योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Meditation/ध्यान – अभ्यास हेतु निर्देश: सुनते जाएं और ध्यान करें – Meditation Learning VIDEO #1  (Hindi) ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ ध्यान: अभ्यास हेतु निर्देश: सुनते जाएं और ध्यान करें ☆ 

Video Link >>>>

Meditation Learning VIDEO #1  (Hindi)

 

ध्यान कैसे करें? यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है.

इस विडियो में ध्यान करने हेतु निर्देश दिए गये हैं जिन्हें सुनते हुए आप ध्यान कर सकते हैं.

ध्यान हेतु निर्देश: सुनते जाएं और ध्यान करें :

आराम से बैठ जाएँ. पीठ सीधी, आखें बंद. पूरा ध्यान अपनी सांस पर. नाक के आसपास साँसों के आवागमन को महसूस करें. अन्दर आती सांस और बाहर जाती सांस के प्रति निरंतर सजग रहें. अगर सांस लम्बी है तो जानें कि लम्बी है, अगर सांस छोटी है तो जानें कि छोटी है. केवल जानना है. सांस जैसी है, वैसी ही रहने दें. यदि मन भटक जाये, तो अपना ध्यान वापस सांस पर लेकर आयें. आँखें बंद रखते हुए, अपनी साँसों के प्रति पूर्णतः सजग होकर, अपने पूरे शरीर को मन ही मन देखें – सिर, कंधे, हाथ, सीना, पेट, पीठ और पैर. भीतर सांस लेते हुए, पूरे शरीर को महसूस करें. बाहर सांस छोड़ते हुए, पूरे शरीर को महसूस करें. भीतर सांस लेते हुए, पूरे शरीर को शिथिल करें, आराम दें. बाहर सांस छोड़ते हुए. पूरे शरीर को शिथिल करें, विश्राम दें. पूरा ध्यान पूरी सजगता से लगातार अन्दर आती सांस और बाहर जाती सांस पर.

अंत में, सबके लिए मंगल कामना. सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो. धीरे-धीरे आंखें खोलते हुए, ध्यान से बाहर आयें.

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (1) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय)

 

अर्जुन उवाच

एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।

ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः।।1।।

 

अर्जुन ने कहा-

भक्त जो भजते आपको,सगुण या निर्गुण मौन

सतत योग रत भक्तों में, अधिक श्रेष्ठ है कौन? ।।1।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- जो अनन्य प्रेमी भक्तजन पूर्वोक्त प्रकार से निरन्तर आपके भजन-ध्यान में लगे रहकर आप सगुण रूप परमेश्वर को और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्म को ही अतिश्रेष्ठ भाव से भजते हैं- उन दोनों प्रकार के उपासकों में अति उत्तम योगवेत्ता कौन हैं?॥1॥

 

Those devotees who, ever steadfast, thus worship Thee and those also who worship the Imperishable and the Unmanifested—which of them are better versed in Yoga?।।1।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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ई- अभिव्यक्ति का अभिनव प्रयोग ☆ प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था “व्यंग्यम” की प्रथम ऑनलाइन गोष्ठी ☆ तकनीकी संयोजन – हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर 

☆ ई- अभिव्यक्ति का अभिनव प्रयोग – प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था “व्यंग्यम” की प्रथम ऑनलाइन गोष्ठी ☆

संस्कारधानी जबलपुर से लगभग बयालीस वर्ष पूर्व व्यंग्य की पहली और  प्रतिष्ठित पत्रिका “व्यंग्यम”  सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी के निर्देशन में प्रकाशित  होती थी। इसके सम्पादक मंडल में  सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री निशिकर जी,  श्री महेश शुक्ल जी तथा श्री श्रीराम आयंगर जी थे। इसका अपना इतिहास रहा है और यह पत्रिका काफी लम्बे समय तक प्रकाशित होती रही, जिसमें देश के प्रतिष्ठित व्यंग्यकारों की रचनाएं छपतीं थीं।

“व्यंग्यम” पत्रिका की स्मृति में विगत 34 माह से जबलपुर में  मासिक व्यंग्यम गोष्ठी का आयोजन होता रहा है । व्यंग्यम को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से “व्यंग्यम गोष्ठी”  की श्रृंखला का आयोजन सतत जारी है और भविष्य में व्यंग्यम पत्रिका की योजना भी विचाराधीन है।

विगत 34 माह पूर्व जबलपुर में मासिक व्यंग्यम गोष्ठी की श्रंखला चल रही है जिसमें व्यंग्यकार हर माह अपनी ताजी रचनाओं का पाठ करते हैं।  34 महीने पहले इस आयोजन  को प्रारम्भ करने का श्रेय जबलपुर के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डाॅ कुंदन सिंह परिहार, श्री रमेश सैनी, श्री जय प्रकाश पाण्डेय, श्री द्वारका गुप्त आदि व्यंग्यकारों को जाता है। इस गोष्ठी की विशेषता यह है अपने नए व्यंग्य का पाठ इस गोष्टी में करते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक तीसरे माह किसी प्रतिष्ठित अथवा मित्र व्यंग्यकारों के व्यंग्य संग्रह की समीक्षा भी की जाती है।

कोरोना समय और लाॅक डाऊन के नियमों के तहत सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए और घर की देहरी के अंदर रहते हुए अप्रैल माह की व्यंग्यम गोष्ठी इस बार इंटरनेट पर  सोशल मीडिया के माध्यम से सूचना एवं संचार तकनीक का प्रयोग करते हुए  आयोजित करने का यह एक छोटा सा प्रयास है। इस गोष्ठी के लिए सूचना तकनीक के कई प्रयोगों के बारे में विचार किया गया जैसे कि व्हाट्सएप्प और वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग। किन्तु, प्रत्येक की अपनी सीमायें हैं साथ ही हमारे वरिष्ठतम एवं कई  साहित्यकार इन तकनीक के प्रयोग सहजतापूर्वक नहीं कर पाते।
इस सन्दर्भ में ई- अभिव्यक्ति ने एक अभिनव प्रयोग किया है ।  इस तकनीक में हमने पहले सम्मानित व्यंग्यकारों से मोबाईल पर उनकी स्वरांकित व्यंग्य पाठ की फाइलें मंगवाई और उनको उनके चित्रों के साथ संयोजित कर स्थिर-चित्रित वीडियो बनाकर यूट्यूब पर प्रकाशित किया। इस तकनीक का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि आप उनके वीडियो को लाइक कर सकते हैं और अपने कमैंट्स दे सकते हैं। जहाँ तक आपस में संवाद करने का प्रश्न है तो आप इस पोस्ट के अंत में आपस में वैसे ही चर्चा कर सकते हैं जैसे कि फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर करते हैं। इसके अतिरिक्त इस लिंक को आप सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर शेयर कर सकते हैं।

इस गोष्ठी में हमने सम्मानीय व्यंग्यकारों के नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम से रखा है। आप किसी भी व्यंग्यकार के नाम पर क्लिक कर सीधे यूट्यूब पर उनकी रचना का पाठ उनके स्थिर चित्र पर सुन सकते हैं।

हमें आपसे यह साझा करते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि इस गोष्ठी में प्रतिष्ठित व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी ने मुख्य अतिथि व्यंग्यकार के रूप में हमारे आग्रह को स्वीकार कर अपनी रचना प्रेषित की है। इस गोष्ठी का प्रारम्भ हम हमारे सम्माननीय अतिथि व्यंग्यकार अग्रज श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य से कर रहे हैं । उनके व्यंग्य लेखन से आपको परिचित कराना मेरा कर्तव्य है।

श्री शांतिलाल जैन, भोपाल  – सधुक्‍कड़ी प्रवृत्ति का ‘सुपर-सिद्ध’ व्‍यंग्‍यकार  

नियमित व्यंग्य लेखन करना किसी भी सामान्य व्यंग्यकार के लिये सहज नहीं होता, किन्तु श्री जैन लगभग तीन दशकों से एकल विधा के रूप में सतत व्यंग्य साधना कर रहे हैं। लगभग प्रति सप्ताह उनकी ओर से किसी पत्र-पत्रिका में एक नये विषय के साथ उनकी उपस्थिति दर्ज होती है। अपनी व्यस्त कार्यालयीन दिनचर्या के बीच गहन गंभीर चिन्तन कर व्यंग्य रचना सृजित करना उन्हें अग्रिम पंक्ति के लेखकों की श्रेणी में रखता है। उन्होंने अपने व्यंग्यों को प्रवृत्तियों तक सीमित रखने का प्रयास किया है। इसलिये वे व्यक्तिगत आलोचना से प्रायः दूरी बनाकर रखते हैं। राजनीतिक परिस्थितियों से नाराज तथा नीति निर्धारकों से असहमत होने के बाद भी उनका लेखन अपने आप में बेहद संतुलित, ईमानदार तथा निष्पक्ष व्याख्या करता दीखता है।

देखा देखी लेखन में उतर पड़ने, किसी निजी लक्ष्‍य लेकर लेखन की खेती करने या प्राकृतिक रूप से लेखक के रूप में उपजे होने का दावा करने वाली बेशुमार जमात के बीच शांतिलाल जैन जैसे थोड़े से लेखक सामाजिक सरोकारों के प्रति संचेतना के कारण ही वैचारिक अभिव्‍यक्ति का निष्‍पादन पूरी जिम्‍मैदारी से करते हैं। किसी भी प्रतियोगिता से बेपरवाह और व्‍यंग्‍य के क्षेत्र में घुस रहे छिछलांदे छल छिद्रों से दूर रहकर अपनी साहित्‍य साधना में लीन रहने वाले मस्‍तमौला लेखक हैं वे।

विसंगतियों की परत को भेदकर निकाली विसंगतियों को सलीकेदार हास्‍य से रोशन करने में इन्‍हें विशेष योग्‍यता प्राप्त है। वे आधुनिक संदर्भों पर पैनी नजर रखने वाले व्यंग्यकार हैं। अन्तर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय महत्‍व के गूढ़ विषयों पर  गहन अध्ययन से हासिल तथ्य सामने लाने के लिए वे बहुत सहज-सुलभ कथानक रचते हैं। रोचक कहन शैली में जन सामान्‍य से सूत्र जोड़ते हुए वे अपने संदेश को सफलता के साथ सम्‍प्रेषित कर देते हैं। स्वयं बैंकर होने के कारण ये अर्थव्यवस्था और उससे जुड़ी ऐसी विसंगतियों पर भी मार कर देते हैं जो सामान्य व्यंग्यकार की जद से दूर होता है। कहना न होगा कि शांतिलाल जैन, की उपस्थिति समकालीन व्‍यंग्‍य को समृद्ध बना रही है।

§ § § § §
प्रत्येक सम्मानित व्यंग्यकारों का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय इस निवेदन के अंत में दिया जा रहा है।  आप सम्मानित व्यंग्यकारों के चित्र अथवा नाम पर क्लिक कर उनकी रचना आत्मसात कर सकते हैं ।
आज के अंक  में प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक स्तम्भ के सभी सम्माननीय साहित्यकारों से अनुरोध है कि उनकी रचनाएँ अगले सप्ताह से यथावत प्रकाशित होती रहेंगी।

इस प्रकार संस्कारधानी जबलपुर के स्थानीय सम्मानित व्यंग्यकारों की संस्था ” व्यंग्यम” की अप्रैल 2020 की गोष्ठी का मुख्य आतिथ्य भोपाल से श्री शांतिलाल जैन एवं तकनीकी संयोजन ई – अभिव्यक्ति की और से मैं हेमन्त बावनकर, पुणे  वर्तमान में बेंगलुरु से  कर रहा हूँ।

इस परिकल्पना के आधार स्तम्भ हैं अग्रज  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी एवं मैं इसे  तकनीकी स्वरुप देने का निमित्त मात्र हूँ। समस्त ऑडियो फाइलों को  बना संजो कर मुझ तक पहुँचाने के लिए उनका ह्रदय से आभार।

कृपया इस यज्ञ को अपने मित्रों और सोशल मीडिया में अधिक से अधिक साझा करें। इस पोस्ट के अंत में आपस में चर्चा करें।

हमें पूर्ण आशा एवं विश्वास है कि  ई – अभिव्यक्ति के इस अभिनव प्रयोग के लिए आप सबका स्नेह एवं प्रतिसाद मिलेगा।

आप सब का पुनः हृदय से आभार।  नमसकर।

अपने घरों में रहें, स्वस्थ रहें। आज का दिन शुभ हो।   

– हेमन्त बावनकर,  सम्पादक ई-अभिव्यक्ति, पुणे

 

श्री शांतिलाल जैन 

परिचय :

श्री शांतिलाल जैन,

जन्म: 19 फरवरी, 1960, उज्जैन, म.प्र

शिक्षा:  विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से वाणिज्य में स्नातकोत्तर तथा विधि में स्नातक उपाधि.

प्रकाशन:

  • पहला व्यंग्य संग्रह ‘कबीर और अफसर’ -म.प्र. साहित्य परिषद के सहयोग से सन 2003 में प्रकाशित.
  • दूसरा व्यंग्य संग्रह ‘ना आना इस देश’- शिल्पायन, दिल्ली से 2015 में प्रकाशित.
  • तीसरा व्यंग्य संग्रह-मार्जिन में पिटता आदमी, ‘क’ प्रकाशन, नईदिल्ली से प्रकाशित

राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन:

जनसत्ता, शुक्रवार, नईदुनिया, धर्मयुग, सुबहसवेरे, दैनिक भास्कर, समावर्तन, अट्टहास आदि देश की अन्य अनेक पत्र-पत्रिकाओं में।

भारतीय स्टेट बैंक में सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी के प्रयोग हेतु सक्रिय सहयोग।

सम्प्रत्ति : भारतीय स्टेट बैंक, स्थानीय प्रधान कार्यालय, भोपाल से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत।

पुरस्कार/सम्मान-

  • म.प्र. साहित्य परिषद का वर्ष 2015 के लिये ‘राजेन्द्र अनुरागी सम्मान’.
  • अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान-2016.
  • श्री हरीकृष्ण तैलंग स्मृति सम्मान –2014.
  • व्‍यंग्‍य लेखक समिति द्वारा स्‍थापित ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्‍कार- वर्ष 2018

 

श्री अभिमन्यु  जैन

 

जन्म : 15/ 02/1952,जबलपुर.

प्रकाशन /प्रसारण :

देश की विभिन्न  पत्र  पत्रिकाओं में व्यंग प्रकाशित. आकाशवाणी, दूरदर्शन से प्रसारित, व्यंग संग्रह  “राग शमशानी”  प्रकाशित. अनेक संस्थाओं से अभिनंदित  एवम सम्मानित.

संप्रति : सेवा निवृत्त अधिकारी वाणिज्य कर

संपर्क:  abhimanyuakjain@ gmail.Com

मोबाईल:  9425885294.

 

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

जन्म:  02.01.1957

शिक्षा: एम. एस. सी. , डी सी ए

प्रकाशन /पुरस्कार:

  • देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं के अलावा आकाशवाणी में कहानी, व्यंग्य लेखों का 30 वर्षों से प्रकाशन /प्रसारण।
  • कबीर सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान के अलावा अनेक पुरस्कार /सम्मान।
  • परसाई स्मारिका सम्पादित, ई-अभिव्यक्ति पत्रिका का महात्मा गाँधी विशेषांक एवं परसाई विशेषांक में अतिथि सम्पादक।
  • व्यंग्य संकलन “डांस इण्डिया डांस” प्रकाशित ।  कुछ साझा संकलन भी प्रकाशित। एक व्यंग्य संग्रह और एक कहानी संकलन प्रकाशनाधीन

सम्पर्क:  416-एच, जय नगर जबलपुर-482002

ईमेल : [email protected]

मोबाईल:  9977318765

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

जन्म:  मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के ग्राम अलीपुरा में वर्ष 1939 में।

शिक्षा: एम.ए.(अंग्रेजी साहित्य), एम.ए.(अर्थशास्त्र), पी.एच.डी, एल. एल.बी.।चालीस वर्ष तक महाविद्यालयीन अध्यापन के बाद 2001 में जबलपुर के गोविन्दराम सेकसरिया अर्थ-वाणिज्य महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त।

साहित्य:  पिछले पाँच दशक से निरन्तर कहानी और व्यंग्य लेखन। 200 से अधिक कहानियां और इतने ही व्यंग्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।अब तक पाँच कथा-संग्रह (तीसरा बेटा, हासिल, वह दुनिया, शहर में आदमी और काँटा ) तथा दो व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित।

सम्मान: 1994 में म.प्र. हिन्दी  साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार,2004 में राजस्थान पत्रिका का सृजनशीलता सम्मान।

संपर्क: 59,नव आदर्श कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर–482002 (म.प्र)

मोबाइल:  9926660392, 7999694788

डॉ प्रदीप शशांक

नाम :   ठाकुर प्रदीप कुमार सिंह

साहित्यिक नाम :   डॉ. प्रदीप शशांक

जन्मतिथि :   27 जून 1955

शैक्षणिक योग्यता  बी .कॉम.

सम्प्रति :  म.प्र .शासन कृषि विभाग जबलपुर में सहायक सांख्यकीय अधिकारी के पद से वर्ष 2015 जून में सेवा निवृत्त।

साहित्यिक उपलब्धियां :  वर्ष 1975 से छुटपुट लेखन प्रारम्भ किया । प्रथम हास्य व्यंग्य दिल्ली प्रेस की पाक्षिक पत्रिका “मुक्ता” में दिसम्बर 1976 में “कालोनी क्रिकेट मैच” शीर्षक से प्रकाशित हुआ । इसके बाद प्रकाशन का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ तो देश भर की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य, लघुकथायें, लेख, कवितायेँ आदि निरन्तर प्रकाशित होते रहे हैं ।

सम्पादन :  जबलपुर से प्रकाशित लघुकथा विधा की पत्रिका ‘ लघुकथा अभिव्यक्ति ‘ में प्रबन्ध सम्पादक, तथा ‘प्रतिनिधि लघुकथायें ‘ में उप सम्पादक के रूप में अवैतनिक सेवायें प्रदान कीं ।

सम्मान /पुरस्कार :  देश भर की प्रमुख साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न सम्मानों /पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।

प्रकाशित कृतियाँ : वर्ष 1986 में दिनिशा प्रकाशन जबलपुर द्वारा प्रकाशित  व्यंग्य संग्रह ‘ एक बटे ग्यारह ‘  तथा वर्ष 2009 में अयन प्रकाशन दिल्ली द्वारा मेरा प्रथम लघुकथा संग्रह ‘ वह अजनबी ‘ शीर्षक से प्रकाशित किया गया । इसके साथ ही अनेकों लघुकथा संकलनों में मेरी लघुकथा शामिल की गई हैं ।

सम्पर्क :  श्रीकृष्णम इको सिटी , श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास , कटंगी रोड , माढ़ोताल , जबलपुर , म . प्र . 482002

मो . 9425860540 , 9131485948

श्री रमाकांत ताम्रकार

जन्म:  23-6-1960 जबलपुर

प्रकाशन: अनेक पत्र पत्रिकाओं में कहानी, व्यंग्य, समीक्षा, आलेख, साक्षात्कार आदि

प्रसारण कहानियां,व्यंग्य, आलेख, परिचर्चाएं आदि

प्रकाशन: दो कहानी संग्रह प्रकाशित। एक व्यंग्य संग्रह प्रकाशनाधीन।

पुरस्कार : अनेकों राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार

सम्पादन :  विभिन्न स्मारिकाओं का सम्पादन, कहानी पत्रिका का संयोजन एवम सम्पादन, त्रैमासिक पत्रिका अमृत दर्पण, भोपाल में संपादक

फ़िल्म एवं डॉक्यूमेंट्री: 

  • लव यू कैनेडा कहानी एवं स्क्रिप्ट लेखन
  • कहानी मंच जबलपुर -20  डॉक्यूमेंट्री
  • कवि श्री गंगाचरण मिश्र जबलपुर की कविताओं पर कविता वीडियो

सम्प्रति:  म. गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, जबलपुर में कार्यरत ।

मोबाईल: 9926660150

ईमेल:  [email protected]

 

श्री रमेश सैनी

जन्म : 3 जून 1949, महाराजपुर (मंडला) म.प्र.।
शिक्षा :  विज्ञान स्नातक, स्नातकोत्तर (अर्थ शास्त्र, मनोविज्ञान) 1982, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में डिप्लोमा
प्रकाशन : विगत 40 वर्षों से धर्मयुग, सारिका, माधुरी, इंडिया टुडे, कादम्बिनी, नवनीत, वागर्थ, कथादेश, कादम्बरी, साक्षात्कार, मायापुरी, नई गुदगुदी, व्यंग्य यात्रा, आसपास, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, भास्कर, युगधर्म, स्वतंत्र मत, नवीन दुनिया, जनपक्ष आज, ब्लिट्ज, रविवार, आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन।
प्रसारण : जबलपुर, भोपाल, छतरपुर, लखनऊ, दिल्ली आदि आकाषवाणी, दूरदर्षन केन्द्रों से विभिन्न रचनाओं का प्रसारण तथा व्यंग्य और कहानी पर विमर्ष का प्रसारण।
अनुवाद : अनेक रचनाओं का बंगला, पंजाबी, अंग्रेजी और नार्वेरियन भाषा में अनुवाद।
सम्पादन : अंतर्राष्ट्रीय संस्था सर्विस सिविल इन्टरनेशनल (स्विट्जरलेण्ड) की भारत शाखा द्वारा प्रकाषित मासिक पत्रिका ‘प्रयास’ तथा जाबालि सैनी बंधु अख़बार का सम्पादन।
कृतियाँ : मेरे आसपास, बिन सेटिंग सब सून, पाँच व्यंग्यकार (व्यंग्य संग्रह), अंतहीन वापिसी (कहानी संग्रह), सब कुछ चलता है, बक्से में कुछ तो है (व्यंग्य उपन्यास) शीघ्र प्रकाश्य

पुरस्कार : कादम्बिनी (मासिक पत्रिका) द्वारा कादम्बिनी सम्मान – 1994, म.प्र. युवा रचनाकार सम्मान, मध्यप्रदेश  साहित्यकार मंच सम्मान , म.प्र. लघु कथा परिषद द्वारा लघुकथा सम्मान, पाथेय द्वारा सृजन सम्मान, हीरालाल गुप्त स्मृति सम्मान, मध्यप्रदेश  लघु कथाकार परिषद द्वारा अखिल भारतीय स्व. रासबिहारी पाण्डेय स्मृति सम्मान, यश अर्चन सम्मान, व्यंग्य यात्रा (पत्रिका) द्वारा व्यंग्य यात्रा सम्मान।
संस्था : एस सी आई (भारत शाखा) शाहदरा दिल्ली में कुष्ठ रोगियों की दो वर्षों तक सेवा सुश्रुषा तथा उनके लिए अनेक कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन।
1972 उदयपुर (राजस्थान) के आसपास के गाँवों में जल-समस्या तथा समस्याओं पर गहन कार्य।
साहित्यिक संस्था:  मिलन, मित्र संघ, हिन्दी साहित्य सम्मेलन (जबलपुर शाखा), म.प्र. लेखक संघ (जबलपुर इकाई), साहित्य संघ, पहल गोष्ठी आदि संस्थाओं में अनेक पदों पर सक्रियता से सहभागिता। कहानी मंच में ‘अध्यक्ष’ तथा अनेक साहित्यिक कार्यक्रमों का संयोजन। अनेक संस्थाओं के आमंत्रण पर अध्यक्षता, निर्णायक, रचना-पाठ, विचार-विमर्श आदि की भूमिका का निर्वाह।
खेल : टेबिल टेनिस में जिला तथा प्रादेशिक स्तर पर प्रतिनिधित्व, विजेता, उपविजेता।
विदेश : सर्विस सिविल इन्टरनेशनल  द्वारा 1972 में पश्चिम जर्मनी आमंत्रित, पर पारिवारिक कारणों से गमन स्थगित।
सम्प्रति : रक्षा लेखा विभाग से वरिष्ठ अंकेक्षक पद से सेवा निवृत्त।
सम्पर्क  : 245/ए, एफ.सी.आई. लाइन, त्रिमूर्ति नगर, दमोह नाका, जबलपुर (म.प्र.) 482 002
दूरभाष:  0761-2645588, 94258 66402, 8989 499299
ईमेल : [email protected]

 

डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

जन्म तिथि : 7 जुलाई 1958

सृजन कार्य क्षेत्र  : साहित्य

प्रिय विधा : मुझे काव्य लेखन सबसे अच्छा लगता है।

परिचय : साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हूँ। मेरी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तंत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है।

कृतियाँ/अलंकरण/उपलब्धियाँ :

काव्य संग्रह – किसलय के काव्य सुमन , नई दुनिया का श्रेष्ठ अलंकरण – “जबलपुर साहित्य अलंकरण”, कौन बनेगा साहित्यपति प्रतियोगिता विजेता, ओंकार तिवारी अलंकरण, गुंजन का सरस्वती सम्मान, हिन्दी परिषद का कथा सम्मान, विधानसभाध्यक्ष स्व. कुंजीलाल दुबे स्मृति निबंध प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार।
वर्तिका प्रतिभा अलंकरण, बेटी बचाओ अभियान के सुचारू कार्यान्वयन हेतु मांडू में प्रदेश स्तरीय कार्यशाला में सहभागिता।, पूरे विश्व के 135 से अधिक देशों के “पीस ऑफ  माइंड” टी वी चैनल एक साथ प्रसारित  माउंट आबू में आयोजित ‘राष्ट्रीय कवि सम्मेलन’ में सहभागिता।

अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धियां :

  • समाचार पत्रों, आकाशवाणी एवं विभिन्न चैनलों से प्रकाशन/ प्रसारण।
  • मेरे काव्य संग्रह “किसलय के काव्य सुमन” सहित अनेक सामूहिक संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित।
  • वेबसाईट: hindisahityasangam.com ब्लॉग : hindisahityasangam.blogspot.com
  • व्हाट्सएप्प ग्रुप : “हिन्दी साहित्य संगम” के माध्यम से निरंतर सृजन जारी है।
  • संस्कारधानी जबलपुर के ‘जबलपुर साहित्य रत्न”
  • गुंजन के “सरस्वती अलंकरण”, वर्तिका के ‘प्रतिभा अलंकरण”, ओंकार तिवारी सम्मान सहित
  • शताधिक सम्मान/अलंकरण/ पुरस्कार प्राप्त।
  • लगभग सौ गद्य-पद्य पुस्तस्कों की समीक्षाओं / भूमिकाओं का लेखन।
  • पुस्तकों, पत्रिकाओं का सम्पादन। मंच संचालन।
  • समाचार पत्रों में आलेख तथा स्तंभ लेखन।
  • हिन्दी भाषा के प्रसार, प्रचार तथा विकास हेतु निरंतर सक्रिय।
  • विभिन्न संस्थाओं में सक्रिय सहभागिता। कहानी मंच, म. प्र. लेखक संघ जबलपुर, लघु कथाकर
  • परिषद, वर्तिका के विकास में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुये विशिष्ट कार्यों का सम्पादन। वर्तमान में वर्तिका जबलपुर के अध्यक्ष।
  • स्वरचित संगीतबद्ध नर्मदाष्टक “नित नमन माँ नर्मदे” की जबलपुर नर्मदा महोत्सव 2012 में 16 लड़कियों द्वारा नृत्य प्रस्तुति।
  • एक दोहा संग्रह एवं एक काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

जन्म : २८.०७.१९५९, मंडला म.प्र.

शिक्षा: सिविल इंजी. में  स्नातक, फाउंडेशन इंजीनियरिंग में भोपाल से स्नातकोत्तर उपाधि, इग्नउ से मैनेजमेंट मे डिप्लोमा, सर्टीफाइड इनर्जी मैनेजर.

संप्रति: अतिरिक्त मुख्य  इंजीनियर म.प्र.राज्य विद्युत मंडल, जबलपुर

प्रकाशित किताबें:

कविता-संग्रह: आक्रोश

व्यंग-संग्रह: रामभरोसे, कौआ कान ले गया, मेरे प्रिय व्यंग्य लेख

नाटक-संग्रह: जादू शिक्षा का (प्रथम पुरस्कृत नाटक),हिंदोस्ता हमारा, विज्ञान, जल जंगल और जमीन, बिजली का बदलता परिदृश्य

फोल्डर:  रानी दुर्गावती व मण्डला परिचय, कान्हा अभयारण्य परिचायिका

प्रसारण: आकाशवाणी व दूरदर्शन से अनेक प्रसारण, रेडियो रूपक लेखन

विशेष : 

  • विभिन्न सामूहिक संग्रहों में रचनायें प्रकाशित
  • अनेक नाटक निर्देशित, पत्र पत्रिकाओ में नियमित लेखन
  • अनेक साहित्यिक संस्थाओ में सक्रिय पदेन संबद्धता, अध्यक्ष – “वर्तिका ” जबलपुरसंयोजक – “पाठक मंच “जबलपुर

उपलब्धियाँ:

  • रेड एण्ड व्हाइट राष्टीय पुरुस्कार सामाजिक लेखन हेतु.
  • जादू शिक्षा का – म.प्र.शासन द्वारा  प्रथम पुरस्कृत नाटक
  • रामभरोसे व्यंग संग्रह को राष्टीय पुरुस्कार दिव्य अलंकरण
  • सुरभि टीवी सीरियल में मण्डला के जीवाश्मो पर फिल्म का प्रसारण
  • २००५ से हिन्दी ब्लागिंग
  • हिन्दी ब्लागिंग के प्रारंभिक वर्षो से ही ब्लाग पर सतत रचनात्मक लेखन
  • कार्यशालायें आयोजित कर  रुचि रखने वाले रचनाकारो को यूनीकोड टायपिंग तथा नेट पर हिन्दी में ब्लागिंग तथा फेसबुक, व्हाट्सअप लेखन सिखाया.
  • डेली हँट मोबाईल  एप पर मेरी अनेक पुस्तकें सुलभ.

अंतरजाल (इंटरनेट) पर विशेष 

  • साहित्यिक हिन्दी वेब पत्रिका “दिव्य नर्मदा” का संस्थापक संचालक.
  • वेब दुनिया, अमर उजाला, जागरण, नवभारत टाईम्स हिन्दी, स्वर्ग विभा, अनुभूति, रचनाकार, साहित्य शिल्पी जैसी अनेकानेक लोकप्रिय साहित्यिक पृष्ठो पर

कुछ ब्लाग्स व फेसबुक पेज के लिंक इस तरह हैं :

ब्लागस 

फेसबुक 

रचनाकार (http://www.rachanakar.org/2013/05/blog-post_9985.html) पर मेरी तकनीकी किताब बिजली का बदलता परिदृश्य निशुल्क

संपर्क: विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १ , शिला कुंज , नयागांव , जबलपुर ४८२००८

ईमेल: [email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

मेरे परिचय के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें  >>>> हेमन्त बावनकर 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कलंदर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – कलंदर ☆

तुम्हें छूने थे शंख, सीप,

खारेपन की उजलाहट,

मैं लगाना चाहता था

उर्वरापन में आकंठ डुबकी,

पर कुछ अलग ही पासे

फेंकता रहा समय का कलंदर,

मैंग्रोव की जगह उग आए कैक्टस

न तुम नदी बन सकी, न मैं समंदर…!

# घर में रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

रात्रि 11:55 बजे, 26.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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आध्यत्म/SPIRITUAL – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (55) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन)

मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्‍गवर्जितः ।

निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ॥

जो जीता मेरे लिये , भेद भाव सब भूल

वही भक्त पाता मुझे , रह जग के अनुकूल ॥55॥

भावार्थ :  हे अर्जुन! जो पुरुष केवल मेरे ही लिए सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करने वाला है, मेरे परायण है, मेरा भक्त है, आसक्तिरहित है और सम्पूर्ण भूतप्राणियों में वैरभाव से रहित है (सर्वत्र भगवद्बुद्धि हो जाने से उस पुरुष का अति अपराध करने वाले में भी वैरभाव नहीं होता है, फिर औरों में तो कहना ही क्या है), वह अनन्यभक्तियुक्त पुरुष मुझको ही प्राप्त होता है॥55॥

 

He who does all actions for Me, who looks upon Me as the Supreme, who is devoted to Me,  who  is  free  from  attachment,  who  bears  enmity  towards  no  creature,  he  comes  to  Me,  O Arjuna.॥55॥

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः ॥11॥

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सामाजिक चेतना – #46 ☆ अक्षय तृतीया विशेष – अक्षय हो संस्कार ☆ सुश्री निशा नंदिनी भारतीय

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

(सुदूर उत्तर -पूर्व  भारत की प्रख्यात  लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना की अगली कड़ी में  प्रस्तुत है  अक्षय तृतीया पर्व पर विशेष कविता अक्षय हो संस्कार ।आप प्रत्येक सोमवार सुश्री  निशा नंदिनी  जी के साहित्य से रूबरू हो सकते हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना  #46 ☆

☆  अक्षय तृतीया विशेष – अक्षय हो संस्कार  ☆

 

अक्षय तृतीय पर

हम करते हैं कामना

धन-संपत्ति अक्षय होने की

सुख-शांति अक्षय होने की

रिश्ते-परिवार अक्षय होने की

नहीं करते हम कामना

संस्कृति-संस्कार, भक्ति

अक्षय होने की

हो गई अगर भक्ति अक्षय

सुसंस्कार-संस्कृति अक्षय

मिलेगा सुख-शांति चैन

धन-संपदा मिल जाएगी

बचेंगे रिश्ते टूटने से

व्यक्ति-व्यक्ति से जुड़ जायेगा

परिवार, समाज व देश बनेगा

भ्रष्टाचार मिट जाएगा।

दुर्गुणों से दूर होकर

काम, क्रोध, लोभ, मोह

डर कर छिप जाएगा,

सबसे बड़ा धन संतोष

जीवन में आ जाएगा।

भक्ति संस्कार-संस्कृति ही

जड़-जीवन की आधार शिला

हे प्रभु ! करो कुछ ऐसा

इस अक्षय तृतीया पर

अक्षय हो संस्कार-संस्कृति

भ्रमण करें धरती पर

बेल फैले सुकर्मों की

रचना हो रामराज्य की।

 

© निशा नंदिनी भारतीय 

तिनसुकिया, असम

9435533394

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आभा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आभा  ☆

 

दैदीप्यमान रहा

मुखपृष्ठ पर कभी,

फिर भीतरी पृष्ठों पर

उद्घाटित हुआ,

मलपृष्ठ पर

प्रभासित है इन दिनों..,

इति में आदि की छाया

प्रतिबिम्बित होती है,

उद्भव और अवसान की

अपनी आभा होती है!

 

# घर में रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 11:07 बजे, 25.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 44 ☆ व्यंग्य – संशय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी  सामजिक एवं प्रशासनिक प्रणाली पर काफी कुछ कहता एक  व्यंग्य   “संशय” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 44

☆ व्यंग्य – संशय ☆ 

सुंदरपुर अब बड़े कस्बे से छोटे शहर में तब्दील हो गया था। सुंदरपुर के सबसे बड़े अमीर सेठ मानिक लाल के यहां चोरी हो गई।  स्थानीय अखबार ने इस बड़ी चोरी में पुलिस के आदमी का हाथ होना बताया। रामदीन ने अखबार में सुबह-सुबह पढ़ा। पुलिस वालों में उत्सुकता हो गई कि बड़े सेठ के यहां किस पुलिस वाले ने लम्बा हाथ मार दिया। रामदीन की एक साल पहले ही पुलिस में नौकरी लगी थी, ईमानदार टाइप का भी था और डरपोंक, सीधा सादा। हालांकि रामदीन पोस्ट ग्रेजुएट था पर गरीबी रेखा के नीचे का आदमी था इसलिए सुंदरपुर थाने में उसे कुत्ता संभालने की ड्यूटी दी गई। जब कहीं चोरी होती तो रामदीन कुत्ते की चैन पकड़ कर कुत्ते के साथ भागता, दौड़ता, रुकता, कुत्ते के नखरे के अनुसार वह इमानदारी से ड्यूटी करता।

सेठ मानिक लाल के यहां की चोरी में लोग पुलिस वाले पर शक कर रहे थे तो वह थाने से कुत्ते को लेकर निकला। पीछे पीछे उसके बड़े साहब लोग जीप से चल रहे थे। दौड़ते – दौड़ते एक जगह वह पुलिस का काला कुत्ता रुक जाता है। रामदीन चारों ओर देखता है दूर दूर तक कहीं कोई नहीं दिखता पीछे से आते पुलिस के साहबों का कुनबा जरुर दिखता है। रामदीन चौकन्ना हो जाता है पास में एक कुतिया कूं कूं करती खड़ी दिखती है। कुत्ता सोचता है – क्या कमसिन कुतिया है? कुत्ते को देखकर कुतिया भी सोचती है – कितना बांका कुत्ता है।

रामदीन सचेत होकर कुत्ते को घसीटते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करता है परन्तु कुत्ता ड्यूटी के नियमों को ताक पर रखकर रामदीन को पीछे घसीटने लगता है और गुस्से में रामदीन के चक्कर लगा लगाकर भौंकने लगता है। रामदीन डर जाता है सोचता है बड़ी मुश्किल से तो नौकरी लगी थी और ये कुत्ता नाराज होकर अपनी ड्यूटी भूल गया है। कहां से बीच में ये कुतिया आ गई। रुक कर रामदीन को लगातार भोंकते कुत्ते को देखकर साहबों ने रामदीन को पकड़ कर हथकड़ी डाल दी। रामदीन बहुत रोया, गिड़गिड़ाता रहा कि सर चोरी नहीं की, ये कुत्ता आवेश में आकर मुझसे बदला ले रहा है। थोड़ी देर के लिए इसका दिमाग भटक गया था, ये चाहता था कि थोड़ी देर के लिए उसे छोड़ दिया जाय पर मैंने देशभक्ति और जनसेवा को आदर्श मानकर इसको अनुशासन का पाठ सिखाया इसीलिए ये नाराज होकर मुझ पर भौंकने लगा।

साहब ने एक न माना बोला –  कुत्ते ने आपको पकड़ा, आपके चारों ओर चक्कर लगा लगा कर भौंका, इसलिए “अवर डिसीजन इज फाइनल।”

दूसरे दिन अखबार में चोरी के इल्ज़ाम में रामदीन की कुत्ता पकडे़ शानदार तस्वीर छपी थी। अखबार की भविष्यवाणी सही थी….

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 5 ☆ हर तरफ मौत का सामान ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  जीवन के स्वर्णिम कॉलेज में गुजरे लम्हों पर आधारित एक  समसामयिक भावपूर्ण एवं सार्थक कविता  हर तरफ मौत का सामान।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 5 ☆

☆  हर तरफ मौत का सामान ☆

 

रास्ते गलियां सुनसान हैं, घर में कैद इंसान है

संभल के जियो, हर तरफ मौत का सामान है ।

 

दुनिया बंद, इंसान परेशान है,

संभल के जियो,हर तरफ मौत का सामान है ।

 

कैसा समय है  इंसान कैद, पंछी उड़ते गगन में खुला आसमान है,

संभल के जियो, हर तरफ मौत का सामान है।

 

सब बेहाल परेशान हैं, ना किसी से मिलना ना किसी के घर जाना,

डरा हुआ सा इंसान है, हर तरफ मौत का सामान है।

 

ना बरखा की बूंदे अच्छी लगती, ना कोयल की कूके,

बदलते मौसम से परेशान, हर तरफ मौत का सामान ।

 

मंदिर के दरवाजे बंद, न घंटियों की झंकार,

ना अगरबत्ती की खुशबू  फलती, हर तरफ मौत का सामान ।

 

ना चाकू, ना पिस्तौल है, ना रन है

जीव जंतु औजार हैं, करते बेहाल हैं, हर तरफ मौत का सामान।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से ☆ श्री दिवयांशु शेखर

श्री दिव्यांशु शेखर 

(युवा साहित्यकार श्री दिव्यांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की।  आप  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से  ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास  “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक समसामयिक सार्थक कविता  “लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से  )

☆ लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से 

 

मैं देखता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

कई नज़ारे अब बंद दिखते हैं,

बेबाक कदमें अब चंद दिखते हैं,

सड़कों पे फैला हुआ लबों के हँसी की मायूसी,

बीते कल के शोर की एक अजीब सी ख़ामोशी।

 

मैं सुनता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

ना होती वाहनों के शोर की वो घबराहट,

ना पाता किसी अपने ख़ास के कदमों की आहट,

रँगीन गली में अब पदचिन्हों की दुःखभरी कथा,

किनारे खड़े खंभे से आती प्रकाश की अपनी व्यथा।

 

मैं बोलता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

कई चीजों के मायनें कैसे बदल रहे,

तो कई रिश्ते बंद कमरों में कैसे मचल रहे,

कोई खुद के प्यार में पड़ वर्तमान में कैसे खो रहा,

तो आज भी भविष्य तो कोई बीते कल की मूर्खता में रो रहा।

 

मैं सोचता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

क्या होगा जब वापस सब पहले जैसा शुरू होगा,

कैसा लगेगा जब दिल आजादी से पुनः रूबरू होगा,

सूरज की चमक से तन कैसे पसीने से भींगेगा,

हवा के थपेड़ों से मन कैसे दीवानों की तरह झूमेगा।

 

मैं लिखता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

कई लोग कल दोबारा हाथों को कसकर थामे कैसे खुशी से गायेंगे,

तो कैसे मतलब के कुछ रिश्ते आँखों में आँसू छोड़ जायेंगे,

जब खिड़कियों के जगह दरवाजें खुलेंगे तो वो कितना सच्चा होगा,

जब वापस कई बिछड़े दिल मिलेंगे तो वाकई कितना अच्छा होगा।

 

©  दिव्यांशु  शेखर

कोलकाता

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