मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 13 – चौथा कमरा ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनका  संस्मरणीय आलेख चौथा कमरा।  प्रत्येक साहित्यकार को जीवन में कई क्षणों से गुजरना होता है। कुछ कौतूहल के तो कुछ आलोचनाओं के; कभी प्रशंसा तो कभी हिदायतें। सुश्री प्रभा जी ने इन सभी को बड़े सहज तरीके से अपने जीवन में ही नहीं साहित्य में भी जिया है। सुश्री प्रभा जी का साहित्य जैसे जैसे पढ़ने का अवसर मिल रहा है वैसे वैसे मैं निःशब्द होता जा रहा हूँ। हृदय के उद्गार इतना सहज लिखने के लिए निश्चित ही सुश्री प्रभा जी के साहित्य की गूढ़ता को समझना आवश्यक है। यह  गूढ़ता एक सहज पहेली सी प्रतीत होती है। हमारी समवयस्क पीढ़ी में शायद ही कोई साहित्यकार हो जो स्व. अमृता प्रीतम जी के साहित्य से प्रभावित न हुआ हो। संस्मरणीय आलेख में चौथा कमरा निर्मित करने  की परिकल्पना अद्भुत है।  सुश्री प्रभा जी का  पुनः आभार अपने संस्मरण साझा करने के लिए। आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 13 ☆

 

☆ चौथा कमरा ☆

 

आयुष्य कथा, कविता ,कादंबरी कशातही न मावणारं….कथा लिहिल्या, कविता लिहिल्या….कादंबरी नाही लिहिली अजून….एक खुप जुनी कविता आठवते मी लिहिलेली….

न गीत बन सका, न गजल बनी.

पूरी न हो सकी अधूरी कहानी…

शाळेत असताना रचलेली ही कविता…कविता आयुष्यभर साथ देईल असं तेव्हा वाटलं नव्हतं!

अमृता प्रीतम…एक आवडतं व्यक्तिमत्व, आयुष्य मनःपूत जगलेली स्त्री! “चौथा कमरा” ही अमृता प्रीतम ची संकल्पना आमच्या पिढीतल्या मध्यमवर्गीय स्त्रीला विचार करायला लावणारी,

मी जेव्हा स्वतःचा विचार करते तेव्हा जाणवतं, मी ज्या कौटुंबिक पार्श्वभूमीतून आले आहे, तिथे शक्यच नव्हतं, कविता करणं, कार्यक्रमात भाग घेणं, मैत्रीणींबरोबर कार्यक्रमांसाठी गावोगावी जाणं..  .. ..

पण माझ्याबाबतीत स्वतंत्रवृत्तीची ही बीजं लहानपणीच रूजली होती, वाचनातून, रेडिओ सारख्या प्रसारमाध्यमातून…मी माझ्या जवळच्या अगदी जिवाभावाच्या मैत्रीणीच्या घराशी…एका ख्रिश्चन कुटुंबाशी जोडले गेले होते, ते एक सुखी, प्रेमळ आणि एकमेकांशी आदराने वागणारं कुटुंब होतं!

घरात आईवडिलांचा धाक होता.

विसाव्या वर्षी लग्न ठरलं, सासर जुन्या वळणाचं….

घर संसार हेच इतिकर्तव्य असायला हवं होतं, पण विरोध पत्करून घराबाहेर पडले…संसाराकडे थोडंफार दुर्लक्ष झालंही असेल पण सगळी कर्तव्य पार पाडली…कुचंबणा, अवहेलना, अपमान सहन करावे लागले,

पण थोडंफार मनासारखं जगता आलं  ….

संधी मिळत गेल्या…साधारण १९८८ साली..   एका दिवाळी अंकाचं संपादन करायची जबाबदारी मिळाली पहिल्यावर्षी पाचशे रुपये  मानधन मिळालं ते वाढत वाढत पाच हजारापर्यंत गेलं….

स्वतःचा दिवाळी अंक सुरु केला चार वर्षे चालविला पण आर्थिक गणितं जमेनात मग बंद केला!

फार काही भव्य दिव्य करता आलं नाही पण “चौथा कमरा” निर्माण करता आल्याचे समाधान निश्चितच आहे, पण ही सगळी वाटचाल एकटीची  ….प्रतिकुल परिस्थितीत केलेली… छंद जपता आले…स्वतःचं वेगळेपण जपता आलं हे ही नसे थोडके….. १९८८   सालापासूनची म्हणजे लग्नानंतर दहा वर्षांनी उंबरठा ओलांडल्यानंतरची कारकीर्द समाधानी, तृप्त…!!

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – The Wheel of Happiness and Well-being – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Video Link >>>>>>

 

AN ACTIVITY BASED, MULTI-DIMENSIONAL PROGRAMME

The Wheel of Happiness and Well-Being is an activity-based, multi-dimensional program. It blends the best of modern science with the ancient wisdom of the sages.

The Wheel of Happiness and Well-Being endeavours to provide you the essence of Positive Psychology, Yoga, Meditation, Laughter Yoga, and Spirituality.

The Wheel of Happiness and Well-Being can be conducted in a home, workplace, school, college, community hall, auditorium, park, hospital, prison – practically anywhere.

The Wheel of Happiness and Well-Being is conducted by two experienced facilitators – Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht.

LifeSkills is a pathway to authentic happiness, well-being, and meaningful life. It provides you skills that make life happier, meaningful and worth living.

Our mission is to propagate positive life skills to help people flourish. Our guiding spirit is “bhavatu sabba mangalam” which means – May all beings be happy!

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Music:
Healing by Kevin MacLeod is licensed under a Creative Commons Attribution license (https://creativecommons.org/licenses/…)
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Artist: http://incompetech.com/

OUR FUNDAMENTALS:
The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore
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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (16) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

 (ज्ञानयोग का विषय)

 

ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः ।

तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्‌।।16।।

 

आत्म ज्ञान से नष्ट है जिनका भी अज्ञान

परम तत्व उनका प्रखर होता सूर्य समान।।16।।

 

भावार्थ :  परन्तु जिनका वह अज्ञान परमात्मा के तत्व ज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस सच्चिदानन्दघन परमात्मा को प्रकाशित कर देता है।।16।।

 

But, to those whose ignorance is destroyed by knowledge of the Self, like the sun, knowledge reveals the Supreme (Brahman). ।।16।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 5 ☆ छोटी ज़िंदगी ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा ☆

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “छोटी ज़िंदगी”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 5   

☆ छोटी ज़िंदगी ☆

 

कभी देखा है ध्यान से तुमने

मस्ताने गुलों को पेड़ों की डालियों पर

मुस्कुराते हुए?

 

शर्माती सी कली

जब एक गुल में परिवर्तित होती है,

उसका चेहरा ही बदल जाता है

और लबों पर उसके लाली छा जाती है!

 

हवाएँ इन इठलाते गुलों को

कभी चूमती हैं,

कभी मुहब्बत से गले लगा लेती हैं;

सूरज इनमें रौशनी भर

इनमें नया जोश पैदा करता है;

तितलियाँ और भँवरे

इनसे इश्क कर बैठते हैं;

पर यह गुल

इन सभी बातों से अनजान,

सिर्फ ख़ुशी से झूलते रहते हैं!

 

कभी-कभी इनको देखकर

बड़ा आश्चर्य होता है…

क्या यह गुल नहीं जानते

कि इनकी ज़िन्दगी इतनी छोटी है?

 

सुनो,

शायद यह बात गुल

अच्छे से जानते हैं,

और शायद यह भी समझते हैं

कि जितनी भी ज़िन्दगी हो

उसमें हर पल का लुत्फ़ लेना चाहिए;

तभी तो यह इतना खुश रहते हैं…

 

आज

अपने बगीचे में

जब एक बार फिर एक शोख गुलाबी गुलाब को

ख़ुशी से सारोबार देखा,

मेरे भी सीने में बसा हुआ डर

कहीं उड़ गया!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – सृजन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

We present an English Version of this poem with the title ?✍ Creativity ✍? published today. We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi ji for this beautiful translation.)

 

?✍ संजय दृष्टि  – सृजन ✍?

 

कोई धन से अड़ा रहा

सम्पर्कों पर कोई खड़ा रहा,

प्राचीन से अर्वाचीन तक

बार्टर का सिलसिला चला रहा,

मैं निपट बावरा अकिंचन

केवल सृजन के बल पर टिका रहा।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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English Literature – Poetry – ☆ Creativity ☆ – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem ” सृजन ” published in today’s  ?✍ संजय दृष्टि  – सृजन ✍?.  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi ji for this beautiful translation. )

Initially, we thought to begin a weekly column of Capt. Pravin Raghuwanshi ji’s English Translations. Later on, we found that we will not be able to give justice by limiting his vivid literary work in periodical columns. So, we will try to publish his work whenever we will have an opportunity to do so.  We are extremely thankful to Capt Pravin ji for giving this liberty to e-abhivyakti.

 

?✍ Creativity ✍?

 

Some stood fast with the power of money,

Others through the power of their contacts,

Time cemented this transactional barter for eternity,

While the utter crazy pauper like me held on to creativity…

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 1 ☆ व्यंग्य संग्रह – अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।  अब आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  की पुस्तक चर्चा  “अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 1 ☆ 

 

 ☆ व्यंग्य संग्रह – अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो ☆

पुस्तक चर्चा

व्यंग्य संग्रह… अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो

लेखक..सुदर्शन सोनी, चार इमली, भोपाल

प्रकाशक…बोधि प्रकाशन जयपुर

पृष्ठ..१३६, मूल्य १५० रु

 

☆ व्यंग्य संग्रहअगले जनम मोहे कुत्ता कीजोचर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

 

कुत्ते की वफादारी और कटखनापन जब अमिधा से हटकर, व्यंजना और लक्षणा शक्ति के साथ इंसानो पर अधिरोपित किया जाता है तो व्यंग्य उत्पन्न होता है. मुझे स्मरण है कि इसी तरह का एक प्रयोग जबलपुर के विजय जी ने “सांड कैसे कैसे” व्यंग्य संग्रह में किया था, उन्होने सांडो के व्यवहार को समाज में ढ़ूंढ़ निकालने का अनूठा प्रयोग किया था. पाकिस्तान के आतंकियो पर मैंने भी “डाग शो बनाम कुत्ता नहीं श्वान…” एवं “मेरे पड़ोसी के कुत्ते” लिखे,  जिसकी  बहुत चर्चा व्यंग्य जगत में रही  है.  कुत्तों का  साहित्य में वर्णन बहुत पुराना है, युधिष्टर के साथ उनका कुत्ता भी स्वर्ग तक पहुंच चुका है. काका हाथरसी ने लिखा था..

पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझ

भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज

बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हाता

देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता

कहँ ‘काका’ कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्ला

पुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला

हाल ही पडोसी के एक मौलाना ने बाकायदा नेशनल टेलीविजन पर देश के आवारा कुत्तो को सजा धजा कर दूसरे देशों को मांस निर्यात करने का बेहतरीन प्लान किसी तथाकथित किताब के रिफरेंस से भी एप्रूव कर उनके वजीरे आजम को सुझाया है, जिसे वे उनके देश  की गरीबी दूर करने का नायाब फार्मूला बता रहे हैं. मुझे लगता है  शोले में बसंती को कुत्ते के सामने नाचने से मना क्या किया गया, कुत्तों ने  इसे पर्सनली ले लिया और उनकी वफादारी, खुंखारी में तब्दील हो गई. मैं अनेक लोगो को जानता हूं जिनके कुत्ते उनके परिवार के सदस्य से हैं.सोनी जी स्वयं एक डाग लवर हैं, उन्हीं के शब्दों में वे कुत्तेदार हैं, एक दो नही उन्होने सिरीज में राकी ही पाले हैं. एक अधिकारी के रूप में उन्होनें समाज, सरकार को कुछ ऊपर से, कुछ बेहतर तरीके से देखा समझा भी है. एक व्यंग्यकार के रूप में उनकी अनुभूतियों का लोकव्यापीकरण करने में वे बहुत सफल हुये हैं.  कुत्ते के इर्द गिर्द बुने विषयों पर  अलग अलग पृष्ठभूमि पर लिखे गये सभी चौंतीस व्यंग्य भले ही अलग अलग कालखण्ड में लिखे गये हैं किन्तु वे सब किताब को प्रासंगिक रूप से समृद्ध बना रहे हैं. यदि निरंतरता में एक ताने बाने एक ही फेब्रिक में ये व्यंग्य लिखे गये होते तो इस किताब में एक बढ़िया उपन्यास बनने की सारी संभावनायें थीं. आशा है सुदर्शन जी सेवानिवृति के बाद कुत्ते पर केंद्रित एक उपन्यास व्यंग्य जगत को देंगे, जिसका संभावित नाम उनके कुत्तों पर “राकी” ही होगा.

धैर्य की पाठशाला शीर्षक भी उन्हें कुत्तापालन और धैर्य कर देना था तो सारे व्यंग्य लेखो के शीर्षको में भी कुत्ता उपस्थित हो जाता. जेनेरेशन गैप इन कुत्तापालन, कम्फर्ट जोन व डागी,कुत्ताजन चार्टर, डोडो का पाटी संस्कार,  आदि शीर्षक ही स्पष्ट कर रहे हैं कि सोनी जी को आम आदमी की अंग्रेजी मिक्स्ड भाषा से परहेज नही है. उनकी व्यंग्यों में संस्मरण सा प्रवाह है. यूं तो सभी व्यंग्य प्रभावी हैं, गांधी मार्ग का कुत्ता, कुत्ता चिंतन, एक कुत्ते की आत्मकथा, उदारीकरण के दौर में कुत्ता आदि बढ़िया बन पड़े व्यंग्य हैं. किताब पठनीय है, श्वान प्रेमियो को भेंट करने योग्य है. न्यूयार्क में मुझे एक्सक्लूजिव डाग एसेसरीज एन्ड युटीलिटीज का सोरूम दिखा था “अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो ”  अंग्रेजी अनुवाद के साथ वहां रखे जाने योग्य मजेदार व्यंग्य संग्रह लगता है.

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #13 – माथी पत्थर ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक सामयिक एवं सार्थक कविता  “माथी पत्थर”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 13 ☆

 

? माथी पत्थर ?

 

चराचरावर तुझीच सत्ता जर आहे तर

चराचराला कशी लागली येथे घरघर

 

समृद्धीच्या दिल्यास चाव्या ज्यांच्या हाती

विज्ञानाच्या नावाखाली धरणी जर्जर

 

अतिरेकी अन् दारूगोळा करती गोळा

भीक मागती घरात त्यांच्या नाही भाकर

 

गगन व्यापुनी सारे येथे तिमिर बैसला

किती दिसांनी आज उगवला तेजोभास्कर

 

हिंस्त्र पशूंचे इथे टोळके फिरते आहे

धालत नाही कुणीच त्यांना येथे आवर

 

या देशाचे देणे घेणे नाही त्याला

लुटून देशा स्थावर जंगम केली जगभर

 

पुटीरवादी त्याला सवलत मिळते आहे

रक्षणकर्ता आहे त्याच्या माथी पत्थर

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

 (ज्ञानयोग का विषय)

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः ।

अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।।15।।

पाप-पुण्य से भिन्न तू अखिलेश्वर को जान

ज्ञान ढॅका अज्ञान से इससे भ्रमित जहान।।15।।

भावार्थ :  सर्वव्यापी परमेश्वर भी न किसी के पाप कर्म को और न किसी के शुभकर्म को ही ग्रहण करता है, किन्तु अज्ञान द्वारा ज्ञान ढँका हुआ है, उसी से सब अज्ञानी मनुष्य मोहित हो रहे हैं।।15।।

 

The Lord accepts neither the demerit nor even the merit of any; knowledge is enveloped by ignorance, thereby beings are deluded. ।।15।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 13 – मेहंदी ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक बेहतरीन लघुकथा “मेहंदी”यह रंग बिरंगा जीवन जीने का दूसरा अवसर नहीं मिलता, जिसे जीने का सबको बराबर हक है। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी की कलम को इस बेहतरीन लघुकथा के माध्यम से  समाज  को अभूतपूर्व संदेश देने के लिए  बधाई ।)

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 13 ☆

 

☆ मेहंदी ☆

 

कंचन अपने माता-पिता की इकलौती संतान । गोरा रंग और सुंदरता के कारण उसका नाम कंचन रखा गया। कंचन के पिताजी की रंगो और मेहंदी की छोटी सी दुकान । उन रंगों से खेलना कंचन को बहुत भाता था। हमेशा मेहंदी से हाथ रचाई रखना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गई थी। बहुत शौकीन सजने संवरने की।

समय बीतता गया, कंचन बड़ी हुई। घर में शादी की बात चलने लगी। कंचन जो अब तक मेहंदी – महावर लगा रही थी। अब उसके माथे मांग सिंदूर लगने जा रहा था।

शादी बहुत ही साधारण तौर पर हुई क्योंकि कंचन के पिताजी ज्यादा खर्च करने के लायक नहीं थे। कंचन के रूप- गुण के कारण ससुराल वाले उनका भी खर्चा उठाने के लिए तैयार हो गए। बस और क्या चाहिए। कंचन शादी विदा होकर अपने ससुराल पहुंच गई। पर उसके मन में बार-बार शंका हो रही थी कि आखिर क्यों इतना एहसान किया जा रहा है।

ससुराल पहुंचने पर कंचन को धीरे-धीरे पता चला कि उसका अपना पति बहुत ही बीमार रहता है। डॉक्टर ने उसे जवाब दे दिया है। पर कंचन बेचारी क्या करती। दूसरे दिन ही पति की बीमारी शुरू हुई और मौत हो गई।

कंचन मौन मूक से देखती रही। अभी तो उसने ठीक से पति को देखा भी नहीं और विधवा हो गई।

खैर सब अपने कर्मो का फल है ऐसा सब  कहने लगे। परंतु कंचन समझ ना पा रही थी कि इसमें उसका क्या कसूर।

दूसरे ही दिन से कंचन को सफेद साड़ी दे दिया गया। जिस कंचन को सब रंगों से इतना लगाव था वह तो पूरी सफेद बन चुकी।

महीने भर बाद माता-पिता जी ले गए अपनी बिटिया को अपने घर। जैसे खुशियां उनके घर से कोसों दूर चली गई है। कंचन अब अपनी दुकान पर भी नहीं बैठती थी। गुमसुम से एक जगह बैठी मिलती। बस अपने आप में खोई हुई। पास में ही कंचन के साथ पढ़ाई करने वाला लड़का कौशल पढ़ाई कर बाहर नौकरी पर चला गया था। जो कंचन को बहुत प्यार करता था। इसका पता उसे तब चला जब वह फिर लौट कर अपने घर आया हुआ था।

एक दिन पिताजी किसी काम से शहर से बाहर गए थे। कंचन की माँ अपने घर का काम कर रही थी। और कंचन दुकान पर बैठी, सफेद साड़ी में। उसी समय वह आया और लाल रंग और मेहंदी देने को कहा। पर कंचन ने मना कर दिया की वह रंगों को हाथ नहीं लगाएगी। कौशल ने फिर कहा “मुझे लाल रंग चाहिए।” कंचन ने गुस्से से कहा “तो फिर खुद ले लो और लगा लो।” बस कौशल को तो इसी की प्रतीक्षा थी। उसने लाल रंग निकाला और कंचन की सफेद साड़ी को सर से पांव तक लाल कर दिया। “ये क्या किया?” कंचन घबराहट से उठ खड़ी हुई।

माँ पीछे से मंद-मंद मुस्कुराते हुए बाहर आई और कौशल से बोली “ले जा मेरी कंचन को, मेहंदी महावर और लाल सिंदूर लगा कर। मेरी कंचन को रंगों से बहुत प्यार है।”

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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