“शिरीष पै” यांच्या २ सप्टेंबर द्वितीय स्मृतिदिना निमित्त
सुश्री स्वपना अमृतकर
सुश्री स्वपना अमृतकर जी ने अपनी आदरांजली स्वरूप यह कविता 2 सितंबर को प्रकाशनार्थ प्रेषित किया था किन्तु, कुछ तकनीकी कारणवश हमें समय पर ईमेल प्राप्त न हो सकी जिसका हमें अत्यंत खेद है।
ई-अभिव्यक्ति की ओर से उन्हें सादर श्रद्धांजलि एवं नमन।
प्रख्यात मराठी कवी, लेखिका और नाटककार स्वर्गीय शिरीष व्यंकटेश पै जी आचार्य अत्रे जी की पुत्री थी। उनका देहांत 2 सितंबर 2017 को मुंबई में हुआ था।
सुश्री स्वपना अमृतकर जी की आदर्श स्व. शिरीष व्यंकटेश पै जी को हायकू विधा में आदरांजली समर्पित है। सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी के शब्दों में –
आज (2 सितंबर 2017) प्रख्यात हायकूकार आदरणीया कै. शिरीष पै जीं का स्मृतिदिन है। मेरी आदर्श हायकूकारा आज के दिन हायकू साहित्य को छोड के चली गयी। इसीलिए मैं मेरी रचना उनको तहे दिले से अर्पण कर रही हूँ।
पुढील हायकू स्वरचित काव्यरचना आदरांजली म्हणून, ज्येष्ठ हायकूकार – “शिरीष पै” यांच्या २ सप्टेंबर द्वितीय स्मृतिदिना निमित्त:
☆ “शिरीष पै” यांच्या २ सप्टेंबर द्वितीय स्मृतिदिना निमित्त ☆ आदरांजली ☆
काव्याचा वृक्ष
हायकू कवयित्री
ताई शिरीष .. १
हायकू काव्य
जपानी ते मराठी
शिखर गाठी .. २
लिखाणांतले
सौंर्द्य हायकूतले
त्यांनी शोधले .. ३
मराठीतही
हायकूचा प्रयोग
लेखन रोग .. ४
न्याय मिळाला
रचना अल्पाक्षरी
साहित्य भारी ..५
अर्ध्यांतूनच
वात हायकूतली
संथ विजली .. ६
शोकांतिकेत
कालवश ती झाली
देवा भेटली .. ७
© स्वप्ना अमृतकर , पुणे