हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 7 ☆ लघुकथा – शर्मिंदगी ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक  संस्मरणात्मक, शिक्षाप्रद एवं सार्थक लघुकथा   “शर्मिंदगी ”।)

☆ साप्ताहक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 7 ☆

☆ लघुकथा – शर्मिंदगी ☆

उसके ब्लाउज की फटी हुई आस्तीन से गोरी बाजू साफ झलक रही थी।

मेरी कमउम्र बाई कशिया को इसका भान तक न था। रसोईघर में घुसते ही मेरी नजर उस पर पड़ी तुरन्त ही मैने आँखो से इशारा किया, पर वह इशारा  नहीं समझ सकी। घर पर बडे-बड़े बच्चे और नाती पोते सभी थे।

उसके न समझने पर मैने उस समय कुछ न कहा और अंदर से एक ब्लाउज लाकर कशिया को देती हुई उससे बोली -“जा  गुसलखाने में जाकर बदल आ।”

वह मुझे हैरानी से देखने लगी। मगर बिना कुछ बोले  वह और गई ब्लाउज  बदल कर आ गई।

उसके हाथ में अब भी उसका वह ब्लाउज था। वह अब भी मुझे  हैरानी से ताक रही थी। ये देख मैने उसका ब्लाउज अपने हाथ में लेकर उसे फटा हुआ हिस्सा दिखाया।

वह अचकचा गई और शरम के कारण उसकी नजरें झुक गई। वह धीरे से बोली – “बाई हम समझ ही नहीं पाये जल्दी – जल्दी पहन आये। रास्ते में एक आदमी चुटकी ले रहा था। वह गा रहा था धूप में निकला न करो …….गोरा बदन काला न पड़ जाये।”

“कोई बात नहीं। पर ध्यान रखो घर से निकलते वक्त कपड़ो पर एक निगाह जरूर डालनी चाहिए ताकि बाद में कोई शर्मिंदगी न हो।”

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (16) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।

मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ।।16।।

मै ही कृति हूँ यज्ञ हूँ,स्वधा,मंत्र,घृत अग्नि

औषध भी मैं,हवन मैं प्रबल जैसे जमदाग्नि।।16।।

भावार्थ :  क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ।।16।।

 

I am the Kratu; I am the Yajna; I am the offering (food) to the manes; I am the medicinal herb and all the plants; I am the Mantra; I am also the ghee or melted butter; I am the fire; I am the oblation.।।16।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 1 ☆ राजनीति शास्त्र बनाम राजनैतिक शस्त्र ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(माँ सरस्वती तथा आदरणीय गुरुजनों के आशीर्वाद से “साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति” प्रारम्भ करने का साहस/प्रयास कर रहा हूँ। कुछ समय से आपकी अपनी ब्लॉग साइट/ई-पत्रिका “ई-अभिव्यक्ति” के सम्पादन में से समय निकाल कर कुछ नया लिखने और अपने पुराने साहित्य के अवलोकन के लिए समय नहीं निकाल पा रहा था। अब स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा एवं अपनी स्वांतःसुखाय रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। इस आशा के साथ ……

मेरा परिचय आप निम्न दो लिंक्स पर क्लिक कर प्राप्त कर सकते हैं।

परिचय – हेमन्त बावनकर

Amazon Author Central  – Hemant Bawankar 

 

साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति #1  

☆ राजनीति शास्त्र बनाम राजनैतिक शस्त्र ☆

 

प्रश्न था

राजनीति शास्त्र की परिभाषा?

 

लोकतंत्र में जन्में,

राजनैतिक छात्रावास में पले

विचारशील,

क्रान्तिकारी छात्र का

उत्तर था

’राज’ नेताओं के लिये

’नीति’ जनता के लिये

और

’शास्त्र’ छात्रों के लिये।

 

अब यदि

आप पूछेंगे उससे

छात्र की परिभाषा

तब निःसन्देह

उसका उत्तर होगा

’राजनैतिक शस्त्र’।

 

(काव्य- संग्रह ‘शब्द और कविता’ से)

17 जनवरी 1982

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण #2 ☆ बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(हम श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा प्रस्तुत उनके यात्रा संस्मरण बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास  को हमारे पाठकों के साथ साझा करने के लिए हृदय से आभारी हैं।  श्री अरुण जी ने इस यात्रा के  विवरण को अत्यंत रोचक एवं अपनी मौलिक शैली में  हमारे पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है। श्री अरुण जी ने अपने ऐतिहासिक अध्ययन के साथ सामंजस्य बैठा कर इस साहित्य को अत्यंत ज्ञानवर्धक बना दिया है। अक्सर हम ऐसे स्थानों की यात्रा तो कर लेते हैं किन्तु हम उन स्थानों के इतिहास पर कभी ध्यान नहीं देते और स्वयं  को मोहक दृश्यों और कलाकृतियों के दर्शन मात्र तक सीमित कर लेते हैं।  यह यात्रा संस्मरण श्रृंखला निश्चित ही आपको एक नूतन अनुभव देगी।  आपकी सुविधा के लिए इस श्रंखला को हमने  चार भागों में विभक्त किया है जिसे प्रतिदिन प्रकाशित करेंगे। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें।)

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण # 2 ☆ बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास  ☆

दक्षिण भारत में चौदहवीं शताब्दी में हरिहर और बुक्का दो भाईयों ने मिलकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की जिसे विजयनगर के नाम से जाना गया। इस साम्राज्य की स्थापना को लेकर अनेक कहानियां हैं पर विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कुरुबा जाति के दो भाई,  जो वारंगल के राजा के यहां महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे, वारंगल पर 1323 में मुस्लिम आक्रमण फलस्वरुप पराभव के कारण वहां से निकलकर अनेगुन्डी के हिन्दू राजा के दरबार में नियुक्त हो गये।1334 में अनेगुन्डी के राजा ने दिल्ली के सुलतान मुहम्मद तुगलक के भतीजे बहाउद्दीन को अपने यहां शरण दे दी जिसके कारण वहां सुल्तान ने आक्रमण किया। अनेगुन्डी की पराजय हुई और दिल्ली के सुलतान ने मलिक काफूर को यहां का गवर्नर नियुक्त किया ( मालिक काफूर गुजरात का था और धर्म परिवर्तित कराकर उसे मुसलमान बनाया गया था) । चूंकि मलिक यहां के शक्तिशाली निवासियों पर नियंत्रण न कर सका अतः दिल्ली के सुलतान ने यह क्षेत्र पुनः हिन्दू राजा को सौंप दिया। जनश्रुति के अनुसार  दोनों भाई हम्पी के जंगलों में शिकार कर रहे थे तब उन्हें  संत माधवी  विद्यारण्य ने राजा बनने का आशीर्वाद दिया और इस प्रकार हरिहर व बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना सन 1335 में की। उधर सन 1347 में दक्षिण भारत में एक और मुस्लिम राज्य बहमनी सल्तनत (1347-1518) में,तुर्क-अफगान  सूबेदार अलाउद्दीन बहमन शाह द्वारा  स्थापित हुई।  1518 में इसके विघटन के फलस्वरूप गोलकोण्डा, बीजापुर, बीदर, बीरार और अहमदनगर के राज्यों का उदय हुआ। इन पाँचों को सम्मिलित रूप से दक्कन सल्तनत कहा जाता था। बहमनी सुल्तान व बुक्का के बीच अनेक युद्ध हुए।कभी बुक्का जीतता तो कभी बाजी सुलतान के हाथ लगती रही अन्ततः 1375 में विजयनगर साम्राज्य विजेता बन गया और दक्षिण भारत में उसका प्रभुत्व स्थापित हो गया।

अरब,इटली,फारस और रुस के विभिन्न इतिहासकारों व यात्रियों ने समय समय पर विजयनगर की यात्रा की और इसकी रक्षा प्रणाली, सात दीवारों से घिरे दुर्गों, विशाल दरवाजों,  संपदा व समृद्धि,राज्य द्वारा आयोजित  चार प्रमुख उत्सवों (नव वर्ष, दीपावली, नवमी व होली) , व्यापार व  व्यवसाय,लंबे चौड़े बाजार, उसमें विदेशों से आयातित  सामान जैसे घोड़े व मोती तथा भारत से निर्यात की जाने वाली सामग्री मसाले, सोने चांदी के जेवर, हीरा माणिक आदि रत्नों का विस्तार से उल्लेख किया है।
विजयनगर साम्राज्य में सर्वाधिक नामी शासक कृष्णदेव राय थे जिन्होंने 1509 से 1529 तक शासन किया। उन्होंने अनेक सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया जिसमें ओडिसा के राजा गजपति राजू व बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह पर रायचुर विजय प्रमुख है। रायचुर में मिली पराजय से आदिलशाह इतना घबरा गया कि उसकी दोबारा विजयनगर साम्राज्य की ओर देखने की हिम्मत भी न हुई। दूसरी ओर इन विजयों के बाद कृष्ण देवराय दक्षिण का शक्तिशाली सम्राट बन बैठा और आदिलशाह पर  उसका क्षेत्र लौटाने के लिए बहुत ही कठोर व  अपमान भरी शर्ते, जैसे पराजित सुलतान उसके चरण चूमकर माफी मांगे आदि रखी। अपमान से भरी हुई इन शर्तों ने भविष्य में मुस्लिम सुलतानों के संगठित होकर विजयनगर पर आक्रमण का रास्ता खोला। कृष्ण देवराय के समय विजयनगर में अनेक मंदिरों वे भवनों का निर्माण हुआ। उसने विरुपाक्ष मंदिर का विशाल गोपुरम, कृष्ण मंदिर, हजारा राम मंदिर, विट्ठल स्वामी मंदिर आदि बनवाये। विट्ठल स्वामी मंदिर में स्थित पत्थर का रथ भी उन्ही के राज में ओडिशा विजय के पश्चात कोर्णाक के सूर्य मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है।

(प्रस्तर रथ विजयनगर विट्ठल मंदिर)

कृष्ण देवराय के शासनकाल में अनेक व्यापारियों व आमजनों द्वारा भी विशालकाय निर्माण कराये गये इसमें नरसिंह मूर्त्ति, बडवी शिव लिंग, सरसों बीज गणेश, चना गणेश आदि प्रसिद्ध हैं। कृष्ण देवराय ने सिंचाई प्रणाली का भी काफी विस्तार किया व अनेक तालाबों व नहरों का निर्माण कराया। उनके समय में बनाई गई कुछ नहरों से अभी भी सिंचाई होती है।

1565 में तालीकोटा  की लड़ाई के समय, सदाशिव राय विजयनगर साम्राज्य का शासक था। लेकिन वह एक कठपुतली शासक था। वास्तविक शक्ति उसके मंत्री राम राय के हाथ थी। सदाशिव राय नें दक्कन की इन सल्तनतों के बीच मतभेद पैदा करके उन्हें आपस में लड़वाने और इस लड़ाई में बीजापुर की मदद से उन्हे  कुचलने की कोशिश की। बाद में इन सल्तनतों को विजयनगर की इस कूटनीतिक चाल का पता चल गया  और उन्होंने एकजुट होकर एक गठबंधन का निर्माण कर विजयनगर साम्राज्य पर हमला बोल दिया था। दक्कन की सल्तनतों ने विजयनगर की राजधानी में प्रवेश करके उनको बुरी तरह से लूटा और सब कुछ नष्ट कर दिया। मंदिरों भवनों में आग लगा दी।विजयनगर की हार के कुछ  कारणों में दक्कन की सल्तनतों की तुलना में  विजयनगर के सेना में घुड़सवार सेना की कमी,  विजयनगर के राजा का दंभी थ होना, अन्य हिन्दू राजाओं से उनके अच्छे संबंध न होना आदि हैं।दक्कन की सल्तनतों की तुलना में  विजयनगर के सेना के हथियार पुराने थे व अधिक परिष्कृत नहीं थे। दक्कन की सल्तनतों के तोपखाने युद्ध में बेहतर थे। तालीकोटा की लड़ाई के पश्चात् दक्षिण भारतीय राजनीति में विजयनगर  राज्य की प्रमुखता समाप्त हो गयी। मैसूर के राज्य, वेल्लोर के नायकों और शिमोगा में केलादी के नायकों नें विजयनगर से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। यद्यपि दक्कन की इन सल्तनतों नें विजयनगर की इस पराजय का लाभ नहीं उठाया और पुनः पहले की तरह एक दूसरे से लड़ने में व्यस्त हो गए और अंततः मुगलों के आक्रमण के शिकार हुए।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तब लिखो..! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – तब लिखो..!  ☆

(एक पुरानी रचना, नए कलेवर में)

थोड़ा पढ़ो

कुछ गुनो

कम बोलो

अधिक तौलो,

निरंतर सुनो

अविराम सोचो

हरेक से सीखो

तब लिखो..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #31 – शालीन वारा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “शालीन वारा”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 31☆

 

☆ शालीन वारा ☆

 

दुःख माझे काल आलो सोडुनी होतो वनी

ते पुन्हा श्वानाप्रमाणे काढते मज शोधुनी

 

राहिला शालीन वारा आज कोठे सांग ना

गंध आणिक श्वास नेला आज त्याने चोरुनी

 

हिरवळीवर चालताना चाल थोडी हुरळली

अन् तिच्याशी प्रीत जडता पाय गेले गोठुनी

 

एवढी का थंड आहे सहज होतो बोललो

तापली सूर्याप्रमाणे चूक केली बोलुनी

 

जन्म हा काट्यात जातो ह्या गुलाबाचा तरी

हास्य ओठावर सदोदित सांग येते कोठुनी

 

पान कोरे हे बदामी उडत आले अंगणी

मीच त्यावर नाव माझे घेतले मग कोरुनी

 

कागदावर वचन होते अक्षरांना भान ना

काय पत्राचे करू त्या टाकले मी फाडुनी

 

लाकडांचे देह जळती या इथे सरणावरी

हुंदकाही येत नाही का कुणाचा दाटुनी ?

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 20 ☆ कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया – डा ज्योति गजभिये ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  डा ज्योति गजभिये जी के कहानी संग्रह  “बिन मुखौटों की दुनिया ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.   श्री विवेक जी ने पुस्तक की भूमिका एवं कहानियों के शीर्षक विवरण जिस तरीके से  प्रस्तुत  किया है वह पुस्तक के  उच्च साहित्यिक स्तर  को प्रदर्शित करता है।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 20☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया  

पुस्तक –बिन मुखौटों की दुनिया

लेखिका – डा ज्योति गजभिये

प्रकाशक – अयन प्रकाशन नई दिल्ली

मूल्य –  220 रु  हार्ड बाउंड पृष्ठ 116

☆ कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया – डा ज्योति गजभिये –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

कहानी, अभिव्यक्ति की वह विधा है जो परिवेश को आत्मसात कर इस तरीके से लिखने का कौशल चाहती है कि पाठक उस वर्णन में स्वयं का परिवेश ढ़ूंढ़ सके, घटना को महसूस कर सके. डॉ ज्योति गजभिये मूलतः अहिन्दी भाषी हैं, हिन्दी कहानीकार के रूप में सर्वथा नई है. यद्यपि उनकी क्षणिका, कविता, गजल, शोध प्रबंध की पुस्तकें आ चुकी हैं. उन्होने नासिरा शर्मा के कथा साहित्य पर शोध किया है.

प्रस्तुत किताब में उनकी कुल १४ बेहतरीन कहानियां प्रकाशित हैं. अपनी भूमिका में वे कविता की तरह लिखती हैं “शब्दो को ठोक पीट कर वाक्य तैयार कर रही थी, कहानी लिखते हुये भी जब कविता कही से आकर अपनी झलक दिखला जाती तो उसे समझा बुझाकर वापस भेजना पड़ता”. यह सच है कि महानगरीय वातावरण संवेदना शून्य हो चला है, लोग नम्बरो और घड़ी के कांटो की तरह वहीं के वहीं घूम रहे हैं. यह दशा मनोरोगों को जन्म दे रही है. इसे ज्योति जी ने बारीकी से पकड़ा और अपना कथानक बनाया है.

संग्रह में बिरजू नही मरेगा, कवि सम्मेलन का आखिरी कवि, भूखे भेड़िये, टुकड़ा टुकड़ा प्यार, अनोखा ब्याह, कुलच्छिनी, नये जमाने की लड़की, बिन मुखौटो की दुनियां, फकीर नबाब, मिट्टी की खुश्बू, मन्नत का धागा, हीर का तीसरा जन्म, शेष हो तुम मेरे भीतर तथा  महापुरुष शीर्षको से कहानियां संग्रहित हैं. किसी कहानी को मैं कमजोर नही कह सकता. हां बिन मुखौटो की दुनियां जिस पर पुस्तक का नाम रखा गया है, सच ही प्रभावी कहानी है. कहानियां संवाद शैली में बुनी गई हैं, पठनीय  हैं. फ्लैप पर सूर्यबाला जी ने सही ही लिखा है ज्योति जिसे और परिष्कृत कहानियो की उम्मीद हिन्दी साहित्य जगत को है.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 31 – जीवनदान ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  – एक  भावप्रवण शिक्षाप्रद लघुकथा  “ जीवनदान ”।  यदि कोई भी स्त्री साहसपूर्ण सकारात्मक निर्णय ले तो निश्चित ही समाज की  कुरीतियों पर कुठाराघात कर किसी को भी जीवनदान  दिया जा सकता है।  फिर जीवनदान मात्र जीवन का ही नहीं होता, पश्चात्ताप के पश्चात  प्राप्त जीवन भी किसी जीवनदान से काम नहीं है। अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 31 ☆

☆ लघुकथा – जीवनदान ☆

 

गांव में ठकुराइन कहने से एक अलग ही छवि उभरती थी। कद- काठी से मजबूत अच्छे अच्छों को बातों से हरा देना और जरुरत पड़ने पर  खरी-खोटी बेवजह सुनाना उनका काम था। पूरे गांव में ठकुराइन का ही शासन चलता था। उनके तेज तर्रार रूप स्वभाव के कारण उसका पति जो गांव का सरपंच था, अपनी सब बातों में चुप ही रहता था। जो ठकुराइन कह दे वही सही होता था। किसी में हिम्मत नहीं थी उनकी बात काटने या किसी बात की अवहेलना करने की।

उसका बेटा मां के अनुरूप ही निकला था। घर की बहू और अन्य महिलाओं को सिर्फ घर के काम काज, चूल्हा चौकी तक ही सीमित देखना चाहता था। गरीब घर से बहू ब्याह कर लाने के बाद, बहु पूरा दिन घर में काम करती थी। और बाकी के समय सासू मां की सेवा।

सख्त हिदायत दी गई थी कि घर में पोता ही होना चाहिए। बहु बेचारी सोच-सोच कर परेशान थी। समय आने पर घर में खुशी का माहौल बना, परंतु पोती होने पर उस नन्हीं सी जान को बाहर फेक आने तक की सलाह देने लगी ठकुराइन। बहू ने कहा… “आप जो चाहे सजा मुझे दे, पर बिटिया को मारकर आप स्वयं पाप के भागीदार ना बने।” सासू माँ ने कहा…. “ठीक है इस लड़की का मुंह मुझे कभी ना दिखाना। चाहे तू इसे किसी तरह पाल-पोस कर बड़ा कर, मुझे कोई मतलब नहीं है। परंतु मेरे सामने तेरी लड़की नहीं आएगी।”

माँ ने सभी शर्तें मान ली। बिटिया धीरे-धीरे बड़ी हुई। घर में दूसरा बच्चा पोता भी आ गया। परंतु सासू मां के सामने नन्हीं बच्ची को कभी नहीं लाया जाता था। बड़ी होती गई बिटिया स्कूल में पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थी। पढ़ाई करते-करते कब बड़ी हो गई, माँ को पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे सभी प्रकार की परीक्षा पास करते गई और एक दिन IAS परीक्षा पास कर कलेक्टर बन गई।

आज गांव के स्कूल का मैदान खचाखच भरा हुआ था। कार्यक्रम था गांव की एक बिटिया का पढ़ लिख कर कलेक्टर बन कर गांव में आना। बिटिया को जिस स्कूल में वह पढ़ी थी उसी स्कूल में सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था। ठकुराइन को महिला मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। पूरा गाँव जय जयकार कर रहा था। दादी नीचे सिर किए बैठी-बैठी सभी का भाषण सुन रही थी। सम्मानित करने के लिए, बिटिया को मंच पर खड़ा किया गया और आवाज़ लगाई गई।

तालियों की गड़गड़ाहट से स्कूल परिसर गूंज उठा। दादी रुंघे गले से और आंखों में पश्चाताप के आंसू लिए अपनी पोती को देख रही थी। लगातार आँसू बह रहे थे। बिटिया ने कहा…. “आज यह सम्मान मैं अपनी दादी के हाथों लेना चाहूंगी। क्योंकि मुझे जीवन दान देकर, दादी ने मुझ पर उपकार किया था। आज इस सफलता पर मेरी दादी ही मेरे लिए सबसे महान है।”

दादी ने नीचे सिर किए ही बिटिया को गले में माला पहनाई और धीरे से कान में पोती को कहा…. “अब मैं समझ गई बिटिया भी बेटों से कम नहीं होती। अगले जन्म में मैं तुम्हारी बिटिया बनकर आना चाहूंगी। ईश्वर से मेरी प्रार्थना है “और कसकर अपने बिटिया रानी को गले से लगा लिया। माँ भी बहुत खुश थी। आज एक महिला ने सारी कुरीतियों को त्याग कर एक लड़की का सम्मान किया और सारा गिला शिकवा भूलकर गर्व से मुस्कुरा रही थी।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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सूचनाएँ/Information ☆ राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान 2019 हेतु बाल कहानियां आमंत्रित ☆ प्रस्तुति -श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

सूचनाएँ/Information

☆ राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान 2019 हेतु बाल कहानियां आमंत्रित  ☆

सभी बाल साहित्यकारों से बालकहानी आमंत्रित है. बाल कहानी संदेशप्रद होनी चाहिए. मगर, संदेश या उपदेश सीधा व्यक्त न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए दिनांक 25 फरवरी 2020 तक बाल कहानियाँ सादर आमंत्रित है.
  1. बाल कहानियां पशु पक्षी, जीव जंतु, मूर्तअमूर्त वस्तु के पात्र ले कर रची गई हो.
  2. कहानी में सरस, सरल और सहज वाक्यों को समावेश हो, इस बात का ध्यान रखिएगा. वाक्य छोटेछोटे हो. मंनोरंजक और उद्देश्यपरक कहानियों को प्राथमिकता दी जाएगी.
  3. बालकहानी में कथा तत्व का समावेश हो.
  4. आप की सर्वश्रेष्ठ एक बालकहानी की तीन प्रतियां ए—4 आकार के कागज पर एक ओर लिख कर या टाईप करवा कर भेजे. उस में कहीं नाम,पता या कोई पहचान चिह्न अंकित न हो इस बात का ध्यान रखे. अपना संक्षिप्त परिचय व एड्रेस अलग से A-4 साइज कागज पर लिख भेजे जिसमे कहानी का शीर्षक लिखते हुए मौलिकता की घोषणा भी अंकित करें
  5. इसे पंजीकृत डाक या कूरियर से — राजकुमार जैन राजन,  चित्रा प्रकाशन,  आकोला -312205 (चित्तौड़गढ़) राजस्थान  के पते पर अंतिमतिथि के पूर्व प्रेषित कर दें. ताकि समय सीमा में यह प्राप्तकर्ता को मिल सकें.
  6. एक प्रति जिस में पूरा नाम, पता, मोबाइल नंबर और मेल आईडी लिखा हो. उसे  [email protected]  मेल  पर भेजे के विषय में — राष्ट्रीय बालसाहित्य सम्मान 2019 हेतु बालकहानियां , लिख कर संलग्नक के साथ पहुंचा दे.
  7. कहानी यूनीफॉण्ट या मंगलफोंट में  टाइप कर के वर्ड फ़ाईल में भेजे।
  8. प्रतियोगिता में स्वीकृत और मापदंड पर खरी उतरी  बालकहानियों का एक संकलन प्रकाशित कर, उनके रचनाकारों को समारोह में स्मृति चिह्न, नगद राशि के साथ ससम्मान पुरस्कार के साथ प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार प्रथम ₹. 3100/-, द्वितीय ₹.2100/-, तृतीय ₹.1100 एवम 5 प्रोत्साहन पुरस्कार देय होंगे।
संपादक/ संयोजक
-ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश
-राजकुमार जैन राजन
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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।

एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।15।।

 

अन्य ज्ञान औ” यज्ञ से करते मुझे प्रणाम

पूजा करते विविध विधि दे विश्वेश्र्वर नाम।।15।।

 

भावार्थ :  दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

 

Others also, sacrificing with the wisdom-sacrifice, worship Me, the all-faced, as one, as distinct, and as manifold.।।15।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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