हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 24 – आज  की नारी ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अतिसुन्दर  आलेख   “आज  की नारी ”। 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 24 ☆

☆ लेख – आज  की नारी ☆

कविवर जयशंकर प्रसाद की रचना है –

” नारी तुम केवल श्रद्धा हो

विश्वास रजत नग पग तल में,

पीयूष स्रोत सी बहा करो

जीवन के सुंदर समतल में।”

यूं तो सबके जीवन में कोई ना कोई कहानी अवश्य ही होती है। किसी की लंबी, किसी की छोटी  कोई रोचक, भाव प्रद, तो कोई हृदयस्पर्शी। कोई बहुत ही आक्रमक, तो कोई आकर्षण से परिपूर्ण। कोई ममता से सरोकार तो कोई हृदय विहीन। परंतु यह सब भावनाएं, कहानियाँ जिसके आसपास होती हैं वो है नारी।

परमात्मा ने हमको इस मानवीय काया के रूप में जो अनुपम उपहार दिया है। उसकी तुलना किसी भी अन्य अनुदान से कर पाना संभव नहीं है। वो जीवन जिसे प्राप्त करने के लिए देवी-देवता भी लालायित रहते हैं वह है मनुष्य जीवन। मनुष्य जीवन के रूप में मिले अवसर को यदि सौभाग्य का नाम दिया जाए तो उसे ही नारी कहा जाता है।

*यत्र नारी पूज्यंते रमंते तत्र देवता*

अर्थात जहां नारी (सृष्टि) की पूजा होती है। वहां देवता अपने आप निवास करते हैं। और नारी की गरिमा को आज सहज ही स्वीकारा जाता है। धरती माता से लेकर भारत माता, मां गंगा से लेकर मां गायत्री देवी तक नारी शक्ति का ही चित्रण और पूजन होता है। यदि कोई जीवन चाहता है और इस पृथ्वी पर उसे आना है तो बिना मां (नारी) के कृपा पात्र के बिना यह संभव नहीं हो सकता है।

नारी भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ है। अपने प्राणों कि न्योछावर कर उन्होंने संपूर्ण सृष्टि में अपना स्थान देवी के रूप में स्थापित कर लिया है। तभी शास्त्रों में पूजनीय है। इतिहास साक्षी है जब-जब घोर संकट का सामना करना पड़ा है, नारी शक्ति ही सामने आकर उनका संहार करती है।जब-जब उनकी परीक्षा लेनी चाही तब-तब उन्होंने पुरुष बल को ही अपना हथियार बना लिया। याद करिए माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने स्वयं ब्रह्मा  विष्णु और शिव जी आए। मां अनुसूया ने अपने पतिव्रत धर्म और अपने पति की ताकत का वास्ता देकर तीनों भगवान को बाल रूप में कर लिया था। और अपने धर्म का पालन किया था। नारी शक्ति संपूर्ण ब्रह्मांड को हिला सकती है। आज भारतीय समाज को ऐसे ही संकल्प की धनी नारी की आवश्यकता है। जिसके संकल्प बल से त्रिमूर्ति को झुकना पड़े।

नारी सृष्टि निर्माता की आदित्य रचना है। नारी के अभाव में सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह एक ऐसा छायादार वृक्ष है जिसकी छाया के अभाव में मनुष्य अपनी आशा- आकांक्षाओं के विषय में उदासीन ही रहेगा। प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके यहां संतान उत्पन्न हो। संतान के अभाव में परिवार अपूर्ण रहता है। जिस घर के आंगन में बच्चों की किलकारियां नहीं गूंजती, वह घर बिना सुगंधी के पुष्प के समान दिखाई देता है। यह संतान रूपी धन दो रूपों में प्राप्त होता है:-पुत्र  अथवा पुत्री। पहले हमेशा से देखा जाता रहा कि माता-पिता पुत्र की कामना करते थे। पर अब समय बदल गया है बेटा हो या बेटी माता पिता अपने बच्चे के लिए सुंदर स्वस्थ और स्वावलंबी जीवन की कामना करते हैं। पुराने समय से कुछ तो अंतर आ गया है। अब समाज में यह कहा जाने लगा कि “मेरी बेटी मेरा अभिमान” मेरा गर्व और क्यों ना हो वर्तमान स्वरूप में आज हम देख रहे हैं कि राजनीति के क्षेत्र में, शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में, समाज सेवा के क्षेत्र में, हवाई सेवा से लेकर रेल सेवा और अन्य उद्योग धंधों के विकास में भी नारी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। किसी ने सच ही कहा है :-

 “एक कदम जो मेरा बढाओगे

दस कदम स्वयं आगे बढ़ा लूंगी मैं,

प्रोत्साहन व सहयोग जो दोगे

अंतरिक्ष कर दिखा दूंगी मैं”

अक्सर हमें ज्ञान मिलता है कि दो रूपों को जाना जाता है। (1)आकृति (2)प्रकृति। आकृति को समझना बड़ा ही आसान है कि बाहरी वातावरण, एक रूप, रंग, बनावट जिस की संरचना हो, इसी को आकृति कहते हैं। और जब प्रकृति कहा जाता है तब इसकी आंतरिक रचना जिसमें सारा सृष्टि समाया हुआ है और इसी सृष्टि का नाम ही *नारी* है, जिसके लिए स्वयं ब्रह्मदेव ने भी कहे हैं:-

 “देख जिसकी शक्ति को।

भयभीत होता दुष्ट दल हो।।

नारी तुम ही कल।

आज और कल हो।।

संगठन की शक्ति।

विचारों का मंथन हो।।

नारी तुम ही इस सृष्टि में।

नव पल्लव हो।।”

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – सप्तम अध्याय (23) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

सप्तम अध्याय

ज्ञान विज्ञान योग

( अन्य देवताओं की उपासना का विषय )

 

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌।

देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ।।23।।

 

अल्प बुद्धि जन का रहा,अस्थिर सा विश्वास

देव भक्त पाते देव को मेरे , मेरे पास।।23।।

 

भावार्थ :  परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।।23।।

 

Verily the reward (fruit) that accrues to those men of small intelligence is finite. The worshippers of the god go to them, but my devotees come to me.।।23।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – शैली ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  शैली 

…हरेक की अपनी विशिष्ट शैली होती है। आपकी अपनी दृष्टि में आपकी शैली की कौन सी विशेषता उसे अन्य शैलियों से अलग करती है?

…यह शैली ज़िंदगी के मर्सिया नहीं पढ़ती बल्कि मौत के सोहर गाती है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(31.10.2013)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 21 – लाल बत्ती की इज्जत ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक कहानी “लाल बत्ती की इज्जत। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 21☆

 

☆ लघुकथा – लाल बत्ती की इज्जत  

 

“——- हलो…. बेटा तुम्हारे पापा अस्पताल में बहुत सीरियस हैं तुम्हें बहुत याद कर रहे हैं, उनका आखिरी समय चल रहा है। यहां मेरे सिवाय उनका कोई नहीं है। कब आओगे बेटा ?”

माँ चिल्लाती रही, बड़बड़ाती रही पर अमेरिका में नौकरी करने गए एकलौते बेटे को फुरसत नहीं मिली। बेटे के इंतजार में पिता की आंखें फटी रह गईं, सांस रुक गई, पर बेटे ने खोज खबर नहीं ली।

पिता को गए कई साल हो गये तो बेटे की पत्नी को लगा कि माँ भी अचानक चली गई तो मुंबई के मंहगे फ्लैट और नासिक की सौ एकड़ जमीन का क्या होगा…..?

मंहगे फ्लैट और मंहगी जमीन के लोभ में पति-पत्नी चिंतित रहने लगे।

एक दिन बेटा फ्लाइट से मुंबई पहुंचा। माँ को समझाया कि माँ क्यों न हम नासिक की सौ एकड़ जमीन और मुंबई का मंहगा फ्लैट बेच दें और फिर स्थाई रूप से तुम मेरे पास अमेरिका में रहो। तुम्हारी बहू दिनों रात तुम्हारी सेवा करेगी। बेटे की बातों में आकर माँ ने करोड़ों की जमीन और कई करोड़ का फ्लैट बेच दिया। बेटे ने सारा पैसा अपने विदेशी बैंक में जमा किया और माँ को लेकर एयरपोर्ट की कुर्सी में बैठ गया, माँ के साथ बढ़िया भोजन किया और थोड़ी देर बाद कोई बहाना बना कर कहीं चला गया माँ रास्ता देखती रही। पूरी रात जागती रही। वह नहीं आया, तब माँ हड़बड़ाहट में उस ओर भागी जिस ओर उसका बेटा यह कहकर गया था कि वह थोड़ी देर बाद आ जायेगा।

परेशान रोती हुई उसने सुरक्षा गार्ड से बेटे का हुलिया बताते हुए खोज खबर ली तो पता चला कि उसका बेटा रात की फ्लाइट से ही अमेरिका उड़ गया है। उसे विश्वास नहीं हुआ, वह सुरक्षा गार्ड को धक्का देने लगी…. पुलिस ने आकर उसे गिरफ्तार कर लिया। क्योंकि, वो लाल बत्ती के नियमों का उल्लंघन कर रही थी। जब लाल बत्ती जल रही हो तो लाल बत्ती की इज्जत करनी चाहिए।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण # 5 – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके सहयात्री  तथा गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा नर्मदा यात्रा संस्मरण उनके दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। आज के ही अंक में उनके संस्मरण की दूसरी कड़ी प्रकाशित की गई है। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इन पंक्तियों के लिखे जाते तक  यह यात्रा पूर्ण हो चुकी है। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण पर श्री सुरेश पटवा जी  के यात्रा संस्मरण की पांचवी एवं अंतिम कड़ी।  )  

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण # 5  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ झाँसी घाट से सतधारा घाट ☆
(104  किलोमीटर) 

नर्मदा अमरकण्टक से निकलकर डिंडोरी-मंडला से आगे बढ़कर पहाड़ों को छोड़कर दो पर्वत शृंखलाओं दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में कैमोर से आते विंध्य के पहाड़ों के समानांतर दस से बीस किलोमीटर की औसत दूरी बनाकर अरब सागर की तरफ़ कहीं उछलती-कूदती, कहीं गांभीर्यता लिए हुए, कहीं पसर के और कहीं-कहीं सिकुड़ कर बहती है। उसके अलौकिक सौंदर्य और आँचल में स्निग्ध जीवन के स्पंदन की अनुभूति के लिए पैदल यात्रा पर निकलना भाग्यशाली को नसीब होता है।

यह यात्रा वानप्रस्थ के द्वारा सभ्रांत मोह से मुक्ति का अभ्यास भी है। जिस नश्वर संसार को एक दिन अचानक या रोगग्रस्त होकर छोड़ना है क्यों न उस मोह को धीरे-धीरे प्रकृति के बीच छोड़ना सीख लें और नर्मदा के तटों पर बिखरे अद्भुत प्राकृतिक जीवन सौंदर्य का अवलोकन भी करें।

पीछे टाँगने वाले  हल्के बैग में एक जींस या पैंट के साथ फ़ुल बाहों की तीन शर्ट एक जोड़ी पजामा कुर्ता, एक शाल, तोलिया और अंडरवेयर, साबुन तेल रखकर कर चले। वैसे तो आश्रम और धर्मशालाओं में भोजन की व्यवस्था हो  जाती है फिर भी रास्ते में ज़रूरत के लिए समुचित मात्रा में खजूर, भूनी मूँगफली, भुना चना और ड्राई फ़्रूट, पानी की बोतल और एक स्टील लोटा के साथ एक छोटा चाक़ू भी रख उतर पड़े समर में।

कहीं कुछ न मिले तो परिक्रमा वासियों का मूलमंत्र “करतल भिक्षु-तरुतल वास” भी आज़माना जीवन का एक विलक्षण अनुभव रहा।

 

हम सभी परिक्रमा वासियों में जगमोहन अग्रवाल सबसे वरिष्ठ हैं, लेकिन वे सबसे ज़्यादा मज़बूती और जूझारूपन से यात्रा में भाग लेते हैं। उनके पैरों में तकलीफ़ है इसलिए घुटने ज़मीन पर टेककर पंद्रह किलो का भार खड़े हो पाते हैं। अन्य शारीरिक दिक़्क़तों के बावजूद वे निरंतर यात्रा करते रहे। उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि वे परेशानी में हैं, नर्मदा जी में उनकी उनकी आस्था प्रबल है। नरसिंहपुर जिले की गाड़रवाडा तहसील के कौंडिया ग्राम के मूल निवासी हैं। जहाँ कभी कौंड़िल्य ऋषि का आश्रम हुआ करता था। जीवंतता, जीवटता और जूझारूपन उनकी सबसे बड़ी पूँजी है।

नर्मदा परिक्रमा दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में से दुरुह यात्रा है। हिंदू हज़ारों सालों से इस यात्रा को करते आ रहे हैं। इस यात्रा के सामने डिस्कवरी चैनल की नक़ली साहसिक यात्राएँ कहीं नहीं लगतीं क्योंकि उनमें ड्रोन केमरा, सैटलायट इमेज, फ़ोटो ग्राफ़र दल और सपोर्ट के रूप में मेडिकल टीम वहाँ साथ चलते हैं, उनके पास बेहतरीन जीवन रक्षक दवाएँ और आकस्मिक जोखिम से निपटने के अस्त्र होते हैं।

नर्मदा यात्रा का कोई तैयार रास्ता नहीं होता क्योंकि प्रत्येक वर्ष नर्मदा के भीषण प्रवाह में सारे किनारे कट कर रास्तों को धो डालते हैं। नर्मदा तेज़ बहाव से कहीं किनारों को तोड़ डालती है, कहीं कँपा छोड़ जाती है, कहीं किसान कछारी खेतों को बखर कर पैदल चलना दूभर कर देते हैं, कहीं स्प्रिंकलर की सिंचाई के कारण कीचड़ से से सने खेतों में क़दम रखने से ऐडी तक पैर गंपते हैं, कहीं नुकीली धारदार पहाड़ी पर चलना ठीक वैसा ही है जैसे खड़ी दीवार पर छिपकली जैसे पैर जमाकर खिसकना, कहीं पहाड़ी नालों की गहराई को फिसल कर पार करना।

उस पर भोजन और ठहरने की व्यवस्था का कोई ठिकाना नहीं, ऐसी विषम परिस्थितियों में नौ दिनों में 104 किलोमीटर की पदयात्रा सारा अहंकार तोड़ कर रख देती है। इसके सामने यूथ होस्टल की ट्रैकिंग बच्चों का मन बहलाव है।

1,65,181 क़दम की यात्रा के दौरान जिन आश्रमों और उनके स्वामियों संचालकों के आश्रय और भोजन दिया वे साधुवाद के पात्र हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # दो ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आज से दस अंकों में आप तक उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # दो ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

हम श्रीधाम स्टेशन से बाहर आए और मुंशीलाल पाटकार  टिकट बुक करने बुकिंग आफिस चले गये, उन्हें अपनी पुत्री की सासू मां की त्रयोदशी में शामिल होने एक दिन के लिए आमला जाना था। हम बाहर आकर आटो में बैठे ही थे कि एक पैंट शर्ट पहने लगभग अधेड़ उम्र का पुरुष हमारे पास आया, उसने नमस्कार कर हाथ मिलाया और नर्मदे हर के उदघोष के साथ पूंछा कि परिक्रमा कहां से उठानी है। हमने बताया कि झांसी घाट खमरिया से उठायेंगे और हम बिना किसी धार्मिक कर्मकांड के नर्मदा यात्रा कतिपय सामाजिक सरोकारों की पूर्ति हेतु करते हैं। यह सुन वह कुछ पल बैठकर चला गया। बाद में हमें समझ में आया कि वह किसी स्थानीय पंडा का एजेंट रहा होगा और परिक्रमा के कर्मकांड करवाने के उद्देश्य से हमसे संपर्क कर रहा था। हम पांच आटो रिक्शा में सवार होकर कोई तीन बजे  अपने गंतव्य स्थल पहुंचे चाय पी, अगरबत्ती और नारियल लिया, तट पर गये।  नर्मदा पूजन की जिम्मेदारी अग्रवालजी ने उठाई, हम सबने मां नर्मदा को प्रणाम किया और तीरे-तीरे आगे बढ़ चले। रास्ते भर फसल बोने के लिए तैयार खेत तो कहीं मत्स्याखेट करते, सुर्ख काले रंग पर सुगठित शरीर धारी, बर्मन युवक दिखे।

साढ़े तीन बजे चले होंगे और लगभग छह बजे छह किलोमीटर की यात्रा कर बेलखेड़ी गांव के शिव मंदिर पहुंच गए। मंदिर पुराना है और लगता है गौंडकालीन है। अधेड़ रघुवीर सिंह लोधी इसकी देखभाल करते हैं। युवावस्था में उनकी बांह के उपर से ट्रेक्टर निकल गया था, फ्रैक्चर तो ठीक हो गये पर सारे दांत गिर गये। उन्होंने शिवमन्दिर के बरामदे में चटाई बिछा दी और हम लोगों ने अपना बिस्तर जमाया। भोजन बनाने वे गांव से एक दो लोगों को ले आये। अरहर की दाल, चावल और मोटे टिक्कड़ का भोजन किया। लकड़ी के चूल्हे पर पकी रोटियों का स्वाद अलग ही होता है।

भोजन कर विश्राम की तैयारी में थे ही कि गांव से आठ-दस लोग आ गये, गांधी चर्चा और महाभारत की कथाएं सुनाने का दायित्व सुरेश पटवा ने लिया, मैंने भी गांधीजी के दो चार संस्मरण सुनाये। बड़े दिनों बाद जमीन में सोये तो नींद न आई। सुबह सबेरे नर्मदा के पूर्वी तट से सूर्योदय देख मन आनंदित हो गया। चटक लाल रंग की अरुणिमा बिखेरते आदित्य की किरणों ने जब नर्मदा के आंचल को छुआ तो सम्पूर्ण जलराशि कंचन हो गई। मनोहर दृश्य था, अफसोस कि मोबाइल पास न था और फोटो न ले सका।

कंचनजंघा की प्रसिद्धि सुनी थी यह तो कंचन नीर  है। उधर शिवमन्दिर के गर्भगृह में शिव पिंडी के अलावा तीन मूर्तियां  हैं, सूर्य अपने सात घोड़ों के साथ  प्रतिमा में विराजित हैं, आदित्य की किरणें सबसे पहले इसी मूर्त्ति का चुंबन करती हैं। एक अन्य प्रतिमा मां सरस्वती की है तो तीसरी प्रतिमा में मकर वाहिनी नर्मदा के दर्शन होते हैं। कोई आठ बजे हमने शिव मंदिर को छोड़ा तो रघुवीर सिंह ने दिन भर रुकने का आग्रह किया पर दिन में रुकना कहां सम्भव है और हम उनके मुख से रमता जोगी बहता पानी जे रुकें तो गाद हो जायं लोकोक्ति सुनकर अगले ठौर की ओर निकल पड़े। 06.11.2019 की  भ्रमण कहानी यहीं समाप्त हो गई।

 

नर्मदे हर!

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #24 – जबाबदार कौन नेतृत्व ? या नीतियां ? ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “जबाबदार कौन नेतृत्व ? या नीतियां ?  ”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 24 ☆

☆ जबाबदार कौन नेतृत्व ? या नीतियां ?

कारपोरेट मैनेजर्स की पार्टीज में चलने वाला जसपाल भट्टी का लोकप्रिय व्यंग है, जिसमें वे कहते हैं कि किसी कंप,नी में सी एम डी के पद पर भारी भरकम पे पैकेट वाले व्यक्ति की जगह एक तोते को बैठा देना चाहिये, जो यह बोलता हो कि “मीटिंग कर लो”, “कमेटी बना दो” या  “जाँच करवा लो “. यह सही है कि सामूहिक जबाबदारी की मैनेजमेंट नीति के चलते शीर्ष स्तर पर इस तरह के निर्णय लिये जाते हैं, पर विचारणीय है कि  क्या कंपनी नेतृत्व से कंपनी की कार्यप्रणाली में वास्तव में कोई प्रभाव नही पड़ता ? भारतीय परिवेश में यदि शासकीय संस्थानो के शीर्ष नेतृत्व पर दृष्टि डालें तो हम पाते हैं कि नौकरी की उम्र के लगभग अंतिम पड़ाव पर, जब मुश्किल से एक या दो बरस की नौकरी ही शेष रहती है, तब व्यक्ति संस्थान के शीर्ष पद पर पहुंच पाता है. रिटायरमेंट के निकट इस उम्र के टाप मैनेजमेंट की मनोदशा यह होती है कि किसी तरह उसका कार्यकाल अच्छी तरह निकल जाये, कुछ लोग अपने निहित हितो के लिये पद का दोहन करने की कार्य प्रणाली अपनाते हैं, कुछ शांति से जैसा चल रहा है वैसा चलने दिया जावे और अपनी पेंशन पक्की रखी जावे की नीति पर चलते हैं. वे नवाचार को अपनाकर विवादास्पद बनने से बचते हैं. कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो मनमानी करने पर उतर आते हैं, उनकी सोच यह होती है कि कोई उनका क्या कर लेगा ?  उच्च पदों पर आसीन ऐसे लोग अपनी सुरक्षा के लिये राजनैतिक संरक्षण ले लेते हैं, और यहीं से दबाव में गलत निर्णय लेने का सिलसिला चल पड़ता है. भ्रष्टाचार के किस्से उपजते हैं. जो भी हो हर हालत में नुकसान तो संस्थान का ही होता है.

इन स्थितियों से बचने के लिये सरकार की दवा स्वरूप सरकारी व अर्धसरकारी संस्थानो का नेतृत्व आई ए एस अधिकारियों को सौंप दिया जाता है. संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों में यह भावना होती है कि ये नया लड़का हमें भला क्या सिखायेगा ? युवा आई ए एस अधिकारी को निश्चित ही संस्थान से कोई भावनात्मक लगाव नही होता, वह अपने कार्यकाल में कुछ करिश्मा कर अपना स्वयं का नाम कमाना  चाहता है, जिससे जल्दी ही उसे कही और बेहतर पदांकन मिल सके. जहां तक भ्रष्टाचार के नियंत्रण का प्रश्न है, स्वयं रेवेन्यू डिपार्टमेंट जो आई ए एस अधिकारियों का मूल विभाग है, पटवारी से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा है, फिर भला आई ए एस अधिकारियों के नेतृत्व से किसी संस्थान में भ्रष्टाचार नियंत्रण कैसे संभव है ? आई ए एस अधिकारियों को प्रदत्त असाधारण अधिकारों, उनके लंबे विविध पदों पर संभावित सेवाकाल के कारण, संस्थान के आम कर्मचारियों में भय का वातावरण व्याप्त हो जाता है. मसूरी के आई ए एस अधिकारियों के ट्रेनिंग स्कूल की, अंग्रेजो के समय की एक चर्चित ट्रेनिंग यह है कि एक कौए को मारकर टांग दो, बाकी स्वयं ही डर जायेंगे, मैने अनेक बेबस कर्मचारियों को इसी नीति के चलते बेवजह प्रताड़ित होते हुये देखा है, जिन्हें बाद में न्यायालयों से मिली विजय इस बात की सूचक है कि भावावेश में शीर्ष नेतृत्व ने गलत निर्णय ही लिया था. मजेदार बात है कि हमारे वर्तमान सिस्टम में शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिये गये गलत निर्णयो हेतु उन्हे किसी तरह की कोई सजा का प्रवधान ही नही है. ज्यादा से ज्यादा उन्हें उस पद से हटा कर एक नया वैसा ही पद किसी और संस्थान में दे दिया जाता है. इसके चलते अधिकांश आई ए एस अधिकारियों की अराजकता सर्वविदित है. सरकारी संस्थानो के सर्वोच्च पदो पर आसीन लोगो का कहना यह होता है कि उनके जिम्में तो केवल इम्प्लीमेंटेशन का काम है नीतिगत फैसले तो मंत्री जी लेते हैं, इसलिये वे कोई रचनात्मक परिवर्तन नही ला सकते.

कार्पोरेट जगत के निजी संस्थानो की बात करें तो हम पाते हैं कि मध्यम श्रेणी के संस्थानो में मालिक का एकाधिकार व वन मैन शो हावी है, पढ़े लिखे टाप मैनेजर भी मालिक या उसके बेटे की चाटुकारिता में निरत देखे जाते हैं. एम एन सी अपनी बड़ी साइज के कारण कठनाई में हैं. शीर्ष नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय बैठकों, आधुनिकीकरण, नवीनतम विज्ञापन, संस्थान को प्रायोजक बनाने, शासकीय नीतियों में सेध लगाकर लाभ उठाने में ही ज्यादा व्यस्त दिखता है. वर्तमान युग में किसी संस्थान की छबि बनाने, बिगाड़ने में मीडीया का रोल बहुत महत्वपूर्ण है, हमने देखा है कि रेल मंत्रालय में लालू यादव ने अपने समय में खूब नाम कमाया, कम से कम मीडिया में उनकी छबि एक नवाचारी मंत्री की रही. आई सी आई सी आई के शीर्ष नेतृत्व में परिवर्तन से उस संस्थान के दिन बदलते भी हमने देखा है. शीर्ष नेतृत्व हेतु आई आई एम जैसे संस्थानो में जब कैम्पस सेलेक्शन होते हैं तो जिस भारी भरकम पैकेज के चर्चे होते हैं वह इस बात का द्योतक है कि शीर्ष नेतृत्व कितना महत्वपूर्ण है.  किसी संस्थान में काम करने वाले लोग तथा संस्थान की परम्परागत कार्य प्रणाली भी उस संस्थान के सुचारु संचालन व प्रगति के लिये बराबरी से जवाबदार होते हैं. कर्मचारियों के लिये पुरस्कार, सम्मान की नीतियां उनका उत्साहवर्धन करती हैं. कर्मचारियों की आर्थिक व ईगो नीड्स की प्रतिपूर्ती औद्योगिक शांति के लिये बेहद जरूरी है, नेतृत्व इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है.

राजीव दीक्षित  भारतीय सोच के एक सुप्रसिद्ध विचारक हैं, व्यवस्था सुधारने के प्रसंग में वे कहते हैं कि “यदि कार खराब है तो उसमें किसी भी ड्राइवर को बैठा दिया जाये, कार तभी चलती है जब उसे  धक्के लगाये जावें.”  प्रश्न उठता है कि किसी संस्थान की प्रगति के लिये, उसके सुचारु संचालन के लिये सिस्टम कितना जबाबदार है? हमने देखा है कि विगत अनेक चुनावों में पक्ष विपक्ष की अनेक सरकारें बनी पर आम जनता की जिंदगी में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नही आ सके. लोग कहने लगे कि सांपनाथ के भाई नागनाथ चुन लिये गये. कुछ विचारक  भ्रष्टाचार जैसी समस्याओ को  लोकतंत्र की विवशता बताने लगे हैं, कुछ इसे वैश्विक सामाजिक समस्या बताते हैं. कुछ इसे लोगो के नैतिक पतन से जोड़ते हैं. आम लोगो ने तो भ्रष्टाचार के सामने घुटने टेककर इसे स्वीकार  ही कर लिया है, अब चर्चा इस बात पर नही होती कि किसने भ्रष्ट तरीको से गलत पैसा ले लिया, चर्चा यह होती है कि चलो इस इंसेटिव के जरिये काम तो सुगमता से हो गया. निजी संस्थानों में तो भ्रष्टाचार की एकांउटिग के लिये अलग से सत्कार राशि, भोज राशि, गिफ्ट व्यय आदि के नये नये शीर्ष तय कर दिये गये हैं. सेना तक में भ्रष्टाचार के उदाहरण देखने को मिल रहे हैं. क्या इस तरह की नीति स्वयं संस्थान और सबसे बढ़कर देश की प्रगति हेतु समुचित है ?

विकास में विचार एवं नीति का महत्व सर्वविदित है, इस सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को हमने जनप्रतिनिधियों को सौंप रखा है. एक ज्वलंत समस्या बिजली की है इसे ही लें, आज सारा देश बिजली की कमी से जूझ रहा है, परोक्ष रूप से इससे देश की सर्वांगीण प्रगति बाधित हुई है. बिजली, रेल की ही तरह राष्ट्रव्यापी सेवा व आवश्यकता है बल्कि रेल से कहीं बढ़कर है, फिर क्यों उसे टुकड़े टुकड़े में अलग अलग बोर्ड, कंपनियों के मकड़ जाल में उलझाकर रखा गया है, क्यों राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय विद्युत सेवा जैसी कोई व्यवस्था अब तक नही बनाई गई ? समय से भावी आवश्यकताओ का सही पूर्वानुमान लगाकर क्यों नये बिजली घर नही बनाये गये ? इसका कारण बिजली व्यवस्था का खण्ड खण्ड होना ही है, जल विद्युत निगम अलग है, तापबिजली निगम अलग, परमाणु बिजली अलग, तो वैकल्पिक उर्जा उत्पादन अलग हाथों में है, उच्चदाब वितरण, निम्नदाब वितरण अलग हाथों में है. एक ही देश में हर राज्य में बिजली दरों व बिजली प्रदाय की  स्थितयों में व्यापक विषमता है. केंद्रीय स्तर पर  राष्ट्रीय सुरक्षा व आतंकी गतिविधियों के समन्वय में जिस तरह की कमियां उजागर हुई हैं ठीक उसी तरह बिजली के मामले में भी  केंद्रीय समन्वय का सर्वथा अभाव है. जिसका खामियाजा हम सब भोग रहे हैं. नियमों का परिपालन केवल अपने संस्थान के हित में किये जाने की परंपरा गलत है. यदि शरीर के सभी हिस्से परस्पर सही समन्वय से कार्य न करे तो हम नही चल सकते, विभिन्न विभागों की परस्पर राजस्व, भूमि या अन्य लड़ाई के कितने ही प्रकरण न्यायालयों में हैं, जबकि यह एक जेब से दूसरे में रुपया रखने जैसा ही है. इस जतन में कितनी सरकारी उर्जा नष्ट हो रही है, ये तथ्य विचारणीय है. पर्यावरण विभाग के शीर्ष नेतृत्व के रूपमें टी एन शेषन जैसे अधिकारियों ने पर्यावरण की कथित रक्षा के लिये तत्काकलीन पर्यावरणीय नीतियों की आड़ में बोधघाट परियोजना जैसी जल विद्युत उत्पादन परियोजनाओ को तब अनुमति नही दी, निश्चित ही इससे उन्होने स्वयं अपना नाम तो कमा लिया पर इससे बिजली की कमी का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ वह अब तक थमा नही है. बस्तर के जंगल सुदूर औद्योगिक महानगरों का प्रदूषण किस स्तर तक दूर कर सकते हैं यह अध्ययन का विषय हो सकता है, पर हां यह स्पष्ट दिख रहा है कि आज विकास की किरणें न पहुंच पाने के कारण ये जंगल नक्सली गतिविधियो का केंद्र बन चुके हैं. आम आदमी भी सहज ही समझ सकता है कि प्रत्येक क्षेत्र का संतुलित, विकास होना चाहिये. पर हमारी नीतियां यह नही समझ पातीं.  मुम्बई जैसे नगरो में जमीन के भाव आसमान को बेध रहे हैं. प्रदूषण की समस्या, यातायात का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. आज देश में जल स्त्रोतो के निकट नये औद्योगिक नगर बसाये जाने की जरूरत है, पर अभी इस पर कोई काम नही हो रहा !

आवश्यकता है कि कार्पोरेट जगत, व सरकारी संस्थान अपनी सोशल रिस्पांस्बिलिटि समझें व देश के सर्वांगीण हित में नीतियां बनाने व उनके इम्प्लीमेंटेशन में शीर्ष नेतृत्व राजनेताओ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी भूमिका निर्धारित करें, देश के विभिन्न संस्थानों की प्रगति देश की प्रगति की इकाई है.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 23 – कॉपी ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से एक भावप्रवण कविता  – “कॉपी। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 23☆ 

 

 ☆ कॉपी ☆

 

कॉपी मुक्त शिक्षणाची

आज मांडली से थट्टा ।

पेपर फुटीला ऊधान

लावी गुणवत्तेला बट्टा।

 

गरिबाचं पोरं  वेडं

दिनरात अभ्यासानं।

ऐनवेळी रोवी झेंडा

गठ्ठेवाला धनवान ।

 

सार्‍या शिक्षणाचा सार

गुण   सांगती शंभर।

चाकरीत  बिरबल

सत्ताधारी अकबर।

 

कॉपी पुरता अभ्यास

चार दिवसाचे सत्र।

ठरविते गुणवत्ता

गुणहीन  गुणपत्र।

 

उन्नतीस खीळ घाली

कॉपी नामक वळंबा।

नाणे पारखावे जसे

राजे शिवाजी नि संभा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – सप्तम अध्याय (22) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

सप्तम अध्याय

ज्ञान विज्ञान योग

( अन्य देवताओं की उपासना का विषय )

 

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।

लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्‌।।22।।

 

उस श्रद्धा से युक्त हो कर सब भेद समाप्त

करता मुझसे ही सकल कामनाओं को प्राप्त।।22।।

 

भावार्थ : वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को निःसंदेह प्राप्त करता है।।22।।

 

Endowed with that faith, he engages in the worship of that (form), and from it he obtains his desire, these being verily ordained by Me (alone).।।22।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिंदी साहित्य – कविता / Poetry – ☆ She Walks in Beauty / चलती फिरती सौंदर्य प्रतिमा ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

सुप्रसिद्ध कवि लार्ड बायरन की कविता  She Walks in Beauty / चलती फिरती सौंदर्य प्रतिमा  का कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  द्वारा अनुवाद एक संयोग है।

इस सन्दर्भ में हम आपसे एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा करना चाहेंगे। डॉ विजय कुमार मल्होत्रा जी (पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय,भारत सरकार) को इसी वर्ष जून माह में  यूनाइटेड किंगडम  के प्रसिद्ध शहर  नॉटिंघम  जाने का अवसर मिला। प्रवास के दौरान उन्हें हिन्दी कवयित्री और काव्यरंग की अध्यक्षा श्रीमति जय वर्मा जी ने अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन की विरासत से भी परिचित कराया. रॉबिनहुड और लॉर्ड बायरन के नाम से प्रसिद्ध इस शहर में महात्मा गाँधी भी कुछ समय तक रुके थे. जहाँ बायरन ने  Don Juan जैसी कविताएँ लिखीं, वहीं  She Walks in Beauty जैसी प्रेम और प्रकृति की मिली-जुली कल्पनाओं पर आधारित कविताएँ भी लिखीं.

डॉ विजय कुमार मल्होत्रा जी के ही शब्दों में “कालजयी रचनाओँ को हिंदी-अंग्रेज़ी में अनूदित करने का बीड़ा उठाने वाले मेरे मित्र कैप्टन प्रवीण रघुवंशी ने “चलती-फिरती सौंदर्य प्रतिमा” शीर्षक से इसका हिंदी में अनुवाद भी कर दिया. मैंने पावर-पॉइंट (PPT) के माध्यम से दी गई अपनी प्रस्तुति में इस कविता को मूल अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी प्रतिभागियों को सुनाया. सभी ने इसके हिंदी अनुवाद की भूरि-भूरि प्रशंसा की.”

यह अनुवाद इंग्लैंड में हिन्दी प्रोफेसरों को बहुत पसंद आया था। उन्होने कई देशों में इसका अपने भाषणों में उपयोग भी किया है जिसका सबसे सहृदय प्रतिसाद प्राप्त हुआ।

आइए…हम लोग भी इस कविता का मूल अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी रसास्वादन करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से इसके हिंदी अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी  को परिचित कराएँ.   

 

Original English Poem By Lord Byron

☆ She Walks in Beauty

She walks in beauty, like the night

Of cloudless climes and starry skies;

And all that’s best of dark and bright

Meet in her aspect and her eyes;

Thus mellowed to that tender light

Which heaven to gaudy day denies.

 

One shade the more, one ray the less,

Had half impaired the nameless grace

Which waves in every raven tress,

Or softly lightens o’er her face;

Where thoughts serenely sweet express,

How pure, how dear their dwelling-place.

 

And on that cheek, and o’er that brow,

So soft, so calm, yet eloquent,

The smiles that win, the tints that glow,

But tell of days in goodness spent,

A mind at peace with all below,

A heart whose love is innocent!

 – Lord Byron

 

लार्ड बायरन की मूल कविता का कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा हिंदी अनुवाद  

☆ चलती-फिरती सौंदर्य प्रतिमा ☆

रात्रि की भाँति, वो  सौन्दर्य-प्रतिमा,

 बादलों से विहीन, तारों भरी

रात्रि में

   अंधकार और प्रकाश की

अप्रतिम छटा लिये

चहलकदमी करती रही…

 

आकर्षक डील-डौल, सोहनी आँखे

भीनी-भीनी चाँदनी में पिघलती हुई

जो दिन के उजाले में कदापि

ईश्वर प्रदत्त भी संभव नहीं,

ऐसी लावण्यपूर्ण अनामिका!

 

एक अतिशय रंगीन छटा,

एक और वांछित किरण,

लहराती स्याह वेणियां

अर्ध-प्रच्छादित मुखाकृति

को और भी निखारती हुई…

जहाँ विचार मात्र ही

निरन्तर मधु-सुधा टपकाते…

कितना पवित्र, कितना प्यारा

उसका संश्रय…!

 

दैवीय कपोलों, के मध्यास्थित,

उन वक्र भृकुटियों  में

वो इतनी निर्मल, इतनी शांत,

फिर भी नितांत चंचल

विजयी मुस्कान लिए!

 

वो दैदीप्यमान आभा,

सौम्यता में व्यतीत क्षणों को

अभिव्यक्त करते हुए

एक शांतचित्त मन

एक निष्कपट प्रेम परितृप्त

वो कोमल हृदय धारिणी…!

 

–  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, पुणे

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