हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ नया दौर ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन

डॉ अ कीर्तिवर्धन

ई- अभिव्यक्ति  में डॉ अ कीर्तिवर्धन जी  का हार्दिक स्वागत है। हम भविष्य में आपके सद्साहित्य को अपने पाठकों तक पहुंचाने का  प्रयास  करेंगे । इसी तारतम्य में प्रस्तुत है आपकी में आपकी एक अतिसुन्दर कविता ” नया दौर “ )

 ☆ नया दौर ☆

 

नये दौर के इस युग में, सब कुछ उल्टा पुल्टा है,

महँगी रोटी सस्ता मानव, गली गली में बिकता है।

 

कहीं पिंघलते हिम पर्वत, हिम युग का अंत बताते हैं,

सूरज की गर्मी भी बढ़ती, अंत जहां का दिखता है।

 

अबला भी अब बनी है सबला, अंग प्रदर्शन खेल में,

नैतिकता का अंत हुआ है, जिस्म गली में बिकता है।

 

रिश्तो का भी अंत हो गया, भौतिकता के बाज़ार में,

कौन पिता और कौन है भ्राता, पैसे से बस रिश्ता है।

 

भ्रष्ट आचरण आम हो गया, रुपया पैसा खास हो गया,

मानवता भी दम तोड़ रही, स्वार्थ दिलों में दिखता है।

 

पत्नी सबसे प्यारी लगती, ससुराल भी न्यारी लगती,

मात पिता संग घर में रहना, अब तो दुष्कर लगता है।

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तर प्रदेश )

8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 20 ☆ संतोष के दोहे ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष”  की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  उनके  अतिसुन्दर दोहे  “संतोष के दोहे ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 20 ☆

☆ उन्नीस बीस ☆

खुलकर स्वागत कीजिये,द्वार खड़ा अब बीस

करिये अब हँसकर विदा,बाय बाय उन्नीस

बाय बाय उन्नीस,जाते जाते रो दिया

देकर नवीन सीख,सदा के लिये सो गया

कहते कवि “संतोष’,बीस होगा अब हटकर

रखिये दिल में जोश,करें राष्ट्र हित खुलकर

 

☆ जीवन  ☆

जीवन के हर मोड़ पर,लें साहस से काम

मुश्किलों से डरें नहीं,आती रहें तमाम

आती रहें तमाम,दिल करिए कभी न छोटा

भजिये सीताराम, काम करें नहीं खोटा

कहते कवि “संतोष”,नहीं हों आश्रित मन के

हर क्षण रखिये होश,साथ अनुभव जीवन के

 

☆ उपवन  ☆

मन उपवन फूले फले,आये नई बहार

काँटो से हो दोस्ती,ऐसा हो किरदार

ऐसा हो किरदार, सभी को गले लगाले

रहे प्रेम व्यबहार,रूठों को भी मना ले

कहते कवि “संतोष”,स्वस्थ जब होगा तन- मन

दिल में हो जब जोश,खिलेगा तब मन उपवन

 

☆ अटल ☆

दृढ़ संकल्पित हों अगर, बनते मुश्किल काम

लक्ष्य कभी ना छोडिये,आयें विघ्न तमाम

आयें विघ्न तमाम, न डरकर पीछे हटिये

मिले न जब तक लक्ष्य ,सदा काम पर डटिये

कहते कवि “संतोष”,जीत उनकी है निश्चित ।

भरकर मन में जोश,रहें जो दृढ़ संकल्पित ।।

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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सूचनाएँ/Information – ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय बालसाहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित ☆

सूचनाएँ/Information

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय बाल साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित ☆

रतनगढ़ (निप्र)। सन 1937 में स्थापित साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा प्रतिवर्ष तीन दिवसीय साहित्यकार सम्मेलन आयोजित करता आ रहा है । यह कार्यक्रम प्रसिद्ध साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद देवपुरा के स्मृति में आयोजित होता हैं । इस वर्ष आयोजित कार्यक्रम में देश भर से आमंत्रित सुप्रसिद्ध साहित्यकारों के बीच नीमच जिले के प्रसिद्ध बाल साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ को शाल, श्रीफल, माला, श्रीनाथ जी की छाया कृति, पेन, फोल्डर, उपर्णा और उपाधि पत्र प्रदान कर बालसाहित्य भूषण से सम्मानित किया गया । आप को यह सम्मान बालसहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य और सेवा के लिए दिया गया। आप का यह सम्मान साहित्य जगत के लिए गौरव की बात हैं । इस के लिए ईष्ट मित्रों, साहित्यकार साथियों और पत्रकार बंधुओं ने आप को हार्दिक शुभकामनाएं प्रदान की हैं ।

ई-अभिव्यक्ति द्वारा श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”  जी को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई।

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (18) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।

प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌।।18।।

 

गति,भर्ता,प्रभु साक्षी हूँ निवास,विश्राम

जन्म मरण दाता अमर बीज प्रदीप ललाम।।18।।

 

भावार्थ :  प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम ‘निधान’ है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ।।18।।

 

I am the goal, the support, the Lord, the witness, the abode, the shelter, the friend, the origin, the dissolution, the foundation, the treasure-house and the imperishable सीड। ।।18।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 15 ☆ लघुकथा – अनुष्ठान ☆ – डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी . उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं. अब आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी  एक  लघुकथा  “ अनुष्ठान ”।  हम  कितने भी कर्मकांड कर लें किन्तु, यदि मानसिकता नहीं बदली तो फिर कर्मकांड तो कर्मकांड ही रहेंगे न ? डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को ऐसी रचना रचने के लिए सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 15 ☆

☆ लघुकथा – अनुष्ठान ☆ 

असल में पूरी पंडिताइन हैं वो। भई, गजब की पूजा- पाठ। कोई व्रत- त्यौहार नहीं छोड़तीं, करवाचौथ, हरितालिका सारे व्रत निर्जल रहती हैं। आज के समय में भी प्याज- लहसुन से परहेज है। अन्नपूर्णा देवी का व्रत करती है, इस बार उद्यापन करना था। धूमधाम से तैयारी चल रही थी।

इक्कीस ब्राह्मणों को भोजन कराना था। दान-दक्षिणा अपनी श्रद्धा तथा सामर्थ्य के अनुसार। पूजा की सामग्री में इक्यावन मिट्टी के दीपक लाने थे। कुम्हारवाड़ा घर से बहुत दूर था। पास के ही बाजार में एक बूढी स्त्री दीपक लिए बैठी दिख गई। पच्चीस रुपये में इक्यावन दीपक खरीद लिए। पंडिताइन ने पचास का नोट निकाल कर बूढी स्त्री को दिया और दीपक थैले में रखने लगीं। ‘पंडित जी ने बोला है कि दीपकों में खोट नहीं होना चाहिए, किसी दीपक की नोंक जरा भी झड़ी न हो।’

देखभाल कर बड़ी सावधानी से दीपक रखने के बाद पंडिताइन ने पच्चीस रुपए वापस लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया। बूढी माई ने धुंधली आँखों से पचास के नोट को सौ का समझ, ७५ रुपए पंडिताइन के हाथ में वापस रख दिए। पंडिताइन की आँखें चमक उठीं। वे बडी तेजी से लगभग दौड़ती हुई सी वहाँ से चल दीं। अपनी गलती से अनजान बूढी माई शेष दीपकों को संभाल रही थी।

अन्नपूर्णा देवी के अनुष्ठान की तैयारी अभी बाकी थी। पंडिताइन पूजा की सामग्री के लिए दूसरी दुकान की ओर चल दीं।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – केंचुली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – केंचुली ☆

केंचुली उतारते साँप को देखा
कौन अधिक विषधर
चेहरे चढ़ाते इंसान को देखा।
व्यवहार में पारदर्शिता रहे, सम्बंधों में समदर्शिता रहे।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा – ☆ लुढ़कता पत्थर ☆ – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित एक सार्थक एवं सटीक  लघुकथा   “लुढ़कता पत्थर ”.)

☆ लघुकथा – लुढ़कता पत्थर

नेताजी सत्ता प्रेमी थे । सत्ता के साथ रंग बदलना उनकी फितरत में था । राज्य में परिवर्तन की लहर के साथ उनकी आस्था सत्ता में बदलते समीकरण को बैठाने के लिये व्याकुल थी ।

आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और वे सत्ता पक्ष में शामिल हो गये । उनके बदलते रंग को देखकर उनके पुराने मित्रों ने उन्हें गिरगिट की संज्ञा दी , तब उन्होंने तपाक से जुमला कसा –” समय के साथ जो नहीं बदलता , समय उसे बदल देता है ।मित्रवर यह हमेशा ध्यान रखिये लुढ़कते पत्थर पर कभी काई नहीं जमती । ”

 

© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,मध्य प्रदेश – 482002
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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण #4 ☆ बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(हम श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा प्रस्तुत उनके यात्रा संस्मरण बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास  को हमारे पाठकों के साथ साझा करने के लिए हृदय से आभारी हैं।  श्री अरुण जी ने इस यात्रा के  विवरण को अत्यंत रोचक एवं अपनी मौलिक शैली में  हमारे पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है। श्री अरुण जी ने अपने ऐतिहासिक अध्ययन के साथ सामंजस्य बैठा कर इस साहित्य को अत्यंत ज्ञानवर्धक बना दिया है। अक्सर हम ऐसे स्थानों की यात्रा तो कर लेते हैं किन्तु हम उन स्थानों के इतिहास पर कभी ध्यान नहीं देते और स्वयं  को मोहक दृश्यों और कलाकृतियों के दर्शन मात्र तक सीमित कर लेते हैं।  यह यात्रा संस्मरण श्रृंखला निश्चित ही आपको एक नूतन अनुभव देगी।  आपकी सुविधा के लिए इस श्रंखला को हमने  चार भागों में विभक्त किया है जिसे प्रतिदिन प्रकाशित करेंगे। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें।)

कल सखेद तकनीकी त्रुटि के कारण यात्रा संस्मरण #3 अधूरा प्रकाशित हुआ था जिसे आप पुनः निम्न लिंक पर पूरा पढ़ सकते हैं –

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण # 4 ☆ बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास  ☆

 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण # 4 ☆ बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास  ☆

तुंगभद्रा नदी कर्नाटक के दो जिलों बेल्लारी और कोप्पल के बीच बहती है। इन्हीं दोनो जिलों की भौगोलिक सीमा में त्रेता युग की राम कथा में वर्णित किष्किन्धा स्थित है। आज जब सुबह निकले तो सबसे पहले हम पांच सौ पचास सीढ़ियां चढकर आंजनाद्री पर्वत पहुंचे।  पर्वत शिखर पर हनुमान, उनकी माता अंजना व राम लक्ष्मण जानकी की प्रतिमा एक मंदिर में स्थापित हैं। यह रामायण के योद्धा हनुमान की जन्मस्थली है। हनुमान मंदिर में 2011से सतत अखंड रामचरितमानस का पाठ हो रहा है। इस पर्वत शिखर से तुंगभद्रा नदी की घाटी का विहंगम दृष्य दिखता है जो अत्यन्त मनोहारी है। हम्पी के अनेक मंदिर स्पष्ट दिखते हैं। यद्यपि धुंध बहुत थी तथापि हमें विरुपाक्ष मंदिर का गोपुरम व कृष्ण मंदिर दिखाई दिये।मंद मंद बहती पवन और प्रकृति के रमणीय दृश्य  ने सारी थकान दूर कर दी। आंजनाद्री पर्वत के पास ही ऋष्यमुक पर्वत है और इसी स्थल पर हनुमानजी ने सर्वप्रथम ब्राह्मण रुप धरकर राम व लक्ष्मण से भेंट की थी। यह पर्वत अंदर की ओर है वह चढ़ाई अत्यन्त कठिन है। कुछ ही दूरी पर एक और रमणीक स्थल है सनापुरा झील। पहाड़ों से घिरी इस झील से निकली नहर  आंध्र प्रदेश के खेतों की सिंचाई करती है। आगे ग्रामीण क्षेत्रों के बीच से गुजरते हुए, पर्वतों के पत्थरों और धान के खेत व केला, नारियल के वृक्षों को निहारते  हम पंपा सरोवर पहुंचे। यहीं शबरी का आश्रम है। शबरी आश्रम के आगे बाली की गुफा है और वहां से आगे बढने पर चिंतामणि गुफा है, जहां बैठकर राम, लक्ष्मण ने हनुमान व सुग्रीव से बाली वध की योजना बनाई थी। इसी स्थल के सामने काफी दूरी पर तारा पर्वत है और वहीं बाली व सुग्रीव के मध्यम मल्ल युद्ध हुआ था और राम ने इसी स्थान से तीर छोड़कर बाली वध किया था। वापस हम्पी आते समय हमने मधुवन भी देखा जहां अंगद वे हनुमान की वानर सेना ने सीता का पता लगाने के बाद किष्किन्धा प्रवेश पश्चात उत्पात मचाकर सुग्रीव के प्रिय वन को तहस नहस कर दिया था। किष्किन्धा क्षेत्र में जहां जहां श्रीराम व लक्ष्मण गये वहां देवनागरी लिपि हिन्दी के दिशापटल लगे हुए हैं। यहां उत्तर भारत से रामानंदी संप्रदाय के साधु संत भ्रमण करते काफी संख्या में दिखते हैं। इन्ही संतों ने सम्भवतया इस सूदूर दक्षिण वन प्रांत में तुलसी कृत रामचरितमानस के अंखड पाठ की परम्परा शुरू की है। अनेक स्थलों पर भोजन भंडारा का नियमित आयोजन होता है। स्थानीय निवासियों को हमने लाल रंग के वस्त्र पहनकर हनुमानजी की आराधना करते देखा। वे मान्यताएं मानकर आराधना अवधि में नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं।

हम्पी के पास  ही माल्यवन्त पर्वत है। यहां भगवान राम ने वन गमन के समय चतुर्मास व्यतीत किया और फिर लंका की ओर सैन्य अभियान के लिए प्रस्थान किया था। कुछ स्थल व स्मृतियां  तत्संबंध में जनश्रुतियों में वर्णित हैं पर हम उन्हें न देख सके। यहां सत्रहवीं सदी में निर्मित रघुनाथ मंदिर के दर्शन किए। कुछ देर मानस का पाठ सुना और तभी दो विदेशी सैलानियों को मानस का पाठ करने वाले पंडित जी ने इशारे से बुलाया और उन्हें मंजीरा बजाने को दिए। दोनों भाव विभोर हो मंजीरा बजाने में मग्न हो उठे। सांयकाल कोई सवाल पांच बजे रघुनाथ मंदिर के पार्श्व में स्थित पहाड़ पर बैठकर हमने सूर्यास्त की मधुर झलकियां देखी। श्वेत सूर्य पहले पीला और फिर लाल रंग के गोले में देखते-देखते परिवर्तित हो गया। बादल भी दिवाकर के साथ अठखेलियां करने लगे और फिर भास्कर कहां चुप रहते वे भी मेघों को प्रसन्न करने बीच बीच में  छुप हमें आभास कराते कि वे अब पश्चिम दिशा की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। अचानक वे फिर दिखते तो मेघ उन्हें दो हिस्सों में बांट देते। देखते देखते कोई 5.45बजे सूर्यास्त हो गया और हम अपने होटल विजयश्री रिसार्ट वापस आ गये।

हम्पी कैसे पहुंचे :- निकटतम  हवाई अड्डा बंगलोर से हम्पी  335 किलोमीटर दूर है व निकटतम रेलवे स्टेशन होसपेट है। बंगलौर से सड़क मार्ग से बस द्वारा भी 6-7 घंटे में हम्पी पहुंचा जा सकता है। गोवा से यह लगभग 500 किलोमीटर दूर है।

हम्पी यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे बेहतर है। ग्रीष्म काल में तापमान 45डिग्री सेल्सिअस तक पहुँच जाता है।

हम्पी में ठहरने के लिए अच्छे होटल हैं। मंदिरों व तीर्थ स्थल होने के कारण माँसाहार प्राय अनुपलब्ध है। स्थानीय शाकाहारी भोजन में दक्षिण भारत के  विभिन्न व्यंजन का स्वाद अवश्य लेना चाहिए। यहाँ केले की सब्जी, विभिन्न प्रजातियों के केले व नारियल पानी का स्वाद अलग ही है

मंदिर व विजयनगर साम्राज्य के भग्नावशेष, रामायण कालीन किष्किन्धा नगरी और चालुक्य साम्राज्य की बादामी के अलावा यहाँ देखने के लिए अनेक स्थल जैसे अनेगुंडी का किला, काला भालू अभ्यारण्य दरोजी, तुंगभद्रा बाँध, कूडल संगम ( कृष्ण, घटप्रभा व मलप्रभा नदी का संगम स्थल ) आदि दर्शनीय स्थल हैं।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 8 ☆ कविता – अस्मिता बनी रहे ☆ डॉ. राकेश ‘चक्र’

डॉ. राकेश ‘चक्र’

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि डॉ राकेश ‘चक्र’ जी ने  ई- अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से अपने साहित्य को हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर लिया है। इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण कविता  “अस्मिता बनी रहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 8 ☆

☆  अस्मिता बनी रहे ☆ 

 

अस्मिता बनी रहे

सुष्मिता बनी रहे

देश में रहे अमन

स्वच्छता बनी रहे

 

कर्म हम सुभग करें

झूठ से नहीं डरें

प्रीति-रीति जिंदगी

नेह का सफर करें

 

पोर-पोर में पुनीत

नव्यता बनी रहे

 

देश के लिए जिएँ

देश के लिए मरें

सत्य-पंथ पर चलें

रंग प्रेम के भरें

 

मुस्कुराएँ ताल-स्वर

काव्यता बनी रहे

 

सृष्टि को करें नमन

वृष्टि का करें शमन

छोड़कर बुराइयाँ

हो सदा अमन-चमन

 

सोच योगमय रहे

सभ्यता बनी रहे

 

लोभ, क्रोध हैं मरण

दानवीर हैं करण

मात-पित्र भक्ति ही

देवतुल्य आचरण

 

ज्ञान के प्रकाश में

भव्यता बनी रहे

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी,  शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उ.प्र .

मोबाईल –9456201857

e-mail –  [email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 27 ☆ व्यंग्य – किताबों के मेले ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा  रचनाओं को “विवेक साहित्य ”  शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे.  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य  “किताबों के मेले”.   श्री विवेक जी को धन्यवाद एक सदैव सामयिक रहने वाले व्यंग्य के लिए।  पाठक से अधिक लेखक को पुस्तक मेले की प्रतीक्षा रहती है। शायद  पुस्तक मेलों में लेखक को  अपना भविष्य और प्रकाशक को  अगले पुस्तक मेले तक उनकी अर्थव्यवस्था । गंभीर पाठकों के अलावा सस्ते दामों पर पुस्तकें तो फुटपाथ पर ही मिलती हैं। वरना तथाकथित  “सेल्फ पब्लिशिंग ” का गणित मात्र लेखक और प्रकाशक ही जानते हैं । इस व्यंग्य को पढ़कर कमेंट बॉक्स में बताइयेगा ज़रूर। श्री विवेक रंजन जी ऐसे बेहतरीन व्यंग्य के लिए निश्चित ही बधाई के पात्र हैं.  )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य  # 27 ☆ 

☆  किताबों के मेले 

कलमकार जी अपने गांव से दिल्ली आये हुये थे किताबो के मेले में. दिल्ली का प्रगति मैदान मेलो के लिये नियत स्थल है, तारीखें तय होती हैं एक मेला खत्म होता है, दूसरे की तैयारी शुरू हो जाती है. सरकार में इतने सारे मंत्रालय हैं, देश इतनी तरक्की कर रहा है, कुछ न कुछ प्रदर्शन के लिये, मेले की जरूरत होती ही है. साल भर मेले चलते रहते हैं. मेले क्या चलते रहते हैं, लोग आते जाते रहते हैं तो चाय वाले की, पकौड़े वाले की, फुग्गे वाले की आजीविका चलती रहती है. इन दिनो किताबो का मेला चल रहा है. चूंकि मेला किताबों का है, शायद इसलिये किताबें ज्यादा हैं आदमी कम. जो आदमी हैं भी वे लेखक या प्रकाशक, प्रबंधक ज्यादा हैं, पाठक कम. लगता है कि पाठको को जुटाने के लिये पाठको का मेला लगाना पड़ेगा. मेले में तरह तरह की किताबें हैं.

कलमकार जी को सबसे पहले मिलीं रायल्टी देने वाली किताबें, ये ऐसी किताबें हैं जिनके लिखे जाने से पहले ही उनकी खरीद तय होती है. इनके लेखक बड़े नाम वाले होते हैं, कुछ के नाम उनके पद के चलते बड़े बन जाते हैं, कुछ विवादों और सुर्खियो में रहने के चलते अपना नाम बड़ा कर डालते हैं. ये लोग आत्मकथा टाइप की पुस्तकें लिखते हैं. जिनमें वे अपने बड़े पद के बड़े राज खोलते हैं, खोलते क्या किताबों के पन्नो में हमेशा के रिफरेंस के लिये बंद कर डालते हैं. इन किताबों का मूल्य कुछ भी हो, किताब बिकती है, लेखक के नाम के कांधे पर बिकती है. सरकारी खरीद में बिकती है. लेखक को रायल्टी देती है ऐसी किताब. प्रकाशक भी इस तरह की किताबें सजिल्द छापते हैं, भव्य विमोचन करवाते हैं, नामी पत्रिकायें इन किताबों की समीक्षा छापती हैं.

दूसरे तरह की किताबें होती हैं बच्चो की किताबें, अंग्रेजी की राइम्स से लेकर विज्ञान के प्रयोगो और इतिहास व एटलस की, कहानियों की, सुस्थापित साहित्य की ये किताबें प्रकाशक के लिये बड़ी लाभदायक होती हैं. इन रंगीन, सचित्र किताबों को खरीदते समय पिता अपने बच्चो में संस्कार, ज्ञान, प्रतियोगिताओ में उत्तीर्ण होने के सपने देखता है. बच्चे बड़ी उत्सुकता से ये किताबें खरीदते हैं, पर कम ही बच्चे इन्हें पूरा पढ़ पाते हैं, और उनमें से भी बहुत कम इनमें लिखा समझ पाते हैं, पर जो जीवन में इन किताबो को उतार लेता है, ये किताबें उन्हें सचमुच महान बना देती हैं. कुछ बच्चे इन किताबों के स्टाल्स के पास लगी रंगीन नोटबुक, डायरी, स्टेशनरी, गिफ्ट आइटम्स की चकाचौंध में ही खो जाते हैं, वे इन किताबों तक पहुंच ही नही पाते, ऐसे बच्चे बड़े होकर व्यापारी तो बन ही जाते हैं.

कलमकार जी ज्यों ही धार्मिक किताबो के स्टाल के पास से निकले तो ये किताबें पूछ बैठी हैं  उनके आस पास सीनियर सिटिजन्स ही क्यों नजर आते हैं ?  वह तो भला हो  रेसिपी बुक्स, ट्रेवलाग, काफी टेबल बुक्स, गार्डनिंग,गृह सज्जा  और सौंदर्य शास्त्र के साथ घरेलू नुस्खों की किताबों के स्टाल का जहां कुछ  नव यौवनायें भी दिख गईं कलमकार जी को.

एक बड़ा सेक्शन  देश भर से पधारे, अपने खर्चें पर किताबें छपवाने वाले झोला धारी कलमकार जी जैसे कवियों और लेखको  के प्रकाशको का था, ये प्रकाशक लेखक को अगले एडीशन से रायल्टी देने वाले होते हैं. करेंट एडीशन के लिये इन प्रकाशको को सारा व्यय रचनाकार को ही देना होता है, जिसके एवज में वे लेखक की डायरी को किताब में तब्दील करके स्टाल पर लगा देते हैं. किताब का  बढ़िया सा विमोचन समारोह संपन्न होता है, विमोचन के बाद भी जैसे ही घूमता हुआ कोई बड़ा लेखक स्टाल पर आता है  किताब का पुनः लोकार्पण करवा कर हर हाथ में मोबाईल होने का सच्चा लाभ लेते हुये लेखक के फेसबुक पेज के लिये फोटो ले ली जाती है. ऐसा रचनाकार आत्ममुग्ध किताबों के मेले का आनन्द लेता हुआ, कोने के टी स्टाल पर इष्ट मित्रो सहित चाय पकौड़ो के मजे लेता मिलता है.

मेले के बाहर  फुटपाथ पर भी विदेशी अंग्रेजी उपन्यासों का मेला लगा होता है, पुस्तक मेले की तेज रोशनी से बाहर बैटरी की लाइट में बेस्ट सेलर बुक्स सस्ती कीमत पर यहां मिल जाती हैं. दुनियां में हर वस्तु का मूल्य मांग और सप्लाई के इकानामिक्स पर निर्भर होता है किन्तु किताबें ही वह बौद्धिक संपदा है, जिनका मूल्य इस सिद्धांत का अपवाद है, किसी भी किताब का मूल्य कुछ भी हो सकता है. इसलिये अपने लेखक होने पर गर्व करते और कुछ नया लिख डालने का संकल्प लिये कलमकार जी लौट पड़े किताबों के मेले से.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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