सुश्री अनुभा श्रीवास्तव
(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “संचार क्रांति”। इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने # 29 ☆
☆ संचार क्रांति ☆
विगत वर्षो में संपूर्ण विश्व में संचार क्रांति हुई है. हर हाथ में मोबाइल एक आवश्यकता बन गया है, सरकार ने इसकी जरूरत को समझते हुये ही मोबाइल, टैब व पर्सनल कम्प्यूटर मुफ्त बांटने की योजनाये प्रस्तुत की हैं. मल्टी मीडिया मोबाइल पर कैमरे की सुविधा तथा किसी भी भाषा में टिप्पणी लिखकर उसे सार्वजनिक या किसी को व्यक्तिगत संदेश के रूप में भेजने की व्यवस्था के चलते मोबाइल बहुआयामी बहुउपयोगी उपकरण बन चुका है.
इन नवीनतम संचार उपकरणो के द्वारा इंटरनेट के माध्यम से लगभग नगण्य व्यय पर सोशल मीडिया के माध्यम से लोग परस्पर संपर्क में रह सकते हैं. सोशल मीडिया के अनेकानेक साफ्टवेयर विकसित हुये हैं. २०० से अधिक सोशल साइटस् प्रचलन में हैं, किन्तु लोकप्रिय साइट्स फेसबुक, ट्विटर, माई स्पेस, आरकुट, हाई फाइव, फ्लिकर, गूगल प्लस, ड्यूओ, स्कैप। लिंकेड इन आदि ही हैं. इन के द्वारा लोग परस्पर संवाद करते रहते हैं. व्यक्तिगत या सामाजिक विषयो पर इन साइट्स पर बड़े बड़े लेखो की जगह छोटी टिप्पणियो या फोटो के माध्यम से लोग परस्पर वैचारिक आदान प्रदान करते रहते हैं. संपादन की बंदिशें नही होती. इधर लिखो और क्लिक करते ही समूचे विश्व में कहीं भी तुरंत संदेश प्रेषित हो जाता है. युवा पीढ़ी जो इन संसाधनो से यूज टू है, बहुतायत में इनका प्रयोग कर रही है. एक ही शहर में होते हुये भी परिचितो से मिलने जाना समय साध्य होता है, किन्तु इन सोशल साइट्स के द्वारा लाइव चैट के जरिये एक दूसरे को देखते हुये सीधा संवाद कभी भी किया जा सकता है, मैसेज छोड़ा जा सकता है, जिसे पाने वाला व्यक्ति अपनी सुविधा से तब पढ़ सकता है, जब उसके पास समय हो. इस तरह संचार के इन नवीनतम संसाधनो की उपयोगिता निर्विवाद है.
फिल्म सत्याग्रह कुछ समय पूर्व प्रदर्शित हुई, जिसमें नायक ने फेस बुक के माध्यम से जन आंदोलन खड़ा करने में सफलता पाई, इसी तरह चिल्हर पार्टी नामक फिल्म में भी बच्चो ने फेसबुक के द्वारा परस्पर संवाद करके एक मकसद के लिये आंदोलन खड़ा कर दिया था. फिल्मो की कपोल कल्पना में ही नही वास्तविक जीवन में भी विगत वर्ष मिस्र की क्राति तथा हमारे देश में ही अन्ना के जन आंदोलन तथा निर्भया प्रकरण में सोशल नेटवर्किंग साइटस का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. गलत इरादो से इन साइट्स के दुरुपयोग के उदाहरण भी सामने आये है, उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारत से उत्तर पूर्व के लोगो के सामूहिक पलायन की घटना फेसबुक के द्वारा फैलाई गई भ्राति के चलते ही हुई थी.
कारपोरेट जगत ने मल्टी मीडिया की इस ताकत को पहचाना है. ग्राहको से सहज संपर्क बनाने के लिये फेसबुक व ट्विटर जैसे सोशल पोर्टल का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. विभिन्न कंपनियो ने अपने उत्पादो के लिये फेसबुक पर पेज बनाये हैं, जिन्हें लाइक करके कोई भी उन पृष्ठो पर प्रस्तुत सामग्री देख सकता है तथा अपना फीड बैक भी दे सकता है. इन कंपनियो ने बड़े वेतन पर प्राडक्ट की जानकारी रखने वाले, उपभोक्ता मनोविज्ञान को समझने वाले तथा कम्प्यूटर विशेषज्ञ रखे हैं जो इन सोशल साइट्स के जरिये अपने ग्राहको से जुड़े रहते हैं व उनकी कठिनाईयो को हल करते हैं. तरह तरह की प्रतियोगिताओ के माध्यम से ये पेज मैनेजर अपने ग्राहको को लुभाने में लगे रहते हैं.
सरकारी संस्थानो में व्यापक रूप से इस तरह की उच्च स्तरीय पहल मोदी सरकार ने की है. अनेक मंत्रियो व अधिकारियो ने अपने कार्य क्षेत्र में उत्साह से सोशल मीडिया के महत्व को समझते हुये इसके जन हित में उपयोग करने के प्रयास किये हैं. अनेक ऐसी परियोजनाये पुरस्कृत भी हुई हैं. फेसबुक की पारदर्शिता के कारण समस्यायें तथा निदान संबंधित अधिकारियो व उपभोक्ताओ के बीच साझा रहती हैं. फेस बुक पर प्राप्त सुझावो व समस्याओ के विश्लेषण से क्षेत्र की समान समस्याओ की ओर सभी संबंधित अधिकारियो को सरलता से जानकारी मिल सकती है व उनका तुरंत निदान हो सकता है. फेसबुक की सदैव व सभी जगह उपलब्धता के कारण उपभोक्ता व नागरिको को सहज ही अपनी बात कहने का अधिकार मिल गया है. इस तरह सोशल मीडिया के उपयोग की अभिनव पहल से उपभोक्ता संतुष्टि का लक्ष्य कम से कम समय में ज्यादा पारदर्शिता तथा बेहतर तरीके से पाया जा सकेगा. फेसबुक के साथ ही चौबीस घंटे सुलभ टेलीफोन लाइनें एवं ईमेल के द्वारा भी संपर्क करने की सुविधा भी शासन ने सुलभ की है, अब गेद जनता की पाली में है. देखें कितना सार्थक होता है यह प्रयास.
© अनुभा श्रीवास्तव