्य त्या  अभिनयाची

स्वागत करतो  अभिनयाचे

स्वागतम शुभ स्वागतम सुस्वागतम.

 

असे त्यातील ददोन कडवी होती.

काशिराम खरडे खरंच किती भाग्यवान आहात आपण इतक्या उत्तुंग व्यक्तीमत्वांकडून कौतुकाची थाप मिळणं, ही खूप मोठी गोष्ट आहे.

आपल्या एकंदरीत साहित्य प्रवासाबद्दल सांगावं…

विजय सातपुतेसाहित्यिक, नाट्य, संगीत, आणि तमाशा कलावंतांना जवळून पाहण्याची संधी या साहित्य प्रवासाने दिली. 1993 ते 2013 पर्यत डिफेन्स अकौंट मध्ये सर्व्हिस केली.  अनेक कविता लिहिल्या.  2005 मध्ये पहिला कविता संग्रह प्रकाशित झाला.  अक्षरलेणी या कवितासंग्रहाला महाराष्ट्र राज्य शासनाच्या साहित्य संस्कृती मंडळाचे  अनुदान मिळाले.  अनेक शासकीय  आणि राज्यस्तरीय पुरस्कार प्राप्त झाले.  अक्षरलेणीकार म्हणून  ओळख मिळाली. प्रस्तावना कार,  मानपत्र लेखन  आणि वृत्त पत्र स्तंभलेखन यातून संपूर्ण महाराष्ट्रात मित्रपरीवार रसिक वर्ग निर्माण झाला.

2012 मध्ये अक्षरलेणी संग्रहाची द्वितीय आवृत्ती प्रकाशित झाली.  या संग्रहास महाकवी कालिदास पुरस्कार प्राप्त झाला.

आजपर्यंत कवितेच्या प्रत्येक काव्य प्रकारात लेखन केले आहे. विविध काव्य प्रकारात प्रविण्य संपादन करून अनेक पुरस्कार कवितानी मिळवून दिले आहेत.  गझल, हायकू,  चारोळी,  छंदोबद्ध रचना, मुक्त छंद रचना,   अभंग ,ओवी,  अष्टाक्षरी आणि नवकाव्य प्रकारात आजवर विपुल लेखन केले आहे. कथा लेखन,  ललित लेख लेखन दिवाळी अंकासाठी दरवर्षी केले जाते.  बालसाहित्य देखील लिहिले आहे.  अनेक शाळातून मुलांसाठी काव्य सादरीकरण केले आहे. आकाशवाणी पुणे केंद्रावरून माझ्या जास्तीत जास्त कथांचे  अभिवाचन झाले आहे.  अनेक काव्य लेखन स्पर्धा, काव्य वाचन स्पर्धा  आणि सांस्कृतिक कार्यक्रमांचे यशस्वी  आयोजन केले आहे.  अनेक कार्यक्रमांचे निवेदन केले आहे .या प्रवासात  वीस हून अधिक संस्थेत विविध पदांवर कार्यरत आहे ही संधी साहित्य क्षेत्राने दिली.

काशिराम खरडे आजवरच्या वाचनात सर्वात जास्त आडलेली साहित्याकृती….

विजय सातपुतेवाचनाचा वारसा  आईकडून मिळाला.  माझी आई 1967 सालची जगन्नाथ शंकर शेठ स्काॅलरशीप मिळालेली विदुषी आहे.  माझ्या दुप्पट वाचन तिचे आहे.  माझे वडील सरकारी कर्मचारी. पण वाचन संस्कृतीचा प्रचार  आणि प्रसार करण्यासाठी होम सर्व्हिस लायब्ररी भाग्यश्री वाचनालय सुरू केले. त्यामुळे विपुल वाचन केले  आहे. छावा कादंबरी, कुसुमाग्रज यांचा विशाखा कविता संग्रह  आणि शांता शेळके यांचा रेशीमरेघा कविता संग्रह या  आवडत्या साहित्य कलाकृती  आहेत.  डिटेक्टिव्ह कथा देखील खूप वाचायला  आवडतात.

काशिराम खरडे आपण पुणेकर आहात. पुणे हि खरंतर आपली सांस्कृतिक राजधानी. पण वेगळ्या अर्थाने विचारायचे झाल्यास पुणेरी पाट्या, पुणेरी टोमणे, पुणेरी लहेजा या व अशा इतर तत्सम गोष्टींमधूनही साहित्य डोकावतच असतं. पुण्याला साहित्याचा वारसाही खूप मोठा आहे. पुणेरी साहित्याबद्दल काय सांगाल…?

विजय सातपुते साहित्य जेव्हा लोकाभिमुख होते तेव्हा प्रांतनिहाय त्याचे वर्गीकरण लोकवैशिष्ट्ये पाहून केले जाते.  यात मनोरंजन,  प्रबोधन या बरोबरच स्वभाव प्रणित शब्द चित्र, व्यक्ती चित्रण देखील तुम्हाला लोकाभिमुख करतात. पुणेरी पाट्या, पुणेरी टोमणे याबरोबरीने  अभिजात साहित्यिक पुण्याने दिले आहेत.   वसंत बापट यांनी कित्येक संस्थाची घोषवाक्ये,  जाहिराती स्लोगन लिहिलेली आहेत. घेतलेल्या  अनुभवांच प्रगटीकरण करताना माणूस माणसाशी जोडला जावा हा लेखन  उद्देश मनात ठेऊन  आजवर चे लेखन  आणि साहित्यिक वाटचाल झाली आहे.  अजूनही सुरू आहे.

काशिराम खरडे कवितेबद्दल काय सांगाल…?

विजय सातपुते शब्दांचा प्रवास ह्रदयापासून ह्रदयापर्यत होताना होणारी कविता स्वतः जगते आणि  आपल्यातल्या माणसाला जगवते . कवितेने  मला  आजवर जे काही दिले आहे त्यात रसिकांचा  आशिर्वाद आणि दैनंदिन लेखन कला व्यासंग माझ्या दृष्टीने  अत्यंत महत्त्वाचा आहे.

जन्मणारी आपली प्रत्येक कलाकृती ही नवजात किंवा नवोदित  असते ती रसिकांसमोर स्पर्धा,  सादरीकरण या माध्यमातून  आली पाहिजे.  आपण  आता ज्येष्ठ झालो अमुक स्पर्धेत सहभागी होऊ नये हे मला पटत नाही. हा पण पुरस्कार मिळाले की लेखन  अधिक जबाबदारीने करावेसे वाटते त्यामुळे लेखन काळजीपूर्वक केले जाते. नाविन्य  आणि विविधता लेखनात  असावी त्या शिवाय लिखाण समृद्ध होत नाही  असे माझे मत आहे.  अनेक विषयांवर लेखन  आत्ता पर्यंत वृत्त पत्रातून कैले आहे.

काशिराम खरडे आणखी काय सांगाल…?

विजय सातपुते निवेदन, वृत्त पत्र लेखन,  काव्य लेखन,  कथा, कादंबरी,   आणि चित्रपट पटकथा लेखन  असा साहित्य प्रवास झाला आहे. दक्ष या  चित्रपटाची पटकथा व तीन गाणी लिहिली आहेत. मार्च 2020 मध्ये शुटिंग सुरू होईल. जय जवान, जय किसान या विषयावर सदर चित्रपट आहे.

प्रकाश पर्व हा कविता संग्रह जून 2019 मध्ये प्रकाशित झाला आहे. महाराष्ट्र भूषण  अष्टपैलू व्यक्ती मत्व म्हणून पुरस्कार डॉ  श्रीपाल.  सबनीस यांच्या हस्ते  आजवरच्या साहित्यिक वाटचालीकरता प्रदान करण्यात आला आहे.

निवेदन, वृत्त पत्र लेखन,  काव्य लेखन,  कथा, कादंबरी,   आणि चित्रपट पटकथा लेखन  असा साहित्य प्रवास झाला आहे. दक्ष या  चित्रपटाची पटकथा व तीन गाणी लिहिली आहेत. मार्च 2020 मध्ये शुटिंग सुरू होईल. जय जवान, जय किसान या विषयावर सदर चित्रपट आहे.

धन्यवाद विजय सातपुते जी. मोहरली लेखणी साहित्य समुहाला वेळ आणि मुलाखत दिली. आपल्या आगामी साहित्य प्रवासाला अनेक शुभेच्छा

प्रस्तुति – मोहरली लेखणी साहित्य समुह – आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत…

साभार – विजय यशवंत सातपुते, यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009., मोबाईल  9371319798.

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English Literature – Poetry ☆ Thoonth –The Tree Stump ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwj’s Hindi Poetry “ठूंठ” published previously as☆ संजय दृष्टि  – ठूँठ   We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

☆ Thoonth –the Tree Stump☆

 

Every tree stump

can grow

Green shoots

Innocent sprouts

Blossoming buds

Rainbow hues flowers,

With chirping birds

perched on them…

All it needs

A little manure

A little water

And plenty of love…

 

*Similarly*

Every person desires

An assuring pat on the back,

Soothing delectable fingers,

Soulful affectionate  eyes,

And, encouraging words,

Everyone has his own definite role…

You all stick together *In drive to green*  the stumps

And I will make sure

*No one ever becomes a* stump.

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM
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