हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – लोकतन्त्र का महाभारत – श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

लोकतन्त्र का महाभारत

निजी टी वी चैनल “हमारे अपने” के स्टुडियो से टी वी पत्रकार संजय को बार-बार फोन आ रहे थे। बहुत दिनों से कुछ नया और कोई अच्छी रिपोर्टिंग नहीं हुई है। आखिर दूर-दराज के गाँव के एकमात्र अंधों में काने शिक्षित बुजुर्ग मातादीन को बड़ी मुश्किल से मोबाइल पर इंटरव्यू के लिए पटाया। फिर उस दिन तो बड़ा गज़ब हो गया। संजय की दूर-दराज के गाँव में खड़ी ओ बी वेन का संचार परलोक में बैठे धृतराष्ट्र से जुड़ गया। दूसरी ओर से पिक्चर नहीं आ रही थी सिर्फ आवाज ही आ रही थी।

“सर! मैं संजय!”

“हाँ, कहो मैं धृतराष्ट्र!”

संजय चौंका – “धृतराष्ट्र!”

संजय को लगा कि जरूर स्टुडियो में कोई वरिष्ठ मित्र ले रहा है मजा, या पा गया है कोई मौका। धृतराष्ट्र को लगा कि महाभारत हुए एक युग बीत चुका है और ये संजय क्यों लगा रहा है धरती से चौका?

“संजय तुम्हारी आँखों देखी महाभारत को युग बीत गया। अब कौन सी महाभारत बाकी है?”

“यहाँ तो आये दिन महाभारत होती रहती है।“

“आए दिन! क्या कह रहे हो? मुझे विस्तार से बताओ।”

अब संजय को भी मजा आने लगा।

“सर, मेरे कहने का मतलब है आए दिन तो चुनाव होते रहते हैं। कभी ग्राम, कभी जिला, कभी प्रदेश तो कभी देश के। और हर चुनाव में महाभारत होता है।“

“ये क्या कह रहे हो? क्या धर्म नाम की वस्तु नहीं रही?”

“सर, वो तो आपके युग की बात है। आपके समय में या तो धर्म होता था या अधर्म और जातियाँ भी गिनती की चार होती थीं। अब तो इतने धर्म और इतनी जातियाँ हो गईं हैं कि आपको क्या बताऊँ सर? चीरहरण और शीलहरण तो मामूली बात है। फिर शीलहरण की तो कोई उम्र ही नहीं रही। पांडव दिखने वाले भी बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं।“

“फिर शासन कैसे चलता है? और महाभारत किसके मध्य हो रही है?”

अब संजय के चौंकने की बारी थी। फिर भी संभलते हुये बोला।

“सर, जितने महाभारत में राजा नहीं थे उतने तो नेता हो गए हैं। क्योंकि कोई भी नेता राजा से कम नहीं है। रही बात महाभारत किसके मध्य हो रहा है? तो मैं आपको अपनी रिपोर्टिंग देने से पहले बता दूँ कि यदि आज देवकीनंदन भी यहाँ आ जाएँ तो कहीं कन्फ़्यूज ना हो जाएं कि कौरव कौन हैं और पांडव कौन हैं? शकुनि तो अनगिनत हो गए हैं सर। आज तो शकुनि भी कन्फ़्यूज है कि जिस दुर्योधन को चुनाव के द्यूतक्रीडा की चाल समझा रहा है वो कल सारे दाँव सीख कर कहीं पांडवों से न जा मिले। दुर्योधन की सेना का कौन नेता कब पांडव के पक्ष से लड़ेगा और पांडवों की सेना का कौन नेता दुर्योधन के पक्ष से लड़ेगा ये तो आप काल से ही पूछ लेना। रही बात युधिष्ठिर की, तो उनके जैसे जुआरी तो बहुत मिलेंगे पर सत्य बोलने वाला सारी धरती पर एक भी नहीं मिलेगा। फिर आपके समय में युद्ध में थोड़ा बहुत छल कपट तो हुआ होगा। अब तो हर युद्ध छल से ही जीता जाता है। सूर्यास्त पर युद्ध की समाप्ति का शंख नहीं बजता। आए दिन अभिमन्यु चक्रव्यूह में घेर कर मारा जाता हैं। इसे लोकतंत्र में चक्रव्यूह नहीं भीडतंत्र (मोबोक्रेसी) कहते हैं। लोग कहते हैं कि युद्ध और प्यार में सब जायज है। अब अर्जुन जैसा कोई योद्धा नहीं जिसे भगवत गीता के ज्ञान की आवश्यकता पड़े। मुरलीधर तो सब जानते हैं इसलिए शान्त हैं, मुस्कुरा रहे हैं, बांसुरी की धुन पर सबको नचा रहे हैं और “यदा यदा हि धर्मस्य …..” के तर्ज पर अवतार लेने को तैयार ही नहीं हैं। पता नहीं दीनदयाल स्वयं को प्रकट करने के लिए कितना समय और लगाएंगे? क्या इन राजाओं द्वारा इतने धर्मों और जातियों के दीनों की आपस में कोई और महाभारत करवाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं? टीआरपी के लिए चैनलों पर लोकतन्त्र के मतदाता सैनिकों को गुमराह करने वाली बहस और फेक न्यूज़  के बारे में कुछ कह नहीं सकता सर, मेरी तो नौकरी ही चली जाएगी।”

इधर संजय पूरी महाभारत का पोस्टमार्टम करने को तैयार था और उधर धृतराष्ट्र को कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा था।

“संजय, तुम ये सब क्या कह रहे हो? मुझे तुम्हारी महाभारत समझ ही नहीं आ रही।“

अब संजय का दिमाग भी कुछ पक सा रहा था। उसे लगा कि उसे अब मुद्दे पर आना चाहिए। फिर मातादीन भी बार-बार उठने की फिराक में था।

“सर, मज़ाक छोड़िए। ये आपकी महाभारत जाए … । मेरे सामने मातादीन अपने चार-पाँच कार्ड ले कर बैठा है। उसका इंटरव्यू सीरियसली रिकार्ड करेंगे, लाइव दिखाएंगे या रिकार्ड कर के भेजूँ?”

“संजय, महाभारत में ये मातादीन कौन आ गया और ये रिकार्डिंग, कार्ड … ये सब क्या है?”

संजय अब झल्ला गया था। मोबाइल में अभी भी सिग्नल नहीं थे और बैटरी भी जा रही थी।

“सर, अब आप चुपचाप सुनते जाइए। मैं अपने मोबाइल पर भी रिकार्ड कर रहा हूँ। आपको नहीं दिख रहा हो तो रिकार्डिंग से काम चला लेंगे।“

धृतराष्ट्र आश्चर्यचकित – “क्या……?”

इधर संजय ने मातादीन का इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया।

“आइये हम अपने दर्शकों को मिलवाते हैं, गाँव के एक ऐसे एकमात्र शिक्षित निवासी श्री मातादीन जी से जिनके गाँव तक बिजली के तार तो पहुँच गए पर करंट नहीं पहुंचा। इनका कहना है कि ये कई बार तारों को छू कर भी देख चुके हैं। हमने इन्हें समझाया कि आप ऐसी गलती ना करें दुर्घटना हो सकती है। और मातादीन जी आप ये इतने सारे कार्ड लेकर क्यों आए हैं और आपको इन कार्डों से क्या शिकायत है? जरा हमारे दर्शकों को बताएं।”

मातादीन जिंदगी में पहली बार कैमरे के सामने आया था। गाँव के लोग-लुगाइयाँ और बच्चे सतर्क हो गए। मातादीन कैमरे से आँख ही नहीं मिला पा रहा था। संजय ने आँखों और हाथों से इशारा किया। और मातादीन दायें बाएँ देखते हुए धाराप्रवाह शुरू हो गया।

“सब लोगन को हाथ जोड़ के राम राम। वो तो साहब हम बीच-बीच में तार इसलिए छू के देख लेते रहे। काहे कि हमने देखा रहा पिछली बार मंत्री जी ने तीस मील दूर के पड़ोस के पहाड़ी गाँव की बिजली का साठ मील दूर के जिले दफ्तर में बैठ कर बटन दबा कर उदघाटन करी रही। काहे कि उनकी गाड़ी पहाड़ पे नहीं चढ़ पाई रही।“

“अच्छा और आप ये कार्ड क्यों ले कर आए हैं?”

मातादीन कार्ड दिखाते हुए बोला “साहब हम ठहरे गाँव के। साहब हमें अपनी छोटी सी बुद्धि में या बात समझ नहीं आ रही कि ये तीन-चार कारड किस काम के?”

संजय ने एक-एक कार्ड कैमरे में दिखाते हुए समझाया।

“देखो ये है आधार कार्ड जो आपकी पहचान है। ये है वोटर कार्ड जिसकी मदद से आप वोट डाल सकते हैं और यह है पैन कार्ड जिसकी मदद से आप अपनी आयकर की जानकारी दाखिल कर सकते हैं। और जो ये जो चौथा कार्ड आपके हाथ में है उसे एटीएम कार्ड कहते हैं जिसकी मदद से आप बैंक के एटीएम से पैसा निकाल सकते हैं।“

“साहब ये जो आपने पहले तीन कारड बताए हैं इनको सम्हाल सम्हाल कर हमारी जान निकल रही है। चौथे एटीएम कारड ने तो हमारी जान ही निकाल दी।?

“ऐसा क्या हो गया?

“हमारी मोटी बुद्धि के मुताबिक जब आधार कारड बनाते समय हमारी उँगलियों के निशान और आँख की पुतलियाँ तक जांच लई और एटीएम कारड से हवा में हमारे बैंक से जोड़ दई तो पहले तीन कारड की जानकारी जोड़ के एकई कारड काहे नहीं दे देते। आखिर सभी दफ्तर तो एकई सरकार के ठहरे। लगता है उनमें कोई तालमेल ही नहीं है। जब पिछली बार वोट डालने गए रहे तो पता चला कोई और मातादीन नकली वोटर कारड से हमारा वोट डाल चुका रहा। काहे नहीं हमारे आधार कारड को वोटिंग मशीन से जोड़ देते जो हमारे अंगूठे के निशान से हमें पहचान लेता। ऐसई इसी कारड से आयकर की जानकारी भी ले लेते। साहब ये तो हम अपनी छोटी मोटी बुद्धि से कह रहे हैं। यदि गलत कह रहे तो साहब हमें माफ करना आप लोग हमसे बहुतई समझदार ठहरे। हम तो कह रहे हैं साहब आप तो इसमें हमारे ट्रेक्टर और मोटर साइकिल की भी जानकारी ठूंस दो। फिर देखो हम कैसे इस कारड को अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखते हैं? फिर मजाल है कोई दूसरा मातादीन हमारा नकली कारड लेके बजार में घूमता फिरे? आगे तो आप लोग बहुतई समझदार हो साहब?“

“आपका अपना चैनल मातादीन जी की समस्या को शासन से अवगत कराने की पूरी कोशिश करेगा। मातादीन जी कार्डों के बारे में आपकी और कोई समस्या हो तो आप हमें बताइये हम आपकी समस्या को ऊपर तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेंगे।“

“बस साहब एटीएम कार्ड से भी बहुत परेशान हैं। बैंक वाले बार-बार कहते हैं कि किसी को अपने कार्ड की जानकारी बिलकुल ना देना और बैंक वाले खुद फोन कर-कर के जानकारी मांगते हैं।“

“मातादीन जी आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि बैंक कभी भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मांगता। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अब हम आपको स्टुडियो ले चलते हैं। आपका अपना चैनल के लिए कैमरा मेन अर्जुन के साथ मैं संजय। आप देखते रहिए आपका अपना चैनल।“

इतने में क्लिक की आवाज आई और ओ बी वैन में स्टुडियो का चित्र उभरा। संजय का संपर्क स्टुडियो के टेकनीशियन दिनेश से जुड़ गया।

संजय चौंक कर स्क्रीन की ओर देखते हुए पूछता है – “धृतराष्ट्र कहाँ है?”

दिनेश पूछता है – “कौन धृतराष्ट्र?”

“अरे यार जिससे अभी मेरी बात हो रही थी? माता दीन का इंटरव्यू रिकार्ड हो गया ना।”

“कौन धृतराष्ट्र? कौन मातादीन? कैसा इंटरव्यू?”

“संजय सर …..  संजय सर ….. उठिए वो गाँव आ गया है। कोई मातादीन पंचायत भवन के बाहर गाँव के लोग लुगाइयों और बच्चों के साथ आपका इन्तजार कर रहा है।”

ड्राइवर कृष्ण कुमार ओ बी वैन में पीछे लेटे टी वी पत्रकार संजय को नींद से उठा रहा था। और संजय नींद में उठकर कभी ओ बी वेन के मॉनिटर को तो कभी ओ बी वेन की खिड़की के बाहर शोर मचाती भीड़ को देख रहा था।

© हेमन्त बावनकर

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हिन्दी साहित्य – कविता – नाखुश-खुश। – श्री सुरेश पटवा

श्री सुरेश पटवा
नाख़ुश-ख़ुश। 
ज़िंदगी में बहुत है ऐसा कुछ
जो है नाख़ुश
लेकिन बहुत कुछ और भी है
अनचीन्हा अलसाया सा
अनदेखा लावारिस ख़ुश
छिटका हुआ
नज़र की अयाल पर
समय के भाल पर।
ज़िंदगी मियादी जमा में
बढ़ती रक़म का अंबार तो नहीं,
जिलेटिंन में सजी दवाइयों
की गिनतियों का जोड़ तो नहीं,
सुई की नौक पर
सहमा अहसास तो नहीं
सिमट जाएँ जिसमें सांसें
उलझ जाए दिमाग़
सूख जाएँ रिश्ते
छीज जाए सृजन
देखो नज़र डाल कर।
बहती हवा, उड़ते परिंदे, बहते झरने
रिमझिम बारिश की बूँदें
दोस्तों के ठहाके, रिश्तों की महक
बिछड़ों की कसक
पुराने गानों की महीन धुन
साँसों में घुली सुबह की ख़ुश्बू
दिन भर की थकान
शाम के धुँधलके की उदासी
रात की जागती हुई बेचैनी
अच्छी नींद के बाद का सुकून
पेट में पैदा होती अच्छी भूख
परस में आते गरम-गरम फुल्के
मनपसंद सब्ज़ी का पहला कौर
ऐसे कई हैं जीवन के ठौर
हमारे अहसास के भूखे
जिनके सायों में छुपे मर्म
वो देखो ठिठके से खड़े हैं
दिल की दहलीज़ पर
जकड़ लो उन्हें भींच कर।
© सुरेश पटवा
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हिन्दी साहित्य- लघुकथा – खुशियों की फुलझड़ी – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

जय प्रकाश पाण्डेय

खुशियों की फुलझड़ी

जीवन है चलने का नाम ….. जो लोंग परेशानी भरी ज़िंदगी जीते है उनकी संवेदनाएं  मरती नहीं है, उनकी संवेदना विपरीत परिस्थतियों से लड़ने की प्रेरणा देती है और वे अन्य के लिए भी प्रेरक बन जाते है, उनकी सहज सरल बातें भी ख़ुशी का पैगाम बनकर उस माहौल में संवेदना, सेवा और सामाजिकता पैदा कर देती है, नारायणगंज शाखा में दूर – अंचल से खाता खोलने आये “रंगैया” ने भी कुछ ऐसी छाप छोडी ……..

रंगैया जब खाता खोलने आया तो बैंकवाले ने पूछा – “रंगैया, खाता क्यों खुलवा रहे हो ?”

रंगैया ने बताया – “साब दस कोस दूर बियाबान जंगल के बीच हमरो गाँव है घास -फूस की टपरिया और घरमे दो-दो बछिया ….घर की परछी में एक रात परिवार के साथ सो रहे थे तो कालो नाग आके घरवाली को डस लियो, रात भर तड़फ -तडफ कर बेचारी रुकमनी मर गई …… मरते दम तक भुखी प्यासी दोनों बेटियों की चिंता करती रही …….. सांप के काटने से घरवाली मरी तो सरकार ने ये पचास हजार रूपये का चेक दिया है , तह्सीलवाला बाबु बोलो कि बैंक में खाता खोलकर चेक जमा कर देना रूपये मिल जायेगे ….. सो खाता की जरूरत आन पडी साब ! …. बैंक वाले ने पूछा – सांप ने काटा तो शहर ले जाकर इलाज क्यों नहीं कराया ?”

रंगैया बोला – “कहाँ साब! गरीबी में आटा गीला …. शहर के डॉक्टर तो गरीब की गरीबी से भी सौदा कर लेते है,वो तो भला हो सांप का … कि उसने हमारी गरीबी की परवाह की और रुकमनी पर दया करके चुपके से काट दियो, तभी तो जे पचास हजार मिले है खाता न खुलेगा …… तो जे भी गए ………… अब जे पचास हजार मिले है तो कम से कम हमारी गरीबी तो दूर हो जायेगी, दोनों बेटियों की शादी हो जैहै और घर को छप्पर भी सुधर जाहे, जे पचास हजार में से तहसील के बाबु को भी पांच हजार देने है बेचारे ने इसी शर्त पर जे चेक दियो है।”

तभी किसी ने कहा – “यदि नहीं दो तो ?……….. ”

रंगैया तुरंत बोला – “नहीं साब …… हम गरीब लोग हैं, प्राण जाय पर वचन न जाही,  …साब, यदि नहीं दूँगा तो मुझे पाप लगेगा, उस से वायदा किया हूँ झूठा साबित हो जाऊँगा ….अपने आप की नजर में गिर जाऊँगा …..गरीब तो हूँ और गरीब हो जाऊँगा …….और फिर दूसरी बात जे भी है कि जब किसी गरीब को सांप कटेगा, तो ये तहसील बाबु उसके घर वाले को फिर चेक नहीं देगा ……….”

रंगैया की बातों ने पूरे बैंक हाल में एक नयी चेतना का माहौल बना दिया ………… सब तरफ से आवाजें हुई …. “पहले रंगैया का काम करो।”

भीड़ को चीरते हुए मैंने जाकर रंगैया के हाथों सौ रूपये वाले नए पांच के पैकेट रख दिए ……. उसी पल रंगैया के चेहरे पर ख़ुशी के जो भाव प्रगट हुए वो जुबां से बताये नहीं जा सकते …… बस इतना ही बता सकते हैं कि पूरे हाल में खुशियों की फुलझड़ियां जरूर जल उठीं …… हाल में खड़े लोग कह उठे …. कि – “खुशियाँ हमारे आस -पास ही छुपी होती है यदि हम उनकी परवाह  करें तो वे कहीं भी मिल सकती है ………..”

© जय प्रकाश पाण्डेय

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योग-साधना LIFESKILLS/जीवन कौशल-17 –SHRI JAGAT SINGH BISHT

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Ethics are not a collection of commandments and prohibitions to abide by, but a natural inner offering that can bring happiness and satisfaction to ourselves and others.

LifeSkills

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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संस्थाएं – “LifeSkills”, Indore

(LifeSkills is a mission of Bisht couple (Shri Jagat Singh Bisht and Smt. Radhika Jagat Bisht) that creates a pathway to authentic happiness, well-being and a fulfilling life with objective to provide skills that make life happier, meaningful and worth living.  LifeSkills equips us with sustainable scientific tools to cultivate a happy and fulfilling life with a greater sense of well-being.)

LifeSkills

(A Pathway to Authentic Happiness, Well-being and a Fulfilling Life)

 Do you want to be happier? Would you like to increase your well-being and flourish? We help you do that!

 Let us begin with a quick overview by watching this short video:

 

What is LifeSkills?

LifeSkills is a pathway to authentic happiness, well-being and a fulfilling life.

Our objective is to provide skills that make life happier, meaningful and worth living.

LifeSkills equips you with sustainable scientific tools to cultivate a happy and fulfilling life with a greater sense of well-being.

What do you do?

We conduct:

  • Retreats
  • Workshops
  • Seminars
  • Talks
  • Trainings
  • One-On-One Coaching

For Individuals, Institutions, Communities, Workplaces & Organisations.

What are the foundations of your programmes?

The foundations of our programmes are:

  • Positive Psychology
  • Meditation
  • Yoga
  • Laughter Yoga
  • Spirituality

What is your vision and mission?

  • We help you to flourish by enabling you to discover your signature strengths and virtues and deploy them in three great arenas of life: work, love and parenting.
  • Our mission is to propagate positive life skills to help people flourish.
  • Our guiding spirit is “bhavatusabbamangalam” which means: May all beings be happy!

What is the content of your programmes?

Our programmes include:

Yoga: Asanas, Pranayama, Meditation.

Positive Psychology: The Science of Happiness.

Laughter Yoga: Group Laughter & Laughing Alone.

Spirituality: Ancient wisdom of the sages.

We lay special emphasis on Positive Education, Positive Ageing, Positive Health, Yoga Nidra, Surya Namaskara, Anapanasati and Vipassana.

Our programmes blend the modern science of well-being with the ancient wisdom of the sages.

We feel indebted to the teachings and wisdom of Masters including Martin Seligman, Mihaly Csikszentmihalyi, Abraham Maslow, Swami Satyananda Saraswati, B K S Iyengar, Madan Kataria, Matthieu Ricard, S N Goenka, Thich Nhat Hanh and Buddha.

On what basis have your programmes been created and designed?

Taking care of body, mind and spirit is of utmost importance. It’s like a tripod. All limbs must be equally strong for balance and harmony. Hence, we have taken a holistic approach blending carefully the best of positive psychology, meditation, yoga, laughter yoga and spirituality.

Our programmes are built upon eclectic philosophy: We have selected doctrines from various schools of thought and we are using what are considered the best elements of all systems.

With years of deep research and practical sessions, we have developed a unique and complete programme for health, happiness and harmony of the body, mind and spirit. It transforms the entire experience of life by taking care of all the relevant dimensions – physiological, psychological and spiritual.

All our teachings are non-sectarian, non-religious and non- political. We do not preach any rites and rituals.

What are the benefits derived from the various components of your programmes?

Benefits in brief of various components:

Positive Psychology:Authentic, scientific understanding of happiness and well-being; dispelling myths and wrong notions about happiness.

Yoga:Stimulation of endocrinal systems, taking care of neuro-muscular systems, suitable for modern day lifestyle diseases, body-mind union.

Meditation:Calming, concentration and purification of the mind. Clears clouds and lets you seek wisdom.

Laughter Yoga:Oxygenation of the body, strengthening immune system, stress relief.

Spirituality: Provides right view and right understanding of life. Gives spiritual insight into right speech, right action and right livelihood.

All components put together: Complete transformation of the entire experience of life.

What are the benefits of your programmes?

Benefits for individuals, workplaces, communities and institution:

Individuals: Health, happiness and peace.

Workplaces: Stress relief, team building, higher productivity, leadership and positivity.

Communities: Health, bonding and integration.

Schools/Colleges: Creativity, better concentration, EQ & SQ, all round personality development and strong immune system.

What programmes are available with you?

We have several programmes:

‘The Wheel of Happiness and Well-Being’ is our flagship programme. It is a multi dimensional, activity based programme covering the HOW of happiness.

‘Healthy Happy Harmonious’ is a special programme designed for women.

‘Meditate like Buddha’ is a workshop for happy and stress free life.

Here is a list of some of our programmes:

  • The Wheel of Happiness & Well-being
  • Happiness Boot Camp
  • Meditate Like Buddha
  • Antaranga
  • Bahiranga
  • Healthy Happy Harmonious
  • East Meets West
  • Positive Education
  • Happy@Work
  • Recipe for Happiness
  • Laughter Yoga
  • The Pursuit of Happiness
  • The Quest of Happiness
  • Pathway to Happiness
  • Corporate Stress Management

Who conducts the programmes?

LifeSkills has been founded by Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht. They are on a mission: MISSION HAPPINESS! Happiness for all!

They conduct and facilitate our programmes.

About the Founders:

  • Both are qualified Laughter Yoga Master Trainers of international repute having rich experience with corporates, institutions and individuals of more than a hundred nationalities.
  • They have learned yoga and meditation from gurus in ashrams in Rishikesh and Dharamshala.
  • Both of them were laughter professors at the Laughter Yoga University and worked closely with Dr Madan Kataria, Founder of Laughter Yoga.
  • Radhika is a Yoga Teacher and has a long experience of teaching Yoga and Laughter Yoga to women and children.
  • Jagat is an author, blogger, and a qualified Behavioural Science Trainer and Master Trainer Happiness & Well-being,with a long experience as a Corporate Trainer with a Fortune 500 Company.

 

Where do you conduct your programmes and for whom have you conducted programmes so far?

We conduct programmes right at your doorstep – your workplace, corporate office, school, college, university, club, park, anywhere. Retreats may be conducted in resorts.

We have conducted programmes for Nestle, Abercrombie & Kent, State Bank of India, Airports Authority of India, Hewlett Packard, HCL, schools, colleges, clubs and old age homes.

Please watch this video to get answers to all your unanswered questions about us:

How can we contact you for conducting programmes at our workplace/ institution?

We may be reached at the email address: [email protected]

Are you there on the social media?

Yes. Here are the links:

Facebook: https://www.facebook.com/LifeSkillsIndore/

YouTube: https://www.youtube.com/c/JagatSinghBisht

Twitter:https://twitter.com/CoolBisht

Instagram:https://www.instagram.com/jagatsingh.bisht/

Google+:https://plus.google.com/u/0/+JagatSinghBisht

Can I join Team LifeSkills?

You are warmly invited to join us in this noble mission of health, happiness, harmony, well-being and peace.

The areas in which you may contribute/ collaborate include:

  • Marketing
  • Event management
  • Academic support
  • Administrative support
  • Teaching support
  • Social media
  • Legal advice
  • Copy writing
  • Research & Innovation
  • Multi-media & presentations
  • Public relations
  • Database management
  • Facilitating international participants
  • Liaison with HR of Workplaces
  • Organizing audience & programs
  • Guest faculty
  • Special presentations
  • Collaboration from like-minded & like-hearted
  • Logistics

© Shri Jagat Singh Bisht and Smt. Radhika Jagat Bisht

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हिन्दी साहित्य – कविता – मैं दीपक था  – डॉ.राजकुमार “सुमित्र”

डॉ.राजकुमार “सुमित्र”

मैं दीपक था 

 

मैं दीपक था किंतु जलाया

चिंगारी की  तरह    मुझे

इतना बहकाया है तुमने

छल लगती है सुबह मुझे ।

तुमने समझा हृदय खिलौना

खेल समझ कर छोड़ दिया

कभी देवता सा    पूजा  तो

कभी स्वप्न-सा तोड़ दिया ।

जन्म मृत्यु की आंख मिचौनी

और ना   अब  मुझसे  खेलो

बहुत बहुत पीड़ा तन मन की

कुछ मैं ले लूं कुछ तुम   झेलो।

© डॉ.राजकुमार “सुमित्र”

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योग-साधना LIFESKILLS/जीवन कौशल-16 –SHRI JAGAT SINGH BISHT

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Cultivating a close, warm-hearted feeling for others automatically puts the mind at ease. It helps remove whatever fears or insecurities we may have and gives us the strength to cope with any obstacles we encounter. It is the ultimate source of success in life.
LifeSkills

 

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा – छोटू का दर्द – डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

छोटू का दर्द

अधेड़ आयु का एक शराबी होटल में घुसते ही “ए छोटू…एक प्लेट भजिए और कड़क काली चाय देने का इधर, फटाफट.. जल्दी से”

“जी साब, अभी लाया।” फुर्ती से छोटु ने भजिए की प्लेट टेबल पर रखते हुए कहा- “चाय बन रही है साब, फिर लाता हूँ।”

“क्यों बे! ये टेबल कौन साफ़ करेगा  तेरा बाप?”

“साब, आप अपुन के बाप का नाम लेता है, मेरे को कोई मलाल नहीं इसका। अगर बाप ही ये काम कर लेता तो मैं  अभी किसी सरकारी स्कूल में पढ़ रहा होता।”

“अच्छा साब, आपका बच्चा तो पढता होगा ना?” टेबल पर पोंछा मारते हुए छोटू ने पूछा?

शराबी ने घूरते हुए कहा- “हाँ, पर तू ये सब क्यों पूछ रहा है?”

“क्योंकि साब, स्कूल जाना तो मैंने भी शुरू किया था, किन्तु बीच में ही बाप की दारू की लत के कारण पढ़ना  छोड़ना पड़ा।”

“अच्छा साब,- आपका बच्चा तो आखरी तक पढाई करता रहेगा ना?”

“अबे छुटके, सवाल पे सवाल आखिर तेरा मतलब क्या है?”

“माफ़ करना साब,  पर आपको ऐसी हालत में देख कर मुझे लगा कि, कहीं मेरी तरह आपके बच्चे को भी स्कूल छोड़कर किसी होटल – वोटल में…….”

छोटू अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि, शराबी का एक झन्नाटेदार हाथ उसके गाल पर पड़ा।

“अबे साले  तूने तो आज मेरा पूरा नशा ही उतार दिया रे..”

यह कहते हुए फिर अचानक द्रवित हो छोटू के कंधे पर एक पल के लिए हाथ रखा और सिर झटकते हुए होटल से बाहर निकल कर अपने घर की राह पकड़ ली।

छोटू चांटा खाने के बाद भी खुश था।

इसलिए कि, शायद अब उस आदमी का बच्चा अपनी पढाई पूरी कर सकेगा।

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

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योग-साधना LIFESKILLS/जीवन कौशल-15 –SHRI JAGAT SINGH BISHT

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, LaughterYoga Master Trainer, Author,Blogger,Educator,Speaker.)

While many people consider sensory experience as the main source of happiness, really it is peace of mind. What destroys peace of mind is anger, hatred, anxiety and fear. Kindness counters this—and through appropriate education we can learn to tackle such emotions.
LifeSkills

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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संस्थाएं – “हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी” 

“हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी” 

Helping Hands – Forever Welfare Society

आज के संवेदनहीन एवं संवादविहीन होते समाज में भी कुछ संवेदनशील व्यक्ति हैं, जिन पर समाज का वह हिस्सा निर्भर है जो स्वयं को असहाय महसूस करता है। ऐसे ही संवेदनशील व्यक्तियों की संवेदनशील अभिव्यक्ति का परिणाम है “हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी” जैसी संस्थाओं का गठन। इस संस्था की नींव रखने वाले समाज-सेवा को समर्पित आदरणीय श्री देवेंद्र सिंह अरोरा  (अरोरा फुटवेयर, जबलपुर के संचालक) एक अत्यंत संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी हैं, जो यह स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार करते हैं कि- वे इस संस्था की नींव के पत्थर हैं। उनका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति जो इस संस्था से जुड़ा है वह इस संस्था की नींव का पत्थर है। यह श्री अरोरा जी का बड़प्पन है एवं उनकी यही भावना संस्था के सदस्यों को मजबूती प्रदान करती है। प्रत्येक संस्था में कई अवयव होते हैं किन्तु कोई भी संस्था मात्र एक अवयव पर खड़ी रहती है जिसे हम उस संस्था की रीढ़ कहते हैं। इस संदर्भ में मुझे लगभग 25 वर्ष पूर्व पढ़ी हुई लियो ऐकमेन के अटलांटा संविधान की निम्न पंक्तियाँ याद आती हैं:

Leo Aikman – Atlanta Constitution
The body of every organization is structured from four kinds of bones. There are the wishbones, who spend all the time wishing someone would do the work. Then there are the jawbones, who do all the talking, but little else. The knuckle bones knock everything anybody else tries to do. Fortunately, in every organization there are also the backbones, who get under the load and do most of the work.

(Courtesy :  Free Inspirational Quotes 66-7 http://www.career-success-for-newbies.com/free-inspirational-quotes.html)

इस संदर्भ में मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि-  “हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी” एक ऐसी संस्था है जिसके प्रत्येक सदस्य जमीन से जुड़े हैं एवं संस्था की रीढ़ (Backbone) की तरह कार्य कर रहे हैं। यदि एक वाक्य में कहना चाहूँ तो –

एक अनुकरणीय संस्था जो पूर्ण रूप से समाज के उत्थान के प्रति समर्पित है।

श्री अरोरा जी ने लगभग 20 सदस्यों को प्रोत्साहित करते हुए इस संस्था की नींव 1 जून 2015 को रखी। आधिकारिक तौर पर इस संस्था को 22 सितंबर 2015 को लगभग 50-60 सदस्यों के सहयोग से मूर्त रूप दिया।। आज इस संस्था से लगभग 270 सदस्य जुड़े हुए हैं जो कि प्रत्यक्ष अथवा अप्रयक्ष रूप से आर्थिक, मानसिक अथवा शारीरिक रूप से संस्था को सहयोग प्रदान कर रहे हैं।

मैं अचंभित हूँ संस्था द्वारा सोशल साइट्स जैसे फेसबुक एवं व्हाट्सएप के सकारात्मक प्रयोग को देखते हुए। कहीं किसी का भी एस.ओ.एस. कॉल / मेसेज आता है और कुछ ही समय में उस समस्या का स्वैच्छिक समाधान भी हो जाता है।

जब श्री अरोरा जी से इस संस्था की जीवन यात्रा के बारे में जानना चाहा तो उन्होने अत्यंत सादगी से जो उल्लिखित किया वह प्रस्तुत है उन्हीं के शब्दों में –

 

हैल्पिंग हैंड्स

एक अनंत अनवरत यात्रा

हैल्पिंग हैंड्स की स्थापना के पूर्व आम भारतीय की तरह हम सभी की भी यही मान्यता थी कि भारत में जन्मे हर इंसान की सभी तरह कि बुनियादी आवश्यक्ताओं की ज़िम्मेदारी सरकारों की ही होती है। किन्तु, फिर कुछ ऐसी बातें हुई कि जिसने हैल्पिंग हैंड्स की कल्पना को मूर्त रूप में लाने के लिए प्रेरित किया।

मेरे निवास स्थान हरी सिंह कॉलोनी जबलपुर के पास एक कन्या शाला स्थित है। इस शाला की छात्रा की फीस माफ कराने हेतु किसी पालक का आवेदन प्राप्त हुआ। इस संदर्भ में प्रिंसिपल से मिलने गया तो उन्होने कहा कि हम तो इस बच्चे की फीस माफ कर देते हैं, परंतु ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं, जो फीस या धन के अभाव में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते उनका क्या होगा?

ऐसे बच्चों का क्या होगा? यह प्रश्न बार-बार मेरे हृदय को कचोट रहा था।

इसी दौरान एक दूसरा वाकया हुआ।

हमारी कॉलोनी के हम चार मित्र सुबह के समय चाय पी रहे थे तभी पास बैठे एक बुजुर्ग भिक्षुक को मिर्गी के दौरे आने लगे। जैसे-तैसे यह व्यक्ति सामान्य हुआ तो हमने उससे पूछा कि आपको मिर्गी के दौरे आते हैं तो आप दवाई पास क्यों नहीं रखते। उसने कहा साहब पिछले तीन दिन से एक बार खाना खाया है तो दवा के पैसे कहाँ से लाऊँ?

बस यही शब्द हमारे दिमाग में गूंजने लगे –

  • उन बच्चों का क्या होगा?
  • दवा के पैसे कहाँ से आएंगे?

बस इन दो प्रश्नों ने हमें अपना सामाजिक दायित्व का बोध कराया तथा हमने अपने अन्य मित्रों के साथ संस्था को  प्रारम्भ करने का प्रयास प्रारम्भ किया। संस्था ने अपने कार्यक्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को अपनी प्राथमिकता में रखा।

संस्था ने अपने कार्य को प्रारम्भ करने के पहले ऐसी प्रक्रिया सुनिश्चित की जिससे संस्था के द्वारा की जाने वाली मदद पूर्णतया पारदर्शी तरीके से वास्तव में जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंचे। साथ ही संस्था द्वारा जरूरतमन्द व्यक्ति द्वारा चाहिए गई मदद को नगद के रूप में न देकर चाही गई सामाग्री, फीस या दवा के रूप में दी जाती है।

संस्था का मानना है कि स्वस्थ शरीर से स्वस्थ समाज, शहर तथा देश का निर्माण संभव है। साथ ही शिक्षित व्यक्ति अपने परिवार के साथ राष्ट्र निर्माण में भी अपनी भागीदारी कर सकता है। अतः संस्था द्वारा जरूरतमन्द निर्धन विद्यार्थियों को पुस्तकें, स्टेशनरी, फीस, स्कालरशिप के साथ-साथ फ्री कोचिंग का भी प्रावधान रखा गया है। कन्या शिक्षा को प्रोत्साहन देने क उद्येश्य से कन्या शालाओं से संपर्क किया गया साथ ही संस्था द्वारा पूर्णतया निःशुल्क मेडिकल उपकरण बैंक का गठन किया गया जिसमें व्हीलचेयर, एयर बेड, मेडिकल बेड, वॉटर बेड, वाकर, सक्शन मशीन आदि उपकरण जरूरतमंदों को सीमित समय के उपयोग हेतु निःशुल्क दिये जाते हैं।

हैल्पिंग हैंड्स द्वारा अपनी स्थापना के तीन वर्षों में लगभग 270 सदस्यों के विश्वास के फलस्वरूप शिक्षा, स्वास्थ्य, दिव्याङ्गता तथा अन्य क्षेत्रों हेतु 10 अनवरत क्रियाशील प्रोजेक्ट चलाये जा रहे हैं।

संस्था का यह प्रयास है कि जरूरतमन्द/निर्धन विद्यार्थियों हेतु शिक्षा संबंधी हर आवश्यकता तथा कोचिंग इत्यादि से उनका उत्कृष्ट परिणाम लाने में सहायक सिद्ध हो ताकि ये विद्यार्थी स्वावलंबी बनकर अपने परिवार का भरण पोषण करें तथा अच्छे नागरिक होने का कर्तव्य पूरा करें।

इस संस्था के सदस्यों के निःस्वार्थ समर्पण की भावना को देखते हुए हमें यह संदेश प्रचारित करना चाहिए कि व्यर्थ खर्चों पर नियंत्रण कर भिक्षावृत्ति को  हतोत्साहित करते हुए ऐसी संस्था को तन-मन-धन से  सहयोग करना चाहिए जो ‘अर्थ ‘की अपेक्षा समाज को विभिन्न रूप से सेवाएँ प्रदान कर रही है 

मैं आप सबकी ओर से श्री अरोरा जी एवं  संस्था के सभी सदस्यों का हृदय से सम्मान करता हूँ जो अपने परिवार  एवं  व्यापार/रोजगार/शिक्षा (छात्र  सदस्य)  आदि दायित्वों  के साथ मानव धर्म को निभाते हुए  समाज  के असहाय सदस्यों की सहायता करने हेतु तत्पर हैं।  

मैं ऐसी अन्य सामाजिक एवं हितार्थ संस्थाओं की जानकारी अभिव्यक्त करने हेतु कटिबद्ध हूँ।  यदि आपके पास ऐसी किसी संस्था की जानकारी हो तो उसे शेयर करने में मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी।

(अधिक जानकारी  एवं हैल्पिंग  से जुडने के लिए आप श्री देवेंद्र सिंह अरोरा जी से मोबाइल 9827007231 पर अथवा फेसबुक पेज https://www.facebook.com/Helping-Hands-FWS-Jabalpur-216595285348516/?ref=br_tf पर विजिट कर सकते हैं।)

#e-abhivyakti

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