योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Buddha: Quotes ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

 

☆ Buddha: Quotes

THE MIND, WHEN DEVELOPED AND CULTIVATED, BRINGS HAPPINESS.

 

Video Link : Buddha Quotes

 

“If with an impure mind you speak or act, then suffering flows you as the cartwheel follows the foot of the draft animal.”

“Burning now, burning hereafter, the wrongdoer suffers doubly… Happy now, happy hereafter, the virtuous person doubly rejoices.”

“You have to do your own work, those who have reached the goal will only show the way.”

“Abstain from all unwholesome deeds, perform wholesome ones, purify your mind. This is the teaching of enlightened persons.”

“If one man conquer in battle a thousand times thousand man, and if another conquer himself, he is the greatest of conquerors.”

“As rain breaks through an ill-thatched house, passion will break through an unreflecting mind.”

“To support mother and father, to cherish wife and children and to be engaged in peaceful occupation – this is the greatest blessing.”

“One by one, little by little, moment by moment, a wise man should remove his own impurities, as a smith removes his dross from silver.”

“Monks, I know not of any other single thing that brings such bliss as the mind that is tamed, controlled, guarded and restrained. Such a mind indeed brings great bliss.”

“The mind, when developed and cultivated, brings happiness.” – Buddha।

 

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings. Email: [email protected]

 

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (4) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

अर्जुन उवाच

अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः ।

कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।।4।।

अर्जुन ने कहा-

जन्म आपका अभी बाद का विवस्वान थे पहले के

तो फिर कैसे समझूँ बाते कही आपने ये उनसे।।4।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अर्वाचीन-अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात कल्प के आदि में हो चुका था। तब मैं इस बात को कैसे समूझँ कि आप ही ने कल्प के आदि में सूर्य से यह योग कहा था?॥4॥

 

Later on was Thy birth, and prior to it was the birth of Vivasvan (the Sun); how am I to understand that Thou didst teach this Yoga in the beginning? ।।4।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ घर ☆ – सुश्री रक्षा गीता

सुश्री रक्षा गीता 

 

(सुश्री रक्षा गीता जी का e-abhivyakti में स्वागत है।  आपने हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर किया है एवं वर्तमान में कालिंदी महाविद्यालय में तदर्थ प्रवक्ता हैं । आज  प्रस्तुत है उनकी कविता  “घर”।)

संक्षिप्त साहित्यिक परिचय 

  • एम फिल हिंदी- ‘कमलेश्वर के लघु उपन्यासों का शिल्प विधान
  • पीएचडी-‘धर्मवीर भारती के साहित्य में परिवेश बोध
  • धर्मवीर भारती का गद्य साहित्य’ नामक पुस्तक प्रकाशित

 

☆ घर

 

संबंधों में जब “किंतु-परंतु”

‘घर कर’ जाते हैं’

स्नेह के पंछी

कूच कर जाते हैं

छोड़ जाते हैं-

भद्दे निशान बीट के,

असहनीय दुर्गंध,

बिखरे तिनके।

उजड़े घौंसलों में

पंछी बसेरा बसाते नहीं ,

खंडहरों में “घर”

बसा करते नहीं,

विश्वास का मीठा फल

चखा भी ना गया जो पहले ,

सड़ चुका है आज ।

फेंकना ही लाजमी है ।

यादों के जख्म भरते हैं

समय के साथ हौले-हौले

काल-स्थान की दूरी ने

अचानक नहीं

पर नाप लिया ‘वो’ एहसास

जिसे संग रहकर

छूना भी संभव

जाने क्यों ना हो पाया

बहुत करीब से देखने पर

अक्सर चीजें स्पष्ट दिखती है उचित दूरी जरूरी होती है

‘स्पष्टता’ के लिए

दूर रहकर पढ़ सकते हैं

इक दूजे का मन

साफ- साफ

समय निकलने के बाद

व्यर्थ न जाए पढ़ना

कुछ कदम संग-संग बढ़े

कुछ हम बोले

कुछ तुम सुनो

कुछ तेरा हम सुने

समय रहते मिटा ले दूरियां

यही बेहतर है

दोनों के लिए ताकि

इक “घर” बने

 

© रक्षा गीता ✍️

दिल्ली

 

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – #3 ☆ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक हमारी पत्नी ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य”  में हम श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्य आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक हमारी पत्नी”

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – #3 ☆ 

 

☆ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक हमारी पत्नी☆

 

उनकी सब सुनना पड़ती है अपनी सुना नही सकते, ये बात रेडियो और बीबी दोनो पर लागू होती है।रेडियो को तो बटन से बंद भी किया जा सकता है पर बीबी को तो बंद तक नही किया जा सकता।मेरी समझ में भारतीय पत्नी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा प्रतीक है।

क्रास ब्रीड का एक बुलडाग सड़क पर आ गया, उससे सड़क के  देशी कुत्तो ने पूछा, भाई आपके वहाँ बंगले में कोई कमी है जो आप यहाँ आ गये ? उसने कहा,  वहाँ का रहन सहन, वातावरण, खान पान, जीवन स्तर सब कुछ बढ़िया है, लेकिन बिना वजह भौकने की जैसी आजादी यहाँ है ऐसी वहाँ कहाँ ?  अभिव्यक्ति की आज़ादी जिंदाबाद।

अस्सी के दशक के पूर्वार्ध में,जब हम कुछ अभिव्यक्त करने लायक हुये, हाईस्कूल में थे।तब एक फिल्म आई थी “कसौटी” जिसका एक गाना बड़ा चल निकला था, गाना क्या था संवाद ही था।.. हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता है एक मेमसाब है, साथ में साब भी है मेमसाब सुन्दर-सुन्दर है, साब भी खूबसूरत है दोनों पास-पास है, बातें खास-खास है दुनिया चाहे कुछ भी बोले, बोले हम कुछ नहीं बोलेगा हम बोलेगा तो…हमरा एक पड़ोसी है, नाम जिसका जोशी है,वो पास हमरे आता है, और हमको ये समझाता है जब दो जवाँ दिल मिल जाएँगे, तब कुछ न कुछ तो होगा

जब दो बादल टकराएंगे, तब कुछ न कुछ तो होगा दो से चार हो सकते है, चार से आठ हो सकते हैं, आठ से साठ हो सकते हैं जो करता है पाता है, अरे अपने बाप का क्या जाता है?

जोशी पड़ोसी कुछ भी बोले,  हम तो कुछ नहीं बोलेगा, हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है।

अभिव्यक्ति की आजादी और उस पर रोक लगाने की कोशिशो पर यह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति थी।यह गाना हिट ही हुआ था कि आ गया था १९७५ का जून और देश ने देखा आपातकाल, मुंह में पट्टी बांधे सारा देश समय पर हाँका जाने लगा।रचनाकारो, विशेष रूप से व्यंगकारो पर उनकी कलम पर जंजीरें कसी जाने लगीं। रेडियो बी बी सी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया।मैं  इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहा था,उन दिनो हमने जंगल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा लगाई, स्थानीय समाचारो के साइक्लोस्टाइल्ड पत्रक बांटे।सूचना की ऐसी  प्रसारण विधा की साक्षी बनी थी हमारी पीढ़ी। “अमन बेच देंगे,कफ़न बेच देंगे, जमीं बेच देंगे, गगन बेच देंगे कलम के सिपाही अगर सो गये तो, वतन के मसीहा,वतन बेच देंगे” ये पंक्तियां खूब चलीं तब।खैर एक वह दौर था जब विशेष रूप से राष्ट्र वादियो पर, दक्षिण पंथी कलम पर रोक लगाने की कोशिशें थीं।

अब पलड़ा पलट सा गया है।आज  देश के खिलाफ बोलने वालो पर उंगली उठा दो तो उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन कहा जाने का फैशन चल निकला है।राजनैतिक दलो के  स्वार्थ तो समझ आते हैं पर विश्वविद्यालयो, और कालेजो में भी पाश्चात्य धुन के साथ मिलाकर राग अभिव्यक्ति गाया जाने लगा है  इस मिक्सिंग से जो सुर निकल रहे हैं उनसे देश के धुर्र विरोधियो, और पाकिस्तान को बैठे बिठाये मुफ्त में  मजा आ रहा है।दिग्भ्रमित युवा इसे समझ नही पा रहे हैं।

गांवो में बसे हमारे भारत पर दिल्ली के किसी टी वी चैनल  में हुई किसी छोटी बड़ी बहस से या बहकावे मे आकर  किसी कालेज के सौ दो सौ युवाओ की  नारेबाजी करने से कोई अंतर नही पड़ेगा।अभिव्यक्ति का अधिकार प्रकृति प्रदत्त है, उसका हनन करके किसी के मुंह में कोई पट्टी नही चिपकाना चाहता  पर अभिव्यक्ति के सही उपयोग के लिये युवाओ को दिशा दिखाना गलत नही है, और उसके लिये हमें बोलते रहना होगा फिर चाहे जोशी पड़ोसी कुछ बोले या नानी, सबको अनसुना करके  सही आवाज सुनानी ही होगी कोई सुनना चाहे या नही।शायद यही वर्तमान स्थितियो में  अभिव्यक्ति के सही मायने होंगे। हर गृहस्थ जानता है कि  पत्नी की बड़ बड़  लगने वाली अभिव्यक्ति परिवार के और घर के हित के लिये ही होती हैं।बीबी की मुखर अभिव्यक्ति से ही बच्चे सही दिशा में बढ़ते हैं और पति समय पर घर लौट आता है,  तो अभिव्यक्ति की प्रतीक पत्नी को नमन कीजीये और देस हित में जो भी हो उसे अभिव्यक्त करने में संकोच न कीजीये।कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना, छोड़ो बेकार की बातो में कही बीत न जाये रैना ! टी वी पर तो प्रवक्ता कुछ न कुछ कहेंगे ही उनका काम ही है कहना।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #5 ☆ जनरेशन गेप ☆ – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। श्री ओमप्रकाश  जी  के साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  शिक्षाप्रद लघुकथा “जनरेशन गेप ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #5 ☆

 

☆ जनरेशन गेप  ☆

 

पापाजी  उसे समझा रहे थे ,” सीमा बेटी ! अब तुम्हारी सगाई हो गई है . अब इस तरह यार दोस्तों के साथ घूमने जाना, सिनेमा देखना, शापिंग करना ठीक नहीं है ?….” पापाजी उसे आगे कुछ समझते कि सीमा ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा , ” पापाजी ! आप भी ना , १७ वी सदी की बातें कर रहे है.  हम नई पीढ़ी के लोग हैं. ऐसी पुरानी बातों में विश्वास नहीं करते हैं .”

अभी सीमा अपने पिताजी को जनरेशन गेप पर कुछ और लेक्चर सुनाती कि उस के मोबाइल के वाट्सएप्प पर एक सन्देश आ गया. जिसे पढ़- देख कर सीमा ‘धम्म’ से जमीन पर बैठ गई .

“क्या हुआ ?” सीमा के चेहर पर उड़ती हवाईया देख कर पापाजी ने पूछा तो सीमा ने अपना मोबाइल आगे कर दिया. जिस में एक फोटो डला हुआ था और  नीचे लिखा था , ” सीमा ! मैं इतना भी आधुनिक नहीं हुआ हूँ कि अपनी होने वाली बीवी को किसी और के साथ सिनेमा देखते हुए बर्दाश्त कर जाऊ. इसलिए मैं तुम्हारे साथ मेरी सगाई तोड़ रह हूँ.”

यह पढ़- देख कर पापाजी के मुंह से निकल गया , “बेटी ! यह कौन सा जनरेशन गेप है ? मैं समझ नहीं पाया ?”

शायद  सीमा भी इसे समझ नहीं पाई थी.  इसलिए चुपचाप रोने लगी .

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 5 – आभाळ दाटून आलं की..! ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। अब आप श्री सुजित जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत  प्रत्येक गुरुवार को  पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता आभाळ दाटून आलं की..!)

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #5 ☆ 

 

☆ आभाळ दाटून आलं की..!☆ 

 

आभाळ दाटून आलं की भिती वाटते

येणा-या पावसाची आणि

येणा-या आठवणींची सुध्दा

डोळ्यासमोर सहज तरळून जातं

गावाकडचं घर..,गावाकडचं आंगण

मनामधल्या सा-याच जखमा

पावसाच्या प्रत्येक थेंबाबरोबर

ओल धरू लागतात सलू लागतात…

पण मी मात्र संयमानं त्या

जखमांवर फुंकर मारत राहतो

अगदी..पाऊस थांबेपर्यंत

पाऊस पडत असताना

घरात जायची भितीच वाटते

कारण ह्या पावसाने

गावच्या घरासारखं हे ही घर

माझ्या अंगावर कोसळेल की काय

ह्याची भिती वाटते

आणि माझ्या मायेसारखाच

मीही ह्या घराच्या ढीगा-यात एकाएकी

दिसेनासा होईल की काय ह्याचीही

कारण..घर जरी बदललं असलं तरी

अजून आभाळ तेच आहे

आणि कदाचित..पाऊस ही..,

आभाळ दाटून आलं की

भिती वाटते येणा-या पावसाची

आणि येणा-या आठवणींची सुध्दा..

 

……©सुजित कदम

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ How to be Healthy, Happy and Wise ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ How to be Healthy, Happy and Wise

A Pathway to Authentic Happiness, Well-being and a Meaningful Life

Happiness, say the positive psychologists, is the experience of joy, contentment, or positive well-being, combined with a sense that life is good, meaningful, and worthwhile.

Twenty-three hundred years ago, Aristotle concluded that, more than anything else, men and women seek happiness. It is the meaning and the purpose of life, the whole aim and end of human existence. Different men seek after happiness in different ways and by different means, and so make for themselves different modes of life.

What is the pathway to authentic happiness, well-being and a meaningful life? How can we equip ourselves with sustainable scientific tools to cultivate a happy and fulfilling life with a greater sense of well-being? This article attempts to answer these questions.

Taking care of body, mind and spirit is of utmost importance. It’s like a tripod. All limbs must be equally strong for balance and harmony. We need to transform the entire experience of life by taking care of all the relevant dimensions – physiological, psychological and spiritual.

After years of deep study and practical sessions with people from all walks of life, a holistic approach has emerged that blends carefully the best of positive psychology, meditation, yoga, laughter yoga, and spirituality.
Positive psychology is the science of happiness. It provides authentic understanding of happiness and well-being and dispels myths and wrong notions about happiness. It is a treasure trove of evidence-based happiness-increasing strategies from which one may choose activities suitable for oneself.

Meditation is an invaluable tool for calming, concentration and purification of the mind. It clears clouds and lets you seek wisdom. According to Matthieu Ricard, happiest monk on this planet, “Meditation is a practice that makes it possible to cultivate and develop certain basic positive human qualities in the same way as other forms of training make it possible to play a musical instrument or acquire any other skill.”

Yoga can do wonders for your health by stimulating endocrinal systems and taking care of neuro-muscular systems. It is suitable for modern day lifestyle diseases and brings about body-mind union. If you don’t have enough time, even then surya namaskara can be easily integrated into your daily life as it requires only five to fifteen minutes’ practice daily to obtain beneficial results remarkably quickly.

Laughter yoga combines laughter exercises with yogic breathing. It is instrumental in oxygenation of the body, strengthening immune system, and stress relief as feel good hormones known as endorphins are generated during the process. Just ten minutes of gentle laughter in the morning can change the complexion of your day.

Spirituality provides right view and right understanding of life. It gives spiritual insight into right speech, right action and right livelihood. Inner wisdom steers us in the right direction. If you desire everlasting health and happiness, cultivate wisdom.

All the five components – positive psychology, meditation, yoga, laughter yoga and spirituality – put together, enable complete transformation of the entire experience of life.

The benefits include health, happiness and peace for individuals; stress relief, team building, higher productivity, leadership and positivity at workplaces; health, bonding and integration in communities; and creativity, better concentration, emotional intelligence, spiritual growth, strong immune system and all-round personality development of youngsters.

In conclusion, may we say that the practice of yoga, meditation and laughter yoga along with fundamental understanding of positive psychology and spirituality can lead you to lasting happiness and peace.

 

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills
LifeSkills is a pathway to authentic happiness, well-being and a meaningful life!

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।

भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌ ।।3।।

वही पुराना योग आज है मैने तुझको बतलाया

क्योंकि तू मेरा परम मित्र है और ये मेरा मनभाया।।3।।

भावार्थ :  तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात गुप्त रखने योग्य विषय है।।3।।

 

That same ancient Yoga has been today taught to thee by Me, for, thou art My devotee and friend; it is the supreme secret. ।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य – #4 – वातानुकूलित संवेदना ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में प्रस्तुत है एक ऐसी  ही लघुकथा  “वातानुकूलित संवेदना”।)

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – #4 ☆

 

☆ वातानुकूलित संवेदना ☆

 

एयरपोर्ट से लौटते हुए रास्ते में सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे पत्तों से छनती तीखी धूप-छाँव में साईकिल रिक्शे पर सोये हुए एक व्यक्ति पर अचानक नज़र पड़ी।

लेखकीय कौतूहलवश गाड़ी रुकवाकर उसके पास पहुँचा।

देखा – वह खर्राटे भरते हुए गहरी नींद सो रहा था।

समस्त सुख-संसाधनों के बीच मुझ जैसे अनिद्रा रोग से ग्रस्त सर्व सुविधा भोगी व्यक्ति को जेठ माह की चिलचिलाती गर्मी में इतने इत्मिनान से नींद में सोये इस रिक्शेवाले की नींद से कुछ ईर्ष्या सी होने लगी।

इस भीषण गर्मी व लू के थपेड़ों के बीच खुले में रिक्शे की सवारी वाली सीट पर धनुषाकार, निद्रामग्न रिक्शा चालक के इस कारुण्य दृश्य को आत्मसात कर वहाँ से अपनी लेखकीय सामग्री बटोरते हुए वापस अपनी कार में सवार हो गया

अनायास रिक्शेवाले से मिले इस नये विषय पर एक कहानी  बुनने की उधेड़बुन मेरे संवेदनशील मस्तिष्क में उमड़ने-घुमड़ने लगी।

घर पहुंचते ही सर्वेन्ट रामदीन को कुछ स्नैक्स व कोल्ड्रिंक का आदेश दे कर अपने वातानुकूलित कक्ष में अभी-अभी मिली कच्ची सामग्री के साथ लैपटॉप पर एक नई कहानी बुनने में लग गया।

‘गेस्ट’ को छोड़ने जाने और एयरपोर्ट से यहाँ तक लौटने  की भारी थकान के बावजूद— आज सहज ही राह चलते मिली इस संवेदनशील मार्मिक कहानी को लिख कर पूरी करते हुए मेरे तन-मन में एक अलग ही स्फूर्ति व  उल्लास है।

रिक्शाचालक पर तैयार मेरी इस सशक्त दयनीय कहानी को पढ़ने के बाद मेरे अन्तस पर इतना असर हो रहा है कि, इस विषय पर कुछ कारुणिक काव्य पंक्तियाँ भी खुशी से मन में हिलोरें लेने लगी है।

अब इस पर कविता लिखना इसलिए भी आवश्यक समझ रहा हूँ कि – हो सकता है, यही कविता या कहानी इस अदने से रिक्शे वाले के ज़रिए मुझे किसी प्रतिष्ठित मुकाम तक पहुंचा दे।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

 

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ प्रिय आवाज दे तुमने मुझको बुलाया नहीं ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

 

(डॉ. प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी की एक  शृंगारिक भावप्रवण कविता।)

 

☆ प्रिय आवाज दे तुमने मुझको बुलाया नहीं

 

प्रिय आवाज दे तुमने मुझको बुलाया नहीं,

क्यों अर्धांगना तुमने मुझको बनाया नहीं।

क्या जीवन साथी बनने योग्य समझा नहीं,

या मेरे प्यार ने तुम्हारा हृदय हर्षाया नहीं।।

प्रिय – – – – – – – – – – – – – – – -नहीं।

 

प्रिय धड़कनें निज उर की तुमने सुनाया नहीं,

थिरकती उंगलियों से मन वीणा बजाया नहीं।

क्यों प्यारा घरौंदा तुमने मेरे संग बनाया नहीं,

क्या मेरे प्रणयी हृदय ने तुमको तड़पाया नहीं।।

प्रिय – – – – – – – – – – – – – – – -नहीं।

 

प्रिय प्रेम की उष्मा से तुमने मुझे मदमाया नहीं,

मेरी धमनियों में नेह तुमने अपना बहाया नहीं।

लावा तुमने अपने अनुराग का पिघलाया नहीं,

क्या मेरी उर वीणा ने तेरा हृदय लुभाया नहीं।।

प्रिय – – – – – – – – – – – – – – – -नहीं।

 

हा प्रिये! प्रेम ज्योति तुमने निरंतर जलाया नहीं,

क्या मेरे प्रणय ने तेरी देह में आग सुलगाया नहीं।

तेरे प्रेम ने तुझे मुझ संग रमण हेतु तरसाया नहीं,

मेरे अभिसार को तन मन ने तुझको मनाया नहीं।।

प्रिय – – – – – – – – – – – – – – – -नहीं।

 

डा0.प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

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