विजयादशमी पर्व विशेष
डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत
(विजयादशमी पर्व के अवसर पर आज प्रस्तुत है डॉ. ज्योत्सना सिंह रजावत जी का विशेष आलेख “भारतीय संस्कृति के पोषक: श्रीराम”.)
☆ भारतीय संस्कृति के पोषक: श्रीराम ☆
प्रेम दया करुणा के सिन्धु प्रभु श्री राम वाल्मीकि रामायण के आधार,भारतीय संस्कृति के पोषक ,अत्यंत गम्भीर, उच्चतम विचार एवं संयमित आचरण वाले राम के चरित्र को जानना समझना सहज नहीं है,लेकिन उनका सहृदयी स्वभाव,जन जन के हृदय में है। विपत्तिकाल में भी संयम और साहस की सीख श्री राम का चरित्र स्वयं में एक प्रमाण है ऋषि-मुनियों का मान,मात-पिता, गुरुओं का सम्मान, भाइयों के प्रति समर्पण, पशु-पक्षियों की सुध, जन-जन का चिन्तन ही उन्हें राम बनाता है।
महर्षि वाल्मीकि की अनुपम निधि रामायण एवं अन्य धार्मिक ग्रंथ राम के आदर्शों को आज भी बनाए हुए हैं महर्षि वाल्मीकि ने लगभग 24000 श्लोकों में आदि रामायण लिखी है जिसमें उन्होंने श्रीराम के चरित्र को आदर्श पुरुष के रूप में अंकित किया है प्रथम ग्रन्थ रामायण दूसरा अध्यात्म रामायण और तीसरा रामचरितमानस है। रामकथा के जीवन मूल्य आज भी सर्वथा प्रासंगिक हैं राम एक आदर्श पुत्र आदर्श पति एवं आदर्श राजा के रूप में हमारे मानस पटल पर अंकित हैं,और रामकथा के अन्य सभी पात्र किसी न किसी आदर्श को प्रस्तुत करते हैं।
पुरार्जितानि पापानि नाशमायन्ति यस्य वै। रामायणे महाप्रीति तस्य वै भवति धुव्रम्।।
रामायणस्यापि नित्यं भवति यद्गृहे। तद्गृहे तीर्थ रूपं हि दुष्टानां पाप नाशनम्।।
जिस घर में प्रतिदिन रामायण की कथा होती है वह तीर्थ रूप हो जाता है। वहां दुष्टों के पाप का नाश होता है। कितनी अनूठी महिमा है राम नाम की। राम नाम को जपने वाला साधक राम की भक्ति और मोक्ष दोनों को प्राप्त कर लेता है, निर्गुण उपासकों के राम घट-घट वासी हैं।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े वन माहिं।
ऐसे घट-घट राम हैं, दुनियां देखे नाहिं।।
संत कबीर कहते हैं।
निर्गुण राम जपहु रे भाई,
अविगत की गत लखी न जाई।।
घट-घट वासी राम की व्यापकता को स्वीकारते हुए संत कवि तुलसीदास जी कहते हैं –
सियाराम मय सब जग जानी।
करहुं प्रणाम जोर जुग पानी।।
रामचरित मानस जन जन के जीवन की अमूल्य निधि है। जीवन जीने की अद्भुत सीख दी गई है गोस्वामी जी कहते है कि जीवन मरुस्थल हैऔर रामचरित मानस ही इस मृगमय जीवन के लिए चिन्मय प्रकाश ज्योति है।
जिन्ह एहिं बार न मानस धोऐ।ते कायर कलिकाल बिगोए।
तृषित निरखि रवि कर भव बारी।फिरहहि मृग जिमि जीव दुखारी।।
संस्कृत भाषा में एवं अन्य भाषाओं में अनेको ग्रन्थं राम कथा पर लिखे गए लेकिन राम का स्वरूप स्वभाव सब ग्रन्थों में समान ही है भगवान शंकर स्वयं राम नाम के उपासक हैं
रकारादीनि नामानि श्रृण्वतो मम पार्वति।
चेतःप्रसन्नतां याति रामनामाभिशंड़्कया।।
गोस्वामी तुलसीदास लिखते है कि घोर कलियुग मेंश्री राम नाम ही सनातनरूप से कल्याण का निवास है मनोरथों को पूर्ण करने वाले हैं आनंद के भण्डार श्री राम जिनका अनोखा रंग रूप सौन्दर्य जो भी देखता है ठगा सा रह जाता है। इतना ही नही उनका कल्याण करने का स्वभाव जन हित की भावना के सभी उपासक है…..”राम नाम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु”
प्रेम के उदधि से पूर्ण हृदय वाले राम काम क्रोध आदि विकारों पर विजय प्राप्त कर शान्त चित्त से, धर्य से, विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप आप को संयमित रखते हैं। स्नेह दया प्रेम से सबके हृदय में स्थित रहकर,अपने हृदय मे समाहित कर दया की धारा निरन्तर निर्झरित होकर वहती रहती है यह अद्भुत शक्ति आह्लादित आनन्दित कर असीम सुख की अनुभूति प्रदान करती है दया एक दैवीय गुण है। इसका आचरण करके मनुष्य देवत्व को प्राप्त कर लेता है, दयालु हृदय में परमात्मा का प्रकाश सदैव प्रस्फुटित होता है। दया का निधान दया का सागर ईश्वर स्वयं है।.समस्त धरातल के प्राणियों में दया उस परम शक्ति से ही प्राप्त होती है। लेकिन मनुष्य अज्ञानता के वशीभूत होकर दया को समाप्त कर राक्षस के समान आचरण करने लगता है।
महर्षि व्यास ने लिखा है ‘सर्वप्राणियों के प्रति दया का भाव रखना ही ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग बताया है।’
दया,कोमल स्पर्श का भाव है, कष्ट,पीड़ा से व्यथित व्यक्ति के मन को सुखकारी लेप सा सुकून देता है। दया,करुणा, रहम,संम्वेदना, सहानुभूति समानार्थी शब्दों का भाव एक ही है। यह मानवीय गुण हैं सभी में निहित है, लेकिन प्रभु श्री राम दया के, प्रेम के, अगाध भण्डार हैं ,तुलसी कृत रामचरित मानस के अरण्यकाण्ड में जब गृध्रराज जटायु को जीवन और मृत्यु के मध्य संघर्ष करते देखा उनका मन दया से भर गया उन्होंने बड़ी आत्मीयता से अपने हाथों से जटायु के सिर का स्पर्श किया राम का सुखद स्नेह पाकर जटायु ने पीड़ा से भरी अपनी आँखें खोल दी दया के सागर प्रभु श्री राम को देखकर उसकी सारी पीड़ा स्वतः दूर हो गई। जटायु ने अपने वचन और सीता मैंया की रक्षा में अपने प्राण त्याग दिये कृतज्ञता सम्मान और स्नेह की भावना से ओतप्रोत प्रभु श्री राम ने गृध्रराज जटायु को पितृतुल्य सम्मान देते हुए बिधि बिधान से दाह संस्कार करते हैं गोदावरी की पवित्र धारा में जलांजलि समर्पित करते हैं। श्री राम का अपने भक्तों सेवकों पर सदैव अनुपम स्नेह रहा। राम का स्नेह ,राम की कृपा अनन्त साधना, और वर्षों की तपस्या से भी सुलभ नहीं हो पाती है।लेकिन छल से रहित निर्मल मन वाले जन के हृदय में सदैव प्रभु बसते हैं एक स्मरण मात्र से दौड़े चले आते हैं
सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई।
प्रेम मगन मुख बचन न आवा। पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा॥
सादर जल लै चरन पखारे। पुनि सुंदर आसन बैठारे॥
कमल सदृश नेत्र और विशाल भुजाओं वाले, सिर पर जटाओं का मुकुट और हृदय पर वनमाला धारण किए हुए सुंदर, साँवले और गोरे दोनों भाइयों के चरणों में शबरीजी लिपट पड़ीं प्रेम में अत्यंत मग्न हो गईं, मुख से कोई भी वचन नहीं निकले।पैर पखारकर सुंदर आसनों पर बैठाया और मीठे मीठे स्वादिष्ट कन्द, मूल फल लाकर दिए। राम ने अत्यंत प्रेमभाव से बार-बार प्रशंसा करके उन फलों को बड़े आनंद और स्नेह से खाया। पौराणिक संकेतों में लिखा है कि शबरी शबर नामक म्लेच्छ जातिबिशेष के लोग दक्षिणापथवासिनः शाप के कारण मलेच्छ बन गए थे उनका समाज अलग स्थान था लेकिन राम दया और करुणा के अनन्त भण्डार हैं शबरी की सेवा समर्पण भक्तिभाव से राममय हो गई और राम ने शबरी को ऋषि मुनियों को प्राप्त होने वाला स्थान दिया। प्रभु की सेवा में समर्पित, नौका यापन में कर्मरत निर्मल मन वाला केवट राम की अनमोल भक्ति पाकर राममय हो गया।
राम पर गढ़ा साहित्य और राम दोनों ही भारतीय संस्कृति के पोषक हैं। राम का आचरण,कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता हैं मानवीय मूल्यों का संवर्धन करता हैं ।भारतीय संस्कृति में सत्य अहिंसा धैर्य क्षमा अनासक्ति इंद्रियनिग्रह सुचिता निष्कपटता त्याग उदारता दया करुणा आदि तत्वों समाहित है। इन सब का समाहार रामकथा में बड़ी सहजता से सर्वत्र दिखाई देता है राम कथा का गुणगान वाल्मीक रामायण में,तुलसीकृत रामचरितमानस में, संस्कृत के विभिन्न ग्रंथों में ,भवभूति के उत्तररामचरित में ,मैथिलीशरण गुप्त कृत साकेत में ,शशिधर पटेरिया के बुंदेली रामायण गीत काव्य में , विभिन्न भाषाओं के अनेकानेक ग्रंथों में राम के चरित्र का गुणगान पढ़ने को मिलता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के उच्च मानवीय आदर्शों का अनुकरण कर ही भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर है इसको सुरक्षित रखना ही हम सब का कर्तव्य हो।आने वाली पीढ़ी विलासिता की चकाचौंध में कहीं अपने राम के आदर्शों को न विसरा दे।आज मानव विकारों के आधीन हैं, काम क्रोध,लोभ मोह,मद,मात्सर्य का दास है समाज दिशाहीन है,दिग्भ्रमित है अपने अन्दर के रावण को पोषित कर बाहर रावण ढ़ूढ़ रहा है। राम ने अपने विकारों पर सदैव नियंत्रित कर स्वामित्व जमाया।
इस विकट परिस्थिती में राम के आदर्श ही पीढ़ी को संस्कारित करने में समर्थ होगें।
डॉ ज्योत्स्ना सिंह राजावत
सहायक प्राध्यापक, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर मध्य प्रदेश
सी 111 गोविन्दपुरी ग्वालियर, मध्यप्रदेश
९४२५३३९११६,