(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
प्रबुद्ध पाठकों के लिए आज दीपावली पर्व पर संजय दृष्टि के दूसरा सामयिक अंक भी आपके आत्मसात करने हेतु प्रस्तुत हैं।
☆ संजय दृष्टि – दीपावली विशेष – रूप चतुर्दशी ☆
मेरे भीतर
फुफकारता है
काला एक नाग,
चोरी-छिपे जिसे
रोज दूध पिलाता हूँ,
ओढ़कर चोला
राजहंस का, फिर मैं
सार्वजनिक हो जाता हूँ।
हर व्यक्ति मन के सौंदर्य से सम्पन्न हो। रूप चतुर्दशी की बधाई एवं शुभकामनाएँ।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(समाज , संस्कृति, साहित्य में ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले कविराज विजय यशवंत सातपुते जी की सोशल मीडिया की टेगलाइन “माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं ।
(इस दीपावली के पवन पर्व पर कविराज विजय जी ने अष्टाक्षरी विधा में छह विशेष कविताओं की रचना की है। उनमें से दो कवितायेँ (1) वसुबारस (2) धेनू पूजा” आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं अन्य दो सामयिक कवितायेँ (1) आली धन त्रयोदशी.. . ! (2) नर्क चतुर्दशी . शेष कवितायेँ समय समय पर प्रकाशित करेंगे। कुछ कविताओं के प्रकाशन में विलम्ब के लिए खेद है। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से हार्दिक शुभकामनाओं सहित )
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है “एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती ”।)
विरुपक्ष (अर्थ : एक महीने के एक पक्ष अथार्त 15 दिनों के लिए वीर) को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला हुआ था कि वह ‘चंद्रमा’ का एक ‘पक्ष’ या चंद्रमा का पृथ्वी के चारो और पूरे चक्कर का आधा समय जो की करीब 15 दिन होते है को चुन सकता है या तो कृष्ण पक्ष (काला या अँधेरा आधा मार्ग) या शुक्ल पक्ष (उज्ज्वल आधा मार्ग), अपने चुने हुए आधे चक्र के दौरान, वह कभी भी किसी के भी द्वारा पराजित नहीं होगा, और यदि उसने अपनी पसंद के एक महीने का एक आधा भाग चुना, जिसमें वह पराजित नहीं हो सका, तो वह उस माह के अगले या दूसरे आधे भाग या 15 दिनों में पराजित हो सकता है। इसका अर्थ है कि अगर उसने किसी के साथ लड़ने के लिए चंदमा के चक्र का उज्जवल आधा भाग या शुक्ल पक्ष चुना है, तो वह कभी भी पूरे 15 दिनों के इस उज्ज्वल आधे भाग में किसी से पराजित नहीं होगा। लेकिन जब चंद्रमा का अगला चरण अर्थात अँधेरा आधे भाग या कृष्ण पक्ष आयेगा तो वह उसमे पराजित हो सकता है। इसी तरह अगर वह अँधेरा भाग या कृष्ण पक्ष चुनता है तो 15 दिनों तक पराजित नहीं होगा और 15 दिनों बाद जब उज्जवल भाग या शुक्ल पक्ष शुरू होगा तो उसमे पराजित हो सकता है ।
विरुपक्ष अपने चुने हुए अंधेरे आधे भाग में युद्ध भूमि में आया, इसलिए वह उस आधे भाग में पराजित नहीं हो सकता था। उसने वानरों को बुरी तरह से मारना शुरू कर दिया।जल्द ही भगवान हनुमान विरुपक्ष के रास्ते में आ गए। भगवान हनुमान ने बहुत कोशिश की और विरुपक्ष के साथ लगातार लड़ते रहे,लेकिन भगवान ब्रह्मा जी से मिले वरदान की वजह से वह उसे हराने में असमर्थ थे।
भगवान राम के समूह में हर कोई चिंतित था। तब विभीषण ने भगवान राम को सुझाव दिया कि, “हम विरुपक्ष को तब तक पराजित नहीं कर सकते जब तक चंद्रमा अपने आधे अंधेरे चक्र को आधे उज्ज्वल चक्र में बदलकर हमारी सहायता नहीं करेंगे”
उसी समय भगवान इंद्र आकाश में दिखाई दिए और कहा, “हे राम, आपका युद्ध मानवता के लिए है। मैं चंद्रमा को आदेश देता हूँ, ताकि वह अपने चरणों को बदल दे और दूसरे आधे चक्र में चला जाए”
कुछ देर बाद चंद्रमा ने अपने मासिक चक्र के आधे अंधेरे भाग, कृष्ण पक्ष को आधे चमकीले या उज्जवल, शुक्ल पक्ष भाग में बदल दिया, और जल्द ही विरुपक्ष का शरीर घटना शुरू हो गया। चूंकि अब विरुपक्ष का शरीर कमजोर हो गया, तो भगवान हनुमान ने उसे पकड़ लिया और फिर उसे मार डाला।ऐसा कहा जाता है कि तब से चंद्रमा पृथ्वी के इर्दगिर्द अपने सामान्य आधे चक्र से आधे चक्र के अंतराल से अपना मासिक क्रम दोहरा रहा है।
भगवान राम ने अपने हाथों को आकाश में चंद्रमा की ओर बढ़ा कर चंद्रमा को प्रणाम एवं धन्यवाद किया।
जल्द ही चंद्रमा के देवता भगवान राम के सामने प्रकट हुए और उनसे अनुरोध में कहा, “हे भगवान! आप मुझे धन्यवाद क्यों दे रहे है? मेरी चमक शक्ति और शीतलता, आपका ही प्रताप है।यदि आप वास्तव में मुझे धन्यवाद देना चाहते हैं, तो मुझे वचन दीजिये कि जैसे आप अपने इस युग के अवतार में सूर्य वंश में जन्मे है, वैसे ही अगले युग के अवतार में आप मेरे वंश अथार्त चंद्र वंश में जन्म लेंगे”
भगवान राम मुस्कुराये और चाँद से कहा, “यह मेरे लिए खुशी होगी। मैं आपको वचन देता हूँ कि मेरे अगले अवतार में मैं चंद्र वंश (चंद्रवंशी) में जन्म लूँगा ।
हम सभी जानते हैं कि अगले अवतार में, भगवान विष्णु का जन्म चंद्र वंश में भगवान कृष्ण के रूप में हुआ था ।
(समाज , संस्कृति, साहित्य में ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले कविराज विजय यशवंत सातपुते जी की सोशल मीडिया की टेगलाइन “माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं ।
(इस दीपावली के पवन पर्व पर कविराज विजय जी ने अष्टाक्षरी विधा में छह विशेष कविताओं की रचना की है। उनमें से दो कवितायेँ (1) वसुबारस (2) धेनू पूजा” आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं अन्य दो सामयिक कवितायेँ (1) आली धन त्रयोदशी.. . ! (2) नर्क चतुर्दशी . शेष कवितायेँ समय समय पर प्रकाशित करेंगे। कुछ कविताओं के प्रकाशन में विलम्ब के लिए खेद है। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से हार्दिक शुभकामनाओं सहित )
((सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं । वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की एक भावप्रवण कविता “मयख़ाना “।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 12 ☆
☆ मयख़ाना ☆
मयखाने के पास में मेरी भी दुकान है,
हर रोज मैं शरीफों के चेहरे देखती हूँ ।
सफेदपोश लिपे हुए कमसिन चेहरें,
जेबें टटोलते हुए सहर देखती हूँ ।
हरी भरी सब्जियां सूखती हैं दुकानों में
और शाम को छलकते हुए जाम देखती हूँ।
भूख से बिलखते बच्चे हाथ फैलाते हैं
काँच से बच्चों की जान सस्ती पाती हूँ ।
लड़खड़ाते कदमों को थामे नन्हीं ऊँगलियाँ
डरे हुए चेहरों की जिंदगियाँ देखती हूँ ।
दर्दहीन कमजोर आँखों में खून खौलता है
मयखाने के दर पर उनका नसीब देखती हूँ ।
(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं. प्रस्तुत है दीपावली पर्व पर उनकी विशेष कविता “दीया मिट्टी और मन का जलाएँ”.)
☆ दीपावली विशेष – दीया मिट्टी और मन का जलाएँ ☆
*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।
दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*
अन्धकार से प्रकाशित करे ।
मिट्टी के दीये प्रज्वलित करे ।।
ईर्ष्या, द्वेष,अहं से मुक्ति पाए ।
मन के दीये की रोशनी पाए । 1।
*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।
दूसरा दीया मन का जलाएँ ।। *
फुटपाथ हाट से दीये खरीदे ।
बूढ़ी अम्मा को मुस्कुराहट दे ।।
दिखावटी वस्तुओं से दूरी करे ।
स्वदेशी वस्तुओं का क्रय करे । 2।
*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।
दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*
कपड़े व मिठाइयाँ बंटे गरीबों में ।
चेहरे पर मुस्कुराहट दिखे गरीबों में ।।
भूखे सोये न कोई इस दीवाली में ।
ग़रीबों के घर दीप जले दीवाली में । 3।
*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।
दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*
प्रेम, मित्रता,अपनत्व का भाव रखे ।
प्रकाश पर्व का भाईचारा रखे ।।
आओ इस दीवाली पर एक प्रण ले ।
कोई अकेला दीप न जले दीवाली में । 4 ।
*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।
दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*
कुमार जितेन्द्र
(कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक – गणित)
साईं निवास मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान) मोबाइल न 9784853785
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है उनकी कविता चिंतामणी चारोळी जो श्री गणेश जी का प्रासादिक वर्णन किया गया है। श्रीमती उर्मिला जी को ऐसी सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई. )
☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 11 ☆
☆ चिंतामणी चारोळी ☆
(माझ्या “चिंतामणी चारोळी “संग्रहातील श्रीगणेशाचे प्रासादिक वर्णन करणाऱ्या न ऊ चारोळ्या)
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
षष्ठम अध्याय
( योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा )
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः ।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ।।46।।
योगी तपसी से बड़ा ज्ञानियों से भी महान
योगी हो अर्जुन ! जो है कर्मीयों से विद्धान।।46।।
भावार्थ : योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है। इससे हे अर्जुन! तू योगी हो।।46।।
The Yogi is thought to be superior to the ascetics and even superior to men of knowledge (obtained through the study of scriptures); he is also superior to men of action; therefore, be thou a Yogi, O Arjuna! ।।46।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनके पिताश्री एवं मेरे गुरवर डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र ” जी के जन्मदिवस पर उनकी स्मृतियाँ। )
☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र” जन्मदिवस विशेष – पापा जी यानी मेरे पिताजी: डॉ.सुमित्र ☆
पिता को पापा कहना कब शुरू किया यह याद नहीं . लगता है यह संबोधन तुतलाहट से निकला होगा. हम भाई-बहनों को कभी-कभार डांट जरुर पड़ी है, मार नहीं. शायद एक आद बार भैया के कान पकड़े गए हों. गर्व यह कि हमें पापा जी का लाड़ दुलार तो मिलता रहा किंतु, उन की व्यस्तता के कारण हमारी स्कूल की देखभाल का जिम्मा ममतामयी मां ही संभालती रहीं .
घर का वातावरण धार्मिक, साहित्यिक सांस्कृतिक था. घर में गोष्ठियां होती. हम शालीन श्रोता होते, सुनते सुनते सो जाते. कुछ बड़े होने पर तैयारियों में हाथ बटाने लगे. फिर जाना कि हमारे पिता कवि लेखक पत्रकार और शिक्षक हैं. मां भी शिक्षिका हैं लेखिका है.
(डॉ। राजकुमार तिवारी “सुमित्र” एवं उनकी बेटी डॉ भावना शुक्ल)
माँ बताती थी– भावना तुम्हारा जन्म एल्गिन अस्पताल में हुआ था. और पहले ही दिन पिताजी के कवि मित्र सरदार सरवण सिंह पैंथम ने तुम्हारे हाथों में चांदी का रुपया देकर शुभाशीष दिया था. पिता का परिचय संसार व्यापक सभी वरिष्ठ साहित्यकारों का स्नेहाशीष उन्हें प्राप्त था. कविवर नर्मदा प्रसाद खरे, पंडित भवानी प्रसाद तिवारी, झंकनलाल वर्मा छेल जी, मनोज जी, श्रीबाल पांडे, गोविंद तिवारी उन्हें पुत्रवत मानते थे.
बाल्यकाल में ही मुझे महीयसी महादेवी वर्मा, डॉक्टर रामकुमार वर्मा, सेठ गोविंददास, व्यौहार राजेंद्र सिंह, कालिका प्रसाद दीक्षित जानकी वल्लभ शास्त्री, विद्यावती कोकिल, सरला तिवारी, शकुंतला सिरोठिया, रत्न कुमारी देवी आदि के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
घर की गोष्ठियों में रामकृष्ण दीक्षित विश्व, तरुण जी, पथिक जी, मधुकर खरे, ओंकार तिवारी, अजय वर्मा, डॉक्टर नरेश पांडे, देशभक्ति नीखरा, राज बिहारी पांडेय और चाचा गणेश प्रसाद नामदेव का स्नेह प्राप्त हुआ.
पिताजी शिक्षक भी रहे, प्राइमरी से लेकर महाविद्यालय-विश्वविद्यालय तक के. लेकिन कैसे शिक्षक? छात्र छात्राओं की ना तो ट्यूशन की ना उन से नाम इकराम लिया. बल्कि साल में एक माह का वेतन उनपर ही खर्च कर देते थे.
साथी शिक्षक ऐसे सगे कि क्या होंगे? सदा भाईचारा रहा.
पिताजी प्रारंभ से ही पत्रकारिता, विशेष रूप से साहित्य पत्रकारिता से जुड़े रहे. पहले अंशकालिक फिर पूर्णकालिक. नारी निकुंज के संपादन के समय में बारह-चौदह घंटे प्रेस में बिताते.
प्रतिष्ठितों को मान और नवोदिता को प्रोत्साहन इनका चलाएं एक संबोधन यही उनका संकल्प रहा. प्रेस में आने वालों की चाय तक कभी नहीं पी जो भेंट आती उसे बटवा देते.
सभी साहित्यकारों और संस्थाओं से जुड़ाव था. मित्र संघ की विशिष्ट गोष्ठियां, हिंदी मंच भारतीय अन्य आयोजन संचालनकर्ता यही होते. बहुत प्रचलित हुआ” एवं प्रयोजन|
गोष्ठी, आयोजन स्मारिका और सतत लेखन रात के दो-तीन बजे तक जागरण | सुबह फिर चुस्त-दुरुस्त|
पिता के मित्रों की संख्या बहुत है किंतु विरोधी स्वर मना रहे हो ऐसा भी नहीं. किंतु, उन्होंने कभी भी ना तो किसी के विरुद्ध कुछ कहा ना लिखा. उनका कहना है- समय उत्तर देगा|
पिताजी राज्य श्री परमानंद पटेल के प्रिय पात्र थे. लोगों ने उड़ाया की सुमित्र जी खूब माल काट रहे हैं जब की असलियत यह है उन्होंने कभी उनसे किसी भी प्रकार का आर्थिक लाभ नहीं लिया. बीमार होते हुए भी पटेल साहब अपनी पत्नी के साथ हमारे घर पधारे मेरी शादी में, पिताजी भेंट लेने को भी राजी नहीं थे. बामुश्किल उन्होंने शगुन की एक साड़ी स्वीकार की.
पिताजी का कहना है कि हमारी और कुछ तो नहीं है—– न लेने की शक्ति और संकल्प जरूर है.
व्यस्त दिनचर्या में पिताजी कब पढ़ लेते हैं कब लिख लेते हैं पता ही नहीं चलता.
वह केवल अपने ही नहीं पढ़ते ज्ञान का वितरण करते हैं, अधिकृत गाइड नहीं है. किंतु उन्होंने पीएचडी और एमफिल के 30-35 छात्र-छात्राओं का सामग्री प्रदान की .
पिता के जीवन का संघर्ष उनकी मां के देहावसान से शुरू हुआ और अब आयु के आठवें दशक में प्राण प्रिय पत्नी का वियोग, ऊपर से स्वस्थ, भीतर से टूटे. भैया हर्ष, भाभी मोहिनी उनकी देखभाल में तत्पर हैं. प्रियम उनकी जीवनशक्ति है. हम लोग फोन के माध्यम से संपर्क बनाए रहते हैं.
संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले पिता के स्वभाव में तुनकमिजाजी है. क्रोध कम होता है. आता है तो भयंकर. अच्छी बात यह कि पूरा जल्दी उतर जाता है.
स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है किंतु, भूल जाते हैं कि कल कौन आया था, चश्मा या किताब कहां रखी है.
यात्रा प्रिय रही है.
पिता की दुर्बलता को शक्ति बनकर संभालती थी मेरी मां.
मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानती हूँ, मुझे विरासत में साहित्यिक निधि मिली. बचपन से मैंने साहित्य की उंगली पकड़कर भी चलना सीखा है. लेकिन तब से लेकर आज तक जो कुछ भी लेखन किया है बिना पिता को सुनाएं दिखाएं रचना पूर्ण नहीं होती. आज भी गलतियों पर डांट पड़ती है.
मुझे गर्व है कि मैं साहित्यकार पिता डॉक्टर सुमित्र और साहित्य साधिका मां स्मृति शेष डॉक्टर गायत्री तिवारी की बेटी हूँ.