योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – ☆  Laughter Exercise Regime for Daily Practice – Video #1 ☆ – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ Laughter Exercise Regime for Daily Practice ☆ 

Practice these exercises daily to be healthy, happy and wise.

How to LAUGH ALONE for HEALTH and HAPPINESS?

HAPPINESS ACTIVITY: Laughter Yoga

Laughter yoga is usually practiced in groups in the parks. But we need to laugh daily for health and happiness.

This is a learning video – a tutorial – for laughing alone every day.

 Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #1

 It demonstrates the following exercises:

Hoho haha warming up, tapping body and laughing, vowel breathing, pendulum breathing,aloha greeting, milk shake laughter, mobile laughter, just laugh, deep breathing, laughter cream, hearty laughter, silent laughter, laugh at yourself, mental floss, no AC in the room laughter,laughter meditation, humming and laughter yoga closing ritual.

Our Fundamentals:

Oor Fundamentals :
The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer
Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore
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हिन्दी साहित्य ☆ धारावाहिक उपन्यासिका ☆ पगली माई – दमयंती – भाग 8 ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

(आज से प्रत्येक रविवार हम प्रस्तुत कर रहे हैं  श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित ग्राम्य परिवेश पर आधारित  एक धारावाहिक उपन्यासिका  “पगली  माई – दमयंती ”।   

इस सन्दर्भ में  प्रस्तुत है लेखकीय निवेदन श्री सूबेदार पाण्डेय जी  के ही शब्दों में  -“पगली माई कहानी है, भारत वर्ष के ग्रामीण अंचल में पैदा हुई एक ऐसी कन्या की, जिसने अपने जीवन में पग-पग पर परिस्थितिजन्य दुख और पीड़ा झेली है।  किन्तु, उसने कभी भी हार नहीं मानी।  हर बार परिस्थितियों से संघर्ष करती रही और अपने अंत समय में उसने क्या किया यह तो आप पढ़ कर ही जान पाएंगे। पगली माई नामक रचना के  माध्यम से लेखक ने समाज के उन बहू बेटियों की पीड़ा का चित्रांकन करने का प्रयास किया है, जिन्होंने अपने जीवन में नशाखोरी का अभिशाप भोगा है। आतंकी हिंसा की पीड़ा सही है, जो आज भी  हमारे इसी समाज का हिस्सा है, जिनकी संख्या असंख्य है। वे दुख और पीड़ा झेलते हुए जीवनयापन तो करती हैं, किन्तु, समाज के  सामने अपनी व्यथा नहीं प्रकट कर पाती। यह कहानी निश्चित ही आपके संवेदनशील हृदय में करूणा जगायेगी और एक बार फिर मुंशी प्रेम चंद के कथा काल का दर्शन करायेगी।”)

☆ धारावाहिक उपन्यासिका – पगली माई – दमयंती –  भाग 8 – अंत्येष्टि ☆

(अब  तक आपने पढ़ा  —- किस प्रकार जहरीली शराब के सेवन से हाथ पांव  पीटते लोग मर रहे थे।  उसमें से एक अभागा पगली का पति भी था। अब आगे पढ़े—–)

उस दिन कुछ लोग उसके पति को सहारा दे पगली के दरवाजे पर लाये और घर से बाहर पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर लिटा कर चलते बने, घर के एक कोने में पड़ा उदास गौतम मौत की पीड़ा झेलते हाथ पांव पीटते अपने जन्मदाता को विवश हो सूनी सूनी आंखों से ताक रहा था।  कुछ भी करना उसके बस में नही था। वहीं पर पैरों के पास बैठी पगली अपने दुर्भाग्य पर अरण्य रुदन को विवश थी।  कोई भी तो नही था उसे ढाढ़स बंधाने वाला।  उसकी नशे की मस्ती अब मौत की पीड़ा में बदलती जा रही थी।

उस सर्द जाड़े की रात में जब सारा गाँव रजाइयों में दुबका नींद के आगोश में लिपटा पड़ा था। तब कोहरे की काली चादर में लिपटी रात के उस नीरव वातावरण में माँ बेटे रोये जा रहे थे कि- सहसा पास पड़े उस बेजान जिस्म में थोड़ी सी हलचल हुई, नशे में बंद आंखे थोड़ी सी खुली, जिसमें पश्चाताप के आंसू झिलमिलाते नजर आये,  हाथ क्षमा मांगने की मुद्रा में जुड़े, एक हिचकी आई फिर सब कुछ खामोश।

अब माँ बेटों के करूण क्रंदन से रात्रि की नीरवता भंग हो गई।  साथ ही गाँव के बाहर सिवान में सृगाल समूहों का झुण्ड हुंआ  हुंआ का शोर तथा कुत्तों का रूदन वातावरण को और डरावना बना रहे थे।

अब पगली के समक्ष पति के अन्त्येष्टि की समस्या एक यक्ष प्रश्न बन मुंह बाये खडी़ थी। जब कि उसके घर में खाने के लिए अन्न के दाने नही तो वह कफन के पैसे कहाँ से लाती।  यह तो भला हो उन गांव वालों का जो उसके बुरे वक्त में काम आए और अंतिम संस्कार में खुलकर मदद की तथा अपना पड़ोसी धर्म निभाया।

उस दिन उस गाँव के लोगों ने नशे से तबाह होते परिवार की पीड़ा को निकट से महसूस किया था तथा गाँव में किसी का चूल्हा उस दिन नहीं जला था। विधवा महिलाओं ने अपने वैधव्य का हवाला देकर उसे चुप कराया था। श्मशान में चिता पर लेटे पिता को मुखाग्नि का अग्नि दान दे गौतम ने अपने पुत्र होने का फर्ज निभाया था। वही श्मशान में कुछ दूर खड़ी पगली लहलह करती जलती चिता पर अपने जीवन के देवता के धू धू कर जलते शरीर को एकटक भाव शून्य चेहरे एवम् अश्रुपूरित नेत्रों से देखती जा रही थी।

ऐसा लगा जैसे उसे काठ मार गया हो, तभी सहसा गौतम माँ  के सीने से लग फूट फूट कर रो पड़ा था। उन माँ बेटों को रोता देख गाँव वासियों को लगा जैसे उनकी दुख पीड़ा देख महाश्मशान देवता भी रो पड़े हों।

– अगले अंक में7पढ़ें  – पगली माई – दमयंती  – भाग -9 –  संघर्ष 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (34) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ।।34।।

 

भजन यजन औ” नमन कर मन में मुझको देख

मुझे पायेगा भक्त हो मत्परायण सविवेक।।34।।

 

भावार्थ :  मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा।।34।।

 

Fix thy mind on Me; be devoted to Me; sacrifice unto Me; bow down to Me; having thus united thy whole self with Me, taking Me as the Supreme Goal, thou shalt verily come unto Me.।।34।।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे राजविद्याराजगुह्ययोगो नाम नवमोऽध्यायः ॥9॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ सच्ची सुहागन ☆ श्रीमती सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

श्रीमती सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

( आदरणीय श्रीमती सविता मिश्रा ‘ अक्षजा’ जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं  (लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, छंदमुक्त कविता, आलेख, समीक्षा, जापानी-विधा हायकु-चोका आदि)  की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आप एक अच्छी ब्लॉगर हैं। कई सम्मानों / पुरस्कारों  से सम्मानित / पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपकी कई रचनाएँ राष्ट्रिय स्टार की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं एवं आकाशवाणी के कार्यक्रमों में प्रसारित हो चुकी हैं।  ‘रोशनी के अंकुर’ लघुकथा एकल-संग्रह प्रकाशित| आज प्रस्तुत है उनकी एक लघुकथा ‘ सच्ची सुहागन ‘.   हम भविष्य में आपकी चुनिंदा रचनाएँ अपने पाठकों से साझा करने की अपेक्षा करते हैं । )

 ☆ लघुकथा – सच्ची सुहागन ☆

पूरे दिन घर में आवागमन लगा था। दरवाज़ा खोलते, बंद करते, श्यामू परेशान हो गया था। घर की गहमागहमी से वह इतना तो समझ चुका था कि बहूरानी का उपवास है। सारे घर के लोग उनकी तीमारदारी में लगे थे। माँजी के द्वारा लाई गई साड़ी बहूरानी को पसंद न आई थी, वो नाराज़ थीं। अतः माँजी सरगी की तैयारी के लिए श्यामू को ही बार-बार आवाज दे रही थीं। सारी सामग्री उन्हें देने के बाद, वह घर के सभी सदस्यों को खाना खिलाने लगा। सभी काम से फुर्सत हो, माँजी से कह अपने घर की ओर चल पड़ा।

बाज़ार की रौनक देख अपनी जेब टटोली, महज दो सौ रूपये । सरगी के लिए ही ५० रूपये तो खर्च करने पड़ेंगे। आखिर त्योहार पर, फल इतने महँगे जो हो जाते हैं। मन को समझा, उसने सरगी के लिए आधा दर्जन केले खरीद ही लिए। वह भी अपनी दुल्हन को सुहागन रूप में सजी-धजी देखना चाहता था, अतः सौ रूपये की साड़ी और

शृंगार सामग्री भी ले ली।

सौ रूपये की लाल साड़ी को देख सोचने लगा, मेरी पत्नी तो इसमें ही खुश हो जायेगी। उसकी धोती में बहत्तर तो छेद हो गए हैं। अब कोठी वालों की तरह न सही, पर दो-चार साल में तन ढ़कने का एक कपड़ा तो दिला ही सकता हूँ। बहूरानी की तरह मुँह थोड़े फुलाएगी। कैसे माँजी की दी हुई साड़ी पर बहूरानी नाक-भौंह सिकोड़ रही थीं। छोटे मालिक के साथ बाजार जाकर, दूसरी साड़ी ले ही आईं।

मन में गुनते हुए ख़ुशी-ख़ुशी सब कुछ लेकर घर पहुँचा। अपने छोटे साहब की तरह ही, वह भी अपनी पत्नी की आँख बंद करते हुए बोला- “सोच-सोच क्या लाया हूँ मैं?”

“बड़े खुश लग रहे हो। लगता है कल के लिए, बच्चों को भरपेट खाने को कुछ लाए हो! आज तो भूखे पेट ही सो गए दोनों।”

 

© श्रीमती सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

फ़्लैट नंबर -३०२, हिल हॉउस, खंदारी अपार्टमेंट, खंदारी, आगरा, पिन- 282002

ई-मेल : [email protected]

मो. :  09411418621

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तेज धूप ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – तेज धूप

 

एसी कमरे में अंगुलियों के

इशारे पर नाचते तापमान में

चेहरे पर लगा लो कितनी ही परतें,

पिघलने लगती है सारी कृत्रिमता

चमकती धूप के साये में,

मैं सूरज की प्रतीक्षा करता हूँ

जिससे भी मिलता हूँ

चौखट के भीतर नहीं

तेज़ धूप में मिलता हूँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

7:22 बजे, 25.1.2020

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बालिका दिवस विशेष – बेटियाँ ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  बालिका दिवस पर विशेष कविता  बेटियाँ )

 

बालिका दिवस विशेष – बेटियाँ

 

फूलों की हैं मुस्कान

मोतियों की आन-बान

सूर्य चंद्र उर्मि की

रोशनी है बेटियाँ ।।

 

आँखो में ब्रम्हांड लिए

देवियों सी अवतारी।

मात औ पिता के द्वारे

कल्याणी सी बेटियाँ।।

 

काल के कपाल पर

कपालिनी दुर्गा सी।

ढाल चमकाती काली

चामुंडा सी बेटियां।।

 

नहीं अब अनागतः

आस लिए भावी प्रातः।

प्राची से उभरती

ऊषा की दमक बेटियाँ।।

 

बालिका वधू ना अब

वैष्णवी सी तेजवान।

असुर संहारक सी

व्योम नापे बेटियां।।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 25 ☆ पतझड़ ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी एक भावप्रवण कविता  “पतझड़ ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 25 ☆

☆ पतझड़

 

मैंने देखा,

पतझड़ में

झड़ते हैं पत्ते,

और

फल – फूल भी

छोड़ देते हैं साथ।

बचा रहता है

सिर्फ ठूँस

किसलय की

बाट जोहते हुए।

 

मैंने देखा

उसी ठूँठ पर

एक घोंसला

गौरैया का,

और सुनी

उसके बच्चों की,

चहचहाट साँझ की।

ठूँठ पर भी

बसेरा और,

जीवन बढ़ते

मैंने देखा

पतझड़ में ।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 27 – अश्वत्थामा ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “ अश्वत्थामा ।)

Amazon Link – Purn Vinashak

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 27 ☆

☆ अश्वत्थामा 

महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने सक्रिय भाग लिया था। महाभारत युद्ध में वह कौरव-पक्ष का एक सेनापति था। उसने भीम-पुत्र घटोत्कच (अर्थ : गंजा व्यक्ति,उसका नाम उसके सिर की वजह से मिला था, जो केशो से वहींन था और एक घट, मिट्टी का एक पात्र की तरह के आकार का था, घटोत्कच भीम और हिडिंबा पुत्र था और बहुत बलशाली था) को परास्त किया तथा घटोत्कच पुत्र अंजनपर्वा(अर्थ : अज्ञात त्यौहार, उसे यह नाम मिला क्योंकि उसके जन्म के समय आस पास का वातावरण बिना किसी त्यौहार के ही त्यौहार जैसा हो गया था) का वध किया। उसके अतिरिक्त द्रुपदकुमार (अर्थ : दोषपूर्ण), शत्रुंजय (अर्थ : दुश्मन पर विजय), बलानीक (अर्थ : बच्चे की तरह निर्दोष), जयानीक (अर्थ : सत्य की जीत), जयाश्व (अर्थ : एक विशेष उद्देश्य में जीत)तथा राजा श्रुताहु (अर्थ : स्मृति का  प्रवाह)को भी मार डाला था। उन्होंने कुंतीभोज(अर्थ : ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा) के दस पुत्रों का वध किया। द्रोण और अश्वत्थामा पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत युद्ध के समय पाण्डव सेना को तितर-बितर कर दिया।

पांडवों की सेना की हार देख़कर भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर (अर्थ : “वह जो युद्ध में स्थिर है”, युधिष्ठिर पाँच पाण्डवों में सबसे बड़े भाई थे। वह पांडु और कुंती के पहले पुत्र थे। युधिष्ठिर को धर्मराज (यमराज) पुत्र भी कहा जाता है। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे) से कूटनीति सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत यह बात फैला दी गई कि “अश्वत्थामा मारा गया” जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होने उत्तर दिया”अश्वत्थामा मारा गया परन्तु हाथी”, परन्तु उन्होंने बड़े धीरे स्वर में “परन्तु हाथी” कहा, और झूट बोलने से बच गए। इस घटना से पूर्व पांडवों और उनके पक्ष के लोगों की भगवान श्री कृष्ण के साथ विस्तृत मंथना हुई कि ये सत्य होगा कि नहीं “परन्तु हाथी” को इतने स्वर में बोला जाए। श्रीकृष्ण ने उसी समय शन्खनाद किया, जिसके शोर से गुरु द्रोणाचार्य आखरी शब्द नहीं सुन पाए। अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर आपने शस्त्र त्याग दिये और युद्ध भूमि में आखें बन्द कर शोक अवस्था में बैठ गये। गुरु द्रोणाचार्य जी को निहत्ता जानकर द्रोपदी के भाई द्युष्टद्युम्न (अर्थ : “कार्रवाई में तेज”,पांचालराज द्रुपद का अग्नि तुल्य तेजस्वी पुत्र। यह पृषत अथवा जंतु राजा का नाती, एवं द्रुपद राजा का पुत्र था) ने तलवार से उनका सिर काट डाला। अश्वत्थामा ने द्रोणाचार्य वध के पश्चात अपने पिता की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए पांडवों पर नारायण अस्त्र का प्रयोग किया । जिसके आगे सारी पाण्डव सेना ने हथियार डाल दिए ।

युद्ध के 18 वें दिन केवल तीन कौरव योद्धा जीवित बचे थे अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा (अर्थ : आत्मविश्वास के लिए प्रसिद्ध)। उसी दिन अश्वत्थामा ने सभी पांडवों को मारने के लिए एक शपथ ली। रात्रि में अश्वत्थामा ने एक उल्लू देखा जो कौवे के परिवार पर आक्रमण करता था और सभी कौवों को मार देता था। इसे देखने के बाद, अश्वत्थामा भी ऐसा करने का निर्णय करता है।

उसने अपनी योजना को निष्पादित करने के लिए अपने साथी योद्धा कृपा और कृतवर्मा की सहायता ली। अश्वत्थामा ने इसी तरह की स्थिति में अपने पिता की मृत्यु का हवाला देते हुए अपने नियोजित हमले को न्यायसंगत ठहराया, और वचन दिया कि वह पांडवों को उसी तरह उत्तर देगा, क्योंकि उन्होंने युद्ध के नियमों का उल्लंघन करके उसके पिता की हत्या की थी।

जब तीनों ने पांडवों के शिविर पर हमला किया, तो उन्हें द्वारपर एक बड़े राक्षस का सामना करना पड़ा। उस राक्षस ने आसानी से अश्वत्थामा, कृपा और कृतवर्मा के हमले को निष्फल कर दिया। यह समझाते हुए कि भाग्य उनके पक्ष में नहीं है, अश्वत्थामा ने महादेव से आशीर्वाद लेने का निर्णय किया। रेवती नक्षत्र के सितारों की ऊर्जा (वह ऊर्जा अभी भी रेवती नक्षत्र के तारा समूह से गायब है) का बलिदान देने के साथ ही भगवान महाकाल की प्रार्थना करने के बाद, अश्वत्थामा अपने शरीर का अग्नि में बलिदान देने के लिए तैयार हो गया।उस पल में, महादेव उसे आशीर्वाद देने के लिए अपने भयानक गणों के साथ प्रकट हुए।

महादेव शिव ने कहा, “कृष्ण से ज्यादा मुझे कोई भी प्रेय नहीं है, उन्हें सम्मानित करने के लिए और उनके वचन पर मैंने  पांचालों (पांडवों के पुत्रों) की रक्षा की है। लेकिन तुम्हारी तपस्या बर्बाद नहीं हो सकती है” यह कहकर उन्होंने एक उत्कृष्ट, चमकती तलवार के साथ अश्वत्थामा के शरीर में प्रवेश किया। विनाशक दिव्यता से भरा, द्रोण का पुत्र ऊर्जा से चमकता हुआ पांडवों के शिविर में प्रवेश करता है। उसके बाद उन्होंने उसने द्युष्टद्युम्न को मार डाला। इसके बाद उसने युधामन्यु (अर्थ : युद्ध की भावना), उत्तमानुज (अर्थ : सबसे अच्छा छोटा भाई), द्रौपदी का पुत्र और शिखंडी (अर्थ : सिर के मुकुट या माला पर लगा ताला) सहित कई और लोगों की हत्या कर दी।कृपा और कृतवर्मा ने द्वार पर ही अश्वत्थामा का इंतजार किया और उन सभी को मार डाला जिन्होंने भागने की कोशिश की। फिर अश्वत्थामा ने  शिविर को भी अग्नि लगा दी, और अपना क्रोध जारी रखा।

पुत्रों के हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुन कर अर्जुन ने उस नीच कर्म हत्यारे ब्राह्मण के सिर को काट डालने की प्रतिज्ञा की। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुन अश्वत्थामा भाग निकला। भगवान श्रीकृष्ण को सारथी बनाकर एवं अपना गाण्डीव धनुष लेकर अर्जुन ने उसका पीछा किया। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो भय के कारण उसने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र को चलाना तो जानता था पर उसे लौटाना नहीं जानता था। उस अति प्रचण्ड तेजोमय अग्नि को अपनी ओर आता देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से विनती की, “हे जनार्दन! आप ही इस त्रिगुणमयी श्रृष्टि को रचने वाले परमेश्वर हैं। श्रृष्टि के आदि और अंत में आप ही शेष रहते हैं। आप ही अपने भक्तजनों की रक्षा के लिये अवतार ग्रहण करते हैं। आप ही ब्रह्मास्वरूप हो रचना करते हैं, आप ही विष्णु स्वरूप हो पालन करते हैं और आप ही रुद्रस्वरूप हो संहार करते हैं। आप ही बताइये कि यह प्रचण्ड अग्नि मेरी ओर कहाँ से आ रही है और इससे मेरी रक्षा कैसे होगी?”

भगवान श्रीकृष्ण बोले, “हे अर्जुन! तुम्हारे भय से व्याकुल होकर अश्वत्थामा ने यह ब्रह्मास्त्र तुम पर चलाया है, ब्रह्मास्त्र से तुम्हारे प्राण घोर संकट में हैं। वह अश्वत्थामा इसका प्रयोग तो जानता है किन्तु इसके निवारण से अनभिज्ञ है। इससे बचने के लिये तुम्हें भी अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा क्यों कि अन्य किसी अस्त्र से इसका निवारण नहीं हो सकता”

भगवान श्रीकृष्ण की इस मन्त्रणा को सुनकर महारथी अर्जुन ने भी तत्काल आचमन करके अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। दोनों ब्रह्मास्त्र परस्पर भिड़ गये और प्रचण्ड अग्नि उत्पन्न होकर तीनों लोकों को तप्त करने लगी। उनकी लपटों से सारी प्रजा दग्ध होने लगी। इस विनाश को देखकर अर्जुन ने संतों के अनुरोध पर अपने ब्रह्मास्त्र को वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा बदल कर अर्जुन के बेटे अभिमन्यु की विधवा के गर्भ की ओर कर दी।ब्रह्मास्त्र द्वारा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा (अर्थ : पार होना) के गर्भ पर हुए हमले से भगवान कृष्ण ने उत्तरा के भ्रूण को बचा लिया।

अभिमन्युका अर्थ अत्यधिक क्रोध है। अभिमन्यु चंद्रमा-देवता (चंद्र) के पुत्र वर्चस (अर्थ :प्रसिद्धि)का पुनर्जन्म था। जब चाँद-देवता से पूछा गया कि वह अपने पुत्र को धरती पर अवतरित कर दे, तो उसने एक समझौता किया कि उसका पुत्र सोलह वर्षों तक ही धरती पर रहेगा क्योंकि वह उससे ज्यादा समय तक अलग नहीं रह सकता है।

भगवान श्रीकृष्ण बोले, “हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोये हुये, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार वर्जित है। इसने धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोये हुये निरापराध बालकों की हत्या की है। जीवित रहेगा तो पुनः पाप करेगा। अतः तत्काल इसका वध कर दो। लेकिन मैंने तुमको भगवद् गीता में यह भी सिखाया है कि किसी भी परिस्थिति में गुरु (शिक्षक) और ब्राह्मण के पुत्र को कभी नहीं मारा जाना चाहिए। तो अब यह तुम पर निर्भर है कि तुम अश्वत्थामा के साथ क्या करेंगे। क्या तुम उसे एक धर्म के अनुसार दंडित करोगे या दूसरे के अनुसार उसे जीवन दान दोगे।

अर्जुन ने उत्तर दिया, “मेरे लिए आपका कथन हर परिस्थिति में अंतिम है। आपने मुझे गीता के व्याख्यान में बताया है कि किसी भी स्थिति में गुरु के पुत्र को नहीं मारना चाहिए, और भगवान मैं आपके उन्हीं वचनों का पालन करते हुए अश्वत्थामा को जीवन दान देता हूँ”

तब अर्जुन ने अश्वत्थामा को जीवित छोड़ दिया, लेकिन कृष्ण तो भगवान हैं वह अश्वत्थामा को ऐसे शर्मनाक कृत्य के लिए दंडित किए बिना कैसे छोड़ सकते थे।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के माथे से अमूल्य मणि को नोंच कर निकाल दिया। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तिष्क में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी। जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी।

भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम हजारोंवर्षों तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, कोई भी तुम्हें समझ नहीं पायेगा। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।

तो जब ऐसी स्थिति जीवन में आ जाये कि यदि आप कुछ करने के लिए अपने धर्म का पालन कर रहे हैं, और साथ ही साथ अपना धर्म तोड़ना भी पड़ रहा है, तो उस वर्तमान स्थिति में जो आपको सर्वप्रथम अपना उपयुक्त धर्म लगे वही करना चाहिए या जो आपकी आत्मा की पहली आवाज़ हो या अपने आंतरिक विवेक का पालन करना चाहिए जैसा की अर्जुन ने किया। बाकि धर्म भगवान स्वयं संभाल लेंगे जैसा की इस परिस्थिति में भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप देकर किया।

 

© आशीष कुमार  

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होत आहे रे # 18 ☆ वंशाचा दिवा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होत आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी  एक विचारणीय काव्य अभिव्यक्ति  वंशाचा दिवा । इस कविता के सन्दर्भ में उल्लेखनीय  एवं विचारणीय है कि – वंश का  दीप कौन?  पुत्र या पुत्री ? आप  स्वयं निर्णय करें ।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को नमन।)  

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 18 ☆

 

☆ वंशाचा दिवा ☆

(काव्यप्रकार:- मुक्तछंद)

 

वंशाचा दिवा लावा वंशाचा दिवा !

अहो प्रत्येक घरात लागायलाच हवा !

सुनेला मुलगा व्हायलाच हवा !

अशी होती समाजात हवा !!

 

आज काळ बदलला मते बदलली!

मुलगी झाली घरे आनंदली !

सासरच्यांची मते बदलली !

मुलगी झाली घरी लक्ष्मी आली !!

 

मुलगा तर हवाच हवा !

त्याशिवाय कां येणार जावई नवा!

मुलगी तर हवीच हवी !

कारण सूनही घरी यायला हवी !!

 

मुलामुलीत नको भेद !

जुन्या अपेक्षांना देऊया छेद !

संत म्हणती अमंगळ  भेदाभेद !

ऐकूनी त्यांचे बोल मिळतो आनंद !!

 

जुनी परंपरा जपावी खरी !

आजच्या काळाची गरजही न्यारी !

मुलगा काय अन् मुलगी काय!

अहो जुन्याला म्हणूया बाय बाय !!

 

मुलगा घेतो आईबाबांची काळजी!

मुलगी तर घेते सर्वांचीच काळजी !

मुलगा काय किंवा मुलगी काय बुवा !

दोन्हीही असतात वंशाचा दिवा !!

 

©®उर्मिला इंगळे

सतारा, महाराष्ट्र

दिनांक:-25 -1-2020

9028815585

 

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मराठी साहित्य – कादंबरी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ #5 ☆ मित….. (भाग-5) ☆ श्री कपिल साहेबराव इंदवे

श्री कपिल साहेबराव इंदवे 

(युवा एवं उत्कृष्ठ कथाकार, कवि, लेखक श्री कपिल साहेबराव इंदवे जी का एक अपना अलग स्थान है. आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशनधीन है. एक युवा लेखक  के रुप  में आप विविध सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के अतिरिक्त समय समय पर सामाजिक समस्याओं पर भी अपने स्वतंत्र मत रखने से पीछे नहीं हटते. हमें यह प्रसन्नता है कि श्री कपिल जी ने हमारे आग्रह पर उन्होंने अपना नवीन उपन्यास मित……” हमारे पाठकों के साथ साझा करना स्वीकार किया है। यह उपन्यास वर्तमान इंटरनेट के युग में सोशल मीडिया पर किसी भी अज्ञात व्यक्ति ( स्त्री/पुरुष) से मित्रता के परिणाम को उजागर करती है। अब आप प्रत्येक शनिवार इस उपन्यास की अगली कड़ियाँ पढ़ सकेंगे।) 

इस उपन्यास के सन्दर्भ में श्री कपिल जी के ही शब्दों में – “आजच्या आधुनिक काळात इंटरनेट मुळे जग जवळ आले आहे. अनेक सोशल मिडिया अॅप द्वारे अनोळखी लोकांशी गप्पा करणे, एकमेकांच्या सवयी, संस्कृती आदी जाणून घेणे. यात बुडालेल्या तरूण तरूणींचे याच माध्यमातून प्रेमसंबंध जुळतात. पण कोणी अनोळखी व्यक्तीवर विश्वास ठेवून झालेल्या या प्रेमाला किती यश येते. कि दगाफटका होतो. हे सांगणारी ‘मित’ नावाच्या स्वप्नवेड्या मुलाची ही कथा. ‘रिमझिम लवर’ नावाचं ते अकाउंट हे त्याने इंस्टाग्रामवर फोटो पाहिलेल्या मुलीचंच आहे. हे खात्री तर त्याला झाली. पण तिचं खरं नाव काय? ती कुठली? काय करते? यांसारखे अनेक प्रश्न त्याच्या मनात आहेत. त्याची उत्तरं तो जाणून घेण्यासाठी किती उत्साही आहे. हे पुढील भागात……”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #5 ☆ मित….. (भाग-5) ☆

अनोळखी असला तरी त्याच्या बद्दल खुप आपलेपणा वाटू लागला होता. आकर्षणाला ती सहसा भुलली नसती. तीने खुप विचार करून त्याच्यासोबत मैत्री केली होती. तिचा पर्सनल नंबरही दिला होता. त्यांनी फोनवर बोलण्यासाठी  दिवसातली एक विशिष्ट वेळ ठरवून घेतली होती. रोज सायंकाळी गावच्या बाहेर असलेल्या एकांत जागेत जाऊन मित तिच्याशी बोलत असे. येण्या- जाण्याचा रस्ता मुस्कानच्या घरावरून होता. म्हणून त्या वेळी ती त्याची वाट बघत असायची. रोहित सोबत असतांना केलेल्या स्मित हास्याने ती गोंधळली होती.  आणि आता त्याचं रोजचंच दिसणं तीला त्याच्याकडे ओढत होतं.  नाजूक फुलांवर बसण्यास फुलपाखरू उतावीळ असतं. पण इथे फूलच त्या फुलपाखराला आपल्या पाकळ्यामध्ये सामावून घ्यायला उत्सुक होतं.

मितला तिच्या मनात जे काही चाललं होतं त्याची पुसटशी कल्पनाही नव्हती. पण तिचं असं त्याच्या येण्याने फुलून जाणं, डोळ्यातले भाव त्याला नुसतं पाहिल्याने बदलणं त्याच्या बद्दल  तिच्या मनात गुंफत चाललेलं जाळं तिचे अब्बा आसिफ चाचा यांच्या नजरेतून मात्र सुटलं नाही. ग्रामपंचायत सदस्य असलेले आसिफ चाचा गावातले प्रतिष्ठित गृहस्थ होते. मितचे बाबा  आणि त्यांच्यातली मैत्री सगळं गाव जाणून होते.

एके दिवशी रिमझिम त्याला म्हटली

रिमझिम- मनमीत पहचानिए हम कहाँ है

ती त्याला प्रेमाने मनमीत म्हणत असे.

मित-  कहाँ?

रिमझिम- मै नही बताऊंगी. ये आपको पहचानना होगा.

तीने कोडं पाडत म्हटले.

मित – बताओं न प्लीज

रिमझिम- नही

आणि हसली

मित – कहाँ … कहाँ ….  । अच्छा चलो कोई हिंट तो……

त्याचं वाक्य अपूर्ण राहीलं तेव्हा त्याला रेल्वेचा हॉर्न ऐकू आला.  त्याने तिला विचारलं

मित- तुम ट्रेन मे हो?

रिमझिम- जी हाँ. मगर आपने कैसे पहचाना.

मित – ट्रेन का हॉर्न सुना.  कहाँ जा रही हो

रिमझिम- हम हमारी फॅमिली के साथ महाराष्ट्र जा रहे है . टूर पर.

हे एकून मितला आभाळ ठेंगणी वाटू लागले. जणू ढगांना गार हवा मिळाल्याने जसे ते आकाशात उंच जातात.  तसंच त्याला वाटत होते.  हर्षाने अगदी उड्या मारू लागला तो.

रिमझिम- आप दिखाएँगे हमे आपका महाराष्ट्र. हम आपके लिए एक सरप्राईझ भी ले कर आ रहे है .

मित – क्या सरप्राईझ.

त्याला धीर निघत नव्हता.

रिमझिम- सरप्राईझ सरप्राईझ होता है बुद्धू . बताया थोड़े ही जाता है.

मित- अच्छा जी. कब तक पहुँचोगी

रिमझिम- अभी तो गुवाहाटी मे है . तीन दिन तो लग ही जाएँगे .

मित ( स्वतःशीच)- केव्हा जातील हे तीन दिवस

रिमझिम- क्या?

मित- कूछ नही. आपके स्वागत के लिए बेताब हूँ मै.

 

त्या दिवशी मित खुप खुश होता.

 

” क्या होगा तुमसे सामना  होगा

दिल रहेगा मेरा या तुम्हारा होगा

थोड़ी-सी शरारत भी नही कर

पायेगा ये नादान

कुछ इस कदर तुझमे डूबा होगा

आपोआपच त्याला ह्या ओळी सुचल्या. अगदी स्वरबद्ध गाऊन त्याने त्याची मनाची स्थिती स्वतःसमोर व्यक्त केली. आणि घरी यायला निघाला. येतांना त्याला मुस्कान दिसली.  त्याने स्मित केले. पण तो त्याच्या धुंदीत होता.  तिला वाटले आपल्याला बघुन केले असावे म्हणून तिने स्वतः च लाजून खाली मान घातली. जे आसिफ चाचानी हेरले.

 

 (क्रमशः)

© कपिल साहेबराव इंदवे

मा. मोहीदा त श ता. शहादा, जि. नंदुरबार, मो  9168471113

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