श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(“परसाई स्मृति” के लिए अपने संस्मरण /आलेख ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा करने के लिए संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी का हृदय से आभार।)
संस्मरण – परसाई का गाँव
देश की पहली विशेषीकृत माईक्रो फाईनेंस शाखा भोपाल में पदस्थापना के दौरान एक बार इटारसी क्षेत्र दौरे में जाना हुआ। जमानी गांव से गुजरते हुए परसाई जी याद आ गए। हरिशंकर परसाई इसी गांव में पैदा हुए थे। जमानी गांव में फैले अजीबोगरीब सूनेपन और अल्हड़ सी पगडंडी में हमने किसी ऐसे व्यकित की तलाश की जो परसाई जी का पैतृक घर दिखा सके। रास्ते में एक दो को पकड़ा पर उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। हारकर हाईस्कूल तरफ गए। पहले तो हाईस्कूल वाले गाड़ी देखकर डर गए। क्योंकि कई मास्साब स्कूल से गायब थे। जैसे तैसे एक मास्साब ने हिम्मत दिखाई। बोले – “परसाई जी यहाँ पैदा जरूर हुए थे पर गर्दिश के दिनों में वे यहाँ रह नहीं पाए।” हांलाकि नयी पीढ़ी कुछ बता नहीं पाती क्यूंकि पढ़ने की आदत नहीं है। फेसबुकिया माहौल में चेट करते एक लड़के से जब हरिशंकर परसाई जी के पुराने मकान के बारे में पूछा तो उसने पूछा – “कौन परसाई ?”
फिर भी बेचारे स्कूल के उन मास्साब ने मदद की। पैदल गाँव की तरफ जाते हुए मास्साब ने बताया कि उनका पुराना घर तो पूरी तरह से गिर चुका है ,घर के खपरे और ईंटें लोग पहले ही चुरा ले गए । अब टूटे घर के ठीहे में लोग लघुशंका करते रहते हैं ,……..”
हमने मास्साब से कहा चलो फिर भी वो जगह देख लेते हैं और चल पड़े उस ओर ……. कच्ची पगडंडी के बाजू में मास्साब ने ईशारा किया ,….नींंव के कुछ पत्थर शेष दिखे । दुर्गंध कचरा के सिवा कुछ न था। चालीस बाई साठ के एरिया में हमने अंदाज लगाया कि शायद इस जगह पर परसाई सशरीर धरती पर उतरे रहे होंगे धरती छूकर पता नहीं आम बच्चों की तरह ” कहाँ कहाँ कहाँ “की आवाज से अपनी उपस्थिति बतायी या चुपचाप गोबर लिपी धरती पर उतर गए रहे होंगे ………. आह और वाह के अनमनेपन के बीच उस प्लाट की एक परिक्रमा पूरी हुई जब तक उस पार खड़े सज्जन की लघुशंका करने की व्यग्रता को देखते हुए हम मास्साब के साथ स्कूल तरफ मुड़ गए ………”
(जस का तस लिखने में दुख हुआ दर्द हुआ पर आंखिन देखी पर विश्वास करना पड़ा। क्षमायाचना सहित )
© जय प्रकाश पाण्डेय