मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-13 – कविता – सांजवात ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज  प्रस्तुत है संध्या -वंदना पर आधारित कविता  “सांजवात । )

 

? साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 13? 

 

? सांजवात  ?

 

देवाजींच्या मंदिरात

तेवणारी सांजवात।

घोर अंधारल्या मना

देई उजाळा क्षणात।

 

प्रकाशली सांजवात

घरदार प्रकाशित ।

सायं प्रार्थना शमवी

विचारांचे झंजावात।

 

सांजवात लावूनिया

आळवावे योगेश्वरा।

विनाशावी शत्रू बुद्धी

सुख शांती येवो घरा।

 

मंद प्रकाश निर्मळ

धूप देई परिमळ।

सांजवात प्रकाशता

दूर पळे अमंगळ।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – डर ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ डर ☆

 

पिता की खाँसी की आवाज़ सुनकर उसने रेडियो की आवाज़ बेहद धीमी कर दी। उन दिनों संयुक्त परिवार थे, पुरुष खाँस कर ही भीतर आते ताकि महिलाओं को सूचना मिल जाए।…”संतोष की माँ, ये तुम्हारे लल्ला को बताय देना कि वो आज के बाद उस रघुवंस के आवारा छोकरे के साथ दीख गया तो टाँग तोड़कर घर बिठाय देंगे, कौनो पढ़ाई-वढ़ाई नाय, सब बंद कर देंगे”…. वह मन मसोस कर रह गया। रात को बिस्तर पर पड़े-पड़े सोचता रहा कि 17 बरस का तो हो लिया, अब और कितना बड़ा होना पड़ेगा कि पिता से डरना न पड़े।.. ‘शायद बेटे का जन्म बाप से डरने के लिए ही होता है’, वह मन ही मन बड़बड़ाया और औंधा होकर सो गया।

आज उसका अपना बेटा 15 बरस का हो चुका। बेहद जिद्‌दी! कल-से उसने घर में कोहराम मचा रखा था। उसे अपने जन्मदिन पर मोटरसाइकिल चाहिए थी और अभी तो उसकी आयु लाइसेंस लेने की भी नहीं है। ऊपर से शहर का ये विकराल ट्रैफिक! उसने सोच लिया था कि अबकी बार बेटे की ये ज़िद्‌द पूरी नहीं करेगा।..”मॉम, साफ-साफ बता देना डैड को, नेक्स्ट वीक मेरे बर्थडे से एक दिन पहले तक बाइक नहीं आई न, तो मैं घर छोड़कर चला जाऊँगा.. और फिर कभी वापस नहीं आऊँगा।”…उसने बेटे की माँ के हाथ में बाइक के लिए चेक दे दिया। रात को बिस्तर पर पड़े-पड़े सोचता रहा,..’शायद बाप का जन्म बेटे से डरने के लिए ही होता है’..और सीधा होकर पीठ के बल सो गया।

(प्रकाशनाधीन संग्रह से)

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 11 – बेचारा प्यारा बिझूका ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की   ग्यारहवीं कड़ी में उनकी कविता  “बेचारा प्यारा बिझूका” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 11 ☆

 

☆ बेचारा प्यारा बिझूका ☆ 

 

बेचारा प्यारा बिझूका

मुफ्त में ड्यूटी करता

करता कारनामे गजब

फटे शर्ट में मुस्कराता

चिलचिली धूप में नाचता

पूस की रातों में कुकरता

कुत्ते जैसा कूं कूं करता

खेत मे फुल मस्त दिखता

मुफ्त का चौकीदार बनता

हरदम अविश्वास करता

न खुद खाता न खाने देता

क्यों मोती की माला गिनता

 

……………….

 

बेचारा हमारा बिझूका

हितैषी कहता किसान का

देशहित में हरदम बात करता।

वोट मांगता और झटके देता

पशु पक्षियों को झूठ में डराता

और हर दम हाथ भी मटकाता

 

…………………..

 

बेचारा उनका बिझूका

सिनेमा में बंदूक चलाता

व्यंग्य में चौकीदारी करता

कविता में बेवजह घुस जाता

और

भूत की अपवाह फैलाता

योगी और किसान को डराता

रात को मोती माला जपता

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #14 – देश बनाने की जिम्मेदारी युवाओं पर ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

 

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “देश बनाने की जिम्मेदारी युवाओं पर”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 14 ☆

 

☆ देश बनाने की जिम्मेदारी युवाओं पर ☆

 

देश, जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक है यह सवाल कि देश कौन बनाता है ? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक, महिलाएं, युवा… आखिर कौन ? शायद हम सब मिलकर देश बनाते हैं. लेकिन फ़िर भी प्रश्न है कि इनमें से सर्वाधिक भागीदारी किसकी ? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि यथा राजा तथा प्रजा. नेतृत्व अनुकरणीय उदाहरण रखे, व आम नागरिक उसका पालन करें तभी देश बनता है. देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है. भारत के लिये खुशी की बात यह है कि हमारी जनसंख्या का पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सा पच्चीस से चालीस वर्ष आयु वर्ग का है.. जिसे हम “युवा” कहते हैं, जो वर्ग सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है, यह तो उम्र का तकाजा है । वहीं दूसरी तरफ़ लगातार हिंसक, अशिष्ट, उच्छृंखल होते जा रहे… चौराहों पर खडे़ होकर फ़ब्तियाँ कसते..यौन अपराधो में लिप्त तथाकथित युवाओं को देखकर मन वितृष्णा से भर उठता है । इस महत्वपूर्ण समूह की आज भारत में जो हालत है वह कतई उत्साहजनक नहीं कही जा सकती.पर सभी बुराईयों को युवाओं पर थोप देना उचित नहीं है ।

प्रश्न है, आजकल के युवा ऐसे क्यों हैं ? क्यों यह युवा पीढी़ इतनी बेफ़िक्र और मनमानी करने वाली है । जब हम वर्तमान और भविष्य की बातें करते हैं तो हमें इतिहास की ओर भी देखना होगा । भूतकाल जैसा होगा, वर्तमान उसकी छाया होगा ही  और भविष्य की बुनियाद बनेगा ।  आज के युवा को पिछले समय ने ‘विरासत’ में क्या दिया है, कैसा समाज और संस्कार दिये हैं ? आजादी के बाद से हमने क्या देखा है… तरीके से संगठित होता भ्रष्टाचार, अंधाधुंध साम्प्रदायिकता, चलने-फ़िरने में अक्षम लेकिन देश चलाने का दावा करने वाले नेता, घोर जातिवादी नेता और वातावरण, राजनीति का अपराधीकरण या कहें कि अपराधियों का राजनीतिकरण, नसबन्दी के नाम पर समझाने-बुझाने का नाटक और लड़के की चाहत में चार-पाँच-छः बच्चों की फ़ौज… अर्थात जो भी बुरा हो सकता था, वह सब विगत में देश में किया जा चुका है  । इसका अर्थ यह भी नहीं कि उस समय में सब बुरा ही बुरा हुआ, लेकिन जब हम पीछे मुडकर देखते हैं तो पाते हैं कि कमियाँ, अच्छाईयों पर सरासर हावी हैं । अब ऐसा समाज विरासत में युवाओं को मिला है, तो उसके आदर्श भी वैसे ही होंगे ।  राजीव गाँधी कुछ समय के लिये, इस देश के प्रधानमन्त्री नहीं बने होते, तो शायद हम आज के तकनीकी प्रतिस्पर्धा के युग में नहीं जी रहे होते । देश के उस एकमात्र युवा प्रधानमन्त्री ने देश की सोच में जिस प्रकार का जोश और उत्साह पैदा किया, उसी का नतीजा है कि आज हम कम्प्यूटर और सूचना तन्त्र के युग में जी रहे हैं “दिल्ली से चलने वाला एक रुपया नीचे आते-आते पन्द्रह पैसे रह जाता है” यह वाक्य उसी पिछ्ली पीढी को उलाहना था, जिसकी जिम्मेदारी आजादी के बाद देश को बनाने की थी, और दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि, उसमें वह असफ़ल रही । परिवार नियोजन और जनसंख्या को अनियंत्रित करने वाली पीढी़ बेरोजगारों को देखकर चिन्तित हो रही है, पर अब देर हो चुकी है। भ्रष्टाचार को एक “सिस्टम” बना देने वाली पीढी युवाओं को ईमानदार रहने की नसीहत देती है । देश ऐसे नहीं बनता… अब तो क्रांतिकारी कदम उठाने का समय आ गया है… रोग इतना बढ चुका है कि कोई बडी “सर्जरी” किये बिना ठीक होने वाला नहीं है । विदेश जाते सॉफ़्टवेयर या आईआईटी इंजीनियरों तथा आईआईएम के मैनेजरों को देखकर आत्ममुग्ध मत होईये… उनमें से अधिकतर तभी वापस आयेंगे जब  यहाँ वातावरण बेहतर होगा.  कस्बे में, गाँव में रहने वाले युवा जो असली देश बनाते है,  हम उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे रहे हैं, आश्वासन दे रहे हैं, राजनैतिक रैलियाँ दे रहे हैं,  पान-गुटखे दे रहे हैं, मर्डर-हवस सैक्स, सांस्कृतिक अधोपतन को बढ़ावा देने वाली फिल्में दे रहे हैं, “कैसे भी पैसा बनाओ” की सीख दे रहे हैं, कानून से ऊपर कैसे उठा जाता है, बता रहे हैं….आज के ताजे-ताजे बने युवा को भी “म” से मोटरसायकल,और  “म” से मोबाईल  चाहिये, सिर्फ़ “म” से मेहनत के नाम पर वह जी चुराता है.स्थितियां बदलनी होंगी.  युवा पीढ़ी को देश बनाने की चुनौती स्वीकारनी ही होगी.उन्हें अपना सपना स्वयं देखना होगा,और एक सुखद भविष्य के निर्माण करने हेतु जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा. संवैधानिक व्यवस्था में रहकर बिना आंदोलन हड़ताल या प्रदर्शन किये, पाश्चात्य अंधानुकरण के बिना युवा चेतना का उपयोग राष्ट्र कल्याण में उपयोग आज देश में जरूरी है.  इन दिनों वातावरण तो राष्ट्र प्रेम का बना है, सरकार ने डिजिटल लिटरेसी बढाने हेतु कदम उठाये है, विश्व में भारत की साख बढ़ती दिख रही है, अब युवा इस मौके को मूर्त रूप दे सकते हैं।

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (20) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

 (ज्ञानयोग का विषय)

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम्‌।

स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः ।।20।।

प्रिय पाने का हर्ष न अप्रिय का उद्वेग

ब्रम्ह ज्ञान से ब्रम्ह में उनका जीवन वेग।।20।।

भावार्थ :  जो पुरुष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्विग्न न हो, वह स्थिरबुद्धि, संशयरहित, ब्रह्मवेत्ता पुरुष सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थित है।।20।।

 

Resting in Brahman, with steady intellect, undeluded, the knower of Brahman निथर rejoiceth on obtaining what is pleasant nor grieveth on obtaining what is unpleasant. ।।20।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 39 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 39

श्री गणेशाय नमः 

सम्माननीय लेखक एवं पाठक गण सादर अभिवादन.

परसाई-स्मृति अंक के पश्चात आपसे पुनः संवाद करने का अवसर प्राप्त हो रहा है.  24 अगस्त 2019 के पश्चात आप से ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से  संपर्क  एवं रचनाएँ प्रकाशित न कर पाने का अत्यंत दुःख है.

संभवतः ई-अभिव्यक्ति या ऐसी ही किसी भी लोकप्रिय होती हुई वेबसाईट की बढ़ती हुई लोकप्रियता एवं  बढ़ती हुई विजिटर्स की संख्या के कारण वायरस/हैकिंग जैसी तकनीकी  समस्याओं और उतार चढ़ाव से गुजरना होता है.

हमारे लिए हमारे व्यक्तिगत डाटा के साथ ही हमारे सम्माननीय लेखकों एवं पाठकों का डाटा भी उतना ही महत्वपूर्ण है.  इस महत्वपूर्ण तथ्य को ध्यान में रख कर हमने कुछ दिनों का विराम लेकर ई-अभिव्यक्ति को सुरक्षा की दृष्टि से और सुदृढ़ करने का प्रयास किया है. 

अब आपकी वेबसाइट https://www.e-abhivyakti.com के स्थान पर सुरक्षित वेबसाइट (Secured Website)  https://www.e-abhivyakti.com हो गई है. किन्तु, आपको अपनी ओर से तकनीकी तौर पर कुछ भी नहीं करना है और जैसा पहले ऑपरेट या प्रचालित करते थे वैसे ही करना है और आप अपनी सुरक्षित वेबसाइट पर पहुँच जायेंगे. आपको  e-abhivyakti.com के पहले एक ताले (सुरक्षा) का चिन्ह दिखाई देगा. बड़े बूढ़े कह गए हैं कि ताले शरीफों के लिए होते हैं, फिर भी लगाना तो पड़ता ही है सो लगा दिया.

आप से अनुरोध है कि कृपया [email protected]  (यह  अकाउंट डिलीट कर दिया गया है) के स्थान पर [email protected] का प्रयोग करें.   

 इस पूरी प्रक्रिया के समय आपने जिस संयम का परिचय दिया है उसका मैं ह्रदय से आभारी हूँ. अब आप से पुनः पूर्ववत सम्बन्ध बना रहेगा ऐसी गणपति बप्पा से अपेक्षा है.

हम कल श्री गणेश चतुर्थी पर्व (2 सितम्बर 2019) से पुनः आपकी सेवा में उपस्थित होने का प्रयास करेंगे.

फिर देर किस बात की. कलम उठाइये और भेज दीजिये  श्री गणेश जी से सम्बंधित रचनाएँ इस पूरे सप्ताह. सप्ताह के अंत में हम विशेषांक के समस्त लिंक एक पोस्ट पर प्रकाशित करेंगे जिसमें आप समस्त रचनाएँ एक साथ पढ़ सकेंगे.

अन्य साप्ताहिक स्तंभ यथावत चलते रहेंगे.

हमें आपकी हिंदी, मराठी एवं अंग्रेजी की चुनिंदा एवं मौलिक रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी.

 

हेमन्त बवानकर 

1  सितम्बर 2019

 

(अपने सम्माननीय पाठकों से अनुरोध है कि- प्रत्येक रचनाओं के अंत में लाइक और कमेन्ट बॉक्स का उपयोग अवश्य करें और हाँ,  ये रचनाओं के शॉर्ट लिंक्स अपने मित्रों के साथ शेयर करना मत भूलिएगा। आप Likeके नीचे Share लिंक से सीधे फेसबुक  पर भी रचना share कर सकते हैं। )

 

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 3 ☆ ग्रामीण युवकांना रोजगार सुवर्ण संधी ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है।  इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनका आलेख ग्रामीण युवकांना रोजगार सुवर्ण संधी

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 3 ☆

 

☆ ग्रामीण युवकांना रोजगार सुवर्ण संधी ☆

 

“चरखा,चपला आणि चेंजमेकर ” या लेखात श्री.संदीप वासलेकर यांनी म्हटलंय.

“आईसलंडसारख्या  फक्त तीन लाख लोकवस्तीच्या छोट्या देशातले ग्रामीण उद्योजक जगभर  कोळंबीच्या कवचाचं मलम लोकप्रिय करु शकतात.जगातले अनेक देश तिथल्या पारंपरिक पदार्थांना व वस्तूंना बाजारपेठेत स्थान मिळवून देण्याचा प्रयत्न करतात तर आपण कां नाही ? मला हे त्यांचं म्हणणं अतिशय मोलाचं वाटलं

श्री.वासलेकर यांच्या एका बेल्जियमच्या मित्राच्या मुलानं उच्चविद्यविभूषित असूनही एकदा काही मित्रांच्या सांगण्यावरून इंटरनेटद्वारा चपला विकण्याचा व्यवसाय सुरू केला व त्याला काहीही अनुभव नव्हता, फक्त काहीतरी नवीन,वेगळं करायचं म्हणून त्यानं तीन वर्षांत चपला विकून एवढी संपत्ती मिळवली की ती त्याच्या वडिलांनी ३०वर्ष आंतरराष्ट्रीय संघटनांमधे काम करुन जी बचत केली होती तिच्या दुप्पट होती.

लेखक पुढं म्हणतात महाराष्ट्रातही जर काही आभिनव पद्धतीने विचार करणारे व धडाडी असणारे तरुण पुढं आले तर कोल्हापुरी चप्पल ही जागतिक बाजारपेठेत मानाचं स्थान मिळवू शकेल.

महाराष्ट्र शासनाने ,राज्य खादी ग्रामोद्योग मंडळाचा सभापती म्हणून विशाल चोरडिया या युवकाची नियुक्ती केली.त्याला औद्योगिक पार्श्र्वभूमी होती व ग्रामीण भागात नाविन्यपूर्ण उद्योग सुरू करण्याची त्याची प्रबळ इच्छा होती.

त्याने नुकत्याच काही जागतिक नेत्यांना भेटून महाराष्ट्रातल्या ग्रामोद्योगावर माहिती देण्याची इच्छा व्यक्त केली.त्याला  फक्त पाचच मिनिटं वेळ देण्यात आला या पाचच मिनिटं मिळालेल्या वेळात विशालने पाहुण्यांना मसाले म्हणजे भारतीय मसाल्यांचे अनेक नमुने दिले व हे सर्व लोक भारतीय मसाल्यांचे व इतर पदार्थांचे  इतके फॅन बनले आहेत.असे लेखकाला महिन्याभरात जगभरातून निरोप यायला लागले.व राजकीय वर्तुळात भारतीय मसाल्याबाबत अनेक ठिकाणी चर्चा झाली.विशालनं हे फक्त पाच मिनिटांत सिद्ध केलं होतं.आता त्यानं कोल्हापूरी चप्पल ,मध,खादी, बांबू यांना देशभर व आंतरराष्ट्रीय बाजारपेठेत स्थान मिळवून देण्यासाठी  जोरदार प्रयत्न सुरू केले आहेत.

लेखकाचे म्हणणे आहे की, रोजगार निर्माण करणारे प्रत्येक जिल्ह्यात  किमान १० ते १५ म्हणजे संपूर्ण महाराष्ट्राच्या ग्रामीण भागात नाविन्यपूर्ण रोजगार निर्माण करणाऱ्या ५००चेंजमेकर्स युवकाची गरज आहे.असे युवक तयार होणं गरजेचं आहे.नुसतं आम्ही बेकार आहोत, बेरोजगार आहोत अशी टिमकी बडवत बसण्यापेक्षा अशा कृतीशील गोष्टीत रस घेऊन ते केले पाहिजेत.’केल्याने होतं आहे रे !आधि केलेचि पाहिजे !! इतर घटक म्हणजे मित्रमंडळे, गणेशोत्सव मंडळांच्या सभासद यांचा सहभाग होणे गरजेचे आहे.उत्सवाचेवेळी फक्त ढोल बडवून आयुष्यभर पोट भरत नाही   त्याबरोबरच हेही करणे आवश्यक आहे हे युवकांनी लक्षात घ्यावे.

विशालने आता खादी व ग्रामोद्योग महामंडळाच्या प्रयत्नातून महाराष्ट्रातील कृषी व ग्रामीण विभागात चेंजमेकर तयार करण्याचा उपक्रम आखला पाहिजे. युवकांना डोंगरात भरपूर आवळ्याची झाडे असतात विशेषतः सह्याद्रीच्या कुशीत तेथून आवळ्याची उपलब्धता होऊ शकेल त्यापासून अनेक औषधी व खाद्यपदार्थ बनविता येतील.आवळ्याची शेती करुन भरपुर उत्पादन मिळू शकते.नाचणीपासूनही अनेक सुरेख खाद्यपदार्थ बनतात.ह्यासारखे उत्पादन करणाऱ्या  युवकांना  शासनाने मदत केली पाहिजे.शिवाय सकाळ समूह चे ‘ यिन ‘ हे नेटवर्क ,व सामाजिक संस्था , औद्योगिक संघटना व समाजाच्या इतर घटकांनीही योगदान दिले तर हे परिवर्तन होणं शक्य आहे.

त्यासाठी आपल्याला अनेक मार्गांनी प्रयत्न करण्याची गरज आहे.विविध विषयात मूलभूत संशोधन, ग्रामोद्योग व शेतीमालाची निर्यात या तीन क्षेत्रात प्रचंड वाव आहे.

जर आईसलंडसारख्या तीन लाख लोकवस्तीच्या छोट्याशा देशातील ग्रामीण उद्योजक जगभर कोळंबीच्या कवचाचं मलम लोकप्रिय करु शकतात तर आपल्या युवकांना , कोल्हापूरी चप्पल,सौरचरख्यानं केलेली उच्च दर्जाची खादी, आंबा, केळी,आवळा  नाचणी या पदार्थांच्या  प्रक्रियेतून. केलेले पदार्थ बाजारपेठेत नेणं आणि त्यांचं तिथं बस्तान बसवणं सहज शक्य होईल,पण युवकांनी हे मनावर घेतलं तर ग्रामीण महाराष्ट्रात आपण नक्कीच समृद्धी आणू शकतो.

सर्वांना हा सप्तरंग मधील लेख वाचणे शक्य झाले नसेल तर त्यांना ही माहिती नक्कीच उपयुक्त ठरेल.ज्यांना शक्य आहे त्यांनी मूळ लेख जरुर वाचावा.

ही माहिती उपयुक्त आहेच ती आपापल्या ग्रुपवर टाकून शक्य तितकी प्रसिद्धी द्यावी व ग्रामीण युवकांना रोजगार मिळून ते देशाचे ‘धनवान ‘ नागरिक व्हावेत ही उर्मी मनाशी बाळगून या उर्मिलेने या लेखाद्वारे ही  शुभेच्छा धरुन अल्पसा प्रयत्न केला आहे.

श्री समर्थ म्हणतात नां ‘ यत्न तो देव ‘ !

युवकांनो हे वाचा आणि नक्की प्रयत्न करा यश तुमचेच आहे.करणाऱ्यांना खूप सुंदर शुभेच्छा!!

 

©®उर्मिला इंगळे, सातारा 

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हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – मनुष्य जाति में ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

??? मनुष्य जाति में ???

 

होता है एकल प्रसव,
कभी-कभार जुड़वाँ
और दुर्लभ से दुर्लभतम
तीन या चार,
डरता हूँ
ये निरंतर
प्रसूत होती लेखनी
और जन्मती रचनाएँ
कोई अनहोनी न करा दें,
मुझे जाति बहिष्कृत न करा दें।

 

हर दिन निर्भीक जियें।

 

(प्रकाशनाधीन कविता संग्रह से )

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 6 – तत्वनाश ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “तत्वनाश।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 6 ☆

 

☆ तत्वनाश 

 

रावण अपने दरबार में अपने मंत्रियों के साथ अपने सिंहासन पर  बैठा हैं, और उसके सामने तीन अप्सरायें नृत्य कर रही हैं, जिन्हें इंद्र द्वारा मेघानाथ को शुल्क के रूप में दिया गया था, जब मेघनाथ ने भगवान ब्रह्मा के अनुरोध पर इंद्र को अपने बंधन से मुक्त कर दिया था । गंधर्व संगीत बजा रहे हैं ।

गंधर्व गंध का अर्थ है खुशबू और धर्व का अर्थ है धारण करना इसलिए गंधर्व पृथ्वी की गंध के धारक हैं, खासकर वृक्ष   और पौधों की । असल में हम कह सकते हैं कि गंधर्व किसी भी वृक्ष   या पौधे का सार या आत्मा हैं । ये अप्सराओं के पति हैं । यह निम्न वर्ग के देवता हैं । यही सोम के रक्षक भी हैं, तथा देवताओं की सभा में गायक हैं । हिन्दू धर्मशास्त्र में यह देवताओं तथा मनुष्यों के बीच दूत (संदेश वाहक) होते हैं । भारतीय परंपरा में आपसी तथा पारिवारिक सहमति के बिना गंधर्व विवाह अनुबंधित होता है । इनके शरीर का कुछ भाग पक्षी, पशु या जानवर हो सकता हैं जैसे घोड़ा इत्यादि । इनका संबंध दुर्जेय योद्धा के रूप में यक्षों से भी है । पुष्पदंत (अर्थ : पुष्प का चुभने वाला भाग) गंधर्वराज के रूप में जाने जाते हैं ।

मारीच ब्राह्मण के रूप में वन  में भगवान राम के निवास के द्वार पर पहुँचा और जोर से कहा, “भिक्षा देही” (मुझे दान दो) ।

लक्ष्मण ने मारीच को देखा और कहा, “कृपया आप यहाँ  बैठिये, मेरी भाभी अंदर है । वह जल्द ही आपको दान देगी” कुछ समय बाद देवी सीता अपने हाथों में भोजन के साथ झोपड़ी से बाहर आयी, और उस भोजन को मारीच को दे दिया ।

मारीच ने सीता को आशीर्वाद दिया और फिर कहा, “मेरी प्यारी बेटी, मुझे लगता है कि तुम किसी चीज़ के विषय में चिंतित हो, तुम जो भी जानना चाहती हो मुझसे पूछ सकती हो?”

देवी सीता ने उत्तर  दिया, “हे! महान आत्मा, मेरे ससुर जी लगभग 12 साल पहले स्वर्गवासी हो गए थे, और उनकी मृत्यु सामान्य नहीं थी । उनकी मृत्यु के समय हम वन  में आ गए थे और उसके कारण हम उनकी आत्मा की शांति के लिए किसी भी रीति-रिवाजों को करने में असमर्थ थे, उनकी मृत्यु का कारण अपने बच्चो का व्योग था । तो अब मेरी चिंता का कारण यह है कि हम इतने लंबे समय के बाद वन में सभी रीति-रिवाजों को कैसे पूरा करे जिससे की मेरे ससुर जी की आत्मा को शांति मिल सके?”

मारीच ने कहा, “तो यह तुम्हारी चिंता का कारण है । चिंता मत करो पुत्री चार दिनों के एक पूर्णिमा दिवस होगा, उस दिन तुम्हारे पति को कुछ यज्ञ (बलिदान) करना होगा और याद रखना कि उसे यज्ञ में वेदी के रूप में सुनहरे हिरण की खाल का उपयोग करना है । मैं उस दिन आऊँगा और उस यज्ञ को करने में तुम्हारे पति की सहायता करूँगा । बस तुम्हे इतना याद रखना है की चार दिनों के भीतर तुम्हे सुनहरे हिरण की त्वचा की आवश्यकता है”

तब मारीच वहाँ  से चला गया । जब भगवान राम लौटे, देवी सीता और लक्ष्मण ने उन्हें उन्ही ऋषि के विषय   में बताया जो आये  थे, और अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए सुनहरे हिरण की त्वचा के साथ यज्ञ का सुझाव दिया था

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – लघुकथा – ☆ आज का कान्हा ☆ – श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी“

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

 

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है।आज प्रस्तुत है  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर एक लघुकथा   “आज का कान्हा”। 

 

☆ आज का कान्हा ☆

 

चल भाग बड़ा आया मेरे बेड पर मेरे साथ सोने। जा अपनी दादी के साथ सो।

माँ की झिड़की से सहम गया शिवम। मगर ढीठ बना वहीं खड़ा रहा। आहत स्वाभिमान आँखों की राह बह निकला परंतु आँखों में आशा की ज्योत जलती रही। भले ही उसकी माँ उसे जन्म देते ही गुजर गई हो मगर कल कन्हैया के बारे में कहानी सुनाते वक्त दादी ने कहा था कि यशोदा मैया भी कान्हा की सगी माँ नहीं थी। वे भी तो उन्हें ऊखल से बांध दिया करती थी। माखन मिश्री खाने से रोकती थी।

फिर भी तो कान्हा उन्हीं के बेटे कहलाते हैं— यशोदानंदन ही कहते हैं कान्हा को। फिर संध्या माँ भी तो मेरी यशोदा मैया हैं। सोचते सोचते आज का वह नन्हा कान्हा वहीं माँ के बेड पर सिकुड़ कर एक कोने में सो गया–माँ के सपनों में खो गया।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” ✍

नागपुर, महाराष्ट्र

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