आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – सप्तम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

सप्तम अध्याय

ज्ञान विज्ञान योग

( आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा )

 

न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।

माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ।।15।।

 

असुरभाव से नराधम,ज्ञान हीन बदनाम

पा सकते मुझको नहीं,उन्हें नही विश्राम।।15।।

 

भावार्थ :  माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।।15।।

 

The evil-doers and the deluded, who are the lowest of men, do not seek Me; they whose knowledge is destroyed by illusion follow the ways of demons.।।15।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #19 – भोर भई ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 19☆

☆ भोर भई ☆

लोकश्रुति है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है। पाप की अधिकता होने पर धरती को टिकाए रखना एक दिन शेषनाग के लिए संभव नहीं होगा और प्रलय आ जाएगा। कई लोगों के मन में प्राय: यह प्रश्न उठता है कि विसंगतियों की पराकाष्ठा के इस समय में अब तक प्रलय क्यों नहीं हुआ?

इस प्रश्न का एक प्रतिनिधि उत्तर है, ‘धनाजी जगदाले जैसे संतों के कारण।’ तुरंत प्रतिप्रश्न उठेगा कि कौन है धनाजी जगदाले जिनके बारे में कभी सुना ही नहीं?

धनाजी जगदाले, उन असंख्य भारतीयों में से एक हैं जो येन केन प्रकारेण अपना उदरनिर्वाह करते हैं। 54 वर्षीय धनाजी महाराष्ट्र के सातारा ज़िला की माण तहसील के पिंगली गाँव के निवासी हैं।

‘यह सब तो ठीक है पर धनाजी संत कैसे हुआ?’ …’धैर्य रखिए और अगला घटनाक्रम भी जानिए।’

अक्टूबर 2019 में महापर्व दीपावली के दिनों में धनाजी को धन प्राप्ति का एक दैवीय अवसर प्राप्त हुआ।

हुआ यूँ कि शहर के बस अड्डे पर खड़े धनाजी के सामने संकट था अपने गाँव लौटने का। गाँव का टिकट था रु.10/- और धनाजी की जेब में बचे थे केवल 3 रुपये। एकाएक धनाजी ने जो देखा, उससे उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। बस अड्डे पर किसी के गलती से  छूट गए थैले में नोटों के बंडल थे। कुल चालीस हज़ार रुपये।

चालीस हज़ार की राशि धनाजी के लिए एक तरह से कुबेर का ख़जाना था पर कुबेर का एक अकिंचन के आगे लज्जित होना अभी बाकी था।

अकिंचन धनाजी ने सतर्क होकर आसपास के लोगों से थैले के मालिक की जानकारी टटोलने का प्रयास किया। उन्हें अधिक श्रम नहीं करना पड़ा। थोड़ी ही देर में एक व्यक्ति बदहवास-सा अपना थैला ढूँढ़ते हुए आया। मालूम पड़ा कि पत्नी के ऑपरेशन के लिए मुश्किल से जुटाए चालीस हज़ार रुपये जिस थैले में रखे थे, वह यहीं-कहीं छूट गया था। पर्याप्त जानकारी लेने के बाद धनाजी ने वह थैला उसके मूल मालिक को लौटा दिया।

आनंदाश्रु के साथ मालिक ने उसमें से एक हज़ार रुपये धनाजी को देने चाहे। विनम्रता से इनाम ठुकराते हुए धनाजी ने अनुरोध किया कि यदि वह देना ही चाहता है तो केवल सात रुपये दे ताकि दस रुपये का टिकट खरीदकर धनाजी अपने गाँव लौट सके।

प्राचीनकाल में सच्चे संत हुआ करते थे। देवताओं द्वारा इन संतों की तपस्या भंग करने के असफल प्रयासों की अनेक कथाएँ भी हैं।  इनमें एक कथा धनाजी जगदाले की अखंडित तपस्या की भी जोड़ लीजिए।…और हाँ, अब यह प्रश्न मत कीजिएगा कि अब तक प्रलय क्यों नहीं हुआ?

अपने-अपने क्षेत्र में हरेक की तपस्या अखंडित रहे!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रात: 4 :14 बजे, 7.11.2019)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

(विनम्र सूचना- ‘संजय उवाच’ के व्याख्यानों के लिए 9890122603 पर सम्पर्क किया जा सकता है।)

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #4 – गंगई से ब्रह्म घाट ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण में  गंगई से ब्रह्म घाट  का यात्रा वृत्तांत। )

  ☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #4  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ 08.11.2019 गंगई से ब्रह्म घाट ☆
(17 किलोमीटर 26266 क़दम) 

हम सभी लोगों की परिक्रमा किसी मन्नत या जन्नत की लालसा से नहीं की जा रही है अपितु यह हिंदू जिज्ञासुओं की एक सांस्कृतिक परिक्रमा है जिसका उद्देश्य परिक्रमा की भावना, क्षेत्र, विस्तार और लक्ष्य की सीधी जानकारी संग्रहित करना है ताकि उन्हें संहिताबद्ध किया जा सके।

(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – तीसरा दिवस)

शाहपुरा के मनकेडी गाँव से दो व्यक्तियों ने आज विधिवत अखंड परिक्रमा ऊठाई है। एक की बेटी का हाथ बंदर ने चबा लिया था उसे डाक्टर ठीक  न कर सके नर्मदा मैया ने दर्शन देकर उसे आशीर्वाद दिया और बेटी का हाथ ठीक हो गया। दूसरे ने घरेलू वाद-विवाद से मुक्ति हेतु परिक्रमा व्रत लिया है। वे भिक्षा में सीधा लेकर भोजन बनाते हैं और अतिरिक्त सामग्री दान कर देते हैं। प्रतिदिन पाँच घर भिक्षा माँगते हैं। समान्यत: लोग पाप मुक्ति, मान्यता या स्वर्ग कामना से परिक्रमा करते है। बिना किसी कामना के बहुत कम लोग इस अत्यंत दुरुह यात्रा पर निकलते है।

सनातन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नर्मदा के अमरकण्टक से नेमावर के बहाव को देवी नर्मदा की देह का ऊपर का हिस्सा माना जाता है, तदानुसार नेमावर नाभिकुंड है। नेमावर को विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मस्थान माना जाता है। इसका मतलब हुआ कि ऋषि जमदग्नि और रेणुका का आश्रम नेमावर में रहा होगा। भृगु, मार्कंडे, वशिष्ठ, कौंडिल्य, पिप्पल, कर्दम, सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप, कपिल जैसे अनेकों सनातन ऋषियों के आश्रम जबलपुर के भेड़ाघाट से नेमावर के बीच रहे हैं जहाँ वेदों का पठन-पाठन, उपनिषद, अरण्यकों, ब्राह्मण ग्रंथों और पुराणों के साथ स्मृतियों का लेखन कार्य उन ऋषि आश्रमों में हुआ है।

आर्य-अनार्य सिद्धांत को ठीक माने तो आर्यों के आगमन के बाद से अनार्य याने असुर विन्ध्याचल और सतपुडा पर्वतों के बीच सघन जंगलों में प्रवाहित सदानीरा नर्मदा के किनारों बस गए थे। उत्तर भारत का इलाक़ा उन्होंने आर्यों के लिए छोड़ दिया था। नरसिंहपुर के नृसिंह मंदिर में भगवान नरसिंह की  मूर्ति प्रह्लाद ने स्थापित की थी। इसी क्षेत्र में हिरण्यकश्यप का राज्य था, शोणितपुर अर्थात वर्तमान सोहागपुर में प्रह्लाद की एक बहन के पुत्र बाणासुर की राजधानी थी। देवासुर संग्राम के पूर्व देवताओं ने ब्रह्मकुण्ड में शिव आराधना की थी। गराडू घाट पर गरूँड़ पर गरूँड़ ने युद्ध काल में तपस्या की थी। नर्मदा की परिक्रमा में इन सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा हो जाती है।

जयचंद विद्यालंकार के कालबद्ध पौराणिक इतिहास लेखन के बाद से पौराणिक साहित्य को हिंदुओं का ऐतिहासिक साहित्य माना जाने लगा है। नर्मदा घाटी का भेड़ाघाट से नेमावर का क्षेत्र देव-असुर संग्राम का साक्षी रहा है। 08.11.2019 गंगई से ब्रह्म घाट

तक की अबतक की सबसे दुरुह पदयात्रा की। रास्ता बहुत ख़राब कही कीचड़, कहीं नुकीले पत्थर और कहीं रेत के  अलावा कटे किनारे जानलेवा हो सकते थे। सुबह आठ बजे आश्रम के स्वामी धुरंधर बाबा से विदा लेकर नर्मदा किनारे-किनारे चल पड़े। क़रीबन तीन किलोमीटर चलकर मुआर घाट पहुँचे, मान्यता है कि दुर्गा देवी ने भेंसासुर का वध इसी घाट पर किया था। उस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारस थी और आज भी वही ग्यारस पड़ी। घाट पर स्नान चल रहा था, हम सभी ने भी स्नान किए और जो कुछ चना-चबैना था उसे ग्रहण किया। घाट पर चार व्यक्ति अखंड परिक्रमा उठा रहे थे उनके परिजन उन्हें छोड़ने आए थे। आज कई लोग दोनों किनारे के घाटों से परिक्रमा उठा रहे थे शाम के चार बजे तक सफ़ेद कपड़ों में क़तारबद्ध होकर परिक्रमा वासी चल पड़े, नर्मदा के सौंदर्य में चार चाँद लग गए।

ब्रह्म घाट पर एक 93 वर्षीय बुज़ुर्ग लक्वाग्रस्त पत्नी सहित मिले, वे बड़ी आत्मीयता से पत्नी सेवा में रत हैं। उनके दालान ने ठिकाना जमाया, वे भोजन सामग्री देने को तत्पर थे बनाना हमें था परंतु थकान से शरीर टूट रहे थे। एक पंडित जी के घर से तीस रोटी और आलू की सब्ज़ी का ठेका तीन सौ रुपयों में तय हुआ और सुबह से ख़ाली पेट भर गए।

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार – # 23 – व्यंग्य – स्वाइन-फ्लू और भैयाजी ☆ – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

 

(आपसे यह  साझा करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं.  हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं.  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं. कुछ पात्र तो अक्सर हमारे गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं.  उन पात्रों की वाक्पटुता को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं ,जो कथानकों को सजीव बना देता है. डॉ परिहार जी ने  एक ऐसे  नेता के चरित्र का विश्लेषण किया है जो  अपनी मामूली बिमारी से खुद तो परेशान है ही साथ ही उसने अपने चमचों की फ़ौज को भी परेशान कर रखा है।  तरह तरह की बीमारियों के नामों से ही भयभीत होकर तरह तरह के उपाय, मानसिकता और विरोधी पक्ष की तिकड़मों की कल्पना का भय कथानक को बेहद रोचक बना देता है।  फिर डॉ परिहार जी के व्यंग्य के चश्में से ऐसे चुनिंदा चरित्र  तो कदाचित बच ही नहीं सकते। ऐसे सार्थक व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  कलम को नमन. आज प्रस्तुत है उनका ऐसे ही विषय पर एक व्यंग्य  “स्वाइन-फ्लू और भैयाजी ”.)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 23 ☆

☆ व्यंग्य  – स्वाइन-फ्लू और भैयाजी   ☆

तीन दिन से भैयाजी हलाकान हैं। जु़काम और खाँसी ने ऐसा पकड़ा है कि चैन नहीं है। नाक पनाला हो गयी है। भैयाजी दो बार छींकते हैं तो चमचे चार बार छींकते हैं। मेज़ पर दवा की शीशियों का ढेर लगा है। हर चमचा एक दो शीशियाँ लाया है, इस इसरार के साथ कि ‘भैयाजी, एक बार जरूर आजमाएं।’

प्रधान चमचा कहता है, ‘भैयाजी, अब आपकी परेशानी देखी नहीं जाती। उठिए, अस्पताल चलिए। जाँच करा देते हैं। कहीं स्वाइन-फ्लू न हो। खतरा नहीं लेना चाहिए।’

भैयाजी भयभीत होकर हाथ उठाते हैं। ‘ना भैया, अस्पताल नहीं जाना है। अस्पताल गया तो गंध मिलते ही अखबार और टीवी वाले पहुँच जाएंगे। अगर स्वाइन-फ्लू निकल आया तो बड़ी किरकिरी हो जाएगी। मेरे विरोधी वैसे भी पीठ पीछे मेरे लिए ‘सुअर’ ‘गधा’ शब्दों का इस्तेमाल करते रहते हैं। स्वाइन-फ्लू निकल आया तो और मखौल उड़ेगा।’

प्रधान चमचा दुखी होकर कहता है, ‘कैसी बातें करते हैं भैयाजी? सैकड़ों लोगों को यह रोग हुआ है।’

भैयाजी कहते हैं, ‘हुआ होगा। उनकी वे जानें। हमें स्वाइन-फ्लू निकल आया तो दुश्मन यही कहेंगे कि हममें सुअर के कुछ गुण होंगे, तभी इस रोग ने हमें पकड़ा। वर्ना स्वाइन-फ्लू का आदमी से क्या लेना देना? भैया, बर्ड-फ्लू तो चल जाएगा, स्वाइन-फ्लू नहीं चलेगा।’

चमचा मुँह लटका कर कहता है, ‘फिर क्या करें भैयाजी?’

भैयाजी कहते हैं, ‘ऐसा करो, कोई भरोसे का डाक्टर हो तो उसे यहीं ले आओ। वह चुपचाप यहीं जाँच कर लेगा। लेकिन पहले उसे गंगाजल हाथ में लेकर कसम खानी होगी कि स्वाइन-फ्लू निकलने पर अपना मुँह बन्द रखेगा।’

प्रधान चमचा कहता है, ‘ठीक है, भैयाजी। मैं कोई माकूल डाक्टर तलाशता हूँ।’

भैयाजी कहते हैं, ‘देख लो भैया। अस्पताल जाना हमें किसी सूरत में मंजूर नहीं। अस्पताल के बजाय सीधे मरघट जाना पसन्द करेंगे।’

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – ☆ वीडियो प्रस्तुति – घर – वास्तू…आणि ती…  ☆ – सुश्री आरूशी दाते

सुश्री आरूशी दाते

 

( महाराष्ट्र  प्रदेश  की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परंपरा  का  सम्पूर्ण राष्ट्र में अपना एक विशिष्ट स्थान है।  यहां  दीपावली अंकों के प्रकाशन की परंपरा रही है।  प्रदेश के मराठी साहित्यकार दीपावली अंकों में अपनी रचनाएँ प्रकाशित कर गौरवान्वित अनुभव करते हैं। समय के साथ  दीपावली अंकों के प्रकाशन की परंपरा में डिजिटल मीडिया ने क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है।  ऐसे में यदि कोई सेलिब्रिटी  यदि आपकी रचना पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया दे तो आप कैसा अनुभव करेंगे।  निश्चित ही आपका मन मयूर प्रसन्नता से झूम उठेगा। कुछ ऐसा ही  अनुभव सुश्री आरूशी दाते जी  को हुआ जब  सुप्रसिद्ध मराठी गीतकार और ग़ज़लकार श्री वैभव जोशी  जी ने उनकी वीडियो अभिव्यक्ति “घर  – वास्तू… आणि ती… “पर अपनी प्रतिक्रिया दी।  हम उनकी उस प्रसन्नता के क्षण  को ही नहीं अपितु  उनके उस वीडियो लिंक को भी आपसे साझा कर रहे हैं जिसमे उनकी अभिव्यक्ति ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया है और निश्चित ही आप भी  कह उठेंगे  वाह ! )

☆ घर – वास्तू… आणि ती…   ☆

(आरुशी अद्वैत के फेसबुक पेज से साभार) 

साहित्यसंपदा दिवाळी डिजिटल अंकाबद्दल मी सुप्रसिद्ध गीतकार आणि गझलकार वैभव जोशी ह्यांना लिंक पाठवली होती, आणि त्यांच्याकडून अभिनंदन आणि शुभेच्छा असा मेसेज आला…

पहिले दोन मिनिटं काय करावं कळत नव्हतं, कारण एवढ्या मोठ्या दिग्गज कलाकाराकडून अभिप्राय आलाय ह्यावर माझा विश्वासच बसेना… आणि खरंच त्यांचा मेसेज आलाय ह्याचं भान आल्यावर इतका आनंद झाला की नाचू वाटायला लागलं… म्हणजे ते मेसेज वाचतील, विडिओ बघतील आणि reply देतील का? एवढा वेळ त्यांच्याकडे असेल का? हे प्रश्न मनात होते, पण सरांचा मेसेज आला आणि… जाऊ दे, काय वाटतंय ना, ते नेमक्या शब्दात सांगता येणार नाही… खूप आनंद झालाय….
ज्यांनी हा व्हिडिओ पाहिला नाही, त्यांच्यासाठी पुन्हा लिंक देत आहे आणि मी साहित्यसंपदा ह्या समूहाची आभारी आहे की त्यांनी माझ्या साहित्याचा समावेश त्यांच्या डिजिटल दिवाळी अंकात केला आहे…
ह्या दिवाळी अंकात मी माझे स्फुट सादर केले आहे… ते नक्की बघा, like आणि comment करा ,म्हणजे ह्या दिवाळी अंकातील सर्व साहित्य प्रकारांचा आस्वाद घेता येईल…
स्फुट…
आरुशी अद्वैत – वास्तू… आणि ती… 
घर तिचंच आहे,
पण ती अजूनही शोधते आहे स्वतःला… आणि वास्तूतील तिच्या स्थानाला… जळते आहे, एका पणातीसारखी… एका पणातीसारखी…
प्रत्येक स्त्रीच्या मनातील कोनाडा काय सांगतोय, ते ऐकू या आरुशी अद्वैत ह्यांच्या शब्दातून…
वीडियो लिंक  >>>>    https://youtu.be/g0kmCSyRHAE
© आरुशी दाते, पुणे
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ # 8 – विशाखा की नज़र से ☆ समर्पण ☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना समर्पणअब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 8 – विशाखा की नज़र से

☆ समर्पण ☆

 

पत्तों – सा हरा , पीला फिर भूरा

इसमें है जीवन का मर्म पूरा

 

नवकोमल , नवजीवन , नवनूतन चहुँ ओर

नवपुलकित , नवगठित , नवहर्ष सब ओर

नवसृजन , नवकर्म , नवविकास इस ओर

पत्तों सा हरा ——–

 

पककर , तपकर , स्वर्णकर तन अपना

अपनों को सब अपना अर्पण करना

पीत में परिवर्तित हो जाना

जीवनक्रम अग्रसर करना

पत्तों सा हरा ——-

 

भू से भूमि में मिल जाना

धूमिल – भूमिल हो जाना

नवजीवन की आस जगाना

यह ही है जीवन बतलाना

पत्तों सा हरा ——–

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ मी_माझी – #27 – ☆ चहा की कॉफी… ☆ – सुश्री आरूशी दाते

सुश्री आरूशी दाते

 

(प्रस्तुत है  सुश्री आरूशी दाते जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “मी _माझी “ शृंखला की अगली कड़ी  चहा की कॉफी…   सुश्री आरूशी जी  के आलेख मानवीय रिश्तों  को भावनात्मक रूप से जोड़ते  हैं.  सुश्री आरुशी के आलेख पढ़ते-पढ़ते उनके पात्रों को  हम अनायास ही अपने जीवन से जुड़ी घटनाओं से जोड़ने लगते हैं और उनमें खो जाते हैं।  आप चाय लेंगे या कॉफी ? वैसे आप है लें या कॉफी सुश्री आरुशी जी  के लिए किसी भी तथ्य पर लिखना अत्यंत सहज है।  A lot can happen over a coffee…. प्रेम, मैत्री, रूठना, मानना, वाद विवाद, आनंद, विचार और आप जो कुछ भी विचार करें सब कुछ। सुश्रीआरुशी जी के संक्षिप्त एवं सार्थकआलेखों  तथा काव्याभिव्यक्ति का कोई सानी नहीं।  उनकी लेखनी को नमन। इस शृंखला की कड़ियाँ आप आगामी प्रत्येक रविवार को पढ़  सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मी_माझी – #27 ☆

☆ चहा की कॉफी…  ☆

दवणे सरांच हे वाक्य किती बरोबर आहे बघा…

मनाला हुरहूर लागणाऱ्या अनेक क्षणी जिवलग व्यक्तीही जितक्या तत्परतेने धावून आल्या नसतील इतक्या तत्परतेने धावून आलेली गोष्ट म्हणजे – चहा !

तसंच जेव्हा एकाकी वाटू लागतं, आभाळ दाटून येतं, तेव्हा सोबतीला असते ती कॉफी.

मला स्वतःला दोन्ही फार आवडत नाही, असं मी म्हटलं की लोकांच्या नजरेत आश्चर्य मिश्रित कारुण्य दिसून येतं. नाही म्हणजे त्यांचं बरोबरच आहे, पण आता नाही आवडत ह्याला काय करणार…लोकांचं चहा कॉफीवरील प्रेम पाहिलं की कधी कधी खरच वाटतं की I am missing out something in life..  पण ते तात्पुरतं असतं, त्यात मला फार काही गमावल्याचं दुःख वाटत नाही.

काही ही असो, चहा असो किंवा कॉफी, नाती जोडायचं काम चोख करतात. ते म्हणताच ना a lot can happen over a coffee…. प्रेम, मैत्री, रुसवे, फुगवे, भांडण, वाद विवाद, जवळीक, आनंद, विचार आचारांची देवाण घेवाण, अभ्यास .. जे म्हणाल ते…

एका चहाच्या कपावर महाभारत लिहून होईल, इतका दम आहे ह्यात, असं म्हटलं तर अतिशयोक्ती होणार नाही. रेल्वे प्लॅटफॉर्म वर गरम चाय गरम चाय असं कोणी ओरडत गेलं की आपण योग्य ठिकाणी गाडीची वाट बघत आहोत, असा विश्वास निर्माण होतो… कोणी भेटलं की लगेच, चल चहा पियू या, ह्यात जी आपुलकी जाणावते तिला तोड नाही, मग भले तो कटिंग असू दे. उगाच त्याला अमृततुल्य म्हणत नाहीत…

एकाच कपातून कॉफी प्यायली आहे का कधी? किती रोमॅंटिक असतंय ते, हे फक्त त्या अनुभवातूनच कळू शकतं. त्यासाठी कुठल्याही ज्ञानाचा उपयोग नाही, प्रत्यक्ष त्यातून जावं लागतं, तेव्हा कुठे प्रेयसी आपली होते, आपल्या मिठीत येते… सगळे हेवे दावे, शंका कुशंका, आप पर भाव दूर करणारी कॉफी… स्ट्रॉंगच लागते… तर सगळं स्ट्रॉंग राहू शकतं…

 

© आरुशी दाते, पुणे

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – सप्तम अध्याय (14) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

सप्तम अध्याय

ज्ञान विज्ञान योग

( आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा )

 

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ।।14।।

 

मेरी दैवी गुणमयी माया अपरम्पार

पर मुझसे जो मिल गये,वे सब होते पार।।14।।

      

भावार्थ :  क्योंकि यह अलौकिक अर्थात अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है, परन्तु जो पुरुष केवल मुझको ही निरंतर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात्‌ संसार से तर जाते हैं।।14।।

 

Verily this divine illusion of Mine made up of the qualities (of Nature) is difficult to  cross over; those who take refuge in Me alone cross over this illusion.।।14।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 43 ☆ श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी एवं कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को शुभकामनायें ☆ – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–43

☆ श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे को उनके अमृत महोत्सव (75 वांजन्मदिवस) 

एवं 

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को शोध पत्र “हिंदी-उर्दू  अनुवादों के माध्यम से अंतर-सांस्कृतिक संवाद”

के लिए हार्दिक शुभकामनायें

 

प्रिय मित्रों,

आज के संवाद के माध्यम से मुझे पुनः आपसे विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ है।

हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि ई- अभिव्यक्ति से सम्बद्ध साहित्यकारों को समय समय पर विभिन्न सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित / अलंकृत होने के अवसर प्राप्त होते रहते हैं।  हम उन सभी साहित्यकारों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं एवं उन्हें साहित्य के क्षेत्र में नए आयामों को सफलतापूर्वक पाने के लिए ह्रदय से शुभकामनाएं देते हैं।

सर्वप्रथम मैं वरिष्ठ मराठी साहित्यकार एवं अग्रजा श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे को उनके अमृत महोत्सव (75 वें जन्मदिवस) के शुभ अवसर पर आप सब की और से स्वस्थ जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं  देना चाहता हूँ। मैं उनके इस वय में भी समय के साथ स्वयं को परिवर्तित कर तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने की अद्भुत लालसा से अत्यंत प्रभावित हूँ एवं अपनी प्रेरणा स्त्रोत के रूप में देखता हूँ। वे हम सबके लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं एवं हमें किसी भी वय में  सीखने  के लिए प्रेरित करती हैं।

हम वरिष्ठ एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी साहित्यकार मित्र कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि  के लिए हार्दिक बधाई देते हैं।  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय में 9 से 11 जनवरी 2020 को  आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन ” हिंदी : वैश्विक परिप्रेक्ष्य – भाषा, साहित्य और अनुवाद” में भागीदारी और उनके शोध पत्र “हिंदी – उर्दू  अनुवादों के माध्यम से अंतर  – सांस्कृतिक  संवाद”  को प्रस्तुत करने की स्वीकृति प्राप्त हुई है। यह कार्यक्रम दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा कोलंबिया  विश्वविद्यालय  एवं न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय द्वारा प्रायोजित किया गया है। 

यह हम सब के लिए गर्व का विषय है।

ई-अभिव्यक्ति से परोक्ष एवं अपरोक्ष  रूप से सम्बद्ध सभी साहित्यकार मित्रों को उनकी साहित्यिक यात्रा में ऐसे  उन्नतअवसरों के लिए हमारी हार्दिक शुभकामनाएं।

आपसे अनुरोध है कि ऐसे सुअवसरों को ई – अभिव्यक्ति  के माध्यम से अवश्य साझा करें। हमें आपकी सफलता की सूचना मित्र साहित्यकारों से साझा करने में अत्यंत प्रसन्नता होगी।

 

हेमन्त बावनकर

8 नवम्बर 2019

( व्यक्तिगत एवं तकनीकी कारणों से 8 एवं 9 नवम्बर का संयुक्तांक प्रकाशित करने के लिए हार्दिक खेद है । आपके स्नेह के लिए आभार ।)

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – महाकाव्य ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

We present an English Version of this Hindi Poetry “महाकाव्य ”  as ☆ The Epic ☆.  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation. )

☆ संजय दृष्टि  –  महाकाव्य

 

तुम्हारा चुप

मेरा चुप

चुप लम्बा खिंच गया,

तुम्हारा एक शब्द

मेरा एक शब्द

मिलकर महाकाव्य रच गया!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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