हिन्दी साहित्य – कथा – कहानी ☆ माँ– एक तस्वीर सी ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  एक  भावप्रवण लघुकथा  माँ– एक तस्वीर सी)

 

माँ– एक तस्वीर सी ☆

 

नानी कहती थी माँ बड़ी  खूबसूरत थी, तस्वीर सी। कहाँ जानती थी बेचारी कि उसकी सुगढ़ सलोनी बिटिया धीरे धीरे मूक तस्वीर में ढल रही है ।

बताया था चाची ने रमा को, कि पढ़ी लिखी गोल्ड मेडलिस्ट माँ की आँखे उसी दिन पथरा गईं थीं– जिस दिन किरानी के सामान जिसमें बंध कर आए थे, अखबार के उन  टुकड़ों को माँ को पढ़ता देखकर, सासु माँ के ताने पर देवरजी, बडे़ जेठजी और अन्यों की व्यंगात्मक हंसी पर झुकीं– माँ की आँखों ने उठना बंद कर दिया था।   नानाजी के घर मे निरे बचपन से पढीं चंदामामा, नंदन, पराग और बाद में प्रसाद, प्रेमचंद, महादेवी के रचना-अक्षर नृत्य करने लगे माँ की पथराई आँखों और जड़ होते तन-मन के सामने । सयानी होती रमा ने भी माँ को तस्वीर में ढलते देखा। जिंदगी भर बडे़ बाबूजी, चाचाजी की बेजा गर्जना पर पिताजी की एक उठी आवाज के लिए माँ के मन-प्राण-कान तरसते रहे। माँ की गूंगी बहरी संवेदनाओं और भीरू पिता के पंगु सायों में पलते भैया का कुचला बचपन माँ के भीतर नासूर बनता रहा। अन्य बच्चों की गलतियों को भैया पर थोपे झूठे इल्ज़ामों को समझ कर भी भैय्या को ही पीट पीट कर खुद अधमरी ठूंठ सी मेरी स्नेह वंचिता भावुक जननी—-उस अभिमानी परिवेश में दो बेटों के माता-पिता होने के गर्वोन्नत सिरों के सामने बेटी की माँ होने का अभिशाप झेलती भीतर से नितांत अकेली मेरी असहाय माँ– अचल तस्वीर बन चली।

माँ का दिमाग पूरी तरह चुक गया था। जड़ हो चुकी थीं वे। मनः चिकित्सा अबूझ रही।माँ की विदेही पीड़ा की साक्षी और न्यायाधीश दोनों मैं रमा ही थी, परंतु कठघरे में किसे खड़ा करूं? बेमेल विवाह के दोषी नाना मामा को, भीरु सीधे साधे दब्बू बाबूजी को या उस जमाने की पाखंडी संस्कृति को— जहाँ स्त्रियां इंसान नहीं मात्र देह होतीं थीं। जीते जी ही दीवारों पर टंगी तस्वीरें होती थीं बस !!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अंतिम सत्य ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  –  अंतिम सत्य 

 

कुछ राजपथ

कुछ स्वर्णपथ

मद-भोग के मार्ग

विलास के कुछ पथ,

चमचमाती कुछ सड़कें

विकास के ‘एलेवेटेड रास्ते’,

चमचमाहट की भीड़ में

शेष बची संकरी पगडंडी-

जिससे बची हुई हैं

माटी की आकांक्षाएँ

और जिससे बनी हुई हैं

घास उगने की संभावनाएँ,

बार-बार, हर बार

मन की सुनी मैंने

हर बार, हर मोड़ पर

पगडंडी चुनी मैंने,

मेरी एकाकी यात्रा पर

अहर्निश हँसनेवालो!

राजपथ, स्वर्णपथ

विलासपथ चुननेवालो!

तुम्हें एक रोज

लौटना होगा मेरे पास

जैसे ऊँचा उड़ता पंछी

दाना चुगने, प्यास बुझाने

लौटता है धरती के पास,

कितना ही उड़ लो,

कितना ही बढ़ लो

रहो कितना ही मदमस्त,

माटी में पार्थिव का क्षरण

और घास की शरण

है अंतिम सत्य!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #30 – चेहऱ्यावर चेहरे ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “चेहऱ्यावर चेहरे”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 30☆

 

☆ चेहऱ्यावर चेहरे ☆

 

आसवांना अंतरी दडवू नको

आरश्याला तू असे फसवू नको

 

मखमली हा चेहरा नाराज का ?

चेहऱ्यावर चेहरे चढवू नको

 

सूर्य पाठीशी उभा असता तुझ्या

भर दुपारी काजवे जमवू नको

 

नेत्रपल्लव त्यात मजला झाक तू

तेथुनी मजला पुन्हा हलवू नको

 

जन्मठेपेची सजा तू दे मला

अन् जगापासून हे लपवू नको

 

सूर अपुले पाहुनी घेऊ जरा

मैफिलीचे काय ते ठरवू नको

 

बेत ठरला जर नकाराचा तुझा

ठेव हृदयी तो मला कळवू नको

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information – ☆ डॉ राकेश चक्र जी “अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2018” से सम्मानित ☆

सूचनाएँ/Information

☆ डॉ राकेश चक्र जी “अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2018″ से सम्मानित 

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा दिनांक 30 दिसम्बर को यशपाल सभागार में पुरस्कार वितरण एवं अभिनंदन पर्व स्थापना दिवस का भव्य समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश और विधानसभा अध्यक्ष जी की गरिमामय उपस्थित रही।

इस सुअवसर पर बाल साहित्य के क्षेत्र में डॉ राकेश चक्र जी को “अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2018″ से उत्तर प्रदेश हिंदी के कार्यकारी अध्यक्ष आदरणीय डॉ सदानंद गुप्त जी व अन्य ख्यातिनाम साहित्यकारों की  गरिमामय उपस्थिति में उत्तरीय उढ़ाकर, सम्मान पत्र और रु 51,000 की धनराशि का चैक आदि देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर देश और विदेश के अन्य 136 साहित्यकारों को भी विभिन्न विधाओं में सम्मानित किया गया।

ई-अभिव्यक्ति की ओर से डॉ राकेश चक्र जी को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई।

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 30 – जूठन ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  – एक अत्यंत मर्मस्पर्शी जीवंत संस्मरण पर आधारित लघुकथा  “जूठन”। यह जीवन का कटु सत्य। आज भी ऐसी  मानसिकता के लोग समाज में हैं। वे नहीं जानते कि – सबको  आखिर जाना तो एक ही जगह है।

(श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी को मधुशाला साहित्यिक परिवार, उदयपुर की ओर से “काव्य  गौरव सम्मान 2019”  के लिए हार्दिक बधाई । )

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 30 ☆

☆ लघुकथा – जूठन ☆

 

कहते हैं आदमी कितना भी धनवान और रूपवान  क्यों न हो जाए, यदि उसके पास मानवता नहीं है तो वह पशु  समान है।

शहर के बीचों बीच काफी हाउस जहां पर दक्षिण भारतीय व्यंजन जैसे डोसा, इडली सांभर, बड़ा सांभर खाने के लिए काफी भीड़ लगती है। अपनी अपनी पसंद से सभी खाते हैं। काफी हाउस में लगभग सभी कुर्सियों पर व्यक्ति बैठे थे। हम भी वहां बैठे थे।

पास की पंक्ति पर एक सरकारी नौकरी और अच्छे पद पर काम करने वाली सभ्रांत लगाने वाली महिला एक बुजुर्ग महिला के साथ बैठी थी। उस महिला के पहनावे और बातचीत करने के तरीके से पता चल रहा था कि वह घर में काम करने वाली बाई है। पास में ही दो-तीन थैलों में सामान रखा हुआ था साथ ही मिनरल वाटर की चमचमाती बोतल टेबल पर रखी थी।

ऑर्डर पास करने वाला आकर खड़ा हो गया। भीड़ के कारण जल्दी-जल्दी ऑर्डर ले रहा था। उस सभ्य महिला ने कहा… “एक मसाला डोसा लेकर आओ”।  उसने हां में सिर हि दिया।  फिर खड़ा रहा और पूछा “क्या, सिर्फ एक ही लाना है?” उसे लगा उम्र में उससे दुगनी महिला साथ में बैठी है, तो शायद उसके लिए कुछ अलग मांग रही है।  परंतु उसने कहा.. “सिर्फ एक मसाला डोसा।“

थोड़ी देर में प्लेट में मसाला डोसा लेकर वेटर आ गया और  टेबिल पर रखकर चला गया। उस महिला ने मुंह बना-बना कर मसाला डोसा खाना शुरू किया। वह बात करते जा रही थी।  लिपस्टिक खराब ना हो जाए इसलिए बड़े ही स्टाइल से खा रही थी। परंतु, प्लेट में बहुत ही गंदे तरीके से सांभर टपका रही थी और वह महिला सामने बैठ उसके प्लेट को देख रही थी। शायद, भूख उसे भी लगी थी, परंतु चुपचाप देख रही थी।

अंत में उस  सभ्य महिला ने सामने बैठी अधेड़ उम्र की महिला से कहा… “यह बचा हुआ डोसा तुम खा लो तुम्हारा पेट भर जाएगा। घर जाकर खाना नहीं पड़ेगा। हम तो अभी जूस पीकर आए हैं। अब ज्यादा नहीं खा सकेंगे।“

उस प्लेट को हम  सभी देख रहे थे मुश्किल से एक तिहाई डोसा बचा था। यह कह कर वह हाथ धोने वॉशरूम की ओर चली गई। जब किसी से नहीं रहा गया तो वहां बैठे और लोगों ने पूछा… “तुम यह जूठन क्यों खा रही हो अम्मा?

उसने मुंह में निवाला डाले डाले कहा… “घर में हम रोज ही मेम साहब का जूठन खाते हैं। वह खाने के बाद उसी प्लेट पर बचा हुआ खाना हमें देती है। हमारी तो आदत है, जूठन खाने की। क्या करें? जिंदगी जो काटनी है उनके साथ!” उत्तर सुनकर सभी उसकी ओर देखने लगे।

किसी ने कुछ नहीं कहा और सब उस ऊंची सोच वाली महिला को देख रहे थे। जो वाशरूम से हाथ धो कर निकली और पर्स उठा कर बाहर की ओर चलती बनी।

कुछ तो फर्क होता है ‘बचा हुआ’ और ‘जूठन’ देने में? कैसी मानसिकता हैं यह? हम सोचते रहे, किन्तु, कुछ कर न सके।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (8) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

जगत की उत्पत्ति का विषय )

 

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।

भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्‌ ।।8।।

 

अपने प्राकृत नियम वश फिर फिर रचता सृष्टि

सहज प्रकृति आधीन है यह संम्पूर्ण समष्टि।।8।।

 

भावार्थ :  अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वभाव के बल से परतंत्र हुए इस संपूर्ण भूतसमुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ।।8।।

 

Animating My Nature, I again and again send forth all this multitude of beings, helpless by the force of Nature.।।8।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 19 ☆ काव्य संग्रह – लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं – सुश्री सोनिया खुरानिया ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  सुश्री सोनिया खुरानिया जी के काव्य संग्रह लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 19☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – काव्य संग्रह  –  लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं 

पुस्तक –लफ्ज दर लफ्ज मैं

लेखिका –  सुश्री सोनिया खुरानिया

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली

आई एस बी एन – ९७८९३८८३४६८१८

मूल्य –  200 रु प्रथम संस्करण 2019

☆ काव्य संग्रह –  लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं – सुश्री सोनिया खुरानिया –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

काव्य वह विधा है जो यदि कौशल से प्रयुक्त हो तो व्यक्तिगत अनुभवो को हर पाठक के उसके अनुभव बना देने की क्षमता रखती है. सोनिया खुरानिया की इस पुस्तक में संग्रहित कवितायें अधिकांशतः इसी तरह की हैं. छंद के शिल्प में भले ही कुछ रचनायें वह पकड़ न रखती हों जो साहित्यिक दृष्टि से आवश्यक हैं किन्तु भाव की कसौटी पर रचनायें खरी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर रही हैं. कोई ६० से अधिक कवितायें, कुछ मुक्त छंद में कुछ छंद में संग्रहित हैं. अधिकतर रचनायें स्त्री पुरुष संबंधो के, प्रतीत होता है उनके स्व अनुभव ही हैं. कवियत्री से अनुभवो की परिपक्वता पर बेहतर साहित्य की उम्मीद साहित्य जगत को है.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , जबलपुर

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 27 – भारत का आखिरी गांव माणा गांव ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनका अविस्मरणीय  संस्मरण  “भारत का आखिरी गांव माणा गांव”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) \

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 27 ☆

☆ भारत का आखिरी गांव माणा गांव 

सरस्वती नदी का उदगम स्थल भीमपुल माणा गांव भारत का अंतिम गांव कहलाता है बहुत दिनों से भारत चीन सीमा में बसे इस गाँव को देखने की इच्छा थी जो जून 2019 में पूरी हुई। यमुनेत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन के बाद माणा गांव जाना हुआ। 20 जून 2019 को उत्तराखंड की राज्यपाल माणा गांव आयीं थीं ऐसा वहां के लोगों ने बताया। हम लोग उनके प्रवास के तीन चार दिन बाद वहां पहुंचे। हिमालय की पहाड़ियों के बीच बसे इस गांव के चारों तरफ प्राकृतिक सौंदर्य देखकर अदभुत आनंद मिलता है पर गांव के हालात और गांव के लोगों के हालात देखकर दुख होता है अनुसूचित जाति के बोंटिया परिवार के लोग गरीबी में गुजर बसर करते हैं पर सब स्वस्थ दिखे और ओठों पर मुस्कान मिली।

बद्रीनाथ से 4-5 किमी दूर बसे इस गांव से सरस्वती नदी निकलती है और पूरे भारत में केवल माणा गांव में ही यह नदी प्रगट रूप में है इसी नदी को पार करने के लिए  भीम ने एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीमपुल कहते हैं। किवदंती है कि भीम इस चट्टान से स्वर्ग गए और द्रोपदी यहीं डूब गयीं थी।

कलकल बहती अलकनंदा नदी के इस पार माणा गांव है और उस पार आईटीबीपीटी एवं मिलिट्री का कैम्प हैं जिसकी हरे रंग की छतें माणा गांव से दिखतीं है।

माणा गांव के आगे वेदव्यास गुफा, गणेश गुफा है माना जाता है कि यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था। माणा गांव के आगे सात किमी वासुधारा जलप्रपात है जिसकी एक बूंद भी जिसके ऊपर पड़ती है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। कहते हैं यहां अष्ट वसुओं ने तपस्या की थी। थोड़ा आगे सतोपंथ और स्वर्ग की सीढ़ी पड़ती हैं जहां से राजा युधिष्ठिर सदेह स्वर्ग गये थे।

हालांकि इस समय भारत का ये आखिरी गांव बर्फ से पूरा ढक गया होगा और बोंटिया परिवार के 300 परिवार अपने घरों में ताले लगाकर चले गए होंगे पर उनकी याद आज भी आ रही है जिन्होंने अच्छे दिन नहीं देखे पर गरीबी में भी वे मुस्कराते दिखे।।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
image_printPrint

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कवितायेँ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  कवितायेँ 

 

आजकल

कविताएँ लिखने पढ़ने का

दौर खत्म हो गया क्या..?

नहीं तो ;

पर तुम्हें ऐसा क्यों लगा..?

फिर रोजाना ये अनगिनत

विकृत, नृशंस कांड

कैसे हो रहे हैं..!!!

 

बाँचना, गुनना नियमित रहे, मनुष्यता टिकी रहे।

( कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से।)
©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

image_printPrint

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ “चिंतामणी चारोळी” आणि “चामुंडेश्वरी चरणावली” संग्रहाचे पुजन व प्रकाशन☆ प्रस्तुति – सौ. संगिता राम भिसे ☆

☆ सूचनाएँ/Information  ☆

“चिंतामणी चारोळी” आणि “चामुंडेश्वरी चरणावली” संग्रहाचे पुजन व प्रकाशन ☆ प्रस्तुति – सौ. संगिता राम भिसे ☆

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है.  यह गर्व की बात है कि श्रीमती उर्मिला जी के  काव्य संग्रह “चिंतामणी चारोळी” आणि “चामुंडेश्वरी चरणावली” का पूजन, प्रकाशन एवं लोकार्पण कार्यक्रम ” आज सोमवार दिनांक ३०/१२/१९ विनायकी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त पर प्रातः ठीक 11 बजे  थेऊर अष्टविनायक देवस्थान पर संपन्न होने जा रहा है। ई- अभिव्यक्ति  की ओर से श्रीमती उर्मिला जी को हार्दिक शुभकामनाएं। )

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

सुर्यगंध प्रकाशन तर्फे, सातारा येथील कवियत्री लेखिका माझी आई, श्रीमती उर्मिला उद्धवराव इंगळे यांनी लिहिलेल्या “चिंतामणी चारोळी” या श्री गणेश वर्णानाच्या तसेच चामुंडेश्वरी चरणावली या आदिशक्तीचे स्तुती वर्णन अष्टाक्षरी चारोळी संग्रहाचे पुजन व प्रकाशन आज सोमवार दिनांक ३०/१२/१९ विनायकी चतुर्थी च्या सुमूहूर्तावर सकाळी ठिक ११ वा. थेऊर अष्टविनायक देवस्थान येथे संपन्न होत आहे.

या कार्यक्रमास अष्टविनायक देवस्थान चे प्रमुख विश्वस्त ह. भ. प. श्री. आनंद महाराज तांबे व श्री. स्वानंद देव अध्यक्ष चित्रपट व नाट्यसंस्था महाराष्ट्र राज्य तसेच कवी – कवियत्रि लेखक, चित्रपट क्षेत्रातील नामवंत इ. उपस्थित रहाणार आहेत.

माझ्या आई श्रीमती. उर्मिला इंगळे यांच्या या पूर्वी काव्यपुष्प कविता संग्रह, प्रती १५००, स्वागत मुल्य रामनाम, माझे वडील कै. उद्धवराव  इंगळे यांच्या हस्ते ५/५/२०१८ रोजी सातारा येथे प्रकाशन झाले.

चैतन्य चारोळी या पुज्य. गोंदवलेकर महाराजांच्या कृपाशीर्वादाने सुचलेल्या अध्यात्मिक चारोळ्यांनी गुंफलेल्या “सुर्यगंध प्रकाशन ने प्रकाशित केलेल्या संग्रहाचे प्रकाशन संमेलनाध्यक्ष या. श्रीपाल सबनीस यांच्या हस्ते भव्य दिव्य कार्यक्रमा द्वारे दि. २ जून २०१९ रोजी झाले.

चिरंजीवी चारोळी हा संग्रह भगद्भक्ति बलोपासना व स्वामीनिष्ठा या त्रिसूत्रीला लाभलेली प्रतिभा शक्तिची जोड या मूळे भक्ति रसाने ओतप्रोत भरलेला हा संग्रह केसरी नंदन बलभीम, हनुमान यांच्या भावभक्तिचे चरित्र गुणवर्णनाने वाचनिय ठरला आहे. यातील चारोळ्या श्रीसमर्थ रामदास स्वामी यांनी स्थापन केलेल्या ११ मारूतींचे सालंकृत दर्शन व पुज्य श्रीधर स्वामींनी सुंदर कांडातील केलेले श्रीमारूती माहात्म्य ही चारोळी रुपी फुले गुंफंण्याचे मौलिक कार्य माझ्या आईने केले आहे.

श्री समर्थ सेवा मंडळ सज्जनगड समिती तर्फे प्रतिवर्षी क्षेत्र चाफळ येथे श्रवणातल्या तिसऱ्या शनिवारी सामुदायिक हनुमान उपासना आयोजित केली जाते. त्यात महाराष्ट्रातील अनेक समर्थ भक्त येतात, त्यांना दिनांक २४/८/१९ रोजी प्रसाद म्हणून वाटप करता यावेत यासाठी अल्पवेळात लिहून लोकमंगल मुद्रणालय, सातारा यांनी अत्यल्प वेळात सुबक छापून दिल्याने ५०० प्रति चाफळ येथे एकावेळी प्रसाद म्हणून वाटल्या याचा आनंद आईला खुप झाला.

संग्रहांचे मुल्य “रामनाम” यासाठी कि माझी आई म्हणते वाचकाने फक्त एकदा हातात घेतले तरी त्याच्या मुखी रामनाम येईल व ते माझ्या श्री. ब्रम्हचैतन्य महाराजांनी उघडलेल्या ” राम रतन धन” या बॅंकेत जमा होईल, इति श्रीराम!!

©️®️ सौ. संगिता राम भिसे

दि : ३०/१२/१९

image_printPrint

Please share your Post !

Shares