हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ कस्तूरी मृग ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ कस्तूरी मृग 

मैं परिधि पर

जीना चाहता हूँ

पर केंद्र भी

छोड़ नहीं पाता,

केंद्र और परिधि पर

एक साथ जीने की जिजीविषा,

अधर में बने रहने की

स्वयंसिद्ध तितिक्षा,

न वृत्त सिमटकर

बिंदु हो पाता है,

न सीमाओं का विस्तार कर

बिंदु परिधि बन पाता है,

लगता है,

मनुष्य के विकास के

डार्विन के सिद्धांतों के साथ,

अनुभूति का

जब कोई इतिहास लिखेगा,

यात्रा वृत्तांत में

वानरों के साथ

कस्तूरी मृग का

नाम भी जुड़ेगा।

 

©  संजय भारद्वाज 

24.9.2012

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 9 ☆ कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक  समसामयिककविता कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 9☆

☆ कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार ?☆

कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार

लगता है संसद नहीं मछली का बाजार

दिन दिन बढ़ता जा रहा गुंडों का अधिकार

नासमझो के सामने समझदार की हार

जहां नियम संयम बिना चलता कारोबार

मारपीट धरपकड़ से होता गलत प्रचार

बल के आगे बुद्धि जब हो जाती लाचार

चल पाएगी किस तरह वहां कोई सरकार

समझ ना आता कुछ  क्यों बदल गया संसार

जहां नेह सद्भाव गुण जो जीवन आधार

खोते जाते मान नित जैसे हो बेकार

तानाशाही जीतती लोकतंत्र की हार

ऐसे में संभव कहां जनता का उद्धार

हरएक सदन में आए दिन मची हुई तकरार

दुख वर्धक होता सदा ही हिंसक व्यवहार

नीति पूर्ण संवाद ही है वास्तविक उपचार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 20 – महान फ़िल्मकार : के.आसिफ़-2 ☆ श्री सुरेश पटवा

श्री सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  महान फ़िल्मकार : के.आसिफ़ पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 20 ☆ 

☆ महान फ़िल्मकार : के.आसिफ़ 2 ☆

मुग़ल-ए-आज़म अपने ज़माने की सबसे मंहगी और सफल फ़िल्म थी, लेकिन इसके निर्देशक के. आसिफ़ ताउम्र एक किराए के घर में रहे और टैक्सी पर चले.

यासिर अब्बासी बताते हैं, “जब शाहपुरजी बहुत तंग आ गए तो उनसे एक बार नौशाद ने पूछा कि अगर आप को आसिफ़ से इतनी शिकायत है, तो आपने उनके साथ ये फ़िल्म बनाने का फ़ैसला क्यों किया? शाहपुरजी ने एक ठंडी सांस लेकर कहा कि नौशाद साहब एक बात बताऊँ, ये आदमी ईमानदार है.”

“इसने इस फ़िल्म में डेढ़ करोड़ रुपए ख़र्च कर दिए हैं, लेकिन उसने अपनी जेब में एक फूटी कौड़ी भी नहीं डाली है. बाक़ी सभी कलाकारों ने अपना कॉन्ट्रैक्ट कई बार बदलवाया, क्योंकि वक़्त गुज़रता जा रहा था. लेकिन इस शख़्स ने पुराने कॉन्ट्रैक्ट पर काम किया और कोई धोखाधड़ी नहीं की.”

“कोई पैसे का ग़बन नहीं किया. ये आदमी आज भी चटाई पर सोता है, टैक्सी पर छह आना हर मील का किराया देकर सफ़र करता है और सिगरेट भी दूसरों से मांग कर पीता है. ये आदमी बीस घंटे खड़े हो कर लगातार काम करता है और हम लोग हैरान रह जाते हैं.”

ऐतिहासिक फिल्‍म ”मुगल-ए-आजम” बनाने वाले के. आसिफ ने सितारा देवी से शादी की थी। सितारा देवी भरतनाट्यम के लिए देश-विदेश में मशहूर थीं। वह अच्‍छी कलाकार होने के साथ बड़े दिल वाली महिला थीं। उन्‍होंने पति से निगार की सिफारिश की। पत्‍नी को खुश करने के लिए के. आसिफ ने निगार को मुगल-ए-आजम में काम दे दिया, जिन्होंने मधुबालाके विरुद्ध बहार की भूमिका निभाई थी लेकिन सितारा देवी पर यह काफी भारी पड़ा। आसिफ एक दिन निगार को सितारा देवी की सौतन बना कर घर ले आए। यह उनके दिल पर नागवार गुजरा, पर वह खून का घूंट पीकर रह गईं।

एक बार और आसिफ ने दगाबाजी की, इस बार उनकी नजर अपने दोस्‍त की बहन पर ही पड़ गई। उन्‍होंने दिलीप कुमार की बहन अख़्तर आसिफ़ को बेगम बना लिया। तब सितारा देवी के सब्र का बांध टूट गया। उन्‍होंने आसिफ को बद्दुआ देते हुए कहा- ‘तुम बेमौत मरोगे और मैं तुम्‍हारा मरा मुंह भी नहीं देखूंगी।’ हालांकि, यह अलग बात है कि सितारा देवी उतनी बेरहम दिल नहीं रह सकीं। 9 मार्च, 1971 को आसिफ की मौत की खबर जब उन्‍हें मिली तो वह खुद को रोक नहीं पाईं। वह तुरंत आसिफ के घर गईं और उनके अंतिम दर्शन किए।

के.आसिफ़ को मुग़ले आज़म के लिए 1960 का बेस्ट फ़िल्म फिल्मफेअर अवार्ड, बेस्ट निर्देशक अवार्ड, राष्ट्रपति का सिल्वर अवार्ड मिले थे।

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature ☆ Stories ☆ Weekly Column – Samudramanthanam – 8 Halahal ☆ Mr. Ashish Kumar

Mr Ashish Kumar

(It is difficult to comment about young author Mr Ashish Kumar and his mythological/spiritual writing.  He has well researched Hindu Philosophy, Science and quest of success beyond the material realms. I am really mesmerized.  I am sure you will be also amazed.  We are pleased to begin a series on excerpts from his well acclaimed book  “Samudramanthanam” .  According to Mr Ashish  “Samudramanthanam is less explained and explored till date. I have tried to give broad way of this one of the most important chapter of Hindu mythology. I have read many scriptures and take references from many temples and folk stories, to present the all possible aspects of portrait of Samudramanthanam.”  Now our distinguished readers will be able to read this series on every Saturday.)    

Amazon Link – Samudramanthanam 

 ☆ Weekly Column – Samudramanthanam – 8 Halahal ☆ 

Sura and Asura or Devtas and Danvas started churning of ‘Kshirasāgara’ with whole enthusiasm and full power.  The hood and mouth side of Naga Vasuki is very broad and grip of Asura, who were doing churning from hood side over Vasuki body, is sliding again and again and they are fed up from this. They stop churning again and looking for a solution. Then king of Asura ‘Bali’ looked at last of his side Asuras line. He saw an old Asura which was once very powerful name ‘Svarbhānu’. Svarbhanu body is long and cylindrical. Soon an idea strikes in the mind of Asura king ‘Bali’.

Bali go near Svarbhanu and said to him with soft and requesting voice, “Svarbhanu, you are old among Asuras but you are very powerful and intelligent. We need your help. You do one thing you surround your body around our side or hood and mouth side of Naga Vasuki. So that we can hold your body which will provide good and stable grip to Asura to do this churning easily”

Svarbhanu replied, “as you desire my king”

Then Svarbhanu surrounded his body around Naga Vasuki’s mouth side area in such manner that it made an easy holding grip for Asuras. Now Asuras were happy and they started again churning of ‘Kshirasāgara’.

Many more days passed. It was early morning time of Brahma muhurta. Suddenly a bitter smell started coming from ocean of milk ‘Kshirasāgara’ and death bodies of many ocean creatures were coming up with each wave. All felt a sharp pain on their heads. Color of ocean started changing from milk color white to cyan then from cyan to blue. Both teams, team of Sura and team of Asura stopped churning. But Naga Vasuki is still rotating over mount Mandara. Whole atmosphere filled with the sharp smell and thin smoke of dark blue color. Fire started burning in the eyes of each one present there. Now thick white color froth started appearing at the edges of mount Mandara.

All Sura and Asura were losing their senses with each passing moment. Brahma was also worried over this condition and felt of essence of poison in air and liquid of ocean.

Bali with other Asuras started doing prayer of Lord Shiva and start saying loudly, “O! Mahakaal, please save us we are dying “

Other hand Sura are doing prayer of Lord Vishnu.

When all Sura and Asura were about to lose their whole consciousness, they saw dark blue color thick foam is collected near outline of mount Mandara and around body of Naga ‘Vasuki’.

Lord Vishnu and Shiva appear simultaneously there. Lord Vishnu do flow of prana towards Sura and Asura and then they start breathing normally again. Then Indra said, “O! great God this venom or poison is because of Vasuki Naga, which is ornament of Lord shiv so now Lord Shiva has to do something to end this position”

Lord Vishnu says, “what are you saying. Lord Shiva is saving all of us from deadly poison of Vasuki from ages because he keeps holding Vasuki around his neck. Venom of Vasuki is outcome of physical negativity of people over earth. And it is growing with each passing moment. Because of Lord Shiva all people of earth were saved from the disaster of Vasuki venom. Now only on the request of Sura and Asura, Lord Shiva is ready to give you Vasuki Naga to make churning of great ocean possible. It is law of karma that nothing come free. You all are doing this churning of ‘Kshirasāgara’ to get many different valuable objects and things. And you are blaming to Lord of all, Shiva”

© Ashish Kumar

New Delhi

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 55 – आड पडदा… ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #55 ☆ 

☆ आड पडदा… ☆ 

 

त्या दिवशी तुला पावसात

भिजताना पाहीलं.. अन्

वाटलं…

माझ जसं

पावसाशी नातं आहे

तसंच तुझ आणि पावसाच

आहे की काय….

पण आज तुला

पावसात छत्री घेऊन

येताना पाहीलं

तेव्हा खात्री झाली…

माझ्यासारख तुझ पावसाशी

काहीच नातं नाही

कारण….

त्याच्यात आणि माझ्यात

कधी

कोणता आड पडदाच

येत नाही…!

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कबर ☆ सुश्री निलांबरी शिर्के

☆ कवितेचा उत्सव ☆ कबर ☆ सुश्री निलांबरी शिर्के ☆ 

 

अंधारातच जगणे आता

नसेच येथे कसले वारे

कर्तृत्वाला खोल गाढुनी

अडसर लावुन बंद कवाडे

 

दाहिदिशातुन खुशाल वाहो

चैतंन्याचे कितीही वारे

संसाराच्या सारिपटावर

फासे पडले विपरीत सारेँ

 

नव्या दमाचे वाहो आता

प्रकाशात त्या कितीही वारे

अंधाराच्या गर्भामधूनी

विध्वंसाचे सदाच वारे

 

खोदत गेले मी जगताना

कबर खोलवर माझ्यासाठी

सारे हे करण्याकरता

मनास माझ्या धरले वेठी

 

© सुश्री निलांबरी शिर्के

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ पहिला डाव घटस्फोटाचा ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

☆ जीवनरंग : पहिला डाव घटस्फोटाचा ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर  

 

“हाय! कशी आहेस? ”

“मस्त! तू कसा आहेस? ”

“मजेत. एकटीच? ”

“नवरा दिल्लीला गेलाय. ”

“नेहमी ट्रॅव्हल करावं लागतं त्याला? ”

“आताचे जॉब्स असेच असतात ना! तुझी बायको? ”

“पुण्याला. पुण्याला शिफ्ट झालो आम्ही. माझा नवा जॉब पूना-बेस्ड आहे. ”

“या जॉबमध्येही ट्रॅव्हलिंग…. ”

“महिन्यातून एक -दोन दिवस. पूर्वीसारखं वीस-बावीस दिवस नाही. ”

“अच्छा! म्हणजे आत्ता जमलं तुला जॉब चेंज करायला? ”

“कूल! आपण घरी नाही आहोत एवढा आवाज चढवायला. आणि आता नवरा-बायकोपण नाही आहोत. ”

“सॉरी!”

“…….”

“यू मे स्मोक. आय वोन्ट माइन्ड. ”

“मी सोडलंय स्मोकिंग. ”

“काsssय?”

“हे लग्न, त्याला चांगलं आरखून-पारखून केलं असशील ना?  स्मोकिंग न करणारा वगैरे.”

“……”

“दॅट मिन्स ही स्मोक्स? ”

“इट्स ओके. अदरवाईज ही इज अ गुड गाय.”

“म्हणजे मी…. ”

“तसा तूही चांगला होतास. दोष असलाच तर सिस्टीमचा होता.”

“सिस्टीमचा? ”

“हो. आपण एकमेकांकडे कधी स्वतंत्र व्यक्ती म्हणून पाहिलंच नाही. माझ्यासाठी तू फक्त माझा नवरा होतास. त्यामुळे  तुला मी सतत त्या चौकटीत कोंबायचा आटापिटा करायचे. तुझी फिरतीची नोकरी, स्मोकिंग वगैरे गोष्टी त्या मॅट्रिक्समध्ये सामावणाऱ्या नव्हत्या.”

“मग आता? ”

“आता नात्याचं मॅट्रिक्स बाजूला ठेवून मी त्याच्याकडे एक व्यक्ती म्हणून बघते. त्यामुळे तेवढा त्रास नाही होत त्याच्या वागण्याचा. सगळे गुंते सुटून जगणं सोपं झालंय त्यामुळे.”

“यू सेड इट.”

“तू कसा काय बदललास एवढा?”

“अरुणा खूप समंजस आहे. मी जसा आहे, तसा तिने मला एक्सेप्ट केलाय – माझ्या  दोषांसकट. आय एम सॉरी टू से ;पण कोणी आपल्याला  डिवचत राहिलं, तर आपलाही अहंकार फणा काढतो.तिने कधीच डिवचलं नाही मला. मग मीही माझ्या बाजूने समजूतदारपणा दाखवायचा प्रयत्न केला. दॅट्स ऑल.”

“एकंदरीत आपण दोघेही आता शहाणे झालो आहोत, असं म्हणायला हरकत नाही.”

“यू सेड इट!”

 

© सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

फोन नं. 9820206306.

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ उखळ ! ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक

श्रीमती अनुराधा फाटक

 ☆ विविधा ☆ उखळ ! श्रीमती अनुराधा फाटक  ☆ 

कांडण्यासाठी दगड खोदून अगर लाकडाचा ओंडका पोखरून जो खोलगट भाग तयार करतात त्याला उखळ म्हणतात.प्राचीन काळापासून या उखळाचा वापर होत आहे.यंत्रयुगात उखळाचा वापर साधन म्हणून कमी झाला असला तरी साहित्यातील उखळ मात्र अजूनही अस्तित्वात अहे

परिस्थितीने गरीब असणाऱ्यांच्या घरी उखळाला काम नसते कारण उखळात घालून कुटण्याइतकेसुध्दा त्यांच्याजवळ नसते पण अशा माणसाचे जर दैव उघडले,

अचानक त्याला वैभव प्राप्त झाले म्हणजेच त्याचे उखळ पांढरे झाले तर मात्र त्यांच्या घरात असणाऱ्या उखळाची मुसळाशी बांधलेली गाठ कधीच सुटत नाही म्हणजे त्यांच्या घरात सतत राबता सुरु होतो.

गरिबांची अशी होणारी उखळ प्रगती (भरभराट)काही दुष्ट प्रवृत्तीच्या लोकांना बघवत नाही. अशी माणसे उखळ पांढरे झालेल्या लोकांच्या उखाळ्या-पाखाळ्या काढतात.त्यांच्या अत्याचाराचे घाव गरिबांना सोसावे लागतात.उखळाशी गाठ पडण्याचा हा प्रकार बऱ्याचवेळा घडतो.

सरळमार्गी जीवन जगणाऱ्या लोकांनाही बऱ्याचवेळा उखळात डोके घालण्याची वेळ येते म्हणजे जीव धोक्यात घालावा लागतो.एकदा उखळात डोके गेल्यावर मुसळाला न घाबरण्याच्या स्वभावाची अशी माणसे उखळात घातले तरी घाव चुकविण्याची तयारी ठेवतात,संकटातून सहीसलामत बाहेर पडण्याची तयारी ठेवतात.

 

© श्रीमती अनुराधा फाटक

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ मन ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

शिक्षण: बी.एस.सी., बी.एड.फर्स्ट क्लास फर्स्ट. PGDEPM.

व्यवसायः सेवानिवृत्त पर्यवेक्षक, पन्हाळा वि. मं.पन्हाळा.

छंद : वाचन, लेखन, व्याख्यान, कथाकथन.

लेखनः 1. चैतन्य काव्यसंग्रह 2. असे शोधः असे संशोधक भाग १ आणि भाग २ ही वैज्ञानिकांची चरित्रे प्रकाशित. 2012.

मराठी निबंधालय, पर्यावरण शिक्षण,लिहू आनंदे -अशा अनेक पुस्तकात लेख.

आकाशवाणी कोल्हापूर केंद्रावरून काव्यवाचनाचे वीस कार्यक्रम.

पुरस्कार –

राज्यस्तरीय निबंध लेखनात प्रथम, द्वितीय असे पाच क्रमांक.

1. रोटरी क्लब आँफ कोल्हापूर-सनराइज द्वारा सनराइज आदर्श शिक्षक पुरस्कार  2.लायन्स क्लब इंटरनँशनल-कोल्हापूर विभागाकडून आदर्श शिक्षक पुरस्कार २००५। 3.जनस्वास्थ्य दक्षता समिती, कोल्हापूर, सन्मान पत्र.

याखेरीज वर्तमानपत्रे,मासिके, दिवाळी अंकातून लेखन चालू.

☆ विविधा ☆ मन ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी☆ 

दोनच अक्षरी शब्द मन! पण या शब्दाची व्याप्ती मात्र अमर्याद. त्याचा आकार तरी कसा वर्णावा बरे? ते हीअवघडच. कधी मनखसखशीएवढं तरकधी त्याहून सूक्ष्म अणुरेणू एवढं बनतं. तरकधी त्या विशालकाय आकाशातही मावणार नाही इतकं प्रचंड रूप धारण करू शकतं. मन इतकं लहरी असतं कि कोणी त्याचा हातच धरु शकणार नाही. कधी मन स्वच्छंदीपणे विहरतं तर कधी विचारी बनतं. कधी ते गूढ अर्थ शोधण्यास सज्ज होतंनि झपाटल्यासारखं एखाद्या गोष्टीच्या मागं लागतं. कधी हेच मन घमेंडखोर बनतं नि बढायांना गोंजारु लागतं. कधी हेच मन उत्साही बनतं नि नवनिर्मिती करु पाहतं.कधी ते लाडिक बनतं नि प्रिय व्यक्तीस, सवंगड्यास लाडाने हाकारु पाहतं तर काही वेळा तुसडं बनून अगदी सर्वांनाच दूर-दूर लोटू पाहतं. कधी मन स्वप्नाळु बनतं नि दिवास्वप्न रेखाटू लागतं.तर कधी कधी दुःखी बनून अश्रू साठ वित राहातं.असंहे बहुरंगी भावार्थ साठविणारं मन.याविषयी बोलावं तेवढं थोडच म्हणूनच

श्रीसमर्थ सुद्धा करुणाष्टकात म्हणतात-

अचपळ मन माझे नावरे आवरिता।

तुजविण शिण होतो धाव रे धाव आता।।

खरच हे अचपळ मन ताब्यात ठेवण्यासाठी आपण नेहमीच प्रयत्न केले पाहिजेत. कारण असं म्हणतात कि-मन जिंकी तो जग जिंकी.

मनावर चांगले संस्कार होण्यासाठी आपण घरातूनच लहानपणापासून शुभं करोती, देवाची स्तोत्रे, परवचा असे संस्कार घेत आलो आहोत. कुठलीही गोष्ट

प्रथम मनात आली तरच तिचा विचार होऊन पुढे आपण त्याप्रमाणे क्रुती करतो. कोणतीही गोष्ट शक्य होण्यासाठी प्रथम मनात आणावी

लागते.म्हणूनच आपण मनावर सुसंस्कारांचे धडे बिंबविले तरच या सम जात सह्रुदय, संवेदनशील व्यक्ती निर्माण होतील. एकनाथ महाराजांनी गंगेची कावड तहानलेल्या गाढवाच्या मुखी सोडली.अशा गोष्टीतून भूतदया कशी दाखवावी हे मुलांना सांगता येते.

म्हणूनच मन चांगल्या संस्कार ांनी विकसित केले तर भावी पिढी सद्वर्तनी ,सुशील आणि सेवाव्रती  बनेल. त्यामुळे लाँकडाउनच्या या काळात घरी बसून काम करण्याची संधी ही सुसंधी मानली तर मुलांशी सुसंवाद साधणे सोपे होईल.वाचनाची आवड त्यांच्या मनात निर्माण करता येईल.श्री समर्थांनी मनाचे श्लोक

रचले आहेत ,यामागे हाच हेतू आहे.आपलं मन स्वच्छ, शुद्ध, पारदर्शक ठेवले नि योग्य विचार मनात आणले तरच आपली योग्य दिशेने प्रगती होईल यात शंकाच नाही.

सर्वात महत्वाचं म्हणजे अगदी कोणत्याही वयात मनावर नियंत्रण ठेवलं पाहिजे त्यामुळे योग्य निर्णय घेता येतो. सकारात्मक विचार ातूनच मनाची उत्तम मशागत होते.चला तर कोणतीही गोष्ट मनापासून करु या नि यश मिळवू या.

 

© सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

कोल्हापूर

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

Please share your Post !

Shares

अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – सप्तदशोऽध्याय: अध्याय (27) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय १७

(आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद)

(ॐ तत्सत्‌के प्रयोग की व्याख्या)

 

यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते।

कर्म चैव तदर्थीयं सदित्यवाभिधीयते।।27।।

 

यज्ञ, तपस्या दान भी ‘सत‘ के ही स्थान

उस निमित्त हर कार्य का भी ‘सत‘ ही अभिधान ।।27।।

 

भावार्थ :  तथा यज्ञ, तप और दान में जो स्थिति है, वह भी ‘सत्‌’ इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिए किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत्‌ऐसे कहा जाता है।।27।।

Steadfastness in  sacrifice,  austerity  and  gift,  is  also  called  Sat,  and  also  action  in connection with these (or for the sake of the Supreme) is called Sat.।।27।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares