☆ Laughter Yoga at Nestle Nutrition Quality College ☆
We conducted a session of Laughter Yoga followed by Laughter Meditation and Guided Relaxation at the Nestle Nutrition Quality College 2013, Samalkha, India. It included delegates from the Nestle head-quarters at Vevey, Switzerland, Sweden and zone Asia-Oceania-Africa countries including China, Singapore, Indonesia, Pakistan, Bangladesh, Sri Lanka and India.
The participants felt deeply relaxed and cheerful after the session. One of them expressed, “There is a lot of stress in professional life. We laugh very rarely. Laughter Yoga is an amazing way to play and energize. It can do wonders at the workplace.” Another participant shared, “I thought I am not going to laugh as I do not laugh often. After initial clapping and chanting, my inhibitions had gone away and I started laughing freely. I don’t remember when I laughed like this last time.”
Last year, we were invited by Nestle India Limited to conduct Laughter Yoga at their Safety-Health-Environment workshop for zone Asia-Oceania-Africa at Marriott Resort, Goa. A few months ago, Jagat conducted three sessions of Laughter Yoga for the staff of Nestle factory at Samalkha, India. Nestle’s continuous engagement with Laughter Yoga is an indication of the deep value and utility discovered by the corporate world in Laughter Yoga.
( ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता )
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः ।
लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि ।।20।।
जनक आदि ने कर्मो से ही सिद्धि सफलता पाई है
जनहितकारी शुभ कर्मो ने सच में ख्याति दिलाई है।।20।।
भावार्थ : जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्मद्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे, इसलिए तथा लोकसंग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने के ही योग्य है अर्थात तुझे कर्म करना ही उचित है।।20।।
Janaka and others attained perfection verily by action only; even with a view to the protection of the masses thou shouldst perform action. ।।20।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। हम डॉ. मुक्ता जी के हृदय से आभारी हैं , जिन्होंने साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के लिए हमारे आग्रह को स्वीकार किया। अब आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनों से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “अनचीन्हे रास्ते”। डॉ मुक्ता जी के बारे में कुछ लिखना ,मेरी लेखनी की क्षमता से परे है। )
डॉ. मुक्ता जी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय –
राजकीय महिला महाविद्यालय गुरुग्राम की संस्थापक और पूर्व प्राचार्य
“हरियाणा साहित्य अकादमी” द्वारा श्रेष्ठ महिला रचनाकार के सम्मान से सम्मानित
“हरियाणा साहित्य अकादमी “की पहली महिला निदेशक
“हरियाणा ग्रंथ अकादमी” की संस्थापक निदेशक
पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रणव मुखर्जी जी द्वारा ¨हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार” से सम्मानित । डा. मुक्ता जी इस सम्मान से सम्मानित होने वाली हरियाणा की पहली महिला हैं।
साहित्य की लगभग सभी विधाओं में आपकी 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कविता संग्रह, कहानी, लघु कथा, निबंध और आलोचना पर लिखी गई आपकी पुस्तकों पर कई छात्रों ने शोध कार्य किए हैं। कई छात्रों ने आपकी रचनाओं पर शोध के लिए एम फिल और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं।
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित
सेवानिवृत्ति के बाद भी आपका लेखन कार्य जारी है और कई पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं।
काव्य संग्रह – कोहरे में सुबह – श्री ब्रजेश कानूनगो
☆ उम्मीदों की रोशनी से जगमग करने वाला समकालीन रचनाओंका एक अनूठा काव्य संग्रहहै “कोहरे में सुबह” ☆
“कोहरे में सुबह” चर्चित वरिष्ठ कवि-साहित्यकार श्री ब्रजेश कानूनगो की कविता यात्रा का चौथा पड़ाव हैं। इसके पूर्व इनके “धूल और धुएं के परदे में” (1999), “इस गणराज्य में” (2014), “चिड़िया का सितार” (2017) काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। “कोहरे में सुबह” एक ऐसा कविता संग्रह है जो कई मुद्दों और विषयों पर प्रकाश डालता है। श्री ब्रजेश कानूनगो ने अपने कविता संग्रह “कोहरे में सुबह” में अपने जीवन के कई अनुभवों को समेटने की कोशिश की है। “कोहरे में सुबह” उलझन भरे कोहरे में उम्मीदों की रोशनी से जगमग करने वाला एक अनूठा काव्य संग्रह है। ब्रजेशजी ज़मीन से जुड़े हुए एक वरिष्ठ कवि है। इस संग्रह में प्रकृति, प्रेम, गाँव और ग्रामीण जीवन की स्थितियों को अभिव्यक्त करती कविताएं हैं। यह समकालीन कविताओं का एक सशक्त दस्तावेज़ है। इस संग्रह की हर रचना पाठकों और साहित्यकारों को प्रभावित करती है। इस संकलन में 70 छोटी-बड़ी कविताएं संकलित हैं।
इस संग्रह की शीर्षक कविता कोहरे में सुबह में कवि कहते है “सुबह का रैपर हटेगा / तो दिखाई देगी तश्तरी में छपी तस्वीर”। वे एक ऐसा दृश्य रचते है जिसमें पाठक कल्पनाओं के लोक में खो जाता है। आजकल रिश्ते जीवंतता खोते जा रहे हैं। इंतजार करती माँ, घर की छत पर बिस्तर, क्षमा करें इत्यादि भावपूर्ण कविताएं रिश्तों की अहमियत पर प्रकाश डालती हैं। उसका आना कविता की पंक्तियाँ “रात को आई है सुबह की तरह / लगता है गई ही नहीं थी कभी यहां से” बेटी के घर आने पर उनके द्वारा लिखी गई कविता बेटी के प्रति एक पिता के लगाव को महसूस कराती है।
एक टुकड़ा गाँव एवं छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे को उनके इस काव्य संग्रह की सबसे सशक्त कविताएं कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक टुकड़ा गाँव कविता की पंक्तियाँ “पढ़ता हूं अख़बार में जब विकास की कोई नई घोषणा एक गाँव मेरे भीतर मिटने लगता है।”छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे नामक कविता पाठकों को अंदर तक झकझोर देती हैं। ग्रामीण परिवेश इन कविताओं में बोलता-बतियाता सुना जा सकता हैं। महानगरों में आजकल चारो ओर सीमेंट के जंगल ही जंगल दिखाई देते है और बिल्डरों द्वारा जो विशाल अट्टालिकाएं बनाई जा रही है उनमें जो मजदूर काम कर रहे है वे गाँवों से ही इन महानगरों में आए हैं। इन मजदूरों ने खाली पड़े हुए ज़मीन के टुकड़ों पर छोटी-छोटी टापरी बना ली हैं और अपने परिवार के साथ मस्ती में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह देखकर कवि को अपने गाँव की और अपने बचपन की बातें याद आ जाती हैं। इस कविता संग्रह की कुछ कविताएं कवि के गाँव के साथ लगाव को उजागर करती हैं। कवि ने इन कविताओं के माध्यम से सही प्रश्न उठाया है कि जिसे हम आज विकास का नाम दे रहे है क्या इससे गाँवों में आर्थिक समृद्धि होगी? आज विकास के नाम पर आपसी रिश्तों के बीच खोखले विकास की दीवार खड़ी हो गई है। इन कविताओं में ब्रजेशजी की बैचेनी और व्यथा महसूस की जा सकती है।
आभासी दुनिया में, तुम लिखो कवि, चीख आदि कविताओं में ब्रजेशजी कला और साहित्य के प्रति व्यथित दिखते है। धर्म के नाम पर हिदुस्तान में इंसानों के बीच जो नफ़रत की दीवार खड़ी की जा रही है उस पर भी छोंक रचना में “ये कौन-सा छोंक लगाया है / कि धुँआ-धुँआ सा हो गया है चारों तरफ” कवि की चिंता अभिव्यक्त होती है। जहाँ पर्यटक की तरह कविता में कवि अपने घर को ही तीर्थ स्थान मानता है, छुट्टियों में अपने घर पर ही तरोताजा होने के लिए आता है और अपने माता-पिता के घर को ही चार धाम समझता हैं क्योंकि उसे घर में ही शांति मिलती है। पतंगबाज़ी कविता में उल्लास-उमंग के साथ-साथ हार-जीत का दर्शन है। संग्रह की कविता चीख एवं गारमेंट शो रूम में व्यंग्य है क्योंकि कवि एक व्यंग्यकार भी है। कवि के तीन व्यंग्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। गारमेंट शो रूम में कविता में उपभोक्तावादी संस्कृति की चकाचौंध पर गहरा कटाक्ष है। इस कविता में कवि कहते है “जगमगाते जंगल में कटे सरों के भूत / अपनी टांगों की तलाश में हेन्गरों पर अनगिनत लटके थे।” भरा हुआ इस संग्रह की एक ऐसी विशिष्ठ रचना है जो पाठकों को मानवीय संवेदनाओं के विविध रंगों से रूबरू करवाती है”“पुस्तक मेले में दिख गए गौरीनाथ के पास बैठे विष्णु नागर / साथ आने को कहा तो स्टाल से उतर कर तुरंत चले आए मेरे साथ” प्रेम एवं रिश्तों में जीवंतता को अभिव्यक्त करती यह कविता पाठकों को प्रेम, रिश्ते और मानवीय संवेदनाओं से अभिभूत कर देती है। वैसे इस संग्रह की सभी कविताएं मानवीय संवेदनाओं से भरी हुई हैं। डायरी, देहरी की ठोकर और चकमक कविताओं में कवि के मन के भीतर चल रही उठा पटक महसूस की जा सकती है।
ब्रजेशजी की लेखनी का कमाल है कि उनकी रचनाओं में वस्तु, दृश्य, संदेश, शालीनता और मर्यादा सभी मौजूद है एवं उनके कहने का अंदाज भी निराला है क्योंकि वे एक व्यंग्यकार भी है। ब्रजेश जी की कविताओं में गहरी सोच, वैचारिक सूझ एवं उनकी अपनी शालीनता प्रतिबिंबित होती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कविता ब्रजेश जी की आत्मा में रची-बसी है। कवि की रचनाओं में आदि से अंत तक आत्मिक संवेदनशीलता व्याप्त है। संग्रह की रचनाएं ह्रदय में गहरे चिन्ह छोड़ जाती है। कवि की रचनाओं में जीवन के तमाम रंग छलछलाते नज़र आते हैं। संग्रह की सभी कविताएं कथ्य और शिल्प के दृष्टिकोण से नए प्रतिमान गढ़ती है।
कोहरे में सुबह बोधि प्रकाशन का उत्कृष्ट प्रकाशन है। 120 पृष्ठ का यह कविता संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता है। यह काव्य संग्रह सिर्फ़ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है। यह काव्य संग्रह भारतीय कविता के परिदृश्य में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल हुआ है।
(समाज , संस्कृति, साहित्य मेंही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वालेकविराज विजय यशवंत सातपुते जी कीसोशल मीडियाकीटेगलाइन“माणूस वाचतो मी……!!!!”ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए कविराज विजय जी ने यह साप्ताहिक स्तम्भ “समाजपारावर एक विसावा…. !” शीर्षक से लिखने के लिएहमारेआग्रह को स्वीकार किया, इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। अब आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।आज इस लेखमाला की शृंखला में पढ़िये “पुष्प पहिले ….” ।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समाजपारावर एक विसावा #-1 ☆
☆ पुष्प पहिले .. . ☆
समाज पारावर माणूस माणसाला भेटतो. माणसाचे अंतरंग उलगडून एक समाज स्पंदन वेचण्याचा अनोखा प्रयत्न या स्तंभलेखनातून करणार आहे संवादी माध्यमातून सोशल नेटवर्किंग साईट वरुन वैचारिक देवाणघेवाण होत आहे.
*अक्षरलेणी* या कवितासंग्रहाच्या दोन यशस्वी आवृत
माणूस माणसाला घडवतो, बिघडवतो आणि सोबत घेऊन अनेक विकासकामे करू शकतो. प्रत्येक व्यक्तीचे विचार वेगवेगळे असतात. विचार पटले की संवाद घडतो. संवादातून नियोजन आखणी केली जाते. कार्य कौटुंबिक असो, सांस्कृतिक असो, साहित्यिक असो परस्परांशी साधलेला संवाद महत्वाचा ठरतो.
हा संवाद व्यक्तीशी संस्कारीत जडण घडण त्याला जीवन प्रवासात नवनवीन वाटा उपलब्ध करून देतो. समाज प्रियतेच किंवा समाजाभिमुख रहाण्याच वरदान माणसाला जन्मजात लाभले आहे.
समाज समाज म्हणजे नेमके काय? समाज म्हणजे कोणतीही जात नव्हे, कोणताही पंथ नव्हे. व्यक्ती स जन्म देणारे त्याचे आई वडील हा पहिला समाज.
बालपणात संपर्कात आलेले समवयस्क सवंगडी, शाळू सोबती हा दुसरा समाज, जीवनाच्या कुठल्याही टप्प्यावर ज्ञानदान करणारे गुरूजन हा तिसरा समाज, बालपण, तारूण्य, वृद्धावस्था यात सुखदुःखात सामिल होणारा चौथा समाज, आणि आपल्या कार्यकर्तृत्वाच्या प्रभावाने प्रेरित होऊन त्याचे बरे वाईट परिणाम भोगणारा पाचवा समाज माणसाला सतत जाणीव करून देतो. तो माणूस असल्याची.
माणसाचं माणूसपण त्याच्या आचारविचारात, दैनंदिन लेखन कला व्यासंगात,त्याच्या कार्य कर्तृत्वात आणि माणसाने माणसावर ठेवलेल्या विश्वासात अवलंबून असते. हा विश्वास माणसाला धरून रहातो तेव्हा तो माणूस समाजप्रिय होतो. समाज प्रिय माणसे जीवनात यशस्वी झाली की आपोआप समाजाभिमुख होतात. हा समाज तेव्हा माणसाला नवा विचार देतो. विचारांची दिशा त्याला कार्यप्रवण ठेवते. त्याच्या या जीवनप्रवात कुठे तरी आपले माणूस सोबत असावेसे वाटते.
ही सोबत, हा विसावा शब्दातून, अक्षरातून, विचारातून, मार्गदर्शनातून ,प्रोत्साहनातून मनाला जेव्हा मिळते ना तेव्हा ही अनुभवांची शिदोरी माणसाला वैचारिक मेजवानी देते. एक निर्भेळ आनंद देते. हे वैचारिक खाद्य माणसाला आयुष्यभर पुरते. त्याचा जीवनप्रवास समृद्ध करते. हा विसावा ही वैचारिक बैठक वेगवेगळ्या जीवनानुभुतीतून माणसाला विसावा देते. जगायचे कसे? याचे उत्तर देखील या पारावर सहजगत्या उपलब्ध होते.
माणूस जेव्हा माणसाच्या संपर्कात येतो ना तेव्हा तो ख-या अर्थाने विकसित होतो. त्याचे हे विकसन त्याला जगाची सफर घडवून आणते. कुठल्याही परिस्थितीत खंबीरपणे जगायला शिकवते. मान, पान, पद, पैसा , प्रतिष्ठा मिळवून देण्याचा राजमार्ग याच समाजपाराला वळसा घालून जातो. इथे जगणे आणि जीवन यातला सुक्ष्म फरक कळतो आणि माणसाचं जीवन प्रवाही बनते. हा जीवनप्रवाह या शब्द पालवीत जेव्हा विसावला तेव्हा नाविन्यपूर्ण आणि वैविध्यविपूर्ण आशय ,विषयांची लेखमाला आकारास आली हा विसावा रंजनातून सृजनाकडे वळतो तेव्हा हाच माणूस माणसाला विचारांचे दान देतो. मानाचे पान देतो. हे आठवणींचे पान समाज पारावर रेंगाळते आणि
माणूस माणसाशी जोडला जातो. हे एकत्रीकरण, हे समाज सक्षमीकरण, अभिव्यक्ती परीवाराशी या लेखमालेतून संलग्न झाले आणि विविध विषयांवरील लेख रसिक सेवेत दाखल झाले. विविध विषयांवर लेख या लेखमालेतून देणार आहे. हे लेख केवळ शब्द बंबाळ आलेख नव्हे तर हा आहे. समाजपार. ह्रदयाचा परीघ. वास्तवाचा आरसा आणि शब्दांचे आलय. . .
Abercrombie & Kent, the world’s leading authority on luxury and experiential travel, has discovered great value in Laughter Yoga.
Their Executive Vice President Simon Laxton is looking at ways to bring this concept to their annual Las Vegas ‘highest level’ meeting and also the London one. Their Managing director of India, Vikram Madhok, has expressed an interest in using Laughter Yoga for cruise line tours and as part of their India Cultural Lecturer program.
Dr Madan Kataria, the founder of Laughter Yoga movement, deputed us from Indore to showcase Laughter Yoga before senior level executives of Abercrombie & Kent at the picturesque city of Udaipur. Twenty-six delegates had gathered at Hotel Leela Palace Kempinski on the beautiful Pichola lake for their cruise conference 2013.
One of the delegates exclaimed on the completion of the laughter session, “In the beginning, it seemed a bit crazy. Then we started enjoying it. Now, we love it! It was simply fantastic!! We are feeling as free as birds in the sky..”
Another delegate shared his experience thus, “Two simple things that we learned just now – breathing and laughing from our diaphragm – have made us feel so light and relaxed. It’s a great feeling.”
This is what their global cruise ambassador, David Vass, based in Miami, had to say a couple of days after the laughter session, “Thank you for both of your excellent energy, understanding of our group time constraints and the delicious outcome you brought to us! Everybody truly enjoyed this session, especially in the middle of ‘budget day’! We referenced the Laughter yoga techniques throughout the remainder of the conference – making milkshakes, being an elephant and so many of the other happy little bits you supplied us with.”
( ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता )
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर ।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः ।।19।।
अतः काम कर तू अंसग हो,करता रह कर्तव्य मगर
कर विरक्त हो सदा आचरण, चाह परम पद की है गर।।19।।
भावार्थ : इसलिए तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्यकर्म को भलीभाँति करता रह क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।।19।।
Therefore, without attachment, do thou always perform action which should be done; for, by performing action without attachment man reaches the Supreme. ।।19।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। श्री ओमप्रकाश जी ने इस साप्ताहिक स्तम्भ के लिए हमारे अनुरोध को स्वीकार किया इसके लिए हम उनके आभारी हैं । इस स्तम्भ के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी हृदयस्पर्शी लघुकथा “मैं ऐसा नहीं”। )
☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #1 ☆
☆ मैं ऐसा नहीं ☆
वह फिर गिड़गिड़ाया, “साहब ! मेरी अर्जी मंजूर कर दीजिए. मेरा इकलौता पुत्र मर जाएगा.”
मगर, नरेश बाबू पर कोई असर नहीं हुआ, “साहब नहीं है. कल आना.”
“साहब, कल बहुत देर हो जाएगी. मेरा पुत्र बिना आपरेशन के मर जाएगा.आज ही उस के आपरेशन की फीस भरना है. मदद कर दीजिए साहब. आप का भला होगा,” वह असहाय दृष्टि से नरेश की ओर देख रहा था.
“ कह दिया ना, चले जाइए, यहाँ से,” नरेश बाबू ने नीची निगाहें किए हुए जोर से चिल्लाते हुए कहा.
तभी उस का दूसरा साथी महेश उसे पकड़ कर एक ओर ले गया.
“क्या बात है नरेश! आज तुम बहुत विचलित दिख रहे हो.” महेश बाबू ने पूछा, “वैसे तो तुम सभी की मदद किया करते हो ? मगर, इस व्यक्ति को देख कर तुम्हें क्या हो गया?” वह नरेश का अजीब व्यवहार समझ नहीं पाया था.
नरेश कुछ नहीं बोला. मगर, जब महेश बाबू ने बहुत कुरैदा तो नरेश बाबू ने कहा, “क्या बताऊँ महेश ! यह वही बाबू है, जिस ने मेरी अर्जी रिश्वत के पैसे नहीं मिलने की वजह से खारिज कर दी थी और मेरे पिता बिना इलाज के मर गए थे.”
“क्या !’’ महेश चौंका.
“हाँ, ये वहीं व्यक्ति है.”
“तब तू क्या करेगा?” महेश ने धीरे से कहा, “जैसे को तैसा?”
“नहीं यार, मैं ऐसा नहीं हूं,” नरेश ने कहा, “मैंने इस व्यक्ति की अर्जी कब की मंजूर कर दी है और इलाज का चैक अस्पताल पहुंचा दिया है. यह बात इसे नहीं मालूम है.’’ कहते हुए नरेश खामोश हो गया.
महेश यह सुन कर कभी नरेश को देख रहा था कभी उस व्यक्ति को. जब कि वह व्यक्ति माथे पर हाथ रख कर वहीं ऑफिस में बैठा था.
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। श्री सुजित जी ने हमारे इस स्तम्भ के आग्रह को स्वीकारा इसके लिए हम उनके आभारी हैं। अब आप उनकी रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता ” राऊळ….”।)