मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ ☆ मानाचा मुजरा ! – मातोश्री बहिणाबाई चौधरी यांची १३९वी जयंती ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है.  आज उनकी प्रस्तुति है आदरणीया बहिणाबाई  के १३९वें जन्मदिवस पर विशेष प्रस्तुति.)

श्रीमती उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी  के ही शब्दों में – 

-बहिणाबाई. या निरक्षर-अशिक्षित माऊलीने दारी आलेल्या ज्योतिषाला सुमारे १०० वर्षांपूर्वी हे खणखणीत सत्य सोप्या पण परखड भाषेत सुनावलं.

डोके(बुध्दी नाही म्हणत)गहाण ठेवून भविष्यादि अंधश्रध्दांपुढे सपशेल शरणागती पत्करणारी आजची तथाकथित थोर  उच्चविद्याविभूषित मनुक्षे बघतांना या माऊलीची थोरवी लख्ख होऊन समोर येते.

ह्या माउलीने शंभर वर्षांपूर्वी व्यक्त केलेली खंत आजही कायम आहे.

दंडवत माय !

स्मृतींना विनम्र अभिवादन ! !

 – श्रीमती उर्मिला उद्धवराव इंगळे

☆ मानाचा मुजरा !☆

(खानदेशकन्या मातोश्री बहिणाबाई चौधरी यांची आज १३९ वी जयंती.)

नको नको रे ज्योतिषा

माह्या दारी नको येऊ,

माह्य दैव मले कळे

माह्या हात नको पाहू.

 

धनरेषांच्या च-यांनी

तळहात रे फाटला,

देवा तुह्याबी घरचा

झरा धनाचा

आटला.

 

नशिबाचे नऊ ग्रह

तळहाताच्या रेघोट्या,

बापा नको मारू थापा

अशा उगा ख-या खोट्या.

-बहिणाबाई

 

प्रस्तुति – 

©®उर्मिला इंगळे, सातारा

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – षष्ठम अध्याय (2)प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

षष्ठम अध्याय

( कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण )

 

यं सन्न्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।

न ह्यसन्न्यस्तसङ्‍कल्पो योगी भवति कश्चन ।।2।।

 

कहलाता सन्यास जो योग उसे ही मान

नहि संकल्प से त्याग बिन योगी की पहचान।।2।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! जिसको संन्यास (गीता अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका खुलासा अर्थ लिखा है।) ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग (गीता अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका खुलासा अर्थ लिखा है।) जान क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता।।2।।

 

Do thou, O Arjuna, know Yoga to be that which they call renunciation; no one verily becomes a Yogi who has not renounced thoughts! ।।2।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ छंद शास्त्र के प्रकांड विद्वान – कविवर गुरु सक्सेना जी के जन्मदिवस पर शब्दार्चन ☆ – पंडित मनीष तिवारी

पंडित मनीष तिवारी

 

(प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर के राष्ट्रीय  सुविख्यात साहित्यकार -कवि  श्री मनीष तिवारी जी  का  छंद शास्त्र के प्रकांड विद्वान कविवर गुरु सक्सेना जी के जन्म दिन 7 सितंबर पर यह विशेष आलेख.  ई-अभिव्यक्ति की ओर से कविवर गुरु सक्सेना जी  जी को उनके समर्पित साहित्यिक एवं स्वस्थ जीवन के लिए  हार्दिक शुभकामनाएं. )

 

☆ छंद शास्त्र के प्रकांड विद्वान  –कविवर गुरु सक्सेना जी के जन्म दिन 7 सितंबर पर शब्दार्चन  

 

धर्म, अध्यात्म, कवित्त, छंद के प्रकार और लेखन में इतना सहज प्रयोग कि पाठक से श्रोता तक एक ही बार मे पहुंच जाए कविता की बारीकियां, कविता का प्रवाह,  कविता का उद्देश्य जिनकी लेखनी में सहज समाहित है ऐसे गुरुवर गुरु सक्सेना जी का आज 7 सितंबर को जन्मदिन है। मुझ जैसे अनेक कवियों के मार्गदर्शक साहित्यिक छंद शास्त्र के शास्त्रोक्त विद्वान का सानिध्य जिनको मिला उनका  जीवन धन्य है। मेरा सौभाग्य कि गुरु जी की सहज कृपा मुझ पर है। मेरे लेखन पर सदैव उनकी बारीक दृष्टि रहती है कभी कभी तो ऐसे प्रश्न खड़े करते हैं जिसका उत्तर भी उन्हीं के पास होता है अनेकों बार तो सिर्फ फेसबुक पर मेरी पोस्ट पढ़कर फोन आ जाता है कि यह तुमने किस उद्देश्य से लिखा इसका हेतु समझाओ फिर सविस्तार चर्चा में समय का पता नहीं चलता और अंततः मुझमें गर्वोक्ति का संचार होता है कि मुझे कितने सहज सरल साहित्यिक गुरु जी मिले।

हिंदी कवि सम्मेलन के देश के लगभग सभी कवि सम्मेलन में गुरु जी बहुत प्रभावी भागीदारी हुई उन्होंने काव्यपाठ की मौलिक कहन को विकसित किया आरोह अवरोह उतार चढ़ाव की शैली के वे अनूठे जादूगर है वे वाचिक परम्परा के बेमिसाल कवि हैं। शब्दों से खेलने में उन्हें महारत हासिल है। उनके प्रस्तुतिकरण की अनुगूंज झंकृत करती है तात्कालिक विषय पर लेखन उन्हें सुख देता है अनेक बार वे सटीक समाधान की ओर ध्यानाकर्षित करते हैं। उनकी कृति आदर्श की फ़ज़ीहत, सूर्पनखा, सीता वनवास, पाकिस्तान को गुरु सक्सेना की चुनौती काव्य फलक पर साहित्यिक ऊष्मा बिखेर रही हैं।

हास्य व्यंग्य का प्रतिष्ठित काका हाथरसी पुरस्कार, व्यंग्य शिल्पी श्री श्रीबाल पांडेय सम्मान एवम बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा 50000/- रुपये का  विशिष्ट सम्मान प्रदान किया जा चुका है। इसी के साथ नित्य कवि सम्मेलनों के सम्मान की बहुत लंबी फेहरिस्त है जो गुरु जी की काव्य साधना का सच्चा सम्मान है। देश के लगभग सभी प्रान्तों में हिंदी की सच्ची सेवा का शुभ संकल्प आज भी उनमें ऊर्जा का संचार करता है। विषम परिस्थितियों में कवि सम्मेलन को पटरी पर लाकर श्रोताओं तक शुध्द शास्त्रोक्त छंद पहुंचाने में उनका कोई सानी नहीं है।

गुरु जी ने वह दौर देखा जब मंच पर सिर्फ कविता की ही पूजा होती थी आजकल के मंचों की मिलावट से वे दुखी है शुद्ध कविता से स्टैंड अप कॉमेडी तक पहुंचे मंचों का कैसा इतिहास लिखा जाएगा इसे लेकर वे सदैव चिंतित रहे और हैं उनके मन में मंचों के अवमूल्यन की पीड़ा है वे मुझसे और सुरेंद्र यादवेंद्र जी से हमेशा कहते हैं कि 21 सदी के दो दशकों ने पचास प्रतिशत कवि सम्मेलनों को नचैया गवैया और जोकरों के हवाले कर दिया है। कविता के भाव विभाव उद्दीपन आलम्बन से नए कवि कोसों दूर हैं ग्लैमर की चकाचौंध में कविता विलुप्त हो रही है।

आज हम सब बेहद प्रसन्न हैं मंच पर कविता के संस्कार को जीने वाले सच्चे रचनाकारों की गुरु कृपा से वृद्धि हो रही है। एक दिन यह कुंहासा छटेगा और कविता कीर्ति के कलश गढ़ते हुए मंच पर प्रतिष्ठित होगी गुरु सक्सेना काव्य गौरव सम्मान की स्थापना का उद्देश्य भी यही की सच्चे मौलिक रचनाकारों को गुरु जी का आशीष मिले वर्ष 2017 से यह सिलसिला आगे बढा प्रथम सम्मान देश के यशस्वी कवि भाई सुरेंद्र यादवेंद्र जी कोटा राजस्थान को प्रदान किया गया वर्ष 2018 का सम्मान संस्कारधानी के हिस्से में आया और इस सम्मान से मुझे मनीष तिवारी को सम्मानित किया गया। वर्ष 2019 के गुरु सक्सेना काव्य गौरव सम्मान से वीर रस के सिद्ध कवि श्रेष्ठ मंच संचालक शशिकान्त यादव देवास को 9 सितंबर को नरसिंहपुर के काव्य प्रेमियों की उपस्थिति में प्रदान किया गया।

मेरा मानना है कि यह भी वागेश्वरी की ही कृपा है जिनने मुझे उन तक पहुंचाया गुरु जी आप शतायु हों आपका सानिध्य वर्षो बरस मिलता रहा आप हमें कसते रहें और हम आपके समीप बैठकर लिखते रहें, पढ़ते रहें, बढ़ते रहें, अट्टहास कर हँसते रहें, प्रगति की सीढ़ियां चढ़ते रहें और इस जीवन को सार्थक करते रहें जन्मदिवस पर अनन्त मंगल कामनाएं। बारम्बार नमन।

 

©  पंडित मनीष तिवारी, जबलपुर ,मध्य प्रदेश 

प्रान्तीय महामंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम – मध्य प्रदेश

मो न ९४२४६०८०४० / 9826188236

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 15 – माझ्यानंतर ……. ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी ह्रदय स्पर्शी कविता माझ्यानंतर …….अर्थात मेरे बाद…. .  

मैंने सुश्री प्रभा जी की  पिछली कविता के सन्दर्भ में लिखा था कि वे जानती हैं  – समय गहरे  से गहरे घाव भी भर देता है. हम कल रहें या न रहें यह दुनिया वैसे ही चलती रहेगी और चलती रहती है.   इस कविता में उन्होंने अपने भविष्य की परिकल्पना की है.  उस परिकल्पना को न तो मैं नकारात्मक सोच में परिभाषित कर पा रहा हूँ और न  ही सकारात्मक.   क्योंकि, कल हमारा न होना तो शाश्वत सत्य है.  शायद, सुश्री प्रभा जी नहीं जानती कि उनके प्रकाशक और पाठक उनकी रचनाएँ  उनके मोबाईल / डायरी और जहाँ कही भी रखी हों , उन्हें जरूर ढूंढ लेंगे . आपकी ग़ज़लों को गायिका  आपकी गजलों को स्वर देकर अमर कर देंगी. आपके  परिवार की वो महत्वपूर्ण तथाकथित सदस्या “घुंघराले बालों वाली पोती/नातिन” उन्हें पुनः नवजीवन देने का सामर्थ्य रखेंगी. 

आपका एक एक पल अमूल्य है . आप नहीं जानती जो रचना संसार  रच रही हैं , वह साहित्य नहीं  इतिहास रचा जा रहा  है.  २०१७ की कविता अपने आप में इतिहास है. यात्रा जारी रहनी चाहिए….. . आपकी संवेदनशील कवितायें पाठकों में संवेदनाएं जीवित रखती हैं. 

सुश्री प्रभा जी का साहित्य जैसे -जैसे पढ़ने का अवसर मिल रहा है वैसे-वैसे मैं निःशब्द होता जा रहा हूँ। हृदय के उद्गार इतना सहज लिखने के लिए निश्चित ही सुश्री प्रभा जी के साहित्य की गूढ़ता को समझना आवश्यक है। यह  गूढ़ता एक सहज पहेली सी प्रतीत होती है। आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 15 ☆

 

☆ माझ्यानंतर ……☆

 

कोणीच वाचणार नाहीत माझी कवितेची पुस्तके ……

डायरीतली कविता राहील पडून….

एमिली डिकिन्सन च्या

कवितांसारखी कुणी आणणार नाही प्रकाशात !

 

मोबाईल मधेही असतीलच काही कविता  …..

त्यांचा कोणी शोध घेणार नाही ….

 

गायकाने दर्दभ-या

आवाजात गायलेली

माझी गजल ऐकणारही

नाही कोणी …..

 

जिवंतपणी मला नाकारणारे ,

का कवटाळतील मला

मृत्यूनंतर ????

 

कुणी घालू नये हार

माझ्या फोटोला ,

पिंडाला कावळा

शिवतो की नाही

हे ही पाहू नये,

याची तजवीज मी आधीच करून ठेवलेली असेल—

देहदानाने !

 

माझी स्मृतिचिन्हे फोटोंचे अल्बम

धूळ खात पडून राहतील काही दिवस

नंतर नामशेष होतील !

 

संपून जाईल माझे

खसखशी एवढे अस्तित्व  —

 

पण माझ्या नातवाला

होईल कदाचित

एक कुरळ्या केसाची मुलगी —-

 

आणि ती मी च असेन !!

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – सृजन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – सृजन ☆

(माँ शारदा की अनुकम्पा से जन्मी एक लघुकथा)

जल शांत था। उसके बहाव में आनंदित ठहराव था। स्वच्छ, निरभ्र जल और दृश्यमान तल। यह निरभ्रता उसकी पूँजी थी, यह पारदर्शिता उसकी उपलब्धि थी।

एकाएक कुछ कंकड़ पानी में आ गिरे। अपेक्षाकृत बड़े आकार के कुछ पत्थरों ने भी उनका साथ दिया। हलचल मची। असीम पीड़ा हुई। लहरें उठीं। लहरों से मंथन हुआ। मंथन से सृजन हुआ।

कहते हैं, उसकी रचनाओं में लहरों पर खेलता प्रवाह है। पाठक उसकी रचनाओं के प्रशंसक हैं और वह कंकड़-पत्थर फेंकनेवाले हाथों के प्रति नतमस्तक है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य # 13 – बाल कविता-वरदायी चक्की और मेरी चाह ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  बाल कविता  “वरदायी चक्की और मेरी चाह।  आदरणीय डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय ‘ जी ने बड़ी ही सादगी से बाल अभिलाषा को वरदायी चक्की के माध्यम से सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया है । )

(अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की फेसबुक से साभार)

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 13 ☆

 

☆ बाल कविता – वरदायी चक्की और मेरी चाह ☆  

 

सोच रहा हूं अगर मुझे

मनचाही चीजे देने वाली

वह चक्की मिल जाती

तो जीवन में मेरे भी

ढेरों खुशियां आ जाती.

 

सबसे पहली मांग

मेरी होती कि

वह मम्मी के सारे काम करे

और हमारी मम्मी जी

पूरे दिनभर आराम करे…

 

मांग दूसरी

पापा जी की सारी

चिंताओं को पल में दूर करे

और हमारे मां-पापाजी

प्यार हमें भरपूर करे…

 

मांग तीसरी

भारी भरकम बस्ता

स्कूल का ये हल्का हो जाए

जो भी पढ़ें, याद हो जाए

और प्रथम श्रेणी पाएं…

 

चारों ओर रहे हरियाली

फल फूलों से लदे पेड़

फसलें लहराए

चौथी मांग

सभी मिल पर्यावरण बचाएं…

 

मांग पांचवी

देश से भ्रष्टाचार

और आतंकवाद का नाश हो

आगे बढ़ें निडरता से

सबके मन में उल्लास हो…

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ काव्य कुञ्ज – # 4 – तेरी बद्दुआएँ ☆ – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अब आप प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज पढ़ सकेंगे । आज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता “तेरी बद्दुआएँ”

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 4☆

 

☆ तेरी बद्दुआएँ 

 

(विधा:कविता)

कवि: मच्छिंद्र भिसे,

 

अरे सुन प्यारे पगले,

देख तेरी बद्दुआएँ काम कर गईं,

पटकना था जमीं पर हमें,

यूँ आसमाँ पर बिठा गईं।

 

तेरी रंग बदलती सूरत ने,

परेशान बारंबार किया,

यही रंगीन सूरत मुझे,

हर बार सावधान कर गई।

 

आप एहसास चाहा जब भी,

नफरत ही नफरत मिली,

न जाने कैसे तेरी यह नफरत,

खुद को सँजोये प्रीत बन गई।

 

छल-कपट की सौ बातें,

इर्द-गिर्द घूमती रहीं,

तेरा बदनसीब ही समझूँ,

जो उभरने का गीत बन गई।

 

तेरी हर एक बद्दुआ,

मेरी ताकत बनती गई,

देनी चाही पीड़ा हमें,

वह तो दर्द की दवा बन गई।

 

सुन, अभिशाप से काम न चला,

आशीर्वचन का चल एक दीप जला,

आएगा जीवन में एक नया विहान,

दीप की ज्योति बार-बार कह गई।

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ महापूर ☆ – डॉ. रवींद्र वेदपाठक

डॉ. रवींद्र वेदपाठक

(प्रस्तुत है डॉ रवीन्द्र वेदपाठक जी की एक  सामयिक मराठी कविता  “महापूर”।) 

☆  महापूर ☆

 

संथ संत कृष्णामाई

झाली भलती अधीर

आली पाहुणा घेवून

नाव त्याचे महापूर……..!! १ !!

 

व्याकुळला ओला जीव

जणू गायीचा हंबर

सांज बुडता बुडता

कासावीस ते अंबर……..!! २ !!

 

दंश भिनला देहात

रानी पेटले काहूर

वाहणाऱ्या वेदनेची

हुळहुळे हूरहूर………!! ३ !!

 

मनस्विनी कृष्णामाई

छेडी दुःखाची लहर

संधिकाळी आक्रोशतो

ऊरी जीवांचा कहर……..!! ४ !!

 

मानवाच्या काळजात

जागविले देवघर

मनोमनी पालविले

चैतन्याचे औदुंबर………!! ५ !!

 

© डॉ. रवींद्र वेदपाठक

तळेगाव.

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – षष्ठम अध्याय (1)प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

षष्ठम अध्याय

( कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण )

 

श्रीभगवानुवाच

अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।

स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ।।1।।

श्री भगवान ने कहा-

जे करता कर्तव्य निज,बिना कर्मफल ध्यान

सन्यासी योगी वही,वह ही सही महान।

जो नहि करता कर्म या कोई यज्ञ-विधान

उसे न संयासी कहें,उसे न योगी जान।।1।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है।।1।।

 

He who performs his bounden duty without depending on the fruits of his actions—he is a Sanyasi and a Yogi, not he who is without fire and without action. ।।1।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 7 ☆ हिस्सा ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा ☆

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “हिस्सा”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 7  

☆ हिस्सा  

 

तुमने

कर दिया है बंद मुझे

किसी सूने से लफ्ज़ की तरह

जो छुपा हुआ है

किसी ठहरी सी नज़्म में,

किसी किताब के मौन सफ्हे पर!

 

खामोश सी मैं

एक टक देख रही हूँ

तुम्हारी आँखों के चढ़ते-उड़ते रंगों को

और निहार रही हूँ

तुम्हारे होठों की रंगत को,

तुम्हारे माथे की चौड़ाई को

और तुम्हारे जुल्फों के घनेरेपन को!

 

सुनो,

मैं तुम्हारी मुहब्बत का

एक छोटा सा हिस्सा हूँ,

तुम ही हो मुझे बनाने वाले

और मेरी पहचान भी तभी तक है

जब तक तुम मुझे चाहो;

वरना मिटाने में तो

बस एक लम्हा लगता है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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