(आज प्रस्तुत है प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी द्वारा रचित स्व वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस पर विशेष आलेख “विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैचू ऑफ़ यूनिटी'”।)
☆ विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैचू ऑफ़ यूनिटी’☆
पंद्रह अगस्त 1947 को जब देश अंग्रेजो से आजाद हुआ तो, भारत की राजनैतिक व सामाजिक स्थिति अत्यंत छिन्न भिन्न थी. देश का धर्म के आधार पर बंटवारा हो चुका था, पाकिस्तान का निर्माण मुस्लिम देश के रूप में हुआ था. किन्तु, सारे भारत में छोटे बड़े शहरो, कस्बों व गांवो में बसी हुई मुसलमान आबादी न तो इतनी सुशिक्षित थी और न ही इतनी सक्षम कि वह इस विभाजन को समझ सके और स्वयं के पूर्वी या पश्चिमी पाकिस्तान में विस्थापन के संबंध में कोई निर्णय ले सके. तब संचार व आवागमन के पर्याप्त संसाधन भी नही थे. पीढ़ियों से बसे हुये परिवार भी नेताओ के इशारो पर, घबराहट में पलायन कर रहे थे. सारे देश में आपाधापी का वातावरण बन गया था.
अंग्रेजी सरकार के पास जो भूभाग था उसका सत्ता हस्तांतरण तो हो गया किन्तु, भारतीय भूभाग में तब लगभग 565 छोटी-बड़ी रियासतें भी थी जिनमें राजा राज्य कर रहे थे. यहाँ रहने वाली बड़ी आबादी मानसिक रूप से अंग्रेजो के विरुद्ध भारत के साथ आजादी के आंदोलन में साथ थी और देश की आजादी के बाद लोकतांत्रिक सपने देख रही थी किन्तु क्षेत्रीय राजा महाराजा अपने व्यैक्तिक हितों के चलते जनता की आवाज को अनसुना करने के यत्न भी कर रहे थे.
देश आजाद तो हो गया था पर न तो कोई संविधान था न विधि सम्मत समुचित शासन व्यवस्था बन पाई थी. ऐसे दुरूह राजनैतिक, सामाजिक संधिकाल में आपाधापी और अराजकता के वातावरण में शासन के सीमित संसाधनो के बीच भारत के पहले उप प्रधान मंत्री के रूप में गृह, रियासत व सूचना मंत्री की कौशलपूर्ण जबाबदारी सरदार पटेल ने संभाली. और उन्होने जो करिश्मा कर दिखाया वह आज तो नितांत अविश्वसनीय ही लगता है. सरदार पटेल ने छोटी बड़ी सारी रियासतो का भारत के गणतांत्रिक राज्य में संविलयन कर दिखाया. राजाओ से प्रिविपर्स की शर्ते तय करना जटिल चुनौती भरा कार्य था. देश के धार्मिक आधार पर विभाजन के चलते हिन्दू मुस्लिम कटुता भी वातावरण में थी, जिन रियासतो के शासक मुस्लिम थे, विशेष रूप से भोपाल के नवाब, जूनागढ़ या हैदराबाद के निजाम उन्हें भारत में मिलाना किसी भी अन्य नेता के बस में नही था. इतिहास के जानकार बताते हैं कि काश्मीर के राजा यद्यपि हिन्दू थे व वहां बहुत बड़ी आबादी हिदुओ की ही थी किन्तु फिर भी चूंकि पंडित नेहरू ने सरदार पटेल को वहां हस्तक्षेप नही करने दिया इसीलिये काश्मीर आज तक समस्या बना हुआ था.
सरदार पटेल ने न केवल भारत के संघीय नक्शे को अपनी कार्य कुशलता से एकीकृत रूप दिया वरन देश के धार्मिक आधार पर विभाजन से उपजी हिन्दू मुस्लिम वैमनस्यता को समाप्त कर सामाजिक समरसता का वातावरण पुनर्स्थापित करने के ऐसे महत्वपूर्ण कार्य किये हैं कि उन कार्यो के स्मरण स्वरूप कृतज्ञ राष्ट्र का “स्टेच्यू आफ यूनिटी” के रूप में उनकी विश्व की सबसे उंची मूर्ति स्थापना का कार्य उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली है. युगो युगो तक हर नई पीढ़ी इस भव्य विशाल मूर्ति के माध्यम से उनके राष्ट्र के एकीकरण के असाधारण कार्य का स्मरण करेगी और उनसे राष्ट्रीय एकता व अखण्डता की प्रेरणा लेती रहेगी.
वर्तमान में विश्व की सबसे ऊँची स्टैच्यू या मूर्ती 152 मीटर की चीन में स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध की मूर्ति है. मूर्ति की ऊँचाई की दृष्टि से दूसरे स्थान पर सन् 2008 में म्याँमार सरकार की बनवाई गई 120 मीटर ऊंची बुद्ध के तथागत रूप की प्रतिमा और विश्व की तीसरी सबसे ऊँची मूर्ती भी भगवान बुद्ध की ही है,जो जापान में है इसकी ऊँचाई 116 मीटर हैं. अमेरिका की सुप्रसिद्ध स्टेच्यू आफ लिबर्टी की ऊँचाई 93 मीटर है. रूस की सुप्रसिद्ध ऊंची प्रतिमा मदर लैंड काल्स की ऊंचाई 85 मीटर तथा ब्राजील की प्रसिद्ध प्रतिमा क्राइस्ट द रिडीमर की ऊँचाई 39.6 मीटर है. इस तरह 182 मीटर ऊँची यह स्टेच्यू आफ यूनिटी अर्थात एकता की प्रतिमा भारत में दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है.
इस मूर्ति स्थापना का कार्य नर्मदा नदी पर बने विशालकाय सरदार सरोवर बांध के जलाशय में बांध से लगभग 3.5 किलोमीटर दूर साधु बेट नाम के टापू पर अंतिम स्थिति में है. इसकी नींव 31 अक्तूबर 2013 को राखी गई थी एवं 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल के जन्मदिन पर इस गौरवशाली स्मारक का उद्घाटन प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया।
होना है. स्मारक की कुल ऊँचाई आधार से लेकर शीर्ष तक 240 मीटर है, जिसमें आधार तल की ऊँचाई 58 मीटर और सरदार पटेल की प्रतिमा 182 मीटर ऊँची है. प्रतिमा का निर्माण इस्पात के फ्रेम, प्रबलित सीमेण्ट कंक्रीट और इस तरह निर्मित मूर्ति के ढ़ांचे पर काँसे की परत चढ़ाकर किया गया. तकनीकी निर्माण की दृष्टि से इस मूर्ति का निर्माण जलाशय के बीच एक ऊँची इमारत के निर्माण की तरह ही तकनीकी चुनौती का कार्य है. यही नही चुंकि इस प्रतिमा के साथ विश्व पटल पर देश का सम्मान भी जुड़ा है अतः यह निर्माण इंजीनियर्स के लिये और भी चुनौती भरा कार्य था. समय बद्ध निर्माण, वैश्विक परियोजना के रूप में पूरा किया गया. व्हेदरिंग के बीच स्टेच्यू की आयु अनंत समय की होगी अतः निर्माण की गुणवत्ता के समस्त मापदण्डो के परिपालन व संरक्षण व अनुरक्षण की समुचित सुरक्षात्मक व्यवस्थायें वैश्विक स्तर पर सुनिश्चित की गई हैं. ऐसी परियोजनाओ में तड़ित के निस्तारण,तीव्र गामी हवाओ, तूफान, आंधी, चक्रवात, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओ के बीच मूर्ति को निरापद बनाये रखने हेतु समुचित उपाय किये जाना अति आवश्यक होता है, जिस हेतु अतिरिक्त फैक्टर आफ सेफ्टी का विशेष प्रावधान रखा गया है.
स्टेच्यू आफ यूनिटी सही अर्थो में एकता की प्रतिमूर्ति है क्योकि इसका निर्माण शासन के साथ जन भागीदारी से किया गया है. न केवल आर्थिक सहयोग वरन मूर्ति हेतु उपयोग किये जाने वाला लोहा भी आम किसानो से उनके कृषि उपकरणो से जन आंदोलन के रूप में एकत्रित किया गया, इसके पीछे भावना यह थी कि आम किसानो व नागरिको का भावनात्मक लगाव मूर्ति के साथ सुनिश्चित हो सके, चूंकि सरदार पटेल एक किसान पुत्र थे अतः गांवो से एकत्रित लोहे के रूप में उस लौह पुरुष के प्रति सम्मान व्यक्त करने का भी यह एक अभियान था. जन अभियान के रूप में “रन फार यूनिटी” तथा “डिजिटल कैंपेन” चलाकर भी जन सामान्य को दुनियाभर में इस एकता के अभियान में जोड़ा गया है. परियोजना पूरी होने पर श्रेष्ठ भारत भवन, म्यूजियम व ध्वनि संगीत गैलरी, लेजर शो, व अनुसंधान केंद्र के रूप में पर्यटको के बहुमुखी आकर्षण केन्द्र के रूप में स्थल विकास किया गया है. फेरी के द्वारा सरदार सरोवर में पर्यटको के भ्रमण की नियमित व्यवस्थायें की गई हैं. यह परियोजना देश के सम्मान, एकता, फ्रीडम का संयुक्त व बहुआयामी केंद्र है जहाँ पहुंचना प्रत्येक भारतवासी के लिये गौरवशाली क्षण बन चुका है.
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
फैलो आफ इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स
ए 1, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर 482008
मो 7000375798