योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Life Skills Worth Learning ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Life Skills Worth Learning

I share with you some skills that will make your life happier, fulfilling and meaningful:

Laughter Yoga is a unique concept where you can laugh for no reason. It combines laughter exercises with yogic breathing. When we laugh, our body generates feel good hormones called endorphins which improve our mood and general outlook. During laughter exercises, all the stale air inside the lungs is expelled and our system gets more oxygen which enhances the immune system. In the long run, the inner spirit of laughter helps you build more caring and sharing social relationships, and laugh even when the going in not good.

Surya Namaskara is a well-known and vital technique within the yogic repertoire. It is almost a complete sadhana in itself, containing asana, pranayama and meditational techniques within the main structure of the practice. Surya namaskara is more than just a series of physical exercises. Of course, it stretches, massages, tones and stimulates all the muscles, vital organs and physical parts by alternatively flexing the body backwards and forwards, but it also has the depth and completeness of a spiritual practice.

Yoga Nidra is a powerful technique in which you learn to relax consciously. It is a systematic method of inducing complete physical, mental and emotional relaxation. During the practice of yoga nidra, one appears to be asleep, but the consciousness is functioning at a deeper level of awareness. The total systematic relaxation of a yoga nidra session is equivalent to hours of ordinary sleep without awareness. A single hour of yoga nidra is as restful as four hours of conventional sleep.

Meditation is something that most people have heard about, few have any true conception about and even fewer have actually experienced. Like all other subjective experiences, it cannot really be described in words. Meditation implies relaxation, both physical and mental, at a level which few of us experience even during sleep. It is a most powerful way of controlling physiological processes and also of controlling physiological reactions to psychological events. One of the most profound changes that takes place in the body during meditation is the slowing down of the metabolism, the rate of breaking down and building up the body, for there is a sharp reduction in oxygen consumption and carbon dioxide output.

Positive Psychology is the scientific study of the strengths that enable individuals and communities to thrive. The field is founded on the belief that people want to lead meaningful and fulfilling lives, to cultivate what is best within themselves, and to enhance their experiences of love, work, and play.Top of Form Positive Psychology takes seriously the bright hope that if you find yourself stuck in the parking lot of life, with few and only ephemeral pleasures, with minimal gratifications, and without meaning, there is a road out. This road takes you through the countryside of pleasure and gratification, up into the high country of strength and virtue, and finally to the peaks of lasting fulfillment: meaning and purpose.

(Experiential life skills workshops commence in January 2016 at Indore, India. Contact: [email protected] +917389938255)

Compiled by Jagat Singh Bisht, with due acknowledgement and immense gratitude to Dr Madan Kataria, Swami Satyananda Saraswati and Dr Martin E.P. Seligman.

 

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (34) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ ।

तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ।।34।।

 

इंद्रिय के इंद्रिय हित प्रायःराग द्वेष स्वाभाविक है

इंद्रिय के वश व्यक्ति न हो ये शत्रुरूप से भावित है।।34।।

 

भावार्थ :  इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं। मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिए क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में विघ्न करने वाले महान्‌शत्रु हैं।।34।।

 

Attachment and aversion for the objects of the senses abide in the senses; let none come under their sway, for they are his foes. ।।34।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #3 ☆ कुछ नहीं बदला ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।   साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  “कुछ नहीं बदला ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # ☆

 

☆ कुछ नहीं बदला ☆

 

दशहरे के पर्व पर

जला दिया गया रावण

हर वर्ष की भांति

परंतु कहां मिट पाई

आम जन की भ्रांति

क्या अब नहीं होंगे

अपहरण के हादसे

नहीं लूटी जाएगी चौराहे पर

किसी मासूम की अस्मत

न ही दांव पर लगाई जाएगी

किसी द्रौपदी की इज़्ज़त

शतरंज की बिसात पर

 

रावण लंका में

सिर्फ़ एक ही था…

परंतु अब तो हर घर में

गली-गली में,चप्पे-चप्पे पर

काबिज़ हैं अनगिनत

कार्यस्थल हों या शिक्षा मंदिर

नहीं उसके प्रभाव से वंचित

 

पति, भाई, पिता के

सुरक्षा दायरे में

मां के आंचल के साये में

यहां तक कि मां के भ्रूण में भी

वह पूर्णत: असुरक्षित

 

पति का घर

जिसे वह सहेजती

सजाती, संवारती

वहां भी समझी जाती वह

आजीवन अजनबी

सदैव परायी

दहशत से जीती

और मरणोपरांत भी

उस घर का

दो गज़ कफ़न

नहीं उसे मयस्सर

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #1 रमा बाई ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

 

(हम डॉ भावना शुक्ल जी  के हृदय  से आभारी हैं जिन्होने “साहित्य निकुंज” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ के आग्रह को स्वीकार किया। आपकी  साहित्य की लगभग सभी विधाओं में  रचनाएँ प्रकाशित/प्रसारित हुई हैं एवं आप कई  पुरस्कारों /अलंकरणों से  पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी साहित्यिक यात्रा की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया  >> डॉ. भावना शुक्ल जी << पर क्लिक करने कष्ट करें। अब आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की लघुकथा “रमा बाई”।) 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – #1  साहित्य निकुंज ☆

 

☆ रमा बाई ☆

 

आज तडके ही रमा बाई दौड़-दौड़ी आई बोली… बीबी जी काम जल्दी करवा लो आज नीचे वाले घर में कन्या भोज का बहुत बड़ा परोगराम है ।

हमने कहा “अच्छा तभी आज बहुत सज संवर कर आई हो । आज बच्चे भी साथ लाई हो ।”

“जी बीबी जी, कहिये जल्दी काम करूं नहीं तो 12 बजे के बाद आ पाऊंगी ।”

“ठीक है कोई बात नहीं बाद में ही आना, अभी हम भी आरती में शामिल होने नीचे ही आ रहे है ।”

“अच्छा बीबी जी ।”

ठीक 12 बजे घर की घंटी बजी सामने रमा बाई खडी थी।

हमने कहा – “हम तेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे ।अरे! क्या हुआ चुप क्यों खड़ी हो कुछ तो बोलो।  मुँह पर बारह क्यों बज रहे है? ”

“क्या बताऊं बीबी जी नीचे वाली बीबीजी का सारा काम हो गया । सब कन्या खा कर गई उसके बाद हमने बीबी जी से कहा अब हम भी जायेंगे तो अब हमें भी कुछ प्रसाद खाने को दे दो ।  तो मालूम वह क्या बोली? आज के दिन हम छोटी जाति के लोगों खाना नहीं देते कल देंगे ” ।

तब हम बोली बीबीजी “हमको क्या तुम बासा खाने को दोगी ? अपने पास ही रखो, अभी हमारे घर में इतना खाना है कि आप चलो हम आपको भी खिला देंगे। ”

 

© डॉ भावना शुक्ल

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प तिसरा #3 – ☆ या माहेरी. . . . ! ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं  ।  अब आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  आज इस लेखमाला की शृंखला में पढ़िये “पुष्प तिसरा   – या माहेरी ….!” ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – पुष्प तिसरा #-3 ☆

 

या माहेरी. . . . !

 

कवितेच घर हेच शब्दांचे माहेर. …किती भावस्पर्शी जाणिवा नेणिवेच्या या कवितालयात पहायला मिळतात …… कल्पना  आणि वास्तवता यांच्या नाजूक संवेदनशील पण जागृत  अनुभुतींनी साकारलेल्या या शब्द रचना जेव्हा मनाशी संवाद साधतात ना तेव्हा मनाचा एकटे पणा कुठल्या कुठे पळून जातो.   डोळे आणि मन भरून येत. . .  आठवणींची पासोडी खांद्यावर टाकून  आपण या माहेरात  विसावतो आणि . . .

……अनेक जीवनातील सुख दुःख पचवलेली, जीवनसंघर्ष करीत  कवितेचा शब्दसुतेचा दर्जा देणारी संवेदनशील व्यक्ती मत्वे  ,  मनात रेंगाळत रहातात.  मनातील ताणतणाव  दूर करण्याचा प्रयत्न ही शब्द पालवी करते आणि म्हणावस वाटत  *वसंत फुलला मनोमनी*

खरंच . . .  ही फुलं फुलतात कशासाठी? माणस माणसांना भेटतात कशासाठी? थोड तुझ थोड माझं परस्परांना समजण्यासाठी . . तसच या माहेरी घडत. या कवितेच्या घरात कवितेचे विविध प्रकार मांडवशोभेसारखे नटून थटून येतात. त्यांच नुसते दर्शन देखील मनाची मरगळ दूर करते.  आजची कविता काय आहे, कशी  आहे  ,  तिच रूप, स्वरूप, तिचा प्रवास याच्या खोलात न जाता मी फक्त  इतकेच म्हणेन  आजची कविता प्रवाही आहे.  सोशल नेटवर्किंग साईट वरून ती लोकाभिमुख होते  आहे.  प्रत्येक कविता  आपला स्वतःचा वाचक वर्ग निर्माण करते आहे. हा साहित्य प्रवाह नसला तरी हा जीवनप्रवास आहे माणसातल्या सृजनशील मनोवृत्तींचा. ही निर्मिती माणसाला धरून ठेवते. माणसाशी संवाद साधते. त्याचं एकटेपण दूर करू पहाते. म्हणून कविता महत्वाची आहे.

कवितेने किती पुरस्कार मिळवले, * आपल्या लेकिच्या अंगावर किती दागिने  आहेत* यापेक्षा  आपली लेक  किती लोकाभिमुख  आहे हे पहाणं मनाला जास्त भावत. मनान मनाशी जोडलेले भावबंध हाच उत्तम कवितेचा पाया असतो. नाते जपताना शब्दांना उकळी  आणून उसन्या गोडव्याने पाजलेला चहा भावाच्या मनात बहिणीची माया उत्पन्न करू शकत नाही त्याप्रमाणे कविता लोकांपर्यत किती पोचली तिचा समाजाभिमुख प्रवास कविला समाजात मानाचे स्थान प्राप्त करून देतो.

माहेर. . . माहेर ..  म्हणजे नेमक काय. ? मनातली दुःख, चिंता, काळजी, ताणतणाव, बाहेर जाताना रांगत्या पावलांनी किंवा  अनुभवी वृद्ध व्यक्तीच्या आश्वासक खोकल्याने घरात कुणीतरी  असल्याची दिलेली चाहूल, *शब्दांना भावनांनी दिलेला आहेर* म्हणजे माहेर.  हे माहेर ममत्वाचा,मायेचा, माझ्या तला कलागुणांचा सर्वांगीण  अविष्कार करत, माझ माझ म्हणून ज्याला जोजवावं त्या विचारप्रवाहांचा जे स्वीकार करत ते माहेर माणसाला माणूसपण कवितेला घरपण प्राप्त करून देत.

कविता श्लोकातून जाणवायला हवी. अभंगातून निनादत ओवीतून उदरभरण करणा-या , गहू, ज्वारी, बाजरीच्या पिठात  एकजीव व्हायला हवी. कवितेने जुन्याची कास आणि नाविन्याची आस सोडू नये यासाठी हे माहेर प्रत्येक साहित्यिकासाठी फार महत्वाचे आहे.  या माहेरात कुणाला  एकटे सोडायचे अन कुणाला बांधून ठेवायचे हे काम आपले लेखन,  आपला दैनंदिन लेखन कला व्यासंग बिनबोभाट करतो. तुलना नावाची मावशी किंवा मंथरा या माहेरात आपल्याला पदोपदी भेटते. ही तुलना मावशी कविच्या कवित्वाचा देखील घात करू शकते.  या माहेरात आपल्या कार्यकरतृत्वाचं गुणांकन करायला *दामाजी* नाही तर *आत्माराम* कामी येतो हे ध्यानात ठेवा आणि जेव्हा जेव्हा स्वतःला  एकट समजाल तेव्हा तेव्हा या माहेरी निःशंकपणे या. पायवाट  आणि हमरस्ता दोन्ही ही आपलीच वाट पाहत  असतात. सुख, समाधान, हाकेच्या अंतरावरच असत त्याचा शुभारंभ या माहेरी होऊ शकतो.

हा प्रवास  ह्दयापासून ह्रदयापर्यतचा असतो. यात शब्द जितका महत्वाचा तितकाच एकेका शब्दासाठी  आपल सारं जीवन वेचणारा माणूसही तितकाच महत्त्वाचा. या शब्दालयात,  माहेरपणात कविता नांदायला हवी.कविनं कविता  अन माणसान कटुता या माहेरी निवांत सोडून द्यावी. कविता तिचा प्रवास करीत रहाते  आणि मनातली कटूता एकटी होती..  एकटी  आहे..  एकटी राहिल ..  असा विश्वास देत पुढच्या जीवनप्रवासाला लागते.

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ ☆  Exercises That will Make You Happier ☆ ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆  Exercises That will Make You Happier

I suggest some exercises that will make you happier. Try the ones that you like. You will feel happier. Repeat the exercises that work for you periodically, and you will feel still happier.

Have A Beautiful Day!
Have a beautiful day. Set aside a free day every month to indulge in your favourite pleasures. Pamper yourself. Design, in writing, what you will do from hour to hour. Be mindful and savour every moment of the beautiful day. Do not let the bustle of life interfere, and carry out the plan.

The Gratitude Visit
Select one important person from your past who has made a major positive difference in your life and whom you have never fully expressed your thanks. Take your time to compose a testimonial just long enough to cover one laminated page. Travel to that person’s home. It is important to do this face to face, not just in writing or on the phone. Do not tell the person the purpose of the visit in advance; a simple “I just want to see you” will suffice. When all settles down, read your testimonial aloud slowly, with expression, and with eye contact. Then let the other person react unhurriedly. Reminisce together about the concrete events that make this person so important to you.

Simplify!
Answer the following questions: Where can I simplify? What can I give up? Am I spending too much time on the internet or watching TV? Can I reduce the number of meetings at work or the duration of some of the meetings? Am I saying “yes” to activities to which I can say “no”? Commit to reducing the busyness in your life.

What-Went-Well Exercise
Each night before going to sleep, write down three things that went well during the day, that made you happy or things for which you are grateful. These may be small things or important ones. Doing this exercise regularly can help you appreciate the positive in your life rather than take it for granted. You can do this exercise on our own or with a loved one: a partner, child, parent, sibling, or close friend. Expressing gratitude together can contribute in a meaningful way to the relationship.

Practicing Acts of Kindness
True happiness consists in making others happy. In our daily lives, we all perform acts of kindness for others. These acts may be large or small and the person for whom the act is performed may or may not be aware of the act. Examples include feeding a stranger, donating blood, helping a friend with homework, visiting an elderly relative, or writing a thank-you letter. Over the next week, try to perform at least three acts of kindness that you may decide.

Learning to Forgive
This exercise involves letting go of your anger, bitterness, and blame by writing, but not sending a letter of forgiveness to a person who has hurt or wronged you. In it describe in detail the injury or offence that was done to you. Illustrate how you were affected by it at the time and how you continue to be hurt by it. State what you wish the other person had done instead. End with an explicit statement of forgiveness and understanding (e.g., “I realize now that what you did was the best you could at the time, and I forgive you”).

Meditate!
Sit quietly, in a comfortable but balanced posture. Keep your back straight without being tense. Rest your hands on your knees or thighs or in your lap, keep your eyes lightly gazing in the space in front of you, and breathe naturally. Watch your mind, the coming and going of thoughts. At first it might seem that instead of diminishing, thoughts rush through your mind like a waterfall. Just watch them arising and let them come and go, without trying to stop them but without fuelling them either. Take a moment at the end of the practice to savour the warmth and joy that result from a calmer mind.

References and Acknowledgement
Martin Seligman, Authentic Happiness, and Flourish.
Tal Ben-Shahar, Happier.
Matthieu Ricard, Happiness.
Sonja Lyubomirsky, The How of Happiness.

 

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (33) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि ।

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ।।33।।

 

अपनी प्रकृति अनुसार कर्म सब ज्ञानी जन भी करते है

हठ क्या करेगा सारे प्राणी प्रकृति भाँति ही चलते है।।33।।

      

भावार्थ :  सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात अपने स्वभाव के परवश हुए कर्म करते हैं। ज्ञानवान्‌भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है। फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा ।।33।।

 

Even a wise man acts in accordance with his own nature; beings will follow nature; what can restraint do? ।।33।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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सूचना / Information – ☆ स्वार्थ के दायरे से निकलकर दूसरों की भलाई करना परोपकार है ☆ – श्री देवेंद्र सिंह अरोरा

☆ स्वार्थ के दायरे से निकलकर दूसरों की भलाई करना परोपकार है ☆

 [हेल्पिंग हैंड्स का चतुर्थ स्थापना दिवस संपन्न]

 

दिनांक: 12 जून 2019। जबलपुर। विगत 4 वर्ष से गरीबों, जरूरतमंदों एवं मेधावी छात्रों के हितार्थ अनवरत कार्य कर रही संस्था हेल्पिंग हैंड फॉरएवर वेलफेयर सोसायटी द्वारा अपना चतुर्थ स्थापना दिवस समारोह अनमोल क्लासिक होटल जबलपुर के सभागार में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ समारोह की अध्यक्ष सह संस्थाध्यक्ष श्रीमती हंसा बेन शाह, मुख्य अतिथि डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’, विशिष्ट अतिथि पुनीत चितकारा, कोषाध्यक्ष श्रीमती भव्या संघवी, प्रवीण भाटिया तथा संस्था के पदाधिकारियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।

स्वार्थ के दायरे से निकलकर दूसरों की भलाई करना परोपकार है। जरूरतमंदों की मदद करने से मन को शांति एवं खुशी मिलती है। सामर्थ्य के अनुरूप मानवता की सेवा हम सभी का दायित्व है। उक्ताशय के विचार अतिथियों द्वारा व्यक्त किए गए। श्रीमती ईश्वर दुआ ने अपनी कविता के माध्यम से अपने विचार रखे। इसके पूर्व देवेन्द्र सिंह अरोरा ने अपने सचिवीय उद्बोधन में विगत वर्ष छात्रों को स्कॉलरशिप, कोचिंग, पुस्तकों, वस्त्र,जूते, साइकिलें वितरण, चित्रकला प्रतियोगिता के साथ धीरज शाह स्मृति मेडिकल इंस्ट्रूमेंट बैंक के माध्यम से किए गए कार्यों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हुए अवगत कराया कि इस वर्ष जुलाई में शहर एवं आसपास के विद्यालयों में अध्ययनरत गरीब विद्यार्थियों को जूते-मोजे वितरण करने का अभियान शुरू किया जाएगा। श्रीमती अरवा सबा ने संस्था का आर्थिक ब्यौरा देते हुए बताया कि विद्यालयीन फीस स्कॉलरशिप, कॉपी किताबों, मेडिकल इंस्ट्रूमेंट आदि में लगभग चार लाख रुपए व्यय किए गए। श्रीमती प्रभा मल्होत्रा द्वारा हेल्पिंग हैंड्स के माध्यम से प्रदत स्कॉलरशिप एवं कोचिंग से लाभान्वित श्रेष्ठ 5 मेधावी छात्रों का परिचय कराते हुए उन्हें अतिथियों के हाथों से सम्मानित कराया। तत्पश्चात उपाध्यक्ष विनोद शर्मा द्वारा इस वर्ष संस्थागत उल्लेखनीय कार्यों तथा सहभागिता आधारित सम्मान हेतु संस्था के अशोक तिवारी, शान्तनु भट्टाचार्य, आनंद तिवारी, नीति भसीन, अमित नागदेव एवं सी. के. ठाकुर के नामों की घोषणा करते हुए अतिथियों के हाथों सम्मान पत्र से अभिनंदित कराया।

☆ जरूरतमंदों को सिलाई मशीन, व्हील चेयर, अक्षय पात्र संस्था को वाटर फिल्टर एवं खाना परोसने हेतु स्टील बर्तन प्रदान किये गए ☆

इस वर्ष अपने स्थापना दिवस पर हेल्पिंग हैंड्स ने कच्छी जैन महिला मंडल के सौजन्य से प्राप्त सिलाई मशीन श्रीमती रश्मि तिवारी को दी। लंच अथवा डिनर में बचे खाने को गरीबों तक पहुँचाने वाली संस्कारधानी की संस्था ‘अक्षय पात्र’ को दो वाटर फिल्टर, दो स्टील बाल्टियों सहित परोसने वाले स्टील के बर्तन भेंट किये। साथ ही हेमा खरे को एक व्हील चेयर भी प्रदान की गई।  श्रीमती प्रीति निगांधी की भावभीनी कृतज्ञता, विनोद शर्मा के सफल संचालन के पश्चात संस्था के सम्मानीय सदस्य श्री दीपक चांडक द्वारा 100 से अधिक विभिन्न प्रजाति के पौधे वितरित किए गये। श्री राजेश चाँदवानी, संजय भाटिया, देवव्रतो रॉय, शैलेश मिश्रा, हरीश पंजवानी, राजेन्द्र नेमा डॉ. शाहीन, श्रीमती सुलेखा क्षत्रिय, मनोज नारंग, संगीता विश्नोई आदि की विशेष उपस्थिति एवं कार्यक्रम की सफलता में सक्रिय योगदान रहा।

 

साभार – श्री देवेन्द्र  सिंह अरोरा), सचिव हेल्पिंग हैंड्स (FWS)

 

संस्था के सदस्यों के निःस्वार्थ समर्पण की भावना को देखते हुए हमें यह संदेश प्रचारित करना चाहिए कि व्यर्थ खर्चों पर नियंत्रण कर भिक्षावृत्ति को  हतोत्साहित करते हुए ऐसी संस्था को तन-मन-धन से  सहयोग करना चाहिए जो ‘अर्थ ‘की अपेक्षा समाज को विभिन्न रूप से सेवाएँ प्रदान कर रही है । हम आप सबकी ओर से श्री अरोरा जी एवं  संस्था के सभी  समर्पित सदस्यों का हृदय से सम्मान करते हैं  जो अपने परिवार  एवं  व्यापार/रोजगार/शिक्षा (छात्र  सदस्य)  आदि दायित्वों  के साथ मानव धर्म को निभाते हुए  समाज  के असहाय सदस्यों की सहायता करने हेतु तत्पर हैं।  

(अधिक जानकारी  एवं हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी  से जुडने के लिए आप श्री देवेंद्र सिंह अरोरा जी से मोबाइल 9827007231 पर अथवा फेसबुक पेज  https://www.facebook.com/Helping-Hands-FWS-Jabalpur-216595285348516/?ref=br_tf पर विजिट कर सकते हैं।)

(हम  ऐसी अन्य सामाजिक एवं हितार्थ संस्थाओं की जानकारी अभिव्यक्त करने हेतु कटिबद्ध हैं ।  यदि आपके पास ऐसी किसी संस्था की जानकारी हो तो उसे शेयर करने में हमें अत्यंत प्रसन्नता होगी।)

 

 

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संस्थाएं / Organisations – ☆ हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी ☆ – डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’

 ☆ हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी ☆ 

डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय

(www.e-abhivyakti.com की ओर से मानव कल्याण एवं समाज सेवा के लिए निःस्वार्थ भाव से समर्पित संस्था “हेल्पिंग हेण्ड्स फॉरएवर वेलफेयर सोसायटी” के सदस्यों का उनके चतुर्थ स्थापना दिवस के अवसर पर हार्दिक अभिनंदन।   इस विशेष अवसर  पर  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’ जी के आख्यान को उद्धृत करने में प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।)  

 

हेल्पिंग हेण्ड्स फॉरएवर वेलफेयर सोसायटी का आज हम सभी चतुर्थ स्थापना दिवस मनाने हेतु आत्मीय एवं पारिवारिक रूप से एकत्र हुए हैं। आप सभी को हृदयतल से बधाई।

संस्था “यथा नाम तथा गुणो” का पर्याय है। ‘हेल्पिंग हैंड्स’ अर्थात ‘मददगार हाथ’ आज प्राणपण से समाजसेवा में अहर्निश तत्पर हैं। यह सब मैं संस्था से जुड़कर देख पा रहा हूँ। मैं आज केवल संस्था के उद्देश्य “परोपकारी भाव” से संबंधित अपने विचार आप सब के साथ बाँटना चाहता हूँ। उपस्थित विद्वतजनों से 5 मिनट शांति एवं ध्यान चाहूँगा।

महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार।

स्वार्थ के दायरे से निकलकर व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के विषय में सोचता है, दूसरों के लिये कार्य करता है, वही परोपकार है। इस संदर्भ में हम कह सकते हैं कि भगवान सबसे बड़ा परोपकारी है, जिसने हमारे कल्याण के लिये संसार का निर्माण किया। प्रकृति का प्रत्येक अंश परोपकार की शिक्षा देता प्रतीत होता है। सूर्य और चाँद हमें  प्रकाश देते हैं। नदियाँ अपने जल से हमारी प्यास बुझाती हैं। गाय-भैंस हमारे लिये दूध देती हैं। बादल धरती के लिये झूमकर बरसते हैं। फूल अपनी सुगन्ध से दूसरों का जीवन सुगन्धित करते हैं।

परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृत्ति के होते हैं। उन्हें दूसरों को सुख देकर आनंद मिलता है।

परोपकार करने से यश बढ़ता है, दुआयें मिलती हैं, सम्मान प्राप्त होता है।

तुलसीदास जी ने कहा है-

‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधभाई।’

प्रकृति भी हमें परोपकार करने के हजारों उदाहरण देती है जैसे :-

परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः।

परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थं इदं शरीरम् ॥

अपने लिए तो सभी जीते हैं किन्तु वह जीवन जो औरों की सहायता में बीते, सार्थक जीवन है। उदाहरण के लिए किसान हमारे लिए अन्न उपजाते हैं, सैनिक प्राणों की बाजी लगा कर देश की रक्षा करते हैं। परोपकार किये बिना जीना निरर्थक है। स्वामी विवेकानद, स्वामी दयानन्द, गांधी जी, रवींद्र नाथ टैगोर जैसे महान पुरुषों के जीवन परोपकार के जीते जागते उदाहरण हैं। ये महापुरुष आज भी वंदनीय हैं।

न्यूटन के गति का  तीसरा नियम भी कहता है:-

For every action, there is an equal and opposite reaction.

ठीक वैसे ही कर्म का फल भी मिलता है अर्थात- जैसी करनी, वैसी भरनी।

यों रहीम सुख होत है, उपकारी के संग।

बाँटनवारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग ॥

जब कोई जरूरतमंद हमसे कुछ माँगे तो हमें अपनी सामर्थ्य के अनुरूप उसकी सहायता अवश्य करना चाहिए। सिक्खों के गुरू नानकदेव जी ने व्यापार के लिए दी गई सम्पत्ति से साधु-सन्तों को भोजन कराके परोपकार का सच्चा सौदा किया।

एक बात और है। परोपकार केवल आर्थिक रूप में नहीं होता; वह मीठे बोल बोलना, किसी जरूरतमंद विद्यार्थी को पढ़ाना, भटके को राह दिखाना, समय पर ठीक सलाह देना, भोजन, वस्त्र, आवास, धन का दान कर जरूरतमंदों का भला कर भी किया सकता है।

पशु और पक्षी भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं। फिर मनुष्य तो विवेकशील प्राणी है। उसे तो पशुओं से दो कदम आगे बढ़कर परोपकारी होना चाहिए। परोपकार अनेकानेक रूप से कर आत्मिक आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। जैसे-प्यासे को पानी पिलाना, बीमार या घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाना, वृद्धों को बस में सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, गोशाला बनवाना, चिकित्सालयों में अनुदान देना, प्याऊ लगवाना, छायादार वृक्ष लगवाना, शिक्षण केन्द्र और धर्मशाला बनवाना परोपकार के ही रूप हैं।

आज का मानव दिन प्रति दिन स्वार्थी और लालची होता जा रहा है। दूसरों के दु:ख से प्रसन्न और दूसरों के सुख से दु:खी होता है। मानव जीवन बड़े पुण्यों से मिलता है, उसे परोपकार जैसे कार्यों में लगाकर ही हम सच्ची शान्ति प्राप्त कर सकते हैं। यही सच्चा सुख और आनन्द है। ऐसे में हर मानव का कर्त्तव्य है कि वह भी दूसरों के काम आए।

उपरोक्त तथ्यों से आप सबको अवगत कराने का मेरा केवल यही उद्देश्य है कि यदि हमें ईश्वर ने सामर्थ्य प्रदान की है, हमें माध्यम बनाया है तो पीड़ित मानवता की सेवा करने हेतु हमें कुछ न कुछ करना ही चाहिए और सच कहूँ तो इसके लिए संस्कारधानी में हेल्पिंग हैंड्स से अच्छा और कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता।

अंत में मैं अपने इस दोहे के साथ अपनी बात समाप्त करना करना चाहता हूँ।

किसलय जग में श्रेष्ठ है, मानवता का धर्म।

अहम त्याग कर जानिये, इसका व्यापक मर्म।।

संस्था की सफलता एवं सार्थकता हेतु मंगलभाव एवं सभी का धन्यवाद।

 

साभार – डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’ 

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संस्था के सदस्यों के निःस्वार्थ समर्पण की भावना को देखते हुए हमें यह संदेश प्रचारित करना चाहिए कि व्यर्थ खर्चों पर नियंत्रण कर भिक्षावृत्ति को  हतोत्साहित करते हुए ऐसी संस्था को तन-मन-धन से  सहयोग करना चाहिए जो ‘अर्थ ‘की अपेक्षा समाज को विभिन्न रूप से सेवाएँ प्रदान कर रही है । हम आप सबकी ओर से श्री अरोरा जी एवं  संस्था के सभी  समर्पित सदस्यों का हृदय से सम्मान करते हैं  जो अपने परिवार  एवं  व्यापार/रोजगार/शिक्षा (छात्र  सदस्य)  आदि दायित्वों  के साथ मानव धर्म को निभाते हुए  समाज  के असहाय सदस्यों की सहायता करने हेतु तत्पर हैं।  

(अधिक जानकारी  एवं हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी  से जुडने के लिए आप श्री देवेंद्र सिंह अरोरा जी से मोबाइल 9827007231 पर अथवा फेसबुक पेज  https://www.facebook.com/Helping-Hands-FWS-Jabalpur-216595285348516/?ref=br_tf पर विजिट कर सकते हैं।)

(हम  ऐसी अन्य सामाजिक एवं हितार्थ संस्थाओं की जानकारी अभिव्यक्त करने हेतु कटिबद्ध हैं ।  यदि आपके पास ऐसी किसी संस्था की जानकारी हो तो उसे शेयर करने में हमें अत्यंत प्रसन्नता होगी।)

 

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – #1 ☆ बाबा ब्लैक शीप ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के हम हृदय से आभारी हैं,  जिन्होने हमारे आग्रह पर साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य” शीर्षक से लिखना स्वीकार किया। आप वर्तमान में अतिरिक्त मुख्य  इंजीनियर के पद पर म.प्र.राज्य विद्युत मंडल, जबलपुर में कार्यरत हैं। संभवतः आपको साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन की कला शिक्षा के क्षेत्र में ख्यातिनाम माता-पिता से संस्कार में मिली है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन कार्य किया है। आप समय के साथ स्वयं को  डिजिटल मीडिया में ढाल कर एक प्रसिद्ध ब्लॉगर की भूमिका भी निभा रहे हैं। आप काई साहित्यिक सम्मनों से पुरुस्कृत / अलंकृत हैं । श्री विवेक रंजन जी की साहित्यिक यात्रा की विस्तृत जानकारी के लिए  >> श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  << पर क्लिक करने का कष्ट करें। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “बाबा ब्लैक शीप”

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – #1 ☆ 

 

☆ बाबा ब्लैक शीप ☆

 

कष्टो दुखो से घिरे  दुनिया वालो को बाबाओ की बड़ी जरूरत है. किसी की संतान नहीं है, किसी की संतान निकम्मी है, किसी को रोजगार की तलाश है, किसी को पत्नी पर भरोसा नही है, किसी को वह सब नही मिलता जिसके लायक वह है, कोई असाध्य रोग से पीड़ित है तो किसी की असाधारण महत्वाकांक्षा वह साधारण तरीको से पूरी कर लेना चाहता है, वगैरह वगैरह हर तरह की समस्याओ का एक ही निदान होता है ” बाबा”.  इसलिये  हमें एक चेहरे की तलाश है, जो किंचित कालिदास की तरह का गुणवान हो, कुछ वाचाल हो, टेक्टफुल हो, थोड़ा बहुत आयुर्वेद और ज्योतिष जानता हो तो बात ही क्या,  हम उसे बाबा के रूप में महिमा मण्डित कर सकते हैं, कोई सुयोग्य पात्र मिले तो जरूर बताईये.

यूँ बचपन में हम भी बाबा हुआ करते थे ! हर वह शख्स जो हमारा नाम नहीं जानता था हमें प्यार से बाबा कह कर पुकारता था. इस बाबा गिरी में हमें लाड़, प्यार और कभी जभी चाकलेट वगैरह मिल जाया करती थी. यह “बाबा” शब्द से हमारा पहला परिचय था. अच्छा ही था. अपनी इसी उमर में हमने “बाबा ब्लैक शीप” वाली राइम भी सीखी थी.  जब कुछ बड़े हुये तो बालभारती में सुदर्शन की कहानी “हार की जीत” पढ़ी.  बाबा भारती और डाकू खड़गसिंग के बीच हुये संवाद मन में घर कर गये. “बाबा” का यह परिचय संवेदनशील था, अच्छा ही था. कुछ और बड़े हुये तो लोगों को राह चलते अपरिचित बुजुर्ग को भी “बाबा” का सम्बोधन करते सुना. इस वाले बाबा में किंचित असहाय होने और उनके प्रति दया वाला भाव दिखा. कुछ दूसरे तरह के बाबाओ में कोई हरे कपड़ो में मयूर पंखो से लोभान के धुंयें में भूत, प्रेत, साये भगाता मिला तो कोई काले कपड़ो में शनिवार को तेल और काले तिल का दान मांगते मिला. कुछ वास्तविक बाबा आत्म उन्नति के लिये खुद को तपाते हुये भी मिले पर इन बाबाओ पर भी तरस खाने वाली स्थिति थी.

फिर बाबा बाजी वाले बाबाओ से भी रूबरू हुये. जिनके रूप में चकाचौंध थी. शिष्य मंडली थी. बड़े बड़े आश्रम थे. लकदक गाड़ियों का काफिला  था. भगवा वस्त्रो में चेले चेलियां थे. प्रवचन के पंडाल थे. पंडालो के बाहर बाबा जी के प्रवचनो की सीडी, किताबें, बाबा जी की प्रचारित देसी दवाईयां विक्रय करने के स्टाल थे. टी वी चैनलो पर इन बाबाओ के टाईम स्लाट थे. इन बाबाओ को दान देने के लिये बैंको के एकाउंट नम्बर थे. कोई बाबा हवा से सोने की चेन और घड़ी  निकाल कर भक्तो में बांटने के कारण चर्चित रहे तो कोई जमीन में हफ्ते दो हफ्ते की समाधि लेने के कारण, कोई योग गुरु होने के कारण तो कोई आयुर्वेदाचार्य होने के कारण सुर्खियो में रहते दिखे.  बड़े बड़े मंत्री संत्री, अधिकारी, व्यापारी इन बाबाओ के चक्कर लगाते मिले. ही बाबा और शी बाबा के अपने अपने छोटे बड़े ग्रुप आपकी ही तरह हमारा ध्यान भी खींचने में सफल रहे हैं.

बाबाओ के रहन सहन आचार विचार के गहन अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि किसी को बाबा बनाने के लिये  प्रारंभिक रूप से कुछ सकारात्मक अफवाह फैलानी होगी. लोग चमत्कार को नमस्कार करते आये हैं. अतः कुछ महिमा मण्डन, झूठा सच्चा गुणगान करके दो चार विदेशी भक्त या समाज के प्रभावशाली वर्ग से कुछ भक्त जुटाने पड़ेंगे. एक बार भक्त मण्डली जुटनी शुरु हुई तो फिर क्या है, कुछ के काम तो गुरु भाई होने के कारण ही आपस में निपट जायेंगे, जिनके काम न हो पा  रहे होंगे  बाबा जी के रिफरेंस से मोबाईल करके निपटवा देंगे.

हमारे दीक्षित बाबा जी को हम स्पष्ट रूप से समझा देंगे कि उन्हें सदैव शाश्वत सत्य ही बोलना है, कम से कम बोलना है.  गीता के कुछ श्लोक, और  रामचरित मानस की कुछ चौपाईयां परिस्थिति के अनुरूप बोलनी है. जब संकट का समय निकल जायेगा और व्यक्ति की समस्या का अच्छा या बुरा समाधान हो जावेगा तो  बोले गये वाक्यो के गूढ़ अर्थ लोग अपने आप निकाल लेंगे. बाबाओ के पास लोग इसीलिये जाते हैं क्योकि वे दोराहे पर खड़े होते हैं और स्वयं समझ नहीं पाते कि कहां जायें, वे नहीं जानते कि उनका ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो कोई बाबा जी भी नही जानते कि कौन सा ऊंट किस करवट बैठेगा, पर बाबा जी, ऊंट के बैठते तक भक्त को दिलासा और ढ़ाड़स बंधाने के काम आते हैं. यदि ऊंट मन माफिक बैठ गया तो बाबा जी की जय जय होती है, और यदि विपरीत दिशा में बैठ गया तो पूर्वजन्मो के कर्मो का परिणाम माना जाता है, जिसे बताना होता है कि  बाबा जी ने बड़े संकट को सहन करने योग्य बना दिया, इसलिये फिर भी बाबा जी की जय जय. बाबा कर्म में हर हाल में हार की जीत ही होती है भले ही भक्त को बाबा जी का ठुल्लू ही क्यो न मिले. बाबा जी पर भक्त सर्वस्व लुटाने को तैयार मिलते हैं भले ही बाबा ब्लैक शीप ही क्यो न हों.

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८

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