श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनका एक व्यंग्य “प्रमोशन”। आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 25 ☆
☆ व्यंग्य – प्रमोशन ☆
प्रशासनिक अधिकारियों को दिए जाते हैं टारगेट …….। टारगेट पूर्ति करा देती है प्रमोशन।
सरकार ऊपर से योजनाएँ अच्छी बनाकर भेजती है पर टारगेट के चक्कर में मरते हैं बैंक वाले या गरीब या किसान………….
शासकीय योजनाओं में एक योजना आई थी आई आर डी पी ( Integrated Rural Development Programme (‘IRDP)। गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए योजना अच्छी थी पर जिला स्तर पर, और ब्लाक स्तर पर अधिकारियों, कर्मचारियों और बैंक वालों का सात्विक और आत्मिक को-आर्डिनेशन नहीं बनने से यह योजना असफल सी हो गयी। ज्यादातर लोन डूब गए तो बाद में लोग ‘IRDP‘ को कहने लगे “इतना रुपया तो डुबाना ही पड़ेगा”
योजना असफल होने में एक छुपी हुई बात ये भी थी कि इस योजना में जो भी आई ए एस अपना एनकेन प्रकारेण टारगेट पूरा कर लेता था उनकी सी आर उच्चकोटि की बनती थी और उनका प्रमोशन पक्का हो जाता था और इधर बैंक वालों के लिए लोन देना आफत बन जाता था। हरित-क्रांति और सफेद-क्रांति का पलीता लगने के ये भी कारण रहे होंगे,शायद।
एक बार शासकीय योजनाओं में जबरदस्ती लोन दे देने का फैसला लेने वाली आए ए एस मेडम का किस्सा याद आता है। मेडम ने अपना टारगेट पूरा करने का ऐसा प्रेशर बनाया कि जिले के सब बैंक वाले परेशान हो गए। जिला मुख्यालय में एक होटल में मींटिग बुलाई गई। सब बैंकर रास्ता देखते रहे। वे दो घन्टे मींटिग में लेट आईं। सबने देखा मेडम की ओर देखा। आजू बाजू बैठे लोगों ने फुसफुसाते हुए कहा लगता है पांव भारी हैं। यहाँ तक तो ठीक था और सब बैंकर्स मीटिंग में होने वाली देरी से चिंतित भी लगे कि शाखा में सब तकलीफ में होंगे। स्टाफ कम है, बिजली नहीं रहती, जेनरेटर खराब रहा आता है। खैर, मीटिंग चालू हुई तो सब बैंकरों पर मेडम इतनी जमके बरसीं कि कुछ लोग बेहोश होते-होते बचे। जबकि बैंकर्स की कोई गलती नहीं थी। मेडम हाथ धोकर बैंकर्स के पीछे पड़ गईं बोली – “मुझे मेरे टारगेट से मतलब है। ऐरा गैरा नथ्थू खैरा, किसी को भी लोन बांट दो, चाहे पैसा वापस आए, चाहे न आए। हमारा टारगेट पूरा होना चाहिए।“ नहीं तो फलां-फलां किसी भी एक्ट में फंसाकर अंदर किये जाने का डर मेडम ने सबको प्रेम से समझा दिया। मेडम बैंकर्स के ऊपर बेवजह इतनी गरजी बरसीं कि मीटिंग की ऐसी तैसी हो गई।
मेडम के मातहत और अन्य विभागों के लोग भी शर्मिंदगी से धार धार हो गए। उनके विभाग वालों ने भी फील किया कि बैंक वालों की कोई गलती नहीं है। विभागों से प्रकरण बनकर बैंक में जमा भी नहीं हुए और मेडम प्रमोशन के चक्कर में बेचारे बैंक वालों को उटपटांग भाषा में डांट रहीं हैं और धमकी दे रही है।
उनको देख देखकर सबको दया भी आ रही थी पर किया क्या जा सकता था। सातवाँ या आंठवा महीना चल रहा था……….. बाद में पता चला मेडम लम्बी छुट्टी पर जाने वाली हैं इसलिए छुट्टी में जाने के पहले सौ परसेंट टारगेट पूरा करना चाह रहीं हैं। क्यूंकी अभी उनका प्रमोशन भी डयू है।
हालांकि दो साल बाद पता चला कि उनका प्रमोशन हो गया था। पर पूरे जिले के नब्बे परसेंट गरीब और किसान डिफ़ॉल्टर लिस्ट पे चढ़ गए थे। ऐसे में किसान आत्महत्या नहीं करेगा तो क्या करेगा।
बैकों की दुर्गति और बैंकर्स के हाल!
© जय प्रकाश पाण्डेय
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